Saturday, July 12, 2014

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी About Swami Nikhileshwaranand ji

आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाए | हम सभी आपस मे प्रेम करे ज्ञान चर्चा करे और निखिल संदेश को जन जन तक पहुंचाए |


धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय। 
साह सुमुंद्र की मसि करूं, गुरू गुण लिखा न जाय़।।

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी About Swami Nikhileshwaranand ji

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी एक ऐसे उदात्ततम व्यक्तित्व हें, जिनके चिन्तन मात्र से ही दिव्यता का बोध होने लगता हैं। प्रलयकाल में समस्त जगत को अपने भीतर समाहित किए हुए महात्मा हिरण्यगर्भ की तरह शांत और सौम्य हैं। व्यवहारिक क्षेत्र में स्वच्छ धौत वस्त्र में सुसज्जित ये जितने सीधे-सादे से दिखाई देते हैं, इससे हट कर कुछ और भी हैं, जो सर्वसाधारण गम्य नहीं हैं। साधनाओं के उच्चतम सोपान पर स्थित विश्व के जाने-मने सम्मानित व्यक्तित्व हैं। इनका साधनात्मक क्षेत्र इतना विशालतम है, कि इसे सह्ब्दों के माध्यम से आंका नहीं जा सकता। किसी भी
प्रदर्शन से दूर हिमालय की तरह अडिग, सागर की तरह गंभीर, पुष्पों की तरह सुकोमल और आकाश की तरह निर्मल हैं।

इनके संपर्क में आया हुआ व्यक्ति एक बार तो इन्हें देखकर अचम्भे में पड़ जाता हैं, कि ये तो महर्षि जह्रु की तरह अपने अन्तस में ज्ञान गंगा के असीम प्रवाह को समेटे हुए हैं।

पूज्य गुरुदेव ऋषिकालीन भारतीय ज्ञान परम्परा की अद्वितीय कड़ी हैं। जो ज्ञान मध्यकाल में अनेक-प्रतिघात के कारण अविच्छिन्न हो, निष्प्राण हो गया था, जिस दिव्य ज्ञान की छाया तले समस्त जाति ने सुख, शान्ति एवं आनंद का अनुभव किया था, जिसे ज्ञान से संबल पाकर सभी गौरवान्वित हुए थे। तथा समस्त विसंगतियों को परास्त करने में सक्षम हुए थे, जिस ज्ञान को हमारे ऋषियों ने अपनी तपः ऊर्जा से सबल एवं परिपुष्ट करके जन कल्याण के हितार्थ स्वर्णिम स्वप्न देखे थे... पूज्यपाद सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी ने समाज की प्रत्येक विषमताओं से जूझते हुए, अपने को तिल-तिल जलाकर उसी ज्ञान परम्परा को पुनः जाग्रत किया है, समस्त मानव जाति को एक सूत्र में पिरोकर उन्होनें पुनः उस ज्ञान प्रवाह को साधनाओं के माध्यम से आप्लावित किया है। मानव कल्याण के लिए अपनी आंखों में अथाह करुणा लिए उन्होनें मंत्र और तंत्र के माध्यम से, ज्योतिष, कर्मकाण्डएवं यज्ञों के माध्यम से, शिविरों तथा साधनाओं के माध्यम से उन्होनें इस ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाया हैं।

ऐसे महामानव, के लिए कुछ कहने और लिखने से पूर्व बहुत कुछ सोचना पङता है। जीवन के प्रत्येक आयाम को स्पर्श करके सभी उद्वागों से रहित, जो राम की तरह मर्यादित, कृष्ण की तरह सतत चैतन्य, सप्तर्षियों की तरह सतत भावगम्य अनंत तपः ऊर्जा से संवलित ऐसे सदगुरू जी का ही संन्यासी स्वरुप स्वामी योगिराज परमहंस निखिलेश्वरानंद जी हैं। निखिल स्तवन के एक-एक श्लोक उनके इसी सन्यासी स्वरुप का वर्णन हैं।

