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Saturday, November 19, 2011

Master philosophy meditation गुरु दर्शन साधना

गुरु दर्शन साधना ---
गुरु शब्द ही का उचार्ण ही हिरदे में प्रेम भर जाता है और उसी क्षण अपने प्रिये गुरुदेव का चेहरा आँखों में या जाता है और अपने आप आंसु धरा प्रवाहित होने लग जाती है !क्यों के एक गुरु ही है जो शिष्य के अपने होते है बाकि सभी रिश्ते तो जही के जही रह जाते है !जहाँ गुरु है वहाँ सभी है !इस संसार रुपी भव से एक गुरु जी ही होते है जो पार लगा देते है !सिर्फ गुरु शब्द का उचार्ण भी अगर प्रेम भव से किया जाये तो भी सिधियो के दुयार खोल देता है !इस लिए गुरु दर्शन हर शिष्य के दिल की कामना ही नहीं लक्ष्य भी होता है ! दिल में प्रेम भरिये और अपना ले अपने सद्गुरु जी को आगे बढ़ कर उतर ले उनका प्रेम अपने हिरदे में और बसा ले उनकी सुरत अपनी आँखों में और उनकी यादे अपने ख्यालो में जही तो है उनके साक्षात् दर्शन करने की विधि !मैं जहा एक साधना दे रहा हू जो सद्गुरु के दर्शन और अशिर्बाद दिलाने में सहयक होती है !आप दिल से करे और विशुद प्रेम से उनको रिझा ले !
विधि --इसे किसी भी गुरुवार शुरू करना है !५ दिन की साधना है !
२ वस्त्र-- धोती पितान्म्बर पहन कर पीले आसन पे पूर्व विमुख बैठे और दैनिक साधना विधि से एक वेजोट पे पीला वस्त्र विशा के गुरु पूजन करे !
३ शुद्ध घी का दीप लगा दे और सुंगधित अगर वती भी लगा दे !
४ प्रसाद के लिए हलवा बना कर रख ले इन पाँच दिनों में हर दिन अलग अलग भोग लगाये !पहले दिन लडू जो शुद्ध घी के ले दुसरे दिन खीर तीसरे दिन पाँच पीस बर्फी के और ४थे दिन पांचो किस्म के मेवे और पंचमे दिन हलवा ले !पूजन पांचो दिन पूर्ण प्रेम भाव से करे !फिर पाँच माला गुरु मंत्र फिर एक माला निम्न साबर मंत्र का जाप और फिर पाँच माला गुरु मंत्र जाप करे !इस परकार पांचो दिन कर्म करने से गुरु जी का साक्षात् दर्शन ,स्वपन दर्शन होता है जा स्वपन में उनसे बात हो जाती है !
साबर मंत्र --- ॐ तारन गुरु बिन नहीं कोई श्रीति स्मृति मध् बात परोई !
थान अद्वैत तभी जाये पसरे मन बच कर्म गुरु पग दर्शे !
दरिदर रोग मिटे सभ तन का गुरु करुना कर होवे मुक्ता!
धन्य गुरु मुक्ति के दाते ॐ !!
जय गुरुदेव !

Friday, September 9, 2011

Parad lakshmi shadhna

पारद लक्ष्मी
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जीवन में मानसिक और भौतिक उन्नति के लिए धन की उपयोगिता को नकारा नही जा सकता. क्यूंकि कहावत है की “शत्रु को समाप्त करना हो तो उसकी आर्थिक प्रगति के स्रोत को ही ख़त्म कर दो वो ख़ुद ही ख़त्म हो जाएगा”.

सदगुरुदेव ने कभी भी यह नही कहा की दरिद्र रहने में महानता है. न ही जितना है उतने में सुखी रहो जैसे वाक्यों को अपने शिष्यों को ही कभी दिया .
भाग्य को सौभाग्य में बदलने और जीवन स्तर को उंचा उठाने के लिए ही उन्होंने प्रत्येक शिविर में धन व सौभाग्य से सम्बंधित साधनाएं शिष्यों और साधकों को करवाई.
इन्ही साधनों में पारद लक्ष्मी जो श्री का ही प्रतिक है का प्रयोग व स्थापन पूर्ण प्रभाव दायक है. जिस घर में भी पारदेश्वरी स्थापित होती हैं ,उस स्थान पर दरिद्रता रह ही नही सकती , ऐश्वर्य व सौभाग्य को वह पर आना ही पड़ता है , मुझे अपने जीवन में जो भी सफलता व उन्नति की प्राप्ति हुयी है ,उसके मूल में भगवती पारदेश्वरी की साधना और स्थापन का अभूतपूर्व योगदान है.

हमें पारदेश्वरी से और आर्थिक उन्नति से सम्बंधित कुछ बातो की जानकारी होनी चाहिए :

पारद लक्ष्मी का निर्माण विशुद्ध प्रद से होना चाहिए क्यूंकि पारद चंचल होता है और लक्ष्मी भी चंचल होती हैं , इस लिए पारद के बंधन के साथ लक्ष्मी भी अबाध होते जाती हैं.
पारदेश्वरी का निर्माण श्रेष्ठ व धन प्रदायक योग में होना चाहिए.

पारदेश्वरी के निर्माण के लिए पारद मर्दन करते समय तथा उनके अंगो को बनते समय "रजस मंत्र" का जप २०००० बार होना चाहिए इसमे १०००० मंत्र खरल करते हुए सामान्य रूप से तथा १०००० बार लोम विलोम रूप से मंत्र के प्रत्येक वर्ण का स्थापन उनके अंगों में करना चाहिए. "रजस मंत्र" जो की आधारभूत मंत्र या पूर्ण वर्णात्मक मंत्र कहलाता है के बिना इनका निर्माण करने पर चैतन्यता का अभाव रहता है तथा यह एक विग्रह मात्र होती हैं जिसे घर में रखने पर कोई लाभ नही होता . येही वजह है की जब आप किसी दुकान से इस प्रकार की मूर्ति खरीदते हैं तो कोई लाभ नही होता भले ही आप उनकी कितनी भी पूजा कर लें.

पारदेश्वरी का स्थापन आग्नेय दिशा में होना चाहिए.

इसके बाद आप सद्द गुरुदेव से इनका मंत्र प्राप्त कर प्रयोग करे , यदि प्रयोग नही भी कर पाते तब भी इनका स्थापन उन्नति के पथ पर आपको अग्रसर करता ही है.

आप इन बातो का ध्यान रखे और देखे की कैसे सम्पन्नता आपके गले में वरमाला डालती है।