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Thursday, December 1, 2011

Why and what Perfection? Diary Note

( किन्ही दिनों में सदगुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंद जी ने मुझे पूर्णता पथ के बारे में अपने श्री मुख से कुछ समजाया था, उस समय मेरी डायरी में लिखे हुए उनके वे आशीर्वचनो को आप सब के मध्य रख रहा हू. )

जीवन हमेशा व्यक्ति को एक निश्चित रस्ते पर अग्रसर करता हे जिसमे वह सुख और दुःख का सामना करता हे किन्तु जीवन कभी मनुष्य के लिए समस्याओ का निर्माण नहीं करता वरन मनुष्य ही उसे जन्म देता हे. व्यक्ति कभीभी पूर्णता के पथ को नहीं समजता, वहीँ उसकी समस्याओ का निर्माण शुरू हो जाता हे, किन्ही परिस्थियों को वो सुख दुःख समस्या वगेरा नाम दे देता हे . पूर्णता और कुछ नहीं हे, पूर्णता मनुष्य के द्वारा उद्भवित सदाचारी कार्य हे, जो यथार्थ हे, जो साश्वत हे, जो ब्रम्ह से सम्पादित हे, कल खंड की उपलब्धि हे और मनुष्य के लिए ही एक विशेष प्रयोजन बद्ध हे. पूर्णता प्राप्ति के लिए तो देवताओ को भी मनुष्यरूप में अवतरित होना पड़ता हे, फिर क्यों पूर्णता के ऊपर इतना अधिक भार दिया गया? हरएक युग के हरएक ग्रन्थ चाहे वह भौतिकता से सबंधित हो चाहे आध्यातिम्कता से, पूर्णता के ऊपर ही क्यों केंद्रित हे? क्यूँ पूर्णता प्राप्ति को ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य कहा गया? आखिर पूर्णता हे क्या?
प्राप्ति से प्रथम, प्राप्ति की कमाना से प्रथम, और प्राप्ति की कमाना की योग्यता से प्रथम किसी भी क्रिया को पूर्ण रूप से आत्मसार करना ही पूर्णता हे. इसका तात्पर्य ये भी हुआ की जीवन को योग्य मार्ग से जीने के लिए पूर्णता ज़रुरी हे. यहाँ जीवन की बात हो रही हे जिसका मतलब अनंत हे, जन्म से मृत्यु नहीं. पूर्णता प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य हे लेकिन वो अंत नहीं हे वह एक शुरुआत हे. शुरुआत हे योग्य रूप से जीवन जीने की, शुरुआत हे ब्रम्ह आधिपत्य की. पूर्णता का अर्थघट्न किया जाए तो यही समज में आता हे की सब कुछ प्राप्त कर लेना. पूर्णता अनंत तथ्यों पर आधारित हे जिसमे हर एक तथ्य अपने आप में पूर्ण हे. फिर क्या हे वे तथ्य? वे तथ्य वही हे जो ब्रम्ह निर्धारित मनुष्य के द्वारा उद्भवित सदाचारी कार्य हे, जो काल खंड में निहित हे. वह चाहे किसीभी रूप में हो, उदाहरण के लिए आध्यातिमक व् भौतिक जीवन की परिस्थितियां, चाहे वह अनुकूल हो चाहे वह प्रतिकूल हो. पूर्णता का पथ वो पथ हे जहाँ पर अनुकूल व् प्रतिकूल का जुडाव होता हे. हर एक पक्ष को जानना ही पूर्णता हे, जहाँ पे कुछ शेष रहे ही नहीं. चाहे वह राम हो कृष्ण हो बुद्ध हो उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया हे, वे चाहते तो अपना जीवन आराम से बिता सकते थे लेकिन उन्हें पूर्णता का अनुभव चाहिए था और उन्होंने भौतिक एवं आध्यातिमक जीवन को समजा. सुख और दुःख को समजा. शांति और युद्ध को समजा. शून्य और समस्त को समाज. और कालखंड में निहित ब्रम्ह के द्वारा सम्पादित सदाचारी शास्वत कार्य को आत्मसार किया. और इसी लिए हम उन्हें देवता कहते हे, पूर्णता की प्राप्ति मनुष्य को देवता बनाती हे. मगर ध्यान रहे पूर्णता कोई चिड़िया नहीं जो आके बैठ जाएगी कंधे पर, जो पूर्णता प्राप्त करना चाहते हे, जिनको मनुष्य योनी मेसे दिव्य योनी देवता योनी में प्रवेश करना हे तो तैयार रहे संघर्ष के लिए, उपभोग और दर्द के लिए, सुख व् दुःख, भौतिकता और आध्यात्म के लिए. चाहे वह अनहद आनंद हो या फिर घोर पीड़ा, किन्ही परिस्थिति में विचलित होना पथभ्रष्ट होना हे क्यूंकि यह तो मात्र पूर्णता की तरफ एक कदम ही होगा...

Sunday, November 27, 2011

Guru Kripa hi kevalm part6

मेरे अपने स्नेही भाई बहिनों ,part6

एक कपडे सिलने वाले का .......परम शौक था लोटरी की खरीदना ...... एक टिकट तो रोज़ .... मालूम तो था की खुलना कभी हैं नहीं...... पर फिर भी .. दिल और आशा से मजबूर . कि शायद कभी ... और एक दिन उसकी दुकान के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी ... साहब लोग आये और उससे से कहा की उसका पहला इनाम निकला हैं 10 लाख रूपये का उस दरजी को तो बिस्वास नही हुआ की .... ये होसकता हैं ...इतना भाग्य .हैं उसका .. पर सच तो सच हैं. उसने तत्काल दुकान बंद की और उसकी चाबी सामने के सूखे कुए में फेंक दी अब भला काम किसको करना हैं...... पैसे की कोई कमी हैं हमको ...
जो चार बात लोगों कि सुने ...

पर हुआ वही जो लोग कहते हैं पैसे के साथ सारे तथाकथित गुण और ऐब भी आ गए , और परिणाम भी वही हुआ जो लोग कहते थे ..., एक दिन थका हारा वह अपनी दूकान वापिस आया और उसी सूखे कुए में उतर कर अपनी दूकान की चाबी खोजने लगा और आज से कसम ……. सारे बुरे गुणों से तौबा ..अब से लाटरी से दूर ..

पर कितने दिन . रोक पाता तो फिर ......अब किस्मत रोज़ रोज़ मेहरबान तो होने से रही वह भी पहला इनाम ............पर क्या जाता हैं एक टिकट ही तो हैं.. और एक दिन पुनः एक गाड़ी आई ,साहब लोग उतरे उससे कहा की पहला इनाम ..

उसे तो बिस्वास ही नहीं हुआ और दुकान बंद कर चाबी पुनः उसी कुए में फेक दी अब कोई गलती नहीं ......... पर होना तो वही था ....... जो होना ही ....... था . सारे वही गुण उसका ......वही पे इंतज़ार कर रहे थे, यह जाकर उन्ही से मिला........एक पल में सारी कसमे वादे की यह न करूँगा ..... हवा में उड़ गए.... पर लोग कहते हैं न .......की .. तो फिर वही बात हुयी सारा धन फिर से गया और सारा स्वास्थ्य गया.. पुनः हार थक कर के वापिस....उदास पुनः चाबी खोजी और ... .

