राज्य भी पुन: प्राप्त किया जा सकता है. राजा नल ने इस श्रीशनि एवं शनिभार्या स्तोत्र का नियमित रुप से पाठ किया और अपना छीना हुआ साम्राज्य पुन: पा लिया, इस तरह से उसके राज्य में राजलक्ष्मी ने फिर से कदम रखा.
स्तोत्र –
य: पुरा राज्यभ्रष्टाय नलाय प्रददो किल ।
स्वप्ने सौरि: स्वयं मन्त्रं सर्वकामफलप्रदम्।।1।।
क्रोडं नीलांजनप्रख्यं नीलजीमूत सन्निभम्।
छायामार्तण्ड-संभूतं नमस्यामि शनैश्चरम्।।2।।
ऊँ नमोSर्कपुत्रायशनैश्चराय नीहार वर्णांजननीलकाय ।
स्मृत्वा रहस्यं भुवि मानुषत्वे फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र ।।3।।
नमोSस्तु प्रेतराजाय कृष्ण वर्णाय ते नम: । शनैश्चराय क्रूराय सिद्धि बुद्धि प्रदायिने ।।4।।
य एभिर्नामभि: स्तौति तस्य तुष्टो भवाम्यहम्
मामकानां भयं तस्य स्वप्नेष्वपि न जायते ।।5।।
गार्गेय कौशिकस्यापि पिप्पलादो महामुनि: ।
शनैश्चर कृता पीड़ा न भवति कदाचन:।।6।।
क्रोडस्तु पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोSन्तको यम: ।
शौरि: शनैश्चरो मन्द: पिप्पलादेन संयुत:।।7।।
एतानि शनि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।
तस्य शौरे: कृता पीड़ा न भवति कदाचन ।।8।।
।।शनिभार्या नमामि-Shanibharya Namami।।
(शनि पत्नी के दस नाम-Ten Names Of Shani Wife)
ध्वजनी धामनी चैव कंकाली कलहप्रिया ।
क्लही कण्टकी चापि अजा महिषी तुरंगमा ।।9।।
नामानि शनि-भार्याया: नित्यं जपति य: पुमान्।
तस्य दु:खा: विनश्यन्ति सुखसौभाग्यं वर्द्धते ।।10।।
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है वह जीवन में सुख तथा शांति पाता है. शनि देव की पत्नी के नाम – ध्वजनी, धामनी, कंकाली, कलहप्रिया, कलही, कण्टकी, चापि, अजा, महिषी व तुरंगमा हैं. जो व्यक्ति शनिदेव जी की विस्तार से पूजा अर्चना नहीं कर पाता है वह शनिदेव के दस नामों के साथ शनि पत्नी के भी दस नामों का उच्चारण प्रतिदिन करे. सभी जानते हैं कि पत्नी के प्रसन्न होने पर पति भी खुश रहते हैं इसी प्रकार शनिदेव भी अपनी पत्नी के दस नामों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति पर कृपादृष्टि रखते हैं. ऎसे व्यक्ति के निकट ना तो दुख ही आता है और ना ही दरिद्रता ही पास फटकती है.
स्तोत्र –
य: पुरा राज्यभ्रष्टाय नलाय प्रददो किल ।
स्वप्ने सौरि: स्वयं मन्त्रं सर्वकामफलप्रदम्।।1।।
क्रोडं नीलांजनप्रख्यं नीलजीमूत सन्निभम्।
छायामार्तण्ड-संभूतं नमस्यामि शनैश्चरम्।।2।।
ऊँ नमोSर्कपुत्रायशनैश्चराय नीहार वर्णांजननीलकाय ।
स्मृत्वा रहस्यं भुवि मानुषत्वे फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र ।।3।।
नमोSस्तु प्रेतराजाय कृष्ण वर्णाय ते नम: । शनैश्चराय क्रूराय सिद्धि बुद्धि प्रदायिने ।।4।।
य एभिर्नामभि: स्तौति तस्य तुष्टो भवाम्यहम्
मामकानां भयं तस्य स्वप्नेष्वपि न जायते ।।5।।
गार्गेय कौशिकस्यापि पिप्पलादो महामुनि: ।
शनैश्चर कृता पीड़ा न भवति कदाचन:।।6।।
क्रोडस्तु पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोSन्तको यम: ।
शौरि: शनैश्चरो मन्द: पिप्पलादेन संयुत:।।7।।
एतानि शनि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।
तस्य शौरे: कृता पीड़ा न भवति कदाचन ।।8।।
।।शनिभार्या नमामि-Shanibharya Namami।।
(शनि पत्नी के दस नाम-Ten Names Of Shani Wife)
ध्वजनी धामनी चैव कंकाली कलहप्रिया ।
क्लही कण्टकी चापि अजा महिषी तुरंगमा ।।9।।
नामानि शनि-भार्याया: नित्यं जपति य: पुमान्।
तस्य दु:खा: विनश्यन्ति सुखसौभाग्यं वर्द्धते ।।10।।
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है वह जीवन में सुख तथा शांति पाता है. शनि देव की पत्नी के नाम – ध्वजनी, धामनी, कंकाली, कलहप्रिया, कलही, कण्टकी, चापि, अजा, महिषी व तुरंगमा हैं. जो व्यक्ति शनिदेव जी की विस्तार से पूजा अर्चना नहीं कर पाता है वह शनिदेव के दस नामों के साथ शनि पत्नी के भी दस नामों का उच्चारण प्रतिदिन करे. सभी जानते हैं कि पत्नी के प्रसन्न होने पर पति भी खुश रहते हैं इसी प्रकार शनिदेव भी अपनी पत्नी के दस नामों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति पर कृपादृष्टि रखते हैं. ऎसे व्यक्ति के निकट ना तो दुख ही आता है और ना ही दरिद्रता ही पास फटकती है.
No comments:
Post a Comment
Mantra-Tantra-Yantra Vigyan
https://mantra-tantra-yantra-science.blogspot.in/