Monday, August 29, 2011

NAKSHATRA TANTRA SE MANORATH SIDDHI

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प्रिय मित्रों,
जय गुरुदेव,
भाई साधना जगत विचित्रताओं से भरा हुआ है और इसकी ये गुणधर्मिता इस स्तर तक है की कभी कभी बुद्धि चकरा ही जाती है .आप चाहे पारद विज्ञानं को देखे, चाहे, तंत्र विज्ञान को या फिर ज्योतिष शास्त्र को .इतनी विविधता इतना रहस्यों का ढेर की बस समझने में चाहे जीवन कितने भी लगा लो कम ही पड़ेंगे. और इन विषयों की यही विशेषता तो मुझे अपने और खींच ले आयी.पर बहुत सी ऐसी बाते भी थी जो की कभी मैंने सोची भी नहीं थी. एक बात अवश्य ध्यान देने वाली है की प्रत्येक विषय एक दुसरे से जुड़े हुए हैं .पारद विज्ञानं का बहुत ही गहरा लेना देना तंत्र शास्त्र, आयुर्वेद शास्त्र और ज्योतिष से है .
जिस प्रकार सूर्य विज्ञान के द्वारा पदार्थों का सृजन किया जाता है या संजीवनी क्रिया की जाती है .उसी प्रकार चन्द्र विज्ञान, शून्य विज्ञान(आकाश विज्ञानं),अग्नि विज्ञानं,नक्षत्र विज्ञानं भी हैं जिनसे उपरोक्त सभी क्रिया की जाती हैं. ये अलग बात है की आज इन विद्याओं को जानने वाले बहुत ही कम होंगे.
आपके अनुसार ज्योतिष क्या है , शायद जीवन की घटनाओं को अध्यन करने वाला शास्त्र ,है न.पर जब आप इसके रहस्य को समझेंगे तो इस लिखे पर सिवाय अचरज के और कुछ बाकि नहीं रहेगा.वैसे यदि हम इस रहस्य को परे भी कर दें तब भी हम्मे से बहुत ही कम लो ग इस विज्ञानं का लाभ ले पाते हैं. भले ही हमें लाख पता हो की अमुक घटना का निर्धारण ज्योतिष के अनुसार इस दिन हुआ है तब भी क्या हम उसका ल;अभ उठा पाते हैं या फिर उसकी वजह से होने वाली हानि को कम कर पाते हैं .शायद नहीं न.
खैर मैं आपके सामने जिस रहस्य को प्रकट कर रहा हूँ वो ये है की जिस भी व्यक्ति ने ज्योतिष शास्त्र का अध्यन किया होगा उसने २७ नक्षत्रों के बारे में जरूर पढ़ा होगा जिनके द्वारा व्यक्ति का स्वाभाव निर्धारण और राशियों का निर्माण आदि होता है .पर सच तो ये है की तंत्र शास्त्र का एक प्रभाग ज्योतिष तंत्र भी है जिनमे इन नक्षत्रों की शक्ति का प्रयोग कर अपने कैसे भी मनोरथ को पूरा किया जा सकता है .पहले मैं आपको एक उदहारण दे दूं .मान लीजिये एक नक्षत्र साधक किसी व्यक्ति के किसी अंग में विकार उत्पान करना चाहता है तो वो एक ख़ास दिन की मध्य रात्रि में एक प्रयोग संपादित करता है जिसमे वो अपने शत्रु का चित्र जमीन पर बनाता है( रेखाचित्र) .फिर संहार क्रम से उसके शरीर प्रत्येक अंग में निवासित नक्षत्रों को विलोम क्रम से आवाहित कर उनका पूजन करता है और उस स्थान पर एक तेल का दीपक लगता है ऐसे ही २७ स्थानों पर २७ दीप लगा कर वो एक प्रथक दीपक सर के ऊपर तथा दो पैरो के नीचे लगाता है.और एक विशेष मन्त्रं का सम्पुट नक्षत्र के मंत्र में लगा कर लोम विलोम जाप करता है जिस नक्षत्र के मंत्र का जाप होता है वो नक्षत्र जिस अंग का प्रतिनिधित्व करता है वो अंग धीरे धीरे निष्क्रिय ही हो जाता है .यदि ह्रदय से सम्बंधित नक्षत्र के मन्त्र का जप किया जाये तो मृत्यु ही हो जाती है . ऐसा नहीं है दुष्ट कर्म में ही इस विद्या का प्रयोग किया जाता है बल्कि इस साधना में सौम्य बीजो का प्रयोग कर अंगो के रोगों या शिथिलता से भी मुक्ति दिलाई जाती है. यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में ग्रहों की स्तिथिति उसके भाग्योदय के प्रतिकूल है तो उसके लिए एक ख़ास समय में उपरोक्त प्रक्रिया कर के भाग्योदय करक बीज मन्त्र से संपुटित नक्षत्रों के मन्त्र के जप से उसके लिए परिस्तिथियाँ अनुकूल ही नहीं होती बल्कि सफलता भी मिलने लगती है. चाहे वो मुक़दमे में सफलता प्राप्ति की बात हो, लक्ष्मी प्राप्ति की बात हो, प्रेम में सफलता चाहिए , या उच्चाटन करना हो.शत्रु शमन हो या फिर स्वर्ण निर्माण . दिशाओं का निर्धारण, समय का उचित प्रयोग और गुप्त बीज मन्त्रं का सम्पुटन नक्षत्रों की शक्ति को साधक के लिए कार्यकारी बनाया जा सकता है. इस क्रिया के प्रभाव को मैंने खुद भी अपने जीवन में देखा है .
ये विज्ञान गुप्त जरूर है पर लुप्त नहीं है,जाग्रति हम्मे होनी चाहिए असाध्य कुछ भी नहीं है .ब्रह्माण्ड दीक्षा के द्वारा इन शक्तियों को हस्तगत किया जा सकता है.शर्त वही पहले वाली है हमेशा की तरह सदगुरूदेव के चरणों में पूर्ण समर्पण और परिश्रम.....

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