Monday, November 21, 2011

Divine way of contolling Phantom and ghost


अक्सर भूत प्रेत का नाम सुनकर लोगो में भय व्याप्त हो जाता है उन्हें सिद्ध करने की कौन कहे,वैसे भी उन्हें सिद्ध करने की जो क्रियाएँ वर्णित होती हैं वो कम से कम सामान्य साधको और कमजोर मनोमष्तिष्क वालों के लिए तो नहीं है.ऊपर से ये भ्रान्ति की जो इन्हें सिद्ध करता है उसे ये तकलीफ दते हैं, साधक का बचा खुचा मनोबल भी समाप्त कर देते हैं.परन्तु ये सभी तथ्य वास्तविकता से कोसो दूर है. भूत प्रेत तो अपनी मुक्ति के लिए बैचेन ऐसी आत्माएं होती हैं जो किसी भी प्रकार अपनी मुक्ति चाहती हैं और परोक्ष अपरोक्ष रूप से सहयोग के लिए तत्पर होती हैं,वे सही और गलत कार्य दोनों कर सकती हैं परन्तु,जब साधक उनका दुरूपयोग करता है तो उन आत्माओं की तो मुक्ति हो जाती है पर साधक का जीवन दूभर हो जाता है. लेकिन उनका सदुपयोग करने पर आप जहाँ उन आत्माओं को मुक्त होने में माध्यम की भूमिका निभाते हो वहाँ किसी भी प्रकार हानि से भी सुरक्षित रहते हो.प्रस्तुत पद्धति किसी भी प्रकार से हानि रहित और प्रभावकारी है और इसे कोई भी साधक कर सकता है ,इस साधना की वजह से सिर्फ उच्च संस्कारों वाले प्रेत या भ्होत ही आपके वश में होते हैं ,जो एक सच्चे मित्र की भांति बिना नुक्सान पहुचाए हमेशा आपकी मदद को तत्पर रहते हैं.
अमावस्या के दिन स्नान कर पूर्ण पवित्रता के साथ व्रत रखे, फलाहार करे और लाल वस्त्र धारण करें, सात्विक रूप से प्रेत का चिंतन करे, वो पूर्ण रूप से सहयोगी बन कर मेरे साथ मित्रवत रहे ,यही चिंतन आपके मन में होना चाहिए.रात्रि में पीपल वृक्ष के नीचे जाकर पीपल के पांच हरे पत्तों पर पूजा की पांच सुपारी रख कर उनमे प्रेत शक्ति का ध्यान किया जाना चाहिए , फिर लोहबान अगरबत्ती ,काले तिल और फूल अर्पित करें और पीपल के पत्तों पर ही दही चावल का भोग गुलाब जल छिड़क कर लगादे और काली हकीक माला से वही खड़े खड़े ११ माला निम्न मन्त्र की करें.
मन्त्र- ॐ क्रीं क्रीं सदात्मने भूताय मम मित्र रूपेण सिद्धिम कुरु कुरु क्रीं क्रीं फट्.
और मन्त्र जप के बाद प्रार्थना करे की आप मेरी रक्षा करे और मेरी मित्र रूप में सहायता करे , ये क्रम मात्र ३ अमावस्या तक आप को करना है अर्थात प्रत्येक अमावस्या को को मात्र ३ बार ऐसा करना है.३ अमावस्या को सद् रूप में भूत आपके सामने आकार आपकी सहायता का वचन देता है.और ३ वर्ष तक साधक के वश में रहता है.
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   Often whenever people hear ghost ghostly name they filled with a prevalent fear. So who ll say to prove them, in anyways the ways by which they can be proven are really not meant for a normal person or weak hearted person. Upon that various illusions are spreader that whosoever proves them is always troubled. Even they finished off the remaining confidence by doing such acts. But all these facts are very far from reality. Phantom Ghosts are such souls who are restless for their liberation in any way to his release by direct and indirect are willing to cooperate. They performs both type of work whether it is good or bad, right from wrong but when the seeker misuse them becomes the salvation of souls is the seeker's life is miserable. But their utilization on where you play the role of the medium to be free spirits there is protected from any harm. So present’s u a harmless from any and effective method and it can be done by any seeker, Due to this sadhna only well discipline and high values of Phantom or ghosts get in your control, who remains with u like a true friend without the harming and always ready to help you.
On day of AMAVASYA take shower and keep fast for whole day with purity, only have fruits and wear red cloths, with divine and pious way just remember the ghost and phantom whole day, think that they remain with u are friendly to me to be fully cooperative, this thinking should be in your mind. In night go under the Bodhi tree, take five green leaves and keep five nuts of worship and should keep in mind the ones that phantom power, then myrrh incense sticks, black sesame and laid flowers, then keep curd rice on that leaves then sprinkle rose water on it. And their only on standing mode just do the chanting 11 rosary of black mala from the following mantra.

Mantra : Om kreem kreem sadaatmane bhutay mam mitra rupen siddhim kuru kuru kreem kreem phat.

          After chanting the mantra and pray that you bless me and remain with me as my friend, to this order, you have to do that is just for three times on moon to the moon every time. Then just after 3 moon as the divine forms appears in front of u and promise u help and for 3 years remains in the hands of the seeker.

