Friday, April 6, 2018

need for a master in mantra siddhi मंत्र सिद्धि में गुरु की आवश्यकता क्यों होती है ?



मंत्र सिद्धि में गुरु की आवश्यकता क्यों होती है ?
मंत्र सिद्धि के लिए साधक को गुरु की नितान्त आवश्यकता होती है | इसलिए साधक अपने लिए सामर्थ्यवान गुरु की खोज करता है और चयन करता है | गुरु भी शिष्य की सुपात्रता से प्रभावित होने के उपरान्त ही अपना शिष्य स्वीकार करता है | जब गुरु साधक को अपना शिष्य बनाता है तभी वह शिष्य को दीक्षित करता है | मंत्र की सिद्धि और शक्ति की दीक्षा देता है | गुरु अपने शिष्य को मंत्र की दीक्षा शीघ्र भी दे सकता है और देर से भी | वह कब देगा यह नहीं कहा जा सकता है | वह शिष्य को यह समझकर कि यह दीक्षा देने योग्य हो गया है, इसे दीक्षा देना निरर्थक सिद्ध नहीं होगा, यह जानकर उसे उचित समय पर दीक्षा देता है | यह गुरु की इच्छा पर निर्भर करता है |
गुरु दीक्षा प्राप्त होने के बाद साधक को अपनी साधना का मार्ग सरल व सुगम लगने लग जाता है | उसके अतिरिक्त ज्ञान का विकास हो जाता है जिससे गुरु की शक्ति रूपी दीक्षा से साधक की शारीरिक व मानसिक अशुद्धियाँ स्वयमेव विलुप्त हो जाती है | क्योंकि दीक्षा एक प्रकार से शक्ति रूप व तेजपुंज होता है इसलिए गुरु की दीक्षा को हमारे भारतीय संस्कृति में एक अमूल्य व श्रेष्ठ शक्तिदान कहा गया है |
गुरु की महानता , श्रेष्ठता सर्वोपरि व निर्विवाद है | शास्त्र में बड़े -बड़े ऋषियों मुनियों द्वारा गुरु को ईश्वर तुल्य ही नहीं अपितु उससे भी महान कहा गया है | ऐसे ऐसे महान गुरुओं का इतिहास गौरवशाली व गरिमापूर्ण है जो वास्तव में ही साधक के लिए ईश्वर से भी बढ़कर सिद्ध हुए है और होते रहेंगे | भगवान राम और कृष्ण ने महर्षि विश्वामित्र , गुरु वशिष्ठ व संदीपन जैसे गुरुओं की शिष्यता ग्रहण कर गुरु की श्रेष्ठता को प्रमाणित किया है |
कबीर दास जी ने तो गुरु को महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि : –
गुरु गोबिंद दोउ खड़े , काको लागू पाँव |
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय ||
अर्थात कबीर दास जी गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते है कि मेरे समक्ष गुरु और गोविन्द अर्थात भगवान दोनों ही खड़े है | परन्तु समझ में नहीं आता कि पहले मै किसको प्रणाम करूँ | फिर गुरु की श्रेष्ठता बताते हुए स्वयं ही उत्तर देते है कि हे गुरुवर आप ही श्रेष्ठ व पूज्यनीय है क्योंकि आपने ही तो हमें ईश्वर प्राप्ति का मार्ग व ईश्वर का ज्ञान कराया है | अन्यथा मै तो ईश्वर के सम्बन्ध में बिल्कुल ही अनभिज्ञ था कोरा कागज था | इसलिए गुरु को ही पहले प्रणाम करना चाहिए फिर ईश्वर को |
कबीर दास जी कहते है की यदि ईश्वर रूठ जाये तो गुरु की शरण प्राप्त हो जाती है परन्तु यदि गुरु रूठ जाये तो कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती | इस प्रकार कबीर ने गुरु की श्रेष्ठता का वर्णन किया है |

right method of chanting chanting during mantra siddhi मंत्र सिद्धि के समय मंत्र जप की सही विधि | मंत्र साधना के नियम



मंत्र सिद्धि के समय मंत्र जप की सही विधि | मंत्र साधना के नियम
शास्त्रों के अनुसार मंत्र उच्चारण द्वारा देव आराधना शीघ्र फलदायी है | मंत्रों में साक्षात् देव का वास होता है | हिन्दू सभ्यता में प्राचीन काल से ही मंत्र द्वारा देव आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है | जीवन में आये घोर से घोर संकंट को भी मंत्र साधना द्वारा दूर किया जा सकता है | किन्तु इसके लिए जरूरी होता है की मंत्र जप कठोर संकल्प और द्रढ़ विश्वास के साथ किये जाये |
नियमित मंत्र जप से मनुष्य आत्मिक और भौतिक सुख को प्राप्त कर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है | असाध्य से असाध्य रोग के निवारण के लिए , धन-लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए , व्यवसाय में उन्नति के लिए , परिवार में सुख-शांति बनाये रखने के, शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए, इन सब के अतिरिक्त जीवन में आये किसी भी संकट के निवारण के लिए मंत्र जप द्वारा देव आराधना विशेष रूप से फलदायी है |
हमारे धर्म शास्त्रों में सभी देवी-देवताओं के मन्त्रों का अलग -अलग और विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है | हमारे वेद-शास्त्रों में वर्णित मन्त्रों को वैदिक मंत्र की संज्ञा भी दी गयी है | सभी वैदिक मंत्रो के स्पष्ट अर्थ होते है इसलिए यह जरुरी है कि किसी भी मंत्र का जप करते समय उसके स्पष्ट अर्थ को ध्यान में रखा जाये |
मंत्र जप की सही विधि : –
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप की विधि सबसे अधिक महत्व रखती है | मंत्र सिद्धि में मंत्र का जप करते समय कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए अन्यथा ये छोटी-छोटी त्रुटियाँ आपको आपके लक्ष्य से दूर कर सकती है | तो आइये जानते है किसी भी मन्त्र को सिद्ध करते समय मन्त्र जप की सही विधि के सम्बंधित कुछ नियम :-
बिना गुरु के मंत्र सिद्ध करना बहुत कठिन है | इसलिए, मंत्र सिद्ध करने से पहले गुरु धारण करना अनिवार्य है |
कठोर संकल्प लेकर, मन में द्रढ़ निश्चय के भाव के साथ और स्वयं को आत्मविश्वास से परिपूर्ण कर मंत्र साधना (सिद्धि) करें | आप जिस भी कार्य सिद्धि हेतु मंत्र साधना कर रहे है वह अवश्य ही पूर्ण होगा ऐसे भाव सैदव अपने मन में बनाये रखे |
मंत्र सिद्धि के समय मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिए | मंत्र का उच्चारण शुरू में धीमे स्वर में बोलकर, बाद में सिर्फ होठों को हिलाकर जिससे की मंत्र की आवाज आपके कानों तक ही पहुंचे | और कुछ दिन बाद मंत्र का उच्चारण सिर्फ मन ही मन में करना चाहिए | मुख से बिना बोले मन ही मन मंत्र का उच्चारण करना सबसे अधिक फल देने वाला माना गया है |
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप के लिए एक निश्चित समय का चुनाव कर प्रतिदिन उसी समय पर मंत्र का जप करें | सुबह सूर्योदय से पहले और संध्या काल का समय मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ है | किन्तु कुछ साधनाएँ ऐसी भी है जिनमें सिद्धियाँ पाने के लिए मंत्र जप रात्रि काल में किये जाते है |
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप के समय साधक का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए |(कुछ साधनायो में दक्षिण दिशा की और मुख करके साधना की जाती है )
प्रथम दिन ही मंत्र जप की संख्या निश्चित कर प्रतिदिन उतने ही मंत्र के जप करने चाहिए | कभी कम या कभी अधिक ऐसा कदापि न करें | आप चाहे तो मंत्र जप की संख्या बढ़ा सकते है किन्तु कम कभी न करें |
मंत्र जप करते समय माला को हमेशा छिपाकर रखे | इसके लिए आप माला को गोमुखी में रखकर मंत्र जप करें | | माला पूरी होने पर माला के सुमेरु को भूलकर भी पार नहीं करना चाहिए | वहीँ से ही माला को घुमा देना चाहिए |
मंत्र सिद्धि में मंत्र जप के समय माला हाथ से छूटनी नहीं चाहिए |
मंत्र सिद्ध करने के काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें और वाणी में मधुरता लाये | इन दिनों में भूलकर भी अपशब्द का प्रयोग न करें |

Going from your constellation, about your illness अपने नक्षत्र से जाने अपनी बीमारी के बारे में

*अपने नक्षत्र से जाने अपनी बीमारी के बारे में ..*
*आप की कुंडली में नक्षत्र के अनुसार बीमारी*
*अश्विनी नक्षत्र :*जातक को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट।
*उपाय :*दान-पुण्य, दीन-दु:खियों की सेवा से लाभ होता है।
*भरणी नक्षत्र :*जातक को शीत के कारण कंपन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्यक्षमता का अभाव।
*उपाय :*गरीबों की सेवा करें, लाभ होगा।
*कृतिका नक्षत्र :*जातक आंखों संबंधित बीमारी, चक्कर आना, जलन, निद्रा भंग, गठिया घुटने का दर्द, हृदय रोग, घुस्सा आदि।
*उपाय :*मंत्र जप, हवन से लाभ।
*रोहिणी नक्षत्र :*ज्वर, सिर या बगल में दर्द, चित्त में अधीरता।
*उपाय :*काला व लाल धागा हाथ में बांधने से मन को शांति मिलती है।
*मृगशिरा नक्षत्र :*जातक को जुकाम, खांसी, नजला से कष्ट।
*उपाय :*पूर्णिमा का व्रत करें, लाभ होगा।
*आर्द्रा नक्षत्र :*जातक को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, आधासीसी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा।
*उपाय :*भगवान शिव की आराधना करें, सोमवार का व्रत करें, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधें, लाभ होगा।
*पुनर्वसु नक्षत्र :*जातक को सिर या कमर में दर्द से कष्ट।
*उपाय :*रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक के पौधे की जड़ अपनी भुजा पर बांधने से लाभ होगा।
*पुष्प नक्षत्र :*जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द व परेशानी होती है।
*उपाय :*कुशा की जड़ भुजा में बांधने तथा पुष्प नक्षत्र में दान-पुण्य करने से लाभ होता है।
*आश्लेषा नक्षत्र :*जातक की दुर्बल देह प्राय: रोगग्रस्त बनी रहती है। देह के सभी अंगों में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदूषण के कारण कष्ट।
*उपाय :*नागपंचमी का पूजन करें। बड़ की जड़ बांधने से लाभ होता है।
*मघा नक्षत्र :*जातक को आधासीसी या अर्द्धांग पीड़ा, भूत-पिशाच से बाधा।
*उपाय :*कुष्ठ रोगी की सेवा करें। गरीबों को मिष्ठान्न खिलाएं।
*पूर्व फाल्गुनी :*जातक को बुखार, खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट।
*उपाय :*पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। नवरात्रों में देवी मां की उपासना करें।
*उत्तराफाल्गुनी :*जातक को ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकड़न।
*उपाय :*पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। ब्राह्मण को भोजन कराएं।
*हस्त नक्षत्र :*जातक को पेटदर्द, पेट में अफारा, पसीने से दुर्गंध, बदन में वात पीड़ा आदि।
*उपाय :*आक या जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा।
*चित्रा नक्षत्र :*जातक जटिल या विषम रोगों से कष्ट पाता है। रोग का कारण बहुधा समझ पाना कठिन होता है। फोड़े-फुंसी, सूजन या चोट से कष्ट होता है।
*उपाय :*असगंध की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होता है। तिल, चावल व जौ से हवन करें।
*स्वाति नक्षत्र :*वात पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकड़न से कष्ट।
*उपाय :*गौ तथा ब्राह्मणों की सेवा करें, जावित्री की जड़ भुजा में बांधें।
*विशाखा नक्षत्र :*जातक को सर्वांग पीड़ा से दु:ख। कभी फोड़े होने से पीड़ा।
*उपाय :*बेरी की जड़ भुजा पर बांधना, सुगंधित वास्तु से हवन करना लाभदायक होता है।
*अनुराधा नक्षत्र :*जातक को ज्वर ताप, सिरदर्द, बदन दर्द, जलन, रोगों से कष्ट।
*उपाय :*चमेली, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।
*ज्येष्ठा नक्षत्र :*जातक को पित्त बढ़ने से कष्ट। देह में कंपन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी, काम में मन नहीं लगना।
*उपाय :*चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से लाभ। गरीबों को दूध से बनी मिठाई खिलाएं।
*मूल नक्षत्र :*जातक को सन्निपात ज्वर, हाथ-पैरों का ठंडा पड़ना, रक्तचाप मंद, पेट-गले में दर्द, अक्सर रोगग्रस्त रहना।
*उपाय :*कुएं के पानी से स्नान तथा दान-पुण्य से लाभ होगा।
*पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र :*जातक को देह में कंपन, सिरदर्द तथा सर्वांग में पीड़ा।
*उपाय :*सफेद चंदन का लेप, आवास कक्ष में सुगंधित पुष्प से सजाएं। कपास की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।
*उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :*जातक संधिवात, गठिया, वात, शूल या कटि पीड़ा से कष्ट, कभी असह्य वेदना।
*उपाय :*कपास की जड़ भुजा में बांधें, ब्राह्मणों को भोज कराएं, लाभ होगा।
*श्रवण नक्षत्र :*जातक अतिसार, दस्त, देह पीड़ा, ज्वर से कष्ट, दाद, खाज, खुजली जैसे चर्मरोग कुष्ठ, पित्त, मवाद बनना, संधिवात, क्षयरोग से पीड़ा।
*उपाय :*अपामार्ग की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है।
*धनिष्ठा नक्षत्र :*जातक मूत्र रोग, खूनी दस्त, पैर में चोट, सूखी खांसी, बलगम, अंग-भंग, सूजन, फोड़े या लंगड़ेपन से कष्ट।
*उपाय :*भगवान मारुति की आराधना करें। गुड़-चने का दान करें।
*शतभिषा नक्षत्र :*जातक जलमय, सन्निपात, ज्वर, वात पीड़ा, बुखार से कष्ट, अनिद्रा, छाती पर सूजन, हृदय की अनियमित धड़कन, पिंडली में दर्द से कष्ट।
*उपाय :*यज्ञ-हवन, दान-पुण्य तथा ब्राह्मणों को भोजन खिलाने से लाभ होगा।
*पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र :*जातक को उल्टी या वमन, देह पीड़ा, बैचेनी, हृदयरोग, टखने की सूजन, आंतों के रोग से कष्ट होता है।
*उपाय :*भृंगराज की जड़ भुजा में भुजा पर बांधें, तिल का दान करने से लाभ होता है।
*उत्तराभाद्रपद नक्षत्र :*जातक अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना से कष्ट हो सकता है।
*उपाय :*पीपल की जड़ भुजा पर बांधने तथा महिलाओं को भोजन खिलाने से लाभ होगा।
*रेवती नक्षत्र* :जातक को ज्वर, वात पीड़ा, मतिभ्रम, उदार विकार, मादक द्रव्य के सेवन से उत्पन्न रोग, किडनी के रोग, बहरापन या कान के रोग, पांव की अस्थि, मांसपेशी खिंचाव से कष्ट।
*उपाय* :पीपल की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा।