Monday, August 29, 2011

GRAH DOSY-JYOTISHIYA AVALOKAN

GRAH DOSY-JYOTISHIYA AVALOKAN
क्या आप जानते हैं की ग्रह दोष क्या है?.... और कैसे इसका प्रभाव पूरे जीवन की खुशियों को समाप्त ही कर देता है . वास्तु दोष क्या है? कैसे इस दोष से घर की सुख शांति ही समाप्त हो जाती है ... प्रायः लोगो को ये शिकायत रहती है की हम पूजा पाठ करते हैं सभी देवी देवताओं को नमन करते हैं पर हमारा दुर्भाग्य बढ़ता ही जाता है. वर्षों से किसी खास मन्त्र की साधना किये जा रहे हैं पर सफलता तो मानों कोसो दूर है ही साथ ही साथ तकलीफे कम होने के बजाय बढती ही चली जा रही है.................
ऐसे कितने ही प्रश्न हैं जिनका उत्तर पाने में लोग अपना जीवन लगा देते हैं पर जितना कोशिश करते हैं उससे कही ज्यादा उलझते चले जाते हैं. इन सारे ही प्रश्नों के उत्तर ज्योतिष शास्त्र के पास हैं शर्त एक ही है की विवेचना ज्योतिष शास्त्रों के सूत्रों के द्वारा हो मतलब ज्योतिष जब तक किसी की विवेचना करता है तब तक तो वो विवेचन सही रहता है पर जैसे ही ज्योतिषी बोलना प्रारंभ करता है सारा का सारा दही फ़ैल ही जाता है.
चलिए आज हम उन सूत्रों को समझने की कोशिश करते हैं जिन्हें सदगुरुदेव ने हमें बताया तो है पर हम ही उन सूत्रों को विस्मृत कर बैठे हैं. मैंने अपने २२ वर्षों के ज्योतिषीय जीवन में कभी भी इन सूत्रों को गलत नहीं पाया है .
१. क्या किन्ही स्तिथियों में देवी -देवताओं का पूजन भी अशुभ हो जाता है ?
हाँ अगर किसी की कुंडली के दुसरे घर में कोई ग्रह नहीं हो और उसके आठवे और बारहवे भावः में जो भी ग्रह बैठे हो वो आपस में शत्रुता रखते हों तो ऐसे हालत में किसी भी देवी देवता का पूजन अशुभ हो जाता है क्यूंकि १२ भाव मोक्ष या समाधी का भी कारक है,२ भाव धर्म स्थान का कारक है,और ८ भाव मृत्यु का .अब यदि २ भाव खली होगा तो उसे जब मृत्यु स्थान का ग्रह पूर्ण दृष्टि मतलब ७ दृष्टि से देखेगा तो आपके साधना का फल भी शून्य ही होगा. और संयुक्त रूप से बैठे हुए १२ भाव का स्वामी यदि शत्रु ही हुआ तो उस स्थान की अशुभता कही ज्यादा बढ़ कर होगी ही .ऐसे में यदि व्यक्ति किसी धर्म स्थान की स्थापना करता है या उसके निर्माण के लिए दान देता है तो उसका विपरीत प्रभाव स्वाभाविक ही है .और एक बात मैं यहाँ स्पष्ट कर देता हूँ की ये प्रभाव सिर्फ आप को ही नहीं होता बल्कि आपकी पूजा का प्रभाव बहुत से जगह पर हो सकता है उदाहरण यदि वहा ८ भाव में सूर्य अपने शत्रु के साथ जो की ८ वे भाव् से सम्बंधित हो तो आर्थिक हानि, शासन सम्बन्धी,पिता को भी कष्ट होगा .चन्द्र होगा तो माँ को,मानसिक शांति को, मंगल होगा तो रक्त सम्बन्धी,भाई सम्बन्धी, लड़ाई झगडे का,बुध होगा तो व्यापार को,बहन को,शुक्र होगा तो सुख शांति, पत्नी को,गुरु हुआ तो विद्या ,ज्ञान, वक् क्षमता को,शनि हुआ तो बड़े तौ, या चाचा, नौकरी को, राहू हुआ तो ससुराल को, केतु हुआ तो बेटे और मित्रों को हानि होगी .
इसी प्रकार जो लोग एक ही समय में अपने पूजा स्थान में बहुत सारे देवी देवता का पूजन करते रहते हैं या तस्वीरे लगा कर रखते हैं वो लोग गलती से सभी तत्वों को जाग्रत कर लेते हैं और ये तत्व आपस में ही टकराकर व्यर्थ हो जाते हैं .यही कारण है की लोग लगातार पूरे जीवन पूजा पाठ करते हैं और उम्र रोते रहते हैं की भगवान आपने हमें कुछ नहीं दिया .इस लिए सदगुरु से पूछकर सर्व प्रथम अपने इष्ट को जानना चाहिए.वे आपके तत्वों को पहचानकर आपको उसका ज्ञान करा देंगे.वैसे इसका पता आपकी कुंडली के ५ वे भाव से होता है वो भाव आपके पूर्वजीवन की किताब ही होता है . इस स्थान के द्वारा जो की आपके प्रेम का भी भाव है ये भी पता चल जाता है की आपके इष्ट के प्रति आपका प्रेम कितना आत्मिक है या आपको इष्ट की कृपा कब मिल पायेगी. यदि पंचमेश का सप्तमेश और व्ययेश (१२ वे भाव का स्वामी) से सम्बन्ध बनता है तो इष्ट प्रत्यक्षीकरण होना ही है, सफलता मिलनी ही है.यदि पंचम भाव में सूर्य हो या वो यहाँ का स्वामी हो तो इष्ट विष्णु होंगे, चन्द्र -शिवजी,मंगल-हनुमान जी,बुध-दुर्गा उपासना, ब्रहस्पति -शिवजी,विष्णु जी, शुक्र-लक्ष्मी,शनि-भैरव, राहू-सरस्वती ,केतु-गणेश जी,...
मतलब पुरुष ग्रह वालो को देवता का और स्त्री ग्रह वालों को देवी का चयन करना चाहिए .साथ ही किस विधि से उपासना करना है इसका पता नवम् भाव से लगता है. यदि पंचम भाव में सतगुन प्रधान राशिः है तो वैदिक विधि,मन्त्र ,योग साधना करना उचित है .राजसी गुण प्रधान राशिः है तो पूर्नोप्चार पूजन व दक्षिण मार्ग तथा तामस गुण युक्त राशिः वालों के लिए उग्र साधनाएं उचित हैं.
