आज मूड में हू चलो कुश हास परिहास हो जाये एक वार धर्मराज जी मृत्यु लोग की यात्रा पे आये और उन्हों ने वेश बदला और ट्रेन में यात्रा करने लगे जब एक स्टेशन पे उतरे उनके हाथ में एक अटैचिकेश था !एक आदमी आया और भोला आप भले आदमी लगते हो मैं आपकी हेल्प करता हू !और उसने उस ब्रीफ केस को उठा लिया और उनके साथ चलता रहा !धर्म राज उसकी सेवा से प्रसन हुए और काफी चलने के बाद बोले मैं तुम से प्रसन हू बोलो क्या चाहते हो मैं धर्मराज हू !और उन्हों ने अपना रूप उसे दिखा दिया उस आदमी ने प्रणाम किया और बोला आप सभी के प्राण हारते हो !तो धर्म राज जी ने कहा हा १तो मुझे ऐसा वर दे की आप मेरे प्राण ना हरे तो धर्म राज जी कहने लगे ऐसा तो हो नहीं सकता जो पैदा हुआ है उसे मरना तो पड़ेगा ही पर मैं तुमे यह वर देता हू मैं तुमरे प्राण तुमरे पायो की तरफ खलो के निकालुगा तब तो ठीक है उस आदमी ने कहा !समय बीतता गया उसका टाइम आ गया तो धर्म राज जी आ गये और उसके पायु की तरफ खलो के प्राण निकलने लगे तो उसने पायु दूसरी तरफ कर लिए धर्म राज जी उस तरफ हुए तो उसने फिर पायु घुमा लिए आखिर को उसने पायु उपर की तरफ कर लिए कहा अब कहा खलो के निकालो गे मेरे प्राण तभी उसकी घर वाली आई उसने देखा इन्हें क्या हुआ और आवाज लगी बच्चो देखो तुमरे बापू को क्या हुआ तभी बच्चे य़ा गये और सभी ने उसके पायु पकड़ नीचे को कर दिए और उसे पकड़ कर सीधा कर दिया वोह शोर मचाता रहा ऐसा ना करो पर किसी ने उसकी सुनी नहीं !तो धर्मराज जी बोले अब कहो तो वोह कहने लगा मैंने मरना तो नहीं था पर घर वालो ने मरवा दिया !इसी तरह बहुत भाई साधना तो करना चाहते है पर घर वाले उनकी टांग खीचने लग जाते है !इस लिए अपने महोल को साधना मय बनाये
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