संसार में प्रत्येक व्यक्ति सदैव यही कामना करता रहता है कि उसे मन फल मिले| उसे उसकी इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो| जो वह सोचता है कल्पना करता है, वह उसे मिल जाये| भगवान् से जब यह प्रार्थना करते है तो यही कहते हैं, कि हमें यह दे वह दे| प्रार्थना और भजनों में ऐसे भाव छुपे होते हैं, जिनमें इश्वर से बहुत कुछ मांगा ही जाता है| यह तो ठीक है कि कोई या आप इश्वर से कुछ मंगाते है; प्रार्थना करते हैं| लेकिन इसके साथ ही यदि आप उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करते और अपनी असफलताओं; गरीबी या परेशानियों के विषय में सोच-सोचकर इश्वर की मूर्ती के सामने रोते-गिडगिडाते हैं उससे कुछ होने वाला नहीं है| क्योंकि आपके मन में गरीबी के विचार भरे हैं, असफलता भरी है, आपके ह्रदय में परेशानियों के भाव भरे हैं और उस असफलता को आप किसी दैवी चमत्कार से दूर भगाना चाहते हैं| जो कभी संभव नहीं है|
आपके पास जो कुछ है, वह क्यों है? वह इसलिए तो हैं कि मन में उनके प्रति आकर्षण है| आप उन सब चीजों को चाहते हैं| जो आपके पास हैं| मन में जिन चीजों के प्रति आकर्षण होता है, उन्हें मनुष्य पा लेता है| किन्तु शर्त यह भी है कि वह मनुष्य उसी विषय पर सोचता है, उसके लिये प्रयास करता हो और आत्मविश्वास भी हो| जो वह पाना चाहता है उसके प्रति आकर्षण के साथ-साथ वह उसके बारे में गंभीरता से सोचता भी हो|
दृढ आत्मविश्वास और परिश्रम की शक्ति से आप भी सफलता को अपनी ओर खींच सकते हैं| ईश्वरीय प्रेरणाओं से आप शक्ति ले सकते हैं और अपनी अभिलाषाओं को पुरी कर सकते हैं|
आप अपने जीवन स्वप्न को पूरा करते की दिशा में प्रयास करें| उसे ईश्वरीय प्रेरणा मानकर आगे बढे|
-सदगुरुदेव
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