इसी प्रकार अपने द्वरा प्रयुक्त मंत्रों का चयन भी सावधानी से करना चाहिए, हमेशा ६,८,१२ भाव में स्तिथ राशियों से सम्बंधित अक्षरों से प्रारंभ होने वाले मन्त्र को न करना ही ज्यादा उचित है ,क्यूंकि यदि हम अपने ६थ भाव की राशिः के प्रभाव वाले अक्षर से प्रारंभ होने वाले मन्त्र का यदि जप करते हैं तो कर्ज,शत्रु,मुकदमा,रोग आदि पीछे लग जाते हैं, ८ वे से बीमारियाँ,दुर्घटना,१२ वे से व्यर्थ का खर्च होना ही है.इस लिए शास्त्र आज्ञा है की मन्त्र हमेशा गुरुमुख से ही लेना चाहिए . गुरु अपने प्राणों से घर्षण कर उसके ताप में उस मन्त्र के दोषों को भस्मीभूत कर देता है .और वो मन्त्र साधक के लिए निर्मल व कल्याणकारी हो जाता है.
इसी प्रकार सिर्फ तथाकथित वास्तुशास्त्रियों के कहने पर घर में तोड़ फोड़ करने से ग्रह-वास्तु आपके अनुकूल नहीं हो सकता बल्कि वास्तु भंग का भी दोष लग जाता है .हर व्यक्ति को अपने घर की भी कुंडली बनवाकर देख लेना चाहिए ,ताकि भावो के आधार पर दिशाओं की शक्ति की जानकारी हो सके तथा शक्ति की प्रबलता को संतुलित किया जा सके.वैसे भी जन्म कुंडली में यदि शनि-राहू, मंगल-राहू, साथ में हो चाहे वो किसी भी भाव में हो तो वास्तु दोष होता ही है. रही बात दिशा की प्रबलता की तो उसके लिए गृह स्वामी की कुंडली का अवलोकन करके ही दिशों की शक्ति के प्रवाह को बताया जा सकता है.
ऐसी किसी भी स्तिथि में गृह दोष निवारण ,वास्तु दोष निवारण साधना और गृह बाधा निवारण दीक्षा के लिए सदगुरुदेव से प्रार्थना करना ही श्रेष्टतम उपाय है. भविष्य में और कुछ सूत्रों पर प्रकाश डालने का प्रयाश करूँगा .तब तक के लिए "ॐ शम"
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Does any one of you know what is “Grah Dosh – Home Defect / Lack” in terms of Astrology and how does it can affect your whole life and can ruin all your happiness forever???? What is “Vastu Dosh” and how this can affect the peace of a home???? Many often people say that they worship a lot but still their bad luck don’t let them go anywhere or from no.of years they are into the devotion but the path of success is still very far and the problems are getting increased rather than decreasing….
There are n no.of questions which people seeks for the right answers but more they want to resolve the more they get confused….All these answers lie in the Astrology but the only one condition is the analysis or prediction must be from the Astrological studies which means that till the time the Astrology analyse something the thing remains accurate but as soon as the Astrologer speaks the whole things becomes a Mess…
Let’s understand today the points which Sadgurudev has told but somehow we have forgotten those important synopsis…Believe me, in my 22 Astrological career I have never found these points wrong even once…
Can the worshipping of any God or Goddess cause any bad luck?
I will say – YES…How???
If in the horoscope, the 2nd house of a birth chart lies vacant (that means – No planetary position) and the Planets which are lying in the 8th & 12th house are rivals of each other than in this condition – Any worship of any of the God / Goddess will create a Bad luck for the person because 12th house represents Salvation or Meditation ; 2nd house represents Religious Matters whereas 8th house represents Death; now understand if the 2nd house will remain vacant and the 8th house of death will parallel see with its full powers then the result of any devotion will be null or zero….. and if in the combination form the master of the 12th house is a rival the hard luck of that house will be much more…Now in this case if a person establish any religious place or donate some amount for pilgrimage construction than too there will be an adverse effect of the same is very much sure…
Here, I want to make one point clear that the effect will not only effect only you but it can effect many other places also for eg.- if in the 8th house, Sun is lying with the rival which is associated with the 8th house it will result into the financial loss , administration loss and will cause harm to father….similarly if Moon will be present it will harm mother and the mental peace….If Mars, it will affect brother’s relation as well as will give blood disease and will cause unnecessary disputes…If Mercury, it will affect the Business and the sister relations…If Venus it will affect the Peace and Prosperity and the wife relations…If Jupiter the studies, knowledge & the speech powers will be affected…If Saturn the family relations will be affected like Elder and Younger Uncle or the Job…If Rahu the In – Laws relations will be affected and last but not the least if Ketu will be present it will affect the Son and the friends…