अब फिर से तो किस्मत मेहरबान नहो होसकती ..भाई किसी कि भी इतनी जोर दार नहीं होसकती ..... पर अब क्या करे वह .....मन भी तो नहीं लगता .. एक टिकट फिर से खरीद ही ली,, अब कोई पहला इनाम ..वह भी बार बार.... कोइ पागल ही होगा जो अब सोचेगा , कि उसका तीसरी बार पहला इनाम निकल सकता हैं .

अब पुराने दिन वो अमीरी के ... तभी पुनः एक गाड़ी रुकी उस से साहब लोग उतरे उससे कहा कि उसका पहला इनाम

वह चीख उठा कि अब नहीं नहीं ....

और मित्रो क्या कुछ ऐसा ही नहीं हैं हमारे जीवन में हम सदगुरुदेव से प्रार्थना करते हैं उन्हें बिस्वास दिलाते हैंकि एक बार ऐसा तो हो जाय .... तो बस ……. सदगुरुदेव मैं तो.. आप कहे तो उसके बाद ....
पर जैसे ही कुछ मिला उनके आशीर्वाद से तो ..........फिर से अपने वही गुण दोष के पीछे भाग जाते हैं .. पर फिर ........ जब भरे नेत्रों से प्राथना करते हैंकि प्रभु हम तो लायक नहीं हैं.. तब फिर एक बार सदगुरुदेव करुणा से पुनः जीवन देते हैं और उपलब्धिया भी ...,,

पर जैसे ही वह मिली ,, फिर हम सभी का पुराना राग ... फिर हारे ... फिर लौटे .... कि अब सदगुरुदेव नहीं देंगे .....पर किस से मांगे सकते हैं .. तो एक बार फिर .... और पुनः यही क्रम दुहराया जाता हैं.

मेरे भाई बहिनों ,, पर इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि इस बार सदगुरुदेव ने अपनी करुणा से हम सब का हाथ पकड़ पकड़ कर रास्ते पर लाये हैं , कि सभी चीजे दी हैं एक पिता जैसे ... कोई भेद नहीं किया ...

पर अब वह निखिल स्वरुप में हैं और जब वह , हम सब कि शिष्य होने के प्रारंभिक स्तर की....पहली सीढ़ी में जब कभी परीक्षा लेंगे तो ..क्या हमसभी टिक पायंगे,, कभी सोचे.. और गंभीरता पूर्वक .... साधनाओ को करे,, जिससे कि हमसभी का जीवन का अर्थ सार्थक हो सके .. उन दिव्या श्री चरण कमलो के आशीर्वाद से हमसभी का जीवन और साधना मय हो यही उनसे प्रार्थना हैं...




निखिल प्रणाम

SADGURUDEV PRASANG- THAT ONE SECOND

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गुरुदेव के सन्याश जीवन की कुछ कडिया एसी होती हे जो की गृहस्थी से जुडी हुयी होती हे. एसी कई घटना हे जोकि गुरुदेव के सन्याशी शिष्यों के साथ घटी हे और बदल दिया हे इतिहास, किन्तु एसी घटनाए प्रकाश में नहीं आती हे . एसेही एक घटना की जानकारी मुझे मिली तो सहम सा गया में, उलज के रह गया, और सवालो का तूफ़ान कुछ एसा उठा की पागल सा हो गया कुछ क्षण , पर जवाब तो उसका वो एक क्षण मात्र ही थी , जिसने कितनो की ज़िन्दगी बदलदी और नजाने कितनो की ज़िन्दगी बदलेगी. वो एक क्षण जिसके ऊपर न जाने किसका हक कहा जाए . और क्या हुआ था, केसे कब और क्यों , क्या खाश हुआ उस एक क्षण में, आगे उसीके शब्दों में ......

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अमृत मंडल, गुरुदेव ने अपने सन्याश जीवन में चुन चुन के ४० शिष्यों को एकजुट किया और इसी मंडली को नाम दिया अमृत मंडल. पता नहीं गुरुदेव का इसपर क्या विचार रहा होगा. ४० शिष्यों को वो टोली , जिसमे एक से एक विलक्षण व्यक्तित्व. सभी अपने अपने साधना विषयो में तो निष्णांत थे ही पर सभी व्यक्तिगत रूप से भी कुछ विचित्र, कुछ फक्कड़, कुछ अलग से रहने वाले. में भी उनमे से ही एक था. गुरुदेव ने हमे उन उँचइयो पर पहोचाया था जहाँ तक साधक कल्पना ही कर सकते हे और इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए एक दिन वह भी आया की जेसे रहे फट जाए . गुरुदेव सन्याश छोडके वापिस गृहस्थी में जा रहे थे. दुसरे सन्याशी शिष्यों की तरह अमृत मंडल के कोई भी साधक ने उन्हें रोका नहीं. सब जानते थे की गुरुदेव वही करेंगे जोकि सही होगा और हमें अपने भावनाओ के ऊपर काबू पाना भी सिख ही तो लिया था. गुरु कोई व्यक्तिगत सम्पति थोड़ी हे, उन पर तो सभी शिष्यों का हक हे . और हम भीनी आँखों से उसे विदा होते हुए देख रहे थे
हिमालय जेसे हसना ही भूल गया था, प्रकृति मायूस सी दुखी सी होके बेठी रहती थी , और सभी सन्याशी शिष्यों की बात ही क्या कहू, वो तो जेसे चलते फिरते पुतले हो गए थे. पर पता नहीं क्यों गुरुदेव किसी भी सन्याशी शिष्यों को मिलने के लिए तैयार ही नहीं होते थे . क्यों ? आखिर क्यों वो अपने आत्मीयो से अलग रहते हे , ठीक हे लेकिन एक बार वो मिल तो सकते ही हे . और में भी यही सोचके दिल बहला लेता था की गुरुदेव कुछ कर रहे हे तो शिष्यों की भलाई के लिए ही करते होंगे.
उसी दौरान गुरुदेव का सन्देश मिला. उन्होंने मुझे बुलाया था , मिलने के लिए. जान के आश्चर्यचकित हो गया में की एसा केसे हुआ , क्यूँ की मेने कभी गुरुदेव से मिलने के लिए गुज़ारिश नहीं की थी और कई तो रो रो के जेसे बेजान मूर्ति बन गए थे. फिर भी .....आखिर उन्होंने बुलाया हे , ज़रूर कुछ तो विशेष होगा ही.दुसरे दिन निश्चित समय पर , कुछ ही क्षण में पहोच गया में उस मंदिर में जहाँ मेरे भगवन साक्षात् थे. अपना रूप परिवर्तन करके गृहस्थ बना और आगे बढ़ गया... सायद उस दिन कुछ विशेष ही होगा. गुरुदेव और वन्दनीय माताजी बहार खड़े थे और खिचड़ी बाँट रहे थे , एक लम्बी सी कतार थी, में उसी में ही खड़ा हो गया. दूर से ही उनकी मुखाकृति देख रहा था, वही प्रसन्नचित्त चहेरा, आन्दित सा, जो हमेशा आनंद बिखेरता रहता हे . अब में उनसे कुछ ही दूरी पर खड़ा था. कई साल बाद उनको देखना देखना नहीं होता, वो तो एक एसा जाम होता हे जिसे पिटे ही रहे पिटे ही जाए, ये तो वही समाज सकता हे जिसने विरह की वेदना देखि हो, वो आनंद एक दूरी ही समजा सकती हे. खेर एक सेवक ने मुझे पड़िया दे दिया. में आगे बढ़ा और वन्दनीय माताजी जो की सच में ब्रम्हांड की शक्ति हे , जो सिर्फ ममता ही ममता बहाती रहती हे उन्हें प्रणाम किया , उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया. और थोड़ी खिचड़ी उठा के मेरे पदिये में दाल दी.