Panckalyank Festival Synod पंचकल्याणक महोत्सव में धर्मसभा

शिष्य गुरु के इशारे को समझे तो समझदार है और ज्यादा समझ जाए तो होशियार है। शिष्य को समझदार बनना चाहिए, होशियार नहीं। जिस प्रकार चंद्रमा की किरण घोर अंधकार हर लेती है वैसे ही शिष्य के घोर अंधकार को गुरु हर लेते हैं। उक्त प्रेरक विचार आचार्य गुप्तीनंदिजी महाराज ने पुष्पगिरि पर आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में धर्मसभा में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि अपने जीवन की डोर सद्गुरु के हाथों में सौंप दो तो भव से पार होने में वक्त नहीं लगेगा। जब इंसान को अहंकार आ जाता है तो वह अपने पथ से भटक जाता है और गुरु के चरणों से विमुख हो जाता है।

इस अवसर पर आचार्य पुष्पदंतसागरजी ने कहा कि श्रावक व श्रमण में एक ही अंतर है कि श्रावक बुद्घिगत जीते हैं और श्रमण साधनागत जीते हैं। साधना व संयम के रथ पर सवार होकर साधु मानव कल्याण की भावना चाहता है।

आकांक्षाओं के बादल जब छाते हैं तो अहंकार की बरसात होने लगती है। अहंकार पैदा होता है तो अधिकार की भाषा प्रकट हो जाती है। जहाँ अहंकार की भाषा है वहाँ समस्याएँ हैं।

महँगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सवाल तो यह है कि इतनी महँगाई के बाद भी महँगी वस्तुओं का त्याग नहीं किया गया। यदि इच्छाओं को वश में कर लिया तो जीवन सुखमय हो जाएगा।

आचार्यश्री ने कहा कि मन क्या चाहता है इन दोनों के बीच द्वंद्व क्यों है। मन चाहता है आवेश घृणा, कुटिलता, स्वार्थ जबकि अंतःकरण चाहता है, शांति, प्रेम सरलता, मित्रता और निःस्वार्थ। इन दोनों के बीच समानता नहीं हो रही है। क्योंकि समस्याएँ अनेक हैं।

प्रतीक सागरजी ने कहा कि जीवन में माता-पिता और गुरु का आशीर्वाद जरूरी है जिसकी जिंदगी में गुरु का नाम मिश्री की तरह घुल जाता है उसके प्रति समर्पण हो जाता है। उसका उद्घार हो जाता है।

मुनि तरुणसागरजी महाराज के आनंद यात्रा में लोगों को जीवन जीने के सूत्रों के साथ ही तनाव से मुक्ति के उपाय बताए गए।

Kaal bhairav sadhana - to overcome unwanted incidents


जीवन की उपयुक्त और योग्य गतिशीलता को ग्रहण लगाने वाले मुख्य शत्रु है समस्या और अकस्मात. अगर ये दो मुख्य बाधक जीवन की गति मे ना हो तो व्यक्ति अपने भौतिक व् आध्यात्मिक पक्ष को अत्यधिक मजबूती दे सकता है. काल की गति अनंत है जो की निरंतर रूप से चलती रहती है. फलस्वरूप हमारे बोध काल से विगत को भुत तथा गंतव्य को भविष्य नाम दिया गया है. लेकिन सब घटनाये मुख्य रूप से अपने अपने स्थानों पर काल की गति मे होती ही है और जब आप काल के उस निश्चित बिंदु पर पहोचाते है तो वह वर्तमान के रूप मे आपसे प्रत्यक्ष हो जाता है. यु हमारे जीवन मे कोई भी स्थिति होती है या आती है तो वह कर्म प्रधान कारण स्वरुप पहले से ही काल मे निश्चित थि. इसी क्रम मे वह सब घटनाये काल के गर्भ मे निहित ही है चाहे वह आपके अनुकूल हो या फिर प्रतिकूल. ज़रा सोचिये की अगर हम उन प्रतिकूल पल को निकाल दे तो जीवन प्रत्येक समय मधुर हो जाएगा. लेकीन क्या ऐसा संभव है. साधना तो प्रक्रिया ही असंभव को संभव बनाने की है. इस क्षेत्र मे असंभव तो अपने आप मे एक छोटा सा शब्द बन कर रह जाता है. तंत्र मे कई ऐसे विधान है जिनकी मदद से आने वाली दुर्घटनाओ तथा विकट समस्याओ को पहले से ही जाना जा सकता है. लेकिन प्रस्तुत विधान इस प्रकार से है की वह आने वाली दुर्घटनाओ तथा विकट समस्याओ के मात्र संकेत नहीं देता लेकिन उस प्रतिकूलता को दूर कर के आप को उससे बचाता भी है. इस प्रकार के कुछ विधान तो निश्चित रूप से पुरातन तंत्र ग्रंथो मे प्राप्य है लेकिन वे सब विधान गुढ़ तथा समयगम है. अत्यधिक जटिलता तथा लंबे समय तक साधना काल होने के कारण आज के इस युग मे इस प्रकार की साधना करना अत्यधिक दुस्कर है. लेकिन सदगुरुदेव ने अपने गृहस्थ शिष्यों के मध्य ज्यादातर सरल और त्वरित परिणाम देने वाली साधनाऐ ही रखी.
निम्न साधना के लिए साधक रुद्राक्ष या काले हकीक की माला का प्रयोग करे. आसान तथा वस्त्र लाल रहे और दिशा दक्षिण. यह ११ दिन की साधना है जिसे साधक शनिवार या मंगलवार की रात्रि मे ११ बजे के बाद शुरू कर सकता है.
साधक अपने सामने काल भैरव की फोटो या विग्रह स्थापित करे. उसका पूजन कुमकुम तेल सिन्दूर पुष्प वगेरा से करे. धुप तथा तेल का दीपक अर्पित करे. उसके बाद हाथ मे जल लेके संकल्प करे की मे ये मंत्र जाप भविष्य मे आने वाली सभी दुर्घटना समस्या तथा बाधा के समाधान के लिए कर रहा हू आप इसमें मेरी सहायता करे. इसके बाद निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.

