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Saturday, September 6, 2014

kahi Vidhi karu upasana काही विधि करूं उपासना

काही विधि करूं उपासना

उपासना का मतलब है नजदीक जाना... इतना नजदीक की उसके अन्दर जाना, विस्मृत कर देना अपने-आप को, भूल जाना अपने स्वत्व को।

और यह भूलने का भाव, एकाकार हो जाने का भाव प्रेम के द्वारा ही सम्भव है...प्रेम के द्वारा ही जीने और मरने का सलीका आता है, प्रेम के द्वारा ही मर मिटने की उपासना सम्भव है।

और जो मरा नहीं, वह क्या ख़ाक जिया, जिसने विरह के तीर खाए ही नहीं, वह गुरु से क्या एकाकार हो सकेगा, क्या ख़ाक उपासना कर सकेगा -


किसूं काम के थे नहीं, कोई न कौडी देह।
गुरुदेव किरपा करी भाई अमोलक देह ॥
सतगुरु मेरा सुरमा, करे सबद की चोट।
मारे गोला प्रेम का, ढहे भरम का कोट ॥
सतगुरु सबदी तीर है कियो तन मन छेद।
बेदरदी समझे नहीं, विरही पावे भेद

प्रेम, एक धधकता हुआ अंगारा है, जिस पर मोह की राख पड़ गई है... सदगुरु उस पर फूंक मारता है, राख उड़ जाती है, और नीचे से उपासना का अंगार चमकता हुआ निकल आता है।

इसलिए तो खाली प्रार्थना से कुछ भी होना नहीं है, कोरी आंख मूंद लेने से उपासना में सफलता प्राप्ति नहीं हो सकती, इसके लिए जरूरी है गुरु के पास जाना, उनकी उठी हुई बाहों में अपने-आप को समा लेना...तभी आनन्द के अंकुर फुटेंगे, उपासना का राजपथ प्राप्त होगा, और तभी से एकाकार होने की क्रिया संपन्न होगी।

गुरु कहै सो कीजिये, करै सो कीजै नांहि ।
चरनदास की सीख सुन, यही राख मन मांहि ॥
जप- तप- पूजा - पाठ सब, गुरु चरनण के मांहि ।
निस दिन गुरु सेवा करै, फिरू उपासना कांहि ॥
का तपस्या उपासना, जोग जग्य अरु दान ।
चरण दास यों कहत है, सब ही थोथे जान ॥
गुरु ही जप - तप - ध्यान है, गुरु ही मोख निर्वाण ।
चरणदास गुरु नाम ते, नांहि उपासन ज्ञान ॥

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