Tuesday, January 10, 2012

Bijatmk tantra and bhagya Utkiln vidhan बीजात्मक तंत्र और भाग्य उत्कीलन विधान

बीजात्मक तंत्र और भाग्य उत्कीलन विधान
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सामान्य मानव जीवन अपेक्षाओं और मनोरथों के दो पहियों पर टिका हुआ है,जिनकी पूर्ती होने से सुख और पूर्ती न होने से दुःख का अनुभव होता है ,और हम अपने जीवन को उन्नति की और अग्रसर होने के लिए भाग्य का मुँह ताकते बैठते हैं की कब वो हमारा सहयोग करे और हम जीवन में उन्नति के शिखर को छू सके . पर क्या सच में भाग्य सदैव हमारा सहयोग करता है.... नहीं ऐसा हमेशा तो नहीं होता,क्या तब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उचित है ? वास्तविकता ये है की भाग्य कर्म का अनुगामी है और जिसे कर्म करना आता है भाग्य सदैव उसके पीछे पीछे दौड़ता है , बहुधा जीवन की विपन्नता और गरीबी को हम रोते हैं,विविध प्रयोग भी करते हैं ,परन्तु हमें लाभ नहीं होता है,तब अक्सर हम क्रिया को दूषण देने का कार्य करने लगते हैं जबकि हम ये बात भूल जाते हैं की प्रारब्ध,संचित और क्रियमाण कर्मों का मल जब तक हमारे सौभाग्य के ऊपर अपना आवरण डाले रहेगा तब तक हम चाहे लाख प्रयत्न क्यूँ न करें,हमारे द्वारा किये गए प्रयासों से हमारा भाग्य कदापि नहीं जागेगा.
जब बात हम करते हैं की कर्म का अनुगामी भाग्य होता है तो इसका अर्थ शारीरिक परिश्रम तो होता ही है परन्तु उसके साथ साधनात्मक कर्म भी अनिवार्य होता है,और जब ये दोनों कर्म सकारात्मक दिशा में होते हैं तो,विपन्नता का नाश होकर,उन्नति,वर्चश्व,ऐश्वर्य,सौभाग्य और सम्मान की प्राप्ति होती ही है.
हम विपन्नता की अवस्था में हम आकस्मिक धन प्राप्ति के वृहद अनुष्ठान को संपन्न करते हैं ,पर क्या ये सही क्रम है ? नहीं ना,क्यूंकि दुर्भाग्र निवारण,दरिद्रता नाश और तत्पश्चात श्री आमंत्रण क्रम करना उचित होता है,तदुपरांत लक्ष्मी का श्री के रूप में आपके जीवन में आगमन होता है और उसके बाद जब हम लक्ष्मी कीलन या स्थिरीकरण की क्रिया करते हैं तो लक्ष्मी जन्म जन्मान्तरों के लिए हमारे कुल में स्थायी रूप से निवास करती हैं. स्मरण रखने योग्य तथ्य ये है की वृहद अनुष्ठान कभी भी आपको शीग्र लाभ नहीं दे सकते हैं क्योंकि उन्हें सिद्ध करने के लिए जो एकाग्रता,चित्त की सध्नाव्धि में इष्ट के साथ होने तारतम्यता का आभाव होना स्वाभाविक होता है और दीर्घ अनुष्ठान प्रारंभिक स्तर पर चित्त को उद्विग्न भी कर देते हैं अतः गृहस्थों को या जिन्हें शीघ्र लाभ चाहिए होता है उन्हें बीजात्मक साधनाओं को सम्पादित करना चाहिए.सदगुरुदेव के आशीर्वाद से ये अतिशीघ्र लाभ भी देते हैं और सिद्ध भी जल्दी हो जाते हैं तथा “यथा बीजम तथा अंकुरम्” की उक्ति को चरितार्थता भी तभी प्राप्त होती है जब आपका बीज पुष्ट हो तभी तो उसका आधार प्राप्त कर साधना आपके समस्त मल का नाश कर आपको आपका अभीष्ट प्रदान करती है.
याद रखिये प्रत्येक बीज के चैतान्यीकरण और जागरण की प्रथक प्रथक क्रिया होती है जो आपके उद्देश्य को दिशा देती है ,जैसे “क्लीं” बीज का यदि वशीकरण साधना के लिए प्रयोग करना हो तो उसे जाग्रत करने और स्वप्राण घर्षित करने की क्रिया भिन्न होगी उस क्रिया से जो की संहार के लिए प्रयुक्त की गयी हो.
यहाँ पर हम बात आर्थिक उन्नति की कर रहे हैं ,तो जब जॉब में या व्यवसाय में अथवा सामान्य जीवन में आप पैसों के लिए मोहताज हो गए हो तो किसी भी अन्य लक्ष्मी प्राप्ति प्रयोग को करते समय यदि “ह्रीं” बीज का सायुज्यीकरण कर दिया जाये तो वह प्रक्रिया निसंदेह अपना तीव्र प्रभाव प्रदान करती है ,और यदि मात्र इसी बीज का प्रयोग किया जाये तब भी आर्थिक बाधाओं का नाश तो करती ही है साथ ही साथ नौकरी या व्यवसाय पर छाये हानि के बादलों को भी पूरी तरह समाप्त कर देती है ,प्रयोग बड़ा या छोटा होने से प्रभाव की प्राप्ति नहीं होती है अपितु उसकी पद्धति कितनी विश्वसनीय है और उसका आधार क्या है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है ,याद रखिये “ह्रीं’ महाकाली,महासरस्वती और महालक्ष्मी तीनों का ही बीज है अर्थात त्रिगुण शक्तियों से परिपूर्ण है अर्थात ,शक्ति,वेग और तीव्रता का संयुक्त रूप,अतः इसका कैसे सयुज्यीकरण किया जायेगा ये ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य होता है किसी भी क्रिया के पूर्ण होने के लिए.
हम बात आर्थिक लाभ या सम्मान या नौकरी या व्यवसाय के स्थायिव की कर रहे है तब इसका प्रयोग कैसे किया जाए मात्र उससे अवगत करना ही मेरा उद्देश्य है –
किसी भी रात्रि को विशुद्ध शहद १०० ग्राम लेकर एक कांच के पात्र में रख ले और उस पात्र को सदगुरुदेव,गणपति और हाथों से स्वर्ण बरसाती पद्म लक्ष्मी के सामने स्थापित कर दे,घृत दीपक प्रज्वलित करे और गुलाब धुप और गुलाब पुष्प से पूजन करे ,साफ़ वस्त्र व आसन हो रात्री या संध्या का समय हो, सफ़ेद कागज या ज्यादा उचित है की भोजपत्र पर अष्टगंध के द्वारा अनार की कलम से “ह्रीं” लिखे और अपना पूर्ण नाम लिख कर फिर से “ह्रीं” लिख दे,ये बहुत ही छोटे कागज या पत्र पर लिखना है.इसके बाद उसी स्थान पर बैठे बैठे बीज मंत्र की ३ माला हकीक या मूंगे माला से करे ,और उसके बाद उस पत्र की गोली बनाकर उस शहद में डुबो दे ,ये क्रम मात्र ३ दिन करना है अर्थात आपको नित्य बीजंकन कर के उसके सामने पूजन तथा जप करना है और मधु में डुबो देना है.इसके साथ आप अन्य प्रयोग भी कर सकते हैं या यदि अन्य लक्ष्मी प्रयोग न कर रहे हो तो इस बीज की माला संख्या ७ कर दीजिए और दिन की अवधि ५ कर दीजियेगा,अंतिम दिवस जप के दुसरे दिन उस पात्र में से सभी गोलियों को निकाल कर किसी बहते साफ़ जल में प्रवाहित कर दे और शहद का आप स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए नित्य सेवन भी कर सकते हैं या वशीकरण साधना में भी प्रयोग कर सकते हैं,सेवन करने के लिए एक इलायची को नित्य उसमे भिगोकर खाना चाहिए. ये सदगुरुदेव की असीम अनुकम्पा है की हमारे मध्य इतने सरल परन्तु अचूक प्रयोग प्राप्य है,आप स्वयं ही इसे कर के प्रभाव देख सकते हैं

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