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Friday, March 2, 2018

dhumavati mahavidha sadhana Proyog

 माँ भगवती धूमावती जयन्ती निकट ही है।  इस बार माँ भगवती धूमावती जयन्ती आ रही है। आप सभी को माँ भगवती धूमावती जयन्ती  की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

           दस महाविद्याओं में धूमावती महाविद्या साधना अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस साधना के बारे में दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैंप्रथम तो यह दुर्गा की विशेष कलह निवारिणी शक्ति हैदूसरी यह कि यह पार्वती का विशाल एवं रक्ष स्वरूप हैजो क्षुधा से विकलित कृष्ण वर्णीय रूप हैजो अपने भक्तों को अभय देने वाली तथा उनके शत्रुओं के लिए साक्षात काल स्वरूप है।

           साधना के क्षेत्र में दस महाविद्याओं के अन्तर्गत धूमावती का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। जहाँ धूमावती साधना सम्पन्न होती हैवहाँ इसके प्रभाव से शत्रु-नाश एवं बाधा-निवारण भी होता है। धूमावती साधना मूल रूप से तान्त्रिक साधना है। इस साधना के सिद्ध होने पर भूत-प्रेतपिशाच व अन्य तन्त्र-बाधा का साधक व उसके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैअपितु उसकी प्रबल से प्रबल बाधाओं का भी निराकरण होने लग जाता है।

           धूमावती का स्वरूप क्षुधा अर्थात भूख से पीड़ित स्वरूप है और इन्हें अपने भक्षण के लिए कुछ न कुछ अवश्य चाहिए। जब कोई साधक भगवती धूमावती की साधना सम्पन्न करता है तो देवी प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण कर लेती है और साधक को अभय प्रदान करती हैं।

           दस महाविद्याओं में धूमावती एक प्रमुख महाविद्या हैजिसे सिद्ध करना साधक का सौभाग्य माना जाता है। जो लोग साहसपूर्वक जीवन को निष्कण्टक रूप से प्रगति की ओर ले जाना चाहते हैंउन्हें भगवती धूमावती साधना सम्पन्न करनी ही चाहिए। भगवती धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक को निम्न लाभ स्वतः मिलने लगते हैं -----

१. धूमावती सिद्ध होने पर साधक का शरीर मजबूत व सुदृढ़ हो जाता है। उस पर गर्मीसर्दी,भूखप्यास और किसी प्रकार की बीमारी का तीव्र प्रभाव नहीं पड़ता है।
२. धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक की आँखों में साक्षात् अग्निदेव उपस्थित रहते हैं और वह तीक्ष्ण दृष्टि से जिस शत्रु को देखकर मन ही मन धूमावती मन्त्र का उच्चारण करता हैवह शत्रु तत्क्षण अवनति की ओर अग्रसर हो जाता है।
३. इस साधना के सिद्ध होने पर साधक की आँखों में प्रबल सम्मोहन व आकर्षण शक्ति आ जाती है।
४. इस साधना के सिद्ध होने पर भगवती धूमावती साधक की रक्षा करती रहती है और यदि वह भीषण परिस्थितियों में या शत्रुओं के बीच अकेला पड़ जाता है तो भी उसका बाल भी बाँका नहीं होता है। शत्रु स्वयं ही प्रभावहीन एवं निस्तेज हो जाते हैं।

           इस साधना के माध्यम से आपके जितने भी शत्रु हैंउनका मान-मर्दन कर जो भी आप पर तन्त्र प्रहार करता हैउस पर वापिस प्रहार कर उसी की भाषा में जबाब दिया जा सकता है। जिस प्रकार तारा समृद्धि और बुद्धि कीत्रिपुर सुन्दरी पराक्रम और सौभाग्य की सूचक मानी जाती हैठीक उसी प्रकार धूमावती शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार कर नेस्तनाबूँद करने वाली देवी मानी जाती है। यह अपने आराधक को बड़ी तीव्र शक्ति और बल प्रदान करने वाली देवी हैजो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपों में साधक की सहायता करती  है। सांसारिक सुख अनायास ऐसे ही प्राप्त नहीं हो जातेउनके लिए साधनात्मक बल की आवश्यता होती हैजिससे शत्रुओं से बचा रहकर बराबर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहा जा सके। मगर आज के समय में आपके आसपास रहने वाले और आपके नजदीकी लोग ही कुचक्र रचते रहते हैं और आप सोचते रहते हैं कि आपने किसी का कुछ भी बिगाड़ा नहीं है तो मेरा कोई क्यों बुरा सोचेगाकाश!ऐसा ही होता!

