Yakshini Sadhna
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सौंदर्य क्या है ?????? उत्तर कठिन है……. क्यूंकी ये तो हम पर ही निर्भर करता है की हमारे लिए सौंदर्य का अर्थ क्या है या सुंदरता की बात होते ही हमारा चिंतन किस तरफ जाता है . सामान्य व्यक्ति से प्रथक एक साधक के विचार से सुंदरता का अर्थ ही पूर्णता होता है, तभी तो कहा गया है की…..
सत्यम शिवम सुंदरम.
अर्थात सत्य ही शिव है( जीवन की विषम परिस्थितियों के गरल को पीकर भी परम शांति का अनुभव करता है) और ऐसा अनुभव जो की आपका जीवन ही बन जाता है ,वो सौंदर्य से परिपूर्ण हो ही जाता है .
यहा सौंदर्य का अर्थ विचारोंत्तेजक वा तथाकथित कामुकता तो कदापि नही हो सकता ना.सद्गुरुदेव हमेशा कहते थे की यौवन की पुनर्स्थापना के लिए और जीवन को आनंद से भरने के लिए सौंदर्य की साधना साधक को करनी ही चाहिए.और सौंदर्य की जब भी बात चलती है तो परिभाषित करने के लिए नारी को उपमेय रूप मे लेना ही पड़ेगा, विधाता की बनाई हुई पूर्ण उर्जा से स्पंदित वो कृति भला किसका मन अपनी और आकर्षित नही करती है. और पूर्ण सौंदर्य को बताने के लिए यक्षिणी या अप्सरा से भला बेहतर क्या हो सकता है.
हममे से बहुत से साधक होंगे ही जिन्होने पत्रिका मे या किताबों मे पढ़कर यक्षिणी या अप्सरा साधना की होगी, पर असफल साधकों की संख्या सफल साधकों से कही ज़्यादा और बहुत ज़्यादा ही होगी…… कहिए क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?????
क्या जो विधि दी गयी है वो ग़लत है , नही ऐसा नही है , वास्तविकता इससे कही भिन्न है क्यूंकी विधि ग़लत नही होती बल्कि जो भाव-भूमि हमारी इस साधना के लिए होनी चाहिए, हम उस भाव को ही आत्म-सात ही नही कर पाते. क्या आपने कभी ध्यान दिया है की एक क्रिया या साधना को बताने के लिए उसके बारे मे इतना ज़्यादा विस्तार से पत्रिका मे क्यूँ लिखा जाता है???? सिर्फ़ इसलिए की मानसिक वा आत्मिक रूप से भी आप अपने आपको तत्पर कर सके उस साधना को करने के लिए और उस महत्व को समझ सके (जिस महत्व की तरफ वो साधना रहस्य इंगित करता है).
मैं ये बात इतने अधिकार से इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकी मैने स्वयं होलिका यक्षिणी जैसी साधना मे पहली बार मे ही सफलता प्राप्त की थी ,और मेरा परिवार तथा मित्र इस बात के साक्ष्ीभूत रहे हैं .तीन वर्षों तक मैने उस सफलता का उपभोग भी किया , ये बात मैं आत्म-प्रवंचना के लिए नही कह रहा हूँ , बल्कि अपने अनुभव को अपने भाइयों के मध्य रखना अपना दायित्व समझता हूँ . मुझसे कई करोड गुना बेहतर मेरे कई गुरु भाई हैं, जिन्हे सफलता मिली पर वो ना जाने क्यूँ उन अनुभूतियों को विस्तारित करने मे हिचकते हैं(शायद उनके अनुसार उनकी मेहनत उनके खुद के प्रयोग के लिए है).
खैर अपना अपना दृष्टिकोण है …… शिवरात्रि से होली तक का समय इन साधनाओं के लिए कही ज़्यादा अनुकूल रहता है .गुरु धाम , कामरूप कामाख्या, किसी नदी का किनारा,हृषिकेश, मनाली, कुल्लू, पचमढ़ी और अन्य पर्वतीय लेकिन शांत स्थान इसके लिए ज़्यादा उचित हैं. क्यूंकी प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता इन वर्गों को अति शीघ्र आकर्षित कर लेती हैं और अनुभूतियों की तीव्रता भी इन स्थानो पर कही अधिक होती है.
शिव , कुबेर , भैरव की साधनाएँ इन क्रियाँ मे सहायक होती हैं. और एक बात आवश्या समझ लेनी चाहिए की उच्च स्तरिय तन्त्र साधनाओं मे प्रवेश पाने के लिए , उनमे सफलता के लिए ये साधनाएँ अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. अब प्रश्न है की ऐसा क्यूँ?????
तो मेरे आत्मियों षट्कर्मों से उपर साधनाओं का एक ऐसा संसार भी है जहा असंभव कुछ भी नही ,पर वहाँ पहुचने के लिए एक साधक को तन्त्र के पाँच पीठों को पार करना पड़ता है.
अरण्य पीठ
शून्य पीठ
शमशान पीठ
शव पीठ
श्यामा पीठ
इन पीठों की साधना के बाद ही आप उच्च स्तरिया साधंाओं मे प्रवेश पाने के अधिकारी होते हो. अब आप पूछेंगे की यक्षिणी, अप्सरा, योगिनी साधनाओं का क्या महत्व है इसमे?? तो मैं आपको बता दूं की जीवन के चार पुरुषार्थों …
धर्म, अर्थ , काम ,मोक्ष मे से मोक्ष के रहस्य का पाने का अधिकारी वही हो सकता है जिसने उसके पहले के तीनों पुरुषार्थों का भली प्रकार से उपार्जन वा पालन किया हो. मोक्ष भी तभी मिलता है जब आप काम भाव के सत्य को अपने जीवन मे व्यवस्थित रूप से उतार लेते हो. श्यामा पीठ के पहले के चार पीठ 8 पाशों मे से अन्य 7 पाशों से भले ही आपको मुक्त कर दे , जैसे की भय, जुगुपसा, मोह ,घृणा आदि को . पर काम भाव रूपी पाश तथा अन्य पाश के बंधन से तभी मुक्त हो सकते हैं जब श्यामा पीठ की साधना सफलता से कर ली जाए. क्यूंकी एकांत मे स्त्री साहचर्या भय, मोह , लज्जा और वासना का सृजन करता ही है. और हम सभी जानते हैं की काम भाव को प्रेम या स्नेह मे परिवर्तित कर हम वासना के दलदल से ना सिर्फ़ निकल जाते हैं बल्कि कमल की तरह जीवन की अन्य विसंगतियों से भी निरलप्त हो जाते हैं.
और ये सौंदर्य भाव की साधना आपकी वही अग्नि परीक्षा होती है, जिनके साधना काल मे साधक के भीतर के काम भाव का मंथन होता ही है और मंथन के फल स्वरूप वासना या उत्तेजना का विष निकलता है , अब यदि साधक वहाँ रुक गया तो वो कभी सफल नही हो पाता ,पर यदि वो उसके आयेज निकल गया तो ब्रह्मांड का अद्भुत सौंदर्य ना सिर्फ़ उसके जीवन मे समा जाता है बल्कि दिव्य साधनाओं का मार्ग भी उसके लिए खुल जाता है. और ये तभी होता है जब हम पूर्णा वीर भाव से इस वाम मार्ग की साधना करें. वाम मार्ग का मतलब तन्त्र मे शक्ति प्राप्ति का आनंद प्राप्ति का मार्ग है ना की विपरीत व्यवहार करने का मार्ग, और वीर भाव का मतलब अकड़ना या आँखे फाड़ना नही है बल्कि जो भी होगा, बगैर विचलित, भयभीत हुए बिना मात्र दृष्टा बन कर उन चुनौतियों का सामने दृढ़ भाव से सिंहवत खड़े होकर सफलता पा लेना ही वीर भाव है. सौंदर्य की इन अदभूत साधना मे आप अन्य चारों पीठों को लाँघ कर सीधे श्यामा साधना को ही सम्पन कर लेते हैं.
प्रत्येक साधना मे प्रत्यक्षीकरण हेतु एक अलग ही क्रिया होती है. किसी साधना का लाभ उठना और उस शक्ति को प्रातायक्ष ही कर लेना दो अलग अलग बात हैं. इस लिए प्रत्यक्षीकरण की चुनौती को स्वीकारने के लिए प्रत्यक्षीकरण यंत्र या गुटिका तथा उसे संबंधित मंत्र का ज्ञान ज़रूरी है.
इसी प्रकार प्रत्येक अप्सरा और यक्षिणी का कीलन विधान भी होता है .जिसमे उनके यंत्र को बीजाक्षरों के द्वारा कीलित किया जाता है जिससे वे आपको सफलता दें एके लिए बाध्य ही हो जाती हैं. आप भी इन सूत्रों को अपनाएँ और सौंदर्य युक्त जीवन का आनंद ले तथा साधक जीवन को सफल करें यही मेरी सद्गुरुदेव से प्रार्थना है.
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सौंदर्य क्या है ?????? उत्तर कठिन है……. क्यूंकी ये तो हम पर ही निर्भर करता है की हमारे लिए सौंदर्य का अर्थ क्या है या सुंदरता की बात होते ही हमारा चिंतन किस तरफ जाता है . सामान्य व्यक्ति से प्रथक एक साधक के विचार से सुंदरता का अर्थ ही पूर्णता होता है, तभी तो कहा गया है की…..
सत्यम शिवम सुंदरम.
अर्थात सत्य ही शिव है( जीवन की विषम परिस्थितियों के गरल को पीकर भी परम शांति का अनुभव करता है) और ऐसा अनुभव जो की आपका जीवन ही बन जाता है ,वो सौंदर्य से परिपूर्ण हो ही जाता है .
यहा सौंदर्य का अर्थ विचारोंत्तेजक वा तथाकथित कामुकता तो कदापि नही हो सकता ना.सद्गुरुदेव हमेशा कहते थे की यौवन की पुनर्स्थापना के लिए और जीवन को आनंद से भरने के लिए सौंदर्य की साधना साधक को करनी ही चाहिए.और सौंदर्य की जब भी बात चलती है तो परिभाषित करने के लिए नारी को उपमेय रूप मे लेना ही पड़ेगा, विधाता की बनाई हुई पूर्ण उर्जा से स्पंदित वो कृति भला किसका मन अपनी और आकर्षित नही करती है. और पूर्ण सौंदर्य को बताने के लिए यक्षिणी या अप्सरा से भला बेहतर क्या हो सकता है.
हममे से बहुत से साधक होंगे ही जिन्होने पत्रिका मे या किताबों मे पढ़कर यक्षिणी या अप्सरा साधना की होगी, पर असफल साधकों की संख्या सफल साधकों से कही ज़्यादा और बहुत ज़्यादा ही होगी…… कहिए क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?????
क्या जो विधि दी गयी है वो ग़लत है , नही ऐसा नही है , वास्तविकता इससे कही भिन्न है क्यूंकी विधि ग़लत नही होती बल्कि जो भाव-भूमि हमारी इस साधना के लिए होनी चाहिए, हम उस भाव को ही आत्म-सात ही नही कर पाते. क्या आपने कभी ध्यान दिया है की एक क्रिया या साधना को बताने के लिए उसके बारे मे इतना ज़्यादा विस्तार से पत्रिका मे क्यूँ लिखा जाता है???? सिर्फ़ इसलिए की मानसिक वा आत्मिक रूप से भी आप अपने आपको तत्पर कर सके उस साधना को करने के लिए और उस महत्व को समझ सके (जिस महत्व की तरफ वो साधना रहस्य इंगित करता है).
मैं ये बात इतने अधिकार से इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकी मैने स्वयं होलिका यक्षिणी जैसी साधना मे पहली बार मे ही सफलता प्राप्त की थी ,और मेरा परिवार तथा मित्र इस बात के साक्ष्ीभूत रहे हैं .तीन वर्षों तक मैने उस सफलता का उपभोग भी किया , ये बात मैं आत्म-प्रवंचना के लिए नही कह रहा हूँ , बल्कि अपने अनुभव को अपने भाइयों के मध्य रखना अपना दायित्व समझता हूँ . मुझसे कई करोड गुना बेहतर मेरे कई गुरु भाई हैं, जिन्हे सफलता मिली पर वो ना जाने क्यूँ उन अनुभूतियों को विस्तारित करने मे हिचकते हैं(शायद उनके अनुसार उनकी मेहनत उनके खुद के प्रयोग के लिए है).
खैर अपना अपना दृष्टिकोण है …… शिवरात्रि से होली तक का समय इन साधनाओं के लिए कही ज़्यादा अनुकूल रहता है .गुरु धाम , कामरूप कामाख्या, किसी नदी का किनारा,हृषिकेश, मनाली, कुल्लू, पचमढ़ी और अन्य पर्वतीय लेकिन शांत स्थान इसके लिए ज़्यादा उचित हैं. क्यूंकी प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता इन वर्गों को अति शीघ्र आकर्षित कर लेती हैं और अनुभूतियों की तीव्रता भी इन स्थानो पर कही अधिक होती है.
शिव , कुबेर , भैरव की साधनाएँ इन क्रियाँ मे सहायक होती हैं. और एक बात आवश्या समझ लेनी चाहिए की उच्च स्तरिय तन्त्र साधनाओं मे प्रवेश पाने के लिए , उनमे सफलता के लिए ये साधनाएँ अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. अब प्रश्न है की ऐसा क्यूँ?????
तो मेरे आत्मियों षट्कर्मों से उपर साधनाओं का एक ऐसा संसार भी है जहा असंभव कुछ भी नही ,पर वहाँ पहुचने के लिए एक साधक को तन्त्र के पाँच पीठों को पार करना पड़ता है.
अरण्य पीठ
शून्य पीठ
शमशान पीठ
शव पीठ
श्यामा पीठ
इन पीठों की साधना के बाद ही आप उच्च स्तरिया साधंाओं मे प्रवेश पाने के अधिकारी होते हो. अब आप पूछेंगे की यक्षिणी, अप्सरा, योगिनी साधनाओं का क्या महत्व है इसमे?? तो मैं आपको बता दूं की जीवन के चार पुरुषार्थों …
धर्म, अर्थ , काम ,मोक्ष मे से मोक्ष के रहस्य का पाने का अधिकारी वही हो सकता है जिसने उसके पहले के तीनों पुरुषार्थों का भली प्रकार से उपार्जन वा पालन किया हो. मोक्ष भी तभी मिलता है जब आप काम भाव के सत्य को अपने जीवन मे व्यवस्थित रूप से उतार लेते हो. श्यामा पीठ के पहले के चार पीठ 8 पाशों मे से अन्य 7 पाशों से भले ही आपको मुक्त कर दे , जैसे की भय, जुगुपसा, मोह ,घृणा आदि को . पर काम भाव रूपी पाश तथा अन्य पाश के बंधन से तभी मुक्त हो सकते हैं जब श्यामा पीठ की साधना सफलता से कर ली जाए. क्यूंकी एकांत मे स्त्री साहचर्या भय, मोह , लज्जा और वासना का सृजन करता ही है. और हम सभी जानते हैं की काम भाव को प्रेम या स्नेह मे परिवर्तित कर हम वासना के दलदल से ना सिर्फ़ निकल जाते हैं बल्कि कमल की तरह जीवन की अन्य विसंगतियों से भी निरलप्त हो जाते हैं.
और ये सौंदर्य भाव की साधना आपकी वही अग्नि परीक्षा होती है, जिनके साधना काल मे साधक के भीतर के काम भाव का मंथन होता ही है और मंथन के फल स्वरूप वासना या उत्तेजना का विष निकलता है , अब यदि साधक वहाँ रुक गया तो वो कभी सफल नही हो पाता ,पर यदि वो उसके आयेज निकल गया तो ब्रह्मांड का अद्भुत सौंदर्य ना सिर्फ़ उसके जीवन मे समा जाता है बल्कि दिव्य साधनाओं का मार्ग भी उसके लिए खुल जाता है. और ये तभी होता है जब हम पूर्णा वीर भाव से इस वाम मार्ग की साधना करें. वाम मार्ग का मतलब तन्त्र मे शक्ति प्राप्ति का आनंद प्राप्ति का मार्ग है ना की विपरीत व्यवहार करने का मार्ग, और वीर भाव का मतलब अकड़ना या आँखे फाड़ना नही है बल्कि जो भी होगा, बगैर विचलित, भयभीत हुए बिना मात्र दृष्टा बन कर उन चुनौतियों का सामने दृढ़ भाव से सिंहवत खड़े होकर सफलता पा लेना ही वीर भाव है. सौंदर्य की इन अदभूत साधना मे आप अन्य चारों पीठों को लाँघ कर सीधे श्यामा साधना को ही सम्पन कर लेते हैं.
प्रत्येक साधना मे प्रत्यक्षीकरण हेतु एक अलग ही क्रिया होती है. किसी साधना का लाभ उठना और उस शक्ति को प्रातायक्ष ही कर लेना दो अलग अलग बात हैं. इस लिए प्रत्यक्षीकरण की चुनौती को स्वीकारने के लिए प्रत्यक्षीकरण यंत्र या गुटिका तथा उसे संबंधित मंत्र का ज्ञान ज़रूरी है.
इसी प्रकार प्रत्येक अप्सरा और यक्षिणी का कीलन विधान भी होता है .जिसमे उनके यंत्र को बीजाक्षरों के द्वारा कीलित किया जाता है जिससे वे आपको सफलता दें एके लिए बाध्य ही हो जाती हैं. आप भी इन सूत्रों को अपनाएँ और सौंदर्य युक्त जीवन का आनंद ले तथा साधक जीवन को सफल करें यही मेरी सद्गुरुदेव से प्रार्थना है.
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