Similarly, the people who establishes more than one Worship Idol at one place or place too many Idols pictures they directly or indirectly activate all the elements and these elements get intermingled with each other and because of the different powers the energy gets waste and the people regret that instead of worshipping the God for the whole life he has given nothing in return…That’s why first identify for the most important IDOL as per your planetary positions; as soon as the Sadgurudev identifies the same he will ask you to worship for the same accordingly….
You can identify your IDOL by the 5th house from your chart and this position also identifies your early birth work also…from this house you can also identify how much affection lies with your worship IDOL as this position resembles affection and this shows when the IDOL will give blessings to you…If the “Panchmesh” makes relation with the “Saptamesh” and the “Vyayesh” (Master of 12th house) then the IDOL will definitely bless you and the success will be all yours….
If in the 5th house –
SUN lies – the worship IDOL is Lord Vishnu
MOON lies – the worship IDOL is Lord Shiva
MARS lies – the worship IDOL is Lord Hanuman
MERCURY lies - the worship IDOL is Goddess Durga
JUPITER lies - the worship IDOL is Lord Shiva or Lord Vishnu
VENUS lies - the worship IDOL is Goddess Lakshmi
SATURN lies - the worship IDOL is Lord Bhairav
RAHU lies - the worship IDOL is Goddess Saraswati
KETU lies - the worship IDOL is Lord Ganesha
This indicates the Male dominating planets needs to choose the worship IDOL as GOD and the female planets needs to choose GODDESS….along with this one should also know what is the correct method for the worshipping….and this can be identified by the 9th house….
If in the 5th house is dominated by the SATGUN pradhan zodiac sign – the Vedic Vidhi, Mantra, Yog Sadhna is preferred; If RAJASI pradhan – the Poonorpchaar Poojan & if South oriented and TAMAS pradhan sign – Ugra Sadhnayen (Aggressive devotional processes) is considered as the best one…
Similarly, one should take care in selection of the Mantra (Holy Chants)also…Please take care that the alphabets which get starts according to the 6th,8th & 12th house should not take the Mantra which gets start from the same alphabet because if we start chanting the Mantra which gets start from the same alphabet which is ruled by the 6th house it will affect in the form of a Loan, Court Case, Diseases etc…
If the ruling house is 8th then – Accidents and the Disease chances are more…and 12th house will affect in the unnecessary financial expenses…
Hence, it is very well suggested that the Holy chants should always be taken from the Sadgurudev instructions…as the Sadgurudev make active that Mantra with his powers and that Mantra will act as a blessing and useful for the Devotee…
One more important point that one should not renovate his house just because from the instructions given as per the Vastu Astrologer as by doing this cannot give the full results but instead of correction it will be considered as a Vastu Sin…Every person should know about the House horoscope also so as to make each angle of the house favourable as per the ruling house with the help of the ruling directions also..And all these powers can be used as a Positive Energy…
Infact,if in a birth horoscope the Saturn – Rahu & the Mars – Rahu lies with each other it will result into the Vastu Dosh….and as far as power of the direction lies it can analysed only by knowing the horoscope of the head of the family so as to make the results of the Directions powers favourable to him…
In any of the condition viz. Grah Dosh Nivaran, Vastu Dosh Nivaran Sadhna & Grah Badha Nivaran Diksha – Pray to your Sadgurudev is the best option….
In future, I will try to throw more light on the similar topics, till then – OM SHAM…

Friday, August 26, 2011

Maya dasi sant ki sankat ki shir Taj

माया दासी संत की साकट की शिर ताजसाकुट की सिर मानिनी, संतो सहेली लाज 

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि माया तो संतों के लिए दासी की तरह होती है पर अज्ञानियों का ताज बन जाती है। अज्ञानी लोग का माया संचालन करती है जबकि संतों के सामने उसका भाव विनम्र होता है।

गुरू का चेला बीष दे, जो गांठी होय दामपूत पिता को मारसी, ये माया के काम

संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते है। कि शिष्य अगर गुरू के पास अधिक संपत्ति देखते हैं तो उसे विष देकर मार डालते है। और पुत्र पिता की हत्या तक कर देता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-अगर देखा जाये तो पैसे की औकात केवल जेब तक ही रहती है जबकि अज्ञानी लोग इसे सदैव अपने सिर पर धारण किए रहती है।। वह बात-बात में अपने धनी होने का प्रमाणपत्र लेकर आ जाते हैं। अपनी तमाम प्रकार डींगें हांकते है। परमार्थ से तो उनका दूर दूर तक नाता नहीं होता। जो लोग ज्ञानी हैं वह जेब मैं पैसा है यह बात अपने दिमाग में लेकर नहीं घूमते। आवश्यकतानुसार उसमें से पैसा खर्च करते हैं पर उसकी चर्चा अधिक नहीं करते। आजकल जिसके भी घर जाओं वह अपने घर के फर्नीचर, टीवी, फ्रिज, वीडियो और कंप्यूटर दिखाकर उनका मूल्य बताना नही भूलता और इस तरह प्रदर्शन करता है जैसे कि केवल उसी के पास है अन्य किसी के पास नहीं। कहने का अभिप्राय है कि लोगों के सिर पर माया अपना प्रभाव इस कदर जमाये हुए है कि उनको केवल अपनी भौतिक उपलब्धि ही दिखती है।
लोग आपस में बैठकर अपने धन और आर्थिक उपलब्धियों पर ही चर्चा करते हैं। अगर कोई गौर करे और सही विश्लेषण करे तो लोग नब्बे फीसदी से अधिक केवल पैसे के मामलों पर ही चर्चा करते हैं। अध्यात्म चर्चा और सत्संग तो लोगों के लिए फ़ालतू कि चीज है । इसके विपरीत जो ज्ञानी और सत्संगी हैं वह कभी भी अपनी आर्थिक और भौतिक उपलब्धियों पर अहंकार नहीं करते। न ही अपने अमीर होने का अहसास सभी को कराते हैं।

वैसे जिस तरह आजकल धार्मिक संस्थानों में संपतियों को लेकर विवाद और मारामारी मची है उसे देखते हुए यह आश्चर्य ही मानना चाहिये कि कबीरदास जी ने भी बहुत पहले ही ऐसा कोई घटनाक्रम देखा होगा इसलिए ही चेताते हैं कि गुरुओं को अधिक संपति नहीं रखना चाहिये। आजकल अनेक संत इस सन्देश कि उपेक्षा कर संपति संग्रह में लगे हुए हैं इसलिए ही विवादों में भी घिरे रहते हैं।

Dhan ki mahta

दान की महत्ता

सैकडों हाथों से एकत्रित करो और हजारों हाथों से बांटो। यह कथन अथर्ववेदसे लिया गया है। वास्तव में, यदि हमें कुछ पाना है, तो कुछ त्याग भी करना पडेगा। यह आध्यात्मिक नियम भी है कि दिया हुआ कभी व्यर्थ नहीं जाता है, बल्कि वह कई गुणा बढकर वापस हमारे पास आ जाता है। पाने का पूरक है दान

यदि हम कुछ पाना चाहते हैं, तो पहले दान देना होगा। यह नियम प्रकृति के साथ भी लागू होता है। उदाहरण के लिए यदि हमें अन्न प्राप्त करना है, तो पहले हमें पृथ्वी को बीज के रूप में दान देना पडता है। बाद में यही बीज हमें अन्न-भंडार के रूप में प्राप्त होता है। यदि वृक्षों से हमें फल प्राप्त करना है, तो पहले खाद-पानी एवं सेवा के रूप में कुछ न कुछ त्याग करना ही पडता है। जीवन के सभी क्षेत्रों में यह नियम समान रूप से लागू होता है। महापुरुषों के अनुसार, जो कुछ भी आपको हासिल करना है, कुछ वही दूसरों को देकर देखिए। सच पूछिए, तो जितना आपने दिया है, उससे कई गुणा ज्यादा आपको मिल जाएगा। चिंतक का दृष्टिकोण

हमारे ऋषि-मुनि भी यही मानते हैं कि जितना अधिक हम दूसरों को देते हैं, उतना ही हम पाते भी हैं। यहां प्रसिद्ध भारतीय चिंतक कृष्णमूर्ति का एक दृष्टांत है। एक व्यक्ति ईश्वर के बहुत समीप था। एक बार ईश्वर ने उससे कहा, एक गिलास जल देना। वह व्यक्ति जल लेने कुछ दूर निकल गया। एक घर में जल मांगने पहुंचा, तो वहां एक सुन्दर युवती को देखा। युवती को देखते ही उसे प्रेम हो गया। यहां तक कि उसने उससे विवाह भी कर लिया। दंपत्तिके बाल-बच्चे भी हो गए। एक बार जोरों की वर्षा हुई। नदी-नाले उमड पडे। अपने घर-परिवार के साथ वह भी जब डूबने लगा, तो उसने ईश्वर से प्रार्थना की, प्रभु मुझे बचा लो। ईश्वर ने कहा, मेरा एक गिलास जल कहां है?

एक ईसाई चिंतक ने इस आध्यात्मिक प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए एक बडी अच्छी घटना को उद्धृत किया है। एक राजा हाथी पर सवार होकर जा रहा था। एक भिक्षुक ने उसे देखा और वह उसके पीछे दौडने लगा, राजा मुझे कुछ दान दो। राजा ने कहा, पहले तुम मुझे कुछ दो। भिक्षुक ने सोचा यह कैसा राजा है, जो एक भिखारी से दान लेना चाहता है! उसने क्रोध में चावल के चार दाने उसके ऊपर फेंक दिए। राजा ने उसके भिक्षा-पात्र में सोने के कई दाने डाल दिए। भिक्षुक ने आश्चर्य से अपने पात्र में पडे सोने के चावलों को देखा और सोचा, मुझे अपने सभी दान को राजा को दे देना चाहिए था। सबसे बडा धर्म

हमारे धर्मग्रंथों में भी कहा गया है कि दान से बडा कोई धर्म नहीं-न हि दानात्परो धर्म:। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है-जिस किसी विधि से दान दो, उससे आपका कल्याण ही होगा।

जेनकेन बिधिदीन्हें।

दान करईकल्यान।।

वेदों ने बहुत पहले ही दान की महत्ता बताई थी। ऋग्वेद में अनेक दान-संबंधी ऋचाएंहैं। उदाहरण के लिए दान नहीं देने वाले मनुष्य कभी सुखी नहीं हो सकते हैं। [ऋक्-10/117/1]

ऐसा कोई धर्म नहीं है, जिसमें दान की महत्ता को रेखांकित नहीं किया गया हो। ईसाई धर्म से लेकर इस्लाम, बौद्ध, जैन, पारसी आदि सभी धर्म एक स्वर से दान की महत्ता का गुणगान करते हैं।

इस्लाम में अनुयायियों के लिए आय का दसवां हिस्सा खैरात के रूप में देने का प्रावधान है। इसी तरह टेथर के रूप में ईसाई धर्म में भी आय का दशम भाग चर्च को नियमित रूप से देने की प्रथा है। बाइबल में भी दान के महत्व को रेखांकित किया गया है। उसके अनुसार, लेने से अधिक देना हमारे लिए सदैव हितकारी होता है। इसलिए यदि हमें आध्यात्मिक साधना करनी है, तो हमें अल्प ही सही, दान जरूर देना चाहिए।

Monday, August 22, 2011

Shri Sanyukt Lakshmi Ganesh prayog


Shri Sanyukt Lakshmi Ganesh prayog






धन आज के युग का सबसे बड़ा सत्य बन गया हैं और क्यों न हो , ऋग वेद मेभी कहा गया हैं की सभी गुण तो केबल मात्र लक्ष्मी के आधीन रहते हैं,मतलब बहुत ही साफ़ हैं एक उच्चस्थ ग्रन्थ कार भी कहता हूँ,मैं भी वही, मेरा ज्ञान भी बही ,पर हे लक्ष्मी केबल तुम्हारी कृपा न पाने के कारण,आज मुझे को कोई नहीं पूछता , कोई सम्मान नहीं देता . यह तो बात ग्रंथो की हैं पर दिन प्रति दिन मे जो हालात हम सभी के सामने हैं उसमे तो कैसे सामना किया जाये यही आ ज की बड़ी समस्या हैं .


कुछ तो इसी में परेशान हैं की लक्ष्मी आये तो सही ,कैसे करे दिन प्रति दिनके खर्चे का सामना .


कुछ की आवश्यकता से अधिक धन उपार्जन की क्षमता हैं पर वह भी कहते रहते हैं कि पैसा हाँथ में रुकता नहीं हैं . क्या यह बात सही हैं??, हाँ कुछ हद तक क्योंकि लक्ष्मी तो चंचला हैं उन्हें कौन रोक सकता हैं .


लक्ष्मी को माँ माँ कह कर आरती करते रहने से आपका ज्यादा नुक्सान हो सकता हैं सदगुरुदेव भगवान् ने कितनी बार इन गोपनीय बातों को अपने लेखो में लिखा हैं की भूल कर भी मैय्या मैय्या कह कर कभी भी लक्ष्मी उपासना न करो क्योंकि जीवन में एक समय के बाद माँ को तो हमेशा देना पड़ता हैं . खैर इस संबंधमे सदगुरुदेव के लेख आप स्वयं ही पढ़े. तब क्या करे की आती हुए लक्ष्मी घर में ही स्थापित रहे , और चलिए स्थापित तो हो गयी पर यदि वह सही ढंग से खर्च न की जा रही हो तो भी मुश्किल क्योंकि तब तो हम मात्र चौकीदार जैसे हो गए न . सदगुरुदेव कहतेहैं लक्ष्मी पुत्र बनना ठीक हैं पर लक्ष्मी दास बनना ठीक नहीं हैं


तब इसको खर्च करते समय बुद्धि का उपयोग करे . यहाँ सद्बुद्धि का उपयोग ज्यादा उचित रहता.


तब भगवान् गणेश का आगमन होता हैं जो विघ्न हर्ता तो हैं ही , पर विघ्न कर्ता. भी हैं.


वह अपने वरद हस्त से सब हमारे अनुकूल कर देते हैं , हम सभी साधक केबल कहने के लिए ही गणेश उपासना केबल खानापूर्ति के लिए साधना के पहले कर लेते हैं . पर हम में से कितने जानते हैं, जब तक मूलाधार चक्र सही न हो तब तक जीवन में न तो साधना में ठीक से बैठना नहीं आ पायेगा, आसन स्थिर हो ही नहीं हो सकता हैं न ही काम भावना पर नियंत्रण हो सकता हैं आज समाज में जो भी काम भावना की अतिरेकता हो रही हैं वह इसी चक्र की गडबडी का नतीजा हैं. हमारे ऋषियों ने कितने सोच कर इस चक्र का नाम दिया हैं मूल + आधार .


और भगवान् गणेश इसी चक्र के देवता हैं , इसलिए इस चक्र को गणेश चक्र भी कहा जाता हैं.वेसे भी किसी भी काम को शुरू करने के लिए श्री गणेश करना भी कहा जाता हैं.


जहाँपर लक्ष्मी के साथ वरदायक भगवान् श्री गणेश का अंकुश रहे वहां आप ही सोच सकते हैं ...शुभता . संपत्ति , श्रेष्ठ ता , बिघ्न रहित जीवन .. सब ही कुछ तो होगा ,


पर कैसे हो यह संभव ..


हर साधक को अपने साधना पूजन में लक्ष्मी और गणेश को स्थान देना ही चाहिए ही .


मंत्र : श्रीं ॐ गं


इसके लिए विशेष नियम नहीं हैं पर आप इस मंत्र की एक माला जप अपनी पूजा में शामिल कर ले. तो धीरे धीरे आप स्वयं इस मंत्र का प्रभाव देख सकते हैं


आज के लिए बस इतना ही
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Money is becoming the biggest truth now a days, and why not it to be, Rig-Veda’ says that all the qualities lies in lakshmi, and one great writer also said that now I am the same , my gyan also as it is, but o goddess lakshmi without your blessing , where am I today ?, no one respect me , no one want to meet me. but these are the writings in books. Every days what we are facing everybody already knew that. How to face the current situation is the biggest problem.


Some are worried how to earn enough/sufficient so that our at least daily minimum needs would be fulfilled.


On the other hand some has the qualities to earn more than enough ,they are also complaining that they are not able to save money , Is it true ??? yes on some level , since lakshmi Is not stationery , she is always moving. who can stop her?.


