सिधी कर्म के लिए अवश्य विचार --१ -
जब आप कोई भी साधना करते हो वोह आपको कोई ना कोई गुण प्रदान जरुर करती है इस के साथ ही आपको उस से कोई ना कोई शिक्षा जरुर मिलती है जो आप को भविष्य में काम आती है !साधना कभी भी विर्थी नहीं जाती उसका फल आपको कभी ना कभी जरूर मिलता है !कई वार साधना करते कोई अनुभव नहीं होता तो साधक निराश हो जाता है और सोचने लगता है के साधना सफल नहीं हुई लेकिन ऐसा नहीं है !जब भी आपको स्टार सहयोग देते है आपको की हुई साधना का फल अवश्य मिलता है !इस बात को हमेशा दिल में रख कर साधना जगत में प्रवेश करना चाहिए !कई वार एक से अधिक साधनाए शुरू कर लेते है साधक कभी भी परस्पर दो विरोधी साधनाए साधनाए एक साथ शुरू नहीं करनी चाहिए जैसे लक्ष्मी और भैरव एक साथ नहीं किये जाते ऐसे ही बहुत सी साधनाए है जो आपस में विरोधाभास रखती है जैसे तमो गुण की साधना के साथ सतो गुण की साधना नहीं करनी चाहिए रजो गुण प्रधान लक्ष्मी है और सतो गुण प्रधान सरस्वती है ज्ञान और धन दो गुण है इन साधनायो को अगर अलग अलग किया जाये तो अशा रहता है !काली तमो गुण प्रधान है इस लिए इस साधना को अलग किया जाता है !जैसे अग्नि मंत्र जिन में अंत में ॐ लगता है वोह अग्नि मंत्र होते है और सोम मंत्र एक साथ नहीं किये जाते अर्थान्त शांति कर्म के मंत्र !मंत्र का चयन अपनी स्वास सूरा के अनुसार किया जाता है जैसे दाये सुर हो तो सोम मंत्र और बाये हो तो अग्नि मंत्रो का जाप करना उचित होता है !जब दोनों सुर एक साथ चलते हो तो सभी मंत्र जागृत होते है !मंत्रो का चयन अपनी राशी अनुसार भी कर सकते है जिस की जानकारी अगले किसी लेख में दूंगा !
मन्त्र साधना से पूर्व अगर मंत्र के समाधित देवी की पूजा जा आराधना कर उसे संतुष्ट कर लिया जाये तो सिधी जल्द मिल जाती है शाश्त्रो अनुसार ६ देविये मंत्रो के ष्ट कर्म की अधिष्ठात्री मानी गई है !
१ शांति कर्म की देवी रति को माना गया है !
२ वशी कर्ण की देवी वाणी है !
३ सत्म्भन कर्म की देवी रमा है !
४ विद्वेष कर्म की देवी जेष्टा है !
५ उचाटन कर्म की देवी दुर्गा है !
६ मारन कर्म की देवी भद्र काली को माना गया है !
इसी परकार सभी मंत्रो के देवता १५ है !
1रूद्र ,२ मंगल ,३ गरुड ,४ गंधर्व ,५ यक्ष ६ तक्ष ७ भुजंग ८ किनर ९ पिचाश १० भूत ११ दैंत १२ इन्दर १३ सिद्ध १४ विधाधर १५ असर !
मंत्र ष्ट कर्म और दिशा
1 शांति कर्म ---- इशान कोन !
२ वशी कर्ण उतर दिशा !
३ स्तम्भन के लिए पूर्व दिशा !
४ विद्वेष के लिए नरैत कोन
५ उचाटन के लिए वविया कोन !
६ मारन कर्म के लिए दक्षिण दिशा !
उतर दिशा को सिधी कर्म के लिए ले सकते है !पछिम को धन प्राप्ति और सुलेमानी साधनाओ के ले सकते है !(कर्षम )
इस लेख में हम ऋतू विचार और देव ध्यान पे विचार करेगे !इस के साथ ही मन्त्र परकार पे भी थोरी चर्चा करेगे !
१ ऋतू ----दिशा के बाद ऋतू विचार कर लेना चाहिए शाश्त्रो में ६ ऋतू मानी गई है !बसंत ,गर्मी ,वर्षा ,सर्द ,हेमंत ,सीत ऋतू !
इसी परकार दिन में ६० घडी मानी गई है !
१ पहली दस घडी बसंत ऋतू की है !
२ दूसरी दस घडी ग्रीषम ऋतू है !
३ तीसरी दस घडी वर्षा ऋतू की है !
४ इसके बाद शरद ऋतू !
५ फिर हेमंत !
६ और सीत ऋतू को माना गया है !
ऋतू अनुसार मंत्र ष्ट कर्म ---
१ शांति कर्म के लिए हेमंत ऋतू श्रेष्ट है !
२ वशी कर्ण वास्ते बसंत ऋतू को श्रेष्ट माना गया है !
३ सत्म्भन कर्म शीर्ष ऋतू में किया जाता है !
४ विद्वैस कर्म ग्रीषम ऋतू में करना चाहिए !
५ उचाटन कर्म वर्षा ऋतू में श्रेष्ट फल देता है !
६ मारन कर्म सर्द ऋतू में करने से जल्द फल दे देता है !
मंत्रो का परकार ---
सभी मन्त्र तीन श्रेणी में आते है !
१ इस्त्री २ पुरष और ३ नपुसक
१ इस्त्री संगक मंत्रो के अंत में सवाहा लगा होता है !
२ पुरष संगक मंत्रो के अंत में फट लगा होता है !
३ नपुसक मंत्रो के अंत में नम ; होता है !
मंत्रो की सिधी में देव ध्यान ---
१ वशी कर्ण ,मोहन ,उचाटन इन तीन कर्मो में देवता को लोहे जैसे रंग में ध्यान करे !
२ शांति कर्म, सिधी कर्म ,पुष्टि कर्म ,विद्वैस कर्म में देवता को शुभ और सुन्दर वर्ण वाले सवरूप में ध्यान करे !
३ उचाटन अनुमाद मारन कर्म में देवता को धूमल रंग अर्थात धुएं जैसे रंग के स्वरुप में ध्यान करना उचित रहता है !
४ मारन कर्म में देवता को तयार वर तयार देखे और उचाटन कर्म में देवता को सोये हुए ध्यान करे बाकि सभी कर्मो में देवता को बैठे हुए ध्यान करे !
सदगुरुदेव जी ने यह भी कहा हैं कि साधक को तो एक मध्यम मार्ग पर चलना चाहिए उसे अपने शरीर का भी ध्यान रखना चाहिए अनावश्यक रूप से उसे तोड़ नहीं डालना चहिये , वही भी किसी तथाकथित नियमो की आड़ में क्योंकि इसी शरीर के माध्यम से ही तो अमृतत्व की यात्रा संभव होगी न तो आप अपने सबसे ज्यादा मित्र के जो आपका ही शरीर हैं उसके प्रति इतने बे रहम कैसे हो सकते
Thought of day
इंसान के जीवन मे कई बार अचानक से एसी परिस्थितियां आ जाती है की सारा जीवन अस्तव्यस्त सा हो जाता है. कई बार कुछ एक अत्याधिक भयास्पद घटनाओ का सामना हो जाता है की घर परिवार का पूरा वातावरण ही शोकमय हो जाता है. इस तरह एक व्यक्ति की आध्यात्मिक तथा भौतिक प्रगति न सिर्फ अटक जाती है वरन उसमे ग्रास भी आने लगता है. भविष्य के गर्भ मे छिपे वे अकस्मात तथा वृहद समस्या व्यक्ति को अंदर से तोड़ देती है और तब उदगार निकलता है की काश हमें पहले से ही पता होता. क्या ऐसा हो सकता है ? व्यक्ति के जीवन मे समस्या तो आती ही है लेकिन एक साधक के लिए कोई भी समस्या बाधक नहीं हो सकती है. हमारे देश की यह महान साधनात्मक प्रणाली मे जीवन को हमेशा उर्ध्वगामी बनाने के लिए हीरे मोती हमारे सदगुरुदेव ने बिखेरे है. इसी क्रम मे उन्होंने एक से एक हीरक खंड को हमारे सामने रखा ही है. चाहे वह भौतिक पक्ष से सबंधित हो या आध्यात्मिक पक्ष से. इस प्रकार के नितांत आवश्यक विषय पर भी उन्होंने साधनाए प्रदान की है जिससे की साधक ना मात्र उन समस्याओ के बारे मे पहले से ही जान लेता है बल्कि साथ ही साथ उन प्रतिकूल घटनाओ से अपने आपका रक्षण भी कर लेता है. ऐसा ही एक सरल विधान जो की आज तक गुप्त रहा है वह है काल भैरव साधना जिसके माध्यम से भगवान खुद साधक को किसी न किसी रूप मे सूचित कर देते है तथा साधक का उस समस्या से रक्षण भी कर देते है. जल्द ही ये प्रयोग आप सब के मध्य होगा. आशा करता हू की ये दुर्लभ साधना आपकी प्रगति मे आने वाली हर बाधा को निस्तेज कर आपको अपने पथ पर अग्रसर करने मे सहायता देगी
जय सदगुरुदेव
जब आप कोई भी साधना करते हो वोह आपको कोई ना कोई गुण प्रदान जरुर करती है इस के साथ ही आपको उस से कोई ना कोई शिक्षा जरुर मिलती है जो आप को भविष्य में काम आती है !साधना कभी भी विर्थी नहीं जाती उसका फल आपको कभी ना कभी जरूर मिलता है !कई वार साधना करते कोई अनुभव नहीं होता तो साधक निराश हो जाता है और सोचने लगता है के साधना सफल नहीं हुई लेकिन ऐसा नहीं है !जब भी आपको स्टार सहयोग देते है आपको की हुई साधना का फल अवश्य मिलता है !इस बात को हमेशा दिल में रख कर साधना जगत में प्रवेश करना चाहिए !कई वार एक से अधिक साधनाए शुरू कर लेते है साधक कभी भी परस्पर दो विरोधी साधनाए साधनाए एक साथ शुरू नहीं करनी चाहिए जैसे लक्ष्मी और भैरव एक साथ नहीं किये जाते ऐसे ही बहुत सी साधनाए है जो आपस में विरोधाभास रखती है जैसे तमो गुण की साधना के साथ सतो गुण की साधना नहीं करनी चाहिए रजो गुण प्रधान लक्ष्मी है और सतो गुण प्रधान सरस्वती है ज्ञान और धन दो गुण है इन साधनायो को अगर अलग अलग किया जाये तो अशा रहता है !काली तमो गुण प्रधान है इस लिए इस साधना को अलग किया जाता है !जैसे अग्नि मंत्र जिन में अंत में ॐ लगता है वोह अग्नि मंत्र होते है और सोम मंत्र एक साथ नहीं किये जाते अर्थान्त शांति कर्म के मंत्र !मंत्र का चयन अपनी स्वास सूरा के अनुसार किया जाता है जैसे दाये सुर हो तो सोम मंत्र और बाये हो तो अग्नि मंत्रो का जाप करना उचित होता है !जब दोनों सुर एक साथ चलते हो तो सभी मंत्र जागृत होते है !मंत्रो का चयन अपनी राशी अनुसार भी कर सकते है जिस की जानकारी अगले किसी लेख में दूंगा !
मन्त्र साधना से पूर्व अगर मंत्र के समाधित देवी की पूजा जा आराधना कर उसे संतुष्ट कर लिया जाये तो सिधी जल्द मिल जाती है शाश्त्रो अनुसार ६ देविये मंत्रो के ष्ट कर्म की अधिष्ठात्री मानी गई है !
१ शांति कर्म की देवी रति को माना गया है !
२ वशी कर्ण की देवी वाणी है !
३ सत्म्भन कर्म की देवी रमा है !
४ विद्वेष कर्म की देवी जेष्टा है !
५ उचाटन कर्म की देवी दुर्गा है !
६ मारन कर्म की देवी भद्र काली को माना गया है !
इसी परकार सभी मंत्रो के देवता १५ है !
1रूद्र ,२ मंगल ,३ गरुड ,४ गंधर्व ,५ यक्ष ६ तक्ष ७ भुजंग ८ किनर ९ पिचाश १० भूत ११ दैंत १२ इन्दर १३ सिद्ध १४ विधाधर १५ असर !
मंत्र ष्ट कर्म और दिशा
1 शांति कर्म ---- इशान कोन !
२ वशी कर्ण उतर दिशा !
३ स्तम्भन के लिए पूर्व दिशा !
४ विद्वेष के लिए नरैत कोन
५ उचाटन के लिए वविया कोन !
६ मारन कर्म के लिए दक्षिण दिशा !
उतर दिशा को सिधी कर्म के लिए ले सकते है !पछिम को धन प्राप्ति और सुलेमानी साधनाओ के ले सकते है !(कर्षम )
इस लेख में हम ऋतू विचार और देव ध्यान पे विचार करेगे !इस के साथ ही मन्त्र परकार पे भी थोरी चर्चा करेगे !
१ ऋतू ----दिशा के बाद ऋतू विचार कर लेना चाहिए शाश्त्रो में ६ ऋतू मानी गई है !बसंत ,गर्मी ,वर्षा ,सर्द ,हेमंत ,सीत ऋतू !
इसी परकार दिन में ६० घडी मानी गई है !
१ पहली दस घडी बसंत ऋतू की है !
२ दूसरी दस घडी ग्रीषम ऋतू है !
३ तीसरी दस घडी वर्षा ऋतू की है !
४ इसके बाद शरद ऋतू !
५ फिर हेमंत !
६ और सीत ऋतू को माना गया है !
ऋतू अनुसार मंत्र ष्ट कर्म ---
१ शांति कर्म के लिए हेमंत ऋतू श्रेष्ट है !
२ वशी कर्ण वास्ते बसंत ऋतू को श्रेष्ट माना गया है !
३ सत्म्भन कर्म शीर्ष ऋतू में किया जाता है !
४ विद्वैस कर्म ग्रीषम ऋतू में करना चाहिए !
५ उचाटन कर्म वर्षा ऋतू में श्रेष्ट फल देता है !
६ मारन कर्म सर्द ऋतू में करने से जल्द फल दे देता है !
मंत्रो का परकार ---
सभी मन्त्र तीन श्रेणी में आते है !
१ इस्त्री २ पुरष और ३ नपुसक
१ इस्त्री संगक मंत्रो के अंत में सवाहा लगा होता है !
२ पुरष संगक मंत्रो के अंत में फट लगा होता है !
३ नपुसक मंत्रो के अंत में नम ; होता है !
मंत्रो की सिधी में देव ध्यान ---
१ वशी कर्ण ,मोहन ,उचाटन इन तीन कर्मो में देवता को लोहे जैसे रंग में ध्यान करे !
२ शांति कर्म, सिधी कर्म ,पुष्टि कर्म ,विद्वैस कर्म में देवता को शुभ और सुन्दर वर्ण वाले सवरूप में ध्यान करे !
३ उचाटन अनुमाद मारन कर्म में देवता को धूमल रंग अर्थात धुएं जैसे रंग के स्वरुप में ध्यान करना उचित रहता है !
४ मारन कर्म में देवता को तयार वर तयार देखे और उचाटन कर्म में देवता को सोये हुए ध्यान करे बाकि सभी कर्मो में देवता को बैठे हुए ध्यान करे !
सदगुरुदेव जी ने यह भी कहा हैं कि साधक को तो एक मध्यम मार्ग पर चलना चाहिए उसे अपने शरीर का भी ध्यान रखना चाहिए अनावश्यक रूप से उसे तोड़ नहीं डालना चहिये , वही भी किसी तथाकथित नियमो की आड़ में क्योंकि इसी शरीर के माध्यम से ही तो अमृतत्व की यात्रा संभव होगी न तो आप अपने सबसे ज्यादा मित्र के जो आपका ही शरीर हैं उसके प्रति इतने बे रहम कैसे हो सकते
Thought of day
इंसान के जीवन मे कई बार अचानक से एसी परिस्थितियां आ जाती है की सारा जीवन अस्तव्यस्त सा हो जाता है. कई बार कुछ एक अत्याधिक भयास्पद घटनाओ का सामना हो जाता है की घर परिवार का पूरा वातावरण ही शोकमय हो जाता है. इस तरह एक व्यक्ति की आध्यात्मिक तथा भौतिक प्रगति न सिर्फ अटक जाती है वरन उसमे ग्रास भी आने लगता है. भविष्य के गर्भ मे छिपे वे अकस्मात तथा वृहद समस्या व्यक्ति को अंदर से तोड़ देती है और तब उदगार निकलता है की काश हमें पहले से ही पता होता. क्या ऐसा हो सकता है ? व्यक्ति के जीवन मे समस्या तो आती ही है लेकिन एक साधक के लिए कोई भी समस्या बाधक नहीं हो सकती है. हमारे देश की यह महान साधनात्मक प्रणाली मे जीवन को हमेशा उर्ध्वगामी बनाने के लिए हीरे मोती हमारे सदगुरुदेव ने बिखेरे है. इसी क्रम मे उन्होंने एक से एक हीरक खंड को हमारे सामने रखा ही है. चाहे वह भौतिक पक्ष से सबंधित हो या आध्यात्मिक पक्ष से. इस प्रकार के नितांत आवश्यक विषय पर भी उन्होंने साधनाए प्रदान की है जिससे की साधक ना मात्र उन समस्याओ के बारे मे पहले से ही जान लेता है बल्कि साथ ही साथ उन प्रतिकूल घटनाओ से अपने आपका रक्षण भी कर लेता है. ऐसा ही एक सरल विधान जो की आज तक गुप्त रहा है वह है काल भैरव साधना जिसके माध्यम से भगवान खुद साधक को किसी न किसी रूप मे सूचित कर देते है तथा साधक का उस समस्या से रक्षण भी कर देते है. जल्द ही ये प्रयोग आप सब के मध्य होगा. आशा करता हू की ये दुर्लभ साधना आपकी प्रगति मे आने वाली हर बाधा को निस्तेज कर आपको अपने पथ पर अग्रसर करने मे सहायता देगी
जय सदगुरुदेव