बाहरी शरीर से भले ही वे गृहस्थ दिखाई दें, बाहरी शरीर से वे सुख और दुःख का अनुभव करते हुए, हंसते हुए, उसास होते हुए, पारिवारिक जीवन व्यतीत करते हुए या शिष्यों के साथ जीवन का क्रियाकलाप संपन्न करते हों, परन्तु यह तो उनका बाहरी शरीर है। उनका आभ्यंतरिक शरीर तो अपने-आप में चैतन्य, सजग, सप्राण, पूर्ण योगेश्वर का है, जिनको एक-एक पल का ज्ञान है और उस दृष्टि से वे हजारों वर्षों की आयु प्राप्त योगीश्वर हैं, जिनका यदा-कदा ही जन्म पृथ्वी पर हुआ करता है।

एक ही जीवन में उन्होनें प्रत्येक युग को देखा है, त्रेता को, द्वापर को, और इससे भी पहले वैदिक काल को। उनको वैदिक ऋचाएं कंठस्थ हैं, त्रेता के प्रत्येक क्षण के वे साक्षी रहे हैं।

लगभग १५०० वर्षों का मैं साक्षीभूत शिष्य हूँ, और मैंने इन १५०० वर्षों में उन्हें चिर यौवन, चिर नूतन एक सन्यासी रूम में देखा है। बाहरी रूप में उन्होनें कई चोले बदले, कई स्थानों में जन्म लिया, पर यह मेरा विषय नहीं था, मेरा विषय तो यह था, कि मैं उनके आभ्यन्तरिक जीवन से साक्षीभूत रहूं, एक संन्यासी जीवन के संसर्ग में रहूं और वह संन्यासी जीवन अपन-आप उच्च, उदात्त, दिव्य और अद्वितीय रहा हैं।

उन्होनें जो साधनाएं संपन्न की हैं, वे अपने-आप में अद्वितीय हैं, हजारों-हजारों योगी भी उनके सामने नतमस्तक रहते हैं, क्योंकि वे योगी उनके आभ्यन्तरिक जीवन से परिचित हैं, वे समझते हैं कि यह व्यक्तित्व अपने-आप में अद्वितीय हैं, अनूठा हैं, इनके पास साधनात्मक ज्ञान का विशाल भण्डार हैं, इतना विशाल भण्डार, कि वे योगी कई सौ वर्षों तक उनके संपर्क और साहचर्य में रहकर भी वह ज्ञान पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सके। प्रत्येक वेद, पुराण , स्मृति उन्हें स्मरण हैं, और जब वे बोलते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे स्वयं ब्रह्मा अपने मुख से वेद उच्चारित कर रहे हों, क्योंकि मैंने उनके ब्रह्म स्वरुप को भी देखा हैं, रुद्र स्वरुप को भी देखा है, और रौद्र स्वरुप का भी साक्षी रहां हू।

आज भी सिद्धाश्रम का प्रत्येक योगी इस बात को अनुभव करता है, की 'निखिलेश्वरानंद' जी नहीं है, तो सिद्धाश्रम भी नहीं है, क्योंकि निखिलेश्वरानंद जी उस सिद्धाश्रम के कण-कण में व्याप्त है। वे किसी को दुलारते हैं, किसी को झिड करते हैं, किसी को प्यार करते हैं, तो केवल इसलिए की वे कुछ सीख लें, केवल इसलिए की वे कुछ समझ ले, केवल इसलिए कि वह
जीवन में पूर्णता प्राप्त कर ले, और योगीजन उनके पास बैठ कर के अत्यन्त शीतलता का अनुभव करते हैं। ऐसा लगता है, कि एक साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास बैठे हों, एक साथ हिमालय के आगोश में बैठे हों, एक साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को समेटे हुए जो व्यक्तित्व हैं, उनके पास बैठे हों। वास्तव में 'योगीश्वर निखिलेश्वरानन्द' इस समस्त ब्रह्माण्ड की अद्वितीय
विभूति हैं।

