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।। श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः ।।
अग्निपरीक्षा
सूर्य अस्ताचल की ओर अग्रसर था, किन्तु वेदना से भरपूर... उसके मन में छटपटाहट थी – मेरे जाने के बाद कौन इस धरा के अंधकार को दूर करेगा?
मन की बेचैनी जब बहुत अधिक बढ़ गई, तो उसने यह बात अपने निकटस्थ लोगों के सामने रखी, सभी मौन रह गए, क्योंकि वे जानते थे, कि हमारे अंदर इतनी क्षमता नहीं हैं, कि इस गहन अंधकार को दूर कर सकें।
थोड़ी देर प्रतीक्षा करते-करते सूर्य को हताशा होने लगी, उसने पुनः अपनी बात रखी – कल प्रातः जब मैं आऊंगा, तब तक कोई तो एक ऐसा व्यक्तित्व मेरे सामने आये, जो इस धरा के अंधकार को दूर कर सकें, क्या प्रातः से सायं तक किया गया मेरा अथक परिश्रम व्यर्थ हो जायेगा?
तभी एक नन्हा सा दीप खड़ा हुआ और बोला – आपको निराश और चिंतित होने की आवश्यकता नहीं हैं, मैं हूँ न! जब तक मेरे अंदर सामर्थ्य हैं तब तक, अपनी आखरी सांस तक इस अंधकार को दूर करूँगा ही।
-हाँ! यह अवश्य हैं कि मेरे अंदर आपके जितनी प्रचंडता, दुर्धर्षिता एवं तेजोमयता नहीं हैं, किन्तु आपको यह वचन देता हूँ, कि अंधकार का साम्राज्य इस धरा पर पूरी तरह से होने नहीं दूँगा।
-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
अक्टूबर 1998 : पृष्ठ 29.
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-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
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