Those who are continuously doing aarti with saying maiyya maiyya (mother mother ) actually hurting himself, why?, Sadgurudev ji very clearly mentioned that we should not worship goddess lakshmi as a mother since to mother we have to always give after a certain point,, what Sadgurudev more said in this connection , you can read/listen in his divine writings . but is there any way so that lakshmi can be finally made stationery in our home. and suppose if goddess lakshmi becomes totally stationery in our home and if that is not wise fully used than this also become headache. Than we are just a guard and nothing else.


Sadgurudev used to say that its nice to be son of lakshmi instead of lakshmi das.


Then how can be wisely used , here I would like to say through “sadbuddhi”.


Than Bhagvaan Ganesh comes into picture.


Through his blessing everything’s comes to positive for us, he is both obstruction creator and obstruction destroyer., most of us just do the Ganesh sadhana just for formality in the beginning of any sadhana. But how many of us knows that until mooladhar chakra Is properly functioning , till than sitting for any sadhana is not properly possible ,(as needed). And our sexual desire also can not be controlled , now a days whatever/everywhere we are watching is the over excess of this sexual unbalance /sensuous gratification is the result of not properly function of this mooladhar chakra. Think about a minute how wisely our rishis , gave this chakra a name mool +aadhar.( foundation of basic root ).


Bhagvaan Ganesh is the lord of this chakra , that’s why this chakra is also known as Ganesh chakra,, and whenever any new work starts we say we have to “shri Ganesh “ of that work .


Where with lakshmi Bhagvaan Ganesh controlled our buddhi than every thing positivity happens there.


But how that can be possible????.


We should have a place of Ganesh and lakshmi poojan in our daily poojan/sadhana .


Mantra : Shreem om gam .


There is no special rules have to be follow, only one round of rosary /one mala is sufficient and slowly slowly you can see the result.


This is enough for today.

Friday, August 19, 2011

KaLika Astak


कालिकाष्टक (शंकराचार्य विरचितम)



* ध्यान *
गलद्रक्त मुण्डावली कण्ठमाला 
माहाघोर रावा सुदँष्ट्रा कराला।
विवस्त्रा श्मशनालया मुक्तकेशी
महाकाल कामा कुला कालिकेयम।।१।। 

भुजेवामयुग्मे शिरोसिं दधाना
वरं दक्षयुग्मेभयं वै तथैव । 
सुमध्यापी तुंगस्थना भारनम्रा
लसद्रक्त सृक्कद्वया सुस्मितास्या।।२।। 

शवद्वन्दकर्णा वतंसा सुकेशी
लसत्प्रेतपाणीं प्रयुक्तैक कांची। 
शवाकारमँचाधीरुढा शिवाभि-
श्चतुर्दिक्षु शब्दयामानाभिरेजे।।३।। 

      **स्तुती** 
विरन्च्यादिदेवास्त्रयते गुणात्रिम्
समाराध्य कालीँ प्रधाना बवुभु। 
अनादिं सुरादीं मखादिं भवादिं 
स्वरूपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।१।।

जगन्मोहिनियम् तु वाग्वादिनियम्
सुह्रिद्पोषिणी शत्रु संहारणियम्।  
वचस्तम्भनियम् किमुच्चाटनियम्
स्वरुपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।२।।

इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली 
मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात।
तथाते कृतार्था भवन्तीति नित्यम
स्वरुपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।३।। 

सुरापानमत्ता शुभक्तानुरक्ता 
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते। 
जपध्यान् पूजासुधाधौतपंका 
स्वरुपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।४।। 

चिदानन्दकन्दं हसन्मन्दमन्दं 
शरच्चन्द्र कोटीप्रभापुन्ज बिन्वम्। 
मुनीनां कवीनां हृदि ध्योतयन्तं 
स्वरुपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।५।।        

माहामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा
कदचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया। 
न वाला न वृद्धा न कामातुरापि 
स्वरुपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।६।। 

क्षमास्वपराधं माहागुप्तभावं 
मायालोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत्। 
तव ध्यानपुतेन चापल्यभावात्
स्वरुपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।७।। 

यदी ध्यान युक्तं पठेध्यो मनुष्य 
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च। 
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्ती-
स्वरुपं त्वदियं न विन्दन्ती देवा।।८।। 

A tribute to Mother..Jay Mahakali Jay Jagat Janani Bhagavati Mata

apradh kashma stotra





अपराध क्षमापन स्तोत्र



न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥1॥


विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥2॥


पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:।
मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥3॥


जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥4॥


परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥5॥


श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरित चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥6॥


चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥7॥


न मोक्षस्याकाड्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:॥8॥


नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥9॥


आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥10॥


जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥11॥


मत्सम: पातकी नास्ति पापघन्ी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु.