और में आगे बढ़ा, सदगुरुदेव की तरफ. थोड़े दुबले ज़रूर हो गए थे वह, पर मुखाकृति पर वही प्रसन्नता वही आनंद, में जुका और उनके वो पावन चरणों का स्पर्श किया जो की देवताओ के लिए भी दुर्लभ हे. और में उठा. मेने देखा वे सिर्फ निचे की तरफ देख रहे हे. एक क्षण जेसे सालो में बदल चूका था. में इसी रह में था की वो मुझे देखे, सालो बाद में उनकी आँखों में वो ममता करुणा सब देखू , पूरा ब्रम्हांड देखू पर वो पता नहीं कुछ अकड़ सा गया में , लोकिक भाषा में कहू तो ये सब आधी सेकंड में ही हो रहा था. और अचानक उन्होंने नज़ारे उठाई और सीधे तक दिया मेरे नज़रो में

और मेरी रूह कांप गयी जब मेने देखा उनकी आँखों में, वहां पे विषाद था, वहां पे चिंता थी , वहां पे एक दर्द था, बस एक क्षण , और में समजा की क्यों वो नहीं मिलने देते अपने सन्याशी शिष्यों को, और मेने समजा , उन गृहस्थ शिष्यों को भी , उनकी स्वार्थ परस्ता को, उनकी मक्कारी को, उनकी जूठी और खोकली शिष्यता को , और ये सब बस सिर्फ एक क्षण के लिए उतर आया उनकी आँखों में.

एक क्षण भी न रुक पाया में वहा पे, थोडा आगे बढ़ा और ओज़ल हो गया में उस दुनिया से, गुरुदेव ने सब कुछ ही तो कह दिया एक क्षण में , और में भी क्या कहता उनसे. उतना ही काफी था. अगर सायद ज्यादा क्षण रुकता तो में वहीँ तड़प के प्राण त्याग देता. कुछ क्षण or पहोच गया में वही जगह जहा पे अमृत मंडल के शिष्य मेरी राह देख रहे थे, प्रसाद दिया उनको.
सीधे ही उन्होंने पूछा , भाई केसे हे हमारे प्रभु,
मेने कहा ठीक हे . ज्यादा बोल सकू एसी स्थिति ही कहा थी.
और एक पानी की बूंद निकल गयी आंखसे और गिर गयी निचे स्वामी आशितोश के पैर के पास .
क्या हुआ भाई, सब ठीक तो हे
अब और में क्या करता, कब तक दबे रखता अपने दर्द को ...और चींख के साथ निकल गया वो दर्द मेरे आँखों से...भीगा हुआ सा मेरा चेहरा सब कुछ कह गया जो में न कह सका.

स्वामी भ्रमण आनंद , स्वामी शिस्यानन्द, स्वामी प्रेक्षानन्द ..आदि १५ लोगो ने तो देह त्याग पहले ही कर दिया था, ये कहके की गुरुदेव गृहस्थी में जा रहे हे तो हम भी उनके साथ ही जाएँगे. और उन्होंने शारीर का त्याग कर गृहस्थी में जन्म ले लिए, पर इसके बाद गुरुदेव ने मन कर दिया की कोई भी अब देहत्याग कर गृहस्थी में जन्म न ले. अब इस अमृत मंडल के २५ साधक ने रात को ही सदगुरुदेव से अश्रु भरे नैनों से निवेदन किया की वो अब उनका दर्द नहीं देख सकते , गुरुदेव ने भी सभी की भावनाओ को दिल में स्थान दिया और उनको कहा की वो क्या कहते थे

सब ने कहा की गुरुदेव हम देहत्याग करके गृहस्थी में जन्म लेंगे और आपके कार्य को आगे बढ़ाएंगे.

और गुरुदेव ने कृपा करके वो निवेदन स्वीकार कर ही लिया था. सबको अलग अलग निश्चित अवधि दी गयी जिसके बाद ही वो देहत्याग कर सकते हे.
और एक एक करके सब ने देहत्याग किया . में सब से आखरी था . में देख रहा था उस सूर्य को की जो पश्चिम की और भागे जा रहा हे. और में देखते ही रह गया क्यूंकि...कल एक नया सूर्योदय होने वाला हे.......
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और सुबह होने से पहले ही उस अमृत मंडल के आखरी सभ्य ने भी अपने प्राण को शरीर से अलग कर दिया. वो जिसने १२ कृत्ये सिद्ध कर रखी थी, वो जो साधू समाज में मशहूर था अपने अन्नपूर्णा साधना से , जिसकी पहचान थी उसका पागलपन , अल्हड़पन , जिसके गुस्से के आगे कोई गति नहीं, वो जिसे भगवन का भी डर नहीं था.......वही सहम गया था, डर गया था सिर्फ वो एक क्षण में जो उसने गुरुदेव की आँखों में देखा था ......आज वो कहाँ हे किस हाल में कुछ कहा नहीं जा सकता मगर अमृत मंडल के वो सदस्य और वो योगी उस एक क्षण कभी भी नहीं भुला पाए होंगे