राम के समय राम को पहिचाना नहीं गया, उस समय का समाज राम की कद्र, उनका मूल्यांकन नहीं कर पाया, वे जंगल-जंगल भटकते रहे। कृष्ण के साथ भी ऐसा हुआ, उनको पीड़ित करने की कोई कसार बाकी नहीं राखी और एक क्षण ऐसा भी आया, जब उनको मथुरा छोड़ कर द्वारिका में शरण लेनी पडी और उस समय के समाज ने भी उनकी कद्र नहीं की। बुद्ध के समय में जीतनी वेदना बुद्ध ने झेली, समाज ने उनकी परवाह नहीं की। महावीर के कानों में कील ठोक दी गईं, उन्हें भूकों मरने के लिए विवश कर दिया गया, समाज ने उनके महत्त्व को आँका नहीं।

यदि सही अर्थों में 'सदगुरुदेव जी' को समझना है, तो उनके निखिलेश्वरानन्द स्वरुप समझना पडेगा। इन चर्म चक्षुओं से उन्हें नहीं पहिचान सकते, उसके लिए, तो आत्म-चक्षु या दिव्या चक्षु की आवश्यकता हैं।

मैंने ही नहीं हजारों संन्यासियों ने उनके विराट स्वरुप को देखा है। कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जिस प्रकार अपना विराट स्वरुप दिखाया, उससे भी उच्च और अद्वितीय ब्रह्माण्ड स्वरुप मैंने उनका देखा है, और एहेसास किया है कि
वे वास्तव में चौसष्ट कला पूर्ण एक अद्वितीय युग-पुरूष हैं, जो किसी विशेष उद्देश्य को लेकर पृथ्वी गृह पर आए हैं। मैं अकेला ही साक्षी नहीं हूं, मेरे जैसे हजारों संन्यासी इस बात के साक्षी हैं, कि उन्हें अभूतपूर्व सिद्धियां प्राप्त हैं। भले ही वे अपने -आप को छिपाते हों, भले ही वे सिद्धियों का प्रदर्शन नहीं करते हों, मगर उनके अन्दर जो शक्तियां और सिद्धियां निहित हैं, वे अपने-आप में अन्यतम और अद्वितीय हैं।

एक जगह उन्होनें अपनी डायरी में लिखा हैं --

"मैं तो एक सामान्य मनुष्य की तरह आचरण करता रहा, लोगों ने मुझे भगवान् कहा, संन्यासी कहा, महात्मा कहा, योगीश्वर कहा, मगर मैं तो अपने आपको एक सामान्य मानव ही समझता हूँ। मैं उसी रूप में गतिशील हूं, लोग कहें तो मैं उनका मुहबन्द नहीं सकता, क्योंकि जो जीतनी गहराई में है, वह उसी रूप में मुझे पहिचान करके अपनी धारणा बनाता हैं। जो मुझे उपरी तलछट में देखता है, वह मुझे सामान्य मनुष्य के रूप में देखता हैं, और जो मेरे आभ्यंतरिक जीवन को देखता है, वह मुझे 'योगीश्वर' कहता है, 'संन्यासी' कहता है। यह उनकी धारणा है, यह उनकी दृष्टि है, यह उनकी दूरदर्शिता है। जो मेरी आलोचना करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, और जो मेरा सम्मान करते हैं, मेरी प्रशंसा करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, और जो मेरा सम्मान करते हैं, मेरी प्रशंसा करते हैं, उनको भी मैं कुछ नहीं कहता, क्योंकि मैं सुख-दुःख, मान-अपमान इन सबसे सर्वथा परे हूं।

मैंने कोई दावा नहीं किया, कि मैं दस हजार वर्षों की आयु प्राप्त योगी हूं, और न ही मैं ऐसा दावा करता हूं, कि मैंने भगवे वस्त्र धारण कर संन्यासी रूप में विचरण किया, हिमालय गया, सिद्धियां प्राप्त कीं, या मैं कोई चमत्कारिक व्यक्तित्व या मैं कोई अद्वितीय कार्य संपन्न किया है। मैं तो एक सामान्य मनुष्य हूं और सामान्य मनुष्य की तरह ही जीवन व्यतीत करना चाहता हूं।" डायरी के ये अंश उनकी विनम्रता है, यह उनकी सरलता है, परन्तु जो पहिचानने की क्षमता रखते हैं - उनसे यह छिपा नहीं है, के वे ही वह अद्वितीय पुरूष हैं, तो कई हजार वर्षों बाद पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।
------योगी विश्वेश्रवानंद copy right MTYV

Saturday, July 5, 2014

Aab To Jag Guru Purnima Mahotsava Camp


अब तो जाग 

जीवन मैं सफलता सद्गुरु के सिवा कोई नहीं दे सकता है|चाहे भोतिक जीवन हो या अधय्त्मिक जीवन हो , मानव आदिकाल से ही सद्गुरु के असरे ही सब कुच्छ पता रहा है| आज हम जिस जीवन के आनंद को पाने के लिए सब कुच्छ कर रहे है, पर आनंद दूर दूर तक नजर नहीं आती है. झूठे सपने बन के रह गया है ?मानव को समझ ही नहीं आ रहा है भोतिकता की चकाचोध ने उसे अंधकार मैं ले कर खड़ा कर रहा है , उसे कुच्छ सूझ ही नहीं कर वो के करना चाहता है , उस की मंजिल कहा है, वो गुम हो गया है, भोतिकता की साडी चीज़े होते हूया भी , परेशान है , दुबिधा मैं जी रहा है, क्या करे क्या न करे, 

उस के पास पूरा परिवार भी है , समाज है , जीने के लिए सरे साजो सामान है 
किसी के पास नहीं भी है, पर उस का चिंतन हमेशा आनंद को पाने की लालशा बनी होई होती है, 

समय समय पर सिद्धास्रम के ऋषि यहाँ आते रहे है मानव को नया चिंतन देते रहे वेदों, (Upanishad )उपनिषद् के ज्ञान को सरलता से समझने की कोसिस किया और साधना का ज्ञान दिया, जिस मानव के जीवन मैं समस्त इच्छा पूर्ति के बाद उसे वो ज्ञान चिंतन मिल सके जिस के लिए उसे मानव जीवन मिला उसे सार्थक बना सके , और एस जीवन के कर्म बन्धन (माया) से दूर हो कर गुरुमय हो सके |

एस लिए गुरु के मिलने का एक उत्सव बनाया गया जो शिष्य के लिए परम ज्ञान को पाने के लिए गुरु से एकाकार हो सके उस उत्सव का नाम गुरु पूणिमा का नाम दिया गया, वेसे गुरु से कभी भी एकाकार हो सकते है, पर ये दिवश मैं जो विशेषता है उसे शब्दों मैं नहीं बताया जा सकता है,वो तो आप जाब गुरु से मिल के उन के सानिध्य मैं आपने आप को पुण्य विसर्जित करते होए आपने आंसुओ से उन के चरणों मैं समर्पित करते हूया सब कुच्छ दे देना ही गुरु पूणिमा का उत्सव बन जाता है, गुरु पूणिमा गुरु के लिए नहीं होता ! अपितु शिष्य के लिए होता है, एस लिए शिष्य एस महोत्सव की साल भर प्रतीक्षा करता है,
आब वो दिन आ रहा है आप जाग जाये और उस महोत्सव मैं सामिल होने के लिए सद्गुरु से मिलने के लिए छुटी के लिए आभी आवेदन कर ले और भारत से कोने कोने से शिष्य जाग जाये, और सद्गुरु से मिलने जाये 

"राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूँ तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥"
11-12 July,Haridwar.अब की बार-हरिद्वार Click Here:http://youtu.be/1XVq4RcD8xU
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं।यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।व्यास जयन्ती ही गुरुपूर्णिमा है। गुरु को गोविंद से भी ऊंचा कहा गया है। 
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

ये बहुत ही सोभाग्य होगा उन शिष्यों के लिए जो गुरु के प्रति समर्पित है

जो प्रेम मैं फ़ना होना जानते है, जो मिटना जानते है सही मायने मैं गुरुमय बन सकेगे |

आप का सिद्धास्रम साधक परिवार गुरु पूणिमा पर आप का इन्तजार करेगा आप ११,१२ जुलाई को त्रिमूर्ति गुरु से मिल कर आपनी समस्या को सुलझते हूए गुरुमय ,प्रेममय बन कर आनंद की प्राप्ति कर सके ऐसा ही सद्गुरु देव से निवेदन है

