Friday, November 25, 2011

If still not wake up, wake up when the challenge

If still not wake up, wake up when the challenge
यह ललकार हैं अब भी नहीं जागोगे तो कब जागोगे


शंकराचार्य ने पुरे भारतवर्ष में घूमकर एक ही बात कही कि संसार का सब कुछ मंत्रों के आधीन हैं! बिना मंत्रों के जीवन गतिशील नहीं हो सकता, बिना मंत्रों के जीवन की उन्नति नहीं हो सकती, बिना साधना के सफलता नहीं प्राप्त हो सकती!

गुरु तो वह हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को एक मंदिर बना दे, मंत्रों के माध्यम से! वैष्णो देवी जायें और देवी के दर्शन करे, उससे भी श्रेष्ठ हैं कि मंत्रों के द्वारा वैष्णो देवी का भीतर स्थापन हो, अन्दर चेतना पैदा हो जिससे वह स्वयं एक चलता फिरता मंदिर बनें, जहाँ भी वह जायें ज्ञान दे सकें, चेतना व्याप्त कर सकें तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
जब मैं इंग्लैण्ड गया तो वहां भी लाख-डेढ़ लाख व्यक्ति इकट्ठे हुए, उन्होंने भी स्वीकार किया कि मंत्रों का ज्ञान प्राप्त होना चाहिए! उन्होंने कीर्तन किया, मगर कीर्तन के बाद मंत्रो को सीखने का प्रयास भी किया, निरंतर जप किया और उनकी आत्मा को शुद्धता, पवित्रता का भाव हुआ! मैक्स म्युलर जैसे विद्वान ने भी कहा हैं कि वैदिक मंत्रों से बड़ा ज्ञान संसार में हैं ही नहीं ! उसने कहा हैं कि मैं विद्वान हु और पूरा यूरोप मुझे मानता हैंमगर वैदिक ज्ञानवैदिक मंत्रों के आगे हमारा सारा ज्ञान अपने आप में तुच्छ हैंबौना हैं ! आईंस्टीन जैसे वैज्ञानिक ने भी कहा कि एक ब्रह्मा हैंएक नियंता हैंवह मुझे वापस भारत में पैदा करेंऐसी जगह पैदा करेंजहाँ किसी योगीऋषि या वेद मंत्रों के जानकार के संपर्क में  सकूँउनसे मंत्रों को सीख सकूँ! अपने आप में सक्षमता प्राप्त करूँ और संसार के दुसरे देशों मे भी इस ज्ञान को फैलाऊँ!
 गुरु वह हैं जो आपकी समस्याओं को समझेआपकी तकलीफों को दूर करने के लिए उस मंत्र को समझाएंजिसके माध्यम से तकलीफ दूर हो सकें! मंत्र जप के माध्यम से दैवी सहायता को प्राप्त कर जीवन में पूर्णता संभव हैं! दैवी सहायता के लिए जरुरी हैं कि आप देवताओं से परिचित हो और देवता आपसे परिचित हो!
 परन्तु देवता आपसे परिचित हैं नहीं! इसलिए जो भगवान् शिव का मंत्र हैंजो सरस्वती का मंत्र हैंजो लक्ष्मी का मंत्र हैंउसका नित्य जप करें और पूर्णता के साथ करेंतो निश्चय ही आपके और उनके बीच की दुरी कम होगी! जब दुरी कम होगी तो उनसे वह चीज प्राप्त हो सकेगी!  एक करोडपति से हम सौ-हजार रुपये प्राप्त कर सकते हैंपरन्तु लक्ष्मी अपने आपमें करोडपति ही नहीं हैंअसंख्य धन का भण्डार हैं उसके पासउससे हम धन प्राप्त कर सकते हैंपरन्तु तभी जब आपके और उनके बीच की दुरी कम हो…. और वह दुरी मंत्र जप से कम हो सकती हैं! मंत्र का तात्पर्य हैं – उन शब्दों का चयन जिन्हें देवता ही समझ सकते हैं! मैं अभी आपको ईरान की भाषा में या चीन की भाषा में आधे घंटे भी बताऊंतो आप नहीं समझ सकेंगे! दस साल भी भक्ति करेंगेतो उसके बीस साल बाद भी समस्याएं सुलझ नहीं पाएंगीक्योंकि उसका रास्ता भक्ति नहीं हैं  उसका रास्ता साधना हैंमंत्र हैं!
 जो कुछ बोले और बोल करके इच्छानुकूल प्राप्त कर सकें वह मंत्र हैं!
-पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी.
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
जनवरी 2000, पेज नं : 21.

Monday, November 21, 2011

HIDDEN SECRETS OF YAKSHINI SADHNA


यक्षिणी साधना के लिए साधक का चिंतन क्या होना चाहिए ?

वस्तुतः सिर्फ यक्षिणी के लिए ही नहीं बल्कि प्रत्येक साधना के लिए साधक का चिंतन पूर्ण सात्विक होना ही चाहिए, जब एक सामान्य स्त्री भी आपको देखकर आपके मनोभाव का पता आपकी दृष्टि से लगा लेती है तो फिर अपार शक्ति संपन्न यक्षिणी भला क्यूँ कर आपके मनो भाव को नहीं समझ पाएंगी. शायद तुम्हे पता नहीं है की जैसा चिंतन हमारे मन में होता है तदनुरूप ही साधक के चारो और रहने वाला ओरा भी होते जाता है .भले ही सामान्य मानव अपनी सामान्य दृष्टि से उस ओरा को नहीं देख पाता हो पर जिनकी आकाश दृष्टि और दिव्य दृष्टि जाग्रत होती है ,उनसे ये सूक्ष्म परिवर्तन नहीं छुपाया जा सकता है. तामसिक भाव से युक्त होने पर साधक का ओरा गहरे धूसर वर्ण का ह जाता है और ये एक ऐसा रंग है जिससे निकलने वाली किरने दृश्य या अदृश्य रूप में मन को उच्चाटित ही करती हैं. और ये किरणे अन्य रंगों की प्रभावी किरणों के मुकाबले कही ज्यादा तीव्र गति से संवेदन शील प्राणियों में असुरक्षा को पनपाती हैं ,जिसके कारण उस प्राणी, मानव या वर्ग को तुमसे असुरक्षा का अहसास होता है.ऐसे में वे कदापि उत्सुक नहीं होंगे तुम्हारे समक्ष आने के लिए.और यक्षिणी तो साक्षात् शक्ति का ही पूर्नंश होती हैं अतः उनसे आपके मन के सुक्ष्मतिसुक्ष्म परिवर्तन भी नहीं छुप पाते. अतः साधक को मन के विकारों को दूर करके ही साधना पथ पर बढ़ना चाहिए,साधना का मूल उद्देश्य ही अपने मन को व्यर्थ के भ्रम जाल से मुक्त कर विकार रहित हो अपनी समस्त न्यूनता पर विजय पाकर मानसिक और आत्मिक रूप से स्वतंत्र होना है.


और बात सिर्फ यही नहीं है बल्कि आपका चिंतन एक प्रकार से मौन वार्ता ही है अर्थात शब्द जो की मुख से निकलते हैं और ईथर में परिवर्तित होकर सम्पूर्ण ब्रम्हांड के चक्कर लगाते हैं ठीक वैसे ही हमारे शरीर का प्रत्येक रोम छिद्र मुख ही है और हमारे मष्तिष्क या ह्रदय का सम्पूर्ण मन: चिंतन अन्तः ब्रम्हांड के साथ बाह्य ब्रम्हांड को प्रभावित करता ही है. और ये शक्ति ब्रम्हांडीय ही होती हैं, साधना के द्वारा हम अपनी कल्पना योग को साकार योग में परिवर्तित करता है, वो जिस रूप में अपने साधना इष्ट का ध्यान करता है उसी ध्यान का संगठित रूप भविष्य में हमारी साधना शक्ति से प्रत्यक्ष होता है.


मंत्र मात्र किसी शब्द विशेष का समूह नहीं होता है. बल्कि जब सद्गुरु अपने स्वयं के प्राणों से घर्षित कर शिष्य या साधक को मंत्र प्रदान करते हैं तो वो अभीष्ट सिद्धि प्रदान करने वाला दिव्यास्त्र ही हो जाता है .हाँ ये सही है की साधक के प्रारब्ध के कारण उस पर एक प्रकार का आवरण आ जाता है जिससे साधक को मंत्र का प्रभाव कुछ समय तक दृष्टिगोचर नहीं हो पाता परन्तु जैसे जैसे साधक मंत्र जप में अपनी एकाग्रता और समय बढाता जाता है या उसका जप प्रगाढ़ होते जाता है वैसे वैसे वो आवरण शिथिल होते जाता है और अंत में पूरी तरह से नष्ट हो जाता और बाकी रह जाता है तो पूर्ण दैदीप्यमान मन्त्र जो साधक के मनोवांछित को प्रदान करने समर्थ होता है. इसीलिए कहा जाता है की जितना ज्यादा जप होगा उतना ज्यादा आप सफलता के नजदीक होते जाओगे ,है ना.....


जी बिलकुल.


पर जैसा मैंने कहा की चिंतन से तो ब्रम्हांड भी प्रभावित होता है तो भला तुम्हारा मन्त्र क्यों नहीं होगा. इसीलिए जिस साधक को सफलता चाहिए होती है उसे अपना चिंतन आत्मविश्वास से लबालब और पूर्ण सात्विक रखना चाहिए, यद् रखो जरा सा भी नकारात्मक विचार आपके पूरे किये कराये पर पानी फेर देता है ठीक वैसे ही जैसे दूध से भरे हुए पात्र को फाड़ने के लिए मात्र एक बूँद नीबू ही बहुत होता है.


आपके मन्त्र जो की ईथर के रूप में ब्रम्हांड के चक्कर लगाते हैं उन्ही के आकर्षण बल से ये शक्ति आबद्ध होकर खिची चली आती है, चिंतन की नकारात्मकता उस आकर्षण बल को भी कमजोर कर देती है.जिससे वो शक्ति प्रकट नहीं हो पाती.अतः चिंतन के प्रभाव से सफलता अछूती नहीं रह सकती.इसलिए सकारात्मक चिंतन और सफलता का दृण संकल्प लेकर जब साधक साधना के लिए तत्पर होता है और मन पर संयम रखते हुए साधना पथ पर आगे बढ़ता है तो उसको सफलता मिलती ही है.


साधना में स्थिरता का क्या महत्व है ?


साधना के प्रारंभ में नए साधक उत्तेजित अवस्था में रहते हैं. जिससे उनकी श्वास-प्रश्वास की गति तीव्र होती है .और एक बात भली भांति समझ लेना आवश्यक है की श्वांस की ये तीव्रता मन को भी स्थिर नहीं होने देती है अतः मन की एकाग्रता के बगैर साधना सही तरीके से न तो संभव हो सकती है और न ही उससे उचित परिणाम मिल सकते हैं.क्यूंकि विचलित मन साधना में व्यवधान उत्पन्न करता है और साधक साधना के लिए जिन ध्यान मन्त्रों की परिकल्पना कर अपने इष्ट की छवि की अपने मन में स्थापित करता है ,और यदि मन विचलित होगा तो वहाँ पर जिस छवि का निर्माण हम करते हैं वो टूटती और जुड़ती रहती है.जब ये ध्यान बिम्ब ही स्थिर नहीं होगा तो सफलता कैसे मिल सकती है.इसलिए साधना के प्रारंभ में प्राणायाम का विधान होता है और अतः साधना के लिए हम जिस भी आसन जैसे की सिद्धासन ,सुखासन या पद्मासन में बैठते हैं तो मन्त्र जप के पूर्व अपनी सुविधा अनुसार आसन पर सीधा बैठ कर अपने हाथ के अंगूठे को तर्जनी से मिला कर ध्यान मुद्रा बना ली जाये और ऐसा दोनों हाथों से करके अपने घुटने पर रख लो, ऐसा करने से साधना के द्वारा निर्मित उर्जा बाह्य गमन नहीं कर पाती और इस दौरान मूलबंध का अभ्यास करना चाहिए. इस क्रिया को करने से धीरे धीरे शरीर स्थिर होने लगता है तथा आसन में साधक अधिक लंबे समय तक बैठ पाता है.और जब साधक स्थिर मन और आसन से मन्त्र जप की क्रिया करेगा तो उसकी प्रतिक्रिया में ये ब्रम्हांडीय शक्तिया सफलता का वरदान तो देंगी ही ना.


मन्त्र कैसे कार्य करता है ?


मन्त्र का चयन कभी भी ग्रन्थ देखकर नहीं किया जाना चाहिए बल्कि मंत्र की अपने गुरु से विधिवत प्राप्ति की जनि चाहिए अर्थात गुरु के चरणों में जाकर अपने अनुकूल मन्त्र प्राप्ति की याचना करनी चाहिए.तब गुरु रिपु,सार्थक और और स्व प्राणों से घर्षित मंत्र साधक की सफलता के लिए अपने आशीर्वाद के साथ प्रदान करते हैं.अधिकांश साधक इस भय से की न जाने हम जो साधना कर रहे हैं उसे जानकर गुरुदेव हमारे बारे में क्या सोचेंगे अपने गुरु से साधना और मन्त्र के बारे में कोई बात नहीं करते हैं ,पर आप खुद ही सोचो की उस परब्रम्ह गुरु सत्ता से भला क्या छुपाया जा सकता है ,और आपको सफलता प्रदान कौन करेगा ??? वही गुरु ना. तब सफलतादायक मन्त्र भी तो आप उन्ही से प्राप्त कर पाओगे ,उनके श्रीमुख से मन्त्र की मूल ध्वनि और उसका आरोह अवरोह भी आप को भली भांति समझ में आ जायेगा. यदि किसी मजबूरी वश उनके श्रीचरणों में जा पाए तब उनके द्वारा निर्देशित या लिखित मन्त्र की साधना उनसे पूर्ण विनम्रभाव से मानसिक आज्ञा लेकर ही करना चाहिए.और यदि इसी मध्य आपको गुरुधाम जाने का अवसर प्राप्त हो जाये तो उनसे मिलकर अपना जप मन्त्र बता दे ताकि यदि उच्चारण में या मन्त्र में कोई मात्र या वर्ण दोष हो या गलती से वो आपके शत्रुकुल का हो तो गुरु उसका परिहार कर सके.


ये शत्रुकुल क्या है ?


अष्टादश सिद्ध विद्याओं को छोड़कर अन्य देवी देवताओं के मन्त्र ग्रहण में काफी विचार करना पड़ता है,शास्त्रों में इसके लिए कई प्रावधान और नियम बताये गए हैं जैसे की क्या मन्त्र देव अपने कुल का है,उसकी राशि और अपनी राशि में क्या सम्बन्ध है,उसका नक्षत्र क्या है.तथा जो मंत्र हम जप करने जा रहे हैं वो किस तत्व को प्रतिनिधित्व करता है ,वो तत्व हमारे नामांक तत्व का मित्र है, शत्रु है या तठस्थ है.और ये सारी क्रिया अत्यंत जटिल है.क्यूंकि यदि गलती से भी साधक शत्रु मंत्र का चयन कर लेता है तो मंत्र देव अपनी प्रतिकूलता से साधक को परेशां कर देते हैं. इसलिए इतने लफड़ों में न पड़कर सबसे अच्छा यही है की साधक गुरु मुख से ही मन्त्र की प्राप्ति करे या उनके द्वारा निर्देशित मन्त्र की साधना करे. क्यूंकि उसमे ऐसा कोई भय नहीं होता है.मैंने सुना है की मन्त्र का पुरश्चरण करना पड़ता है, तभी सफलता मिलती है.ये पुरश्चरण क्या है ?
   गुरु के द्वारा निर्दिष्ट जप संख्या को क्रम विशेष से निर्धारित अवधि में पूर्ण करना ही पुरश्चरण कहलाता है.तथा इस अवधि में साधक को संयमित जीवन यापन करना पड़ता है .इन दिवसों में वो सामाजिक कार्यों से दूरी बनाये रखता है.


पुरश्चरण के पांच अंग होते हैं-

जप-इसमें मंत्र के देवी या देवता का विधिवत पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन किया जाता है,इन उपचारों के अतिरिक्त देवता पूजन का विशेष क्रम तांत्रिक साधना में किया जाता है.

भूमि शोधन-साधना कक्ष के स्थान का पूजन भूमि शोधन कहलाता है.द्वार देवताओं का पूजन कर धरती को अर्ध्य प्रदान करे,फिर आसान शोधन मंत्र से भूमि पर पुष्प,अक्षत आदि अर्पित कर आसान बिछाए और उस पर बैठे.

देह शोधन-साधक प्राणायाम संपन्न करता है,फिर भूत शुद्धि,मातृकाओं से न्यास, अपने इष्ट मन्त्र आर ऋष्यादिन्यास,करन्यास आदि संपन्न करने से साधक का शरीर शुद्ध हो जाता है .


द्रव्यदिशोधन-साधक की साधना का अनिवार्य अस्त्र होती है उसकी साधना सामग्री,इसमें साधना में प्रायोजित सभी सामग्री जैसे, यन्त्र, माला,पुष्प,दीप,धुप,वस्त्र आदि सभी सामग्री आ जाती है.इनका पूर्ण रूपेण मन्त्रों केर द्वारा शोधन किया जाता है तत्पश्चात आगे की क्रिया की जनि चाहिए.(द्रव्यशोधन एक अनिवार्य और लंबी साधनात्मक क्रिया है जिसका पूर्ण साधनात्मक विवरण इसी पत्रिका में अन्यत्र दिया जा रहा है)


माला पूर्ण रूपेण संस्कारित होना चाहिए ,असंस्कृत माला से जप करने पर सफलता तो मिलती नहीं उलटे मानसिक तनाव की अप देवताओं के द्वारा प्राप्ति होती है वो भी मुफ्त में.यदि जप काल में साधक अखंड दीपक प्रज्वलित कर ले तो कही ज्यादा अनुकूल रहता है.और यदि ऐसा न हो सके तो कम से कम जप काल में दीपक न बुझने पाए ऐसी व्यवस्था कर लेनी चाहिए.


होम-नित्य प्रति के जप का दशांश हवन नित्य यदि कर दिया जाये तो उचित होता है ,कई व्यक्ति हवन के बदले दशांश जप कर लेते हैं , पर मेरे मतानुसार हवन करना कही ज्यादा अनुकूल और लाभदायक होता है.क्योंकि हवन करने से मंत्र दीप्त होता है और उसमे विशेष चैतन्यता आती है.

तर्पण-हवन करने के बाद बड़े से ताम्बे के बर्तन में या किसी सरोवर में हवन की मात्र का दशांश तर्पण करे. बर्तन को अष्टगंध,कपूर ,दूर्वा आदि मिश्रित जल से पूरित कर दे और जो भी देवता या देवी हो उसका नाम लेकर ‘तर्पयामि नमः’ कह कर जल अर्पित करें.

मार्जन-तर्पण के बाद उसकी दशांश संख्या से सरोवर में खड़े होकर अपने सिर पर दूर्वा द्वारा कुम्भ मुद्रा से देवता का नाम लेकर “अभिषिन्चामि नमः’ कहकर जल का अभिषेक करें.


उसी दिवस या अंतिम दिवस ब्राम्हण भोज और कुमारी भोज का आयोजन करे.

तत् पश्चात अपनी साधना की पूर्णता प्राप्ति के लिए गुरु के श्री चरणों में प्रार्थना ज्ञापित करे. यदि कोई इस प्रकार का क्रम साधना में अपनाता है तो उसे निश्चय ही अनुकूलता मिलती ही है.

किन स्थानों पर साधना करने से यक्षिणी साधना में शीघ्र सफलता मिलती है ?


सिद्धपीठों,गुरु गृह,नदी तट,पर्वत शिखर,एकांत वन ,विल्व या पीपल वृक्ष के नीचे, साधना करने से सफलता शीघ्र ही मिलती है. इस साधना को यदि कामाख्या पीठ के सौभाग्य कुंड या प्रांगण में संपन्न किया जाये या फिर अलकापुरी में या पचमढ़ी ,माउन्ट आबू ,हिडिम्बा मंदिर आदि स्थानों पर साधना करने से कही ज्यादा अनुकूलता मिलती है. यदि ऐसा संभव ना हो पाए तो घर में भी ये साधना की जा सकती है .पर साधना काल के मध्य कोई और उस कमरे में ना जाने पाए.

इस साधना में सौभाग्य कुण्ड की क्या महत्ता है ?

यदि साधक यक्षिणी साधना के प्रारंभ में “ ॐमम सर्व मनोरथान पूर्णार्थे अस्य सौभाग्य वारिः पूर्ण यक्षिणी सिद्धये नमः” बोलकर २१ बार जल का तर्पण का माँ कामाख्या से करता है तो उसे सफलता की प्राप्ति होती ही है.ये क्रिया सिर्फ सौभाग्य कुण्ड में ही हो सकती है.इस प्रकार की साधनाओं में उस स्थल की अपनी अलग महत्ता और प्रभाव है.

साधक का आहार क्या होना चाहिए ?

साधक को यथा संभव अत्यधिक तिक्त या अत्यधिक मधुर भोजन ना करके शुद्ध सात्विक आहार का प्रयोग साधना काल में करना चाहिए यदि हविष्यान्न का प्रयोग किया जाये तो और बेहतर है. इसके अतिरिक्त भूमि शयन,पूर्ण मानसिक और शारीरिक ब्रह्मचर्य का पालन भी किया जाना चाहिए.


यक्षिणी साधना में मंत्रजाप के पूर्व क्या कोई विशेष क्रिया कर लेनी चाहिए ?


यदि साधक यक्षिणी मंत्र के पहले ‘स्त्रीं’ का जप अपने विशुद्ध चक्र पर ध्यान लगाकर और उसका स्पर्श करके १० बार कर ले तो उचित है.तथा मंत्र जप के पूर्व ‘ओम’ का १० बार उच्चारण भी कर लेना चाहिए.प्रत्येक यक्षिणी साधना के पूर्व पूर्णिमा को पूर्ण पवित्र होकर शुद्ध चित्त से ११ दिनों तक महामृत्युंजय मंत्र का ५००० जप अवश्य संपन्न कर लेना चाहिए.और इसके साथ नित्य प्रति कुबेर मंत्र की भी तीन माला संपन्न करनी चाहिए.ये एक अनिवार्य कर्म है ,अधिकांश साधक साधना को सिर्फ खानापूर्ति मानते हैं,जितना जप बताया है ,उतना कर लिया और गिनती गिनते गए और कह दिया की भाई मैंने तो मंत्र जप किया था, न तो शुचिता –अशुचिता का ध्यान रखा और न ही अपने मनोभावो को और अपने दृष्टिकोण को परखा.बस मुह उठाकर कह दिया की भाई साधना-वाधना सब बकवास है.यक्षिणियों के अधिपति कुबेर होते हैं.और यदि आप अधिपति को ही प्रसन्न नहीं कर पाएंगे तो बगैर उनकी अनुमति के क्यूँकर कोई यक्षिणी आपका अभीष्ट साधने आएगी.इसी प्रकार भगवान मृत्युंजय की उपासना और मन्त्र से ही कुबेर सिद्धि का द्वार खुलता है और वे प्रसन्न होकर आपका मनोरथ पूर्ण करते हैं. यदि वर्ष में मात्र एक बार गुरु पूर्णिमा से अगली पूर्णिमा तक किसी भी विल्व-वृक्ष के नीचे बैठ कर भगवान शिव का पूर्ण षोडश उपचारों से पूजन और अभिषेक करने के बाद उत्तराभिमुख होकर मृत्युंजय मंत्र का जप रुद्राक्ष माला से करे.तत्पश्चात निम्न कुबेर-मन्त्र की ३ माला जप करे –


ॐ यक्षराज नमस्तु शंकरप्रिय बांधव,एकां मे वशगां नित्यं यक्षिणीम् कुरु ते नमः.


ठीक इसी प्रकार से पूर्ण रूप से कुबेर साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए कुबेर की शक्ति कुबेर यक्षिणी मंत्र की भी एक माला नित्य करनी चाहिए ,वैसे कुबेर यक्षिणी को प्रत्यक्ष करने और उनका अनुग्रह प्राप्त करने का अपना एक विशेष विधान होता है परन्तु अन्य यक्षिणियों की साधना और कुबेर साधना में सफलता प्राप्ति के निमित्त भी इस साधना के मंत्र की १ माला कुबेर मन्त्र के साथ होनी ही चाहिए.इसके प्रभाव स्वरुप जहाँ आर्थिक अनुकूलता प्राप्त होती है वही यक्षिणी के पूर्ण साहचर्य की प्राप्ति हेतु कुबेर देव की कृपा भी मिलती है-

ॐ कुबेर यक्षिण्यै धन धान्य स्वामिन्यै धन धान्य समृद्धि में देहि दापय स्वाहा


इसके बाद मूल यक्षिणी साधना प्रारंभ करना चाहिए ,और हो सके तो नित्य कुमारी पूजन करना चाहिए.

यक्षिणी कितने प्रकार की होती हैं,और इनके कितने प्रकार होते हैं ?

यक्षिणी के कई वर्ग होते हैं,ये अलग अलग पांच तत्वों से सम्बंधित होती हैं और इनमे उसी तत्व विशेष के अनुसार शक्ति होती हैं.जैसे कोई रसायन क्षेत्र का ज्ञान देती है तो कोई निधि दर्शन और प्राप्ति का सामर्थ्य प्रदान करती है,कोई अतीन्द्रिय लोक का ज्ञान देती है तो कोई पत्नी सुख देती है, किसी के सहयोग से रस्सिद्धि की प्राप्ति होती है तो कोई प्रेम के साथ अतुलनिय संपदा प्रदान करती है. इसी प्रकार विभिन्न वनस्पतियों में भी इनका वास होता है,जैसे-


  1. बिल्व यक्षिणी
  2. निर्गुण्डी यक्षिणी
  3. कुश यक्षिणी
  4. आम्र यक्षिणी
  5. सहदेवी यक्षिणी
  6. पिप्पल यक्षिणी
  7. तुलसी यक्षिणी 

आदि पर जब भी इन यक्षिणियों की साधना की जाये तो सम्बंधित वनस्पति के आस पास ही की जानी चाहिए , वैसे बसंत ऋतू और श्रावण मास इनकी साधनाओं के लिए अधिक उपयुक्त होता है ,क्योंकि इस काल में सम्पूर्ण प्रकृति में मानो आपकी सहयोगी हो जाती है. परन्तु ये भी ध्यान रखने योग्य है की जो वनस्पति जिस काल में विकसित होती हैं उसी ऋतू विशेष में उस वनस्पति से सम्बंधित यक्षिणी की साधना करनी चाहिए. उपरोक्त वानस्पतिक यक्षिणियों की शक्ति भी भिन्न भिन्न होती है, जैसे कोई ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री होती है तो कोई अशुभ का निवारण करती है, कोई विद्या प्रदान करती है तो कोई वाक् सिद्धि और राज्य सुख प्रदान करती है.पूर्ण सफलता के लिए प्रायः सभी यक्षिणियों की कम से कम एक माह तक तो साधना करनी ही चाहिए.

क्या मृत्युंजय अभिषेक की भी कोई गोपनीय पद्धति है?
हाँ अवश्य है,यक्षिणी साधना में सफलता के लिए ‘लाकिनीश मृत्युंजय’ की उपासना व अभिषेक किया जाता है.क्यूंकि इनका निवास मणिपूर चक्र में होता है और ये स्थान अग्नि और अमृत दोनों का ही होता है अतः इनका अभिषेक करने से अग्नि की आकर्षण शक्ति आपमें तेज की वृद्धि कर देती है और निसृत अमृत आपको जरा रोगों से मुक्त कर कायाकल्प करता है,और यही तेज व पौरुष बल यक्षिणी को आपकी और खीचता है.इसके लिए पारद शिवलिंग के ऊपर निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पूर्ण विनम्र भाव से अक्षत अर्पित करे.

ॐ परम कल्याणाय नमः


ॐ विश्वभावनाय नमः,पार्वतीनाथाय,उमाकान्ताय ,विश्वात्मनाय,अविचिन्ताय,गुणाय,निर्गुणाय,धर्माय, ज्ञानमक्षाय,सर्वयोगिनाय,कालरुपाय,त्रैलोक्य रक्षणाय,गोलोकघातकाय,चन्डेशाय,सद्योजाताय,देवाय,शूल धारिणे, कालान्ताय,कान्ताय,चैतन्याय,कुलात्मकाय,कौलाय,चन्द्रशेखराय,उमानाथाय,योगीन्द्राय,शर्वाय,सर्वपूज्याय,ध्यानस्थाय, गुणात्मनाय,पार्वतीप्राणनाथाय,परमात्मनाय.


उपरोक्त नामो के पहले तथा बाद में नमः लगाकर अक्षत अर्पित करे. इसके बाद मृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए कच्चे दूध और जल के मिश्रण से अभिषेक करे.मृत्युंजय मंत्र सदगुरुदेव की पत्रिका में कई बार प्रकाशित हुआ है.

सर्व सामग्री को उत्कीलन करने का क्या विधान है ?

पूजा या साधना में प्रयुक्त सामग्री जैसे,यंत्र,माला,पुष्प,फूल,फल आदि लगभग सभी सभी सामग्रियों का नितांत शुद्ध होना आवश्यक है.यदि इनमे से कोई भी सामग्री में जरा सी भी वैचारिक या स्पर्श की वजह से अशुद्धता आ गयी तो फिर इनके प्रयोग से साधना में कोई लाभ नहीं होता.हम साधना के निमित्त बाजार से पुष्प,फल इत्यादि लेते हैं,अब जिनसे आपने लिया है वो किस शारीरिक या मानसिक स्थिति में थे किसे पता,उन्होंने शंका निवारण के पश्चात हाथों को धोया था या नहीं और कैसी मनः स्थिति में उन्होंने आपको सामग्री दी है,इसी प्रकार पूजा स्थल में यन्त्र माला इत्यादि रखे हैं और उसे घर के बच्चो या अन्य सदस्य ने उठा लिया या स्पर्श कर लिया तब भी उनकी प्राणशक्ति और शारीरिक मानसिक शुचिता से वे साधना सामग्री प्रभावित होंगी ही. रसोई से नैवेद्य बनकर साधना कक्ष में आते आते न जाने किसकी दृष्टि पद जाये या जब भोजन तैयार हो रहा था उस समय बनाने वाले का चिंतन कैसा था.यन्त्र के ऊपर कीट,पतंगे,चूहे,छिपकली आदि के चलने से भी यन्त्र माला इत्यादि दोषपूर्ण हो जाते हैं.अतः ऐसी स्थिति में उन्कपरिहार करने के लिए या उत्कीलन करने के लिए एक विशेष मंत्र का प्रयोग किया जाता है ,जिसे पहले सिद्ध करना अनिवार्य है.


निम्न मंत्र को पहले ५१ माला मंत्रजप करके सिद्ध कर लेना चाहिए,बाद में जब भी आप साधना हेतु सामग्रियों का प्रयोग करे तो इस मन्त्र को १०८ बार जप कर उससे जल को अभिमंत्रित कर सभी सामग्रियों पर छिड़क दे.


मन्त्र- 
ॐ ह्रीं त्रिपुटि त्रिपुटि कठ कठ आभिचारिक-दोषं कीटपतंगादिस्पृष्टदोषं क्रियादिदूषितं हन हन नाशय नाशय शोषय शोषय हुं फट् स्वाहा. 


यक्षिणी साधना के अन्य गोपनीय तथ्य क्या है,जिनका प्रयोग करने से निश्चित सफलता मिल ही जाये ?

यक्षिणी साधना के मूल यंत्र के साथ दो सामग्रियों की और अनिवार्यता होती ही है-


  1. अप्सरा यक्षिणी तंत्र प्रतीक
  2. निश्चित यक्षिणी सायुज्य पारद गुटिका 

इसके अतिरिक्त स्वयं के हाथो से या गुरु के द्वारा निर्मित यक्षिणी का चित्र या विग्रह भी पास में होना चाहिए ,इससे ध्यान में अनुकूलता मिलती है.यक्षिणी साधना में यक्षिणी कीलन की गोपनीय क्रिया भी की जाती है ,इस क्रिया में भोजपत्र या सफ़ेद कागज पर त्रिगंध से यक्षिणी का लघु चित्र या यन्त्र बनाया जाता है और उस चित्र के मध्य में मूल मंत्र लिखा जाता है. यदि आपने यन्ता का अंकन किया है यतो उसके मध्य में मंत्र नहीं लिखना है.अब उस चित्र के चारो और गोलाकार में मंत्र लिखना रहता है .उसका तरीका ये है की पहले मंत्र लिखा फिर मूल मंत्र का पहला अक्षर फिर मंत्र लिखा फिर दूसरा अक्षर इसी प्रकार मंत्र फिर अक्षर फिर मन्त्र फिर अक्षर और अंत में फिर मंत्र लिखा जाता है ,circle वृत्त या गोलाकार रूप में और ये क्रिया साधना के प्रारंभ में की जाती है तथा मंत्र लिखते समय जब आप मंत्र के अक्षरों को लिखते हो तो उस अक्षर पर २१ बार मूल मंत्र को जप कर अनामिका अंगुली का स्पर्श करना चाहिए ,ये क्रम अंतिम अक्षर तक रहता है .ये क्रिया कीलन कहलाती है और इस क्रिया के द्वारा यक्षिणी को साधक अपने मन्त्रों से कीलित या बांध लेता है.और यक्षिणी को प्रत्यक्ष होने और सिद्धि देने के लिए बाध्य होना पड़ता है. ये क्रिया और आगे का पूर्ण जप वीर भाव से ही होना चाहिए वो भी क्रोध मुद्रा में. इसके अतिरिक्त निश्चित यक्षिणी सायुज्य पारद गुटिका को प्राप्त कर उस पर भी मूल मंत्र की ५ माला कर लेना चाहिए जिससे वो गुटिका उस यक्षिणी विशेष से सम्बंधित हो जायेगी.इस गुटिका पर आप अलग अलग कई यक्षिणियों की साधना कर सकते हैं. इसी प्रकार ध्यान के बाद साधना के पूर्व यक्षिणी का आवाहन करने, उन्हें आसन देने ,उन्हें आसान पर बैठने और उनके सान्निध्य के लिए,उन्हें ह्रदय में स्थापित करने के लिए , उनका पूजन करने के लिए तथा जप के उपरांत उनका विसर्जन करने के लिए भी कुछ विशेष क्रिया की जाती है जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है.

इसी प्रकार कुछ मूल मंत्र के अतिरिक्त कुछ विशेष मन्त्रों और मुद्राओं की भी अनिवार्यता होती है.(मुद्राओं के चित्र तो आपको ग्रुप के फाइल सेक्सन में मिल जायेंगे,क्योंकि अभी वेब साईट का कार्य चल रहा है इसलिए उसे कामाख्या कार्य शाला के बाद अपलोड कर दिया जायेगा)

यक्षिणी मुद्रा- 
क्रोधान्कुशी मुद्रा-जिसके द्वारा सम्पूर्ण विश्व को ही आकर्षित किया जा सकता है.

इस मुद्रा का प्रयोग करके निम्न मंत्र से यक्षिणी का आवाहन करे.

ॐ ह्रीं आगच्छागच्छ अमुक यक्षिणी स्वाहा.

आवाहन के बाद सम्मुखिकरण मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए निम्न मंत्र को उच्चारित करे-
ॐ महा यक्षिणी मैथुन प्रिये स्वाहा.

फिर सान्निध्य करण मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए –

ॐ कामभोगेश्वरी स्वाहा

मंत्र का उच्चारण कर आसन प्रदान करे.इसके बाद दोनों हाथ की मुट्ठी एक साथ बांध कर अपने वक्षस्थल पर रखे और

ॐ ह्रीं हृदयाय नमः

का उच्चारण करे .फिर प्रमुखी मुद्रा अर्थात दोनों हाथ की मुट्ठी बांध कर तर्जनी और मध्यमा अंगुली को फैलाये तथा निम्न मंत्र से यक्षिणी का गंध,पुष्प,धुप,दीप,नैवेद्य आदि से पूजन करे –

ॐ सर्व मनोहारिणी स्वाहा.


सम्पूर्ण जप के पश्चात पुनः आवाहन मुद्रा का ही प्रयोग करते हुए बाये को बाहर की और हिलाते हुए निम्न मंत्र का प्रयोग कर विसर्जन करे, याद रखे आवाहन में दाये अंगूठे को बाहर से अंदर हिलाते हैं और विसर्जन में बाये अंगूठे को अंदर से बाहर .

ॐ ह्रीं गच्छ गच्छ अमुक यक्षिणी पुनरागमनाय स्वाहा

यदि इन क्रियाओं का प्रयोग करने पर भी इन यक्षिणियों का साहचर्य न प्राप्त हो तब क्या करना चाहिए?

वैसे ऐसा संभव नहीं होता है की इन क्रियाओं का प्रयोग किया जाये और आपका मनोरथ सिद्ध न हो ,यदि आपको उपरोक्त मुद्राओं का ज्ञान न हो पा रहा हो तो भी तंत्र रहस्यम केसेट्स में बताई गयी पांच मुद्राओं का १०-१० सेकेंड प्रदर्शन करने से भी अनुकूलता मिलती है .यथादंड,मत्स्य,शंख,अभय और ह्रदय मुद्रा.


उपरोक्त मन्त्र के प्रभाव से जप और पुरश्चरण अवधि पूर्ण होने पर भी यदि हाथ धर्मिता के करण ये शक्तियां सामने नहीं आ रही हो तो –


ॐ बंध बंध हन हन अमुकी हुं मंत्र का ८००० बार जप करे तथा 
२१ माला 
ॐ सर्वसिद्धियोगेश्वरी हुं फट 

मन्त्र की जप करें ,इससे निश्चय ही सफलता की प्राप्ति होगी ही. उपरोक्त सभी क्रियाएँ गोपनीय व दुर्लभ हैं. इनका प्रयोग निश्चित ही कालानुसार करना चाहिए.


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FOR YAKSHINI SADHNA HOW A SADHAK’S MENTALITY SHOULD BE?
Without any second thought for every sadhnaa his heart and mind should be pure because if a common lady can read your thoughts by looking at into your eyes than it is thousand times easy for powerful YAKSHINI to read your thoughts at once. May be you do not know that according to your thoughts your surrounding release the same vibrations. Though a common man cannot see or catch these vibrations but one who has his AKASH DRISHTI and DIVYA DRISHTI activated can see all these micro changes. If Sadhak poccess TAMSIK BHAV than this aura get visible in smoky black color and this color directly or indirectly tempt the mind and as compare to other color rays these rays work faster and give birth the feeling of insecurity in the mind of a person, community from you. And in this situation they will not come closer to you and YAKSHINI is lively source of energy so you cannot hide these micro emotions of your mind from her. So for this reason before starting any sadhnaa Sadhak should make him free from all these temptations and sins so that he can feel himself mentally and spiritually free.

Not enough yet because your meditation is just like speechless conversation( MOUN VAARTA) just like the sounds which are changed into ether( upper air) after spoken move into the whole universe just like every pore( ROME SHIDRA) of our body is just like a mouth and our every concentrated thought cast effect on universe. By sadhnaa we change our imagination (KALPNA YOG) into reality (SAKAAR YOG) and in which shape or form we think about our ISHT DEV in near future that shape will take real form in front of us.

Manta is not just a collection of words because at that time when it given to a SHISHYA by his GURU it becomes divine power to achieve everything. It is true that at the beginning Sadhak does not realize the actual power of it but as he does more and more concentration and gives more and more time to this MANTRA JAPP then he comes to know that he can get whatever he wants with this. That is why it is said that as much JAPP you do success will come as much closer to you. Isn’t so…..

Yes...It is.

As I told earlier that concentration has power to effect the universe than why your MANTRA not. For this one who wants to have success he should do his meditation with self confidence and with pure heart and mind as well. Always remember that to spoil a jug of milk one drop of citric acid is enough just like that to spoil your sadhnaa one negative thought is enough.

Your MANTRA which moved in open air has the power to attract divine powers and negative thoughts spoil this attraction power too and you do not get success. That is why when a Sadhak starts his sadhnaa with positive thoughts and strong resolution than surely he gets success.


WHAT DO WE MEAN BY STABILITY IN SAADHNA?
At the beginning of sadhnaa new Sadhak becomes more excited which makes his process of SHWAAS PRSHWAAS faster and it is this fastness of SHWASS which don’t keep the concentration stable and without concentration sadhnaa will give no result because as without concentration during sadhnaa with the help of MANTRAS the picture of our ISHTT which we make get at once destroyed and re-built. For this reason at the beginning of sadhnaa there is a PRAANAAYAAM VIDHAAN exists so for sadhnaa in which posture we sit it can be SIDH-AASAN, SUKH-AASAN or PADDAASAN before starting MANTRA JAPP sit straight on aasan and make DHYAAN MUDRAA by touching your hand thumb with TRJANI. Do this with both of your hands and then put your hands on your knees. By doing so the energy which will produce during sadhnaa cannot move out and remember feel MOOLBANDH during this process. By this process body becomes stable and Sadhak can devote more time. And when Sadhak will carry on MANTRA JAPP with great concentration then DIVINE POWERS will surely blessed him with success.


HOW A MANTRA FUNCTIONS?

Do not choose any mantra from granths as it should be taken from GURU while following some rules as one should ask for MANTRA while sitting at the feet of GURU. Then GURU himself blessed him for success by providing him MANTRA which comes out from RIPU, SAARTHAK and HIS INNER SOUL. Sometimes some Sadhak thinks what will their GURU think about them when he comes to know about their sadhnaa they do not tell anything about it to him but they forget nothing remain secret from GURU’S eye and without him who will give them success?? It is only GURU who can tell you which MANTRA you need to get success in your desired sadhnaa and again it is only from his mouth you will come to know how you have to pronounce this MANTRA but if for any reason you cannot go to GURU than you can take help from written mantra but then should be you need to take his permission mentally. And in between if you get chance to visit GURU DHAAM then tell him about your sadhnaa and MANTRA so that if there is any mistake in it pronunciation he can correct it and if it is against you (SHTRUKAAL) then GURU can protect you.

FOR WHAT SHATRUKUL STANDS FOR?


Except ASHTAADASHH SIDH VIDYAON all the mantra related to any god and goddess should choose carefully. There are many rules written in SHAASTRAA about it as JAISE KI KYA MANTRA DEV APNE KUL KA HAI, USKI RAASHHI AUR APNI RAASHHI MEIN KYA SMBNDH HAI, USKA NKSHHTRA KYA HAI and the MANTRA which we are going to meditate is represented by whom, whether that NAMAANK TATV is our friend, enemy or TATTHATSATH and all this is very complicated because if by mistake Sadhak choose SHTRU MANTRA then power related to it make his life hell. So to avoid all these it is better to have MANTRA JAPP AND DIRECTIONS from GURU.


I HAVE HEARD THAT TO GET SUCCESS ONE SHOULD PERFORM PURUSH-CHARAN; WHAR DOES THIS PURUSH CHARAN MEAN?



Number of JAPP SNKHYA as told by GURU and do this MANTRA JAPP systematically in given time is called PURUSH-CHARAN. During this time period Sadhak follows SANYMITT LIFE and he also avoids social functions as well.


THERE ARE FIVE SUB-DIVISIONS OF PURUSH CHARAN-
JAPP- In this MANTRA KE DEVI DEVTA KA PNCHOPCHAAR YA SHHDCHHOPCHAAR SE POOJAN KIYA JATA HAI. Beside these UPCHAAR VISHESH KRMM of DEVTA POOJA is followed in TANTRIK SADHNAA.

BHOOMI shodhan - POOJA of SADHNAA KAKSHH is called BHOOMI shodhan. In it do the POOJA OF DEVTA and then offer ARGYAA to earth then with the help of AASAN SHOODH MANTRA offer PUSHP (FLOWERS), AKSHHT (RICE) to the earth then set your AASAN and sit on it.


DEH SHODHAN- Sadhak firstly complete PRAANAAYAAM then does BHOOT SHUDHI, MAATRKAAO SE NYAAS, his ISHTT MANTRA and RISHYAADINYAAS, KARANYAAS get completed to make his body pure.

DRAVYADI SHODHAN- For Sadhak the most important thing is his SADHNAA SAMAGRI which includes YANTRA, MALA(ROSARY), PUSHP(FLOWERS), DEEP( EARTHREN LAMP), DHOOP(INCECSE), VASTRAA(CLOTHES).Firstly get them pure by mantra then carry on the next step,( DRVAASHOODHAN is an important but long process and in this magazine its complete procedure has been given)

MALA (ROSARY) should be completely SANSKAARIT (PURE) because with impure rosary you are going to have mentally tensions from divine powers, instead of blessings, that too free of cost. If Sadhak can lit (PRJVALIT) AKHAND DEEP that will increase JAPP effect and if it is not possible then make sure during JAPP KAAL that DEEP should not get down.


HOM- It is quite good to do NITYA DASHHANSHH HAWAN of NITYA JAP some people do DASHHANSHH JAPP instead of HAWAN but according to me to do HAWAN is much better because it gives special energy and power to MANTRA.


TARPAN-After HAWAN in a big BRONZE POT (TAMBE KA BRTAN) or in a pond (SROVER) do the DASHHANSHH TARPAN of HAWAN SAMAGRI. In pot put ASHTGANDH, KAPOOR (CAMPHER), DOORVA and water and what so ever GOD, GODDESS is call his name speak ‘tarpyaami namah’ and offer water.

MARJAN- After TARPAN take its 1/10 part means DASHHANSHH SNKHYAA SE while standing in pond on your head make WATER ABHISHEK by DROOVA in KUMBH MUDRA and say “abhishinchaami namah”

On that very day or on the last day arrange BRAHMAN BHOJ or KUMARI BHOJ.

Then for success pray in your GURU’s HOLY FEET. If anybody follows this process then definitely success will be his.


TO GET QUICK SUCCESS AT WHICH PLACES YAKSHINI SAADHNA SHOULD BE PERFORMED?


To get quick success in sadhnaa perform it at SIDHPEETH, GURU GREH, NADI TATT (BANK OF RIVER), PERVAT SHIKHR (MOUNTAIN PEAK), EKAANT VANN (LONELY FOREST), VILV YA PEEPAL VRIKSHH KE NEECHE. To get more desired results carry on it at KAAMAAKHYAA PEETH’s SOUBHAAGYAA KUND or IN PRAANGANN. It may also perform successfully in ALKAPURI, PNCHMDHI, and MOUNT AABU and at HIDAMBAA MANDIR. If it is not possible do these sadhnaa at home only but must check no other person can enter in the room.


WHAT IS THE IMPORTENCE OF SAUBHAGYA KUNDA IN THIS SADHNA?


If at the beginning of YAKSHINI SADHNA Sadhak “OM mam sarv manorathaan poornaarthe asya saubhagya vaarih poorn yakshini siddhaye namah”speak above given MANTRA 21 times and offer water at the name of MAA KAAMAAKHYAA then without any second thought he is bound to meet success. This process can carry on only at SOUBHAAGYAA KUND because for these types of sadhnaas this place has its own importance.


WHAT SHOULD A SAADHAK’S DIET DURING IT?


Sadhak should eat pure vegetarian food and avoid spicy and sweet food but it will be best if he used HAVISHHYA-ANN. beside this he should also follow BHOOMI SHYAAN (SLEEP ON EARTH), POORN MAANSIK AUR SHAAREERIK BRHAMCHAARYA (COMPLETE CELEBACY).


IN YAKSHINI SAADHNA IS THERE ANY PARTICULAR PROCESS WHICH SHOULD CARRY OUT BEFORE MANTRA JAAP?


If sadhak do the "Streem” mantra chanting and concentrate on the Vishuddha chakra and touches it for 10 times would be fair. And before mantra chanting “Om” also the accent should be 10 times. Before each Yakshini sadhna pure urself completely and then from full moon till 11 days chant Mahamrityunjay mantra jap for 5000 counts surely must perform. And along with it one should do with the continual mantra of three malas of Kuber Mantra should also carry out. It is an essential act, most spiritual seeker just treat it light way. Believe me some of them used to say, bhai the way you have described as chanting, as has been done and but they merely take care of purity impurity, nor they have inspeted their menta feelings and their attitude toward the sadhna and not even tested their approach.And ultimately just vaging ur tongue without thinking and said sadhna vadhna is nonsense.Yakshani’s chief is Kuber. And if you will not please the governor of Yakshani, without their permission you will act intended.Dont u think so? Similarly by worshipping the lord Mrityunjay and their mantra of this type u can acquire Kuber siddhi, and as they pleased the door are opened and you wish to complete. Only once in the year when Guru purnima occurred on full moon to the next full moon under any Vilva tree if u sit under the tree and complete the full worship of Lord Shiva and the inaugural after full shodash therapies through and chant facing towards north direction Mrityunjay mantra,the mala should be of Rudraksha. Then chant the 3 malas of the following kuber mantra-

"Om Yaksharaj Namastu Shankarpriya Bandhav,ekaan me vashangam nityam yakshineem kurute namah"

Exactly in the same way if u want success in Kuber sadhna then u must chant the kuber Shakti i.e. kubers yakshini mantra atleast one mala per day.By the way appearance of Kuber yakshini and getting theirs blessings have their own a specified method.but the rest other yakshini sadhnas and kuber sadhnas and to get success ,purposefuly have to attempt this and chant this one mala along with the kuber mantra should be done on daily basis.It influences in the financial conditions and u also get the Lord kuber’s boons and blessings in form of complete help from Yakshini.


“Om kuber yakshinyai dhan dhaanya swaminyai dhan dhaanya samridhhi me dehi daapay swaha”

Thereafter start original Yakshini sadhna and if possible do kumara pujan on daily basis.

How many types of Yakshinis are their in existences? How many categories are there?


There are various classifications of yakshini.They are related to five tatvas and they are inclusive of the different tatvas power respectively.For eg one of them is about Rasayan fiels I mean Alchemy and bow u wisdom in that particular field only or the other one in field of NIdhi Darshan and accomplishment,another one gives u the Ateendriya Lok knowledge, or someone gaves u partner happiness, or the Ras siddhi or along with love can have the financial assistance too.Similarly their presence is also observed in herbs. Like –


  1. Bilva Yakshini
  2. Nirgundi Yakshini
  3. Kush Yakshini
  4. Aamra Yakshini
  5. Sahadevi yakshini
  6. Pippal Yakshini


Tulsi Yakshini etc.. But whenever these yakshini sadhnas are attempted then it should be done nearby those herbs only.Anyways the springs and rainy seasons are most favourable time for doing this sadhnas.because u know why? As whole nature comes for your support in each aspect.But here u must adhere that the herb which is germinated in in such season the same yakshini sadhna related to that herb must be done to achieve the success.As they differ similarly the herbs go differ.likewise some one which is owner of wealth prosperity though on otherhand vanishes the evil things, some of them bows u wisdom knowledge, though someone masters ur conversation skills or gives u the king size happiness.For achieving complete success generally sadhnas should be done of all yakshinis.


What are other secrets of Yakshini sadhnas? Whom are guaranteed in success?


Well along with Yakshini Yantra the two more things are required and important too

  1. Apsara Yakshini Tantra Prateek
  2. Nishchit Yakshini sayujya Parad gutika


Beside all this one must have the picture of Yakshini either by his or her own handmade else given by guru.This favours u in ur meditation.n yakshini sadhna the yakshini keelan is also done.In this process on the bhojpatra or any white paper the small picture of yakshini is drawn by trigandh and yantra is also made and middle of it the original mool mantra is written.If u have counted the yanta else don’t write the mantra in middle.Then u have to write the mantra all around it. It should be written in such a way that first write the mantra then mool mantra’s first letter then again mantra then second letter of mool mantra then again mantra and so on.It should be in circled way and must be done before starting the sadhna. And when u write the mantra while doing it the mool mantra should be enchanted for 21 times and should be written by ring finger. it should not be changed until last word get finished.This procedure is known as Keelan.And via this procedure sadhak is able to control or tie the yakshini for him.In this way yakshini is bound to bow u success or to complete ur wish. This whole activity must be accomplished in veer bhav that to be in anger mudra. Apart from it take Nishchit Yakshini sayujya Parad gutika then chant the 5 malas of mool mantra by which it would get directly connected to related yakshini.Now on this gutika u can attempt various types of yakshini sadhnas. Similarly after meditation before sadhna call yakshini, offer her asan, req her to sat on it, to demand for her closeness, to establish her in heart, then worshipping her and thereafter devoting her, various specific methods are done which are explained below. Likewise apart from mool mantras some other specific mantras and mudras are also equally significant.


(U can avail the pictures of mudras from File Section,because right now website work is under construction,so it would be uploaded after the Kamakhya Workhop )


Yakshini Mudra : Krodhankushi mudra – by which the whole world can be attracted.after using this mudra chant the following mantra and call the yakshini.


Om hreem aagachhagachh amuk yakshini swaha

After calling showing the sammukhikaran mudra chant the following mantra-


Om maha yakshini maithun priye swaha.


Then while expressing Sannidhya Karan Mudra –


Om Kaambhogeshwari swaha

After pronouncing the mantra offer her asan.After the closeknit the both palms place it on chest and


Om hreem hridayaay namah.

chant this mantra. Then in Pramukhi mudra means by both the hands closeknit spreadup the index and middle finger and chant the following mantra and worship the yakshini by gandh,flowers,lamp, dhup, sweets etc..
Om sarva Manoharini swaaha.

After whole jap again call in Avahan mudra shake the left hand outside and chant the following mantra and do the consecration process, remember while calling the right thumb is wobbled from outer side to inner side and inconsecration process left thumb is wobbled from inner to outer side.

Om hreem gachh gachh amuk yakshini punaragamanaay swaha

Well its impossible if u use such processes and ur wish is not fulfilled,If u are really not getting the proper knowledge of above mudras then u can listen Tantra Rahasyam cd or cassete and do the five mudras mentioned in it for 10-10 seconds.Is also favours u i.e. Dand,Matsya,Shankh,Abhay, and hriday mudra.


From influence of above mantras the jap and Purashcharan Avadhi completes deliberately these powers are not appearing then –


Chant the ‘Om Bandh Bandh han han amuki hum’ mantra for 8000 times and 21 malas of – ‘Om sarvasiddhiyogeshwari hum phat ’ mantra. It will surely lead u towards success.


All above process are very secretful and rare.It should be used accordind to appropriate time.

BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNA-POORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU


BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNA-POORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU


 कहा गया है की पहला सुख निरोगी काया-अर्थात स्वस्थ्य शरीर ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है और उसी से आप अन्य सुखों का उपभोग कर सकते हैं तथा साधना में आसन की दृढ़ता को प्राप्त कर सकते हैंl
        कायिक सुख,चित्त की स्थिरता और एकाग्र भाव से साधनात्मक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जिस क्रिया का प्रयोग किया जाता है,उसे आसन कहा जाता है l सामान्य बोलचाल की भाषा में सुविधापूर्वक एकाग्रता पूर्वक स्थिर होकर बैठने की क्रिया आसन कहलाती है lजिस प्रकार इस महत्वपूर्ण क्रिया का पतंजलि ऋषि द्वारा जिस योगदर्शन की व्याख्या व प्राकट्य किया गया उसमे विवृत अष्टांग योग में  आसन को उन्होंने तृतीय स्थान दिया है परन्तु इसी आसन की महत्ता को सर्वाधिक बल नाथ संप्रदाय की दिव्य सिद्धमंडलियों द्वारा प्रवर्तित षडंगयोग मे मिला है ,जहाँ पर गुरु गोरखनाथ आदि ने आसन को प्रथम स्थान पर रख कर साधना में सफलता के लिए अनिवार्य माना है l अर्थात जिसका आसन ही नहीं सधा हो भला वो साधना में सिद्धियों का वरण कैसे कर सकता है lमैंने बहुत पहले श्वेतबिंदु-रक्तबिंदु लेख श्रृंखला में इस तथ्य का विवरण  भी दिया था की यदि व्यक्ति साधना काल में मन्त्र जप के मध्य हिलता डुलता है ,पैर बदलता है तो सुषुम्ना की स्थिति परिवर्तित होने से ना सिर्फ उसके चक्रों के स्पंदन में अंतर आता है अपितु मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र पर तीव्र वेगी नकारात्मक प्रभाव पड़ने से साधक में काम भाव की तीव्रता भी आ जाती है और उसे स्वप्नदोष,प्रदर,प्रमेह जैसी बिमारियों का भी प्रभाव झेलना पड़ता हैl
   आसन का स्थिरीकरण और शरीर की निरोगता साधना का मूल है ,इसके  बाद ही चित्त को एकाग्र करने की क्रिया की जा सकती है और साधना में सफलता प्राप्त होती है ,जब साधक एकाग्र मन से लंबे समय तक जप करने में सक्षम हो जाता है तो “जपः जपात् सिद्धिर्भवेत”की उक्ति सार्थक होती है अर्थात सिद्धि को आपके गले में माला डालने के लिए आना ही पड़ता है l
   परन्तु ये इतना सहज भी नहीं है क्यूंकि जब तक साधक का शरीर रोग मुक्त ना होजाये तब तक वो आसन पर दृढ़ता पूर्वक बैठ ही नहीं सकता,स्वस्थ्य शरीर से ही साधना की जा सकती है ,आसन स्थिरीकरण किया जा सकता है और तदुपरांत ही साधना में सफलता प्राप्त कर तेजस्विता पायी जा सकती है l सदगुरुदेव ने स्पष्ट करते हुए कहा था की “जब शरीर ही सभी दृष्टियों से साधना में सफलता प्राप्त करने का आधार है ,तो स्वस्थ्य शरीर की प्राप्ति के लिए विश्वामित्र प्रणीत दिव्य देह सिद्धि साधना अनिवार्य कर्म हो जाती है ,इस साधना को संपन्न करने के बाद आत्म सिद्धि का मार्ग प्रशस्त हो जाता है,  देहसिद्धि की सम्पूर्ण क्रिया ६ क्रियाओं का समन्वित रूप होती है”-
मष्तिष्क नियंत्रण- साधना के लिए सदैव सकारात्मक भाव से युक्त मष्तिष्क ,जिसमे असफलता का कदापि भाव व्याप्त न हो पाए l
आसन नियंत्रण- हम चाहे जितनी भी माला जप संपन्न कर ले,तब भी हमारे बैठने का भाव और शरीर विकृत न हो l
चक्षु नियंत्रण- साधना काल व अन्य समय हमारे नेत्रो में कोई हल्का भाव ना आने पाए और सदैव हमारी दृष्टि तेजस्विता युक्त होकर सिद्धि प्राप्ति के गूढ़ सूत्रों को देख कर प्रयोग कर सके,आत्म सात कर सके l
श्वांस नियंत्रण- मन्त्र जप के मध्य श्वांस की लय व गति में परिवर्तन ना हो और साधक मंत्र जप सुगमता से कर सकेl क्यूंकि प्रत्येक प्रकार के मंत्र की दीर्घता और लघुता में भिन्न भिन्न प्रकार की श्वांस मात्र की आवश्यकता होती है l
अधोभाग नियंत्रण-साधना में बैठने की क्रिया कमर से लेकर पैरों के ऊपर निर्भर होती है, उनमे दृढ़ता प्रदान करना l
पंचभूतात्मक नियंत्रण- हमारे शरीर में व्याप्त पंचभूत तत्व यथा जल,अग्नि,वायु,आकाश और पृथ्वी की मात्रा को साधना काल में घटा-बढ़ा कर शरीर को साधनात्मक वतावर की अनुकूलता प्रदान की जा सकती है lतब ऐसे में हमारा शरीर बाह्य और आंतरिक रोगों और पीडाओं से मुक्त होता हुआ साधना पथ पर अग्रसर होते जाता है,प्रकारांतर में वो पूर्ण आरोग्य की प्राप्ति कर लेता है l
    इस प्रकार की क्रियाओं के बाद ही शरीर साधना के लिए तत्पर हो पाता है ,और बिना शरीर को नियंत्रित किये या अनुकूल बनाये साधना में प्रवेश करने से कोई लाभ नहीं होता है l
  वस्तुतः रोगमुक्त निर्जरा काया की प्राप्ति आज के युग में इतनी सहज नहीं है ,क्यूंकि आज का युग पूरी तरह से प्रदूषित,शापित और भोग युक्त है ,तब ऐसे में दिव्यदेह सिद्धि साधनाहमारा मार्ग सुगम कर देती है l सदगुरुदेव ने इस साधना का विवेचन करते हुए स्पष्ट किया था की साधक जगत को ये साधना ब्रम्हर्षि विश्वामित्र जी की देन है, उपरोक्त ६ क्रियाओं का इस साधना में पूर्ण समावेश है,वस्तुतः इस मंत्र में माया बीज,काली बीज और मृत्युंजय बीज को ऐसे पिरोया गया है की मात्र इसका उच्चारण ही ब्रह्माण्ड से सतत प्राणऊर्जा का प्रवाह साधक में करने लगता है और उसकी आंतरिक न्यूनताओं का शमन होकर उसकी देह कालातीत होने के मार्ग पर अग्रसर होने लगती हैl
   पारद की वेधन क्षमता अनंत है और वो अविनाशी तत्व है ,अतः इस साधना की पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण सामग्री पारद शिवलिंग और पंचमुखी रुद्राक्ष है, इस साधना को किसी भी सोमवार या गुरूवार से प्रारंभ किया जा सकता है,सूर्योदय से,श्वेत वस्त्र,उत्तर दिशा का प्रयोग इस साधना के लिए निर्धारित हैl
   प्रातः उठकर पूर्ण पवित्र भाव से स्नान कर सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे तथा उनसे साधना में पूर्ण सफलता की प्रार्थना करे,तत्पश्चात साधना कक्ष में जाकर सफ़ेद आसन पर बैठ जाये और सामने बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर सदगुरुदेव का दिव्य चित्र, उनकी दाई तरफ भगवान गणपति का विग्रह या प्रतीक रूप में सुपारी की स्थापना करे फिर गुरु चित्र के सामने दो ढेरी चावलों की बनाये अपने बायीं तरफ की ढेरी पर गाय के घृत का दीपक प्रज्वलित करे(याद रखियेगा की सदगुरुदेव के चित्र के सामने दो ढेरी बनानी है और गणपति विग्रह के सामने इतनी जगह छोडनी है जहाँ एक इतना बड़ा ताम्बे का कटोरा रखा जा सके जिसमे आधा लीटर पानी आ जाये) और दाई तरफ तेल का दीपक रखना है l इसके बाद गणपति जी के सामने ताम्बे का पात्र रख कर उसमे रक्तचंदन से एक गोला बनाकर उसमे “ह्रौं” लिख दे और उसके ऊपर पारद शिवलिंग तथा रुद्राक्ष स्थापित कर दे l इस क्रिया के बाद आप गणपति पूजन,गुरु पूजन और शिवलिंग पूजन पंचोपचार विधि या सामर्थ्यानुसार करे और गुरुमंत्र की ११ माला जप करे lतत्पश्चात  का ११ बार उच्चारण करे  ताम्बे के पात्र में रखे स्वच्छ जल से (जिसमे गंगा जल मिला लिया गया हो) १-१ चाय के छोटे चम्मच से शिवलिंग के ऊपर दिव्य देह सिद्धि मंत्र का उच्चारण करते हुए जल अर्पित करे, ये क्रिया १४ दिनों तक नित्य १ घंटे करनी है lयाद रहे उपांशु जप करना है ,जो जल आप नित्य अर्पित करेंगे उसे अगले दिन अपने स्नान के जल में मिलकर स्नान कर लेना है l
 दिव्य देह सिद्धि मंत्र-
 ॐ ह्रौं ह्रीं क्रीं जूं सः देह सिद्धिम् सः जूं क्रीं ह्रीं ह्रौं ॐ  ll
OM HROUM HREENG KREENG JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l
 १४ दिनों के बाद आप शिवलिंग को पूजनस्थल पर स्थापित कर दे और रुद्राक्ष को यथाशक्ति दक्षिणा के साथ भगवती काली या दुर्गा मंदिर में अर्पित कर दे तथा बाद के दिनों में मात्र २१ बार मंत्र का नित्य उच्चारण करते रहे,सदगुरुदेव की असीम कृपा से हम सभी के समक्ष ऐसी गोपनीय साधनाए बची रही है है,अतः साधनात्मक उन्नति की प्राप्ति के लिए अपनी कमियों को दूर करे और स्वस्थ्य शरीर के द्वारा साधना करे तथा आसन की स्थिरता को प्राप्त करे जिससे उच्च स्तरीय साधनाओं की सहज प्राप्ति हो सकेl
A Sound Mind Lives In a Sound Body” it means fit body is honored as one of the most important assets of this entire world because without it we won’t be able to enjoy other luxuries of our life and it is our body which helps us to be solidify on our altar i.e. called aasn.
Aasan is what??? Actually it is a means which helps us to enjoy physical comfort, stability of heart and mind so that we can attain our divine destination. Generally if you are able to sit in a single posture without any waving in your and mind than it is called aasan. Saint Patanjali defines and explains this procedure through Yogdarshan and in that too he ranks this process at third position but this process got more sophistication by the changed Shhdangyog divine sidh-mandalies of Nath Sect because in it Guru Gorakhnath regarded this aasan process the first step of success and ranks it at number one position. It means a person who is unable to make his grip strong on his aasan that can never ever have success in the field of sadhnaa. I have already explained this issue in the series of Shvetbindu-Raktbindu that during meditation or sadhnaa if a person moves his body or changes his sitting posture during mantra jaap than it is quite obvious that with his position his spinal will too change its direction and that is wrong as when spinal changes its position then with her it changes the position of our chakras too and not stop here with the changed position of spinal Mooladhaar and Swadhishthaan chakras releases negative energy and this negative energy causes erotic desires in saadhak and he started suffering from the problems as Night fall, Prader, Prameh and all that……….. 
Stability on aasan and fit body these two things are basic requirements for success in sadhnaa because without it, it is impossible to make your mind constant as when a saadhak can seated for a long time without any moment on his aasan then the power of “Japaah Japaat Sidhibhervaet” comes into life and when this position can attain then it is dead sure that he can get what he wants.
But let me remember you that it is not as easy as it sounds because with ill body no-one can get his/her aasan permanent stable but do not forget that if once you will attain this position then nobody can dare to stand between you and your success. Sadgurudev himself told that” it fit body is a fundamental requirement for success in sadhnaa then to have fit and fine body  it is very important to do Divya Deh Sidhi Sadhnaa as this sadhnaa will open the door for the further step i.e. called aatam sidhi. Deh sidhi sadhnaa is a collective form of six different procedures and that are-
Control over mind- during sadhnaa one should keep his mind charged with positive energy…..and there should be no thought of failure.
Control over aasan- during sadhnaa one should not depend upon the counting of rosary as keep on sitting until or unless you can.
Control over eyes- during in or out duration of sadhnaa there must not be cheap or baseless emotions should flow into your eyes…..one should keep his eyes focused on the accessories of sadhnaa so that your inner soul can absorb their qualities.
Controlled breathe- during mantra jaap there must be a deadly combination between the inhaling and exhaling process as your respiration speed depends upon the length and shortness of mantra as in different mantra different type of respiration system used.
Control over body i.e. Adhobhaag Niyantran- how much time you can sit in a single posture during sadhnaa it all depends upon your back and legs so you should pay special attention on this portion.
Control over five basic elements of body i.e. Panchbhootatmak Niyantran- if one comes to know that how he can increase or decrease the quantity of five basic elements i.e. water, fire, air, sky and earth, of his body then easily he can make his body suitable for the environment of his surrounding then slowly- slowly his body gets itself free from external and internal diseases and finally becomes pure.
After all these procedures body becomes suitable for sadhnaas as without this purity there is no use of doing any type of sadhnaa.
But the disturbing fact is that in this present scenario when everything is polluted, mall nourished to have perfect body is just like dream but with the help of Divya Deh Sidhi sadhnaa we can have an ideal body. Once while speaking about this sadhnaa Sadgurudev explained that in the field of sadhnaa this procedure is invented by Bhramrishi Vishwamitra ji which include  all 6 procedure  in it with collective energy of  Maya Beej, Kaali Beej and Mrityunjay Beej  which are  systematically arranged in a single thread and only by enchanting of it divine natural universal power starts entering in sadhak’s body and when this happens all the pit falls get vanishes from his soul and with pure heart, mind and body he gets lost in his sadhnaas.
If we talk about the quality of divines and purity then without any doubt the first name which comes into our mind is Mercury (parad) so in this sadhnaa too the most important useable things are Parad Shivling and Panchmukhi Rudrakshh. This sadhnaa can be started on any Monday or Thursday and in other accessories sun rising time, white clothe and North direction is already decided.
For this sadhnaa one should gets up at early morning and take bath. After bathing he should offer water as divine offering to the sun and gets his blessings for success. Then in your sadhnaa room be seated on white altar and in front of you on wooden slab spread white cloth and put picture of Sadgurudev on it. On the left side of picture put supari in the form of Lord Ganesha. After that make two heaps of rice in front of Sadgurudev’s photo and then lit a lamp (Deepak) of cow’s ghee on the heap of your left side. Remember in front of Sadgurudev’s photo there must be two heaps of rice similarly in front of supari ,which we has been taken as Lord Ganesha , there must be as much place that a copper bowl with half  liter water can be placed there and on right side place oil lamp(Deepak). When all this done then in front of Ganpati ji put copper bowl and in it make a circle with raktchandan and in that circle write “Hroum” and then placed Parad Shivling and Rudrakshh on it. After this you need to do Ganpati Poojan, Guru Poojan and Shivling Poojan with panchopchaar procedure or as per your capacity and then enchant 11 rosary of Guru Mantra. Further while speaking OM (11 times) take water from that copper bowl (in which Ganga jal is already mixed) with the help of small tea spoon and offer that water on Shivling while speakingDivya Deh Sidhi Mantra. Carry on this procedure for 14 days and it will take just an hour. Remember you have to do Upanshu Jap and that water which you offer to Shivling, use that water during your bath on next day.
Divya Deh Sidhi Mantra-
  OM HROUM HREENG KREENG JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l


After 14 days place Shivling at your poojan place and rudraksh at Kaali or Durga Temple with some alms. After this you need to enchant this mantra 21 times daily. It is just because of our revered Sadgurudev that we still have these types of secret sadhnaas so to achieve success in sadhnaas firstly get rid of your short-comings as it is only with healthy body we can make our aasan capacity as much solid and durable as we want.