Friday, April 6, 2018

need for a master in mantra siddhi मंत्र सिद्धि में गुरु की आवश्यकता क्यों होती है ?



मंत्र सिद्धि में गुरु की आवश्यकता क्यों होती है ?
मंत्र सिद्धि के लिए साधक को गुरु की नितान्त आवश्यकता होती है | इसलिए साधक अपने लिए सामर्थ्यवान गुरु की खोज करता है और चयन करता है | गुरु भी शिष्य की सुपात्रता से प्रभावित होने के उपरान्त ही अपना शिष्य स्वीकार करता है | जब गुरु साधक को अपना शिष्य बनाता है तभी वह शिष्य को दीक्षित करता है | मंत्र की सिद्धि और शक्ति की दीक्षा देता है | गुरु अपने शिष्य को मंत्र की दीक्षा शीघ्र भी दे सकता है और देर से भी | वह कब देगा यह नहीं कहा जा सकता है | वह शिष्य को यह समझकर कि यह दीक्षा देने योग्य हो गया है, इसे दीक्षा देना निरर्थक सिद्ध नहीं होगा, यह जानकर उसे उचित समय पर दीक्षा देता है | यह गुरु की इच्छा पर निर्भर करता है |
गुरु दीक्षा प्राप्त होने के बाद साधक को अपनी साधना का मार्ग सरल व सुगम लगने लग जाता है | उसके अतिरिक्त ज्ञान का विकास हो जाता है जिससे गुरु की शक्ति रूपी दीक्षा से साधक की शारीरिक व मानसिक अशुद्धियाँ स्वयमेव विलुप्त हो जाती है | क्योंकि दीक्षा एक प्रकार से शक्ति रूप व तेजपुंज होता है इसलिए गुरु की दीक्षा को हमारे भारतीय संस्कृति में एक अमूल्य व श्रेष्ठ शक्तिदान कहा गया है |
गुरु की महानता , श्रेष्ठता सर्वोपरि व निर्विवाद है | शास्त्र में बड़े -बड़े ऋषियों मुनियों द्वारा गुरु को ईश्वर तुल्य ही नहीं अपितु उससे भी महान कहा गया है | ऐसे ऐसे महान गुरुओं का इतिहास गौरवशाली व गरिमापूर्ण है जो वास्तव में ही साधक के लिए ईश्वर से भी बढ़कर सिद्ध हुए है और होते रहेंगे | भगवान राम और कृष्ण ने महर्षि विश्वामित्र , गुरु वशिष्ठ व संदीपन जैसे गुरुओं की शिष्यता ग्रहण कर गुरु की श्रेष्ठता को प्रमाणित किया है |
कबीर दास जी ने तो गुरु को महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि : –
गुरु गोबिंद दोउ खड़े , काको लागू पाँव |
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय ||
अर्थात कबीर दास जी गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते है कि मेरे समक्ष गुरु और गोविन्द अर्थात भगवान दोनों ही खड़े है | परन्तु समझ में नहीं आता कि पहले मै किसको प्रणाम करूँ | फिर गुरु की श्रेष्ठता बताते हुए स्वयं ही उत्तर देते है कि हे गुरुवर आप ही श्रेष्ठ व पूज्यनीय है क्योंकि आपने ही तो हमें ईश्वर प्राप्ति का मार्ग व ईश्वर का ज्ञान कराया है | अन्यथा मै तो ईश्वर के सम्बन्ध में बिल्कुल ही अनभिज्ञ था कोरा कागज था | इसलिए गुरु को ही पहले प्रणाम करना चाहिए फिर ईश्वर को |
कबीर दास जी कहते है की यदि ईश्वर रूठ जाये तो गुरु की शरण प्राप्त हो जाती है परन्तु यदि गुरु रूठ जाये तो कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती | इस प्रकार कबीर ने गुरु की श्रेष्ठता का वर्णन किया है |

right method of chanting chanting during mantra siddhi मंत्र सिद्धि के समय मंत्र जप की सही विधि | मंत्र साधना के नियम