सिद्धास्रम साधक परिवार जोधपुर

Dikshas Granted by Pujya Gurudev

11-12 July 2014
SADHNA DATE CAMP (SHIVIR)
LOCATION & CONTACT

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Nikhil Mantra Vigyan

Guru Purnima Mahotsava Camp Shree Prem Nagar Ashram, Jwalapur Road, Haridwar, Uttarakhand

11-12 July 2014, Haridwar (UK)
Organisers
Ashok Khurana : 094160-84960

Gopal Ji : 098961-87061

Suresh Bhardwaj : 094160-31474

Ashok Sharma : 098888-39585

Avinash : 088728-10008

Rajneesh Sharma : 097799-74542

Dr.M.K. Tiwari : 098916-04043

Indra Pal Singh : 098183-83931
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Narayan Mantra Sadhana Vigyan

10-11-12 July 2014 Guru Purnima Sadhana Camp Ramadheen Singh Utsav Bhawan, Babu Ganj, Near I.T. Chowk, Lucknow, Uttar Pradesh

10-11-12 July 2014, Lucknow (UP)
Organisers
Ajay Kumar Singh : 9415116998

D.K. Singh : 9532040013

Pradeep Shukla : 94152-66543

Satish Tandon : 9336150802

Harish Chandra Pandey : 94544-12737

Jayant Mishra : 9125980014

Santosh Naik : 9125238618

T.N.Pandey : 9415342272

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KAILASH SIDDHASHRAM -
PRACHEEN MANTRA YANTRA VIGYAN

परमपूज्य सदगुरुदेव निखिल के आशीर्वाद से पूज्य कैलाश गुरूजी के दिव्य सानिध्य में "अहं ब्रम्हास्मि शक्ति गुरु पूर्णिमा महोत्सव" इनडोर स्टेडियम ,बूढ़ा तालाब , रायपुर ,छत्तीसगढ़ में सम्पन्न होगा ।

शिष्य पूर्णिमा के महापर्व पर स्वयं को अहं ब्रम्हास्मि शक्ति से युक्त करने हेतु इन्द्राक्षी धन वैभव लक्ष्मी दीक्षा , प्रत्यंगिरा उर्वशी आकर्षण दीक्षा , सर्व पीड़ा हरण संहार दीक्षा प्राप्त कर अपने आप को प्रेम ,हर्ष ,आनंद और हर्षयुक्त बनाने हेतु क्रियाए सम्पन्न होगी ।

सदगुरूदेव के निर्देशानुसार गुरुपूर्णिमा 12 जुलाई के दिन आप सभी प्रात: उठ जाए और स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर ब्रम्ह मुहूर्त में सदगुरुदेव का पूजन ,ध्यान-चिंतन करे । शिष्य पूर्णिमा के महापर्व पर स्वयं को अहं ब्रम्हास्मि शक्ति से युक्त करने हेतु अपने समस्त पाप दोषो के शमन हेतु प्रात:5:26 से 7:42 के बीच गुरुत्व ध्यान स्थिति में बैठ जाए सदगुरुदेव द्वारा आप सभी को ब्रम्ह वर्चस्व स्वरूप शिष्याभिषेक दीक्षा प्रदान की जाएगी | यदि किसी कारणवश आप शिविर में नहीं आ पा रहे है तब भी आप अपने घर के पूजा स्थान में यह क्रिया सम्पन्न करें । आप स्वयं महसूस करेंगे की सदगुरुदेव की ऊर्जा ,चेतना आप में व्याप्त हो रही है ,आपके जीवन में धीरे-धीरे अनुकूलता आ रही है ।

न्यौछावर -1100/-

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें -
0291-2517025, 07568939648, 08769442398

Kailash Siddhashram, Delhi (91) 11-27351006

GIVE ME FAITH AND DEVOTION, AND I WILL GIVE YOU FULFILMENT & COMPLETENESS 

- ParamPujya Pratahsamaraniya Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji