Friday, September 9, 2011

Hell of the different speeds

‎" नरकों की विभिन्न गतियाँ "


राजा परीक्षित ने पूछा महर्षि! लोगों को जो ये ऊँची नीची गतियाँ प्राप्त होती है, उनमें इतनी विभिन्नता क्यों है श्री शुकदेव जी ने कहा राजन ! कर्म करने वाले पुरुष सात्विक, राजस और तामस तीन प्रकार के होते हैं तथा उनकी श्रद्धाओं में भी भेद रहता है। इस प्रकार स्वभाव और श्रद्धा के भेद से उनके कर्मो् की गतियाँ भी भिन्न भिन्न होती है और न्यूनाधिकरुप में ये सभी गतियाँ सभी कर्ताओ को प्राप्त होती है। इसी प्रकार निषिद्ध कर्मरुप पाप करने वालों को भी उनकी श्रद्धा की असमानता के कारण, समान फल नहीं मिलता। अतः अनादि अविघा के वशीभूत होकर कामना पूर्वक किये हुये उन निषिद्ध कर्मो् के परिणाम में जो हजारों तरह की नारकी गतियाँ होती है, उनका विस्तार से वर्णन करेंगे। राजा परिक्षित ने पूछा भगवान! आप जिनका वर्णन करना चाहते हैं। वे नरक इसी पृथ्वी के कोई देश विशेष हैं अथवा त्रिलोक से बाहर या इसी के भीतर किसी जगह है श्री शुकदेवजी ने कहा राजन ! वे त्रिलोक के भीतर ही हैं तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित हैं। इसी दिशा में अग्निषवात्ता आदि पितृगण रहते हैं, वे अत्यन्त एकाग्रता पूर्वक अपने सेवकों सहित रहते हैं तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघनकरते हुए, अपने दूतों द्वारा वहाँ लाये हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मो के अनुसार पाप का फल दण्ड देते है। परीक्षित ! कोई कोई लोग नरकों की संख्या इक्कीस बताते हैं, अब हम नाम, रूप और लक्षणों के अनुसार उनका क्रमशः वर्णन करते हैं।

उनके नाम हैं तामिस्त्र्, अन्धमिस्त्र्, रौरव, महारौरव, कुम्भीपाक, कालसूत्र्, आसिपत्र्वन, सकूरमुख, अन्धकूप, मिभोजन, सन्देश, तप्तसूर्मि, वज्रकण्टकशल्मली, वैतरणी, पुयोद, प्राणरोध, विशसन, लालाभक्ष, सारमेयादन, अवीचि और अयःपान। इनको मिलाकर कुल अटठाईस नरक तरह तरह की यातनाओं को भोगने के स्थान है।

जो पुरूष दूसरों के धन, सन्तान अथवा स्त्रियों का हरण करता है, उसे अत्यन्त भयानक यमदूत कालपाश में बांधकर बलात्कार से तामिस्त्र् नरक में गिरा देते हैं। उस अन्धकारमय नरक में उसे अन्न जल न देना, डंडे लगाना और भय दिखलाना आदि अनेक प्रकार के उपायों से पीडि़त किया जाता है। इससे अत्यन्त दुखी होकर वह एकाएक मूच्छिर्त हो जाता है। इसी प्रकार जो पुरूष किसी दूसरे को धोखा देकर उसकी स्त्री आदि को भोगता है, वह अन्धतमिस्त्र् नरक में पड़ता है। वहाँ की यातनाओं में पड़कर वह जड़ से कटे हुए वृक्ष के समान, वेदना के मारे सारी सुध बुध खो बैठता है और उसे कुछ भी नहीं सूझ पड़ता। इसी से इस नरक को अन्धतमिस्त्र् कहते है।जो क्रूर मनुष्य इस लोक में अपना पेट पालने के लिए जीवित पशु या पक्षियों को राँधता है, उस हृह्र्दयहीन, राक्षसों से भी गये बीते पुरूष को यमदूत कुम्भीपाक नरक में ले जाकर खौलते हुए तैल में राँधते हैं। जो मनुष्य इस लोक में माता पिता, ब्राहमण और वेद से विरोध करता है, उसे यमदूत कालसूत्र् नरक में ले जाते हैं। इसका घेरा दस हजार योजन है। इसकी भूमि ताँबे की है। इसमें जो तपा हुआ मैदान है, वह ऊपर से सूर्य और नीचे से अग्नि के दाह से जलता रहता है। वहाँ पहुंचाया हुआ पापी जीव भूख प्यास से व्याकुल हो जाता है और उसका शरीर बाहर भीतर से जलने लगता है। उसकी बैचेनी यहाँ तक बढ़ती है कि वह कभी बैठता है, कभी लेटता है, कभी छटपटाने लगता है, कभी खड़ा होता है और कभी इधर उधर दौड़ने लगता है। इस प्रकार उस नर पशु के शरीर में जितने रोम होते हैं, उतने ही हजार वर्ष तक उसकी यह दुर्गति होती रहती है ।

राजन ! इस लोक में जो व्यक्ति चोरी या बरजोरी से ब्राह्मण अथवा आपत्ति का समय न होने पर भी किसी दूसरे पुरूष के सुवर्ण और रत्नादिका हरण करता है, उसे मरने पर यमदूत संदंश नामक नरक में ले जाकर तपाये हुए लोहे के गोलों से दागते हैं और सँडासी से उसकी खाल नोचते हैं। इस लोक में यदि कोई पुरूष अगम्या स्त्री के साथ सम्भोग करता है अथवा कोई स्त्री अगम्या पुरूष से व्याभिचार करती है, तो यमदूत उसे तपतसूर्मि नाम नरक में ले जाकर कोड़ों से पीटते है तथा पुरूष को तपाये हुए लोहे की स्त्री मूर्ति से और स्त्री को तपायी हुई पुरूष प्रतिमा से अलिंगन कराते हैं।

जो पुरूष इस लोक में पशु आदि सभी के साथ व्याभिचार करता है, उसे मृत्यु के बाद यमदूत वज्र के समान कठोर काँटोवाले सेमर के वृक्ष पर चढ़ाकर फिर नीचे की ओर खींचते हैं। जो राजा या राजपुरूष इस लोक में श्रेष्ठ कुल में जन्म पाकर भी धर्म की मयार्दा का उच्छेद करते हैं, वे उस मयार्दातिक्रमण के कारण मरने पर वैतरणी नदी में पटके जाते हैं। यह नदी नरकों की खाई के समान है, उसमें मल, मूत्र्, पीब, रक्त, केश, नख हडडी, चर्बी्, मांस और मज्जा आदि गंदी चीजें भरी हुई हैं। वहाँ गिरने पर उन्हें इधर उधर से जल के जीव नोचते हैं। जो पाखण्डी लोग पाखण्ड पूर्ण यज्ञों में पशुओं का वध करते हैं, उन्हें परलोक में वैशस विशसनद्ध नरक में डालकर वहाँ के अधिकारी बहुत पीड़ा देकर काटते हैं।

जो कोई चोर अथवा राजा या राजपुरूष इस लोक में किसी के शरीर में आग लगा देते हैं, किसी को विष दे देते हैं अथवा गांवों या व्यापारियों की टोलियों को लूट लेते हैं, उन्हें मरने के पश्चात सारमेयादन नामक नरक में वज्र की सी दाड़ोंवाले सात सौ बीस यमदूत कुत्ते बनकर बड़े वेग से काटने लगते हैं। इस लोक में जो पुरुष किसी की झूठी गवाही देने में, व्यापार में अथवा दान के समय किसी भी तरह झूठ बोलता है, वह मरने पर आधार शून्य अवीचिमान नरक में पड़ता है। वहाँ उसे सौ योजन ऊँचे पहाड़ के शिखर से नीचे को सिर करके गिराया जाता है। उस नरक की पत्थर की भूमि जल के समान जान पड़ती है। इसीलिये इसका नाम अवीचमान है। वहाँ गिराये जाने से उसके शरीर के टुकडे टुकड़े हो जाने पर भी प्राण नहीं निकलते, इसलिये इसे बार बार ऊपर से जाकर पटकेा जाता है। जो ब्राह्मण या ब्राह्मणी अथवा व्रत में स्थित और कोई भी प्रमादवश मधपान करता है तथा जो क्षत्रिय या वैश्य सोमपान करता है, उन्हें यमदूत अयपान नाम के नरक में ले जाते हैं और उनकी छाती पर पैर रखकर उनके मुँह में आग से गलाया हुआ लोहा डालते हैं।

जो पुरुष इस लोक में निम्न श्रेणी के होकर भी अपने को बड़ा मानने के कारण जन्म, तप, विघा, आचार, वर्ण या आश्रम में अपने से बड़ों का विशेष सत्कार नहीं करता, वह जीता हुआ भी मरे के समान है। उसे मरने पर ज्ञारकदर्म नाम के नरक में नीचे को सिर करके गिराया जाता है और वहाँ उसे अनन्त पीड़ाएँ भोगनी पड़ती है। इस लोक में जो व्यक्ति अपने को बड़ा धनवान समझकर अभिमानवश सबको टेड़ी नजर से देखता है और सभी पर संदेह रखता है, धन के व्यय और नाश की चिन्ता से जिसके ह्र्दय और मुँह सूखे रहते हैं, अतः तनिक भी चैन न मानकर जो यक्ष के समान धन की रक्षा में ही लगा रहता है तथा पैसा पैदा करने, बढ़ाने और बचाने में जो तरह तरह के पाप करता है, वह नराधम मरने पर सूची मुख नरक में गिरता है। वहाँ उस अर्थपिशाच पापात्मा के सारे अंगों को यमराज के दूत दर्जियों के समान सुई धागे से सीते हैं।

राजन! यमलोक में इसी प्रकार के सैकड़ों हजारों नरक हैं। जिनमें जिनका यहाँ उल्लेख हुआ है और जिनके विषय में कुछ नहीं कहा गया, उन सभी में सब अधर्मपरायण जीव अपने कर्मो् के अनुसार बारी बारी से जाते हैं। इसी प्रकार धर्मात्मा पुरुष स्वगार्दि में जाते हैं। इस प्रकार नरक और स्वर्ग के भोग से जब इनके अधिकांश पाप और पुण्य क्षीण हो जाते हैं, तब बाकी बचे हुए पुण्यापरुप कर्मो् को लेकर ये फिर इसी लोक में जन्म लेने के लिये लौट आते हैं। इन धर्म और अधर्म दोनों से विलक्षण जो निवृत्ति मार्ग है, उसका तो पहले द्वितीय स्कन्ध में ही वर्णन हो चुका है। पुराणों में जिसका चौदह भुवनके रूप में वर्णन किया गया है, वह ब्रहामाण्ड कोश इतना ही है। यह साक्षात परम पुरुष श्री नारायण का अपनी माया के गुणों से युक्त अत्यन्त स्थूल स्वरूप है। इसका वर्णन मैंने तुम्हें सुना दिया। परमात्मा भगवान का उपनिषदों में वणिर्त निगुर्ण स्वरूप यघपि मन बुद्दि श्रद्धा और भक्ति के कारण शुद्द हो जाती है और वह उस सूक्ष्म रूप का भी अनुभव कर सकता है।

Tuesday, August 30, 2011

mantra mulam guru vakayam

"मन्त्र मुलं गुरु बाक्यम"
स्वामी विवेकानंद , के छोटे गुरु भाई स्वामी विज्ञाना नन्द (जोकि उम्र में स्वामी जी से बहुत ही छोटे थे ) बेलूर मठ में कुछ काम करा रहे थे , तभी स्वामी जी का वहां आगमन हुआ , पता नहीं बात चीत के सिलसिले में स्वामी विज्ञाना नन्द के मुह से निकल गया .आप तो गुरुदेव की बातों के विपरीत काम करते हैं , स्वामी विवेकानंद जी कदाचित कुछ गुस्से में आ गए बोले मैंने कौन सा काम विपरीत किया हैं .
विज्ञानं जी बोले ठाकुर का स्पस्ट आदेश था की कामिनी से दूर रहो पर जैसा की हमें पता चला हैं की आप इंग्लैंड और अमेरिका प्रवास में इन के के साथ ही रहते थे, यह तो विपरीत बात हैं .यह तो आपने ठीक नहीं किया . कदाचित गुरु आज्ञा का उल्लघन हैं
इस बात को सुनते हो स्वामी जी का चेहरा मानो क्रोध से लाल तप्त हो गया , यह देख कर विज्ञाना नन्द जी वहां से भाग निकले और स्वामी ब्रम्हानद जी के पीछे जा छुपे , और उन्हें सारी बात बता दी बोले की स्वामी जी मुझे ढूढ़ते आ रहे हैं मुझे बचाए ..
जब स्वामी जी , विज्ञाना नन्द जी को ढूढ़ते हुए वहां आये तो बोले सामने आ .
ब्रम्हानद जी बोले , नरेन्द्र वह बच्चा है न , कुछ बोलना चाहता था पर गलती से कुछ बोल गया , पर तुम तो समझदार हो , बच्चे को माफ़ करो .
यह सुनते ही स्वामी जी शांत हो गए ( परमहंस जी के इन दोनों शिष्यों में आपस में अपार स्नेह था ).
फिर शांत हो कर बोले विज्ञानं …यहाँ…. आ,,, .
देख बेटा ठाकुर ने तुम लोगों से जो बोला हैं उसका पालन तुम लोग करो . मेरे मन से ,ह्रदय से ,मेरी दृष्टी से उन्होंने स्त्री पुरुष की भेद दृष्टी ही अपनी महत कृपा से मिटा दी हैं अब मेरे लिए सब इश्वर कि संतान हैं ओर कोई भेद नहीं हैं इसलिए में वह करूँगा या आज तक किया हैं जो ठाकुर ने मुझे बोला हैं कहा हैं उनकी मनसा हैं , समझा तू .
स्वामी विज्ञानं ने स्वीकार कर लिया ,
(ध्यान रहे जब स्वामी जी ,विदेश प्रवास में थे तब उनके बारे में कुछ गलत सलत सुन कर दूसरों की कौन कहे, स्वयं मठ वासियों के मन में भी संदेह आ गया था , तब गिरीश चन्द्र घोष जो बंगाल के रंग मच के प्रख्यात कर्मी थे ओर सभी गुरु भाइयों मे वरिष्ठ थे , यह सब अनर्गल बाते उन्होंने सुन कर कहा था , मेरे नरेद्र तो प्रातः कालीन निकले मख्खन के सामान शुद्ध हैं , जिस दिन उसमे दोष देखूँगा उस दिन वह मेरी ही आखों का दोष होगा .)
इसलिए मित्रों ,सदगुरुदेव भगवान् ने किस किस शिष्य को क्या क्या आज्ञा दी , यह तो वहीँ जाने , क्योंकि उन्होंने अपने हीओ दिव्य कर कमलो से कितनो का जीवन पवित्र किया हैं वह सोचना या जानना हमारा कार्य नहीं हैं , पर एक बार अपने ह्रदय पर निष्पक्ष रूप से हाथ रख कर साफ़ मन से देखें ,उनकी क्रिया का कुछ तो समझ आ ही जायेगा,
यह सोचना की जो हम बच्चो को आज्ञा दी हैं क्या वही आज्ञा उन्होंने अपने सन्यासी शिष्यों को दी होगी सोच कर देखें ,फिर उनकी दिव्या बचनो मेसे हम कुछ अपनी पसंद के चुन चुनकर सभी के लिए कहना या सब पर मानदंड बनाना कितना सही हैं (पहले हम तो शिष्यता का पहला अक्षर पढ़ ले ,)वह तो हमारा ह्रदय ही समझ सकता हैं यदि हम समझना चाहे तो ..

parad Bigrah ke samband main

पारद विग्रह के सम्बन्ध में :

मित्रों ,
पारद का एक नाम quick silver भी हैं इसी कारण जब भी बाज़ार में चाँदी के भाव में उछाल आता हैं तो पारे के प्रति किलोग्राम मूल्य में भी उछाल आता ही हैं, अभी दो तीन महीने पहले की बात हैं जब पारा बाज़ार में उपलब्ध ही नहीं हो पा रहा था तब बहुत ही मुश्किल से दिल्ली के बाज़ार में साधारण पारा जो अनेको दोष युक्त होता हैं ८००० रूपये किलो मिल पाया , और उच्चस्तरीय कंपनी का पारा तो १८,००० से २०,००० रूपये किलो मिल रहा था ,

अब आप ही सोचे
जब १००० ग्राम (1 kg)पारा ----- ८००० रुपये
तो १०० ग्राम पारा ---- लगभग ८०० रुपये में ही आएगा ,

तब आप ही सोचे की जब मात्र अशुद्ध पारे की कीमत १०० ग्राम की ही इतनी हैं तब कमसे कम अष्ट संस्कार और स्वर्ण ग्रास देने के बाद वह कितना मूल्य वान हो जायेगा , फिर तो अभी इस विग्रह को निर्माण के दौरान और निर्माण के बाद भी उनके सदगुरुदेव द्वारा भिन्न ग्रंथो में वर्णित प्रक्रिया ओं से गुजरना भी हैं ,

तो कैसे वह विग्रह आपको अंत्यंत अल्प मोलिय मात्र ३०० /४०० रुपये में मिल सकता हैं .

आप सभी जानते हैं कि बाज़ार में अब क्या कहा जाये दुकानों में तो १ -१ रूपये तक के श्री यन्त्र या श्री यन्त्र चित्र मिल रहे हैं जो दुकान दार इतने सारे यंत्रो को रखकर बेच रहा हैं उसे तो आर्थिक अवस्था में कहाँ पहुँच जाना चाहिए , क्योंकि उसके पास इतने यन्त्र रखे तो हैं ही .ज़रा एक बार तो सोचे..

अभी हाल में ही मुझे नरसिगपुर क्षेत्र के एक गुरु भाई के बारे में जाने का मौका मिला ,(मेरे मित्र जो उनसे संपर्क में रहते हैं उन्होंने बताया ) पता चला ,जिस काल में सदगुरुदेव भौतिक स्वरुप में ह मारे मध्य रहे हैं ,
उस काल में वे , किसी अन्य गुरु भाई के साथ बस सदगुरुदेव भगवान् के दर्शन करने आये थे
,
सदगुरुदेव ने उनसे भी आर्थिक स्थति के बारे में पूछ लिया(जो की उस समय उन गुरु भाई की बहुत सामन्य सी थी ) , तो उन्होंने कहा गुरुदेव में कोई बड़ी साधना नही कर पाउँगा आप जो ठीक समझे .
सदगुरुदेव ने एक बहुत छोटा सा श्री यन्त्र उन्हें अपने पास से दिया , और एक गोपनीय बहुत छोटा सा मंत्र भी दिया ,
वह मात्र एक या दो माला मंत्र जप प्रति दिन करते हैं .
वह आज नरसिंग पुर क्षेत्र (जबलपुर के पास ) में करोंडो की सपदा के मालिक हैं ..

कहने का तात्पर्य यह हैं कि की सही प्रक्रिया गत जो भी विग्रह होगा/ यन्त्र होगा , वह निश्चय ही आपके जीवन में कई गुना परिवर्तन लायेगा ही .
तो आप स्वयं ही समझ सकते हैं की क्यों पारद विग्रह के केबल निर्माण की लागत सामान्य से कई कई गुना अधिक क्यों होती हैं ..

Monday, August 29, 2011

kakini sadhna aaur paarad tantra

समस्त शक्तिपीठों में कामाख्या शक्तिपीठ की बात ही निराली है ,आसाम की खूबसूरत वादियों में अवस्थित यह माँ कामाख्या का शक्तिपीठ गुवाहाटी के नीलांचल पर्वत पर स्थित है .जैसी चैतन्यता ,रहस्यों का भण्डारऔर शक्ति का जीवंत प्रवाह इस दिव्य पीठ पर उपस्थित है वैसा शायाद ही अन्यत्र होगा .रस शास्त्रा और तन्त्र शास्त्र के अद्भुत वा गूढ़ रहस्यों को ढूँढने के लिए मैं लगभग भारतवर्ष के सभी क्षेत्रों में भ्रमण कर चूका हूँ.पर विगत १४ वर्षों में जो कुछ मुझे आसाम से मिल ही वो साद गुरुदेव की कृपा से मेरे जीवां की अमूल्य धरोहर ही कहला सकता है. मुझे सदगुरुदेव के शिष्यों में से लगभाग अधिकान्स्तः ने वह जाकर कभी न कभी जरूर साधना की है .खुद मुझे भी वह पर ही पारद के लुप्त सूत्रों की प्राप्ति हुयी है. इसी क्रम में मेरी मुलाकात १९९७ की चैत्र नवरात्री में उस परम पावं तंत्र शक्ति पीठ में माँ राज राजेश्वरी षोडशी त्रिपुर सुन्दरी की कौल्मार्गीय पूजा के दौरन डिब्रूगढ़ के प्रसिद्ध रस शास्त्री और तांत्रिक पंडित कालीदत्त शर्मा जी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.मैंने उनसे निवेदन किय की आप मुझे वाम मार्ग के द्वारा संचालित की जाने वाली गुप्त काकिनी साधना के रहस्यों को समझाएं.
सदगुरुदेव की कृपा से उन्होंने न सिर्फ उन सूत्रों को मुझे समझाया बल्कि उस साधना को प्रायोगिक रूप से देखने का अवसर भी प्राप्त हुआ.साधना के लिए कामाख्या पीठ से दक्षिण की और ७५ फीट नीचे अवस्थित माँ त्रिपुर भैरवी के प्रांगन में श्रीयंत्र पीठ को चयनित किया गया. रात्रि १२ बजे एक २०-२२ वर्षीय तरुणी जो की रक्त वर्णीय वस्त्र धारण किये हुए थी को एक विशेष यंत्र क निर्माण अज रक्त वा महिष रक्त से कर आसन बिछा कर बिठा दिया और उनका पूर्ण पूजन तंत्रोक्त पञ्च मकार से कर के उनके सामने एक थाली में एक पारद गुटिका व उसके सामने एक थाली में आधा किलो ताम्बा रख दिया और शर्मा जी ने पूर्ण तन्मयता के साथ माँ र्शंकुशी का आवाहन उस युवती में करके रस बीज संपुटित काकिनी मंत्र का जप धतूरे की माला से करने लगे. लगभग ३ घंटे के बाद उस तरुनी का मुख रक्त वर्ण का हो गया ,वो आपने नेत्रों को बंद करे बैठी थी .४ घंटे में जप पूरा हुआ .और शर्मा जी ने पुष्पांजलि व जप समर्पित कर प्रणाम किया .प्रणाम करते के उस तरुणी ने आशीष के लिए वरद हस्त उठाया और जैसे के नेत्रों को खोल कर उस ताम्बे को देखा उनके आँखों से रक्त रश्मियों का प्रवाह प्रारंभ हो गया और जैसे के वो प्रवाह बंद हुआ उस ताम्बे की जगह विशुद्ध स्वर्ण उपस्थित था.
मैंने जब शर्मा जी से पूछा की ये कौन सा यन्त्र रथ तो उन्होंने बताया की ये काकिनी यंत्र या स्वर्ण सिद्धि यन्त्र था और ये काकिनी मंत्रो से सिद्ध पारद भैरवी गुटिका थी .इसी गति के माध्यम सी आप २७ नक्षत्रों की शक्तियों का स्थापन कर उनके द्वारा शत्रु के ऊपर स्तम्भन उर मरण की क्रिया भी कर सकते हो.इसी प्रकार स्वर्ण का निर्माण भी किया जा सकता है.
स्वर्ण प्रकृति में पाई जाने वाली विशुद्ध आभा मंडल से युक्त धातु है जो दिव्यता देती है.जब हम पारद के द्वारा रस क्रिया करते हैं तो रस शुद्धि के साथ हमारी भी आंतरिक शुद्धि होते जती है, और धीरे धीरे हमारे अंडे व्याप्त सूक्ष्म शक्तियां विराट रूप में बहार प्रकट हो जय है तथा अध्यात्मिक तेज़ सुनहरे आभा मंडल के रूप में दिखाई पड़ने लगता है जो इस बात का चिन्ह होता के की हमारा व्यक्तित्व परिष्कृत हो चूका है.अर्थात आन्तरिक कीमिया भी हो गयी.


In search of amazing and the hidden aspects of "Ras Shastra","Tantra Shastra" I have visited almost entire India but from the last 14 years the learning’s which I have found in Assam is the most precious learning which our Sadgurudev has taught me with all his blessings...

Like me, many of the Sadgurudev students almost have went there and conducted the devotions; including myself and I too have got the treasures of the extinct synopsis of the Mercury...Related to this track I got a very important and auspicious chance to meet with the great Holy and Divine person Shri "Pandit Kalidatt Sharma" who is the famous Ras Shastri & Devotee of the most powerful and enchanting Shaktipeeth - "Maa Raj Rajeshwari-Shodashi Tripur Sundari"(Means - the most beautiful and the divine goddess in the whole Universe among all) during the worship of "Kaulmargiya Pooja"in the years 1997 at Dibhrugarh....I requested him to teach about the devotion - "Gupt Kakini Sadhna" through the "Vaam Marg"....

With the all blessings of the Sadgurudev, I not only got the chance of learning the Process but he also showed it practically. For the devotion and the process, the "Shriyantra Peeth"was selected which was in the Southern Direction from back portion of the Kamakhya Shakti Peeth and was 75 Feet downwards situated in the Verandah of Goddess "Maa Tripur Bhairavi".... as it has been considered the most soothing and effective place for such devotions 7 it is a saying that at this place, whatever will be the process conducted; will give the amazing results.

At Midnight 12 am, the 20-22 years a beautiful and young lady who was wearing bright blood red color dress was allowed to sit on a holy mat which was created by a special process by a Special "Yantra" and was conducted with the "Aj Rakht" and "Mahish Rakht"...The total process was worshipped by the proper "Tantrokt Panch Makaar" and after that in a steel plate one "Parad Gutika"was placed in front of her and with that 500 gms Copper was also placed...

After all this, Shri Sharma Ji offered his devotion and worship with total concentration and determination to "Maa Shankarushi"in the body of that lady and worshipped the "Ras Beej Samputit Kakini Mantra” with the help of the "Dhatura Mala"....

About 3 hours later, the face of that lady turned Blood Red; she was sitting with the closed eyes...The process took 4 hours...and Shri Sharma Ji got up and finished the ceremony by offering "Pushpanjali" along with the whole devotion done and bowed his hands in front of the Lady.... After Shri Sharma Ji bowed, the lady put her hands up to bless him and as soon as she opened her eyes and looked the Copper which was placed in front of her.... The flow of the sparkled and bright blood red colored rays started flawlessly for some time...When the rays stopped, that copper was turned into the Pure Gold...Unbelievable but True; Isn’t it???

When I asked Shri Sharma Ji which "Yantra"was this??? He told that this is either "Kakini Yantra"or "Swarn Siddhi Yantra" and the Parad Gutika was accomplished with the holy chants of "Kakini Mantras"....
With this state medium you can perform "Stambhan Urr Maran" process by establishment of the powers of 27 planetary positions (Nakshatra)...Similarly you can perform the process of creating Gold also...

The Gold is the most pure element consisting the purest radiance in it among all the other natural elements in the Nature...and because of this it is also considered as the most "Divine Metal".... When we conduct the process of "Ras Kriya"then along with the "Ras Shuddhi"...the purification of our mind and body also takes place.... 7 slowly & gradually the powers which was present in the most minute & tiny form suddenly becomes the most biggest powers.... and the divine Spiritual Aura starts glowing on our face which is a sign that Our Personality has reached at a Zenith and all our loopholes has been finished...

NAKSHATRA TANTRA SE MANORATH SIDDHI

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प्रिय मित्रों,
जय गुरुदेव,
भाई साधना जगत विचित्रताओं से भरा हुआ है और इसकी ये गुणधर्मिता इस स्तर तक है की कभी कभी बुद्धि चकरा ही जाती है .आप चाहे पारद विज्ञानं को देखे, चाहे, तंत्र विज्ञान को या फिर ज्योतिष शास्त्र को .इतनी विविधता इतना रहस्यों का ढेर की बस समझने में चाहे जीवन कितने भी लगा लो कम ही पड़ेंगे. और इन विषयों की यही विशेषता तो मुझे अपने और खींच ले आयी.पर बहुत सी ऐसी बाते भी थी जो की कभी मैंने सोची भी नहीं थी. एक बात अवश्य ध्यान देने वाली है की प्रत्येक विषय एक दुसरे से जुड़े हुए हैं .पारद विज्ञानं का बहुत ही गहरा लेना देना तंत्र शास्त्र, आयुर्वेद शास्त्र और ज्योतिष से है .
जिस प्रकार सूर्य विज्ञान के द्वारा पदार्थों का सृजन किया जाता है या संजीवनी क्रिया की जाती है .उसी प्रकार चन्द्र विज्ञान, शून्य विज्ञान(आकाश विज्ञानं),अग्नि विज्ञानं,नक्षत्र विज्ञानं भी हैं जिनसे उपरोक्त सभी क्रिया की जाती हैं. ये अलग बात है की आज इन विद्याओं को जानने वाले बहुत ही कम होंगे.
आपके अनुसार ज्योतिष क्या है , शायद जीवन की घटनाओं को अध्यन करने वाला शास्त्र ,है न.पर जब आप इसके रहस्य को समझेंगे तो इस लिखे पर सिवाय अचरज के और कुछ बाकि नहीं रहेगा.वैसे यदि हम इस रहस्य को परे भी कर दें तब भी हम्मे से बहुत ही कम लो ग इस विज्ञानं का लाभ ले पाते हैं. भले ही हमें लाख पता हो की अमुक घटना का निर्धारण ज्योतिष के अनुसार इस दिन हुआ है तब भी क्या हम उसका ल;अभ उठा पाते हैं या फिर उसकी वजह से होने वाली हानि को कम कर पाते हैं .शायद नहीं न.
खैर मैं आपके सामने जिस रहस्य को प्रकट कर रहा हूँ वो ये है की जिस भी व्यक्ति ने ज्योतिष शास्त्र का अध्यन किया होगा उसने २७ नक्षत्रों के बारे में जरूर पढ़ा होगा जिनके द्वारा व्यक्ति का स्वाभाव निर्धारण और राशियों का निर्माण आदि होता है .पर सच तो ये है की तंत्र शास्त्र का एक प्रभाग ज्योतिष तंत्र भी है जिनमे इन नक्षत्रों की शक्ति का प्रयोग कर अपने कैसे भी मनोरथ को पूरा किया जा सकता है .पहले मैं आपको एक उदहारण दे दूं .मान लीजिये एक नक्षत्र साधक किसी व्यक्ति के किसी अंग में विकार उत्पान करना चाहता है तो वो एक ख़ास दिन की मध्य रात्रि में एक प्रयोग संपादित करता है जिसमे वो अपने शत्रु का चित्र जमीन पर बनाता है( रेखाचित्र) .फिर संहार क्रम से उसके शरीर प्रत्येक अंग में निवासित नक्षत्रों को विलोम क्रम से आवाहित कर उनका पूजन करता है और उस स्थान पर एक तेल का दीपक लगता है ऐसे ही २७ स्थानों पर २७ दीप लगा कर वो एक प्रथक दीपक सर के ऊपर तथा दो पैरो के नीचे लगाता है.और एक विशेष मन्त्रं का सम्पुट नक्षत्र के मंत्र में लगा कर लोम विलोम जाप करता है जिस नक्षत्र के मंत्र का जाप होता है वो नक्षत्र जिस अंग का प्रतिनिधित्व करता है वो अंग धीरे धीरे निष्क्रिय ही हो जाता है .यदि ह्रदय से सम्बंधित नक्षत्र के मन्त्र का जप किया जाये तो मृत्यु ही हो जाती है . ऐसा नहीं है दुष्ट कर्म में ही इस विद्या का प्रयोग किया जाता है बल्कि इस साधना में सौम्य बीजो का प्रयोग कर अंगो के रोगों या शिथिलता से भी मुक्ति दिलाई जाती है. यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में ग्रहों की स्तिथिति उसके भाग्योदय के प्रतिकूल है तो उसके लिए एक ख़ास समय में उपरोक्त प्रक्रिया कर के भाग्योदय करक बीज मन्त्र से संपुटित नक्षत्रों के मन्त्र के जप से उसके लिए परिस्तिथियाँ अनुकूल ही नहीं होती बल्कि सफलता भी मिलने लगती है. चाहे वो मुक़दमे में सफलता प्राप्ति की बात हो, लक्ष्मी प्राप्ति की बात हो, प्रेम में सफलता चाहिए , या उच्चाटन करना हो.शत्रु शमन हो या फिर स्वर्ण निर्माण . दिशाओं का निर्धारण, समय का उचित प्रयोग और गुप्त बीज मन्त्रं का सम्पुटन नक्षत्रों की शक्ति को साधक के लिए कार्यकारी बनाया जा सकता है. इस क्रिया के प्रभाव को मैंने खुद भी अपने जीवन में देखा है .
ये विज्ञान गुप्त जरूर है पर लुप्त नहीं है,जाग्रति हम्मे होनी चाहिए असाध्य कुछ भी नहीं है .ब्रह्माण्ड दीक्षा के द्वारा इन शक्तियों को हस्तगत किया जा सकता है.शर्त वही पहले वाली है हमेशा की तरह सदगुरूदेव के चरणों में पूर्ण समर्पण और परिश्रम.....

Guru sutra 2

शिष्यत्व
• वेदव्यास अपनी मृत्यु शैया पर डबडबायी आँखों से कह रहे थे कि – “ काश ! मुझे कुछ सही और वास्तविक शिष्य मिल जाते |”
• गोरखनाथ ने कहा – “ समर्पित शिष्य मिल जांए यह आश्चर्य सा हो गया है |”
• शंकराचार्य व्यथित भाव से उच्चारित कर रहे थे, कि – यदि कुछ शिष्य मेरे पास हों तो में बहुत कुछ कर लूं |”
• यह सब सही थे, क्यूंकि समर्पित शिष्य कि पहिचान ही अलग है, अहंकार रहित, सर्वस्व समर्पण युक्त, जीवन को फना करने का हौसला रखने वाला |
• वह गुरु के व्यक्तित्व में पूरी तरह से ढल जाता है, वैसी ही चाल, वैसी ही बोलने की अदा, वैसा ही बैठने का ढंग, वैसा ही व्यवहार, चिंतन, विचार और लक्ष्य...
• ऐसा लगे की गुरु की प्रतिकृति हो |
• और ऐसे ही बारह – पूरी पृथ्वी से मात्र बारह शिष्य मिल जांय, तो में पूरे ब्रह्माण्ड को बदल देने का हौसला रखता हूँ |
• बस शिष्य आगे आवें, और मुझे प्राप्त हो जांए |

(गुरु सूत्र से – डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली)


गुरु वाणी
तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं है एक सामान्य चिंतन नहीं है ,तुम्हे यह मनुष्य देह अनायास ही प्राप्त नहीं हो गयी है कितने ही संघर्ष कितने ही गुरु के प्रयास इसके पीछे है,अत: इस जीवन को सहज ही मत लेना |इसका मूल्य समझो और मूल उद्देश्य को जानो |

मुझे अत्याधिक वेदना होती है जब तुम एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो ,तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे मूल लक्ष्य की और बढ़ने से रोकते है ,मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुए हो यह आपका दुर्भाग्य ही है |

अगर ऐसा है तो तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर आप मेरे शिष्य है तो आपमें यह क्षमता होनी चाहिए कि आप पशुता से उपर उठ कर मनुष्यता तथा मनुष्यता से उपर उठ कर देवता के स्थान पर पहुँच जाए |

शिष्य वही है जो भोतिकता को भोगे परन्तु आपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए |उसकी द्रष्टि हमेशा आपने लक्ष्य पर टिकी रहे |मेरे इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहा भारत क्या ,पूरे विश्व में तुम्हे चुनोती देने वाला कोई न हो |

मैं तुम्हारी सभी कमियों को ओढने को तैयार हूँ ,मैं तुम्हारे विष रुपी कर्मो को पचाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो |तुम मेरे आत्म हो ,तुम मेरे अपने हो ,तुम मेरे हृदय की धडकन हो |

दूसरो की तरह तुम केवल धन ,वैभव ,काम ,ऐश्वर्य में फसे हो क्या यह उचित है |मैंने तो हमेशा तुम्हे संपन्न देखना चाहा है पर आत्म उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य नहीं,अगर तुमने सम्पन्नता प्राप्त कर भी ले और तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी रह जाए तो सब व्यर्थ है |

तुम्हे आध्यात्मिक धरातल पर उच्चता और श्रेष्ठता की स्थिति तक पहुंचाना चाहता हूँ ,मैं चाहता हूँ फिर तुम जैसा कोई दूसरा अन्य न हो ,तुम हो तो केवल तुम हो |

परन्तु यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम समर्पण कर दोगे ,मुझमे पूर्ण रूप से एकाकार हो सकोगे ,जब तुम्हारे और मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नहीं रहेगी ,जब तुम्हारे कण -कण में गुरु का वास होगा ,जब तुम्हारी हर श्वास में उसी का उच्चारण होगा |
और यह स्थिति प्राप्त करने का सरलतम उपाय है गुरु मंत्र |निरंतर गुरु मंत्र जप द्वारा तुम उस स्थिति को प्राप्त कर सकते हो जबकि गुरु और शिष्य में इंच मात्र की भी दूरी नहीं रहती |ऐसा तुम कर पाओ यही मेरे कामना है |

प्रश्न : तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के होने पर भी हमें आखिर गुरु की आवश्यकता क्यूँ हैं?

जवाब :
क्यूंकि तैंतीस करोड़ देवी-देवता हमें सब कुछ दे सकते हैं. मगर जन्म-मरण के चक्र से सिर्फ गुरु ही मुक्त कर सकता हैं.
यह तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के द्वारा संभव नहीं हैं.
इसलिए ही तो राम और कृष्ण, शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, मेरे, कबीर, आदि... हर विशिष्ट व्यक्तित्व ने जीवन में गुरु को धारण किया और
तब उनके जीवन में वे अमर हो सके....
..... आज भी इतिहास में, वेदों में, पुराणों ने उन्हें अमर कर दिया....

इसीलिए तो कहा गया हैं:
तीन लोक नव खण्ड में गुरु ते बड़ा न कोय!
करता करे न कर सकें , गुरु करे सो होय!!

KARN PISHACH SADHNA

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Do you know whose speed is the highest speed in whole universe…Hmmm...

Come on just give a thought hnnna..

What happen?

Ohhho it’s but obvious our MIND… hmm isn’t it…Wel in whole universe only human beings are bestowed with this MIND POWER… While other living beings are stimulated by God and performed their task, as they don’t have mind.Hey do you ever heard any animal smiling or laughing?

Due to this mind power, human can imagine and have a caliber of definite intention. Behind every discovery and each siddhi there is imagination power only.

Now what is KARN-PISHACH or KARN-PISHACHINI?

Human’s unlimited Manah Shakti which can be control by power known as KARN-PISHACH or KARN-PISHACHINI sadhna.It clearly means that one who would conquer this mansik shakti can only becomes the Sadhak or Siddha of such divine knowledge.

By these learnings we don’t inactive our mind rather by capturing its Charam and Param activeness earnest effort we spend it in human welfare only.

By this Siddhi we enhace the activation power of mind because the inactive and inert power is of no use?

Behind this Study which principle works u know?

Human’s whole past period is hidden in his conscious and subconscious mind.Therefore whenever u cooridinate your supreme mind power with the other one abruptly u got contact with his mind and in fraction of seconds u become able to know his whole past.It is because from prakar antar your mind is coordinated with the Akaash tatva and then only you became able to hear that secret in universal voice which makes u realize that u r listening it with your own ears.

One must not use this knowledge for self purpose or for any type of malpractices and if done then be ready for bad consequences.This sadhna is for increasing our atmabal and along with that it makes your work easy. Remember TANTRA is not right nor wrong.It only leads us to that shore from where we can decide with the help of our conscious mind that how to use it.

Wel this sadhna is less in force in Tantra but is wonderful sadhna.Socialy Karnapishachini Sadhna is famous more but the types of illusions which are spreaded all over and it frightened the sadhak to perform it. Therefore Karn-Pishach sadhna is more favourable.

