Monday, November 21, 2011

SABAR TANTRA MAHAVISHANK-NATH JAGAT KI ADBHUT MUDRAAYEN

BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNA-POORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU

Divine way of contolling Phantom and ghost


अक्सर भूत प्रेत का नाम सुनकर लोगो में भय व्याप्त हो जाता है उन्हें सिद्ध करने की कौन कहे,वैसे भी उन्हें सिद्ध करने की जो क्रियाएँ वर्णित होती हैं वो कम से कम सामान्य साधको और कमजोर मनोमष्तिष्क वालों के लिए तो नहीं है.ऊपर से ये भ्रान्ति की जो इन्हें सिद्ध करता है उसे ये तकलीफ दते हैं, साधक का बचा खुचा मनोबल भी समाप्त कर देते हैं.परन्तु ये सभी तथ्य वास्तविकता से कोसो दूर है. भूत प्रेत तो अपनी मुक्ति के लिए बैचेन ऐसी आत्माएं होती हैं जो किसी भी प्रकार अपनी मुक्ति चाहती हैं और परोक्ष अपरोक्ष रूप से सहयोग के लिए तत्पर होती हैं,वे सही और गलत कार्य दोनों कर सकती हैं परन्तु,जब साधक उनका दुरूपयोग करता है तो उन आत्माओं की तो मुक्ति हो जाती है पर साधक का जीवन दूभर हो जाता है. लेकिन उनका सदुपयोग करने पर आप जहाँ उन आत्माओं को मुक्त होने में माध्यम की भूमिका निभाते हो वहाँ किसी भी प्रकार हानि से भी सुरक्षित रहते हो.प्रस्तुत पद्धति किसी भी प्रकार से हानि रहित और प्रभावकारी है और इसे कोई भी साधक कर सकता है ,इस साधना की वजह से सिर्फ उच्च संस्कारों वाले प्रेत या भ्होत ही आपके वश में होते हैं ,जो एक सच्चे मित्र की भांति बिना नुक्सान पहुचाए हमेशा आपकी मदद को तत्पर रहते हैं.
अमावस्या के दिन स्नान कर पूर्ण पवित्रता के साथ व्रत रखे, फलाहार करे और लाल वस्त्र धारण करें, सात्विक रूप से प्रेत का चिंतन करे, वो पूर्ण रूप से सहयोगी बन कर मेरे साथ मित्रवत रहे ,यही चिंतन आपके मन में होना चाहिए.रात्रि में पीपल वृक्ष के नीचे जाकर पीपल के पांच हरे पत्तों पर पूजा की पांच सुपारी रख कर उनमे प्रेत शक्ति का ध्यान किया जाना चाहिए , फिर लोहबान अगरबत्ती ,काले तिल और फूल अर्पित करें और पीपल के पत्तों पर ही दही चावल का भोग गुलाब जल छिड़क कर लगादे और काली हकीक माला से वही खड़े खड़े ११ माला निम्न मन्त्र की करें.
मन्त्र- ॐ क्रीं क्रीं सदात्मने भूताय मम मित्र रूपेण सिद्धिम कुरु कुरु क्रीं क्रीं फट्.
और मन्त्र जप के बाद प्रार्थना करे की आप मेरी रक्षा करे और मेरी मित्र रूप में सहायता करे , ये क्रम मात्र ३ अमावस्या तक आप को करना है अर्थात प्रत्येक अमावस्या को को मात्र ३ बार ऐसा करना है.३ अमावस्या को सद् रूप में भूत आपके सामने आकार आपकी सहायता का वचन देता है.और ३ वर्ष तक साधक के वश में रहता है.
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   Often whenever people hear ghost ghostly name they filled with a prevalent fear. So who ll say to prove them, in anyways the ways by which they can be proven are really not meant for a normal person or weak hearted person. Upon that various illusions are spreader that whosoever proves them is always troubled. Even they finished off the remaining confidence by doing such acts. But all these facts are very far from reality. Phantom Ghosts are such souls who are restless for their liberation in any way to his release by direct and indirect are willing to cooperate. They performs both type of work whether it is good or bad, right from wrong but when the seeker misuse them becomes the salvation of souls is the seeker's life is miserable. But their utilization on where you play the role of the medium to be free spirits there is protected from any harm. So present’s u a harmless from any and effective method and it can be done by any seeker, Due to this sadhna only well discipline and high values of Phantom or ghosts get in your control, who remains with u like a true friend without the harming and always ready to help you.
On day of AMAVASYA take shower and keep fast for whole day with purity, only have fruits and wear red cloths, with divine and pious way just remember the ghost and phantom whole day, think that they remain with u are friendly to me to be fully cooperative, this thinking should be in your mind. In night go under the Bodhi tree, take five green leaves and keep five nuts of worship and should keep in mind the ones that phantom power, then myrrh incense sticks, black sesame and laid flowers, then keep curd rice on that leaves then sprinkle rose water on it. And their only on standing mode just do the chanting 11 rosary of black mala from the following mantra.

