मोहिनी देवी का अवतार भगवान विष्णु जी ने लिया था !जब शंकर जी ने भ्स्मा सुर को किसी को सिर पर हाथ रख कर भस्म करने की शक्ति प्रदान की तो वोह शंकर जी को कहने लगा के इस वारिदान का कैसे यकीन करू के यह शक्ति मुझ में आ गई है !तो शंकर जी ने कहा के परीक्षण करके देख लो तो उस ने कहा इस वक़्त तो आप ही पास हैं !इस लिए आप पर ही परीक्षण कर के देखता हु शंकर जी समझ गए और वहाँ से भैंसे का रूप धारण कर आगे आगे भागने लगे और एक परबत में टकर मार अपना सिर परबत में छुपा लिया जो के नेपाल जा कर निकला जहां भगवान पशुपति नाथ जी का मंदिर है !और जहां टकर मार के सिर छुपाया उस जगह को केदारनाथ जी के नाम से पुजा जाता है जहां पीठ पुजा होती है !और जब शंकर जी की आँख में अपनी यह साथिति देख आँसू टपक गए तो उन आंसूयों से रुद्राक्ष बृक्ष की उत्पाती हुई तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी अवतार लिया और भस्म सुर से कहाँ अब तो यह मर चुके है चलो इस का सोग मना लेते है फिर मैं तुम से शादी कर लूँगा तो वैन दल कर दोनों हाथो को पहले जंगों पे फिर छाती और अंत में सिर पर मार कर पीटने लगे जैसे आज भी औरते पीटती है तो सियापा (पीटना )वहाँ से शुरू हुया !जब भसमासुर का हाथ सिर पीआर गया तो भस्म हो गया इस तरहा इस अवतार में भगवान विष्णु जी ने शंकर जी को संकट से निकाला !
जब स्मून्दर मंथन के वक्त सूरो और असुरो में जंग होने लगी अमृत पाने के लिए तो भी भगवान इस रूप में आवृत हुए और अमृत का बंटन किया इस लिए मोहिनी एक श्रेष्ट विधा है !इस की ताव तो भगवान शंकर जी भी नहीं सहन कर पाये थे जब श्री भगवान शंकर जी ने मोहिनी रूप देखने की ईशा भगवान विष्णु जी से की तो भगवान ने सुंदर मोहिनी रूप धारा तो शंकर जी अपने आपको रूक नहीं पाये बीर्य पृथ्वी पे गिर गया !पृथ्वी उस की जलन से जलने लगी उस वक़्त अंजना माँ को एक ऋषि का श्राप मिला था के तुम कुमारी माँ बनोगी तो माँ अंजना ने अपने आपको एक बड़े से मटके में बंद कर लिया जिस में उपर एक छेद्ध था तो पवन देव ने उस वीर्य को उठा के व्हा ज्ञ तो आवाज की माँ अंजना उस छेद्ध में कान लगा कर सुनने लगी तो पवन देव ने उस वीर्य को उस छेद्ध के जरिए प्रवेश क्र दिया जिस से हनुमान जी का जन्म हुया और जेबी उन हाथो को गोबर में साफ किया तो उस में गुरु गोरख नाथ जी की उतपती बताई जाती है !यह कथा मैंने कुश सन्यासी लोगो से सुनी थी जो नाथ संपर्दय के थे ! इस लिए मोहनी अवतार श्रेष्ट है इस की साधना भी श्रेष्ठ है
जब स्मून्दर मंथन के वक्त सूरो और असुरो में जंग होने लगी अमृत पाने के लिए तो भी भगवान इस रूप में आवृत हुए और अमृत का बंटन किया इस लिए मोहिनी एक श्रेष्ट विधा है !इस की ताव तो भगवान शंकर जी भी नहीं सहन कर पाये थे जब श्री भगवान शंकर जी ने मोहिनी रूप देखने की ईशा भगवान विष्णु जी से की तो भगवान ने सुंदर मोहिनी रूप धारा तो शंकर जी अपने आपको रूक नहीं पाये बीर्य पृथ्वी पे गिर गया !पृथ्वी उस की जलन से जलने लगी उस वक़्त अंजना माँ को एक ऋषि का श्राप मिला था के तुम कुमारी माँ बनोगी तो माँ अंजना ने अपने आपको एक बड़े से मटके में बंद कर लिया जिस में उपर एक छेद्ध था तो पवन देव ने उस वीर्य को उठा के व्हा ज्ञ तो आवाज की माँ अंजना उस छेद्ध में कान लगा कर सुनने लगी तो पवन देव ने उस वीर्य को उस छेद्ध के जरिए प्रवेश क्र दिया जिस से हनुमान जी का जन्म हुया और जेबी उन हाथो को गोबर में साफ किया तो उस में गुरु गोरख नाथ जी की उतपती बताई जाती है !यह कथा मैंने कुश सन्यासी लोगो से सुनी थी जो नाथ संपर्दय के थे ! इस लिए मोहनी अवतार श्रेष्ट है इस की साधना भी श्रेष्ठ है
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