शिष्यत्व
• वेदव्यास अपनी मृत्यु शैया पर डबडबायी आँखों से कह रहे थे कि – “ काश ! मुझे कुछ सही और वास्तविक शिष्य मिल जाते |”
• गोरखनाथ ने कहा – “ समर्पित शिष्य मिल जांए यह आश्चर्य सा हो गया है |”
• शंकराचार्य व्यथित भाव से उच्चारित कर रहे थे, कि – यदि कुछ शिष्य मेरे पास हों तो में बहुत कुछ कर लूं |”
• यह सब सही थे, क्यूंकि समर्पित शिष्य कि पहिचान ही अलग है, अहंकार रहित, सर्वस्व समर्पण युक्त, जीवन को फना करने का हौसला रखने वाला |
• वह गुरु के व्यक्तित्व में पूरी तरह से ढल जाता है, वैसी ही चाल, वैसी ही बोलने की अदा, वैसा ही बैठने का ढंग, वैसा ही व्यवहार, चिंतन, विचार और लक्ष्य...
• ऐसा लगे की गुरु की प्रतिकृति हो |
• और ऐसे ही बारह – पूरी पृथ्वी से मात्र बारह शिष्य मिल जांय, तो में पूरे ब्रह्माण्ड को बदल देने का हौसला रखता हूँ |
• बस शिष्य आगे आवें, और मुझे प्राप्त हो जांए |
(गुरु सूत्र से – डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली)
गुरु वाणी
तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं है एक सामान्य चिंतन नहीं है ,तुम्हे यह मनुष्य देह अनायास ही प्राप्त नहीं हो गयी है कितने ही संघर्ष कितने ही गुरु के प्रयास इसके पीछे है,अत: इस जीवन को सहज ही मत लेना |इसका मूल्य समझो और मूल उद्देश्य को जानो |
मुझे अत्याधिक वेदना होती है जब तुम एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो ,तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे मूल लक्ष्य की और बढ़ने से रोकते है ,मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुए हो यह आपका दुर्भाग्य ही है |
अगर ऐसा है तो तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर आप मेरे शिष्य है तो आपमें यह क्षमता होनी चाहिए कि आप पशुता से उपर उठ कर मनुष्यता तथा मनुष्यता से उपर उठ कर देवता के स्थान पर पहुँच जाए |
शिष्य वही है जो भोतिकता को भोगे परन्तु आपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए |उसकी द्रष्टि हमेशा आपने लक्ष्य पर टिकी रहे |मेरे इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहा भारत क्या ,पूरे विश्व में तुम्हे चुनोती देने वाला कोई न हो |
मैं तुम्हारी सभी कमियों को ओढने को तैयार हूँ ,मैं तुम्हारे विष रुपी कर्मो को पचाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो |तुम मेरे आत्म हो ,तुम मेरे अपने हो ,तुम मेरे हृदय की धडकन हो |
दूसरो की तरह तुम केवल धन ,वैभव ,काम ,ऐश्वर्य में फसे हो क्या यह उचित है |मैंने तो हमेशा तुम्हे संपन्न देखना चाहा है पर आत्म उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य नहीं,अगर तुमने सम्पन्नता प्राप्त कर भी ले और तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी रह जाए तो सब व्यर्थ है |
तुम्हे आध्यात्मिक धरातल पर उच्चता और श्रेष्ठता की स्थिति तक पहुंचाना चाहता हूँ ,मैं चाहता हूँ फिर तुम जैसा कोई दूसरा अन्य न हो ,तुम हो तो केवल तुम हो |
परन्तु यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम समर्पण कर दोगे ,मुझमे पूर्ण रूप से एकाकार हो सकोगे ,जब तुम्हारे और मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नहीं रहेगी ,जब तुम्हारे कण -कण में गुरु का वास होगा ,जब तुम्हारी हर श्वास में उसी का उच्चारण होगा |
और यह स्थिति प्राप्त करने का सरलतम उपाय है गुरु मंत्र |निरंतर गुरु मंत्र जप द्वारा तुम उस स्थिति को प्राप्त कर सकते हो जबकि गुरु और शिष्य में इंच मात्र की भी दूरी नहीं रहती |ऐसा तुम कर पाओ यही मेरे कामना है |
प्रश्न : तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के होने पर भी हमें आखिर गुरु की आवश्यकता क्यूँ हैं?
जवाब :
क्यूंकि तैंतीस करोड़ देवी-देवता हमें सब कुछ दे सकते हैं. मगर जन्म-मरण के चक्र से सिर्फ गुरु ही मुक्त कर सकता हैं.
यह तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के द्वारा संभव नहीं हैं.
इसलिए ही तो राम और कृष्ण, शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, मेरे, कबीर, आदि... हर विशिष्ट व्यक्तित्व ने जीवन में गुरु को धारण किया और
तब उनके जीवन में वे अमर हो सके....
..... आज भी इतिहास में, वेदों में, पुराणों ने उन्हें अमर कर दिया....
इसीलिए तो कहा गया हैं:
तीन लोक नव खण्ड में गुरु ते बड़ा न कोय!
करता करे न कर सकें , गुरु करे सो होय!!
• वेदव्यास अपनी मृत्यु शैया पर डबडबायी आँखों से कह रहे थे कि – “ काश ! मुझे कुछ सही और वास्तविक शिष्य मिल जाते |”
• गोरखनाथ ने कहा – “ समर्पित शिष्य मिल जांए यह आश्चर्य सा हो गया है |”
• शंकराचार्य व्यथित भाव से उच्चारित कर रहे थे, कि – यदि कुछ शिष्य मेरे पास हों तो में बहुत कुछ कर लूं |”
• यह सब सही थे, क्यूंकि समर्पित शिष्य कि पहिचान ही अलग है, अहंकार रहित, सर्वस्व समर्पण युक्त, जीवन को फना करने का हौसला रखने वाला |
• वह गुरु के व्यक्तित्व में पूरी तरह से ढल जाता है, वैसी ही चाल, वैसी ही बोलने की अदा, वैसा ही बैठने का ढंग, वैसा ही व्यवहार, चिंतन, विचार और लक्ष्य...
• ऐसा लगे की गुरु की प्रतिकृति हो |
• और ऐसे ही बारह – पूरी पृथ्वी से मात्र बारह शिष्य मिल जांय, तो में पूरे ब्रह्माण्ड को बदल देने का हौसला रखता हूँ |
• बस शिष्य आगे आवें, और मुझे प्राप्त हो जांए |
(गुरु सूत्र से – डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली)
गुरु वाणी
तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं है एक सामान्य चिंतन नहीं है ,तुम्हे यह मनुष्य देह अनायास ही प्राप्त नहीं हो गयी है कितने ही संघर्ष कितने ही गुरु के प्रयास इसके पीछे है,अत: इस जीवन को सहज ही मत लेना |इसका मूल्य समझो और मूल उद्देश्य को जानो |
मुझे अत्याधिक वेदना होती है जब तुम एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो ,तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे मूल लक्ष्य की और बढ़ने से रोकते है ,मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुए हो यह आपका दुर्भाग्य ही है |
अगर ऐसा है तो तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर आप मेरे शिष्य है तो आपमें यह क्षमता होनी चाहिए कि आप पशुता से उपर उठ कर मनुष्यता तथा मनुष्यता से उपर उठ कर देवता के स्थान पर पहुँच जाए |
शिष्य वही है जो भोतिकता को भोगे परन्तु आपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए |उसकी द्रष्टि हमेशा आपने लक्ष्य पर टिकी रहे |मेरे इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहा भारत क्या ,पूरे विश्व में तुम्हे चुनोती देने वाला कोई न हो |
मैं तुम्हारी सभी कमियों को ओढने को तैयार हूँ ,मैं तुम्हारे विष रुपी कर्मो को पचाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो |तुम मेरे आत्म हो ,तुम मेरे अपने हो ,तुम मेरे हृदय की धडकन हो |
दूसरो की तरह तुम केवल धन ,वैभव ,काम ,ऐश्वर्य में फसे हो क्या यह उचित है |मैंने तो हमेशा तुम्हे संपन्न देखना चाहा है पर आत्म उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य नहीं,अगर तुमने सम्पन्नता प्राप्त कर भी ले और तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी रह जाए तो सब व्यर्थ है |
तुम्हे आध्यात्मिक धरातल पर उच्चता और श्रेष्ठता की स्थिति तक पहुंचाना चाहता हूँ ,मैं चाहता हूँ फिर तुम जैसा कोई दूसरा अन्य न हो ,तुम हो तो केवल तुम हो |
परन्तु यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम समर्पण कर दोगे ,मुझमे पूर्ण रूप से एकाकार हो सकोगे ,जब तुम्हारे और मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नहीं रहेगी ,जब तुम्हारे कण -कण में गुरु का वास होगा ,जब तुम्हारी हर श्वास में उसी का उच्चारण होगा |
और यह स्थिति प्राप्त करने का सरलतम उपाय है गुरु मंत्र |निरंतर गुरु मंत्र जप द्वारा तुम उस स्थिति को प्राप्त कर सकते हो जबकि गुरु और शिष्य में इंच मात्र की भी दूरी नहीं रहती |ऐसा तुम कर पाओ यही मेरे कामना है |
प्रश्न : तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के होने पर भी हमें आखिर गुरु की आवश्यकता क्यूँ हैं?
जवाब :
क्यूंकि तैंतीस करोड़ देवी-देवता हमें सब कुछ दे सकते हैं. मगर जन्म-मरण के चक्र से सिर्फ गुरु ही मुक्त कर सकता हैं.
यह तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के द्वारा संभव नहीं हैं.
इसलिए ही तो राम और कृष्ण, शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, मेरे, कबीर, आदि... हर विशिष्ट व्यक्तित्व ने जीवन में गुरु को धारण किया और
तब उनके जीवन में वे अमर हो सके....
..... आज भी इतिहास में, वेदों में, पुराणों ने उन्हें अमर कर दिया....
इसीलिए तो कहा गया हैं:
तीन लोक नव खण्ड में गुरु ते बड़ा न कोय!
करता करे न कर सकें , गुरु करे सो होय!!