जय गुरुदेव

Saturday, November 19, 2011

Master philosophy meditation गुरु दर्शन साधना

गुरु दर्शन साधना ---
गुरु शब्द ही का उचार्ण ही हिरदे में प्रेम भर जाता है और उसी क्षण अपने प्रिये गुरुदेव का चेहरा आँखों में या जाता है और अपने आप आंसु धरा प्रवाहित होने लग जाती है !क्यों के एक गुरु ही है जो शिष्य के अपने होते है बाकि सभी रिश्ते तो जही के जही रह जाते है !जहाँ गुरु है वहाँ सभी है !इस संसार रुपी भव से एक गुरु जी ही होते है जो पार लगा देते है !सिर्फ गुरु शब्द का उचार्ण भी अगर प्रेम भव से किया जाये तो भी सिधियो के दुयार खोल देता है !इस लिए गुरु दर्शन हर शिष्य के दिल की कामना ही नहीं लक्ष्य भी होता है ! दिल में प्रेम भरिये और अपना ले अपने सद्गुरु जी को आगे बढ़ कर उतर ले उनका प्रेम अपने हिरदे में और बसा ले उनकी सुरत अपनी आँखों में और उनकी यादे अपने ख्यालो में जही तो है उनके साक्षात् दर्शन करने की विधि !मैं जहा एक साधना दे रहा हू जो सद्गुरु के दर्शन और अशिर्बाद दिलाने में सहयक होती है !आप दिल से करे और विशुद प्रेम से उनको रिझा ले !
विधि --इसे किसी भी गुरुवार शुरू करना है !५ दिन की साधना है !
२ वस्त्र-- धोती पितान्म्बर पहन कर पीले आसन पे पूर्व विमुख बैठे और दैनिक साधना विधि से एक वेजोट पे पीला वस्त्र विशा के गुरु पूजन करे !
३ शुद्ध घी का दीप लगा दे और सुंगधित अगर वती भी लगा दे !
४ प्रसाद के लिए हलवा बना कर रख ले इन पाँच दिनों में हर दिन अलग अलग भोग लगाये !पहले दिन लडू जो शुद्ध घी के ले दुसरे दिन खीर तीसरे दिन पाँच पीस बर्फी के और ४थे दिन पांचो किस्म के मेवे और पंचमे दिन हलवा ले !पूजन पांचो दिन पूर्ण प्रेम भाव से करे !फिर पाँच माला गुरु मंत्र फिर एक माला निम्न साबर मंत्र का जाप और फिर पाँच माला गुरु मंत्र जाप करे !इस परकार पांचो दिन कर्म करने से गुरु जी का साक्षात् दर्शन ,स्वपन दर्शन होता है जा स्वपन में उनसे बात हो जाती है !
साबर मंत्र --- ॐ तारन गुरु बिन नहीं कोई श्रीति स्मृति मध् बात परोई !
थान अद्वैत तभी जाये पसरे मन बच कर्म गुरु पग दर्शे !
दरिदर रोग मिटे सभ तन का गुरु करुना कर होवे मुक्ता!
धन्य गुरु मुक्ति के दाते ॐ !!
जय गुरुदेव !

Monday, September 19, 2011

Success in Sadhna

Success in Sadhna

The base of the Life is the Success…Our main in life is to cover all the problems & the hurdles of our life and to get Happiness & the Prosperity…This topic is very much important as well as Spiritualistic….In our life – cycle each of us had tried any type of the meditation or other means of devotion viz. (Tantra, Mantra) in order to gain either the desires or to cover our Bad Luck….But, does each of them were successful????? Do any of us get success (which is known as SIDDHI) in fulfilling the different aspects of the Sabar, Islamic, Jain, Saumya, Tivra, Lakshmi, and Aghor Mantra’s as per our capabilities? Whenever we asks our inner soul for the success of such devotions the answer is NO….because till time no one has reached the level of such devotion…Isn’t it??? Perhaps we have not followed the basics for the same…
But, don’t give up…Once again you recall all your basics and try to implement them…The Sadgurudev has opened all the practices in front of us…but no one has gave attention towards them…I have not only accepted those basics but have got success too from them in each and every type of devotion and You too can enjoy the taste of Success….
First of all…you need to conduct the process of Confession…For this, note down all the mistakes, Misunderstandings & the sins you have done and place the paper under the “Guru Yantra” and conduct 3 rounds of (1 round – 108 times of Mala) “Sarv Dosh Nivarak Mantra” for 11 days on regular basis…With this, you need to conduct 16 rounds of Guru Mantra mandatory…
Place 1 Siddhi Phal on the Black Sesame Seeds bunch and in front of that conduct 3 rounds of “VAM” Mantra…This process removes our Materialistic & Devotional Lacks…After the devotional process, drain all the things along with this Siddhi Phal in the river…
Demotivation is the biggest rival of a Devotee, hence to get rid over from the Demotivation is the first step to get success...
The exposure of your devotional work during your devotion period or after that can reduce the chances of your success and that’s why you need to explain all your experience in front of Gurudev and gaining the Sadhna Mantra from the divine voice of the Gurudev will lead you both the success as well as the accurate and correct version of the same…
The Guru Kavach keeps you safe from the problems & the hurdles which can come across during the Devotion period…
For success in the devotions – use Tantra Safalya Mantra…
For getting success in the Tantra – Before and after the Basic (Mool) Mantra conductance, make transparent the 5 Safalya Mudra by enchanting the “Mool Mantra”…
Before and after every devotion, The Guru Mala should be conducted and the process (Poojan, Viniyog & Dhyaan) which we conduct before Devotion should be conducted before and after the Mool Mantra Jaap on mandatory basis…
By conducting the Mool Mantra and the Agninyaas – foundation of the Mantra should be done in all the 24 centres of the body…After this, need to start the Prayashchit Nyaas and the process which helps in covering the mistakes held in “Mantra Sadhna”…Following the process of Deepni Kriya we should conduct the process through which the particular Mantra will give the favourable result to us…All the 3 processes can be conducted only through the Mool Mantra…After this only enchanting of the Mool Mantra can be conducted in a specific numbers…
To request with the Sadgurudev for the success in the devotion and the Sarv Sadhna Safalya Diksha is one of the most amazing solution for getting success. Here all the point of views which I have discussed are the hidden keys which are not approachable in an easy manner but this is our Good Luck that Yug Purodha Sadgurudev had given all these learnings in a very easy way…
All you need to just accept the processes in the devotion and the Success will run behind you…..



Saadhna me safalta

Dear all,
Jai Gurudev,

Jeevan ka aadhaar hi safalta hai , Bhautik jeevan me aane wali baadhon ko samapt kar jeevan me sukh aur aanand ki prapti hi to hamara dhyeya hai. .ye vishay behad jaruri bhi hai aur aatmik bhi. ham sabhi ne kabhi na kabhi apne jeevan me kuchh pane ke liye ya durbhagya ko samapt karne ke liye Saadhna-yog (Tantra ,Mantra ) ka avashya prayog kiya hoga .par kya sabhi ko safalta mil payee????? kya alag alag mat jaise ki sabar, islamik, jain,saumya,tivra,lakshmi,aghor mantron ko apni apni samarthyata ke anusaar karte huye ham us safalta ke phal jise ki Siddhi Kahte hain ........ ham prapt kar paye!!!!!!!!!!!! apne dil par jab ham haath rakhte hain to uttar yahi aata hai ki ..nahi us star tak nahi pahuch paye... hai na!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! !!!!!! SHayad aapne in sootron ko kabhi apnaya nahi hai.....
par koi baat nahi nirasha ko alag rakh kar ek baar in sootron ko bhi apna kar dekhiye.Sadgurudev ne to sabhi vidhaan hamare saamne khol kar rakh diya hai ,par hamne hi kabhi dhyan nahi diya hai. maine inhe apnaya hai aur safalta paayee hai.sabhi prakar ki sadhnaon me... aur aap bhi is swad ko chakh sakte hain .
1.sabse pahle prayashchit ki kriya karni chahiye. iske liye ek kagaj par apni bhoolon ko,galtiyon ko, apradh ko likh kar Guruyantra ke neeche rakh dijiye aur Sarv dosh nivarak mantra ka jap 11 din tak nitya 3 mala karen.is dauran 16 mala guru mantra bhi hona avashayak hai.
2. Ek Siddhi phal ko kale tilon ki dheri par sthapit kar us ke saamne "Vam" mantra ki 3 mala karen ye hamare sadhnatmak aur bhaoutik doshon ko samapt karta hi hai sadhna ke baad is phal ko bhi anya samagri ke sath visharjit kar den.

3.Nirasha saadhak ki sabse badi dushman hai. atah nirasha bhav ko tyagna hi safalta ki pahli seedhi hoti hai..

4. Sadhna kaal me aur uske baad bhi apni KI ja rahi saadhna ka prachar karna aapki safata prapti ki kaamna ko khatm kar sakti hai,is liye apne anubhav Guru ke charnon me hi nivedit karna chahiye aur Saadhna Mantra Guru mukh se lene se aapko uska uchcharan aur safalta ka vardaan dono hi prapt hote hain.

5. Guru kavach Sadhna kaal me aane wale vighnon ko aapse door rakhta hai aur aapdaon se kavchit bhi kar deta hai.

6.sadhnaon me safalta ke liye Tantra safalya mantra ka prayog karen.

7.Tantra me safalta ke liye Mool mantra jap ke pahle aur baad me 5 safalya mudraon ko mool mantra bolte huye pradarshit karna chahiye.

8.Sadhna ke pahle aur baad me Guru mantra ki mala honi hi chahiye tatha jo poojan ham sadhna ke pahle karte hain us poojan,viniyog,dhyan ko mool mantrajap ke pahle aur baad me jarur hi karna chahiye.

9.Mool mantra ke dwara, Angibhoot nyas kar Sharir ke 24 kendron me mantra ka sthapan kar lena chahiye ,iske baad Prayashchit nyas kar mantra sadhna me hone wali galtiyon ke prabhav ko door karne ki prakriya karna chahiye. iske baad Deepni kriya kar us mantra ko apne liye prabhav kari banana chahiye.ye teeno hi kriyaen mool mantra ke dwara hi hoti hain. iske baad hi mool mantra ka nirdisht sankhya me jap karna chahiye.
10.Sadgurudev se sadhna me safalta ka nivedan karna aur Sarv-Sadhna safalya diksha ek adviytiya upaay hai safalta prapti ke liye. yaha maine jo bhi vivechan diya hai ye gupt kunjiya hi hain jo sahaj prapt nahi hoti par hamara saubhagya hai ki Yug-Purodha Sadgurudev ne hame sahaj hi diya hua hai.
Aap in kriyaon ko apni sadhna me apna kar to dekhiye ,safalta daudti huyee chali aayegi aapki aur.....
Aapka hi


आइये अब एक एक point को विस्तार से देखते हैं। निम्न जानकारी मेरे ज्ञान (जो की बहुत कम है) के अनुसार है, वरिष्ठ भाइयों से अनुरोध है की किसी भी प्रकार की गलती दिखने पर क्षमा करें और तत्काल मार्गदर्शन करें।

1. अपने सारे ज्ञात अज्ञात पाप, दोष, गलतियाँ, एक कागज पर लिख कर गुरु यंत्र के नीचे रख दें, गुरुदेव से प्रार्थना करें की उनके चरणों मे आप अपने जीवन के सारे पाप और दोष समर्पित कर रहे हैं और हमारे प्राणाधार इन सभी भूलों को क्षमा कर हमे दोषमुक्त कर साधना मे सफलता प्रदान करें। सर्व दोष निवारक मंत्र का जप 3 माला प्रति दिन के हिसाब से 11 दिन तक करना है, इसके साथ 16 माला गुरुमंत्र भी प्रतिदिन होना आवश्यक है। सर्व दोष निवारक मंत्र इस प्रकार है....

ॐ तत्सवितुर्वरेणियम सर्व दोष पापान निवृत्तय धियों योनः प्रचोदयात


2. किसी भी साधना से पूर्व सिद्धि फल को काले तिल की ढेरी पर स्थापित करके " वम् " मंत्र की 3 मालाएँ करें। फिर मूल साधना करें। और साधना समाप्ती पर सिद्धि फल को भी अन्य सामग्री के साथ विसर्जित कर दें। सिद्धि फल आसानी से प्राप्त हो जाता है। इस छोटे से फल के विषय मे क्या कहें, इसका तो नाम ही है "सिद्धि" फल

3. जैसा की आदरणीय भाई ने लिखा है, निराशा को त्यागना ही सफलता की पहली सीढ़ी है। सफलता या असफलता का चिंतन छोड़ के मात्र साधानमय बने रहना ही आपको सफलता की ओर ले जाएगा। एक बार सफलता न मिले तो बार बार प्रयास करें, अपनी साधना, मंत्र और विधि पे पूर्ण विश्वास रखें।

4. साधना काल मे या उसके बाद भी अपनी की जा रही साधना की चर्चा करना उचित नहीं है। परवीन जी का एक शेर है की....
राह मे ही मंज़िलों का जिक्र मत छेड़ो परवीन
मंज़िलों ने सुन लिया तो और दूर हो जाएंगी

साधना मंत्र यदि गुरुमुख से प्राप्त हो तो सफलता का वरदान तो अपने आप प्राप्त हो जाता है, साथ ही साथ उसके उतार चढ़ाव (rythm) और लय का भी ज्ञान हो जाता है। आपने CDs मे देखा होगा सदगुरुदेव सदेव साधना मंत्र स्वयं 3 बार बोल कर देते थे। अब यदि ये किसी प्रकार संभव ना हो पाये तो गुरुदेव के प्राण प्रतिष्ठित चित्र के सामने मूल मंत्र को किसी कागज पर लिख के रख लें, सदगुरुदेव से प्रार्थना करें की वो आपको मंत्र एवं साधना मे सफलता प्रदान करें और फिर उस कागज को उठाकर उसी प्रकार मंत्र पढें जैसे की स्वयं सदगुरुदेव आपको ये मंत्र दे रहे हैं।

5. गुरु कवच का पाठ तो अति आवश्यक है किसी भी प्रकार की साधना मे। इस विषय मे विस्तार से एक article तंत्र कौमुदी के तीसरे अंक "गुह्य एवं अज्ञात तंत्र महाविशेषांक" मे दिया गया है। साधना से पूर्व और हो सके तो साधना के बाद भी इसका मात्र एक बार पाठ करने से सारी विपदाएँ दूर हो जाती हैं।

6. तंत्र साधना मे सफलता के लिए तंत्र साफल्य मंत्र का प्रयोग करें, यह मंत्र आपको "तंत्र रहस्य" नामक CD मे स्वयं सदगुरुदेव की ओजस्वी वाणी मे मिल जाएगा।

7. तंत्र साधना मे सफलता के लिए साधना से पूर्व और साधना के बाद मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए 5 साफल्य मुद्राएँ प्रदर्शित करनी चाहिए। एक एक मुद्रा को आप 10 सेकंड से लेकर 2 मिनट तक भी प्रदर्शित करें तो पर्याप्त हैं, जैसी आपकी अनुकूलता हो। ये 5 साफल्य मुद्राएँ हैं.... दंड, मत्स्य, शंख, अभय और हृदय। इन पांचों मुद्राओं के प्रदर्शन का विवरण भी उपरोक्त बताई गयी CD से ही मिल जाएगा। हमारे तीनों प्रिय भाई दिन रात की मेहनत से इस प्रयास मे हैं की जल्दी ही इस प्रकार की मुद्राओं एवं अन्य विधियों के photos/videos जल्द से जल्द website पर लगाए जाएँ जिससे की सभी गुरु भाई बहन लाभ ले सकें। मुद्राओं का भला क्या महत्व है ये समझाने के लिए अलग से एक विस्तारपूर्ण post ब्लॉग पे पोस्ट की गयी थी, जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं।

8. साधना से पूर्व और बाद मे गुरुमंत्र की एक माला होना ही चाहिए, जो पूजन, विनियोग एवं ध्यान साधना से पहले किया जाता है वह मूल मंत्र के जाप के बाद भी करना चाहिए।

9. न्यास का महत्व क्या है इस विषय मे एक blog post अलग से दी गयी है, यहाँ कुछ विशिष्ट प्रकार के न्यास का जिक्र किया गया है जो की सर्वथा गोपनीय ही रखा गया है। पत्रिका के पुराने अंक मे से मुझे ये प्रक्रिया मिली थी जो की आपके समक्ष जरा विस्तार से समझाने का प्रयास कर रहा हूँ।

अंगीभूत न्यास :

साधना मे केवल मंत्र जप से ही काम नहीं चलता, उसके लिए "अंगीभूत न्यास" आवश्यक है, यह गोपनीय रहस्य है, और गुरु भी आसानी से इन रहस्यों को शिष्य के सामने व्यक्त नहीं करते। प्रत्येक साधना मे मूल मंत्र होता है, और उस मूल मंत्र के माध्यम से अपने शरीर मे जिस भी देवी देवता की साधना की जाती है, उसके स्वरूप को समाहित किया जाता है, पूरे शरीर मे 24 केंद्र बिन्दु हैं, इनमे प्रत्येक केंद्र बिन्दु को स्पष्ट करते हुए मूल मंत्र का उच्चारण करने से वह साधनात्मक इष्ट साधक के शरीर मे समाहित होता है, और निश्चय ही सफलता प्रदान करता है, ये 24 केंद्र बिन्दु हैं ....

2 चरण, 2 पैर, 2 घुटने, 2 जंघाएँ, 1 नाभी, 1 उदर, 1 हृदयस्थल, 2 वक्ष, 2 भुजाएँ, 1 ग्रीवा, 1 मुख, 2 नासिका पुट, 2 नेत्र, 2 कर्ण, 1 सिर

याद रखें की यह विलोम रुपेन क्रम है अर्थात नीचे से ऊपर की तरफ जाना है, मूल मंत्र का जाप करते हुए अपने हाथों की उँगलियों से शरीर मे ऊपर बताए गए 24 केन्द्रों को छूएँ। एक चरण को छू कर एक बार मंत्र पढ़ें, फिर दूसरे चरण को छू कर दूसरी बार मंत्र पढ़ें इस प्रकार शरीर के 24 केन्द्रों मे संबन्धित देवी/देवता को शरीर मे समाहित करें।

प्रायश्चित न्यास :

जैसा की नाम ही है, यह प्रायश्चित की क्रिया है, यह न्यास भी एक अति आवश्यक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस न्यास द्वारा साधना संबंधी सारे दोषों एवं गलतियों का शमन होता है। इसके लिए मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर को बीज मानते हुए, एक एक अक्षर का 108 बार उच्चारण करना चाहिए, यह क्रिया साधना काल मे पहले दिन ही कर लेनी चाहिए। इससे प्रायश्चित न्यास सम्पन्न हो जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा दोषों का शमन हो जाने से आगे के साधना के दिवसों मे जाप करते समय अशुद्धि या त्रुटि हो भी जाए तो न्यूनता नहीं रह पाती है।

अब यहाँ एक और बड़ा सवाल ये उत्पन्न होता है की मंत्र मे अक्षर कैसे गिने जाएँ, तो भाइयो और बहेनों इस विषय मे मेरी अभी कुछ सोध बाकी है। जितना मैं समझ पाया हूँ उतना यहाँ लिख देता हूँ, बाकी विस्तार मे इस विषय को किसी अन्य पोस्ट मे वरिष्ठ भाइयों के निर्देशन मे चर्चा करेंगे।

मंत्र : ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः

यहाँ ॐ एक अक्षर हो गया, प एक और अक्षर हो गया, फिर र, म, त, त्वा, य, ना, रा, य, णा, य, इसी प्रकार आगे के अक्षरों का भी प्रत्येक अक्षर के हिसाब से 108 बार जप होना आवश्यक है। यहाँ कुछ विशेष बात ये है की किसी भी प्रकार के बीज मंत्रों को एक ही अक्षर माना जाता है जैसे ह्रीं श्रीं आदि, एक उदाहरण लेते हैं....

मंत्र : ॐ ह्रीं मम प्राण देह रॉम प्रति रॉम .....

यहाँ ॐ, ह्रीं, म, म, प्रा, ण, दे, ह, रो, म, प्र, ति, रो, म इसी प्रकार आगे बढ़ते जाना है।

कोई भी अक्षर यदि आधा हो तो वह आधा अक्षर जिस पूरे अक्षर से जुड़ा हुआ है उसके साथ जोड़ के पढ़ा जाता है। जैसे "प्र"
अक्षर मे लगी मात्रा को भी अक्षर के साथ जोड़ कर एक ही अक्षर माना जाता है, जैसे रा, गु, रू आदि।
अक्षर यदि आधा हो और जिस पूरे अक्षर से जुड़ा हुआ हो उसमे मात्रा भी लगी हो तो भी उसे एक ही अक्षर मान कर चलना चाहिए, जैसे त्वा, भ्यो आदि।

दीपनी क्रिया :

उपरोक्त दोनों क्रियाओं की भांति यह दीपनी क्रिया भी एक अति आवश्यक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इससे शरीर मे दीपन हो जाता है, प्रकाश फैल जाता है, और प्राण अग्नि चैतन्य हो जाती है। फलस्वरूप उस चैतन्य प्राण अग्नि मे समस्त दोष और न्यूनताएँ जल कर राख़ हो जाती हैं, साथ ही साथ मंत्र खुद दीपित हो जाता है। मंत्र उत्कीलन एक पृथक और जटिल विषय है, उसका विधान भी आसानी से नहीं मिलता, उस जटिल प्रक्रिया की जगह यदि ये सरल सी प्रक्रिया कर ली जाये तो भी काफी अनुकूलता हो जाती है।

दीपनी क्रिया मे मूल मंत्र को माला के एक ही मनके पे सीधा और उल्टा अर्थात लोम विलोम गति से पढ़ते हुए एक माला मंत्र जप करना चाहिए। जैसे की...

ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः नमः गुरुभ्यो नारायणाय परमतत्वाय ॐ

इस प्रकार माला के एक ही मनके पे उपरोक्त (सीधा उल्टा) मंत्र पढ़ के अगले मनके पर जाएँ।

पत्रिका मे छपे "24 दिनो का चमत्कार" नामक लेख मे आगे सदगुरुदेव कहते हैं की "ये तीनों प्रक्रियाएँ किसी भी प्रकार की साधना मे आवश्यक होती हैं। यदि संभव हो तो इन तीनों प्रक्रियाओं को साधना काल मे प्रतिदिन करना चाहिए पर यदि ये संभव न हो तो कम से कम 1, 11 और 21वें दिन तो करना ही चाहिए। किसी भी प्रकार की साधना को मात्र 24 दिनो मे सिद्ध किया जा सकता है।"

इन तीनों विधानों को किसी भी प्रकार की साधना चाहे वह मंत्र/तंत्र साधना हो या साबर साधना आप कर सकते हैं, साबर मंत्र कीलित नहीं होते, और सामान्य भाषा मे होने के कारण अक्सर बड़े बड़े मंत्र होते हैं इसलिए इन क्रियाओं को करने मे लंबा समय लग सकता है इस बात का ध्यान रखें। ये तीनों क्रियाएँ मूल साधना से पूर्व ही करना है।

जैसा की आरिफ़ भाई ने लिखा है की यह सब के सब गोपनीय सूत्र हैं और सहज ही प्राप्त नहीं होते आप भी इन सूत्रों को अपना कर देखें, सफलता दौड़ती हुई चली आएगी।

इतना बड़ा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद, मेरा यकीन मानिये इस लेख को इससे छोटा नहीं किया जा सकता था वरना हर एक प्रक्रिया पे बहोत से सवाल उत्पन्न हो जाते।

जय सदगुरुदेव

Friday, September 9, 2011

Guru Diksha is the spiritual path open for the seeker

गुरु दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का मार्ग साधना के क्षेत्र में खुल जाता है। साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में अलग ही महत्त्व है। लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सदगुरू से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते है।

महाकाली महाविद्या दीक्षा
यह तीव्र प्रतिस्पर्धा का युग है। आप चाहे या न चाहे विघटनकारी तत्व आपके जीवन की शांति, सौहार्द भंग करते ही रहते हैं। एक दृष्ट प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की अपेक्षा एक सरल और शांत प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए अपमान, तिरस्कार के द्वार खुले ही रहते हैं। आज ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जिसका कोई शत्रु न हो ... और शत्रु का तात्पर्य मानव जीवन की शत्रुता से ही नहीं, वरन रोग, शोक, व्याधि, पीडा भी मनुष्य के शत्रु ही कहे जाते हैं, जिनसे व्यक्ति हर क्षण त्रस्त रहता है ... और उनसे छुटकारा पाने के लिए टोने टोटके आदि के चक्कर में फंसकर अपने समय और धन दोनों का ही व्यय करता है, परन्तु फिर भी शत्रुओं से छुटकारा नहीं मिल पाता।

महाकाली दीक्षा के माध्यम से व्यक्ति शत्रुओं को निस्तेज एवं परास्त करने में सक्षम हो जाता है, चाहे वह शत्रु आभ्यांतरिक हों या बाहरी, इस दीक्षा के द्वारा उन पर विजय प्राप्त कर लेता है, क्योंकि महाकाली ही मात्र वे शक्ति स्वरूपा हैं, जो शत्रुओं का संहार कर अपने भक्तों को रक्षा कवच प्रदान करती हैं। जीवन में शत्रु बाधा एवं कलह से पूर्ण मुक्ति तथा निर्भीक होकर विजय प्राप्त करने के लिए यह दीक्षा अद्वितीय है। देवी काली के दर्शन भी इस दीक्षा के बाद ही सम्भव होते है, गुरु द्वारा यह दीक्षा प्राप्त होने के बाद ही कालिदास में ज्ञान का स्रोत फूटा था, जिससे उन्होंने 'मेघदूत' , 'ऋतुसंहार' जैसे अतुलनीय काव्यों की रचना की, इस दीक्षा से व्यक्ति की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।

तारा दीक्षा
तारा के सिद्ध साधक के बारे में प्रचिलित है, वह जब प्रातः काल उठाता है, तो उसे सिरहाने नित्य दो तोला स्वर्ण प्राप्त होता है। भगवती तारा नित्य अपने साधक को स्वार्णाभूषणों का उपहार देती हैं। तारा महाविद्या दस महाविद्याओं में एक श्रेष्ठ महाविद्या हैं। तारा दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को जहां आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैं, वहीं उसके अन्दर ज्ञान के बीज का भी प्रस्फुटन होने लगता है, जिसके फलस्वरूप उसके सामने भूत भविष्य के अनेकों रहस्य यदा-कदा प्रकट होने लगते हैं। तारा दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का सिद्धाश्रम प्राप्ति का लक्ष्य भी प्रशस्त होता हैं।

षोडशी त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा
त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा प्राप्त होने से आद्याशक्ति त्रिपुरा शक्ति शरीर की तीन प्रमुख नाडियां इडा, सुषुम्ना और पिंगला जो मन बुद्धि और चित्त को नियंत्रित करती हैं, वह शक्ति जाग्रत होती है। भू भुवः स्वः यह तीनों इसी महाशक्ति से अद्भुत हुए हैं, इसीसलिए इसे त्रिपुर सुन्दरी कहा जाता है। इस दीक्षा के माध्यम से जीवन में चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही साथ आध्यात्मिक जीवन में भी सम्पूर्णता प्राप्त होती है, कोई भी साधना हो, चाहे अप्सरा साधना हो, देवी साधना हो, शैव साधना हो, वैष्णव साधना हो, यदि उसमें सफलता नहीं मिल रहीं हो, तो उसको पूर्णता के साथ सिद्ध कराने में यह महाविद्या समर्थ है, यदि इस दीक्षा को पहले प्राप्त कर लिया जाए तो साधना में शीघ्र सफलता मिलती है। गृहस्थ सुख, अनुकूल विवाह एवं पौरूष प्राप्ति हेतु इस दीक्षा का विशेष महत्त्व है। मनोवांछित कार्य सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा उपयुक्त है। इस दीक्षा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।

भुवनेश्वरी दीक्षा
भूवन अर्थात इस संसार की स्वामिनी भुवनेश्वरी, जो 'ह्रीं' बीज मंत्र धारिणी हैं, वे भुवनेश्वरी ब्रह्मा की भी आधिष्ठात्री देवी हैं। महाविद्याओं में प्रमुख भुवनेश्वरी ज्ञान और शक्ति दोनों की समन्वित देवी मानी जाती हैं। जो भुवनेश्वरी सिद्धि प्राप्त करता है, उस साधक का आज्ञा चक्र जाग्रत होकर ज्ञान-शक्ति, चेतना-शक्ति, स्मरण-शक्ति अत्यन्त विकसित हो जाती है। भुवनेश्वरी को जगतधात्री अर्थात जगत-सुख प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। दरिद्रता नाश, कुबेर सिद्धि, रतिप्रीती प्राप्ति के लिए भुवनेश्वरी साधना उत्तम मानी है है। इस महाविद्या की आराधना एवं दीक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की वाणी में सरस्वती का वास होता है। इस महाविद्या की दीक्षा प्राप्त कर भुवनेश्वरी साधना संपन्न करने से साधक को चतुर्वर्ग लाभ प्राप्त होता ही है। यह दीक्षा प्राप्त कर यदि भुवनेश्वरी साधना संपन्न करें तो निश्चित ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।