           मगर सांसारिक बेरहम दुनिया में कोई किसी को चैन  से रहते हुए नहीं देख सकता और आपकी पीठ पीछे कुचक्र चलते ही रहते हैं। इनसे बचाव का एक ही सही तरीका हैधूमावती साधना। इसके बिना आप एक कदम नहीं चल सकतेसमाज में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते है कि अचानक से किसी परिवार में परेशानियाँ शुरू हो जाती है और व्यक्ति जब ज्यादा परेशान होता है तो किसी डॉक्टर को दिखाता हैमगर महीनों इलाज कराने के बावज़ूद भी बीमारी ठीक नहीं होतीतब कोई दूसरी युक्ति सोचकर किसी अन्य जानकार को दिखाता है और मालूम पड़ता है कि किसी ने कुछ करा दिया था या टोना-टोटका जैसा कुछ मामला था और जब इलाज करायातब वह ५-७ दिन में बिलकुल ठीक हो गया। ऐसे में जो पढ़े-लिखे व्यक्ति होते हैंउन्हें भी इस पर विश्वास हो जाता है कि वास्तव में इस समाज में रहना कितना मुश्किल काम है।

           धूमावती दारूण विद्या है। सृष्टि में जितने भी दुःखदारिद्रयचिन्ताएँबाधाएँ  हैं,इनके शमन हेतु धूमावती से ज्यादा श्रेष्ठ उपाय कोई और नहीं है। जो व्यक्ति इस महाशक्ति की आराधना-उपासना करता हैउस पर महादेवी प्रसन्न होकर उसके सारे शत्रुओं का भक्षण तो करती ही हैसाथ ही उसके जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होने देती। क्योंकि इस साधना से माँ भगवती धूमावती लक्ष्मी-प्राप्ति में आ रही बाधाओं का भी भक्षण कर लेती है। अतः लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु भी इस शक्ति की पूजा करते रहना चाहिए।

साधना विधान :----------
         
           इस साधना को धूमावती जयन्तीकिसी भी माह की अष्टमीअमावस्या अथवा रविवार के दिन से आरम्भ किया जा सकता है। इस साधना को किसी खाली स्थान परश्मशान,जंगलगुफा या किसी भी एकान्त स्थान या कमरे में करनी चाहिए।

           यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात में ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। नहाकर लालवस्त्र धारण कर गुरु पीताम्बर ओढ़कर लाल ऊनी आसन पर बैठकर पश्चिम दिशा की ओर मुँहकर साधना करनी चाहिए।

           साधक अपने सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछा लें। इस साधना में माँ भगवती धूमावती का चित्रधूमावती यन्त्र और काली हकीक माला की विशेष उपयोगिता बताई गई है,परन्तु यदि सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताम्र पात्र में "धूं" बीज का अंकन काजल से करके उसके ऊपर एक सुपारी स्थापित कर दें और उसे ही माँ धूमावती मानकर उसका पूजन करना चाहिए। जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग किया जा सकता है।

           सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से धूमावती साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं"मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और "ॐ अघोर रुद्राय भैरवाय नमो नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान अघोर रुद्र भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

           साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि  मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री धूमावती साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।

           इसके बाद  साधक माँ भगवती धूमावती का सामान्य पूजन करे। काजलअक्षत,भस्मकाली मिर्च आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।
 
           हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग पढ़कर भूमि पर जल छोड़ें -----

विनियोग :-----

           ॐ अस्य धूमावतीमन्त्रस्य पिप्पलाद ऋषिःनिवृच्छन्दःज्येष्ठा देवता,धूम्  बीजंस्वाहा शक्तिःधूमावती कीलकं ममाभीष्टं सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास :-----