मंत्र सिद्धि के समय मंत्र जप की सही विधि | मंत्र साधना के नियम
शास्त्रों के अनुसार मंत्र उच्चारण द्वारा देव आराधना शीघ्र फलदायी है | मंत्रों में साक्षात् देव का वास होता है | हिन्दू सभ्यता में प्राचीन काल से ही मंत्र द्वारा देव आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है | जीवन में आये घोर से घोर संकंट को भी मंत्र साधना द्वारा दूर किया जा सकता है | किन्तु इसके लिए जरूरी होता है की मंत्र जप कठोर संकल्प और द्रढ़ विश्वास के साथ किये जाये |
नियमित मंत्र जप से मनुष्य आत्मिक और भौतिक सुख को प्राप्त कर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है | असाध्य से असाध्य रोग के निवारण के लिए , धन-लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए , व्यवसाय में उन्नति के लिए , परिवार में सुख-शांति बनाये रखने के, शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए, इन सब के अतिरिक्त जीवन में आये किसी भी संकट के निवारण के लिए मंत्र जप द्वारा देव आराधना विशेष रूप से फलदायी है |
हमारे धर्म शास्त्रों में सभी देवी-देवताओं के मन्त्रों का अलग -अलग और विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है | हमारे वेद-शास्त्रों में वर्णित मन्त्रों को वैदिक मंत्र की संज्ञा भी दी गयी है | सभी वैदिक मंत्रो के स्पष्ट अर्थ होते है इसलिए यह जरुरी है कि किसी भी मंत्र का जप करते समय उसके स्पष्ट अर्थ को ध्यान में रखा जाये |
मंत्र जप की सही विधि : –
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप की विधि सबसे अधिक महत्व रखती है | मंत्र सिद्धि में मंत्र का जप करते समय कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए अन्यथा ये छोटी-छोटी त्रुटियाँ आपको आपके लक्ष्य से दूर कर सकती है | तो आइये जानते है किसी भी मन्त्र को सिद्ध करते समय मन्त्र जप की सही विधि के सम्बंधित कुछ नियम :-
बिना गुरु के मंत्र सिद्ध करना बहुत कठिन है | इसलिए, मंत्र सिद्ध करने से पहले गुरु धारण करना अनिवार्य है |
कठोर संकल्प लेकर, मन में द्रढ़ निश्चय के भाव के साथ और स्वयं को आत्मविश्वास से परिपूर्ण कर मंत्र साधना (सिद्धि) करें | आप जिस भी कार्य सिद्धि हेतु मंत्र साधना कर रहे है वह अवश्य ही पूर्ण होगा ऐसे भाव सैदव अपने मन में बनाये रखे |
मंत्र सिद्धि के समय मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिए | मंत्र का उच्चारण शुरू में धीमे स्वर में बोलकर, बाद में सिर्फ होठों को हिलाकर जिससे की मंत्र की आवाज आपके कानों तक ही पहुंचे | और कुछ दिन बाद मंत्र का उच्चारण सिर्फ मन ही मन में करना चाहिए | मुख से बिना बोले मन ही मन मंत्र का उच्चारण करना सबसे अधिक फल देने वाला माना गया है |
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप के लिए एक निश्चित समय का चुनाव कर प्रतिदिन उसी समय पर मंत्र का जप करें | सुबह सूर्योदय से पहले और संध्या काल का समय मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ है | किन्तु कुछ साधनाएँ ऐसी भी है जिनमें सिद्धियाँ पाने के लिए मंत्र जप रात्रि काल में किये जाते है |
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप के समय साधक का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए |(कुछ साधनायो में दक्षिण दिशा की और मुख करके साधना की जाती है )
प्रथम दिन ही मंत्र जप की संख्या निश्चित कर प्रतिदिन उतने ही मंत्र के जप करने चाहिए | कभी कम या कभी अधिक ऐसा कदापि न करें | आप चाहे तो मंत्र जप की संख्या बढ़ा सकते है किन्तु कम कभी न करें |
मंत्र जप करते समय माला को हमेशा छिपाकर रखे | इसके लिए आप माला को गोमुखी में रखकर मंत्र जप करें | | माला पूरी होने पर माला के सुमेरु को भूलकर भी पार नहीं करना चाहिए | वहीँ से ही माला को घुमा देना चाहिए |
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप के समय माला हाथ से छूटनी नहीं चाहिए |
मंत्र सिद्ध करने के काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें और वाणी में मधुरता लाये | इन दिनों में भूलकर भी अपशब्द का प्रयोग न करें |

Going from your constellation, about your illness अपने नक्षत्र से जाने अपनी बीमारी के बारे में

*अपने नक्षत्र से जाने अपनी बीमारी के बारे में ..*
*आप की कुंडली में नक्षत्र के अनुसार बीमारी*
*अश्विनी नक्षत्र :*जातक को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट।
*उपाय :*दान-पुण्य, दीन-दु:खियों की सेवा से लाभ होता है।
*भरणी नक्षत्र :*जातक को शीत के कारण कंपन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्यक्षमता का अभाव।
*उपाय :*गरीबों की सेवा करें, लाभ होगा।
*कृतिका नक्षत्र :*जातक आंखों संबंधित बीमारी, चक्कर आना, जलन, निद्रा भंग, गठिया घुटने का दर्द, हृदय रोग, घुस्सा आदि।
*उपाय :*मंत्र जप, हवन से लाभ।
*रोहिणी नक्षत्र :*ज्वर, सिर या बगल में दर्द, चित्त में अधीरता।
*उपाय :*काला व लाल धागा हाथ में बांधने से मन को शांति मिलती है।
*मृगशिरा नक्षत्र :*जातक को जुकाम, खांसी, नजला से कष्ट।
*उपाय :*पूर्णिमा का व्रत करें, लाभ होगा।
*आर्द्रा नक्षत्र :*जातक को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, आधासीसी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा।
*उपाय :*भगवान शिव की आराधना करें, सोमवार का व्रत करें, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधें, लाभ होगा।
*पुनर्वसु नक्षत्र :*जातक को सिर या कमर में दर्द से कष्ट।
*उपाय :*रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक के पौधे की जड़ अपनी भुजा पर बांधने से लाभ होगा।
*पुष्प नक्षत्र :*जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द व परेशानी होती है।
*उपाय :*कुशा की जड़ भुजा में बांधने तथा पुष्प नक्षत्र में दान-पुण्य करने से लाभ होता है।
*आश्लेषा नक्षत्र :*जातक की दुर्बल देह प्राय: रोगग्रस्त बनी रहती है। देह के सभी अंगों में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदूषण के कारण कष्ट।
*उपाय :*नागपंचमी का पूजन करें। बड़ की जड़ बांधने से लाभ होता है।
*मघा नक्षत्र :*जातक को आधासीसी या अर्द्धांग पीड़ा, भूत-पिशाच से बाधा।
*उपाय :*कुष्ठ रोगी की सेवा करें। गरीबों को मिष्ठान्न खिलाएं।
*पूर्व फाल्गुनी :*जातक को बुखार, खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट।
*उपाय :*पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। नवरात्रों में देवी मां की उपासना करें।
*उत्तराफाल्गुनी :*जातक को ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकड़न।
*उपाय :*पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। ब्राह्मण को भोजन कराएं।
*हस्त नक्षत्र :*जातक को पेटदर्द, पेट में अफारा, पसीने से दुर्गंध, बदन में वात पीड़ा आदि।
*उपाय :*आक या जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा।
*चित्रा नक्षत्र :*जातक जटिल या विषम रोगों से कष्ट पाता है। रोग का कारण बहुधा समझ पाना कठिन होता है। फोड़े-फुंसी, सूजन या चोट से कष्ट होता है।
*उपाय :*असगंध की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होता है। तिल, चावल व जौ से हवन करें।
*स्वाति नक्षत्र :*वात पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकड़न से कष्ट।
*उपाय :*गौ तथा ब्राह्मणों की सेवा करें, जावित्री की जड़ भुजा में बांधें।
*विशाखा नक्षत्र :*जातक को सर्वांग पीड़ा से दु:ख। कभी फोड़े होने से पीड़ा।
*उपाय :*बेरी की जड़ भुजा पर बांधना, सुगंधित वास्तु से हवन करना लाभदायक होता है।
*अनुराधा नक्षत्र :*जातक को ज्वर ताप, सिरदर्द, बदन दर्द, जलन, रोगों से कष्ट।
*उपाय :*चमेली, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।
*ज्येष्ठा नक्षत्र :*जातक को पित्त बढ़ने से कष्ट। देह में कंपन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी, काम में मन नहीं लगना।
*उपाय :*चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से लाभ। गरीबों को दूध से बनी मिठाई खिलाएं।
*मूल नक्षत्र :*जातक को सन्निपात ज्वर, हाथ-पैरों का ठंडा पड़ना, रक्तचाप मंद, पेट-गले में दर्द, अक्सर रोगग्रस्त रहना।
*उपाय :*कुएं के पानी से स्नान तथा दान-पुण्य से लाभ होगा।
*पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र :*जातक को देह में कंपन, सिरदर्द तथा सर्वांग में पीड़ा।
*उपाय :*सफेद चंदन का लेप, आवास कक्ष में सुगंधित पुष्प से सजाएं। कपास की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।
*उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :*जातक संधिवात, गठिया, वात, शूल या कटि पीड़ा से कष्ट, कभी असह्य वेदना।
*उपाय :*कपास की जड़ भुजा में बांधें, ब्राह्मणों को भोज कराएं, लाभ होगा।
*श्रवण नक्षत्र :*जातक अतिसार, दस्त, देह पीड़ा, ज्वर से कष्ट, दाद, खाज, खुजली जैसे चर्मरोग कुष्ठ, पित्त, मवाद बनना, संधिवात, क्षयरोग से पीड़ा।
*उपाय :*अपामार्ग की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है।
*धनिष्ठा नक्षत्र :*जातक मूत्र रोग, खूनी दस्त, पैर में चोट, सूखी खांसी, बलगम, अंग-भंग, सूजन, फोड़े या लंगड़ेपन से कष्ट।
*उपाय :*भगवान मारुति की आराधना करें। गुड़-चने का दान करें।
*शतभिषा नक्षत्र :*जातक जलमय, सन्निपात, ज्वर, वात पीड़ा, बुखार से कष्ट, अनिद्रा, छाती पर सूजन, हृदय की अनियमित धड़कन, पिंडली में दर्द से कष्ट।
*उपाय :*यज्ञ-हवन, दान-पुण्य तथा ब्राह्मणों को भोजन खिलाने से लाभ होगा।
*पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र :*जातक को उल्टी या वमन, देह पीड़ा, बैचेनी, हृदयरोग, टखने की सूजन, आंतों के रोग से कष्ट होता है।
*उपाय :*भृंगराज की जड़ भुजा में भुजा पर बांधें, तिल का दान करने से लाभ होता है।
*उत्तराभाद्रपद नक्षत्र :*जातक अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना से कष्ट हो सकता है।
*उपाय :*पीपल की जड़ भुजा पर बांधने तथा महिलाओं को भोजन खिलाने से लाभ होगा।
*रेवती नक्षत्र* :जातक को ज्वर, वात पीड़ा, मतिभ्रम, उदार विकार, मादक द्रव्य के सेवन से उत्पन्न रोग, किडनी के रोग, बहरापन या कान के रोग, पांव की अस्थि, मांसपेशी खिंचाव से कष्ट।
*उपाय* :पीपल की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा।

Friday, March 2, 2018

dhumavati mahavidha sadhana Proyog

 माँ भगवती धूमावती जयन्ती निकट ही है।  इस बार माँ भगवती धूमावती जयन्ती आ रही है। आप सभी को माँ भगवती धूमावती जयन्ती  की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

           दस महाविद्याओं में धूमावती महाविद्या साधना अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस साधना के बारे में दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैंप्रथम तो यह दुर्गा की विशेष कलह निवारिणी शक्ति हैदूसरी यह कि यह पार्वती का विशाल एवं रक्ष स्वरूप हैजो क्षुधा से विकलित कृष्ण वर्णीय रूप हैजो अपने भक्तों को अभय देने वाली तथा उनके शत्रुओं के लिए साक्षात काल स्वरूप है।

           साधना के क्षेत्र में दस महाविद्याओं के अन्तर्गत धूमावती का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। जहाँ धूमावती साधना सम्पन्न होती हैवहाँ इसके प्रभाव से शत्रु-नाश एवं बाधा-निवारण भी होता है। धूमावती साधना मूल रूप से तान्त्रिक साधना है। इस साधना के सिद्ध होने पर भूत-प्रेतपिशाच व अन्य तन्त्र-बाधा का साधक व उसके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैअपितु उसकी प्रबल से प्रबल बाधाओं का भी निराकरण होने लग जाता है।

           धूमावती का स्वरूप क्षुधा अर्थात भूख से पीड़ित स्वरूप है और इन्हें अपने भक्षण के लिए कुछ न कुछ अवश्य चाहिए। जब कोई साधक भगवती धूमावती की साधना सम्पन्न करता है तो देवी प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण कर लेती है और साधक को अभय प्रदान करती हैं।

           दस महाविद्याओं में धूमावती एक प्रमुख महाविद्या हैजिसे सिद्ध करना साधक का सौभाग्य माना जाता है। जो लोग साहसपूर्वक जीवन को निष्कण्टक रूप से प्रगति की ओर ले जाना चाहते हैंउन्हें भगवती धूमावती साधना सम्पन्न करनी ही चाहिए। भगवती धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक को निम्न लाभ स्वतः मिलने लगते हैं -----

१. धूमावती सिद्ध होने पर साधक का शरीर मजबूत व सुदृढ़ हो जाता है। उस पर गर्मीसर्दी,भूखप्यास और किसी प्रकार की बीमारी का तीव्र प्रभाव नहीं पड़ता है।
२. धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक की आँखों में साक्षात् अग्निदेव उपस्थित रहते हैं और वह तीक्ष्ण दृष्टि से जिस शत्रु को देखकर मन ही मन धूमावती मन्त्र का उच्चारण करता हैवह शत्रु तत्क्षण अवनति की ओर अग्रसर हो जाता है।
३. इस साधना के सिद्ध होने पर साधक की आँखों में प्रबल सम्मोहन व आकर्षण शक्ति आ जाती है।
४. इस साधना के सिद्ध होने पर भगवती धूमावती साधक की रक्षा करती रहती है और यदि वह भीषण परिस्थितियों में या शत्रुओं के बीच अकेला पड़ जाता है तो भी उसका बाल भी बाँका नहीं होता है। शत्रु स्वयं ही प्रभावहीन एवं निस्तेज हो जाते हैं।

           इस साधना के माध्यम से आपके जितने भी शत्रु हैंउनका मान-मर्दन कर जो भी आप पर तन्त्र प्रहार करता हैउस पर वापिस प्रहार कर उसी की भाषा में जबाब दिया जा सकता है। जिस प्रकार तारा समृद्धि और बुद्धि कीत्रिपुर सुन्दरी पराक्रम और सौभाग्य की सूचक मानी जाती हैठीक उसी प्रकार धूमावती शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार कर नेस्तनाबूँद करने वाली देवी मानी जाती है। यह अपने आराधक को बड़ी तीव्र शक्ति और बल प्रदान करने वाली देवी हैजो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपों में साधक की सहायता करती  है। सांसारिक सुख अनायास ऐसे ही प्राप्त नहीं हो जातेउनके लिए साधनात्मक बल की आवश्यता होती हैजिससे शत्रुओं से बचा रहकर बराबर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहा जा सके। मगर आज के समय में आपके आसपास रहने वाले और आपके नजदीकी लोग ही कुचक्र रचते रहते हैं और आप सोचते रहते हैं कि आपने किसी का कुछ भी बिगाड़ा नहीं है तो मेरा कोई क्यों बुरा सोचेगाकाश!ऐसा ही होता!

           मगर सांसारिक बेरहम दुनिया में कोई किसी को चैन  से रहते हुए नहीं देख सकता और आपकी पीठ पीछे कुचक्र चलते ही रहते हैं। इनसे बचाव का एक ही सही तरीका हैधूमावती साधना। इसके बिना आप एक कदम नहीं चल सकतेसमाज में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते है कि अचानक से किसी परिवार में परेशानियाँ शुरू हो जाती है और व्यक्ति जब ज्यादा परेशान होता है तो किसी डॉक्टर को दिखाता हैमगर महीनों इलाज कराने के बावज़ूद भी बीमारी ठीक नहीं होतीतब कोई दूसरी युक्ति सोचकर किसी अन्य जानकार को दिखाता है और मालूम पड़ता है कि किसी ने कुछ करा दिया था या टोना-टोटका जैसा कुछ मामला था और जब इलाज करायातब वह ५-७ दिन में बिलकुल ठीक हो गया। ऐसे में जो पढ़े-लिखे व्यक्ति होते हैंउन्हें भी इस पर विश्वास हो जाता है कि वास्तव में इस समाज में रहना कितना मुश्किल काम है।

           धूमावती दारूण विद्या है। सृष्टि में जितने भी दुःखदारिद्रयचिन्ताएँबाधाएँ  हैं,इनके शमन हेतु धूमावती से ज्यादा श्रेष्ठ उपाय कोई और नहीं है। जो व्यक्ति इस महाशक्ति की आराधना-उपासना करता हैउस पर महादेवी प्रसन्न होकर उसके सारे शत्रुओं का भक्षण तो करती ही हैसाथ ही उसके जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होने देती। क्योंकि इस साधना से माँ भगवती धूमावती लक्ष्मी-प्राप्ति में आ रही बाधाओं का भी भक्षण कर लेती है। अतः लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु भी इस शक्ति की पूजा करते रहना चाहिए।

साधना विधान :----------
         
           इस साधना को धूमावती जयन्तीकिसी भी माह की अष्टमीअमावस्या अथवा रविवार के दिन से आरम्भ किया जा सकता है। इस साधना को किसी खाली स्थान परश्मशान,जंगलगुफा या किसी भी एकान्त स्थान या कमरे में करनी चाहिए।

           यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात में ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। नहाकर लालवस्त्र धारण कर गुरु पीताम्बर ओढ़कर लाल ऊनी आसन पर बैठकर पश्चिम दिशा की ओर मुँहकर साधना करनी चाहिए।

           साधक अपने सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछा लें। इस साधना में माँ भगवती धूमावती का चित्रधूमावती यन्त्र और काली हकीक माला की विशेष उपयोगिता बताई गई है,परन्तु यदि सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताम्र पात्र में "धूं" बीज का अंकन काजल से करके उसके ऊपर एक सुपारी स्थापित कर दें और उसे ही माँ धूमावती मानकर उसका पूजन करना चाहिए। जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग किया जा सकता है।

           सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से धूमावती साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं"मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और "ॐ अघोर रुद्राय भैरवाय नमो नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान अघोर रुद्र भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

           साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि  मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री धूमावती साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।

           इसके बाद  साधक माँ भगवती धूमावती का सामान्य पूजन करे। काजलअक्षत,भस्मकाली मिर्च आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।
 
           हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग पढ़कर भूमि पर जल छोड़ें -----

विनियोग :-----

           ॐ अस्य धूमावतीमन्त्रस्य पिप्पलाद ऋषिःनिवृच्छन्दःज्येष्ठा देवता,धूम्  बीजंस्वाहा शक्तिःधूमावती कीलकं ममाभीष्टं सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास :-----

ॐ पिप्पलाद ऋषये नमः शिरसि।       (सिर स्पर्श करे)
ॐ निवृच्छन्दसे नमः मुखे।             (मुख  स्पर्श  करे)
ॐ ज्येष्ठा देवतायै नमः हृदि।          (हृदय  स्पर्श  करे)
ॐ धूम्  बीजाय नमः गुह्ये।           (गुह्य  स्थान स्पर्श  करे)
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः।        (पैरों   को   स्पर्श  करे)
ॐ धूमावती कीलकाय नमः नाभौ।      (नाभि स्पर्श करे)
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे।           (सभी अंगों का स्पर्श करे)

कर न्यास  :-----
 
ॐ धूं धूं अंगुष्ठाभ्याम नमः।      (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ धूम् तर्जनीभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ मां मध्यमाभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ वं अनामिकाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ तीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।       (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।  (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादि न्यास :-----

ॐ धूं धूं हृदयाय नमः।       (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ धूं शिरसे स्वाहा।          (सिर को स्पर्श करें)
ॐ मां शिखायै वषट्।         (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ वं कवचाय हुम्।          (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ तीं नेत्रत्रयाय वौषट्।       (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्।       (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

           इसके बाद साधक हाथ जोड़कर निम्न श्लोकों का उच्चारण करते हुए माँ भगवती धूमावती का ध्यान करें ---

ध्यान :------

ॐ विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा।
विमुक्त कुन्तला रूक्षा विधवा विरलद्विजा।।
काकध्वज रथारूढ़ा विलम्बित पयोधरा।
शूर्पहस्ताति रक्ताक्षीघृतहस्ता वरान्विता।।
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा।।

          इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक भगवती धूमावती के मूलमन्त्र का ५१ माला जाप करें ---

मन्त्र :----------

          ।। ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।।

OM DHOOM DHOOM DHOOMAAVATI SWAAHAA.

         मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न श्लोक का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवती धूमावती को समर्पित कर दें।

ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
     सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।

         इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

         "मन्त्र महोदधि" ग्रन्थ के अनुसार इस मन्त्र का पुरश्चरण एक लाख मन्त्र जाप है। तद्दशांश हवन करना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं है तो १०,००० अतिरिक्त मन्त्र जाप कर लेना चाहिए।

         इस तरह से यह साधना पूर्ण होकर कुछ ही दिनों में अपना प्रभाव दिखाती है। यह दुर्भाग्य को मिटाकर सौभाग्य में बदलने की अचूक साधना है।  इस साधना के बारे में कहा गया है कि बन्दूक की गोली एक बार को खाली जा सकती हैमगर इस साधना का प्रभाव कभी खाली नहीं जाता।
 
         महाविद्याओं में धूमावती साधना सप्तम नम्बर पर आती है। यह शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति और दुखों से निवृत्ति दिलाने वाली देवी है। इस साधना के माध्यम से साधक में बुरी शक्तियों को पराजित करने की और विपरीत स्थितियों में अपने अनुकूल बना देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता हैउसके सामने सभी को हार माननी पड़ती  है। परन्तु जो समय पर हावी हो जाता हैवह उससे भी ज्यादा ताकतवर कहलाता है। परिपूर्ण होना केवल शक्ति साधना के द्वारा ही सम्भव है। इसके माध्यम से दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में परिवर्तित किया जा सकता है।
                        
         आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती धूमावती का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

मंत्र साधना करते समय सावधानियां mantra sadhana karte hoye kucch savdhaniya par dhyan de

साधना में गुरु की आवश्यकता
Y      मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y      साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y      गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y      रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y      रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y      गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y         स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y         गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y      मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखेंढिंढोरा ना पीटेंबेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y      गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y      आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y      बकवास और प्रलाप न करें.
Y      किसी पर गुस्सा न करें.
Y      यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y      ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y      किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें.
Y      जप और साधना का ढोल पीटते न रहें, इसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y      बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y      ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y      इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म लगातार गर्भपातसन्तान ना होना अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y      भूतप्रेतजिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
Y      गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशाआसनवस्त्र का महत्व
ü  साधना के लिए नदी तटशिवमंदिरदेविमंदिरएकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
ü  आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
ü  अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशाआसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
ü  इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
ü  जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
ü  यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
ü  नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
साधना पत्रिका  निखिल मंत्र विज्ञान 
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. साधना पत्रिका निखिल मंत्र विज्ञान में महाविद्या साधना भैरव साधनाकाली साधनाअघोर साधनाअप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी . इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा . देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .