Monday, November 21, 2011

BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNA-POORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU


BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNA-POORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU


 कहा गया है की पहला सुख निरोगी काया-अर्थात स्वस्थ्य शरीर ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है और उसी से आप अन्य सुखों का उपभोग कर सकते हैं तथा साधना में आसन की दृढ़ता को प्राप्त कर सकते हैंl
        कायिक सुख,चित्त की स्थिरता और एकाग्र भाव से साधनात्मक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जिस क्रिया का प्रयोग किया जाता है,उसे आसन कहा जाता है l सामान्य बोलचाल की भाषा में सुविधापूर्वक एकाग्रता पूर्वक स्थिर होकर बैठने की क्रिया आसन कहलाती है lजिस प्रकार इस महत्वपूर्ण क्रिया का पतंजलि ऋषि द्वारा जिस योगदर्शन की व्याख्या व प्राकट्य किया गया उसमे विवृत अष्टांग योग में  आसन को उन्होंने तृतीय स्थान दिया है परन्तु इसी आसन की महत्ता को सर्वाधिक बल नाथ संप्रदाय की दिव्य सिद्धमंडलियों द्वारा प्रवर्तित षडंगयोग मे मिला है ,जहाँ पर गुरु गोरखनाथ आदि ने आसन को प्रथम स्थान पर रख कर साधना में सफलता के लिए अनिवार्य माना है l अर्थात जिसका आसन ही नहीं सधा हो भला वो साधना में सिद्धियों का वरण कैसे कर सकता है lमैंने बहुत पहले श्वेतबिंदु-रक्तबिंदु लेख श्रृंखला में इस तथ्य का विवरण  भी दिया था की यदि व्यक्ति साधना काल में मन्त्र जप के मध्य हिलता डुलता है ,पैर बदलता है तो सुषुम्ना की स्थिति परिवर्तित होने से ना सिर्फ उसके चक्रों के स्पंदन में अंतर आता है अपितु मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र पर तीव्र वेगी नकारात्मक प्रभाव पड़ने से साधक में काम भाव की तीव्रता भी आ जाती है और उसे स्वप्नदोष,प्रदर,प्रमेह जैसी बिमारियों का भी प्रभाव झेलना पड़ता हैl
   आसन का स्थिरीकरण और शरीर की निरोगता साधना का मूल है ,इसके  बाद ही चित्त को एकाग्र करने की क्रिया की जा सकती है और साधना में सफलता प्राप्त होती है ,जब साधक एकाग्र मन से लंबे समय तक जप करने में सक्षम हो जाता है तो “जपः जपात् सिद्धिर्भवेत”की उक्ति सार्थक होती है अर्थात सिद्धि को आपके गले में माला डालने के लिए आना ही पड़ता है l
   परन्तु ये इतना सहज भी नहीं है क्यूंकि जब तक साधक का शरीर रोग मुक्त ना होजाये तब तक वो आसन पर दृढ़ता पूर्वक बैठ ही नहीं सकता,स्वस्थ्य शरीर से ही साधना की जा सकती है ,आसन स्थिरीकरण किया जा सकता है और तदुपरांत ही साधना में सफलता प्राप्त कर तेजस्विता पायी जा सकती है l सदगुरुदेव ने स्पष्ट करते हुए कहा था की “जब शरीर ही सभी दृष्टियों से साधना में सफलता प्राप्त करने का आधार है ,तो स्वस्थ्य शरीर की प्राप्ति के लिए विश्वामित्र प्रणीत दिव्य देह सिद्धि साधना अनिवार्य कर्म हो जाती है ,इस साधना को संपन्न करने के बाद आत्म सिद्धि का मार्ग प्रशस्त हो जाता है,  देहसिद्धि की सम्पूर्ण क्रिया ६ क्रियाओं का समन्वित रूप होती है”-
मष्तिष्क नियंत्रण- साधना के लिए सदैव सकारात्मक भाव से युक्त मष्तिष्क ,जिसमे असफलता का कदापि भाव व्याप्त न हो पाए l
आसन नियंत्रण- हम चाहे जितनी भी माला जप संपन्न कर ले,तब भी हमारे बैठने का भाव और शरीर विकृत न हो l
चक्षु नियंत्रण- साधना काल व अन्य समय हमारे नेत्रो में कोई हल्का भाव ना आने पाए और सदैव हमारी दृष्टि तेजस्विता युक्त होकर सिद्धि प्राप्ति के गूढ़ सूत्रों को देख कर प्रयोग कर सके,आत्म सात कर सके l
श्वांस नियंत्रण- मन्त्र जप के मध्य श्वांस की लय व गति में परिवर्तन ना हो और साधक मंत्र जप सुगमता से कर सकेl क्यूंकि प्रत्येक प्रकार के मंत्र की दीर्घता और लघुता में भिन्न भिन्न प्रकार की श्वांस मात्र की आवश्यकता होती है l
अधोभाग नियंत्रण-साधना में बैठने की क्रिया कमर से लेकर पैरों के ऊपर निर्भर होती है, उनमे दृढ़ता प्रदान करना l