Mantra : Om kreem kreem sadaatmane bhutay mam mitra rupen siddhim kuru kuru kreem kreem phat.

          After chanting the mantra and pray that you bless me and remain with me as my friend, to this order, you have to do that is just for three times on moon to the moon every time. Then just after 3 moon as the divine forms appears in front of u and promise u help and for 3 years remains in the hands of the seeker.

Panckalyank Festival Synod पंचकल्याणक महोत्सव में धर्मसभा

शिष्य गुरु के इशारे को समझे तो समझदार है और ज्यादा समझ जाए तो होशियार है। शिष्य को समझदार बनना चाहिए, होशियार नहीं। जिस प्रकार चंद्रमा की किरण घोर अंधकार हर लेती है वैसे ही शिष्य के घोर अंधकार को गुरु हर लेते हैं। उक्त प्रेरक विचार आचार्य गुप्तीनंदिजी महाराज ने पुष्पगिरि पर आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में धर्मसभा में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि अपने जीवन की डोर सद्गुरु के हाथों में सौंप दो तो भव से पार होने में वक्त नहीं लगेगा। जब इंसान को अहंकार आ जाता है तो वह अपने पथ से भटक जाता है और गुरु के चरणों से विमुख हो जाता है।

इस अवसर पर आचार्य पुष्पदंतसागरजी ने कहा कि श्रावक व श्रमण में एक ही अंतर है कि श्रावक बुद्घिगत जीते हैं और श्रमण साधनागत जीते हैं। साधना व संयम के रथ पर सवार होकर साधु मानव कल्याण की भावना चाहता है।

आकांक्षाओं के बादल जब छाते हैं तो अहंकार की बरसात होने लगती है। अहंकार पैदा होता है तो अधिकार की भाषा प्रकट हो जाती है। जहाँ अहंकार की भाषा है वहाँ समस्याएँ हैं।

महँगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सवाल तो यह है कि इतनी महँगाई के बाद भी महँगी वस्तुओं का त्याग नहीं किया गया। यदि इच्छाओं को वश में कर लिया तो जीवन सुखमय हो जाएगा।

आचार्यश्री ने कहा कि मन क्या चाहता है इन दोनों के बीच द्वंद्व क्यों है। मन चाहता है आवेश घृणा, कुटिलता, स्वार्थ जबकि अंतःकरण चाहता है, शांति, प्रेम सरलता, मित्रता और निःस्वार्थ। इन दोनों के बीच समानता नहीं हो रही है। क्योंकि समस्याएँ अनेक हैं।

प्रतीक सागरजी ने कहा कि जीवन में माता-पिता और गुरु का आशीर्वाद जरूरी है जिसकी जिंदगी में गुरु का नाम मिश्री की तरह घुल जाता है उसके प्रति समर्पण हो जाता है। उसका उद्घार हो जाता है।

मुनि तरुणसागरजी महाराज के आनंद यात्रा में लोगों को जीवन जीने के सूत्रों के साथ ही तनाव से मुक्ति के उपाय बताए गए।

Kaal bhairav sadhana - to overcome unwanted incidents


जीवन की उपयुक्त और योग्य गतिशीलता को ग्रहण लगाने वाले मुख्य शत्रु है समस्या और अकस्मात. अगर ये दो मुख्य बाधक जीवन की गति मे ना हो तो व्यक्ति अपने भौतिक व् आध्यात्मिक पक्ष को अत्यधिक मजबूती दे सकता है. काल की गति अनंत है जो की निरंतर रूप से चलती रहती है. फलस्वरूप हमारे बोध काल से विगत को भुत तथा गंतव्य को भविष्य नाम दिया गया है. लेकिन सब घटनाये मुख्य रूप से अपने अपने स्थानों पर काल की गति मे होती ही है और जब आप काल के उस निश्चित बिंदु पर पहोचाते है तो वह वर्तमान के रूप मे आपसे प्रत्यक्ष हो जाता है. यु हमारे जीवन मे कोई भी स्थिति होती है या आती है तो वह कर्म प्रधान कारण स्वरुप पहले से ही काल मे निश्चित थि. इसी क्रम मे वह सब घटनाये काल के गर्भ मे निहित ही है चाहे वह आपके अनुकूल हो या फिर प्रतिकूल. ज़रा सोचिये की अगर हम उन प्रतिकूल पल को निकाल दे तो जीवन प्रत्येक समय मधुर हो जाएगा. लेकीन क्या ऐसा संभव है. साधना तो प्रक्रिया ही असंभव को संभव बनाने की है. इस क्षेत्र मे असंभव तो अपने आप मे एक छोटा सा शब्द बन कर रह जाता है. तंत्र मे कई ऐसे विधान है जिनकी मदद से आने वाली दुर्घटनाओ तथा विकट समस्याओ को पहले से ही जाना जा सकता है. लेकिन प्रस्तुत विधान इस प्रकार से है की वह आने वाली दुर्घटनाओ तथा विकट समस्याओ के मात्र संकेत नहीं देता लेकिन उस प्रतिकूलता को दूर कर के आप को उससे बचाता भी है. इस प्रकार के कुछ विधान तो निश्चित रूप से पुरातन तंत्र ग्रंथो मे प्राप्य है लेकिन वे सब विधान गुढ़ तथा समयगम है. अत्यधिक जटिलता तथा लंबे समय तक साधना काल होने के कारण आज के इस युग मे इस प्रकार की साधना करना अत्यधिक दुस्कर है. लेकिन सदगुरुदेव ने अपने गृहस्थ शिष्यों के मध्य ज्यादातर सरल और त्वरित परिणाम देने वाली साधनाऐ ही रखी.
निम्न साधना के लिए साधक रुद्राक्ष या काले हकीक की माला का प्रयोग करे. आसान तथा वस्त्र लाल रहे और दिशा दक्षिण. यह ११ दिन की साधना है जिसे साधक शनिवार या मंगलवार की रात्रि मे ११ बजे के बाद शुरू कर सकता है.
साधक अपने सामने काल भैरव की फोटो या विग्रह स्थापित करे. उसका पूजन कुमकुम तेल सिन्दूर पुष्प वगेरा से करे. धुप तथा तेल का दीपक अर्पित करे. उसके बाद हाथ मे जल लेके संकल्प करे की मे ये मंत्र जाप भविष्य मे आने वाली सभी दुर्घटना समस्या तथा बाधा के समाधान के लिए कर रहा हू आप इसमें मेरी सहायता करे. इसके बाद निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.

ॐ कालभैरव अमुक साधकानां रक्षय रक्षय भविष्यं दर्शय दर्शय हूं

इसमें अमुक साधकानां की जगह स्वयं के नाम का उच्चारण करना चाहिए.
भविष्य मे जब भी कोई समस्या या दुर्घटना होने वाली हो तो किसी न किसी रूप मे भगवान काल भैरव साधक को सूचना दे देते है. साधक अपने कार्यों को उस प्रकार से परावर्तित कर सकता है. यु तो भगवान भैरव साधक की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप मे मदद करते ही रहते है.
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In the path of life the basic two obstacle creator enemies are certain problems and unexpected accidents. If these main two obstacles are not there in the life; a person can have a good hold over the progress of material and spiritual life. The movement of the time is infinite which runs continuous. This resulting us in present to term went off as ‘past’ and expected as ‘future’. But every incident are basically pre-placed in the motion of time and when you reach at that particular point of the time it comes in front of you as ‘Present’. This way in our life if any situation is there or arriving situations all those were prearranged in the time as a result enforced with karma. This way all those incidents are safe in the time rather it is favourable for you or not. Just think, if anyhow we remove those unexpected unfavourable moments from the life, how beautiful our life will start acting! But, is it possible? Sadhana is process to make impossible a possible thing. In this field, impossible remains as very small word only. In tantra there are several processes through with help of which we may get to know about the problems and unwanted incidents before it occur. But the here presented is the process through which not only meant to let you knew about the forthcoming troubles but it also saves you from the effect of the same. Such processes are for sure present in the many old tantra scriptures but those all are in codes and time consuming. As having a complicated processes and long time durations to do such sadhanas are really hard in this particular time period. But Sadgurudev have majority of the time provided simple and fast result giving sadhana to his disciples of material world.
In sadhana below, the rosary should be used of rudraksha or black hakeek. Aasan and cloth should be Red in colour and direction should be south. This is 11 days sadhana which could be started on any Saturday or Tuesday after 11 in night.
Sadhak should establish photo or idol of Kaal Bhairav infront of him. The poojan of the same should be done with red vermillion, oil, Sindoor, flower etc. Dhoop and oil lamp should be offered. After that one should take sankalp with water on palm that I am doing this mantra chanting to overcome all the accidents, problems and troubles I request you to help me. After that, chant 21 rosary of following mantra.

Om kaalBhairav amuk saadhakaanaam rakshay rakshay bhavishyam darshay darshay hum

In this mantra one should chant their own name on the place of ‘Amuk saadhakaanaam’.
In future when ever any troubles or unwanted incident is about to happen, Lord kaal Bhairav will inform sadhak with any of the form. Sadhak can convert his task that way. Though lord Bhairav will keep on helping sadhak directly indirectly.

Shishyta seven formulas शिष्यता के सात सूत्र


शिष्यता के सात सूत्र

भगवत्पाद शंकराचार्य ने “शिष्य”, और सही मायने में कसौटी पर खरे उतरने वाले शिष्य के सात सूत्र बताए हैं,
जो निम्न हैं| आप स्वयं ही मनन कर निर्णय करें, कि आपके जीवन में ये कितने संग्रहित हैं :-

अन्तेश्रियै वः – जो आत्मा से, प्राणों से, हृदय से अपने गुरुदेव से जुड़ा हो, जो गुरु से अलग होने की
कल्पना करते ही भाव विह्वल हो जाता हो|

कर्तव्यं श्रियै नः – जो अपनी मर्यादा जानता हो, गुरु के सामने अभद्रता, अशिष्टता का प्रदर्शन न कर
पूर्ण विनीत नम्र पूर्ण आदर्श रूप में उपस्थित होता हो|

सेव्यं सतै दिवौं च – जिसने गुरु सेवा को ही अपने जीवन का आदर्श मान लिया हो और प्राण प्रण से
गुरु की तन-मन-धन से सेवा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता हो|

ज्ञानामृते वै श्रियं – जो ज्ञान रुपी अमृत का नित्य पान करता रहता हैं और अपने गुरु से निरंतर ज्ञान
प्राप्त करता ही रहता हैं|

हितं वै हृदं – जो साधनाओं को सिद्ध कर लोगों का हित करता हो और गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता
ही रहता हैं|

गुरुर्वे गतिः – गुरु ही जिसकी गति, मति हो, गुरुदेव जो आज्ञा दे, बिना विचार किए उसका पालन करना
ही अपना कर्तव्य समझता हो|

इष्टौ गुरुर्वे गुरु: - जिस शिष्य का इष्ट ही गुरु हो, जो अपना सर्वस्व गुरु को ही समझता हो|
-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान अक्टो. 1998, पृष्ठ : ७१


गुरु तत्व विमर्श...

☼ अपने हृदय में “गुरु” स्थापन करना समस्त देवताओं को स्थापन करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!!
-ऋग्वेद
☼ जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ की अपेक्षा “गुरु-पूजन” ही हैं!
-गुरौपनिषद
☼ चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – की प्राप्ति केवल गुरु-पूजन के द्वारा संभव हैं!
-याज्ञवल्क्य
☼ जीवन की पवित्रता, दिव्यता, तेजस्विता एवं परम शांति केवल गुरु-पूजन के द्वारा ही संभव हैं!
-ऋषि विश्वामित्र
☼ “गुरु-पूजा” से बढ़कर और कोई विधि या सार नहीं हैं!
-शंकराचार्य
☼ समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का आधार मात्र गुरु-पूजन हैं!
-आरण्यक
☼ जो प्रातःकाल गुरु-पूजन नहीं करता, उसका सारा समय, साधना एवं तपस्या व्यर्थ हो जाती हैं!
-रामकृष्ण
☼ गुरु-पूजा के द्वारा ही “इष्ट” के दर्शन संभव हैं!
-गोरखनाथ
☼ संसार का सार “मनुष्य जीवन” हैं, और मनुष्य जीवन का सार गुरु-धारण, गुरु स्मरण एवं गुरु-पूजन हैं!
-सिद्धाश्रम






Shishyta seven formulas

Shankaracharya Bgwatpad "disciple", and truly a disciple of the seven sources which meet the test are described,
The following are | make your own decisions as to contemplate, how many are stored in your life: -

Anteshriya Vः - the soul, the soul, the heart is connected to your Master, the master can be separated from
Imagine if the price is fevered |

Sriya Kartwyn Nः - who knows his limits, the impolicy of the master, not the display of rudeness
Ideally appears to be fully completed gentle hand |

Sata Sewyn Divun f - the master service is assumed to be the ideal of his life and death of pledge
Master of the body - mind - wealth to serve the aims of life |

Jञanamrite Y. Sriyn - continual diet of nectar continues to reward the knowledge and continuous learning from the master
Receives the same |

Hitn Hridn banks - which Sadnaon prove that people's interest and continued to master the knowledge

Bavasir ki Dava मस्सा या बवासीर

जय गुरुदेव जय गुरु जी

अगर किसी भाई के पाइल्स (मस्सा या बवासीर ) हो तो क्या करे ?
निखिल गुरु और महाकाली जी की प्रार्थना करते हुए सफ़ेद और लाल धागे को लीजिये और उन्हें आपस में बट लीजिये, बटने के बाद पैर के दोनों अंगूठो पर लपेट कर बांध दीजिये.
जय निखिल गुरु जी ने चाहा तो आपका ये रोग हमेशा के लिए जड़ से मिट जायेगा..


वन्देनिखिलम

Saturday, November 19, 2011

Master philosophy meditation गुरु दर्शन साधना

गुरु दर्शन साधना ---
गुरु शब्द ही का उचार्ण ही हिरदे में प्रेम भर जाता है और उसी क्षण अपने प्रिये गुरुदेव का चेहरा आँखों में या जाता है और अपने आप आंसु धरा प्रवाहित होने लग जाती है !क्यों के एक गुरु ही है जो शिष्य के अपने होते है बाकि सभी रिश्ते तो जही के जही रह जाते है !जहाँ गुरु है वहाँ सभी है !इस संसार रुपी भव से एक गुरु जी ही होते है जो पार लगा देते है !सिर्फ गुरु शब्द का उचार्ण भी अगर प्रेम भव से किया जाये तो भी सिधियो के दुयार खोल देता है !इस लिए गुरु दर्शन हर शिष्य के दिल की कामना ही नहीं लक्ष्य भी होता है ! दिल में प्रेम भरिये और अपना ले अपने सद्गुरु जी को आगे बढ़ कर उतर ले उनका प्रेम अपने हिरदे में और बसा ले उनकी सुरत अपनी आँखों में और उनकी यादे अपने ख्यालो में जही तो है उनके साक्षात् दर्शन करने की विधि !मैं जहा एक साधना दे रहा हू जो सद्गुरु के दर्शन और अशिर्बाद दिलाने में सहयक होती है !आप दिल से करे और विशुद प्रेम से उनको रिझा ले !
विधि --इसे किसी भी गुरुवार शुरू करना है !५ दिन की साधना है !
२ वस्त्र-- धोती पितान्म्बर पहन कर पीले आसन पे पूर्व विमुख बैठे और दैनिक साधना विधि से एक वेजोट पे पीला वस्त्र विशा के गुरु पूजन करे !
३ शुद्ध घी का दीप लगा दे और सुंगधित अगर वती भी लगा दे !
४ प्रसाद के लिए हलवा बना कर रख ले इन पाँच दिनों में हर दिन अलग अलग भोग लगाये !पहले दिन लडू जो शुद्ध घी के ले दुसरे दिन खीर तीसरे दिन पाँच पीस बर्फी के और ४थे दिन पांचो किस्म के मेवे और पंचमे दिन हलवा ले !पूजन पांचो दिन पूर्ण प्रेम भाव से करे !फिर पाँच माला गुरु मंत्र फिर एक माला निम्न साबर मंत्र का जाप और फिर पाँच माला गुरु मंत्र जाप करे !इस परकार पांचो दिन कर्म करने से गुरु जी का साक्षात् दर्शन ,स्वपन दर्शन होता है जा स्वपन में उनसे बात हो जाती है !
साबर मंत्र --- ॐ तारन गुरु बिन नहीं कोई श्रीति स्मृति मध् बात परोई !
थान अद्वैत तभी जाये पसरे मन बच कर्म गुरु पग दर्शे !
दरिदर रोग मिटे सभ तन का गुरु करुना कर होवे मुक्ता!
धन्य गुरु मुक्ति के दाते ॐ !!
जय गुरुदेव !