Saturday, November 17, 2012

You can uplift of India - Part 2, भारत का उत्थान तुम कर सकते हो



भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ३

अब उन्होने जिंदगी भर पाप किया तो स्वर्गवासी हुए या नरकवासी हुए हम कह नही सकते। हम अपने आपमें नहीं कह सकते कि राम राज्य कैसा था, द्वापर युग कैसा था? हां, कृष्ण आपने आप मे सुर्य थे, वह युग कैसा था यह आपको बता रहा हूँ। युग आज भी वैसा ही है। युग नहीं बदल सकता, आदमी बदल सकता है। आदमी ज्ञान ले सकता है।

कृष्ण ने अकेले ने सब करके दिखा दिया। आप कल्पना करें एक तरफ कौरवों कि अक्षौहिणी सेना खडी है, एक तरफ पांडव खडे है बीच मे कृष्ण खडे है और उस अकेले व्यक्ति ने निश्चय कर लिया कि मैं कोई शत्र नहीं उठाऊंगा और उन पांच लोगों के सहारे पर कुरुक्षेत्र कि लड़ाई जित लिया पुरे महाभारत के युद्घ को जित लिया।

और आपके पास एक गुरू बैठा है और इस पुरे संसार को आप जित नहीं सकते तो फिर आप कमजोर हैं, मैं कमजोर नहीं हूं, फिर आपमें न्यूनता है मुझमें न्यूनता नही है। यह मेरी बात थोड़ी कड़वी हो सकती है।

मै भी अपने पिता जी कि प्रशंसा करता रहता हूं अपने दादाजी कि प्रशंसा करता रहता हूं कि बहुत महान थे, हम ऋषियों के परम्परा कि प्रशंसा ही करेंगे क्योंकि जो मर गए उनकी प्रशंसा ही कि जति है, उनके अवगुणों को देखा नही जाता। मर गए तो मर गए बस, सतयुग चला गया, द्वापर चला गया। मगर यह षड्यंत्र, यह कुचक्र, यह धूर्त यह मक्कारी, यह चल, यह झूठ, यह कपट, यह व्यभिचार। यह असत्य उस जमाने भी उतने ही थे जितने कि आज हैं। मगर उस जमाने में भी साधनाओं में सिद्धि होती थी क्योंकि उनके पास गुरू थे। गुरुओं को सम्मान था, राजा के पुत्र होते हुए भी दशरथ ने अपने पुत्रों को विश्वामित्र के पास भेज दिया कि तुम जाओ और धनुर्विद्या सीखो, तुम्हे वही जाना पड़ेगा। कहां ठेठ मथुरा, उत्तर प्रदेश में और कहां ठेठ मध्य प्रदेश वहां कृष्ण को भेजा क्योंकि उच्च कोटी का ब्राह्मण संदिपन वहां था। बीच मे क्या कोई उच्च कोटी का साधू सन्यासी था ही नही? क्यों नही उनके पास भेजा?

उन्होने जाना कि वह व्यक्ति अपने आपमें अद्वितीय ज्ञान युक्त है, उसके पास भेजना ही पड़ेगा। वो ट्यूशन पर गुरू को रख सकते थे। विश्वामित्र राजा कि प्रजा है, दशरथ कह सकते थे कि आपको चार किलो धान ज्यादा देंगे आप यहाँ आकर पढाइए। ज्ञान ऐसे प्राप्त नहीं हो सकता। ज्ञान के लिए फिर आपको शिष्य बनना पड़ेगा, आपको गुरू के पास पहुंचना पडेगा, आपको गुरू के सामने याचना करनी पडेगी और हम साधना में सिद्धि इसलिये नहीं प्राप्त कर रहे हैं, क्योंकि हम कमजोर महसूस करने लग गए हैं, कमजोरी आपके मन मे, जीवन में आ गयी है, कमजोर आप हैं नहीं।

जब दक्ष ने महादेव को यज्ञ में नहीं बुलाया तो .... महादेव तो अपने आप मे बहुत भोले हैं।महोक्ष खटवांग परशु फलिण चेती यः ......

श्मशान मे बैठें रहते हैं और कही कोई कमाने कि चिन्ता नही है, ना नौकरी करते है, न व्यापार करते हैं, कुछ करते ही नहीं ड्यूटी पर भी नही जाते, कपडे कि दुकान खोलते ही नही बस सांप लिपटाए बैठे हैं मस्ती के साथ में और उसके बाद भी जगदम्बा, जो लक्ष्मी का अवतार है, उनके घर में हैं और धन-धान्य कि कमी है ही नहीं। निश्चिन्तता है। निश्चिंत है इसलिये देवता नहीं कहलाए वो, महादेव कहलाए।

उन्होंने साधनाएं कि। महादेव ने भी कि, ब्रह्म ने भी कि, विष्णु ने भी कि। इंद्र ने भी कि। बिना साधनाओं के जीवन में सफ़लता प्राप्त नहीं हो सकती। मगर साधना मे सफ़लता तब प्राप्त हो सकती है जब आपकी कमजोरी, आपकी दुर्बलता, आपका भय, आपकी चिंता, आपका तनाव दूर हो और तनाव मेरे कहने से दूर नहीं हो पाएगा। मैं यहाँ से बोल कर चले जाऊं तो उससे तनाव नहीं मिट सकता। मैं कहूं कि अब तकलीफ नहीं आये तो उससे तकलीफ नहीं मिट सकती।

मैं बता रहां हूं कि वास्तविकता यह है। आप ज्योंही जायेंगे घर में तो तनाव तकलीफ, बाधाएं, कठिनाईयां वे ज्यों कि त्यों आपके सामने खडी होंगी। उससे छुटकारा पाएंगे तो साधना में बैठ पाएंगे। तो गुरू कि ड्यूटी है, गुरू का धर्म है कि उन साधनाओं को प्राप्त करने के लिए शिष्यों को निर्भय बना दिया जाए, जो कमजोर उनके जीवन के क्षण है जो मन मे कमजोरी है या दुर्बलता है उसे दूर कर दिया जाए। और क्षमता के साथ ही उन दुर्बलताओं को दूर किया जा सकता है, उन पर प्रहार करके ही विजय प्राप्त कि जा सकती है री रियाकर या प्रार्थना करके नहीं। और हमारे तो आराध्य महादेव हैं जो प्रखर व्यक्तित्व के स्वामी हैं जो प्रहार करने से विध्वंस करने से कभी हिचकते ही नहीं।

विध्वंसक बन करके, क्रोध मे उन्मत्त हो करके महादेव दक्ष के यज्ञ में गए, अपने श्वसुर के यज्ञ मे गए जहां ब्राह्मण, योगी, यति, सन्यासी आहुतियां दे रहे थे, वेद, मंत्र बोल रहे थे। उन्होंने एक लात मारी और यज्ञ को विध्वंस कर दिया, वेदी को तोड़ दिया अग्नि को बुझा दिया।

क्योंकि उससे पहले सती ने सोचा कि सब देवताओं यज्ञ में बुलाया गया, मेरे पति को नहीं बुलाया गया, इससे बड़ा क्या अपमान हो सकता है तो वह खुद यज्ञ कुण्ड में कूद गयी। आधी जली तो बाहर निकाला गया।

और भगवान् शिव .....

भगवान तो वह होता है जिसमे ज्ञान हो। भगवान अपने, आपमें कोई अजूबा नहीं है कि जो नई चीज पैदा हुआ वह भगवान है। भगवान तो आप सब हैं। यह शंकराचार्य स्पष्ट कर चुके हैं, और प्रत्येक मनुष्य राक्षस है, हम क्या हैं यह आपको चिन्तन करना है।


भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ४

और भगवान शिव सती कि अधजली लाश को अपने कंधे पर ले कर क्रोध कि अवस्था में पुरे भारत वर्ष में घूमे क्रोध शांत नहीं हुआ। इतना बड़ा अपमान कि मेरी पत्नी जल गई और मैं कुछ नही कर पाया और क्रोध की चरम सीमा और उस चरम सीमा में दक्ष जैसे वरदान प्राप्त और तांत्रिक व्यक्ति का भी वध किया। ऐसे व्यक्ति का वध किया जाए तो कैसे किया जाए। तो उन्होने अपनी जटा में से बहुत उत्तेजना युक्त मंत्र के मध्यम से एक रचना कि जो कि पूर्ण जगदम्बा से भी सौ गुना ज्यादा क्षमतावान थी, जो साकार प्रतिमा थी जो कि सारी परेशानियों बाधाओं, अड़चन कठिनाइयों और शत्रुओं पर एकदम से प्रहार कर सके, समाप्त कर सके। वह चाहे शत्रु हो, चाहे बाधा हो, चाहे मुकदमेबाजी हो, चाहे असफलताएं हो, चाहे घर मे कलह हो - ये सब बाधाएं है। पैसे नही आ रहे है, व्यापार नहीं हो रहा हैं , ये सब बाधाएं है। ये समस्याएं हैं, परेशानीयां हैं अड़चनें हैं।

इनको समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने एक रचना की जो की जगदम्बा से भी उंची, क्षमतावान थी। मुझसे भी उंचे गुरू हैं, मुझसे भू उंचे विद्वान होंगे। मैं यह कहकर जगदम्बा के प्रति न्यूनता नहीं दिखा रहा हूं। मगर भगवान शिव ने उस जटा में से ....

और जटा कैसी? भागीरथ ने जब गंगा का प्रवाह किया और उसे भगवान शिव ने अपनी जटा में लिया तो डेढ़ साल तक उन जटाओं मे गंगा घूमती रही, उसे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं मिला। इतनी घनी जटा! भागीरथ ने प्रणाम किया किया- महाराज! अगर गंगा नदी आपकी जटाओं मे घूमती रही तो रास्ता मिलेगा ही नहीं उसको। इतनी घनीभूत जटा है। कृपा करके गंगा को धरती पर उतारे तो उन देवताओं और लोगों का कल्याण होगा।

और मंत्रों के माध्यम से उस देव गंगा को पृथ्वी पर उतारा। ऐसे विकराल, विध्वंसक महादेव! हमने उनका सौम्य रुप देखा है की आंखें बंद किए श्मशान में बैठे हुए हैं, सांप की मालाएं पहने हुए हैं, ऊपर से गंगा प्रवाहित हो रही है और ध्यानस्थ बैठे हैं।

आपने वह रुप देखा है क्रोधमय रुप नहीं देखा, ज्वालामय रुप नहीं देखा, आखों से बरसते अंगारे नहीं देखे। देखे इसलिये नहीं की किसी ने दिखाया नहीं आपको। महादेव इसलिये नहीं बने की शांत बैठे हैं..... आप हाइएस्ट पोस्ट पर पहुंचेंगे तो हाथ जोड़-जोड़ कर नहीं पहुंचेंगे, ज्ञान को गिडगिडाते हुए नही प्राप्त कर पाएंगे। आपमें ताक़त होगी, क्षमता होगी तो ऐसा कर पाएंगे।

और महादेव ने उस जटा से जिसको निकला उसे कृत्या कहते हैं। उस कृत्या ने दक्ष का सिर काट दिया वह तंत्र का उच्च कोटि का विद्वान था, दक्ष के समान कोई विद्वान नहीं था उसे सभी तंत्र का ज्ञान था जिसको यह वरदान था की तुम मर ही नहीं सकते। उस कृत्या ने एक क्षण में सिर काटकर बकरे का सिर लगाया दिया, उसके ऊपर और सारे ऋषि मुनियों को उखाड़-उखाड़ कर फ़ेंक दिया उस कृत्या ने। एक भी ऋषि योग्य नहीं था। सती जल रही थी और वे चुपचाप बैठ-बैठे देखते रहे।

भगवान् शिव उस क्रोध कि अवस्था में सती के शरीर को लेकर घूमते रहे। क्रोध में आदमी कुछ भी कर सकता है, और क्रोध होना ही चाहिऐ, क्रोध नहीं है तो मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। ऐसा नहीं हो कि शत्रु हमारे सामने खडे हो और हम गिडगिडाएं कि भईया तू मत कर ऐसा। ऐसा हो ही नहीं सकता। वह हाथ ऊपर उंचा करे उससे पहले सात झापड़ उसे पड़ जानी चाहिए। बाद में देखा जाएगा।

मैं तुम्हे गिडगीडाने वाला नहीं बनाना चाहता, मैं बना ही नहीं सकता। बन भी नहीं सकता, जब मैं खुद बना ही नहीं तो तुम्हे कैसे बनाउंगा। पहले हाथ उठाऊंगा नहीं, और हाथ उसका उठा और मेरे गाल तक पहुंचे उससे पहले छः थप्पड़ मार कर निचे गिरा दूंगा, आज भी इतनी ताक़त क्षमता रखता हूँ, आज से सौ साल बाद भी इतनी ही ताक़त, क्षमता रखूंगा आपके सामने।

उस कृत्या ने समस्त ऋषि मुनियों को लात मार मारकर फ़ेंक दिया। आज हम उनको ऋषि कहते हैं, उस समय तो वे मनुष्य थे आप जैसे। आप भी ऋषि हैं मगर आप गलत काम करेंगे त लात मारकर फेकेंगे ही। भगवान् शिव ने कहा - यह तुमने क्या किया? यह यज्ञ कर रहे थे तुम एक औरत उसमें जल गई और आप बैठे-बैठे रह गए? तुममे दक्ष को समझाने कि क्षमता नहीं रह गई।

और भगवान शिव उस क्रोध कि अवस्था मे उस सती के शव को कंधे पर रख कर जहां-जहां पुरे भारत वर्ष मे घूमे, जहां-जहां गल गल कर जो अंग गिरा वह शक्तिपीठ कहलाए। और ५२ स्थानों पर वह शरीर गिरा, हाथ कही गिरा, कहीँ सिर गिरा, कहीँ पांव गिरा, कहीँ और कोई आंग गिरा। जीतनी चीजें गिरी ५२ जगहों पर गिरी और वे शक्ति पीठ कहलाए।

आज भारतवर्ष में कहते हैं शक्ति के जो अंग गिरे, वहां जो पीठ बनी, चेतना बनी, मंत्र बने, स्थान बने वे शक्ति पीठ कहलाए। मैं बात यह कह रहा था कि इतने ऋषियों, मुनियों को इतने उच्चकोटि के ज्ञान को, इतने तंत्र के विद्वानों को जो अपनी ठोकरों से मार दे और विध्वंस कर दे। सब कुछ वह क्या चीज थी - वह कृत्या थी और कृत्या से वैताल पैदा हुआ। वैताल जिसने विक्रमादित्य के काल में एक अदभूत, अनिर्वचनीय कथन किया कि कोई भी काम जिंदगी में असफ़ल नहीं हो सकता, संभव ही नहीं है। बम तो एक बहूत मामूली चीज है बम का प्रहार हमारा कुछ नहीं बिगाड सकता। हमें पहले ही मालूम पड़ जायेगा कि यह आदमी बम फेंकने वाला है, हम पहले ही उसका संहार कर देंगे, समाप्त कर देंगे, अगर कृत्या हमारे पास सिद्ध होगी तो।

और हमारे पास इंटैलीजैंस है, हमारे पास पुलिस है हमारे पास राँ है, हमारे पास और भी है, फिर भी बम विस्फोट होते जा रहे हैं। लाखों लोग मरते जा रहे है, बेकसूर लोग मरते जा रहे हैं। जिन्होंने कोई नुकसान किया ही नहीं बेचारों ने। आप सोचिए कि घर मे एक मृत्यु हो जाए तो घर कि क्या हालत होती है। एक जवान बेटा मर जाए तो पुरा जीवन दुःखदायी हो जाता है। यहां तो घर के पांच-पांच लोग मर जाते है और कानों पर जूं नहीं रेंगती। भारत सरकार कोशिश कर रही है इसमे कोई दो राय नहीं है, पुरा प्रयत्न कर रही है इसमे भी दो राय नहीं है मगर प्रहारक इतने बन गए है कि इस समय विज्ञान कुछ नहीं कर पा रहा है।

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