ॐ कालभैरव अमुक साधकानां रक्षय रक्षय भविष्यं दर्शय दर्शय हूं

इसमें अमुक साधकानां की जगह स्वयं के नाम का उच्चारण करना चाहिए.
भविष्य मे जब भी कोई समस्या या दुर्घटना होने वाली हो तो किसी न किसी रूप मे भगवान काल भैरव साधक को सूचना दे देते है. साधक अपने कार्यों को उस प्रकार से परावर्तित कर सकता है. यु तो भगवान भैरव साधक की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप मे मदद करते ही रहते है.
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In the path of life the basic two obstacle creator enemies are certain problems and unexpected accidents. If these main two obstacles are not there in the life; a person can have a good hold over the progress of material and spiritual life. The movement of the time is infinite which runs continuous. This resulting us in present to term went off as ‘past’ and expected as ‘future’. But every incident are basically pre-placed in the motion of time and when you reach at that particular point of the time it comes in front of you as ‘Present’. This way in our life if any situation is there or arriving situations all those were prearranged in the time as a result enforced with karma. This way all those incidents are safe in the time rather it is favourable for you or not. Just think, if anyhow we remove those unexpected unfavourable moments from the life, how beautiful our life will start acting! But, is it possible? Sadhana is process to make impossible a possible thing. In this field, impossible remains as very small word only. In tantra there are several processes through with help of which we may get to know about the problems and unwanted incidents before it occur. But the here presented is the process through which not only meant to let you knew about the forthcoming troubles but it also saves you from the effect of the same. Such processes are for sure present in the many old tantra scriptures but those all are in codes and time consuming. As having a complicated processes and long time durations to do such sadhanas are really hard in this particular time period. But Sadgurudev have majority of the time provided simple and fast result giving sadhana to his disciples of material world.
In sadhana below, the rosary should be used of rudraksha or black hakeek. Aasan and cloth should be Red in colour and direction should be south. This is 11 days sadhana which could be started on any Saturday or Tuesday after 11 in night.
Sadhak should establish photo or idol of Kaal Bhairav infront of him. The poojan of the same should be done with red vermillion, oil, Sindoor, flower etc. Dhoop and oil lamp should be offered. After that one should take sankalp with water on palm that I am doing this mantra chanting to overcome all the accidents, problems and troubles I request you to help me. After that, chant 21 rosary of following mantra.

Om kaalBhairav amuk saadhakaanaam rakshay rakshay bhavishyam darshay darshay hum

In this mantra one should chant their own name on the place of ‘Amuk saadhakaanaam’.
In future when ever any troubles or unwanted incident is about to happen, Lord kaal Bhairav will inform sadhak with any of the form. Sadhak can convert his task that way. Though lord Bhairav will keep on helping sadhak directly indirectly.

Shishyta seven formulas शिष्यता के सात सूत्र


शिष्यता के सात सूत्र

भगवत्पाद शंकराचार्य ने “शिष्य”, और सही मायने में कसौटी पर खरे उतरने वाले शिष्य के सात सूत्र बताए हैं,
जो निम्न हैं| आप स्वयं ही मनन कर निर्णय करें, कि आपके जीवन में ये कितने संग्रहित हैं :-

अन्तेश्रियै वः – जो आत्मा से, प्राणों से, हृदय से अपने गुरुदेव से जुड़ा हो, जो गुरु से अलग होने की
कल्पना करते ही भाव विह्वल हो जाता हो|

कर्तव्यं श्रियै नः – जो अपनी मर्यादा जानता हो, गुरु के सामने अभद्रता, अशिष्टता का प्रदर्शन न कर
पूर्ण विनीत नम्र पूर्ण आदर्श रूप में उपस्थित होता हो|

सेव्यं सतै दिवौं च – जिसने गुरु सेवा को ही अपने जीवन का आदर्श मान लिया हो और प्राण प्रण से
गुरु की तन-मन-धन से सेवा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता हो|

ज्ञानामृते वै श्रियं – जो ज्ञान रुपी अमृत का नित्य पान करता रहता हैं और अपने गुरु से निरंतर ज्ञान
प्राप्त करता ही रहता हैं|

हितं वै हृदं – जो साधनाओं को सिद्ध कर लोगों का हित करता हो और गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता
ही रहता हैं|

गुरुर्वे गतिः – गुरु ही जिसकी गति, मति हो, गुरुदेव जो आज्ञा दे, बिना विचार किए उसका पालन करना
ही अपना कर्तव्य समझता हो|

इष्टौ गुरुर्वे गुरु: - जिस शिष्य का इष्ट ही गुरु हो, जो अपना सर्वस्व गुरु को ही समझता हो|
-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान अक्टो. 1998, पृष्ठ : ७१


गुरु तत्व विमर्श...

☼ अपने हृदय में “गुरु” स्थापन करना समस्त देवताओं को स्थापन करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!!
-ऋग्वेद
☼ जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ की अपेक्षा “गुरु-पूजन” ही हैं!
-गुरौपनिषद
☼ चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – की प्राप्ति केवल गुरु-पूजन के द्वारा संभव हैं!
-याज्ञवल्क्य
☼ जीवन की पवित्रता, दिव्यता, तेजस्विता एवं परम शांति केवल गुरु-पूजन के द्वारा ही संभव हैं!
-ऋषि विश्वामित्र
☼ “गुरु-पूजा” से बढ़कर और कोई विधि या सार नहीं हैं!
-शंकराचार्य
☼ समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का आधार मात्र गुरु-पूजन हैं!
-आरण्यक
☼ जो प्रातःकाल गुरु-पूजन नहीं करता, उसका सारा समय, साधना एवं तपस्या व्यर्थ हो जाती हैं!
-रामकृष्ण
☼ गुरु-पूजा के द्वारा ही “इष्ट” के दर्शन संभव हैं!
-गोरखनाथ
☼ संसार का सार “मनुष्य जीवन” हैं, और मनुष्य जीवन का सार गुरु-धारण, गुरु स्मरण एवं गुरु-पूजन हैं!
-सिद्धाश्रम






Shishyta seven formulas

Shankaracharya Bgwatpad "disciple", and truly a disciple of the seven sources which meet the test are described,
The following are | make your own decisions as to contemplate, how many are stored in your life: -

Anteshriya Vः - the soul, the soul, the heart is connected to your Master, the master can be separated from
Imagine if the price is fevered |

Sriya Kartwyn Nः - who knows his limits, the impolicy of the master, not the display of rudeness
Ideally appears to be fully completed gentle hand |

Sata Sewyn Divun f - the master service is assumed to be the ideal of his life and death of pledge
Master of the body - mind - wealth to serve the aims of life |

Jञanamrite Y. Sriyn - continual diet of nectar continues to reward the knowledge and continuous learning from the master
Receives the same |

Hitn Hridn banks - which Sadnaon prove that people's interest and continued to master the knowledge

Bavasir ki Dava मस्सा या बवासीर

जय गुरुदेव जय गुरु जी

अगर किसी भाई के पाइल्स (मस्सा या बवासीर ) हो तो क्या करे ?
निखिल गुरु और महाकाली जी की प्रार्थना करते हुए सफ़ेद और लाल धागे को लीजिये और उन्हें आपस में बट लीजिये, बटने के बाद पैर के दोनों अंगूठो पर लपेट कर बांध दीजिये.
जय निखिल गुरु जी ने चाहा तो आपका ये रोग हमेशा के लिए जड़ से मिट जायेगा..


वन्देनिखिलम

Saturday, November 19, 2011

Master philosophy meditation गुरु दर्शन साधना

गुरु दर्शन साधना ---
गुरु शब्द ही का उचार्ण ही हिरदे में प्रेम भर जाता है और उसी क्षण अपने प्रिये गुरुदेव का चेहरा आँखों में या जाता है और अपने आप आंसु धरा प्रवाहित होने लग जाती है !क्यों के एक गुरु ही है जो शिष्य के अपने होते है बाकि सभी रिश्ते तो जही के जही रह जाते है !जहाँ गुरु है वहाँ सभी है !इस संसार रुपी भव से एक गुरु जी ही होते है जो पार लगा देते है !सिर्फ गुरु शब्द का उचार्ण भी अगर प्रेम भव से किया जाये तो भी सिधियो के दुयार खोल देता है !इस लिए गुरु दर्शन हर शिष्य के दिल की कामना ही नहीं लक्ष्य भी होता है ! दिल में प्रेम भरिये और अपना ले अपने सद्गुरु जी को आगे बढ़ कर उतर ले उनका प्रेम अपने हिरदे में और बसा ले उनकी सुरत अपनी आँखों में और उनकी यादे अपने ख्यालो में जही तो है उनके साक्षात् दर्शन करने की विधि !मैं जहा एक साधना दे रहा हू जो सद्गुरु के दर्शन और अशिर्बाद दिलाने में सहयक होती है !आप दिल से करे और विशुद प्रेम से उनको रिझा ले !
विधि --इसे किसी भी गुरुवार शुरू करना है !५ दिन की साधना है !
२ वस्त्र-- धोती पितान्म्बर पहन कर पीले आसन पे पूर्व विमुख बैठे और दैनिक साधना विधि से एक वेजोट पे पीला वस्त्र विशा के गुरु पूजन करे !
३ शुद्ध घी का दीप लगा दे और सुंगधित अगर वती भी लगा दे !
४ प्रसाद के लिए हलवा बना कर रख ले इन पाँच दिनों में हर दिन अलग अलग भोग लगाये !पहले दिन लडू जो शुद्ध घी के ले दुसरे दिन खीर तीसरे दिन पाँच पीस बर्फी के और ४थे दिन पांचो किस्म के मेवे और पंचमे दिन हलवा ले !पूजन पांचो दिन पूर्ण प्रेम भाव से करे !फिर पाँच माला गुरु मंत्र फिर एक माला निम्न साबर मंत्र का जाप और फिर पाँच माला गुरु मंत्र जाप करे !इस परकार पांचो दिन कर्म करने से गुरु जी का साक्षात् दर्शन ,स्वपन दर्शन होता है जा स्वपन में उनसे बात हो जाती है !
साबर मंत्र --- ॐ तारन गुरु बिन नहीं कोई श्रीति स्मृति मध् बात परोई !
थान अद्वैत तभी जाये पसरे मन बच कर्म गुरु पग दर्शे !
दरिदर रोग मिटे सभ तन का गुरु करुना कर होवे मुक्ता!
धन्य गुरु मुक्ति के दाते ॐ !!
जय गुरुदेव !

sadhna 5 Mudhra Vigyan

IMPORTENCE OF MUDRAS
पंचमकार में से एक "मुद्रा" के बारे में जितनी भ्रान्ति हैं बहुत कम लोग ही समझ ही पाते हैं कि क्या हैं ये?, क्यों इनका महत्त्व हैं ?, ओर क्या


क्या किया जासकता हैं ?इनके बारे में, जिन्होंने भी सदगुरुदेव द्वार रचित “मन्त्र रहस्य ”पढ़ी होगी जो की हमसभी के लिए अंत्यंत पवित्र ग्रन्थ हैं उसका तो बार बार पढना /अध्ययन होना ही चाहिए हर बारआप एक नए रहस्य से परिचित होंगे .अनेको वर्ष पूर्व जब यह ग्रन्थ मेरे पास आया तो सभी की तरह मैंने भी जितना समझ सकता था अपनी क्षमतानुसार अनुसार पढ़ा , पर जो प्रस्तावना किताब के प्रारंभ में दिया हैं सदगुरुदेव जी और स्वामी प्रवाज्यनंद जी के बारे में वह तो आख खोल ही देता हैं की कैसे शिष्य होते हैं शिष्यता के क्या माप दंड हैं ?और अनेक बाते ..


पर उसमें एक बात बहुत ही आश्चर्य जनक तथ्य हैं की पूज्य सदगुरुदेव जी ने अपनी सारी बात केबल ओर केबल मुद्राओं के माध्यम से की.
कैसे संभव हो सकता हैं ?
कहा तो यह भी गया हैं की इनके माध्यम से मृत व्यक्ति को भी प्राण दान दिया जा सकता हैं .
साधनाओ को आप बिना मुद्रा के भी संपन्न कर सकते हैं पर फिर कब आपको सफलता मिलेगी यह तो .....


पर यदि आप उस साधना की मुद्रा जानते हैं तो लगभग आप सफलता के दरवाजे तक आ ही गए हैं ...
आखिर ये हैं क्या?,


अपने हाँथ की अंगुली को अलग अलग ढंग से मिलाना और बिभिन्न ढंग से दिखाना या प्रदर्शित करना ही मुद्रा कहलाता हैं यह पर एक तथ्य ओर भी समझने वाला हैं की योग में की जाने वाली मुद्राये कुछ अलग हैं यहाँ पर हुम हाथों से प्रदर्शित करने वाली मुद्राओं के बारे में विचार कर रहे हैं .
ये तो जान लिया की कैसे यह बनती हैं पर इनका इतना महत्त्व क्यों हैं? इसके लिए हमें मानव जीवन की विशेताओं को जानना पड़ेगा, कब से वैज्ञानिक इस देह की विशेषताओं के लिए खोज कर रहे हैं , यूं तो यह देह कहा जाता हैं की पाप की गढ़री हैं , पर तंत्र इस बात को स्वीकार नहीं करता हैं वह यह कहता हैं की यदि इश्वर खुद सम्पूर्णता लिए हैं तो उसी से बनी /बनायीं गयी इस कृति में भी पूर्णता होगी ही, बस देखने ओर महसूस करने की क्षमता होने चाहिए .
इस देह को काट पीट कर नहीं बल्कि" यत पिंडे तत ब्रह्माण्ड" के अर्थानुसार इसमें सब कुछ हैं पर कैसे उस रहस्य को समझे हम, इसके लिए तो तंत्र को समझना हिपड़ेगा, आत्मसात भी करना पड़ेगा .हाँथ की हर अंगुली अपने आप एक तत्व पंच महाभूत को प्रदर्शित करती हैं , जब दो या तीन अँगुलियों का योग होता हैं कभी उनके अतिम सिरे से तो कभी उनके उद्गम स्थान से तब एक अद्भुत विद्युत् प्रभाव बनता हैं जो साधक को उसका अभिस्ट प्रदान करने सहायक रहता हैं .
पर अँगुलियों में विद्युत् प्रभाव कैसे हैं संभव ?
आप अपनी तर्जनी अंगुली को किसी भी व्यक्ति जिसने दोनों आँखे बंद कर ली हो, उसके दोनों भौहों के मध्य रखे थोडा दूर बिना स्पर्श कराये मुश्किल से कुछ सेकंड के अन्दर उस व्यक्ति को दर्द होने लगेगा उस स्थान पर . इसलिए क्योंकि किसी भी अन्य अंगुली की अपेक्षा तर्जनी में ज्यादा विद्युत् प्रभाव रहता हैं, इसी कारण इस अंगुली से मंजन करना मना किया जाता हैं
हम में से अनेक देवी या शक्ति पूजा करते हैं क्या आप जानते हैं की यदि जप समर्पण "योनी मुद्रा" के साथ किया जाये तो माँ जल्दी प्रसन्न होती हैं ओर इसे तो सीखना ही चाहिए , यह मुद्रा अनेक प्रकार से बनायीं जाती हैं यह योनी मुद्रा आपको इन्टरनेट पर सर्च करने पर मिल जाएगी. पर इसके तीन चार प्रकार मिलेंगे आपको सभी एक समान हैं जिसे जो अच्छा लगे वह उसे बनाए की कोशिश करे .
सदगुरुदेव जी ने “तंत्रसाधना शिविर” में इतनी अधिक मुद्राओं के बारे में समझया की साधक तो नोट नहीं कर पा रहे थे, उन्होंने अनेको देव देवताओ , देवियों ओर अनेक क्रम की साधनों में उपयोगित होने वाले मुद्राओं के बारे में बिस्तार से बतया, पर शिविर के अंतिम दिन उन्होंने साधको के प्रति अत्यधिक स्नेह के वशीभूत हो कर कहा की जो किसी साधना विशेष की मुद्रा नहीं समझ पा रहा हो,वैसे तो यदि साधना विशेष की मुद्राये मालूम हो तो वह जरुर करे अन्यथा ओर यदि साधक इन पांच मुद्राओं के कर लेता हैं किसी भी साधना के पूर्व तो भी सफलता प्राप्त होती हैं. ये पांच मुद्राये हैं ,




दंड , शंख ,मत्स्य,अभय और ह्रदय मुद्रा
आप इन मुद्राओं के बारे में पूज्य सदगुरुदेव जी द्वारा रचित "तंत्र के गोपनीय रहस्य " नाम की cd जरुर सुने ..सदगुरुदेव भगवान् ने काफी विस्तार से इन रहस्यों के हमारे सामने रखा हैं उसमें दिए सूत्रों का पालन करे ओर सफलता प्राप्त करे
ये तो उपरोक्त दी गयी मुद्राये साधना से पहले मात्र २/२ मिनिट ही करनी हैं , हमेशा ऐसा हो यह कोई आवश्यक चीज नहीं हैं कभी कभी साधना के दौरान भी दोनों हाँथ से या एक हाँथ से भी मुद्रा लगातार प्रदर्शित करना पड़ती हैं.
उपरोक्त पांच मुद्राओं को हर दिन करे तो बहुत अच्छा हैं पर यदि २१ दिन की साधना हो तो पहले ,११ वे २१ वे दिन तो जरुर करे.
आपने ब्लॉग में काफी उच्चस्तरीय मुद्राओं के बारे में पढ़ा हैं ओर आगे जैसे भी संभव होता हैं अनेक ऐसी देव दुर्लभ मुद्राओं के बारे में जानकारी आपको दी जाएगी.
आप किसी भी वरिष्ट गुरु भाई /बहिन से इन्हें सीख ले, हम सब यहाँ कोशिश में हैं की आपके लिए विडियो /फोटो ग्राफ के साथ इन्हें वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाये ...
फिर कभी अन्य मुद्राओं के बारेमें अनेक ज्ञात अज्ञात तथ्य जानेगे जैसे की हाँथ में तीर्थ की स्थिति कहाँकहाँ ?
ओर कौन से होती हैं,?
क्या इनके माध्यम से कोई भी रोग दूर किया जा सकता हैं?,
क्या केबल मुद्रा के माध्यम से व्यक्ति की अद्रश्य जगत की चीजें भी देख सकता हैं ?
..ऐसे अनेको प्रशन के उत्तर आने वाली इस विषय से सम्बंधित बाते किसी भविष्य की पोस्ट पर


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mudra
Mudra in “panch makar”a highly confusing word, most of the people not able to understand what is the real meaning of that ?, why these are so much importance ?
What can be done through that ? those who read “Mantra Rahasy “ written by Sadgurudev ji ( this is the book must read by every shishy or who wanted to know about mantra and tantra) every time you will get new insight , and some more mystery will open to you .many years ago when I found this book , try to understand as much I could at that time. Most important thing is the preface that around Sadgurudev and swami pravajyanand ji, unfolded a new dimension of shishy dharma. How a shishy could work and may responsibility and other things.
One of the more interesting thing is that Sadgurudev talked to swami ji with mudra only.
How that could be possible?
It has been said that though mudra life will be given to dead people. You can do sadhana without mudra , but when you will get success in that this….
If you know the mudra of that specific sadhana than you are just nearer to the door of success.
So What is this mudra /it stands for.?
Through various way the finger of both hand joining and showing is known as mudra , here one difference is that the mudra in yog is quite different in mudra in tantra.
Now You knew what is mudra , but why these are so much important?, to know the answer of this question one must understand the divinity of this body, means mysteriousness of this body. scientist are working day and night to reveal the mystery but still a long road to go. In general sense it has been said that this body is noting but a bundle of sins. But tantra never accept that it says if god is complete than this body is his creation that also be complete, only thing to research the way to feel and understands the divinity.
Through dissection one can not understand the meaning or divinity of this body, according to “yat pinde tat bramhaand” everything is init how we can understand this, for that we must understand the tantra, and understand the deep hidden meaning of that. Each finger of the hand represent one of the basic maha tatav i.e. panch mahabhut. When two or more finger join through a specific way a electricity energy formed, that provide the sadhak to his aim/achievement.
How we understand that there is electricity lies in finger.?
If you place your index finger very close to the point between the eyebrow who have already closed his both eye, within a few second the person start pain in his head specially the point between the eye brow. since compare to other finger index finger has more electricity power. That is the reason why doing teeth wash/ manjan is not done by this finger, who do this ,always have problem in his teeth.
Many of us doing sadhana /pooja of various devi or shakti do you know that if after the jap you should offer /samarpan of your jap through “ yoni mudra” ,divine mother bless you early. And became happy. One must know how to do that . various ways of making yoni mudra , search in internet you will find two three ways , each are equal, which ever you like practice that.
In “Tantra Sadhana Shivir” Sadgurudev has taught and describe so many mudra that for sadhak ,it was very difficult to memorize and use them, Sadgurudev describe in details various mudra used in different, different devi devta , with full description and practical. But on the last days of shivir understanding each sadhak ‘s problem though his divine love he said that if any one follow only theses five mudra in any sadhana starting time for just 2/3 minute he need not require to do other mudra, but if sadhak knew about specific mudra for that sadhana it would d be much better.
Theses are
Dand , shankh,hrdya, abhay , matsy
You can listen in audio c d “ tantra ke gopniy rahsy” In that Sadgurudev describe in details about theses mudra’s , follow the various rules and get the success in sadhana.
You have to show theses five mudra just for 2/2 minute , but it is not always necessary things, sometimes in sadhana time you have to show continuous mudra through other hand.
If you show theses five mudra every day , its would be good , if not possible than showing on them on 1st . 11th and 21 th days also serves the purpose.
You have already read about so many higher level mudra in blog, as soon as possible , we are continuous updating about you on this topic.
Those five mudra you can learn from any senior guru brother, here we are doing our best to make photographs or video of that and upload on our website.
In any coming post we will discuss
what are the position of various teerth?,
where are they reside?
Is there any way by which we can remove illness from that ?
is it possible that only showing the mudra one can see the astral world?
Like so many question ‘s answer we will explore in any coming post.

