तीसरा नेत्र और योग
भगवान शिव की ही तरह हर मनुष्य के दो समान नेत्रो के मध्य में तीसरा नेत्र होता है जिसके माध्यम से उसे वो सब दृश्य भी सहजता से दिखने लगते हैं जिन्हें साधारण आँखों से देख पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योकि जरा सोच के देखिये यदि शिव का तीसरा नेत्र प्रलय लाने में सक्षम है तो इसमें कुछ तो ऐसी विशेषता और विलक्षणता होगी जो ये सहजता से हर किसी से के मस्तिष्क में जाग्रत नहीं होता.... इसको खोलने और कार्यरत करने के लिए जरूरत होती है एक लम्बे तथा कड़े अभ्यास की और उस से भी ज्यादा एक योग्य सद्गुरु की क्योकि सद्गुरु के बिना और कोई नहीं जानता की शरीर के किस हिस्से में कौन सा बिंदु स्थापित होता है और किस बिंदु को स्पर्श करने से ये सुप्त से जाग्रत अवस्था में आ जायेगा.
योग शास्त्र के अनुसार हमारे आज्ञा चक्र में ही कुल मिला के ३२ बिंदु होते हैं जिन्हें “ ज्योतिर्बिंदु “ कहा जाता है और आगे चल के इन ३२ बिंदुओं को १६-१६ समान भागो में बाँट दिया जाता है. ये १६-१६ बिंदु समान भाव से आध्यात्म और सांसारिक भाव का स्पष्टीकरण करते हैं. जो १६ बिंदु आध्यात्मिक भाव को प्रकट करते हैं उन्हें “ शक्ति बिंदु” कहा जाता है. अब जैसे की हम जानते हैं की शक्ति और शिव एक दुसरे के बिना अधूरे हैं तो ये जो शिव बिंदु है वो स्थापित होता है सद्गुरु के हाथ के अंगूठे में.....असल में हमारे आज्ञा चक्र की तरह ही गुरुदेव के हाथ के अंगूठे में भी ३२ बिंदु स्थापित होते हैं जिन्हें “ शिव “ की गणना दी जाती है.
अब प्रश्न ये आता है की इस शिव और शक्ति का योग कैसे हो तो उसका एक सीधा और सरल उपाय है सद्गुरु से “ उपनयन दीक्षा “ की प्राप्ति क्योकि इस दीक्षा के मिल जाने से हमारे अंदर की सारी त्रुटियाँ स्वतः ही खत्म होने लगती है और हमारे अंदर तीसरे नेत्र को जाग्रत करने के लिए अति आवश्यक क्रिया अपने आप होने लगती है जिसे तीन भागो में बांटा जा सकता है......
१- इच्छा शक्ति २- क्रिया शक्ति ३- ज्ञान शक्ति
ये इच्छा शक्ति प्रतीक है “ सद्गुरु “ की, क्रिया शक्ति नेतृत्व करती है “ मंत्र “ का और ज्ञान शक्ति से सार्थकता मिलती है “ साधना पद्धति “ को.
सद्गुरु द्वारा शिष्य के आज्ञा चक्र को छू लेने से जब शिव और शक्ति एक साथ कार्यरत होते हैं तो तांत्रिक कुंडलिनी योग के माध्यम से हमारा तीसरा नेत्र जाग्रत होने लगता है और हमें वो सब दिखने लगता है जो आम मनुष्य के लिए किसी और लोक की बाते है. इसी तरह लाया योग से हम अपने दिमाग को अपने नियंत्रण में कर सकते हैं जिससे एक बार देखि,सुनी या पढ़ी गयी चीजें फिर कभी नहीं भूलती. समाधि योग हमें उस परम सत्ता से एकाकार करा देता है और हम जीवन मृत्यु से मुक्त हो जाते हैं.
भगवान शिव की ही तरह हर मनुष्य के दो समान नेत्रो के मध्य में तीसरा नेत्र होता है जिसके माध्यम से उसे वो सब दृश्य भी सहजता से दिखने लगते हैं जिन्हें साधारण आँखों से देख पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योकि जरा सोच के देखिये यदि शिव का तीसरा नेत्र प्रलय लाने में सक्षम है तो इसमें कुछ तो ऐसी विशेषता और विलक्षणता होगी जो ये सहजता से हर किसी से के मस्तिष्क में जाग्रत नहीं होता.... इसको खोलने और कार्यरत करने के लिए जरूरत होती है एक लम्बे तथा कड़े अभ्यास की और उस से भी ज्यादा एक योग्य सद्गुरु की क्योकि सद्गुरु के बिना और कोई नहीं जानता की शरीर के किस हिस्से में कौन सा बिंदु स्थापित होता है और किस बिंदु को स्पर्श करने से ये सुप्त से जाग्रत अवस्था में आ जायेगा.
योग शास्त्र के अनुसार हमारे आज्ञा चक्र में ही कुल मिला के ३२ बिंदु होते हैं जिन्हें “ ज्योतिर्बिंदु “ कहा जाता है और आगे चल के इन ३२ बिंदुओं को १६-१६ समान भागो में बाँट दिया जाता है. ये १६-१६ बिंदु समान भाव से आध्यात्म और सांसारिक भाव का स्पष्टीकरण करते हैं. जो १६ बिंदु आध्यात्मिक भाव को प्रकट करते हैं उन्हें “ शक्ति बिंदु” कहा जाता है. अब जैसे की हम जानते हैं की शक्ति और शिव एक दुसरे के बिना अधूरे हैं तो ये जो शिव बिंदु है वो स्थापित होता है सद्गुरु के हाथ के अंगूठे में.....असल में हमारे आज्ञा चक्र की तरह ही गुरुदेव के हाथ के अंगूठे में भी ३२ बिंदु स्थापित होते हैं जिन्हें “ शिव “ की गणना दी जाती है.
अब प्रश्न ये आता है की इस शिव और शक्ति का योग कैसे हो तो उसका एक सीधा और सरल उपाय है सद्गुरु से “ उपनयन दीक्षा “ की प्राप्ति क्योकि इस दीक्षा के मिल जाने से हमारे अंदर की सारी त्रुटियाँ स्वतः ही खत्म होने लगती है और हमारे अंदर तीसरे नेत्र को जाग्रत करने के लिए अति आवश्यक क्रिया अपने आप होने लगती है जिसे तीन भागो में बांटा जा सकता है......
१- इच्छा शक्ति २- क्रिया शक्ति ३- ज्ञान शक्ति
ये इच्छा शक्ति प्रतीक है “ सद्गुरु “ की, क्रिया शक्ति नेतृत्व करती है “ मंत्र “ का और ज्ञान शक्ति से सार्थकता मिलती है “ साधना पद्धति “ को.
सद्गुरु द्वारा शिष्य के आज्ञा चक्र को छू लेने से जब शिव और शक्ति एक साथ कार्यरत होते हैं तो तांत्रिक कुंडलिनी योग के माध्यम से हमारा तीसरा नेत्र जाग्रत होने लगता है और हमें वो सब दिखने लगता है जो आम मनुष्य के लिए किसी और लोक की बाते है. इसी तरह लाया योग से हम अपने दिमाग को अपने नियंत्रण में कर सकते हैं जिससे एक बार देखि,सुनी या पढ़ी गयी चीजें फिर कभी नहीं भूलती. समाधि योग हमें उस परम सत्ता से एकाकार करा देता है और हम जीवन मृत्यु से मुक्त हो जाते हैं.
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