Thursday, December 22, 2011

34 Dedication Adilok visit Loca | समर्पण –34 लोका अधिलोक यात्रा

समर्पण –34 लोका अधिलोक यात्रा –
अब तक किताबों में पड़ा था के इस पृथ्वी के इलावा ब्रह्मांड में और भी लोक है !इंसान बिना देखे कभी यकीन नहीं कर सकता 1996 में मैं जब चंडीगड़ था !पूरा स्म्य साधना में गुजरता था सद्गुरुदेव की विशेष कृपा ही थी उनकी तरफ से बराबर दिशा निर्देश मिल जाते थे !एक दिन उनहो ने एक दिव्य मंत्र दिया और कहा इस मंत्र का जप लाल वस्त्र औड कर करो मैंने निहिचित समय पे मंत्र जप शुरू किया शुरू में शरीर में काफी गर्मी बढ़ गई फिर एक दम से शरीर सुन सा हो गया जैसे समाधि में होता है और पता ही नहीं चला ध्यान कभ ब्रह्मांड को चीरता हुया मेरा शरीर
(सूक्षम शरीर ) एक महल के एक बहुत बड़े दरवाजे के आगे पहुँच गया उस किले नुमा दरवाजे में परवेश करने ही वाला था और व्हा के दो पहरोदारों ने मुझे पकड़ लिया उन के हाथो में दो भाले से थे और वस्त्रो में राजसी लग रहे थे सिर पे लाल रंग अधिकता लिए हुए मुकट से थे जैसे किसी राजा के सैनिक हो और कहा परवेश किए जा रहे हो दोनों ने मुझे पकड़ लिया तभी मैंने सद्गुरु जी को याद किया और सद्गुरु जी उसी वक़्त प्रकट हुए और उन्हे मुझे छोडने को कहा वोह मुझे छोड़ कर एक तरफ हो गए और गुरु जी ने मुझे महल के अंदर परवेश करने का इशारा किया और खुद अधृष्ट हो गए मैंने परवेश किया और देखा बहुत ही भव्य महल था मणियो से प्रकाश निकल कर महल को रोशन कर रहा था और आगे बहुत बड़ा हाल था जिस में एक तरफ बैठने के लिए तख्त से थे और चारो और फूलो के गमले से रखे थे जो अजीब किसम के थे तभी सहमने से कुश लोग आते दिखाई दिये और उनहो ने मेरा स्वागत किया और मुझे एक आसन पे बैठाया और तभी एक राजा जैसा वियाकती आता दिखाई दिया उसने भी मुझे बहुत स्तीकार दिया और वहाँ बहुत सी बाते की और कई विषों पे चर्चा चलती रही और फिर मैंने सहमने बैठे एक ऋषि जैसे वियक्ति से पूछा यह कोण सा लोक है तो उसने बताया तुम इस वक़्त सूर्य लोक की भास्कर नगरी में हो और यह भास्कर नगरी के राजा नेत्र सैन का महल है !और मुझे मुझे यह रहस्य पहली वार अनुभव हुया के गुरु जी इस पृथ्वी लोक के इलावा अन्य लोगो की चिंता भी करते है और अन्य लोगो में भी उनके शिष्य हैं ! जब आँख खुली तो तीन घंटे बीत गए थे !फिर एक दिन नेत्र सैन जी मुझे मिलने आए और काफी चिंतक लग रहे थे !क्यू के निकट भविष्य में सूर्य ग्रहण था जिस का केंद्र भास्कर नगरी था मैंने उन्हे काफी आश्वाश्न दिया सूर्य ग्रहण के वक़्त वहाँ फिर जाना हुया और पहली वार देखा गुरु जी इस ग्रह के इलावा और लोगो में भी साधना शिवर आयोजन करते थे और व्हा के शिवर जहां से बहुत उच कोटी के थे !मुझे सद्गुरु जी की कृपा से वहाँ भाग लेने का अवसर मिला यह बाते भले ही पड़ने में अटपटी लगे लेकिन मैं उस रहस्य से वाकिव हो गया था के मुझे झन भेजने के पीछे सद्गुरु जी का क्या प्रयोजन था उस ग्रह की गरिमा और साधना अनुभव मैंने आज भी सँजो कर रखे है जो साधारण साधक को विस्मिक करने वाले है !मानो तो सभ कुश है नहीं तो कुश भी नहीं सरधा और विश्वश साधक को एक नए रहस्य से जोड़ देते है जिस पे यकीन करना आसान नहीं होता पर सत्य तो सत्य है जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता !क्र्शम !!


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