एक याचक कभी साधक नहीं बन सकता इसलिए किसी से कुछ न मांगें |
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान काय है
वशिष्ठ ने कात्यायनी से कहा : "यदि तुम्हें जीवन में आनंद प्राप्त करना हैं, सब्भी रोगों से मुक्त होना हैं, चिरयौवनमय बने रहना हैं और सिद्धाश्रम के मार्ग में पूर्णता प्राप्त करनी हैं तो तुम्हें मंत्र-तंत्र और यंत्र का समन्वय करना होगा!" और कात्यायनी ने वशिष्ठ को पति नहीं गुरु रूप में स्वीकार कर ऐसा किया और अपने जीवन को उच्चता पर पहुँचाया!
इसलिए जीवन में मंत्र-तंत्र-यंत्र का परस्पर सम्बन्ध हैं, इनके द्वारा ही जीवन ऊपर की और उठ सकता हैं! मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान का प्रकाशन ही इसलिए किया हैं.... कोई आवश्यकता नहीं थी, मगर आवश्यकता इस बात की थी कि इस समय सारा संसार भौतिक बंधनों में बंधा हुआ हैं, और बन्धनों में बंधने के कारन व्यक्ति अन्दर से छटपटाता रहता हैं, वह चाहता हैं मैं मुक्त हवा में साँस ले सकूँ, मैं कुछ आगे बढ़ सकूँ, मैं जीवन में बहुत कुछ कर सकूँ..... मगर इसके लिए कोई रास्ता नहीं हैं, उसको कोई समझाने वाला नहीं हैं!
ऐसी स्थिति में पत्रिका का प्रकाशन किया गया और इस पत्रिका में मंत्र-तंत्र और यंत्र तीनों का समन्वय किया गया हैं! इसमें उच्चकोटि के मंत्रों का चिंतन दिया गया हैं! यह पत्रिका केवल कागज के कोरे पन्ने नहीं हैं! यदि बाजार से कागजों का एक बण्डल लाया जायें, तो वह सौ रूपये में प्राप्त हो सकता हैं, मगर जब उन कागजों पर उच्चकोटि के मंत्र और साधना विधियां लिख दी जाती हैं, तो वह पुस्तक अमूल्य हो जाती हैं! ज्ञान को मूल्य के तराजू में नहीं तौला जा सकता, ज्ञान को इस बात से भी नहीं देखा जाता हैं कि इस पत्रिका का मूल्य पांच रूपये या पच्चीस रूपये हैं, ज्ञान का मूल्य तो अनन्त होता हैं!
इसलिए हमने इस श्रेष्ठतम पत्रिका का प्रकाशन किया! इसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को, पूर्वजों के साहित्य को, जो लुप्त होता जा रहा हैं, जो समाप्त होता जा रहा हैं, उसे सुरक्षित कर सकें, क्योंकि कुछ समय और बीत गया, तो हम इन मंत्रों के, तंत्रों के बारे में कुछ जान ही नहीं सकेंगे! उन सबको सुरक्षित रखने के लिए इस पत्रिका का प्रकाशन किया...... इसके पीछे कोई व्यापर की आकांक्षा और इच्छा नहीं हैं, इसके पीछे जीवन का कोई ऐसा चिंतन नहीं हैं कि इसके माध्यम से धनोपार्जन किया जायें, चिंतन तो इस बात के लिए हैं कि हम पूर्वजों की थाती को, पूर्वजों के ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
और पिछले कई वर्षों से इस पत्रिका का प्रकाशन इस बात का प्रमाण हैं कि आज भी समाज में चेतना हैं, जो इस प्रकार का ज्ञान चाहती हैं! अगर नहीं चाहती, तो पत्रिका कभी भी बंद हो चुकी होती! ऐसे व्यक्ति हैं जो इस प्रकार की साधनाओं के लिए लालायित हैं, उनको इस प्रकार की साधनाएं देने के लिए, वे समयानुसार किस प्रकार की साधनाएं करें , उनको मार्गदर्शन देने के लिए ही इस पत्रिका का प्रकाशन किया गया हैं!
और सही कहूँ तो यह पत्रिका नहीं कलयुग की श्रीमदभगवदगीता हैं, जिसका एक-एक पन्ना आने वाले समय के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर हैं, उच्चता तक ले जाने की सीढ़ी हैं!
-पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी.
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान.
जनवरी 2000, पेज 31.
6 Comments
thx 2 shrimaliji......
thx 2 shrimali ji....
book ka kya naam hai?
मुझे अष्ट यक्षिणी यंत्र चाहिए
मॅक्झिन सुरु कराना चाहते हे,
पता मिल सकेगा,
9422548042
मुझे पत्रिका मगाना है
पता व फोन नं. भेजने की कृपा करें।