Saturday, May 14, 2016

navgrah stuti लघु नवग्रह स्तुति

लघु नवग्रह स्तुति

ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी भानु शशि भूमि सुतो बुधश्च


गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकराः भवन्तु ....


======


इस स्तोत्र के पाठ से ब्रह्मा विष्णु महेश तथा नवग्रहों की कृपा प्राप्त होती है

===
किसी भी कार्य को करने के पहले इसका पाठ करके कार्य प्रारंभ करें.

dhumavati mahavidha sadhana महाविद्या धूमावती साधना

महाविद्या धूमावती साधना


॥ धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥




सर्व बाधा निवारण हेतु.
मंगल या शनिवार से प्रारंभ करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.फिल्म /टी.वी./गाना /नाच से दूर रहें.
किसी स्त्री का स्पर्श न करें. यदि स्त्री हों तो पुरुष का स्पर्श न करें.
सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
यथा संभव मौन रहें.
अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.
सफ़ेद वस्त्र पहनकर सफ़ेद आसन पर बैठ कर जाप करें.
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
बेसन के पकौडे का भोग लगायें.
जाप के बाद भोग को निर्जन स्थान पर छोड कर वापस मुडकर देखे बिना लौट जायें.
११००० जाप करें. ११०० मंत्रों से हवन करें.मंत्र के आखिर में स्वाहा लगाकर हवन सामग्री को आग में छोडें. हवन की भस्म को प्रभावित स्थल या घर पर छिडक दें. शेष भस्म को नदी में प्रवाहित करें.
जाप पूरा हो जाने पर किसी गरीब विधवा स्त्री को भोजन तथा सफ़ेद साडी दान में दें.

anjir अंजीर को सर्दियों में खाने का विशेष महत्व

अंजीर को सर्दियों में खाने का विशेष महत्व है। यह कब्ज को दूर करता है। इसमें में आयरन की काफी मात्रा में होता है। अंजीर में कई रासायनिक तत्व पाए जाते हैं इसमें पानी 80 प्रतिशल, प्रोटीन 3.5 प्रतिशत, वसा 0.2 , रेशे 2.3 प्रतिशत क्षार 0.7 प्रतिशत, कैल्शियम 0.06 प्रतिशत फॉस्फोरस 0.03, आयरन1.2 मिग्रा मात्रा में होता है। अंजीर में सोडियम के अलावा पोटेशियम, तांबा , सल्फर और क्लोरिन पर्याप्त मात्रा में होते हैं। ताजे अंजीर में विटामिन ए अत्याधिक पाया जाता है। जबकि विटामिन बी और सी सामान्य होता है। ताजे अंजीर की तुलना में सूखे अंजीर में शर्करा और क्षार तीन गुना अधिक पाया जाता है।
सूखे अंजीर में ओमेगा 3 और फिनॉल के साथ-साथ ओमेगा 6 फैटी एसिड्स भी होते हैं। जो दिल की बीमारियों से रोकथाम करते हैं। अंजीर में कैल्शियम भी पाया जाता है। इसीलिए ये हड्डियों को मजबूत बनाता है। अंजीर में पौटेशियम होने के कारण यह ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है।अंजीर को दूध में उबालकर सुबह-शाम ऊपर से दूध पीने से यौनशक्ति बढ़ती हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह नुस्खा लाभकारी है। इससे गर्भावस्था में शरीर में लौह तत्व की कमी दूर होती है।
रोजाना 5 से 6 अंजीर को उसके टुकड़े करके 250 मि.ली. पानी में भिगो दें। सुबह उस पानी को उबालकर आधा कर दें और पी जाएं। पीने के बाद अंजीर चबाकर खाएं तो थोड़े ही दिनों में कब्जियत दूर होकर पाचनशक्ति मजबूत होगी। बच्चों के लिए 1 से 3 अंजीर पर्याप्त हैं।
अंजीर को अधिक मात्रा में सेवन करना उपयोगी होता है। अस्थमा की बीमारी में सुबह सूखे अंजीर का सेवन करना अच्छा माना जाता है। डायबिटीज के रोग में अन्य फलों की तुलना में अंजीर का सेवन विशेष लाभकारी होता है। सूखे अंजीर को उबाल कर बारीक पीस कर अगर गले की सुजन या गांठ पर बांधी जाए तो लाभ पहुंचता है।
अंजीर में पेक्टिन होता है इसीलिए ये डाइजेस्टिव सिस्टम के लिए काफी फायदेमंद होता है। जमे हुए कोलेस्ट्रॉल को बाहर निकालता है। शरीर में सोडियम की अधिक मात्रा और पोटेशियम का लेवल कम हो जाने पर हाइपरटेंशन हो जाता है। वहीं अंजीर में कम सोडियम और पोटेशियम की अधिक मात्रा होती है। जो हाइपरटेंशन की समस्या को दूर करता है।
3-4 पके हुए अंजीर को छीलकर चीरे लगा दें और उसमें मिश्री का चूर्ण भर दें और रात को खुले आकाश में ओस से तर होने के लिए कहीं रख दें। सुबह इसका सेवन करें। इस नुस्खे से शरीर की गर्मी दूर होती है और खून साफ होता है।
अंजीर को साफ करके छोटे-छोटे टुकड़े में काट लें, फिर शक्कर की चाशनी बनाकर अंजीर के टुकड़ों को मिलाकर पाक बना लें उसमें बादाम की गिरी, पिस्ता, सफेद मुसली, छोटी इलायची, केशर आदि मिलाकर रखें। एक हफ्ते बाद इसे15-20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। अंजीर के इस पाक को नियमित खाने से यौन शक्ति बढ़ती है। इंद्रिय शिथिलता दूर होती है। जो लोग शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं और जिनमें पुरुषत्व की कमी ऐसे लोगों को रोजाना दो-चार अंजीर खाना चाहिए। इससे सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी।


कभी दर्द जिनको हुआ नहीं
जहान में हमदर्द
वही बन जाते हैं।

जंग कभी लड़ी नहीं
तलवार खरीदकर
वही वीर बन जाते हैं।

कहें दीपकबापू वाणी से
पराक्रमी शब्द बघारते
अज्ञानियों की भीड़ में
ज्ञानी वही बन जाते हैं।

Rog Nivaran mantra sadhana कुछ विशेष रोग निवारण मंत्र

कुछ विशेष रोग निवारण मंत्र


यों तो किसी भी समस्या के समाधान हेतु अनेको उपाय हैं। परन्तु मंत्रों के माध्यम से समस्या के निवारण के पीछे धारणा यह है कि मंत्र शक्ति एवं दैवी शक्ति के द्वारा साधक को वह बल प्राप्त होता है जिससे कि किसी भी समस्या का समाधान सहज हो जाता है। उदाहरण के लिए माना जाता है कि सभी रोगों का उदभाव मनुष्य के मन से ही होता है। मन पर पड़े दुष्प्रभावों को यदि मंत्र द्वारा नियंत्रित कर लिया जाए, तो रोग स्थाई रूप से शांत हो जाते हैं। उसी प्रकार मन को सुदृढ़ करके किसी भी समस्या पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं।

ब्लड प्रेशर तो स्थाई रूप से नियंत्रित हो सकता है... आप ख़ुद परख लीजिये न
क्या आप ब्लड प्रेशर के रोगी है, तो आप परेशान न हों, क्योंकि आपके पास स्वयं इसका इलाज है। यदि थोड़ी सी सावधानी बरत लें, तो फिर इसे आप आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं। आप दवाओं के साथ यदि इस प्रयोग को भी संपन्न करें, तो फिर यह स्थाई रूप से नियंत्रित हो सकता है। मंत्रों में इतनी क्षमता होती है, कि यदि आप उनका प्रयोग उचित विधि से करें, तो वे पूर्ण फलप्रद होते ही हैं।

आप 'रोग निवारक मधूरूपेन रूद्राक्ष' लेकर उसे किसी ताम्रपात्र में केसर से स्वस्तिक बनाकर स्थापित करें। उसके समक्ष ४० दिन तक नित्य ७५ बार निम्न मंत्र का जाप करें, नित्य मंत्र जप समाप्ति के बाद रूद्राक्ष धारण कर लें -
मंत्र
॥ ॐ क्षं पं क्षं ॐ ॥
प्रयोग समाप्त होने के बाद रूद्राक्ष को नदी में प्रवाहित कर दें।

सबसे खतरनाक बिमारी है डायबिटीज और इसका समाधान यह भी है
डायबिटीज रोग कैसा होता है, यह तो इससे पीड़ित रोगी ही अच्छी तरह समझ सकते हैं। दिखने में तो यह सामान्य है, लेकिन जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है, तो व्यक्ति अनेक प्रकार की बिमारियों से घिर जाता है तथा मृत्यु के समान कष्ट पाता है। इसी कारण इसको खतरनाक बिमारी कहा गया है। आप इस रोग का पूर्ण समाधान प्राप्त कर सकते है, यदि आप दवाओं के साथ साथ इस प्रयोग को भी संपन्न कर लें।

रविवार के दिन पूर्व दिशा की ओर मुख कर सफेद आसन पर बैठ जाएं। सर्वप्रथम गुरु पूजन संपन्न करे तथा गुरूजी से पूर्ण स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात सफेद रंग के वस्त्र पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर 'अभीप्सा' को स्थापित करे दें, फिर उसके समक्ष १५ दिन तक नित्य मंत्र का ८ बार उच्चारण करें -
मंत्र
॥ ॐ ऐं ऐं सौः क्लीं क्लीं ॐ फट ॥
प्रयोग समाप्ति के बाद 'अभीप्सा' को नदी मैं प्रवाहित कर देन

आपने मस्तिष्क की क्षमता को पूर्ण विकसित करिए

आज का भौतिक युग प्रतियोगिताओं का युग है, जीवन के प्रत्येक क्षण मैं आपको अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कराने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परिस्थितियों का सामना करना पङता है जिस व्यक्ति का मस्तिष्क जितना अधिक क्रियाशील, क्षमतावान होता है, वह उतना ही श्रेष्टता अर्जित कर लेता है आप भी आपने मस्तिष्क की क्षमता को पूर्ण विकसित कर सकते हैं इस प्रयोग के माध्यम से -'चैत्यन्य यंत्र' को किसी भी श्रेष्ठ समय मैं धारण कर लें एवं नित्य पराठा काल आपने इष्ट का स्मरण कर निम्न मंत्र का १५ मिनट तक जप करें -
मंत्र
॥ ॐ श्रीं चैतन्यं चैतन्यं सदीर्घ ॐ फट ॥
यंत्र को ४० दिनों तक धारण किए रहे ४० दिन के पश्चात उसे नदी मैं प्रवाहित कर दे।

आपने अनिद्रा के रोग को इस प्रकार से समाप्त करिए

क्या कहा आपने, आप को नींद नहीं आती और और इसके लिए आपको रोज रात को नींद की गोली लेनी आवश्यक हो जाती है और फिर भी आप चाहते हुए चैन की नींद नहीं ले पाते आपको स्वाभाविक नींद लिए हुए कई माह बीत चुके हैं कहीं इस रोग के कारण आपका स्वास्थ्य तो प्रभावित नहीं हो रहा है आपका सौन्दर्य कहीं डालने तो नहीं लगा यह रोग आपके लिए हानिकारक, तो नहीं साबित हो रहा है यदि ऐसा है तो आप शीघ्र ही इससे छुटकारा प्राप्त कर लीजिये

आप किसी भी रात्री को स्नान कर सफेद वस्त्र मैं कुंकुम से द्विदल कमल बनाए, अपना नाम कुंकुम से लिखकर उस पर उस पर 'रोग मुक्ति गुटिका' को स्थापित करें नोऊ दिन तक गुटिका के समक्ष निम्न मंत्र का ग्यारह बार जप एकाग्र चित्त हो कर करें -
मंत्र
॥ ॐ अं अनिद्रा नाशाय अं ॐ फट ॥
जप समाप्ति के बाद शांत मन से लेट जायें और नौ दिन के पश्चात गुटिका को नदी में प्रवाहित करें।
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान, जुलाई २००५

bangalamukh sadhana बगलामुखी जयंती



ॐ नमः शिवाय .... मित्रों !!
माँ बगलामुखी जयंती की आप सभी को शुभकामनायें !
आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो ...
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार वैशाख मास मे शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माँ बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है, इसी कारण इस तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है।
माता बगलामुखी स्वर्ण के सिंहासन पर विराजमान है।
मुकुट पर चन्द्रमा विराजमान एक हाथ मे मुदगर धारण किए हुए तथा
दूसरे हाथ में शत्रु की जिव्हा पकड़े हुए है,
तथा सदैव पीले वस्त्र धारण करती हुई शोभायमान रहती हैं।
" सौवर्णासन संस्थितां त्रिनयनां पीताशंकोल्लासनी
हेमाभांग रूचिं शंशाक मुकुटां संचम्पक स्त्र युग्ताम।
हस्तैर्मुदगर पाशवद्वरसनां सम्विभ्रतीं भूषणै र्व्याप्ताड़ीं
बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनी चिन्तये ! "
सतयुग की कथा के अनुसार ब्रह्मांड मे एक भयंकर तूफान आने पर पूरी सृष्टि नष्ट होने की कगार पर थी,
तब भगवान विष्णु ने सर्वशक्तिमान और देवी बगलामुखी का आह्वान किया। उन्होंने सौराष्ट (काठियावर) के हरिद्रा सरोवर के पास उपासना की।
उनके इस तप से श्रीविध्या का तेज उत्पन्न हुआ।
तप की उस रात्रि क़ो बीर रात्रि के रूप मे जाना जाता है।
उस अर्ध रात्रि को भगवान विष्णु की तपस्या से संतुष्ट होकर माँ बगलामुखी ने सृष्टिविनाशक तूफान क़ो शान्त किया ।
मंगलवार युक्त चतुर्दशी, मकर-कुल नक्षत्रों से युक्त वीर-रात्रि कही जाती है।
इसी अर्द्ध-रात्रि मे श्री बगला का आविर्भाव हुआ था।
मकर कुल नक्षत्र –
भरणी, रोहिणी, पुष्य, मघा, उत्तरा-फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण तथा उत्तर-भाद्रपद नक्षत्र हैं।
यह भी मान्यता है कि प्राचीन काल मे एक मदन नाम के राक्षस ने अत्यंत कठिन तपस्या करके वाक् सिद्धि के वरदान को पाया था।
उसने इस वरदान का गलत प्रयोग करना शुरू कर दिया और निर्दोष लाचार लोगों को परेशान करने लगा।
उसके इस घृणित कार्य से परेशान होकर देवताओं ने माँ बगलामुखी की आराधना की।
माँ ने असुर के हिंसात्मक आचरण को अपने बाएं हाथ से उसकी जिह्वा को पकड़ कर और उसके वाणी को स्थिर करके रोक दिया।
माँ बगलामुखी जैसे ही मारने के लिए दाहिने हाथ में गदा उठाई वैसे ही असुर के मुख से निकला मैं इसी रूप में आपके साथ दर्शाया जाऊं ... तब से देवी इन्हें माँ बगलामुखी के साथ दर्शाया गया है।
दश महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या का नाम से उल्लेखित है।
वैदिक शब्द ‘ वल्गा ’ कहा है, जिसका अर्थ दुल्हन या कृत्या है, जो बाद मे अपभ्रंश होकर ' बगला ' नाम से प्रचारित हो गया ।
बगलामुखी शत्रु-संहारक विशेष है अतः इसके दक्षिणाम्नायी पश्चिमाम्नायी मंत्र अधिक मिलते हैं।
नैऋत्य व पश्चिमाम्नायी दथमंत्र प्रबल संहारक व शत्रु को पीड़ा कारक होते हैं । इसलिये इसका प्रयोग करते समय व्यक्ति घबराते हैं, वास्तव मे इसके प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिये।
ऐसी बात नहीं है कि यह विद्या शत्रु-संहारक ही है, ध्यान योग में इससे विशेष सहयता मिलती है।
यह विद्या प्राण-वायु व मन की चंचलता का स्तंभन कर ऊर्ध्व-गति देती है, इस विद्या के मंत्र के साथ ललितादि विद्याओं के कूट मंत्र मिलाकर भी साधना की जाती है।
बगलामुखी मंत्रों के साथ ललिता, काली व लक्ष्मी मंत्रों से पुटित कर व पदभेद करके प्रयोग मे लाये जा सकते हैं।
इस विद्या के ऊर्ध्व-आम्नाय व उभय आम्नाय मंत्र भी हैं, जिनका ध्यान योग से ही विशेष सम्बन्ध रहता है।
त्रिपुर सुन्दरी के कूट मन्त्रों के मिलाने से यह विद्या बगलासुन्दरी हो जाती है, जो शत्रु-नाश भी करती है तथा वैभव भी देती है।
विष्णु भगवान् श्री कूर्म हैं तथा ये मंगल ग्रह से सम्बन्धित मानी गयी हैं।
इनके शिव को ' एकवक्त्र-महारुद्र तथा मृत्युञ्जय-महादेव ' कहा जाता है, इसीलिए देवी सिद्ध-विद्या कहा जाता है।
बगलामुखी महाविद्या के भैरव भगवान मृत्युञ्जय बतलाए गए हैं, अतः पीतांबरा माँ के आराधन से पूर्व भगवान मृत्युञ्जय की स्तुति भी की जानी चाहिए।
‘ मृत्युञ्जय महादेव त्राहिमाम् शरणागतम्।
जन्ममृत्युञ्जरारोगै: पीड़ितं कर्मबन्धनैः ! "
शत्रु व राजकीय विवाद, मुकदमेबाजी मे यह विद्या शीघ्र-सिद्धि-प्रदा है।
शत्रु के द्वारा कृत्या अभिचार किया गया हो, या
प्रेतादिक उपद्रव हो, तो उक्त विद्या का प्रयोग करना चाहिये।
यदि शत्रु का प्रयोग या प्रेतोपद्रव भारी हो, तो मंत्र क्रम मे निम्न विघ्न बन सकते हैं –
1. जप नियम पूर्वक नहीं हो सकेंगे ।
2. मंत्र जप मे समय अधिक लगेगा, जिह्वा भारी होने लगेगी।
3. मंत्र मे जहाँ “ जिह्वां कीलय ” शब्द आता है, उस समय स्वयं की जिह्वा पर संबोधन भाव आने लगेगा, उससे स्वयं पर ही मंत्र का कुप्रभाव पड़ेगा।
4. ‘ बुद्धिं विनाशय ’ पर परिभाषा का अर्थ मन मे स्वयं पर आने लगेगा।
सावधानियाँ –
* ऐसे समय मे तारा मंत्र पुटित बगलामुखी मंत्र प्रयोग मे लेवें, अथवा कालरात्रि देवी का मंत्र व काली अथवा प्रत्यंगिरा मंत्र पुटित करें,
तथा कवच मंत्रों का स्मरण करें।
सरस्वती विद्या का स्मरण करें अथवा गायत्री मंत्र साथ मे करें।
* “ ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाश ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ”
इस मंत्र मे ‘सर्वदुष्टानां’ शब्द से आशय शत्रु को मानते हुए ध्यान-पूर्वक आगे का मंत्र पढ़ें।
8 यही संपूर्ण मंत्र जप समय ‘ सर्वदुष्टानां ’ की जगह काम, क्रोध, लोभादि शत्रु एवं विघ्नों का ध्यान करें तथा ‘ वाचं मुखं …….. जिह्वां कीलय ’ के समय देवी के बाँयें हाथ मे शत्रु की जिह्वा है तथा ‘ बुद्धिं विनाशय ’ के समय देवी शत्रु को पाशबद्ध कर मुद्गर से उसके मस्तिष्क पर प्रहार कर रही है, ऐसी भावना करें।
* बगलामुखी के अन्य उग्र-प्रयोग वडवामुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी, भानुमुखी, वृहद्-भानुमुखी, जातवेदमुखी इत्यादि तंत्र ग्रथों मे वर्णित है,
समय व परिस्थिति के अनुसार प्रयोग करना चाहिये।
* बगला प्रयोग के साथ भैरव, पक्षिराज, धूमावती विद्या का ज्ञान व प्रयोग करना चाहिये।
* बगलामुखी उपासना पीले वस्त्र पहनकर, पीले आसन पर बैठकर करें।
गंधार्चन मे केसर व हल्दी का प्रयोग करें, स्वयं के पीला तिलक लगायें।
दीप-वर्तिका पीली बनायें,
पीत-पुष्प चढ़ायें, पीला नैवेद्य चढ़ावें,
हल्दी से बनी हुई माला से जप करें, अभाव मे रुद्राक्ष माला से जप करें या सफेद चन्दन की माला को पीली कर लें किन्तु तुलसी की माला पर जप नहीं करें।
महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इन्द्र के वज्र को स्तम्भित कर दिया था।
आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने गुरु श्रीमद्-गोविन्दपाद की समाधि मे विघ्न डालने पर रेवा नदी का स्तम्भन इसी विद्या के प्रभाव से किया था।
महामुनि निम्बार्क ने एक परिव्राजक को नीम के वृक्ष पर सूर्य के दर्शन इसी विद्या के प्रभाव से कराए थे।
इसी विद्या के कारण ब्रह्मा जी सृष्टि की संरचना मे सफल हुए।
श्री बगला शक्ति कोई तामसिक शक्ति नहीं है, बल्कि आभिचारिक कृत्यों से रक्षा ही इसकी प्रधानता है।
इस संसार मे जितने भी प्रकार के दुःख और उत्पात हैं, उनसे रक्षा के लिए इसी शक्ति की उपासना करना श्रेष्ठ होता है।
शत्रु विनाश के लिए जो कृत्या विशेष को भूमि मे गाड़ देते हैं, उन्हें नष्ट करने वाली महा-शक्ति श्रीबगलामुखी ही है।
शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप मे परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला ही है।
यदि एक बार आपने माँ बगलामुखी की साधना पूर्ण कर ली तो इस संसार मे ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते।
! ॐ सुरभ्यै नमः !
Proyog 2
व्यष्ठि रूप में शत्रुओ को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। पिताम्बराविद्या के नाम विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाकसिद्धि के लिये की जाती है।
बगलामुखी साधना : सरल अनुष्ठान विधि
बगलामुखी साधना स्तम्भन की सर्वश्रेष्ट साधना मानी जाती है.यह साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में अनुकूलता के लिए की जाती है.:-
शत्रु बाधा बढ़ गयी हो.
कोर्ट में केस चल रहा हो.
चुनाव लड़ रहे हों.
किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्ति के लिए .
सरल अनुष्ठान विधि :-
पीले रंग के वस्त्र पहनकर मंत्र जाप करेंगे .
आसन का रंग पिला होगा.
साधना कक्ष एकांत होना चाहिए , जिसमे पूरी नवरात्री आपके आलावा कोई नहीं जायेगा.
यदि संभव हो तो कमरे को पिला पुतवा लें.
बल्ब पीले रंग का रखें.
ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है,
साधनाकाल में प्रत्येक स्त्री को मातृवत मानकर सम्मान दें
हल्दी या पिली हकिक की माला से जाप होगा, यदि व्यवस्था न हो पाए तो रुद्राक्ष की माला से जाप कर सकते हैं.
उत्तर दिशा की ओर देखते हुए जाप करें.
साधना करने से पहले किसी तांत्रिक गुरु से बगलामुखी दीक्षा ले लेना श्रेष्ट होता है.
पहले दिन जाप से पहले हाथ में पानी लेकर कहे की " मै [अपना नाम लें ] अपनी [इच्छा बोले] की पूर्ति के लिए यह जाप कर रहा हूँ, आप कृपा कर यह इच्छा पूर्ण करें "
पहले गुरु मंत्र की एक माला जाप करें फिर बगला मंत्र का जाप करें.
अंत में पुनः गुरु मंत्र की एक माला जाप करें.
नौ दिन में कम से कम २१ हजार मन्त्र जाप करें. ज्यादा कर सकें तो ज्यादा बेहतर है.
अपने सामने माला या अंगूठी [जो आप हमेशा पहनते हैं ] को रख कर मन्त्र जप करेंगे तो वह मंत्रसिद्ध हो जायेगा और भविष्य मे रक्षाकवच जैसा कार्य करेगा.
ध्यान :-
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेदिम सिम्हासनो परिगताम परिपीत वर्णाम ,पीताम्बराभरण माल्य विभूषिताँगिम देवीम स्मरामि घृत मुद्गर वैरी जिह्वाम ||
मंत्र :-
|| ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं फट स्वाहा ||
विशेष :-
बगलामुखी प्रचंड महाविद्या हैं , कमजोर दिल के साधक और महिलाएं व् बच्चे बिना गुरु की अनुमति और सानिध्य के यह साधना न करें.
Proyo3
बगलामुखी mala mantra sidhi Proyog
jo image me hai
इसके प्रयोजन, मंत्र जप, हवन विधि एवं उपयुक्त सामान की जानकारी, सर्वजन हिताय, इस प्रकार है: उद्देश्य: धन लाभ, मनचाहे व्यक्ति से मिलन, इच्छित संतान की प्राप्ति, अनिष्ट ग्रहों की शांति, मुकद्दमे में विजय, आकर्षण, वशीकरण के लिए मंदिर में, अथवा प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी यंत्र के सामने इसके स्तोत्र का पाठ, मंत्र जाप, शीघ्र फल प्रदान करते हंै।

Friday, May 13, 2016

sahjan ke gun Ayurveda The Divine Power


कल्पना करिए।
एक ऐसा पेड़ जिसकी पत्तियों एवं फलियों में 300 से अधिक रोगों की रोकथाम के गुण, 92 विटामिन्स, 46 एंटी आक्सीडेंट, 36 दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हों, तो इसे पेड़ की जगह चमत्कार ही मानेंगे न। आपके इर्द-गिर्द यूं ही उगने वाले 'सहजन' में यह सभी गुण मिलते हैं।
इसकी खूबियां यहीं खत्म नहीं होतीं। चारे के रूप में इसकी हरी या सूखी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुने से अधिक और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। कुपोषण, एनीमिया (खून की कमी) के खिलाफ जंग में सर्वसुलभ और हर जगह पैदा होने वाला सहजन उपेक्षित है।
राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान (एनएचआरडीएफ) के उप निदेशक डा.रजनीश मिश्र के मुताबिक करीब पांच हजार साल पहले आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आधुनिक विज्ञान में वे साबित हो चुकी हैं। दुर्भाग्य से जिनको (आम आदमी) इसके गुणों को जानना चाहिए वही इससे अनजान हैं। डा.मिश्र के अनुसार इसका मूल स्थान हिमालय की तराई ही है। यही वजह है कि यहां जहां-तहां सहजन के पेड़ दिख जाते हैं। इसे दैवी चमत्कार ही कहेंगे कि दुनियां में जहां-जहां कुपोषण की समस्या है वहां सहजन का वजूद है। देश के अपेक्षाकृत प्रगतिशील दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है। साथ ही इसकी फलियों और पत्तियों का कई तरह से प्रयोग भी। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने पीकेएम-1 और पीकेएम-2 नाम से दो प्रजातियां विकसित की हैं। पीकेएम-1 यहां के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुकूल भी है। इच्छुक किसानों को एनएचआरडीएफ बीज मुहैया कराने के साथ ही खेती के उन्नत तरीकों के बारे में भी बताएगा'
सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना
-विटामिन सी- संतरे से सात गुना।
-विटामिन ए- गाजर से चार गुना।
-कैलशियम- दूध से चार गुना।
-पोटेशियम- केले से तीन गुना।
-प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना।
🙏
सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है। गोरखपुर में राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान के उपनिदेशक रजनीश मिश्र ने बताया कि करीब पांच हजार वर्ष पूर्व आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आज के वैज्ञानिक युग में वे साबित हो चुकी हैं। सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है।