Wednesday, February 19, 2025

Sammohan vashikaran Sadhana Surya sammohan vashikaran Sadhana

_*सदगुरुदेव भगवान की जय..*_

_*आप सभी मे व्याप्त ईश्वरीय चेतना रूपी परमात्मा को शिष्य का नमन प्रणाम..!*_

_नमस्कार दोस्तो, समूह में सबकी जिज्ञासा का विषय आकृषण वशीकरण पर रहा है ,तंत्र और मंत्र शाबर प्रयोग इन क्रियाओं से भरे पड़े है, कई महापुरुषों ओर सीद्ध आत्माओ ने भी इनके कई प्रयोग बाताए है ,जिनमे कुछ लोकप्रिय महापुरुषो के भी अपने मत रहे है ,ओर जीवन के अनुभव में उन्होंने प्रेम और अच्छी वाणी को भी एक वशीकरण कहा है..!_

_गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं- वशीकरण एक मंत्र है, *तजदे वचन कठोर*. वशीकरण का एक ही मंत्र है- कठोर वाणी का त्याग कर दो ,ओर सबसे संस्कार पूर्ण आचरण के साथ प्रेम पूर्ण मधुर व्यवहार करो..!_

_दोस्तों वही रहीम जी भी अपने दोहे में कहते है.,_
_*कागा काको धन हरे कोयल काको देय..!*_
_*मीठे वचन सुनाय कर जग वश में कर लेय..!!*_
_मधुर भाषण एक ईश्वरीय वरदान है, मोहनास्त्रों में इसे शिरोमणि कह सकते हैं,अपने मीठे बोल और अच्छे आचरण से किसी को जीतने का प्रयास कीजिए.यही स्वाभाविक वशीकरण है...!_

_प्रिय दोस्तों ,अन्य प्रयास तो बल प्रयोग जैसे हैं. जिस दिन बल क्षीण हुआ आपका सम्मोहन बिखरते और सच्चाई सामने आते देर नहीं लगेगी. इस तरह तो न माया मिली न राम वाली स्थिति हो जाएगी, ओर अंत मे अपयश ओर निंदा के कारण बनते देर नही लगेगी...!_

_दोस्तो ईश्वर भी अपने अनुदान वरदान हमारे मन के भाव देखते हुवे प्रदान करते है , इस बात को हम एक सांसारिक प्रसंग के माध्यम से ओर अच्छे से समझते है..!_

_एक सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में रहकर साधना करते थे. उनके ज्ञान और बुद्धिमानी की ख्याति दूर-दूर तक थी. एक औरत उनके पास दुखड़ा लेकर आई ,उसने कहा- मेरा पति पहले मुझसे बहुत प्रेम करता था,लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है, उसका बर्ताव बदल गया है. वह अब ठीक से बात तक नहीं करता. संन्यासी ने महिला से कहा जो युद्ध की त्रासदी का सामना कर चुके होते हैं, उन्हें कई बार विरक्ति हो जाती है..!_

_बाबा कहते है चिंता न करो समय के साथ सब ठीक हो जाएगा ,महिला तो सुनने को राजी न थी. वह काफी दूर से चलकर आई थी. इसलिए उसे हर हाल में ऐसा उपाय चाहिए था जिससे उसका पति पहले की तरह प्रिय हो जाए ,उसने संन्यासी की चापलूसी शुरू कर की- लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी पशुओं तक को इंसान बना देती है. मुझे ऐसी बूटी दें जिससे मेरे पति का वैराग खत्म हो जाए..!_

_संन्यासी समझ गए कि महिला भली तो है लेकिन फिलहाल इसके मन पर किसी ज्ञानवर्धक बात का असर नहीं होगा. तब संन्यासी ने कहा- मैं ऐसी दवा बनाकर तुम्हें दे तो सकता था लेकिन उसे तैयार करने के लिए एक खास वस्तु चाहिए जो अभी नहीं है मेरे पास ,महिला को हौसला मिला कि ऐसी दवाई होती तो है, जो ये बाबा बनाते हैं..!_

_बस दवाई बनाने के लिए जरूरी किसी सामान का अभाव है ! उसने कहा- बाबा आप मुझे बताइए. मैं लाकर देती हूं आपको वह खास वस्तु. जहां भी मिलती हो, जिस मोल मिलती हो मैं लेकर आऊँगी. संन्यासी ने बताया- उस दवा में पड़ने वाली बाकी सारी चीजें तो मेरे पास हैं बस एक चीज नहीं है- बाघ की मूंछ का एक बाल. बाघ की मूंछ का एक बाल मिलाए बिना दवा बेअसर है.अब बाघ की मूंछ का एक बाल मिलना इतना सरल तो हैं नहीं इसलिए दवा नहीं बन पाएगी. मुझे दुख है..!_

_महिला ने कहा- बाबा मुझे तो अपने पति को हर हाल में वश में करना है. मैं लेकर आऊंगी बाघ की मूंछ का बाल फिर आप उससे दवा बनाइएगा, संन्यासी ने कहा कि ठीक है लेकर आओ फिर देखते हैं. महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी.खोजते-खोजते उसे नदी के किनारे एक बाघ दिख भी गया. भोजन करने के बाद वह बाघ पानी पीने आया था. बाघ उस महिला को देखते ही दहाड़ा ,डर के मारे वह वहां से भागी लेकिन उसे तो पति का प्रेम जीतना ही था, क्योंकि उसके बिना जीवन फिजूल था. सो उसने प्राण संकट में डालने का निश्चय किया..!_

