धरती पर ही होता हैं स्वर्ग और नर्क
एक बार एक शिष्य को समझ नहीं आ रहा था कि स्वर्ग-नर्क मृत्यु के बाद ही प्राप्त होते हैं या जीते जी भी मिलते हैं. पूछने पर गुरुदेव उसे समझाने की बजे साथ लेकर एक शिकारी के यहाँ गयें! शिकारी कुछ पक्षियों को पकड़कर लाया और उन्हें काटने लगा. शिष्य शिकारी के इस कृत्य को देखकर ही घबरा गया. उसने गुरुदेव से कहा : गुरूजी! यहाँ से चलिए, यह तो नर्क हैं. गुरुदेव ने कहा : इस शिकारी ने कितने जीवो को मारा होगा इसे ज्ञात नहीं. लेकिन फिर भी इसके पास कुछ नहीं हैं. अतः इसके लिए तो यहाँ भी नर्क हैं और मृत्यु के बाद भी. फिर गुरुदेव शिष्य को एक वेश्या के यहाँ ले जाने लगे. यह देख शिष्य चिल्लाया, गुरूजी! आप मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं. गुरुदेव ने कहा : यहाँ के वैभव को देख. मनुष्य किस तरह अपना शरीर, शील और चरित्र बेचकर सुखी हो रहा हैं, पर शरीर का सौन्दर्य नाश्ता होते ही यहाँ कोई नहीं आता. इनके लिए संसार स्वर्ग की तरह हैं, पर अंत वही शिकारी के समान हैं. इसके पश्चात् गुरु और शिष्य एक गृहस्थ व्यक्ति के यहाँ गए. गृहस्थ परिश्रमी, संयमशील, नेक और ईमानदार था. इस कारण उसके पास कोई दुःख नहीं था. गुरुदेव ने कहा : यही वह व्यक्ति हैं जिसके लिए जीवित रहते हुए इस पृथ्वी पर स्वर्ग हैं और मृत्यु के उपरान्त भी स्वर्ग प्राप्त होगा. शिष्य को अच्छी तरह समझ आ गया और इस संसार में रहते हुए ही हमें कर्मों को भुगतना पड़ता हैं. कर्मों के फलस्वरूप ही स्वर्ग और नर्क की प्राप्ति होती हैं. किन्तु स्वर्ग-नर्क प्राप्ति मृत्यु के बाद ही नहीं, मनुष्य के जीवित रहते हुए भी हो जाती हैं. -मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान नवम्बर 2009 - पेज : 4. |
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