Gurumata........ Image:सिद्धाश्रम निखिल वाणी

Guru Aavhan stotra


गुरु आह्वान् स्तोत्र

१ 
पूर्णम् सतान्यै परिपूर्ण रुपम्।  
गूरुर्वै सतान्यम् दीर्घो वतान्यम्।। 
आवर्विताम् पूर्ण मदैव पुण्यम्। 
गुरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।।
       त्वमेव माता च........... 
२ 
न जानामी योगम न जानामी ध्यानम्। 
न मन्त्रम् न तन्त्रम् योगम् कृयान्वै।। 
न जानामी पुर्णम् न देहम न पूर्वम। 
गुरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।।
       त्वमेव माता च........... 
३ 
अनाथो दरिद्रो जरा रोग युक्तो। 
माहाक्षिण दीनम् सदा ज्याड्य वक्त्र:।। 
विपत्ती प्रविष्टम् सदाह्म् भजामी। 
गुरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।।
       त्वमेव माता च........... 
४ 
त्वम् मातृ रुपम् पितृ स्वरुपम्। 
आत्म स्वरुपम् प्राण स्वरुपम्।। 
चैतन्य रुपम् देव दिवन्त्रम्। 
गूरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।।  
        त्वमेव माता च...........
५ 
त्वम् नाथ पूर्णम् त्वम् देव पुर्णम्। 
आत्मम् च पूर्णम् ज्ञानम् च पूर्णम्।। 
अहम् त्वाम् प्रपध्ये सदह्म् भजामी। 
गूरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।।
           त्वमेव माता च........... 
६ 
मम अश्रु अर्घ्यम् पुष्पम् प्रसुनम्। 
देहम् च पुष्पम् शरणम् त्वमेवम्।। 
जीवो$वदाम् पूर्ण मदैव रुपम्। 
गूरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।। 
           त्वमेव माता च...........
आवाहयामि        आवाहयामि। 
शरण्यम् शरण्यम् सदाह्म् शरण्यम्।। 
त्वम् नाथ मेवम् प्रपध्ये प्रशन्नम्। 
गूरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।। 
         त्वमेव माता च...........
८ 
न तातो न माता न बन्धुर्न भ्राता।
न पुत्रो न पुत्री न भृत्योर्न भर्ता।।
न जाया न वित्तम न वृत्तिर्ममेवम्।
गूरुर्वै शरण्यम् गूरुर्वै शरण्यम्।।
         त्वमेव माता च...........
९ 
आवध्य रुपम् अश्रु प्रवाहम्। 
धीयाम् प्रपध्ये हृदयम् वदान्यै।। 
देह त्वमेवम् शरण्यम् त्वमेवम्। 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
         त्वमेव माता च........... 
१० 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
एको हि नाथम् एको हि शब्दम्। 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
         त्वमेव माता च...........
११ 
कान्ताम् न पूर्व वदान्यै वदान्यम्। 
को$ह्म् सदान्यै सदाह्म् वदामि।। 
न पूर्वम् पतिर्वै पतिर्वै सदा$ह्म्। 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
         त्वमेव माता च...........
 १२ 
न प्राणो वदार्वै न देहम् नवा$है। 
न नेत्रम न पूर्व सदा$ह्म् वदान्यै।। 
तुच्छम् वदाम् पूर्व मदैव तुल्यम्। 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
         त्वमेव माता च...........
१३ 
पूर्वो न पूर्व न ज्ञानम् न तुल्यम्। 
न नारी नरम् वै पतिर्वै न पत्न्यम्।। 
को कत् कदा कुत्र कदैव तुल्यम्। 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
        त्वमेव माता च...........
१४ 
गुरुर्वै गतान्यम् गुरुर्वै शतान्यम्। 
गुरुर्वै वदान्यम् गुरुर्वै कथान्यम्।। 
गुरुमेव रुपम् सदा$ह्म् भजामी। 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
        त्वमेव माता च...........
१५ 
आत्र वदाम् अश्रु वदैव रुपम्। 
ज्ञानम् वदान्यै परिपूर्ण नित्यम्।। 
गुरुर्वै वज्राह्म् गुरुर्वै भजाह्म्। 
गुरुर्वै शरण्यम् गुरुर्वै शरण्यम्।।
        त्वमेव माता च........... 
१६ 
त्वमेव माता च पिता त्वमेव। 
त्वमेव वन्धुश्च सखा त्वमेव।। 
त्वमेव विध्या द्रविणम् त्वमेव। 
त्वमेव सर्वम् मम देव देव।।