_वह कई दिनों तक उसी समय नदी किनारे पहुंचती जब बाघ पानी पीने आता. बाघ भोजन करके पानी पीने आता था इसलिए उसे भोजन की आवश्यकता थी नहीं जो महिला पर हमला करे ,धीरे-धीरे उस महिला के मन से बाघ का खौफ कम होता गया. उधर बाघ को भी महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी ,दोनों ही एक दूसरे के साथ पहले के मुकाबले कुछ सहज हो गए. अब तो बाघ ने उसे देखकर दहाड़ना भी बंद कर दिया था ! महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी ,बाघ किसी पर तभी हमला करता है जब वह भूखा हो. बिना वजह वह शिकार कभी करता नहीं. लेकिन वह तो तब आती थी जब भोजन कर चुका होता था और अब तो वह बाघ के लिए उपहार भी लाने लगी...!_

_तो भला बाघ उससे क्यों बैर करता ! कई महीनों के लगातार प्रयास के बाद आखिरकार दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती धीरे-धीरे इतनी बढ़ गई कि अब वह बाघ के पास जाकर पुचकारने-थपथपाने भी लगी थी ! एक दिन हिम्मत करके बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया और संन्यासी को दिया ! संन्यासी ने वह बाल लिया और उसे आग में झोंक दिया. पलभर में वह खाक हो गया...!_

_महिला बिफर गई. वह सिर्फ एक बाल नहीं था, उस महिला के कई महीनों की मेहनत और सेवा का परिणाम था, जिसके लिए उसने प्राण भी संकट में डाल दिया था..! क्रोध को किसी तरह नियंत्रित करते हुए उसने कहा- बाबा, जिस बाल को प्राप्त करने के लिए मैंने प्राण संकट में डाले उसे आपने जला दिया. अब बूटी कैसे बनेगी...?_

_संन्यासी ने कहा- बेटी तुम्हें अब किसी बूटी की ज़रुरत नहीं है. सोचो जब तुमने बाघ जैसे हिंसक जीव को अपने प्रेम से वश में कर लिया तो पति को वश में करने के लिए किसी औषधि या तंत्र-मंत्र की क्या सचमुच आवश्यकता है..? धैर्यपूर्ण प्रेम से पत्थर को भी पिघलाया जा सकता है. अखबारों ओर टीवी में नकली तांत्रिक के वेषधारी ढोंगी लोगो के तरह-तरह के वशीकरण के विज्ञापन आ रहे हैं ! मुझे बड़ा दुख होता है इस प्रकार से ठगाते लोगो को देखकर..!_

_दोस्तों ,आकृषक व्यक्तित्व और रीश्ते वशीकरण से आकृषण मंत्र से नहीं बनते. उन रिश्ते को तो प्रेम के जल से सींचने का प्रयास करें.उस प्रेम से बड़ा आकृषण ओर वशीकरण कुछ हो ही नही सकता, संसार की सबसे मीठी वस्तु मीठी बोली है. बात की मधुरता से ज्यादा मिठास का स्वाद और कहां मिल सकता है...!_

_दोस्तो अब हम मूल बात पर आते है, अगर अब भी आपमे आकृषण ओर वशीकरण की दिव्य क्षमता प्राप्त करने की जिज्ञासा है तो आप प्रबल सूर्य मंत्र के मानसिक जप को अपनाइए ,यह पूर्ण सात्विक ओर हानिरहित साधना है सूर्य सभी ग्रहों का केंद्र है ,सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हुवे अपना कर्म पूरा करते है, वही जड़ चेतन दिव्य औषधीय सूर्य की रश्मियों से प्राण शक्ति प्राप्त करते है ,रविवार का अलोना व्रत करके निराहार रहे और कमलासन या सुखासन लगाकर कुश के आसन पर एकाग्रचित्त होकर बैठ जाये तीन बार या ग्यारह बार गहरी सांस ले और छोड़े या प्राणायाम जिन्हें याद हो वो प्रणायाम करे,तत्पश्चात मानसिक रूप से *ॐ ह्रीं सूर्याय नमः* का मंत्र जप मानसिक रूप से एक घण्टा नित्य करे, एक ही समय पर सूर्योदय के समय अनुसार आंखे बंद कर उदयमान स्वर्णिम सूर्य का ध्यान करे, 21 दिन लगातार यह साधना करने पर आपके चेहरे का तेज और आकृषण बहुत प्रबल बढ़ने लगेगा, लगातार यह साधना करने वाला साधक ध्यान मात्र से जगत को वश में करने वाला सीद्ध पुरुष बन जाता है..!_

_यह साधना मुझे जब गिरनार पर्वत पर में अपनी साधनात्मक यात्रा पर गया था ,तब मुझे एक महासिद्ध पुरुष ने बताई थी ,उनके चेहरे का तेज और आकृषण देखते ही बनता था ,नजर हटाने का मन ही नही होता था ! ऐसे लगता था कि इनके समीप बैठे ही रहे, वो जिन्हें भी जो कुछ भी कहते सब उनकी आज्ञा पालन करने के लिए तत्पर रहते थे, उनसे पूछने पर उन्होंने मुझे इस मंत्र की महिमा बताई...!इस दिव्य मंत्र में पंचम महाविद्या माता भुवनेश्वरी का बीज मंत्र भी प्रयुक्त है , इस आलेख में जो अच्छा लगे उसे प्रेम पूर्वक ग्रहण करे जो अच्छा न लगे तो अनुजतुल्य जानकर क्षमा करें अनंत शुभकामना...✍🏻🌹_

_*लोकाः समस्ता सुखिनः भवन्तु..*_
हिरेंद्र प्रताप सिंह

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