छिन्नमस्ता महाविद्या दीक्षा
भगवती छिन्नमस्ता के कटे सर को देखकर यद्यपि मन में भय का संचार अवश्य होता है, परन्तु यह अत्यन्त उच्चकोटि की महाविद्या दीक्षा है। यदि शत्रु हावी हो, बने हुए कार्य बिगड़ जाते हों, या किसी प्रकार का आपके ऊपर कोई तंत्र प्रयोग हो, तो यह दीक्षा अत्यन्त प्रभावी है। इस दीक्षा द्वारा कारोबार में सुदृढ़ता प्राप्त होती है, आर्थिक अभाव समाप्त हो जाते हैं, साथ ही व्यक्ति के शरीर का कायाकल्प भी होना प्रारम्भ हो जाता है। इस साधना द्वारा उच्चकोटि की साधनाओं का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, तथा उसे मौसम अथवा सर्दी का भी विशेष प्रभाव नहीं पङता है।

त्रिपुर भैरवी दीक्षा
भूत-प्रेत एवं इतर योनियों द्वारा बाधा आने पर जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। ग्रामीण अंचलों में तथा पिछडे क्षेत्रों के साथ ही सभ्य समाज में भी इस प्रकार के कई हादसे सामने आते है, जब की पूरा का पूरा घर ही इन बाधाओं के कारण बर्बादी के कगार पर आकर खडा हो गया हो। त्रिपुर भैरवी दीक्षा से जहां प्रेत बाधा से मुक्ति प्राप्त होती है, वही शारीरिक दुर्बलता भी समाप्त होती है, व्यक्ति का स्वास्थ्य निखारने लगता है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक में आत्म शक्ति त्वरित रूप से जाग्रत होने लगती है, और बड़ी से बड़ी परिस्थियोंतियों में भी साधक आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है, असाध्य और दुष्कर से दुष्कर कार्यों को भी पूर्ण कर लेता है। दीक्षा प्राप्त होने पर साधक किसी भी स्थान पर निश्चिंत, निर्भय आ जा सकता है, ये इतर योनियां स्वयं ही ऐसे साधकों से भय रखती है।

धूमावती दीक्षा
धूमावती दीक्षा प्राप्त होने से साधक का शरीर मजबूत व् सुदृढ़ हो जाता है। आए दिन और नित्य प्रति ही यदि कोई रोग लगा रहता हो, या शारीरिक अस्वस्थता निरंतर बनी ही रहती हो, तो वह भी दूर होने लग जाती है। उसकी आखों में प्रबल तेज व्याप्त हो जाता है, जिससे शत्रु अपने आप में ही भयभीत रहते हैं। इस दीक्षा के प्रभाव से यदि कीसी प्रकार की तंत्र बाधा या प्रेत बाधा आदि हो, तो वह भी क्षीण हो जाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद मन में अदभुद साहस का संचार हो जाता है, और फिर किसी भी स्थिति में व्यक्ति भयभीत नहीं होता है। तंत्र की कई उच्चाटन क्रियाओं का रहस्य इस दीक्षा के बाद ही साधक के समक्ष खुलता है।

बगलामुखी दीक्षा
यह दीक्षा अत्यन्त तेजस्वी, प्रभावकारी है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक निडर एवं निर्भीक हो जाता है। प्रबल से प्रबल शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई दीक्षा नहीं है। इसके प्रभाव से रूका धन पुनः प्राप्त हो जाता है। भगवती वल्गा अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैं, जो साधक को आजीवन हर खतरे से बचाता रहता है।

मातंगी दीक्षा
आज के इस मशीनी युग में जीवन यंत्रवत, ठूंठ और नीरस बनकर रह गया है। जीवन में सरसता, आनंद, भोग-विलास, प्रेम, सुयोग्य पति-पत्नी प्राप्ति के लिए मातंगी दीक्षा अत्यन्त उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा साधक में वाक् सिद्धि के गुण भी जाते हैं। उसमे आशीर्वाद व् श्राप देने की शक्ति आ जाती है। उसकी वाणी में माधुर्य और सम्मोहन व्याप्त हो जाता है और जब वह बोलता है, तो सुनने वाले उसकी बातों से मुग्ध हो जाते है। इससे शारीरिक सौन्दर्य एवं कान्ति में वृद्धि होती है, रूप यौवन में निखार आता है। इस दीक्षा के माध्यम से ह्रदय में जिस आनन्द रस का संचार होता है, उसके फलतः हजार कठिनाई और तनाव रहते हुए भी व्यक्ति प्रसन्न एवं आनन्द से ओत-प्रोत बना रहता है।

कमला दीक्षा
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार प्रकार के पुरुषार्थों को प्राप्त करना ही सांसारिक प्राप्ति का ध्येय होता है और इसमे से भी लोग अर्थ को अत्यधिक महत्त्व प्रदान करते हैं। इसका कारण यह है की भगवती कमला अर्थ की आधिष्ठात्री देवी है। उनकी आकर्षण शक्ति में जो मात्रु शक्ति का गुण विद्यमान है, उस सहज स्वाभाविक प्रेम के पाश से वे अपने पुत्रों को बांध ही लेती हैं। जो भौतिक सुख के इच्छुक होते हैं, उनके लिए कमला सर्वश्रेष्ठ साधना है। यह दीक्षा सर्व शक्ति प्रदायक है, क्योंकि कीर्ति, मति, द्युति, पुष्टि, बल, मेधा, श्रद्धा, आरोग्य, विजय आदि दैवीय शक्तियां कमला महाविद्या के अभिन्न देवियाँ हैं।

प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है, साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक दीक्षा के महत्त्व का एक प्रतिशत भी वर्णन स्थानाभाव के कारण यहां नहीं हुआ है, वस्तुतः मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है, और एक-एक करके सभी साधनों में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।

यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि दीक्षा कोई जादू नहीं है, कोई मदारी का खेल नहीं है, कि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया।

दीक्षा तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुस्नास्कारों का क्षय होता है, अज्ञान, पाप और दारिद्र्य का नाश होता है, ज्ञान शक्ति व् सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व् प्रसन्नता आ पाती है। दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है ... और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती है, उसके बाद ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अन्दर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है।

जब कोई श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरु को भी प्रसनता होती है, कि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते है, जिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ महाविद्या दीक्षाएं प्राप्त होती हैं, ऐसे साधकों से तो देवता भी इर्ष्या करते हैं।

- नवम्बर ९८ , मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान


Guru Diksha is the spiritual path open for the seeker