पंचभूतात्मक नियंत्रण- हमारे शरीर में व्याप्त पंचभूत तत्व यथा जल,अग्नि,वायु,आकाश और पृथ्वी की मात्रा को साधना काल में घटा-बढ़ा कर शरीर को साधनात्मक वतावर की अनुकूलता प्रदान की जा सकती है lतब ऐसे में हमारा शरीर बाह्य और आंतरिक रोगों और पीडाओं से मुक्त होता हुआ साधना पथ पर अग्रसर होते जाता है,प्रकारांतर में वो पूर्ण आरोग्य की प्राप्ति कर लेता है l
    इस प्रकार की क्रियाओं के बाद ही शरीर साधना के लिए तत्पर हो पाता है ,और बिना शरीर को नियंत्रित किये या अनुकूल बनाये साधना में प्रवेश करने से कोई लाभ नहीं होता है l
  वस्तुतः रोगमुक्त निर्जरा काया की प्राप्ति आज के युग में इतनी सहज नहीं है ,क्यूंकि आज का युग पूरी तरह से प्रदूषित,शापित और भोग युक्त है ,तब ऐसे में दिव्यदेह सिद्धि साधनाहमारा मार्ग सुगम कर देती है l सदगुरुदेव ने इस साधना का विवेचन करते हुए स्पष्ट किया था की साधक जगत को ये साधना ब्रम्हर्षि विश्वामित्र जी की देन है, उपरोक्त ६ क्रियाओं का इस साधना में पूर्ण समावेश है,वस्तुतः इस मंत्र में माया बीज,काली बीज और मृत्युंजय बीज को ऐसे पिरोया गया है की मात्र इसका उच्चारण ही ब्रह्माण्ड से सतत प्राणऊर्जा का प्रवाह साधक में करने लगता है और उसकी आंतरिक न्यूनताओं का शमन होकर उसकी देह कालातीत होने के मार्ग पर अग्रसर होने लगती हैl
   पारद की वेधन क्षमता अनंत है और वो अविनाशी तत्व है ,अतः इस साधना की पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण सामग्री पारद शिवलिंग और पंचमुखी रुद्राक्ष है, इस साधना को किसी भी सोमवार या गुरूवार से प्रारंभ किया जा सकता है,सूर्योदय से,श्वेत वस्त्र,उत्तर दिशा का प्रयोग इस साधना के लिए निर्धारित हैl
   प्रातः उठकर पूर्ण पवित्र भाव से स्नान कर सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे तथा उनसे साधना में पूर्ण सफलता की प्रार्थना करे,तत्पश्चात साधना कक्ष में जाकर सफ़ेद आसन पर बैठ जाये और सामने बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर सदगुरुदेव का दिव्य चित्र, उनकी दाई तरफ भगवान गणपति का विग्रह या प्रतीक रूप में सुपारी की स्थापना करे फिर गुरु चित्र के सामने दो ढेरी चावलों की बनाये अपने बायीं तरफ की ढेरी पर गाय के घृत का दीपक प्रज्वलित करे(याद रखियेगा की सदगुरुदेव के चित्र के सामने दो ढेरी बनानी है और गणपति विग्रह के सामने इतनी जगह छोडनी है जहाँ एक इतना बड़ा ताम्बे का कटोरा रखा जा सके जिसमे आधा लीटर पानी आ जाये) और दाई तरफ तेल का दीपक रखना है l इसके बाद गणपति जी के सामने ताम्बे का पात्र रख कर उसमे रक्तचंदन से एक गोला बनाकर उसमे “ह्रौं” लिख दे और उसके ऊपर पारद शिवलिंग तथा रुद्राक्ष स्थापित कर दे l इस क्रिया के बाद आप गणपति पूजन,गुरु पूजन और शिवलिंग पूजन पंचोपचार विधि या सामर्थ्यानुसार करे और गुरुमंत्र की ११ माला जप करे lतत्पश्चात  का ११ बार उच्चारण करे  ताम्बे के पात्र में रखे स्वच्छ जल से (जिसमे गंगा जल मिला लिया गया हो) १-१ चाय के छोटे चम्मच से शिवलिंग के ऊपर दिव्य देह सिद्धि मंत्र का उच्चारण करते हुए जल अर्पित करे, ये क्रिया १४ दिनों तक नित्य १ घंटे करनी है lयाद रहे उपांशु जप करना है ,जो जल आप नित्य अर्पित करेंगे उसे अगले दिन अपने स्नान के जल में मिलकर स्नान कर लेना है l
 दिव्य देह सिद्धि मंत्र-
 ॐ ह्रौं ह्रीं क्रीं जूं सः देह सिद्धिम् सः जूं क्रीं ह्रीं ह्रौं ॐ  ll
OM HROUM HREENG KREENG JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l
 १४ दिनों के बाद आप शिवलिंग को पूजनस्थल पर स्थापित कर दे और रुद्राक्ष को यथाशक्ति दक्षिणा के साथ भगवती काली या दुर्गा मंदिर में अर्पित कर दे तथा बाद के दिनों में मात्र २१ बार मंत्र का नित्य उच्चारण करते रहे,सदगुरुदेव की असीम कृपा से हम सभी के समक्ष ऐसी गोपनीय साधनाए बची रही है है,अतः साधनात्मक उन्नति की प्राप्ति के लिए अपनी कमियों को दूर करे और स्वस्थ्य शरीर के द्वारा साधना करे तथा आसन की स्थिरता को प्राप्त करे जिससे उच्च स्तरीय साधनाओं की सहज प्राप्ति हो सकेl
