Tuesday, January 4, 2011

What's Narayanhtava Ahmatta initiation awakening?

  क्या हैं नारायणतत्व आतमतत्व जागरण दीक्षा?
What's Narayanhtava Ahmatta initiation awakening?
ॐ जो सत् चित्त आनंद और अनंत हैं, असीम हैं! जो नित्य और सर्वव्यापी हैं वही हैं नारायन्तत्व आपका आत्मतत्व!

ॐ जो अद्वितीय, अखण्ड, नित्य और आनंद स्वरुप हैं! वेदों में जिसे अनित्य, विषयों के परे बताया गया हैं, वही हैं नारायणतत्व!

ॐ जिसकी प्राप्ति के बाद फिर अन्य कोई वस्तु प्राप्त करने को नहीं रह जाती! जिसके आनंद के बाद फिर किसी अन्य आनंद की कामना नहीं रहती! जिसे जान लेने के बाद फिर कुछ ज्ञातव्य नहीं रह जाता वही हैं नारायणतत्व!

ॐ जिसके दर्शन के बाद फिर कुछ और देखने की शेष नहीं रह जाता, जिसके साथ एकाकार हो जाने पर मनुष्य फिर जन्म-मरण के बंधन से छूट जाता हैं!

ॐ ब्रह्मा तथा इन्द्र आदि देवता भी जिस परब्रह्म के असीम आनंद का केवल एक कण मात्र प्राप्त कर धन्य हो चुके हैं और उसी में अपने भाग्य की सराहना करते हैं!

ॐ जो सभी वस्तुओं में व्याप्त हैं! सभी कर्म उस नारायणतत्व के कारण ही संभव हैं, जिस प्रकार से दूध में मक्खन व्याप्त हैं उसी प्रकार नारायणतत्व सर्व जगत में व्याप्त हैं!

ॐ जिसके प्रकाश से सूर्य, चंद्र और समस्त पृथ्वी मंडल आलोकित हैं किन्तु उनके प्रकाश से जो प्रकाशित नहीं हो सकता बल्कि जिसके प्रकाश से सभी प्रकाशित हैं उसे तू नारायणतत्व जान!

ॐ नारायणतत्व नित्य और शाश्वत हैं! अज्ञान के नष्ट हुए बिना, उसका साक्षात्कार अन्य किसी उपाय से संभव नहीं हैं!

ॐ नारायण जगत से पृथक हैं परन्तु नारायण से पृथक किसी वस्तु की कोई सत्ता नहीं! यदि नारायणतत्व के अतिरिकत किसी अन्य वस्तु का कोई अस्तित्व प्रतीत हो तो वह मृगतृष्णा के जल की तरह असत हैं!

ॐ जो कुछ हम देखते हैं, जो कुछ सुनते हैं यह हमारा नारायणतत्व आत्मतत्व ही हैं अन्य कुछ नहीं हैं और परम सत् का ज्ञान हो जाने पर समस्त विश्व अद्वैतपूर्ण एकरूप नारायण ही दिखाई देता हैं!

ॐ नारायणतत्व का ज्ञान ही आत्मतत्व का ज्ञान हैं, सम्पूर्ण जगत का ज्ञान हैं! इसके बाद कुछ शेष नहीं रहता!

ॐ नारायण अनंत आनंद का भण्डार हैं, फलतः जो सत् को जानने वाले हैं वह उन्हीं की शरण लेते हैं!

ॐ जिस प्रकार से नमक का ढेला जल में घुल जाने पर फिर नेत्रों से दिखायी नहीं देता केवल जिव्हा से हो चखा जा सकता हैं, उसी प्रकार हृदय के अंतर में प्रवाहित नारायणतत्व को बाह्य इन्द्रियों के द्वारा नहीं जाना जा सकता! केवल गुरु के अनुग्रह से, उसकी कृपा से उस तत्व को जाना जा सकता हैं, उसे जाग्रत किया जा सकता हैं! अतः जो नारायणतत्व हैं उसे ही तू आत्मतत्व जान!

ॐ जो नम्र हो सकता हैं, वही बड़े-बड़े तूफ़ान झेल सकता हैं, क्योंकि तूफ़ान के बाद वही पेड़-पौधे शेष रहते हैं, जिनमें लचीलापन हैं! प्रेम, नम्रता एवं लचीलापन ही एक महापुरुष की पहचान हैं!

ॐ वह असीम, आनंद एवं परम सत्य हैं, वह महान हैं! इसीलिए उसे ब्रह्म कहा जाता हैं! उसे ही शक्तिपात द्वारा जगाने की क्रिया हैं नारायणतत्व आत्मतत्व जागरण दीक्षा!

“नारायण-मंत्र-साधना-विज्ञान” से साभार

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