!! श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः !!
जय गुरुदेव!
आइये करे गुरु की खोज.....
जो हम ही में, हमारे हृदय में हैं.....
जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ...
आज शायद लोगो के लिए गुरु शब्द का अर्थ सिर्फ एक संत हो गया हैं. मगर गुरु की वास्तविकता तभी ही समझी जा सकती हैं, जब उस गुरु की शिष्यता में आकंठ डूब जाए. सब छोड़ कर गुरु ही याद रहे. मुझे सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी की इस सन्दर्भ में कुछ लाइने याद आती हैं....
जब गुरु गोरखनाथ से पहली बार उसके गुरु ने पूछा कि:
गुरु : "आपका काम क्या हैं?"
गोरखनाथ : "गुरु सेवा"
गुरु : "आपका नाम क्या हैं?"
गोरखनाथ : "शिष्य"
उन्होंने हर वो बात कहीं जो सिर्फ गुरु और शिष्य के रिश्ते पर आधारित होती थी.
मतलब वे गुरु के रंग में ही रंग गए थे, सब कुछ छोड़कर.
यह ही सदगुरुदेव का भी कहना हैं.... : "जो सब कुछ छोड़ सकता हैं, वही ही गुरु को पा सकता हैं."
और जो उसमें डूब जायेगा उसे पता होगा कि गुरु क्या हैं? कैसे हैं? क्या कर रहे हैं?
हकीकत तभी जानी जा सकती हैं जब उनके प्रेम में मीरा बन सकेंगे.
क्यूंकि समंदर की गहराई तो वही ही जान सकता हैं, जो समंदर में डुबकी लगा सकें.
जो गुरु के प्रेम में आकंठ नहीं डूबा वह नहीं जान सकता हैं.
तो सदगुरुदेव हम सभी को श्रेष्ठ बुद्धि दे कि हम सभी उनमें डूबता ही चले जायें.
क्यूंकि यही जिंदगी कि सबसे बड़ी सच्चाई होगी.
नव वर्ष पर आप सभी गुरुभाई और गुरुबहिनो को हार्दिक मंगलकामनायें....
आओ बनाये निखिल्मय, सिद्धाश्रम्मय इस जहाँ को.....Happy new Year 2012
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