….. in continuous..
Abhay Mudra as on Google!
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यह दंड मुद्रा है, बायें (left) हाथ को अपने वक्ष स्थल पर रखकर उसपर दाहिने हाथ को रखना चाहिए।

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Hriday Mudra as on Google!

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Hriday Mudra as on Google!
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Matsya Mudra as found on Google!
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Shankh Mudra as on Google!
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Yoni Mudra for Jap Samarpan as on Google!


मुद्रा विज्ञानं के अंतर्गत कई एसी मुद्राओ का अभ्यास होता हे जिससे साधक साधनाओ की उत्च्च्तम स्थिति को प्राप्त कर लेता हे. तंत्र में मुद्रा को एक अत्यधिक आवश्यक अंग माना गया हे, और मुद्राओ का अभ्यास करने वाला साधक तंत्र में तीव्र गति से सफलता प्राप्त कर सकता है. सभी प्रकार की साधनाओ में मुद्रा का एक महत्वपूर्ण स्थान हे और इसी के अंतर्गत मुद्राओ के कई प्रकार हे. शक्तिओ को आकर्षित कर के केन्द्रीभूत करना मुद्राओ मुख्य कार्य है तथा मुद्राओ का आधार पंचतत्वों का नियमन हे. उंगलियां पंचतत्वो की प्रतिनिधि हे व् इनको निर्देशित दिशा में गतिविध करने पर शारीरिक तत्वों में परिवर्तन होने लगता हे जिसका सीधा सम्बन्ध परा जगत से होता है.

मुद्राओ का महत्व सिर्फ मात्र एक तथ्य पर भी जाना जा सकता हे की इन्हें वामाचार के मुख्य पंचमकार में भी यह एक अंग है. यु मुद्राए न सिर्फ आध्यात्मिक वरन भौतिक सफलताओ के लिए भी बराबर महत्व पूर्ण है. नाथ योगियो के मध्य गुप्त रूप से ही सही लेकिन कुछ एसी महत्वपूर्ण मुद्राओ का अभ्यास गुरु मुखी परंपरा से कराया जाता हे की साधक अत्यंत ही सहज प्रयास में वह सब कुछ हासिल कर लेता हे जो उसका अभीष्ट होता है, एसी मुद्राओ का उलेख्ख किसी ग्रन्थ में नहीं किया गया था ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके और योग्यता वां व्यक्तियो को ही मात्र इसका ज्ञान हो सके. नाथ तंत्र दीक्षा के बाद इस प्रकार की मुद्राओ का अभ्यास अत्यंत गुप्त रूप से चुने हुए शिष्यों को कराया जाता है. कई नाथ संप्रदाय के महायोगी सिर्फ मुद्राओ के माध्यम से ही अष्टसिद्धियो को प्राप्त कर चुके हे. पूज्य श्री निखिलेश्वरानंद जी ने अत्यधिक कृपा कर के मुझे कई एसी दुर्लभ मुद्राओ का ज्ञान दिया था. उन मुद्राओ का प्रभाव देख कर चमत्कृत व् दंग रह गया था में. आज उन्ही मुद्राओ में से कुछ मुद्राओ का उल्लेख में आगे कर रहा हू.

दिव्यात्मा आकर्षण मुद्रा:

अंगुष्ठ को मध्यमा अंगुली के निचे स्थापित करे. फिर मध्यम को अंगुष्ठ के ऊपर हथेली तक मोड दे. बाकि तीनों अंगुलिया सीधी रहे. दोनों हाथो में यही क्रिया हो, उसके बाद परस्पर दोनों हाथो को जोड़ दे. यह दिव्यात्मा आकर्षण मुद्रा बनती हे जिससे सिद्ध जगत की दिव्यात्माओ का आकर्षण होता हे. इस मुद्रा को यथा संभव ३० मिनिट तक ब्रम्ह मुहूर्त में और ३० मिनिट सोने से पहले अभ्यास करना चाहिए. इस मुद्रा के अभ्यास से साधक को दिव्यात्मा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में सहायता प्रदान करती है और साधना का मार्ग प्रसस्त करती है, अगर नियमित रूप से साधनात्मक नियमों के साथ इस मुद्राका साधक ११ दिन तक अभ्यास कर लेता हे तो उसे स्वप्न में दिव्यात्मा का दर्शन सुलभ होता है और साधक उनसे स्वप्नावस्था में साधना सबंधी प्रश्न पूछ सकता हे एवं उनका मार्गदर्शन ले सकता हे.

सिद्धनाथ दंड मुद्रा:


बाये हाथ की सभी अंगुलियों को मोड के हथेली तक लाया जाए. अंगुष्ठ सीधा तना हुआ रहे. अब दायें हाथ की अंगुलिओ से बाये हाथ के अंगुष्ठ को ऊपर से पकड़ा जाए, तथा दाये हाथ का अंगुष्ठ सीधा रहे. इस मुद्रा में दायाँ हाथ ऊपर और बाया हाथ निचे रहेगा. इसे सिद्धनाथ दंड मुद्रा कहते हे. इसका अभ्यास करते वक्त आंखे बांध रहे व् ध्यान नाभि पर रहे. इस मुद्रा का अभ्यास करने वाले साधक की ज्ञानशक्ति अत्यधिक बढ़ जाती हे और उसे सृष्टि के कई गोपनीय रहस्य अपने आप ही समज आने लगते हे, ज्ञान शक्ति बढ़ जाने पर उसे कई विविध प्रकार के चमत्कारिक अनुभव स्वयं ही होने लगते हे और साधना के गोपनीय रहश्य उसके सामने थिरकने लगते हे. स्थायी रूप से इस मुद्रा का अभ्यास करने पर कई सिद्धिया साधक को स्वतः ही प्राप्त हो जाती हे.

मंजरी मुद्रा:

दोनों हाथो तर्जनी अनामिका व् मध्यमा अंगुलीओको हथेली की तरफ मोड दे व् प्रथम अंगुली को एक दम सीधा रखे अंगुष्ठ को सीधा कर दे. अब दोनों हाथो के अंगुष्ठ को एक दूसरे से स्पर्श करने पर मंजरी मुद्रा बनती हे

इस मुद्रा की जीतनी प्रशंशा की जाए कम है, इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से व्यक्ति का मोह कम हो जाता है, उसमे साधना के प्रति एक आदर भाव उत्प्पन होता हे, साधना के लिए अनुकूल स्थिति उसे प्राप्त होती रहती है, यह मुद्रा आनंद कोष को जागृत करती हे फल स्वरुप साधक चाहे संसार के बाहरी क्रियाकलापों में हो या किसी भी कार्य में हो, अंदर से वो हर पल एक आनंद में डूबा रहता हे और अपने आप में ही खोया हुआ वह प्रकृति से एक कार हो जाता हे. वास्तव में यह मुद्रा अत्यधिक गुप्त हे क्यूंकि योगतंत्र की उच्चतम साधनाओ के लिए जिस प्रकार की भावभूमि साधक में होनी चाहिए यह मुद्रा उसी का ही स्थापन करती है.

There are special practices applied under Mudra science, which lead sadhak to achieve highest levels in Sadhanas. In the tantra, Mudra is believed as one of the very important part, and Sadhaka practicing Mudra can achieve success in tantra with rapid speed. In every kind of sadhana, mudra owns its important place and thus leads various types of the same. To attract powers and centralize them is main work of the Mudra and the base of the Mudra is to control 5 elements. Fingers are representation of 5 elements and to active those in proper direction can lead change in body elements which is directly connected with Trans world.

The importance of Mudra can even be understood with a single fact that it is also part of Panchamakara of Vaam marg. This way, mudras are useful for not only spiritual attainment but for material success even. Though secretly but in nath cult there are few important mudras which are applied for the sadhak to practice with Guru Disciple tradition only leading sadhak achieve his desires in very less efforts. Such mudras are not described in any scriptures so no one can misuse it and only appropriates may only get the knowledge of these mudras. After Nath tantra Diksha only selected disciples receive this knowledge secretly. There are Many Nathyogis who succeeded to receive AshtSiddhi through Mudras only. With extreme please of pujy Nikhileshwaranandji he blessed me with such rare knowledge of Mudras. After watching effect of these Mudras, I was amazed. Today, I am sharing few of them with you, below.

Divyatma Aakarshan Mudra:

Place your thumb under Madhyama finger. Then the thumb should be folded by Madhyamafinger touching the palm. The rest three fingers should be straight. Same goes for other hand, and then both hands should be joined together. This is Divyatma aakarshan mudra which leads an attraction of Divyatmas. This mudra should be applied to practice for 30 minutes in Bramh Muhurt and 30 minutes before sleeping. Practicing this mudra results into help from Divyatma in Direct/indirect way to sadhak and clears the way of sadhana. If sadhak practices this mudra for 11 days with all the regulations of sadhana that way he receives the blessing of Divyatma in dream and in that condition of dream sadhak may ask question in regard of sadhana and can seek their guidance.

Sidhhnath dand Mudra:

All Fingers of the Left hand should be folded to palm. Thumb should be straight. Now with the fingers of the right hand the thumb of the left hand should be hold and the thumb of the right hand should be straight and up. In this mudra right hand will be on upper side and left hand will be below the right hand. This is called as siddhnath dand Mudra. While practicing this mudra, eyes should remain close and concentration should be on navel. The practitioner of this mudra will get increment in knowledge power, and he becomes capable to understands many secret of this world by himself, with increasing knowledge power, he witness many mysterious experiences and many secrets of sadhana gets revealed in front of him. If this mudra is permanently placed in practice, it generates self to have so many siddhis.

Manjari Mudra:

The tarjani, anamika and madhyama fingers should be folded in both hands. The first finger should be straight and thumb should even be straight in its own direction. Now both the thumb should be applied for touch. This becomes Manjari Mudra. The words for appreciation are less for this mudra, with practice of this mudra, it lessens theenchantment of person, and the respect toward sadhana starts to flow. Sadhaka starts receiving favorable conditions for sadhana, this mudra activates Anand Kosha thus if sadhak is in whatever material work or task, even though from the inside he will have a joy and being lost within he becomes part of the divine nature. In fact this Mudra is very secret because the platform requires for sadhak to perform high level of yog tantra sadhana, this Mudra prepares the same attributes in sadhak.