Start this sadhna on Monday.
On first day do fast (no food), as it is process of making pious internally and externally too.
Clothes and asan should be white and face towards the south direction.
Night is the best time to attempt it.
Make a knot of Lauki and Sarpakshi roots in red thread and tie it on your head (bring this roots in Pushya Nakshatra)
Do Guru Poojan and Mantra Jap.Then request for accomplishment of this sadhna to revered gurudev.
Then lighten the oil lamp and again worship it.After worshipping with complete concentrated mind do tratak on the tip of lamp and complete the 1.5 lakh times mantra chanting.
Wel in how many days you want to complete it is up to you.So divide it wisely.At max only 21 days can be prolonged but not beyond it.
Definitely you will see success with Guru kripa.

Mantra : om namo bhagvate rudraay karn pishachaay swaha

This sadhna can be attempted by both Waam and Soumya Marg. On continous Mantra chanting you will experience various types of voices which haven’t ever heard.

But Sadhak’s real examination starts after earning Siddhi.As he became capable to know all mentalities of others which could be too dirty and too evil to imagine and for digesting also.Now it is up to you how you keep shut and give peace to ur mind.I remember very wel one of Sadgurudev’s verdict-“It is too easy to siddha the sadhna but is too difficult to stay normal or digest after accomplishing it”.Before doing this sadhna one must go for Diksha sanskar first from Sadgurudev and Poorna Sidhhidayak too.

So come on step forward and adopt such divine sadhnas in ur life and make it successful.

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..... is brahmand me sabse tivra gati kiski hai kya aap bata sakte hain? sochiye to sahi....
....

kya hua .....
are bhai nischay hi man ki ... hai na..
is sampoorn charachar me man roopi shakti keval manushya ke paas hai . jabki anya prani va jeev ishwar ki prerna se karya ko sampadit karta hai, kyonki unke paas man nahi hai kya aapne kabhi kisi janwar ko haste huye dekha hai.... ...

isi man ke karan manushya me kalpana karne, sankalp karne ki kshamta hoti hai. pratyek avishkaar ,pratyek siddhi ke peechhe kalpana shakti hi to hai.

ab karn-pishach, ya karn-pishachni kya hai?

manushya ki asimit manah shakti ke upar jis shakti ke dwara niyantran kiya jata hai use hi karn-pishach ya pishachni sadhna kahte hain. iska matlab saaf hai ki manav ki mansik shakti ka vijeta hi is divya vidya ka sadhak va siddh ban sakta hai.

is vidya ke dwara ham man ko nishkriy nahi karte balki uski charam aur paranm sakriyta ko sadh kar manav - kalyaan me laga dete hain.

is siddhi ke dwara man ki sakriyta ko badhayee jati hai kyunki niskriy ya supt shakti bhala kis kaam ki?

is vidya ke peechhe akhir kaun sa siddhant karya karta hai? ....

vyakti ka poora bhoot kaal uske chetan - avchetan man me chhipa hota hai , isi liye jaise hi aap apne param shakti saali man ka samanjasy jaise hi kisi ke man se karte ho vaise hi jaatak ka poora past aapke samne aa jata hai kyunki prakar antar se aap ke man ka samanvay aakash tatv se ho jata hai aur aap us rahasy ko brahmandiya vani me sunte ho jo ki aapko kaan se sunne ka ahsaas karvati hai .

is vidya ka prayog apni swarth poorti ya galat karyon ko sadhane ke liye na kiya jaye ,anyatha uske dush parinaam bhi milte hain.yeh sadhana aatm bal badhane ki sadhana hai aur aapke kaaryon ko saral kar dhoka hone se to yeh bachati hi hai.yaad rakhiyetantra na to sahi hota hai na hi galat,yeh to hame aise sthan par tathasth kar khada kar deta hai jaha se hame hi yeh nirdharit karna padta hai ki iska ham apne vivek anusaar kaisa prayog karte hain..

tantrashastra ki atyant kam prachlit magar adbhut sadhana hai yeh karn-pishach sadhana . samaj me karn-pishachni sadhana kahi jyada prachlit hai.parantu uske vishay me jo bhrantiyan phaili hain unse vyakti karn-pishachni sadhana karne se darta hai. isi liye karn-pishach sadhana kahi jyada anukul hai .

monday se is sadhna ko karen.
1st day upaas rakhen,kyunki yeh aapke aantrik va bahya pvitrta ki hi prakriya hai,
safed vastr va aasan ho tatha face south ki or ho.
ratri is kary ke liye shreshtha hai .
lauki aur sarpakshi mool ko laal dhage mebandh kar sir par baandh le (in jado ko pushya nakshatra me la len)
guru poojan va mantra jap kare. va guru se is sadhna me safalta ke liye prarthna karen.
phir samne tel ke deepak ko jala kar aur uska poojan karke ekagra chit hokar deepak ki shikha par tratak karte huye 1.5 lakh mantra karen.
dino ki sankhya ka nirdharan aap apni kshamta ke anusaar kare .jyada se jyada 21 din ho sakte hain.

nischay hi guru kripa se aapko safalta prapt hogi.

mantra: om namo bhagvate rudraay karn pishachaay swaha

yeh sadhana vaam marg aur soumya marg dono hi tarike se ki jaa sakti hai .mantra ke lagataar abhyas se aap ko dheere dheere kai aisi aavajen sunayee dene lagti hain jo aapne shayad pahle kabhi nahi suni ho.
par ek saadhak ki pariksha is sadhana ki siddhi ke baad shuru hoti hai ,kyunki wo apne aas paas ke logo ki un maansikta ko bhi janne lagta hai jo ki behad gandi aur buri bhi ho sakti hain .ab yeh aap par hai ki aap apne apko kaise shant rakh pate hain.mujhe sadgurudev ka ek kathan hamesha yaad aata hai ki siddhi pana kathin nahi hai,kathinto use paane ke baad samanya rahne ya use pacha lene me hain.is sadhna ko karne se poorv sadgurudev se sambandhit diksha lena kahi jyada shreshtha hai.aur poorna siddhidayak bhi.

to aage badhiye aur aisi divya sadhanaon ko apna kar apna jeevan safal karen.. ....