शिष्यता के सात सूत्र
भगवत्पाद शंकराचार्य ने “शिष्य”, और सही मायने में कसौटी पर खरे उतरने वाले शिष्य के सात सूत्र बताए हैं,
जो निम्न हैं| आप स्वयं ही मनन कर निर्णय करें, कि आपके जीवन में ये कितने संग्रहित हैं :-
अन्तेश्रियै वः – जो आत्मा से, प्राणों से, हृदय से अपने गुरुदेव से जुड़ा हो, जो गुरु से अलग होने की
कल्पना करते ही भाव विह्वल हो जाता हो|
कर्तव्यं श्रियै नः – जो अपनी मर्यादा जानता हो, गुरु के सामने अभद्रता, अशिष्टता का प्रदर्शन न कर
पूर्ण विनीत नम्र पूर्ण आदर्श रूप में उपस्थित होता हो|
सेव्यं सतै दिवौं च – जिसने गुरु सेवा को ही अपने जीवन का आदर्श मान लिया हो और प्राण प्रण से
गुरु की तन-मन-धन से सेवा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता हो|
ज्ञानामृते वै श्रियं – जो ज्ञान रुपी अमृत का नित्य पान करता रहता हैं और अपने गुरु से निरंतर ज्ञान
प्राप्त करता ही रहता हैं|
हितं वै हृदं – जो साधनाओं को सिद्ध कर लोगों का हित करता हो और गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता
ही रहता हैं|
गुरुर्वे गतिः – गुरु ही जिसकी गति, मति हो, गुरुदेव जो आज्ञा दे, बिना विचार किए उसका पालन करना
ही अपना कर्तव्य समझता हो|
इष्टौ गुरुर्वे गुरु: - जिस शिष्य का इष्ट ही गुरु हो, जो अपना सर्वस्व गुरु को ही समझता हो|
-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान अक्टो. 1998, पृष्ठ : ७१
गुरु तत्व विमर्श...
☼ अपने हृदय में “गुरु” स्थापन करना समस्त देवताओं को स्थापन करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!!
-ऋग्वेद
☼ जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ की अपेक्षा “गुरु-पूजन” ही हैं!
-गुरौपनिषद
☼ चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – की प्राप्ति केवल गुरु-पूजन के द्वारा संभव हैं!
-याज्ञवल्क्य
☼ जीवन की पवित्रता, दिव्यता, तेजस्विता एवं परम शांति केवल गुरु-पूजन के द्वारा ही संभव हैं!
-ऋषि विश्वामित्र
☼ “गुरु-पूजा” से बढ़कर और कोई विधि या सार नहीं हैं!
-शंकराचार्य
☼ समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का आधार मात्र गुरु-पूजन हैं!
-आरण्यक
☼ जो प्रातःकाल गुरु-पूजन नहीं करता, उसका सारा समय, साधना एवं तपस्या व्यर्थ हो जाती हैं!
-रामकृष्ण
☼ गुरु-पूजा के द्वारा ही “इष्ट” के दर्शन संभव हैं!
-गोरखनाथ
☼ संसार का सार “मनुष्य जीवन” हैं, और मनुष्य जीवन का सार गुरु-धारण, गुरु स्मरण एवं गुरु-पूजन हैं!
-सिद्धाश्रम
Shankaracharya Bgwatpad "disciple", and truly a disciple of the seven sources which meet the test are described,
The following are | make your own decisions as to contemplate, how many are stored in your life: -
Anteshriya Vः - the soul, the soul, the heart is connected to your Master, the master can be separated from
Imagine if the price is fevered |
Sriya Kartwyn Nः - who knows his limits, the impolicy of the master, not the display of rudeness
Ideally appears to be fully completed gentle hand |
Sata Sewyn Divun f - the master service is assumed to be the ideal of his life and death of pledge
Master of the body - mind - wealth to serve the aims of life |
Jञanamrite Y. Sriyn - continual diet of nectar continues to reward the knowledge and continuous learning from the master
Receives the same |
Hitn Hridn banks - which Sadnaon prove that people's interest and continued to master the knowledge
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