पारद लक्ष्मी
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जीवन में मानसिक और भौतिक उन्नति के लिए धन की उपयोगिता को नकारा नही जा सकता. क्यूंकि कहावत है की “शत्रु को समाप्त करना हो तो उसकी आर्थिक प्रगति के स्रोत को ही ख़त्म कर दो वो ख़ुद ही ख़त्म हो जाएगा”.
सदगुरुदेव ने कभी भी यह नही कहा की दरिद्र रहने में महानता है. न ही जितना है उतने में सुखी रहो जैसे वाक्यों को अपने शिष्यों को ही कभी दिया .
भाग्य को सौभाग्य में बदलने और जीवन स्तर को उंचा उठाने के लिए ही उन्होंने प्रत्येक शिविर में धन व सौभाग्य से सम्बंधित साधनाएं शिष्यों और साधकों को करवाई.
इन्ही साधनों में पारद लक्ष्मी जो श्री का ही प्रतिक है का प्रयोग व स्थापन पूर्ण प्रभाव दायक है. जिस घर में भी पारदेश्वरी स्थापित होती हैं ,उस स्थान पर दरिद्रता रह ही नही सकती , ऐश्वर्य व सौभाग्य को वह पर आना ही पड़ता है , मुझे अपने जीवन में जो भी सफलता व उन्नति की प्राप्ति हुयी है ,उसके मूल में भगवती पारदेश्वरी की साधना और स्थापन का अभूतपूर्व योगदान है.
हमें पारदेश्वरी से और आर्थिक उन्नति से सम्बंधित कुछ बातो की जानकारी होनी चाहिए :
पारद लक्ष्मी का निर्माण विशुद्ध प्रद से होना चाहिए क्यूंकि पारद चंचल होता है और लक्ष्मी भी चंचल होती हैं , इस लिए पारद के बंधन के साथ लक्ष्मी भी अबाध होते जाती हैं.
पारदेश्वरी का निर्माण श्रेष्ठ व धन प्रदायक योग में होना चाहिए.
पारदेश्वरी के निर्माण के लिए पारद मर्दन करते समय तथा उनके अंगो को बनते समय "रजस मंत्र" का जप २०००० बार होना चाहिए इसमे १०००० मंत्र खरल करते हुए सामान्य रूप से तथा १०००० बार लोम विलोम रूप से मंत्र के प्रत्येक वर्ण का स्थापन उनके अंगों में करना चाहिए. "रजस मंत्र" जो की आधारभूत मंत्र या पूर्ण वर्णात्मक मंत्र कहलाता है के बिना इनका निर्माण करने पर चैतन्यता का अभाव रहता है तथा यह एक विग्रह मात्र होती हैं जिसे घर में रखने पर कोई लाभ नही होता . येही वजह है की जब आप किसी दुकान से इस प्रकार की मूर्ति खरीदते हैं तो कोई लाभ नही होता भले ही आप उनकी कितनी भी पूजा कर लें.
पारदेश्वरी का स्थापन आग्नेय दिशा में होना चाहिए.
इसके बाद आप सद्द गुरुदेव से इनका मंत्र प्राप्त कर प्रयोग करे , यदि प्रयोग नही भी कर पाते तब भी इनका स्थापन उन्नति के पथ पर आपको अग्रसर करता ही है.
आप इन बातो का ध्यान रखे और देखे की कैसे सम्पन्नता आपके गले में वरमाला डालती है।
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जीवन में मानसिक और भौतिक उन्नति के लिए धन की उपयोगिता को नकारा नही जा सकता. क्यूंकि कहावत है की “शत्रु को समाप्त करना हो तो उसकी आर्थिक प्रगति के स्रोत को ही ख़त्म कर दो वो ख़ुद ही ख़त्म हो जाएगा”.
सदगुरुदेव ने कभी भी यह नही कहा की दरिद्र रहने में महानता है. न ही जितना है उतने में सुखी रहो जैसे वाक्यों को अपने शिष्यों को ही कभी दिया .
भाग्य को सौभाग्य में बदलने और जीवन स्तर को उंचा उठाने के लिए ही उन्होंने प्रत्येक शिविर में धन व सौभाग्य से सम्बंधित साधनाएं शिष्यों और साधकों को करवाई.
इन्ही साधनों में पारद लक्ष्मी जो श्री का ही प्रतिक है का प्रयोग व स्थापन पूर्ण प्रभाव दायक है. जिस घर में भी पारदेश्वरी स्थापित होती हैं ,उस स्थान पर दरिद्रता रह ही नही सकती , ऐश्वर्य व सौभाग्य को वह पर आना ही पड़ता है , मुझे अपने जीवन में जो भी सफलता व उन्नति की प्राप्ति हुयी है ,उसके मूल में भगवती पारदेश्वरी की साधना और स्थापन का अभूतपूर्व योगदान है.
हमें पारदेश्वरी से और आर्थिक उन्नति से सम्बंधित कुछ बातो की जानकारी होनी चाहिए :
पारद लक्ष्मी का निर्माण विशुद्ध प्रद से होना चाहिए क्यूंकि पारद चंचल होता है और लक्ष्मी भी चंचल होती हैं , इस लिए पारद के बंधन के साथ लक्ष्मी भी अबाध होते जाती हैं.
पारदेश्वरी का निर्माण श्रेष्ठ व धन प्रदायक योग में होना चाहिए.
पारदेश्वरी के निर्माण के लिए पारद मर्दन करते समय तथा उनके अंगो को बनते समय "रजस मंत्र" का जप २०००० बार होना चाहिए इसमे १०००० मंत्र खरल करते हुए सामान्य रूप से तथा १०००० बार लोम विलोम रूप से मंत्र के प्रत्येक वर्ण का स्थापन उनके अंगों में करना चाहिए. "रजस मंत्र" जो की आधारभूत मंत्र या पूर्ण वर्णात्मक मंत्र कहलाता है के बिना इनका निर्माण करने पर चैतन्यता का अभाव रहता है तथा यह एक विग्रह मात्र होती हैं जिसे घर में रखने पर कोई लाभ नही होता . येही वजह है की जब आप किसी दुकान से इस प्रकार की मूर्ति खरीदते हैं तो कोई लाभ नही होता भले ही आप उनकी कितनी भी पूजा कर लें.
पारदेश्वरी का स्थापन आग्नेय दिशा में होना चाहिए.
इसके बाद आप सद्द गुरुदेव से इनका मंत्र प्राप्त कर प्रयोग करे , यदि प्रयोग नही भी कर पाते तब भी इनका स्थापन उन्नति के पथ पर आपको अग्रसर करता ही है.
आप इन बातो का ध्यान रखे और देखे की कैसे सम्पन्नता आपके गले में वरमाला डालती है।
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