गुरुमंत्र से समाधी की और -- २ आज इस लेख आप को योग सरीर के वारे बताउगा आशा है के आपकी जानकारी में जरुर विस्तार होगा !इस सरीर की रचना अपने में अनेक रहस्य संजोये हुए है !सभी मानते है के सरीर में ७ चक्र मूलाधार से लेकर सहस्र चक्र तक है और इस आगे साधक की सोच बहुत कम है !लेकिन निखिल योग के तहत मैं जो रहस्य उद्घाटन करने जा रहा हू वोह आपको जरुर हरेन कर देगा ! १. इस सरीर में १०८ श्री चक्र है जीने भेदन करके साधक सिद्ध पुरषों की श्रेणी में आ जाता है और उसे ब्रमंड के किसी कोने में जाना और उस की जानकारी सहज ही हो जाती है !निखिल योग बहुत ही विशाल है !जिसे अपना कर सिदाश्र्म के जोगी एक विशेष उन्ती में य़ा गये और बर्षो की तपश्या को कुश ही दिनों में साकार कर मनोवषित स्थिति प्राप्त कर सके आप भी उस आनंद को पा सके ऐसी कामना करता हुआ इस लेख को शुरू करता हू !इस सरीर में ६ कुंडलिनी शक्ति ६ जगह सुप्त अवस्था में विराज मान है जिसे सभी धर्म आचार्यो ने गुप्त ही रखा है सरीर में ६ जगह मूलाधार चक्र है !और उसी लड़ी में आगे ६ चक्र कारवार है जिन के नाम आप जानते हैं !पहली अवस्था पैर से शुरू करते है दाये और बाये पैर के अंगूठे में मूलाधार चक्र विदमान है और उसके थोरा नीचे शेषनाग का तिर्कोंन है जिस में कुंडलिनी शक्ति विदमान है वडी उंगल के ठीक नीचे स्वाधिष्ठान चक्र है !और अनमिका के नीचे मणिपुर चक्र और कनिष्ठा के नीचे अनहद चक्र इस से थोरा नीचे उसी चक्र के नीचे विशुद चक्र और हथली और विशुद चक्र के मद्य में आज्ञा चक्र और हथेली के मद्य भाग में सहस्र्हार चक्र है मूलाधार में सिदेश्वर गणपति का वास है !इस के जागरण से जा यह कहू की इस कुंडलिनी के जागरण से सभी देव शक्तिया गुरु के दाहिने अगुठे में वास करती है और शास्र्हार के जागरण से पदम योग बनता है और गुरु के चरणों में गंगा का वास होता है और जो साधक इस शक्ति जा तत्व से एकाकार कर लेता है!वोह जहाँ भी कदम रखता है वोह स्थान पवित्र हो जाता है देव दर्शन उसे सहज ही सुलभ हो जाता है ! २. अब दुसरे बाये पैर में भी इसी परकार ७ चक्र और कुंडलिनी शक्ति विदमान है !इस मूलाधार में विक्तेश्वर गणपति का वास है और इस के जागरण से असीरी शक्तिया जागरण होती है और वोह शमशान अदि साधनायो में सहज ही सफलता पा लेता है भूत अदि गण उसके आगे हाथ जोड़े खड़े रहते है और उसके हुकम को मानते है वेह अपने बाय पैर के अगुठे से एक विकट पाप शक्ति को जन्म दे सकता है जा यह कहू भूत को पैर के अगुठे से ही पैदा कर सकता है पूर्ण शास्र्हार के भेदन से सभी विकट शक्तियों पे आदिकार स्थापन करने में कामजाब हो जाता है उसके के लिए किसी भी आत्मा पे आदिकार पाना मुश्किल नहीं होता वह हर जगह निर्भीक रहता है
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