A Sound Mind Lives In a Sound Body” it means fit body is honored as one of the most important assets of this entire world because without it we won’t be able to enjoy other luxuries of our life and it is our body which helps us to be solidify on our altar i.e. called aasn.
Aasan is what??? Actually it is a means which helps us to enjoy physical comfort, stability of heart and mind so that we can attain our divine destination. Generally if you are able to sit in a single posture without any waving in your and mind than it is called aasan. Saint Patanjali defines and explains this procedure through Yogdarshan and in that too he ranks this process at third position but this process got more sophistication by the changed Shhdangyog divine sidh-mandalies of Nath Sect because in it Guru Gorakhnath regarded this aasan process the first step of success and ranks it at number one position. It means a person who is unable to make his grip strong on his aasan that can never ever have success in the field of sadhnaa. I have already explained this issue in the series of Shvetbindu-Raktbindu that during meditation or sadhnaa if a person moves his body or changes his sitting posture during mantra jaap than it is quite obvious that with his position his spinal will too change its direction and that is wrong as when spinal changes its position then with her it changes the position of our chakras too and not stop here with the changed position of spinal Mooladhaar and Swadhishthaan chakras releases negative energy and this negative energy causes erotic desires in saadhak and he started suffering from the problems as Night fall, Prader, Prameh and all that……….. 
Stability on aasan and fit body these two things are basic requirements for success in sadhnaa because without it, it is impossible to make your mind constant as when a saadhak can seated for a long time without any moment on his aasan then the power of “Japaah Japaat Sidhibhervaet” comes into life and when this position can attain then it is dead sure that he can get what he wants.
But let me remember you that it is not as easy as it sounds because with ill body no-one can get his/her aasan permanent stable but do not forget that if once you will attain this position then nobody can dare to stand between you and your success. Sadgurudev himself told that” it fit body is a fundamental requirement for success in sadhnaa then to have fit and fine body  it is very important to do Divya Deh Sidhi Sadhnaa as this sadhnaa will open the door for the further step i.e. called aatam sidhi. Deh sidhi sadhnaa is a collective form of six different procedures and that are-
Control over mind- during sadhnaa one should keep his mind charged with positive energy…..and there should be no thought of failure.
Control over aasan- during sadhnaa one should not depend upon the counting of rosary as keep on sitting until or unless you can.
Control over eyes- during in or out duration of sadhnaa there must not be cheap or baseless emotions should flow into your eyes…..one should keep his eyes focused on the accessories of sadhnaa so that your inner soul can absorb their qualities.
Controlled breathe- during mantra jaap there must be a deadly combination between the inhaling and exhaling process as your respiration speed depends upon the length and shortness of mantra as in different mantra different type of respiration system used.
Control over body i.e. Adhobhaag Niyantran- how much time you can sit in a single posture during sadhnaa it all depends upon your back and legs so you should pay special attention on this portion.
Control over five basic elements of body i.e. Panchbhootatmak Niyantran- if one comes to know that how he can increase or decrease the quantity of five basic elements i.e. water, fire, air, sky and earth, of his body then easily he can make his body suitable for the environment of his surrounding then slowly- slowly his body gets itself free from external and internal diseases and finally becomes pure.
After all these procedures body becomes suitable for sadhnaas as without this purity there is no use of doing any type of sadhnaa.
But the disturbing fact is that in this present scenario when everything is polluted, mall nourished to have perfect body is just like dream but with the help of Divya Deh Sidhi sadhnaa we can have an ideal body. Once while speaking about this sadhnaa Sadgurudev explained that in the field of sadhnaa this procedure is invented by Bhramrishi Vishwamitra ji which include  all 6 procedure  in it with collective energy of  Maya Beej, Kaali Beej and Mrityunjay Beej  which are  systematically arranged in a single thread and only by enchanting of it divine natural universal power starts entering in sadhak’s body and when this happens all the pit falls get vanishes from his soul and with pure heart, mind and body he gets lost in his sadhnaas.
If we talk about the quality of divines and purity then without any doubt the first name which comes into our mind is Mercury (parad) so in this sadhnaa too the most important useable things are Parad Shivling and Panchmukhi Rudrakshh. This sadhnaa can be started on any Monday or Thursday and in other accessories sun rising time, white clothe and North direction is already decided.
For this sadhnaa one should gets up at early morning and take bath. After bathing he should offer water as divine offering to the sun and gets his blessings for success. Then in your sadhnaa room be seated on white altar and in front of you on wooden slab spread white cloth and put picture of Sadgurudev on it. On the left side of picture put supari in the form of Lord Ganesha. After that make two heaps of rice in front of Sadgurudev’s photo and then lit a lamp (Deepak) of cow’s ghee on the heap of your left side. Remember in front of Sadgurudev’s photo there must be two heaps of rice similarly in front of supari ,which we has been taken as Lord Ganesha , there must be as much place that a copper bowl with half  liter water can be placed there and on right side place oil lamp(Deepak). When all this done then in front of Ganpati ji put copper bowl and in it make a circle with raktchandan and in that circle write “Hroum” and then placed Parad Shivling and Rudrakshh on it. After this you need to do Ganpati Poojan, Guru Poojan and Shivling Poojan with panchopchaar procedure or as per your capacity and then enchant 11 rosary of Guru Mantra. Further while speaking OM (11 times) take water from that copper bowl (in which Ganga jal is already mixed) with the help of small tea spoon and offer that water on Shivling while speakingDivya Deh Sidhi Mantra. Carry on this procedure for 14 days and it will take just an hour. Remember you have to do Upanshu Jap and that water which you offer to Shivling, use that water during your bath on next day.
Divya Deh Sidhi Mantra-
  OM HROUM HREENG KREENG JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l


After 14 days place Shivling at your poojan place and rudraksh at Kaali or Durga Temple with some alms. After this you need to enchant this mantra 21 times daily. It is just because of our revered Sadgurudev that we still have these types of secret sadhnaas so to achieve success in sadhnaas firstly get rid of your short-comings as it is only with healthy body we can make our aasan capacity as much solid and durable as we want.








SABAR TANTRA MAHAVISHANK-NATH JAGAT KI ADBHUT MUDRAAYEN

BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNA-POORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU

Divine way of contolling Phantom and ghost


अक्सर भूत प्रेत का नाम सुनकर लोगो में भय व्याप्त हो जाता है उन्हें सिद्ध करने की कौन कहे,वैसे भी उन्हें सिद्ध करने की जो क्रियाएँ वर्णित होती हैं वो कम से कम सामान्य साधको और कमजोर मनोमष्तिष्क वालों के लिए तो नहीं है.ऊपर से ये भ्रान्ति की जो इन्हें सिद्ध करता है उसे ये तकलीफ दते हैं, साधक का बचा खुचा मनोबल भी समाप्त कर देते हैं.परन्तु ये सभी तथ्य वास्तविकता से कोसो दूर है. भूत प्रेत तो अपनी मुक्ति के लिए बैचेन ऐसी आत्माएं होती हैं जो किसी भी प्रकार अपनी मुक्ति चाहती हैं और परोक्ष अपरोक्ष रूप से सहयोग के लिए तत्पर होती हैं,वे सही और गलत कार्य दोनों कर सकती हैं परन्तु,जब साधक उनका दुरूपयोग करता है तो उन आत्माओं की तो मुक्ति हो जाती है पर साधक का जीवन दूभर हो जाता है. लेकिन उनका सदुपयोग करने पर आप जहाँ उन आत्माओं को मुक्त होने में माध्यम की भूमिका निभाते हो वहाँ किसी भी प्रकार हानि से भी सुरक्षित रहते हो.प्रस्तुत पद्धति किसी भी प्रकार से हानि रहित और प्रभावकारी है और इसे कोई भी साधक कर सकता है ,इस साधना की वजह से सिर्फ उच्च संस्कारों वाले प्रेत या भ्होत ही आपके वश में होते हैं ,जो एक सच्चे मित्र की भांति बिना नुक्सान पहुचाए हमेशा आपकी मदद को तत्पर रहते हैं.
अमावस्या के दिन स्नान कर पूर्ण पवित्रता के साथ व्रत रखे, फलाहार करे और लाल वस्त्र धारण करें, सात्विक रूप से प्रेत का चिंतन करे, वो पूर्ण रूप से सहयोगी बन कर मेरे साथ मित्रवत रहे ,यही चिंतन आपके मन में होना चाहिए.रात्रि में पीपल वृक्ष के नीचे जाकर पीपल के पांच हरे पत्तों पर पूजा की पांच सुपारी रख कर उनमे प्रेत शक्ति का ध्यान किया जाना चाहिए , फिर लोहबान अगरबत्ती ,काले तिल और फूल अर्पित करें और पीपल के पत्तों पर ही दही चावल का भोग गुलाब जल छिड़क कर लगादे और काली हकीक माला से वही खड़े खड़े ११ माला निम्न मन्त्र की करें.
मन्त्र- ॐ क्रीं क्रीं सदात्मने भूताय मम मित्र रूपेण सिद्धिम कुरु कुरु क्रीं क्रीं फट्.
और मन्त्र जप के बाद प्रार्थना करे की आप मेरी रक्षा करे और मेरी मित्र रूप में सहायता करे , ये क्रम मात्र ३ अमावस्या तक आप को करना है अर्थात प्रत्येक अमावस्या को को मात्र ३ बार ऐसा करना है.३ अमावस्या को सद् रूप में भूत आपके सामने आकार आपकी सहायता का वचन देता है.और ३ वर्ष तक साधक के वश में रहता है.
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   Often whenever people hear ghost ghostly name they filled with a prevalent fear. So who ll say to prove them, in anyways the ways by which they can be proven are really not meant for a normal person or weak hearted person. Upon that various illusions are spreader that whosoever proves them is always troubled. Even they finished off the remaining confidence by doing such acts. But all these facts are very far from reality. Phantom Ghosts are such souls who are restless for their liberation in any way to his release by direct and indirect are willing to cooperate. They performs both type of work whether it is good or bad, right from wrong but when the seeker misuse them becomes the salvation of souls is the seeker's life is miserable. But their utilization on where you play the role of the medium to be free spirits there is protected from any harm. So present’s u a harmless from any and effective method and it can be done by any seeker, Due to this sadhna only well discipline and high values of Phantom or ghosts get in your control, who remains with u like a true friend without the harming and always ready to help you.
On day of AMAVASYA take shower and keep fast for whole day with purity, only have fruits and wear red cloths, with divine and pious way just remember the ghost and phantom whole day, think that they remain with u are friendly to me to be fully cooperative, this thinking should be in your mind. In night go under the Bodhi tree, take five green leaves and keep five nuts of worship and should keep in mind the ones that phantom power, then myrrh incense sticks, black sesame and laid flowers, then keep curd rice on that leaves then sprinkle rose water on it. And their only on standing mode just do the chanting 11 rosary of black mala from the following mantra.

Mantra : Om kreem kreem sadaatmane bhutay mam mitra rupen siddhim kuru kuru kreem kreem phat.

          After chanting the mantra and pray that you bless me and remain with me as my friend, to this order, you have to do that is just for three times on moon to the moon every time. Then just after 3 moon as the divine forms appears in front of u and promise u help and for 3 years remains in the hands of the seeker.

Panckalyank Festival Synod पंचकल्याणक महोत्सव में धर्मसभा

शिष्य गुरु के इशारे को समझे तो समझदार है और ज्यादा समझ जाए तो होशियार है। शिष्य को समझदार बनना चाहिए, होशियार नहीं। जिस प्रकार चंद्रमा की किरण घोर अंधकार हर लेती है वैसे ही शिष्य के घोर अंधकार को गुरु हर लेते हैं। उक्त प्रेरक विचार आचार्य गुप्तीनंदिजी महाराज ने पुष्पगिरि पर आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में धर्मसभा में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि अपने जीवन की डोर सद्गुरु के हाथों में सौंप दो तो भव से पार होने में वक्त नहीं लगेगा। जब इंसान को अहंकार आ जाता है तो वह अपने पथ से भटक जाता है और गुरु के चरणों से विमुख हो जाता है।

इस अवसर पर आचार्य पुष्पदंतसागरजी ने कहा कि श्रावक व श्रमण में एक ही अंतर है कि श्रावक बुद्घिगत जीते हैं और श्रमण साधनागत जीते हैं। साधना व संयम के रथ पर सवार होकर साधु मानव कल्याण की भावना चाहता है।

आकांक्षाओं के बादल जब छाते हैं तो अहंकार की बरसात होने लगती है। अहंकार पैदा होता है तो अधिकार की भाषा प्रकट हो जाती है। जहाँ अहंकार की भाषा है वहाँ समस्याएँ हैं।

महँगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सवाल तो यह है कि इतनी महँगाई के बाद भी महँगी वस्तुओं का त्याग नहीं किया गया। यदि इच्छाओं को वश में कर लिया तो जीवन सुखमय हो जाएगा।

आचार्यश्री ने कहा कि मन क्या चाहता है इन दोनों के बीच द्वंद्व क्यों है। मन चाहता है आवेश घृणा, कुटिलता, स्वार्थ जबकि अंतःकरण चाहता है, शांति, प्रेम सरलता, मित्रता और निःस्वार्थ। इन दोनों के बीच समानता नहीं हो रही है। क्योंकि समस्याएँ अनेक हैं।

प्रतीक सागरजी ने कहा कि जीवन में माता-पिता और गुरु का आशीर्वाद जरूरी है जिसकी जिंदगी में गुरु का नाम मिश्री की तरह घुल जाता है उसके प्रति समर्पण हो जाता है। उसका उद्घार हो जाता है।

मुनि तरुणसागरजी महाराज के आनंद यात्रा में लोगों को जीवन जीने के सूत्रों के साथ ही तनाव से मुक्ति के उपाय बताए गए।

Kaal bhairav sadhana - to overcome unwanted incidents


जीवन की उपयुक्त और योग्य गतिशीलता को ग्रहण लगाने वाले मुख्य शत्रु है समस्या और अकस्मात. अगर ये दो मुख्य बाधक जीवन की गति मे ना हो तो व्यक्ति अपने भौतिक व् आध्यात्मिक पक्ष को अत्यधिक मजबूती दे सकता है. काल की गति अनंत है जो की निरंतर रूप से चलती रहती है. फलस्वरूप हमारे बोध काल से विगत को भुत तथा गंतव्य को भविष्य नाम दिया गया है. लेकिन सब घटनाये मुख्य रूप से अपने अपने स्थानों पर काल की गति मे होती ही है और जब आप काल के उस निश्चित बिंदु पर पहोचाते है तो वह वर्तमान के रूप मे आपसे प्रत्यक्ष हो जाता है. यु हमारे जीवन मे कोई भी स्थिति होती है या आती है तो वह कर्म प्रधान कारण स्वरुप पहले से ही काल मे निश्चित थि. इसी क्रम मे वह सब घटनाये काल के गर्भ मे निहित ही है चाहे वह आपके अनुकूल हो या फिर प्रतिकूल. ज़रा सोचिये की अगर हम उन प्रतिकूल पल को निकाल दे तो जीवन प्रत्येक समय मधुर हो जाएगा. लेकीन क्या ऐसा संभव है. साधना तो प्रक्रिया ही असंभव को संभव बनाने की है. इस क्षेत्र मे असंभव तो अपने आप मे एक छोटा सा शब्द बन कर रह जाता है. तंत्र मे कई ऐसे विधान है जिनकी मदद से आने वाली दुर्घटनाओ तथा विकट समस्याओ को पहले से ही जाना जा सकता है. लेकिन प्रस्तुत विधान इस प्रकार से है की वह आने वाली दुर्घटनाओ तथा विकट समस्याओ के मात्र संकेत नहीं देता लेकिन उस प्रतिकूलता को दूर कर के आप को उससे बचाता भी है. इस प्रकार के कुछ विधान तो निश्चित रूप से पुरातन तंत्र ग्रंथो मे प्राप्य है लेकिन वे सब विधान गुढ़ तथा समयगम है. अत्यधिक जटिलता तथा लंबे समय तक साधना काल होने के कारण आज के इस युग मे इस प्रकार की साधना करना अत्यधिक दुस्कर है. लेकिन सदगुरुदेव ने अपने गृहस्थ शिष्यों के मध्य ज्यादातर सरल और त्वरित परिणाम देने वाली साधनाऐ ही रखी.
निम्न साधना के लिए साधक रुद्राक्ष या काले हकीक की माला का प्रयोग करे. आसान तथा वस्त्र लाल रहे और दिशा दक्षिण. यह ११ दिन की साधना है जिसे साधक शनिवार या मंगलवार की रात्रि मे ११ बजे के बाद शुरू कर सकता है.
साधक अपने सामने काल भैरव की फोटो या विग्रह स्थापित करे. उसका पूजन कुमकुम तेल सिन्दूर पुष्प वगेरा से करे. धुप तथा तेल का दीपक अर्पित करे. उसके बाद हाथ मे जल लेके संकल्प करे की मे ये मंत्र जाप भविष्य मे आने वाली सभी दुर्घटना समस्या तथा बाधा के समाधान के लिए कर रहा हू आप इसमें मेरी सहायता करे. इसके बाद निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.

ॐ कालभैरव अमुक साधकानां रक्षय रक्षय भविष्यं दर्शय दर्शय हूं

इसमें अमुक साधकानां की जगह स्वयं के नाम का उच्चारण करना चाहिए.
भविष्य मे जब भी कोई समस्या या दुर्घटना होने वाली हो तो किसी न किसी रूप मे भगवान काल भैरव साधक को सूचना दे देते है. साधक अपने कार्यों को उस प्रकार से परावर्तित कर सकता है. यु तो भगवान भैरव साधक की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप मे मदद करते ही रहते है.
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In the path of life the basic two obstacle creator enemies are certain problems and unexpected accidents. If these main two obstacles are not there in the life; a person can have a good hold over the progress of material and spiritual life. The movement of the time is infinite which runs continuous. This resulting us in present to term went off as ‘past’ and expected as ‘future’. But every incident are basically pre-placed in the motion of time and when you reach at that particular point of the time it comes in front of you as ‘Present’. This way in our life if any situation is there or arriving situations all those were prearranged in the time as a result enforced with karma. This way all those incidents are safe in the time rather it is favourable for you or not. Just think, if anyhow we remove those unexpected unfavourable moments from the life, how beautiful our life will start acting! But, is it possible? Sadhana is process to make impossible a possible thing. In this field, impossible remains as very small word only. In tantra there are several processes through with help of which we may get to know about the problems and unwanted incidents before it occur. But the here presented is the process through which not only meant to let you knew about the forthcoming troubles but it also saves you from the effect of the same. Such processes are for sure present in the many old tantra scriptures but those all are in codes and time consuming. As having a complicated processes and long time durations to do such sadhanas are really hard in this particular time period. But Sadgurudev have majority of the time provided simple and fast result giving sadhana to his disciples of material world.
In sadhana below, the rosary should be used of rudraksha or black hakeek. Aasan and cloth should be Red in colour and direction should be south. This is 11 days sadhana which could be started on any Saturday or Tuesday after 11 in night.
Sadhak should establish photo or idol of Kaal Bhairav infront of him. The poojan of the same should be done with red vermillion, oil, Sindoor, flower etc. Dhoop and oil lamp should be offered. After that one should take sankalp with water on palm that I am doing this mantra chanting to overcome all the accidents, problems and troubles I request you to help me. After that, chant 21 rosary of following mantra.

Om kaalBhairav amuk saadhakaanaam rakshay rakshay bhavishyam darshay darshay hum

In this mantra one should chant their own name on the place of ‘Amuk saadhakaanaam’.
In future when ever any troubles or unwanted incident is about to happen, Lord kaal Bhairav will inform sadhak with any of the form. Sadhak can convert his task that way. Though lord Bhairav will keep on helping sadhak directly indirectly.

Shishyta seven formulas शिष्यता के सात सूत्र


शिष्यता के सात सूत्र

भगवत्पाद शंकराचार्य ने “शिष्य”, और सही मायने में कसौटी पर खरे उतरने वाले शिष्य के सात सूत्र बताए हैं,
जो निम्न हैं| आप स्वयं ही मनन कर निर्णय करें, कि आपके जीवन में ये कितने संग्रहित हैं :-

अन्तेश्रियै वः – जो आत्मा से, प्राणों से, हृदय से अपने गुरुदेव से जुड़ा हो, जो गुरु से अलग होने की
कल्पना करते ही भाव विह्वल हो जाता हो|

कर्तव्यं श्रियै नः – जो अपनी मर्यादा जानता हो, गुरु के सामने अभद्रता, अशिष्टता का प्रदर्शन न कर
पूर्ण विनीत नम्र पूर्ण आदर्श रूप में उपस्थित होता हो|

सेव्यं सतै दिवौं च – जिसने गुरु सेवा को ही अपने जीवन का आदर्श मान लिया हो और प्राण प्रण से
गुरु की तन-मन-धन से सेवा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता हो|

ज्ञानामृते वै श्रियं – जो ज्ञान रुपी अमृत का नित्य पान करता रहता हैं और अपने गुरु से निरंतर ज्ञान
प्राप्त करता ही रहता हैं|

हितं वै हृदं – जो साधनाओं को सिद्ध कर लोगों का हित करता हो और गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता
ही रहता हैं|

गुरुर्वे गतिः – गुरु ही जिसकी गति, मति हो, गुरुदेव जो आज्ञा दे, बिना विचार किए उसका पालन करना
ही अपना कर्तव्य समझता हो|

इष्टौ गुरुर्वे गुरु: - जिस शिष्य का इष्ट ही गुरु हो, जो अपना सर्वस्व गुरु को ही समझता हो|
-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान अक्टो. 1998, पृष्ठ : ७१


गुरु तत्व विमर्श...

☼ अपने हृदय में “गुरु” स्थापन करना समस्त देवताओं को स्थापन करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!!
-ऋग्वेद
☼ जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ की अपेक्षा “गुरु-पूजन” ही हैं!
-गुरौपनिषद
☼ चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – की प्राप्ति केवल गुरु-पूजन के द्वारा संभव हैं!
-याज्ञवल्क्य
☼ जीवन की पवित्रता, दिव्यता, तेजस्विता एवं परम शांति केवल गुरु-पूजन के द्वारा ही संभव हैं!
-ऋषि विश्वामित्र
☼ “गुरु-पूजा” से बढ़कर और कोई विधि या सार नहीं हैं!
-शंकराचार्य
☼ समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का आधार मात्र गुरु-पूजन हैं!
-आरण्यक
☼ जो प्रातःकाल गुरु-पूजन नहीं करता, उसका सारा समय, साधना एवं तपस्या व्यर्थ हो जाती हैं!
-रामकृष्ण
☼ गुरु-पूजा के द्वारा ही “इष्ट” के दर्शन संभव हैं!
-गोरखनाथ
☼ संसार का सार “मनुष्य जीवन” हैं, और मनुष्य जीवन का सार गुरु-धारण, गुरु स्मरण एवं गुरु-पूजन हैं!
-सिद्धाश्रम






Shishyta seven formulas

Shankaracharya Bgwatpad "disciple", and truly a disciple of the seven sources which meet the test are described,
The following are | make your own decisions as to contemplate, how many are stored in your life: -

Anteshriya Vः - the soul, the soul, the heart is connected to your Master, the master can be separated from
Imagine if the price is fevered |

Sriya Kartwyn Nः - who knows his limits, the impolicy of the master, not the display of rudeness
Ideally appears to be fully completed gentle hand |

Sata Sewyn Divun f - the master service is assumed to be the ideal of his life and death of pledge
Master of the body - mind - wealth to serve the aims of life |

Jञanamrite Y. Sriyn - continual diet of nectar continues to reward the knowledge and continuous learning from the master
Receives the same |

Hitn Hridn banks - which Sadnaon prove that people's interest and continued to master the knowledge

Bavasir ki Dava मस्सा या बवासीर

जय गुरुदेव जय गुरु जी

अगर किसी भाई के पाइल्स (मस्सा या बवासीर ) हो तो क्या करे ?
निखिल गुरु और महाकाली जी की प्रार्थना करते हुए सफ़ेद और लाल धागे को लीजिये और उन्हें आपस में बट लीजिये, बटने के बाद पैर के दोनों अंगूठो पर लपेट कर बांध दीजिये.
जय निखिल गुरु जी ने चाहा तो आपका ये रोग हमेशा के लिए जड़ से मिट जायेगा..


वन्देनिखिलम