ॐ पिप्पलाद ऋषये नमः शिरसि।       (सिर स्पर्श करे)
ॐ निवृच्छन्दसे नमः मुखे।             (मुख  स्पर्श  करे)
ॐ ज्येष्ठा देवतायै नमः हृदि।          (हृदय  स्पर्श  करे)
ॐ धूम्  बीजाय नमः गुह्ये।           (गुह्य  स्थान स्पर्श  करे)
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः।        (पैरों   को   स्पर्श  करे)
ॐ धूमावती कीलकाय नमः नाभौ।      (नाभि स्पर्श करे)
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे।           (सभी अंगों का स्पर्श करे)

कर न्यास  :-----
 
ॐ धूं धूं अंगुष्ठाभ्याम नमः।      (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ धूम् तर्जनीभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ मां मध्यमाभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ वं अनामिकाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ तीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।       (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।  (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादि न्यास :-----

ॐ धूं धूं हृदयाय नमः।       (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ धूं शिरसे स्वाहा।          (सिर को स्पर्श करें)
ॐ मां शिखायै वषट्।         (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ वं कवचाय हुम्।          (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ तीं नेत्रत्रयाय वौषट्।       (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्।       (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

           इसके बाद साधक हाथ जोड़कर निम्न श्लोकों का उच्चारण करते हुए माँ भगवती धूमावती का ध्यान करें ---

ध्यान :------

ॐ विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा।
विमुक्त कुन्तला रूक्षा विधवा विरलद्विजा।।
काकध्वज रथारूढ़ा विलम्बित पयोधरा।
शूर्पहस्ताति रक्ताक्षीघृतहस्ता वरान्विता।।
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा।।

          इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक भगवती धूमावती के मूलमन्त्र का ५१ माला जाप करें ---

मन्त्र :----------

          ।। ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।।

OM DHOOM DHOOM DHOOMAAVATI SWAAHAA.

         मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न श्लोक का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवती धूमावती को समर्पित कर दें।

ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
     सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।

         इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

         "मन्त्र महोदधि" ग्रन्थ के अनुसार इस मन्त्र का पुरश्चरण एक लाख मन्त्र जाप है। तद्दशांश हवन करना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं है तो १०,००० अतिरिक्त मन्त्र जाप कर लेना चाहिए।

         इस तरह से यह साधना पूर्ण होकर कुछ ही दिनों में अपना प्रभाव दिखाती है। यह दुर्भाग्य को मिटाकर सौभाग्य में बदलने की अचूक साधना है।  इस साधना के बारे में कहा गया है कि बन्दूक की गोली एक बार को खाली जा सकती हैमगर इस साधना का प्रभाव कभी खाली नहीं जाता।
 
         महाविद्याओं में धूमावती साधना सप्तम नम्बर पर आती है। यह शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति और दुखों से निवृत्ति दिलाने वाली देवी है। इस साधना के माध्यम से साधक में बुरी शक्तियों को पराजित करने की और विपरीत स्थितियों में अपने अनुकूल बना देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता हैउसके सामने सभी को हार माननी पड़ती  है। परन्तु जो समय पर हावी हो जाता हैवह उससे भी ज्यादा ताकतवर कहलाता है। परिपूर्ण होना केवल शक्ति साधना के द्वारा ही सम्भव है। इसके माध्यम से दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में परिवर्तित किया जा सकता है।
                        
         आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती धूमावती का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

मंत्र साधना करते समय सावधानियां mantra sadhana karte hoye kucch savdhaniya par dhyan de

साधना में गुरु की आवश्यकता
Y      मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y      साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y      गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y      रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y      रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y      गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y         स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y         गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y      मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखेंढिंढोरा ना पीटेंबेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y      गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y      आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y      बकवास और प्रलाप न करें.
Y      किसी पर गुस्सा न करें.
Y      यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y      ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y      किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें.
Y      जप और साधना का ढोल पीटते न रहें, इसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y      बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y      ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y      इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म लगातार गर्भपातसन्तान ना होना अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y      भूतप्रेतजिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
Y      गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशाआसनवस्त्र का महत्व
ü  साधना के लिए नदी तटशिवमंदिरदेविमंदिरएकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
ü  आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
ü  अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशाआसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
ü  इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
ü  जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
ü  यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
ü  नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
साधना पत्रिका  निखिल मंत्र विज्ञान 
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. साधना पत्रिका निखिल मंत्र विज्ञान में महाविद्या साधना भैरव साधनाकाली साधनाअघोर साधनाअप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी . इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा . देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .