नवग्रह शांति मंत्र Navgrah Shanti Prayog (पाप ग्रह मुक्ति) by Dr Narayan Dutt Shrimali ji
Dr. Narayan Dutt Shrimali Dr. Narayan Dutt Shrimali (1933-1998) *Paramhansa Nikhileshwaranand ascetically *Academician *Author of more than 300 books Mantra Tantra Yantra Vigyan:#3 PART(NARAYAN / PRACHIN / NIKHIL-MANTRA VIGYAN) Rejuvenating Ancient Indian Spiritual Sciences - Narayan | Nikhil Mantra Vigyan formerly Mantra Tantra Yantra Vigyan is a monthly magazine containing articles on ancient Indian Spiritual Sciences viz.
Friday, April 21, 2017
नवग्रह शांति मंत्र Navgrah Shanti Prayog (पाप ग्रह मुक्ति) by Dr Narayan Dutt Shrimali ji
नवग्रह शांति मंत्र Navgrah Shanti Prayog (पाप ग्रह मुक्ति) by Dr Narayan Dutt Shrimali ji
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नवग्रह शांति मंत्र
Happy Birthday Param Pujya Sadgurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji 21 april
Mahakaal Mahima by Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali)
In this pravachan Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali) talks about how we can take control devtas by mantras and further he also gives mahakaal vivechan and the importance of 'Kaal' (samay) in our lives
Finally at the end gurudev declares that if he equal to Krishna and Buddha
Finally at the end gurudev declares that if he equal to Krishna and Buddha
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about what Siddhashram Questions,
Baglamukhi Jayanti,
Chinnmsta secret छिन्नमस्ता रहस्य,
Diksha significance,
Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji- Mahakali Sadhna,
Mahakaal Mahima
Thursday, March 16, 2017
sadhana for dukaan kee bikree adhik ho
दूकान की बिक्री अधिक हो-
१॰ “श्री शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दल निवासे
श्री महालक्ष्मी नमो नमः।
लक्ष्मी माई, सत्त की सवाई। आओ,
चेतो, करो भलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की
दुहाई। ऋद्धि-सिद्धि खावोगी, तो नौ नाथ
चौरासी सिद्धों की दुहाई।”
विधि- घर से नहा-धोकर दुकान पर जाकर अगर-
बत्ती जलाकर उसी से
लक्ष्मी जी के चित्र की
आरती करके, गद्दी पर बैठकर, १
माला उक्त मन्त्र की जपकर दुकान का लेन-देन
प्रारम्भ करें। आशातीत लाभ होगा।
२॰ “भँवरवीर, तू चेला मेरा। खोल दुकान कहा कर
मेरा।
उठे जो डण्डी बिके जो माल, भँवरवीर
सोखे नहिं जाए।।”
विधि- १॰ किसीशुभ रविवार से उक्त मन्त्र
की १० माला प्रतिदिन के नियम से दस दिनों में १००
माला जप कर लें। केवल रविवार के ही दिन इस
मन्त्र का प्रयोग किया जाता है। प्रातः स्नान करके दुकान पर
जाएँ। एक हाथ में थोड़े-से काले उड़द ले लें। फिर ११ बार
मन्त्र पढ़कर, उन पर फूँक मारकर दुकान में चारों ओर बिखेर
दें। सोमवार को प्रातः उन उड़दों को समेट कर किसी
चौराहे पर, बिना किसी के टोके, डाल आएँ। इस
प्रकार चार रविवार तक लगातार, बिना नागा किए, यह प्रयोग
करें।
२॰ इसके साथ यन्त्र का भी निर्माण किया जाता
है। इसे लाल स्याही अथवा लाल चन्दन से
लिखना है। बीच में सम्बन्धित व्यक्ति का नाम
लिखें। तिल्ली के तेल में बत्ती बनाकर
दीपक जलाए। १०८ बार मन्त्र जपने तक यह
दीपक जलता रहे। रविवार के दिन काले उड़द के
दानों पर सिन्दूर लगाकर उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर
उन्हें दूकान में बिखेर दें।
१॰ “श्री शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दल निवासे
श्री महालक्ष्मी नमो नमः।
लक्ष्मी माई, सत्त की सवाई। आओ,
चेतो, करो भलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की
दुहाई। ऋद्धि-सिद्धि खावोगी, तो नौ नाथ
चौरासी सिद्धों की दुहाई।”
विधि- घर से नहा-धोकर दुकान पर जाकर अगर-
बत्ती जलाकर उसी से
लक्ष्मी जी के चित्र की
आरती करके, गद्दी पर बैठकर, १
माला उक्त मन्त्र की जपकर दुकान का लेन-देन
प्रारम्भ करें। आशातीत लाभ होगा।
२॰ “भँवरवीर, तू चेला मेरा। खोल दुकान कहा कर
मेरा।
उठे जो डण्डी बिके जो माल, भँवरवीर
सोखे नहिं जाए।।”
विधि- १॰ किसीशुभ रविवार से उक्त मन्त्र
की १० माला प्रतिदिन के नियम से दस दिनों में १००
माला जप कर लें। केवल रविवार के ही दिन इस
मन्त्र का प्रयोग किया जाता है। प्रातः स्नान करके दुकान पर
जाएँ। एक हाथ में थोड़े-से काले उड़द ले लें। फिर ११ बार
मन्त्र पढ़कर, उन पर फूँक मारकर दुकान में चारों ओर बिखेर
दें। सोमवार को प्रातः उन उड़दों को समेट कर किसी
चौराहे पर, बिना किसी के टोके, डाल आएँ। इस
प्रकार चार रविवार तक लगातार, बिना नागा किए, यह प्रयोग
करें।
२॰ इसके साथ यन्त्र का भी निर्माण किया जाता
है। इसे लाल स्याही अथवा लाल चन्दन से
लिखना है। बीच में सम्बन्धित व्यक्ति का नाम
लिखें। तिल्ली के तेल में बत्ती बनाकर
दीपक जलाए। १०८ बार मन्त्र जपने तक यह
दीपक जलता रहे। रविवार के दिन काले उड़द के
दानों पर सिन्दूर लगाकर उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर
उन्हें दूकान में बिखेर दें।
Why is enlightenment necessary? Need to understand why you understand ?
✨आत्मज्ञान क्यों ज़रूरी है? अपनी आत्मा को क्यों समझने अनुभव करने की आवश्यकता है?✨
एक गर्भवती शेरनी को शिकारी ने गोली मार दी, मरने से पूर्व उसने नन्हें शेर को जन्म दिया, जिसे हिरणों के झुण्ड ने पाला। शेर स्वयं को हिरण समझता और वैसी ही क्रियाएँ करता। एक दिन एक युवा शेर की दहाड़ सुनकर हिरण के बच्चे भागने लगे उन्हें भागता देख शेर का बच्चा भी भागने लगा। युवा शेर को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने उस शेर के बच्चे को पकड़कर पूंछा हिरण के बच्चे भागे ये बात तो समझ आई। लेकिन तू मुझसे डरकर क्यूँ भाग रहा है। शेर का बच्चा बोला मैं एक हिरण हूँ और हमें शेर को देखकर प्राणरक्षा के लिए भागना सिखाया गया है।
युवा शेर उस शेर के बच्चे को लेकर जल के समीप पहुंचा और जल में उसका और अपना चेहरा दिखाते हुए बोला देखो तुम बिलकुल मेरी तरह एक शेर हो। और बोला मेरी तरह दहाड़ने की कोशिश करो और फ़िर वो शेर का बच्चा भो दहाड़ा और अपने स्वरूप का भान हुआ। सद्गुरु भी हमारे आत्मदर्पण में हमारे आत्मस्वरूप को दिखाते हैं, शक्तियां जो हमारे भीतर पहले से ही मौजूद हैं बस उनका परिचय करवा देते हैं।
आत्मा तो अभी भी हमारे और आपके अंदर है तभी तो हम लिख पा रहे है और आप ये मैसेज पढ़ पा रहे हैं। वरना बिन आत्मा के हम दोनों को कब का हमारे घरवाले श्मशान में जला चुके होते। बस अंतर यह है क़ि जीवित हम लोग शेर के बच्चे की तरह हैं स्वयं के स्वरूप से अंजान false identity( जो हम नहीं है उस परिचय ) के साथ जी रहे हैं, निज शक्तियों से अंजान हो विभिन्न शारीरिक मानसिक दुःख भोग रहे हैं। स्वयं को जानने के लिए ही परम् पूज्य गुरुदेव ने उपासना-साधना और आराधना का मार्ग बताया है।
Wednesday, June 15, 2016
durlabh yantra mala sadhana
कामदेव यंत्र
'काम' का तात्पर्य है क्रिया और यह क्रिया जब पूर्ण आवेश के साठ संपन्न की जाती है तो जीवन में कार्यों में सफलता प्राप्त होती है| कामदेव प्रेम और अनंग के देवता है और ये जीवन प्रेम-अनंग के साठ आनन्द पूर्वक जीते हुए अपने व्यक्तित्व में ओझ, अपनी शक्ति में वृद्धि के लिये ही बना है इस हेतु कामदेव साधना श्रेष्ठ साधना है| गृहस्थ व्यक्तियों के लिये कामदेव साधना वरदान स्वरुप है| जिसका मंत्र जप कर पुष्प का अर्पण कर पंचोपचार पूजन कर धारण किया जाये तो स्वाभाविक परिवर्तन प्रारम्भ हो जाते है| व्यक्ति में निराशा की भावना समाप्त हो जाती है| उसमें प्रेम रस का अवगाहन प्रारम्भ हो जाता है| यह प्रेम गृहस्थ जीवन के प्रति भी हो सकता है, इष्ट के प्रति भी हो सकता है, गुरु के प्रति भी हो सकता है| श्रेष्ठ व्यक्तित्व के लिये एक ही उपाय, धारण कीजिये कामदेव यंत्र| यह यंत्र किसी भी शुक्रवार को प्रातः पूजन कर, कामदेव यंत्र पर सुगन्धित पुष्पों की माला अर्पण कर एक माला मंत्र जप करें और इसे अपनी दायीं भुजा में बांध लें|
राजेश्वरी माला
जीवन में यदि विजय यात्रा प्राराम्ब करनी है, यदि सैकड़ो हजारों के दिल पर छा जाना है, राजनीति के क्षेत्र में शिखर को चूम लेता है या आकर्षण सम्मोहन की जगमगाहट से अपने आप को भर लेता है, यदि गृहस्थ सुख में न्यूनता है, और गृहस्थ जीवन को उल्लासमय बनाना है अथवा पूर्ण पौरुष प्राप्त कर जीवन में आनन्द का उपभोग करना है तो भगवती षोडशी की वरदान स्वरुप इस 'राजेश्वरी माला' को अवश्य धारण करें और आनन्द प्राप्त करें, जीवन का|
शुक्रवार की रात्रि को पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाएं| अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर पीले वस्त्र बिच्चा कर उस पर गुरु चित्र स्थापित कर, सर्वप्रथम संक्षिप्त गुरु पूजन करें तथा गुरु से साधना में सफलता की प्रार्थना करें| इसके पश्चात गुरु चित्र के समक्ष किसी पात्र में राजेश्वरी माला का पूजन कुंकुम, अक्षत इत्यादि से करें और दूध का बना प्रसाद अर्पित करें| इसके पश्चात राजेश्वरी माला से निम्न मंत्र की ३ माला मंत्र जप संपन्न करें|
साबर धनदा यन्त्र
क्या आपको मालूम है कि साबर मन्त्रों के जप की अजीबो गरीब व अटपटी शब्द रचना होते हुए भी ये अत्यंत प्रभावी और तीक्ष्ण होते है? क्या आपको ज्ञात है, कि साबर साधनाओं में विशेष तंत्र क्रियाओं या कर्मकांड आदि की आवश्यकता नहीं होती? क्या आपको मालूम है, कि ये साबर मंत्र नाथ सम्प्रदाय के योगियों और कई बंजारों एवं आदिवासियों के पास आज भी सुरक्षित है? क्या आपको मालूम है कि साबर पद्धतियों से तैयार की गई ऐसी कई तांत्रोक्त वस्तुएं हें, जो लक्ष्मी और धनागम के लिए अचूक टोटका होती हें? "साबर धनदा यंत्र" साबर मन्त्रों से सिद्ध किया गया ऐस्सा ही यंत्र है, जो आपकी आर्थिक उन्नति के लिए पूर्ण प्रभावी है|
स्थापन विधि - इस यंत्र को प्राप्त कर किसी भी बुधवार के दिन अपने घर में काले कपडे में लपेट कर खूँटी पर टांग दें| तीन माह बाद उसे किसी निर्जन स्थान में फेक दें| यह धनागम का कारगर टोटका है|
गणपति यंत्र
भगवान गणपति सभी देवताओं में प्रथम पूज्य देव हें| इनके बिना कोई भी कार्य, कोई भी पूजा अधूरी ही मणी जाती हें| समस्त विघ्नों का नाश करने वाले विघ्नविनाशक गणेश की यदि साधक पर कृपा बनी रहे, तो उसके घर में रिद्धि-सिद्धि, जो कि गणेश जी की पत्नियां हें, और शुभ-लाभ जो कि इनके पुत्र हें, का भी स्थायित्व होता है| ऐसा होने से साधक के घर में सुख, सौभाग्य, समृद्धि, मंगल, उन्नति, प्रगति एवं समस्त शुभ कार्य होते ही रहते हें| इस प्रकार का यंत्र अपने आप में भगवान गणपति का प्रतीक है, और इस प्रकार यंत्र प्रत्येक साधक के पूजा स्थान में स्थापित होना ही चाहिए| बाद में यदि किसी प्रकार की साधना से पूर्व गणपति पूजन करना हो तो इसिस यंत्र का संक्षिप्त पूजन कर लेता होता है| इस यंत्र को नित्य धुप आदि समर्पित करने की भी आवश्यकता नहीं हें| मात्र इसके प्रभाव से ही घर में प्रगति, उन्नति की स्थिति होने लगती है| घर में इस यन्त्र का होना ही भगवान गणपति की कृपा का द्योतक है, सुख, सौभाग्य, शान्ति का प्रतीक है|
स्थापन विधि - इस यंत्र को प्राप्त कर गणपति चित्र के सामने साठ जोड़कर 'गं गणपतये नमः' का मात्र दस मिनिट जप करें और गणपति से पूजा स्थान में यंत्र रूप में निवास करने की प्रार्थना करें|इसके पश्चात यंत्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दें| अनुकूलता हेतु नित्या यंत्र के समक्ष हाथ जोड़कर नमस्कार करें|
कनकधारा यन्त्र
वर्त्तमान सामाजिक परिवेश के अनुसार जीवन के चार पुरुषार्थों में अर्थ ही महत्ता सर्वाधिक अनुभव होती है, परन्तु जब भाग्य या प्रारब्ध के कारण जीवन में अर्थ की न्यूनता व्याप्त हो, तो साधक के लिए यह आवश्यक हो जाता है, कि वह किसी दैविक सहायता का सहारा लेकर प्रारब्ध के लेख को बदलते हुए उसके स्थान पर मनचाही रचना करे| कनकधारा यंत्र एक ऐसा अदभुत यंत्र है, जो गरीब से गरीब ब्यक्ति के लिए भी, धन के स्त्रोत खोल देता है| यह अपने आपमें तीव्रतम स्वर्नाकर्षण के गुणों को समाविष्ट किए हुए है| लक्ष्मी से संभंधित सभी ग्रंथों में इसकी महिमा गाई गई है| शंकराचार्य ने भी निर्धन ब्राह्मणी के घर स्वर्ण वर्षा हेतु इसी यंत्र की ही चमत्कारिक शक्तियों का प्रयोग किया था|
स्थापन विधि - साधक को चाहिए कि इस यंत्र को किसी भी बुधवार को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें| नित्य इसका कुंकुम, अक्षत एवं धुप से पूजन कर इसके समक्ष 'ॐ ह्रीं सहस्त्रवदने कनकेश्वरी शीघ्रं अतार्व आगच्छ ॐ फट स्वाहा' मंत्र का २१ बार जप करें| ऐसा ३ माह तक करें, फिर यंत्र को तिजोरी में रख लें|
ज्वालामालिनी यंत्र
ज्वालामालिनी शक्ति की उग्ररूपा देवी हें, परन्तु अपने साधक के लिए अभायाकारिणी हें| इनकी साधना मुख्य रूप से उन साधकों द्वारा की जाती हें, जिससे वे शक्ति संपन्न होकर पूर्ण पौरुष को प्राप्त कर सकें| ज्वालामालिनी की पूजा साधना गृहस्थों के द्वारा भूत-प्रेत बाधा, तंत्र बाधा के लिए, शत्रुओं के लिए, शत्रुओं द्वारा किए गए मूठ आदि प्राणघातक प्रयोगों को समाप्त करने के लिए की जाती हें|
साधना विधान - इसको आप मंगलवार या अमावस्या की रात्रि को प्रारम्भ करें| यह तीन रात्री की साधना है| सर्वप्रथम गुरु पूजन संपन्न करें, उसके पश्चात यंत्र का पूजन कुंकुम, अक्षत एवं पुष्प से करें और धुप दिखाएं| फिर किसी भी माला से निम्न मंत्र का ७ माला जप करें -
मंत्र - || ॐ नमो भगवती ज्वालामालिनी सर्वभूत संहारकारिके जातवेदसी ज्वलन्ती प्रज्वालान्ति ज्वल ज्वल प्रज्वल हूं रं रं हूं फट ||
साधना के तीसरे दिन यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें और जब भी अनुकूलता चांहे, ज्वालामालिनी मंत्र की ३ माला मंत्र जप अवश्य कर लें|
भाग्योदय लक्ष्मी यंत्र
जीवन में सौभाग्य जाग्रत करने का निश्चित उपाय, घर एवं व्यापार स्थल पर बरसों बरस स्थापित करने योग्य, सभी प्रकार की उन्नति में सहायक ... नवरात्रि के चैत्यन्य काल में मंत्रसिद्ध एवं प्राण प्रतिष्ठित, प्रामाणिक एवं पूर्ण रूप से शास्त्रोक्त विधि विधान युक्त ...
जीवन में भाग्योदय के अवसर कम ही आते हें, जब कर्म का सहयोग गुरु कृपा से होता है तो अनायास भाग्य जाग्रत हो जाता है| जहां भाग्य है, वहां लक्ष्मी है और वहीँ आनंद का वातावरण है| आप इस यंत्र को अवश्य स्थापित करें|
गृह क्लेश निवृत्ति यंत्र
जिस तरह आज शिक्षा बढ़ती जा रही है, जागरूकता बढ़ती जा रही है, उसी दर से मानवीय मूल्यों में वृद्धि नहीं हो रही है| यही कारण है कि आज पति और पत्नी, दोनों पढ़े-लिखे और शिक्षित होने के बावजूद भी एक दूसरे से प्रेमपूर्ण सम्बन्ध दीर्घ काल तक बनाए नहीं रख पाते हैं| शहरी जीवन में घरेलु तनाव एक आम बात सी हो चुकी है| पति कुछ और सोचता है तो पत्नी कुछ और ही उम्मीदें बांधे रहती है, उसकी कुछ और ही दिनया होती है| पति-पत्नी एक गाडी के दो पहिये होते हैं, दोनों में असंतुलन हुआ, तो असर पुरे जीवन पर पड़ता है और आपसी क्लेश का विपरीत प्रभाव बच्चों के कोमल मन पर पड़ता है, जिससे उनका विकास क्रम अवरुद्ध हो जाता है| यदि पति-पत्नी में आपसी समझ न हो, तो भाई-बंधू या रिश्तेदार, अन्य सम्बन्धियों के कारण संयुक्त परिवार में आये दिन नित्य क्लेश की स्थिति बनी रहती है| इस प्रकार के घरेलू कलह का दोष किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता, कई बार भूमि दोष, स्थान दोष, गृह दोष, भाग्य दोष तथा अशुभ चाहने वाले शत्रुओं के गुप्त प्रयास भी सम्मिलित रहते हैं| कारन कुछ भी हो, इस यंत्र का निर्माण ही इस प्रकार से हुआ है कि मात्र इसके स्थापन से वातावरण में शांति की महक बिखर सके, संबंधों में प्रेम का स्थापन हो सके और लढाई-झगड़ों से मुक्ति मिले तथा परिवार के प्रत्येक सदस्य की उन्नति हो|
साधना विधान
किसी मंगलवार के दिन इस यंत्र को स्नान करने के पश्चात प्रातः काल अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें| नित्य प्रातः यंत्र पर कुंकुम व् अक्षत चढ़ाएं तथा 'ॐ क्लीं क्लेश नाशाय क्लीं ऐं फट' मंत्र का ५ बार उच्चारण करें, तीन माह तक ऐसा करें, उसके बाद यंत्र को जल में विसर्जन कर दें|
सुमेधा सरस्वती यन्त्र
क्या आपका बच्चा पढ़ाई एवं स्मरण शक्ति में कमजोर हो रहा है? किसी आकस्मिक आघात अथवा पारिवारिक की प्रतिकूलता के कारण बच्चे की मस्तिष्क नाड़ियों पर अत्याधिक खिंचाव उत्पन्न हो जाता है| बच्चे का कोमल मस्तिष्क इस प्रतिकूलता को झेल नहीं पाता, और धीरे धीरे मंद होता जाता है, बच्चा चिडचिडा हो जाता है, हर कार्य में विरोध करना उसकी आदत बन जाती, किसी भी रचनात्मक कार्य में उसका मन नहीं लगता, पढ़ाई से उसकी अरुचि हो जाती है, उसमें आतंरिक रूप से किसी कार्य में सफल होकर आगे बढ़ने की ललक समाप्त हो जाती है और बच्चा एक सामान्य बच्चे की तरह रह जाता है| ऐसा बच्चा आगे चलकर किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता| इसलिए अभी से उसका मानसिक विकास आवश्यक है, और यह हो सकता है, उसके मस्तिष्क तंतुओं को अतिरिक्त शक्ति/ऊर्जा प्रदान करने से, जो कि दीक्षा द्वारा हो सकता है अथवा विशेष रूप से निर्मित किये गए इस प्राण-प्रतिष्ठित मंत्रसिद्ध 'सुमेधा सरस्वती यंत्र' द्वारा| इस प्रकार के यंत्र १६ वर्ष से कम आयु के बालक/बालिकाओं/किशोरों के लिए ही विशेष फलदायी होंगे|
धारण विधि
इस यंत्र को प्राप्त कर अपने सामने किसी पात्र में रखकर उसके समक्ष दस मिनिट 'ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमो नमः' का मानसिक जप करें| इस प्रकार तीन दिन तक नित्य प्रातःकाल जप करें| तीसरे दिन यंत्र को काले या लाल धागे में बच्चे के गले में पहना दें|
महामृत्युंजय माला
कई बार ऐसी स्थितियां जीवन में आ जाती हैं, जब प्राणों पर संकट बन आता है - इसका कारण कोई भी हो सकता है, किसी षडयंत्र अथवा साजिश का शिकार होना, किसी भयंकर रोग से ग्रसित होना आदि| भगवान शिव को संहारक देवता माना गया है और मृत्यु पर भी विजय प्राप्त करने के कारण मृत्युंजय कहा गया है| अपने साधक के प्राणों पर संकट से भगवान महामृत्युंजय अवश्य ही रक्षा करते हैं, यदि प्रामाणिक रूप से उनकी साधना संपन्न कर ली जाती है तो इस यंत्र प्रयोग द्वारा समस्त प्रकार के भय - राज्य भय, शत्रु भय, रोग भय आदि सभी शून्य हो जाते हैं|
इस यंत्र को किसी सोमवार के दिन पीले कागज़ अथवा कपडे पर लाल स्याही से अंकित करें| यंत्र में जिस पर अमुक शब्द आया है, वहां अपना नाम लिखें| यदि यह प्रयोग आप किसी अन्य के लिए कर रहे हों, तो उसका नाम लिखें| यंत्र के चारों कोनों पर त्रिशूल अंकित है, वे प्रतिक हैं इस बात का कि चरों दिशाओं से भगवान् शिव साधक की रक्षा कर रहे हैं| यंत्र के चारों कोनों पर काले तिल की एक-एक ढेरी बनाएं| प्रत्येक ढेरी पर एक-एक 'पंचमुखी रुद्राक्ष' स्थापित करें| ये चार रुद्राक्ष भगवान शिव की चार प्रमुख शक्तियां हैं| इसके पश्चात 'महामृत्युंजय माला' से निम्न महामृत्युंजय मंत्र की ५ मालाएं संपन्न करें -
तिब्बती धन प्रदाता लामा यंत्र
दिव्यतम वस्तुएं अपनी उपस्थिति की पहचान करा ही देती हैं... इस के लिए कहने की आवश्यकता नहीं होती, वह तो अपनी उपस्थिति से, अपना सुगंध से ही आस पास के लोगों को एहेसास करा देती है, अपने होने का ...
उत्तम कोटि के मंत्रसिद्ध प्राण प्रतिष्ठित दिव्या यंत्रों के लिए भी किसी विशेष साधना की आवश्यकता नहीं होती| ऐसे यंत्र तो स्वयं ही दिव्या रश्मियों के भण्डार होते हैं, जिनसे रश्मियां स्वतः ही निकल कर संपर्क में आने वाले व्यक्ति एवं स्थान को चैतन्य करती रहती हैं| हिमालय की पहाड़ियों पर बसा तिब्बत देश क्षेत्रफल में छोटा अवश्य है परन्तु तंत्र क्षेत्र में जो उपलब्धियां तिब्बत के बौद्ध लामाओं के पास हैं, वे आम आदमी को आश्चर्यचकित कर देने और दातों तले उंगलियां दबा लेने के लिए पर्याप्त हैं| ऐसे ही एक सुदूर बौद्ध लामा मठ से प्राप्त गोपनीय पद्धतियों एवं मन्त्रों से निर्मित व् अनुप्राणित यह यंत्र साधक के आर्थिक जीवन का कायाकल्प करने के लिए पर्याप्त है|
इस यंत्र के स्थापन से तिब्बती लामाओं की धन-देवी का वरद हस्त साधक के घर को धन-धान्य, समृद्धि से परिपूर्ण कर देता है, फिर अभाव उसके जीवन में नहीं रहते, ऋण का बोझ उसके सर से हट जाता हैं और उसे किसी के आगे हाथ नहीं पसारने पड़ते|
किसी रविवार की रात्रि को यह यंत्र लाल कपडे में लपेट कर 'ॐ मनिपदमे धनदायै हुं फट' मंत्र का ११ बार उच्चारण कर मौली से बांध दें, फिर इसे अपने घर की तिजोरी में रख दें| इससे निरन्तर अर्थ-वृद्धि होगी|
राज्य बाधा निवारण यंत्र
यदि कोई व्यक्ति मुकदमें में फस जाए, क्र्त्काचाहरी के चक्कर लगाने में फस जाए, तो उसका हंसता-खेलता जीवन बिल्कुल मृतप्राय हो जाता है, जीवन छलनी-छलनी हो जाता है.. और ऐसी स्थिति आ जाती हैं कि व्यक्ति जीवन को समाप्त कर देने की सोचने लग जाता हैं| परिश्रम से इकट्ठी की गई जमा पूंजी पानी की तरह बहने लगती हैं|
आपको न्याय मिल सके, मुकदमें में सफलता प्राप्त हो सके, तथा इस उलझन से आपको छुटकारा मिल असके, इसी दृष्टि से इस यंत्र का निर्माण किया गया हैं| अपने पूजा स्थान में स्थापित कर, गुरुदेव का ध्यान करते हुए इस यंत्र का नित्य प्रातः काल पूजन करें| तीन माह पश्चात यंत्र को जल में विसर्जित कर दें|
महाकाल माला
भगवान् शिव की तीव्रता का अनुभव हर उस व्यक्ति को होता है, जो काल के ज्वार भाटे का अनुभव करता हैं, इन क्षणों में व्यक्ति किसी भी अन्य पर विश्वास नहीं करता, वह निर्भर होता है, तो मात्र स्वयं पर या काल पर, लेकिन जो समर्थ व्यक्ति होते हैं, वे काल पर भी निर्भर नहीं होते, अपितु अपने साधनात्मक बल से काल को अपने अनुसार चलने पर बाध्य कर देते हैं| 'महाकाल माला' भी ऐसी ही अद्वितीय माला हैं, जिसे धारण करके साधक अपने मार्ग की रुकावट को धकेल कर हटा सकता है, बाधाओं को पैर की ठोकरों से उड़ा सकता है| आप इसे सवा माह तक धारण करने के उपरांत नदी में विसर्जित कर दें तथा नित्य भगवान् शिव का ध्यान मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का जप करें|
सिद्धि प्रदायक तारा यंत्र
'साधकानां सुखं कन्नी सर्व लोक भयंकरीम' अर्थात भगवती तारा तीनों लोकों को ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हैं, साधकों को सुख देने वाली और सर्व लोक भयंकरी हैं| तारा की साधना की श्रेष्ठता और अनिवार्यता का समर्थन विशिष्ठ, विश्वामित्र, रावण, गुरु गोरखनाथ व अनेक ऋषि मुनियों ने एक स्वर में किया हैं| 'संकेत चंद्रोदय' में शंकाराचार्य ने तारा-साधना को ही जीवन का प्रमुख आधार बताया है| कुबेर भी भगवती तारा की साधना से ही अतुलनीय भण्डार को प्राप्त कर सके थे| तारा साधना अत्यंत ही प्राचीन विद्या है, और महाविद्या साधना होने की बावजूद भी शीघ्र सिद्ध होने वाली है, इसी कारण साधकों के मध्य तारा-यंत्र के प्रति आकर्षण विशेष रूप से रहता है|
वर्त्तमान समय में ऐश्वर्य और आर्थिक सुदृढ़ता ही सफलता का मापदण्ड है, पुण्य कार्य करने के लिए भी धन की आवश्यकता है ही, इसीलिए अर्थ को शास्त्रों में पुरुषार्थ कहा गया है| साधकों के हितार्थ शुभ मुहूर्त में कुछ ऐसे यंत्रों की प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपने घर में स्थापित कर कुछ दिनों में ही इसके प्रभाव को अनुभव कर सकता है, अपने जीवन में सम्पन्नता और ऐश्वर्य को साकार होते, आय नए स्त्रोत निकलते देख सकता है|
आपदा उद्धारक बटुक भैरव यंत्र
किसी भी शुभ कार्य में, चाहे वह यज्ञ हो, विव्वः हो, शाक्त साधना हो, तंत्र साधना हो, गृह प्रवेश अथवा कोई मांगलिक कार्य हो, भैरव की स्थापना एवं पूजा अवश्य ही की जाती है, क्योंकि भैरव ऐसे समर्थ रक्षक देव है, जो कि सब प्रकार के विघ्नों को, बाधाओं को रोक सकते हैं, और कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाता है| आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र स्थापित करने के निम्न लाभ हैं -
- व्यक्ति को मुकदमें में विजय प्राप्त होती है|
- समाज में उसके मां-सम्मान और पौरुष में वृद्धि होती है|
- किसी भी प्रकार की राज्य बाधा, जैसे प्रमोशन अथवा ट्रांसफर में आ रही बाधाओं से निवृत्ति प्राप्त होती है|
- आपके शत्रु द्वारा कराया गया तंत्र प्रयोग समाप्त हो जाता है|
यदि आपके जीवन में उपरोक्त प्रकार की बाधाएं लगातार आ रही हों, और आप कई प्रकार के उपाय कर चुके है, इसके बावजूद भी आपकी आपदा समाप्त नहीं हो रही है, तो आपको आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र अवश्य ही स्थापित करना चाहिए| इस यंत्र को स्थापित कर बताई गई लघु विधि द्वारा पुजन करने मात्र से ही आपकी आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं| इस यंत्र के लिए किसी विशेष पूजन क्रम की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे अमृत योग, शुभ मुहूर्त में सदगुरुदेव द्वारा बताई गई विशेष विधि द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित किया गया है|
स्थापन विधि - बटुक भैरव यंत्र को किसी भी षष्ठी अथवा बुधवार को रात्रि में काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर कुंकुम, अक्षत, धुप से संक्षिप्त पूजन कर लें| इसके पश्चात पूर्ण चैतन्य भाव से निम्न मंत्र का १ घंटे तक जप करें|
उपरोक्त मंत्र का यंत्र के समक्ष ७ दिन तक लगातार जप करने के पश्चात यंत्र को किसी जल-सरोवर में विसर्जीत कर दें| कुछ ही दिनों में आपकी समस्त आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जायेगी|
जगदम्बा यंत्र
आज जब जीवन बिल्कुल असुरास्खित बन गया है, पग-पग पर संकट, और खतरे मुंह बाए खड़े हैं, तो अपनी प्राण रक्षा अत्यंत आवश्यक हो जाती है| यदि किसी शत्रु अथवा किसी आकस्मिक दुर्घटना से जान का भय हो, तो व्यक्ति का जीवन चाहे कितना ही धन-धान्य से पूरित हो, उसका कोई भी अर्थ नहीं| प्रत्येक व्यक्ति अपनी ओर से अपनी सुरक्षा की ओर से सचेष्ट रहता ही है, परन्तु दुर्घटनाएं बिना सूचना दिए आती हैं| ऐसी स्थिति में दैवी सहायता या कृपा ही एक मात्र उपाय शेष रहता है|
ज्योतिषीय दृष्टि से दुर्घटना का कारण होता है, कि अमुक व्यक्ति अमुक समय पर अमुक स्थान पर उपस्थित हो ही| परन्तु ग्रहों के प्रभाव से यदि दुर्घटना किसी विशेष स्थान पर होनी ही है, परन्तु यदि व्यक्ति उस विशेष क्षण में उस स्थान पर उपस्थित न होकर समय थोडा आगे पीछे हो जाए, तो उस दुर्घटना से बच सकता है| ग्रहों का प्रभाव ऐसा होता है, कि अपने आप ही उस विशेष समय में व्यक्ति को निश्चित दुर्घटना स्थल की ओर खीचता ही है, परन्तु जगदम्बा यंत्र एक ऐसा उपाय है, जो ग्रहों के इस क्रुप्रभाव को क्षीण कर देता है| इस यंत्र को सिर्फ अपने पूजा स्थान में स्थापित ही करना है| और नित्य धुप, दीपक दिखाकर पुष्प अर्पित करें|
तंत्र बाधा निवारक वीर भैरव यंत्र
तंत्र की सैकड़ों-हजारों विधियां हैं, परन्तु जितनी तीव्र और अचूक भैरव या भैरवी शक्ति होती है, उतनी अन्य कोई नहीं होती| वीर भैरव शिव और पारवती के प्रमुख गण हैं, जिनको प्रसन्न कर मनोवांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है| मूलतः इस साधना को गृहस्थ जीवन को वीरता से जीने के लिए संपन्न किया जाता है| वीरता का अर्थ है प्रत्येक बाधा, समस्या, अड़चन और परिस्थिति को अपने नियंत्रण में लेकर, उस परिस्थिति पर पूर्ण वर्चस्व स्थापित करते हुए, वीरता से जूझते हुए विजय प्राप्त करने की क्रिया| यही वीरता वीर भैरव-यंत्र को घर में स्थापित करने पर प्राप्त होने लगती है| गृहस्थ जीवन सुख, शान्ति और निर्विघ्न रूप से गतिशील होता है| समस्याओं पर हावी होते हुए भी पूर्ण आनंदयुक्त बने रहना - यही वीर - भाव है| मुख्यतः इस साधना को तंत्र बाधा, मूठ आदि को समाप्त करने के लिए किया जाता है|
सुदर्शन चक्र
समस्त प्रकार की आपदाओं, विपत्तियों, बाधाओं, कष्टों, अकाल मृत्यु निवारण तथा परिवार के समस्त सदस्यों की पूर्ण सुरक्षा हेतु! भगवान् कृष्ण ने सुदर्शन चक्र धारण किया और अपने शत्रुओं का पूर्ण रूप से विनाश कर दिया था| सुदर्शन चक्र का तात्पर्य है वह शक्ति चक्र, जिसे धारण कर साधक विशेष ऊर्जा युक्त हो जाता है और जीवन की समस्याओं से लड़ने की सहज क्षमता आ जाती है| कृष्ण मन्त्रों से सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठा युक्त यह सुदर्शन चक्र कृष्ण को अपने भीतर धारण करने के सामान ही है| जिस घर में सुदर्शन चक्र होता है वह घर भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्त हो जाता है, साधक में तीव्र आकर्षण शक्ति आने लगती है जो उसे निर्भय बनाती है|
स्थापन विधि - किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन प्रातः ७:३६ से ८:२४ की बीच गुरु पूजन एवं कृष्ण पूजन संपन्न कर, गुरु चित्र के सामने सुदर्शन चक्र रख दे और उस पर कुंकुम, अक्षत अर्पित करें| फिर दायें हाथ की मुट्ठी में सुदर्शन चक्र लेकर 'क्लीं कृष्णाय नमः' मंत्र का १०८ बार जा करें तथा चक्र को पुनः अपने पूजा स्थान में रख दें| जब भी कोई विशेष कार्य के लिए जाएँ, इस चक्र को जेब में रखें| कार्य में सफलता अवश्य प्राप्त होगी|
आदित्य सूर्य यंत्र
मनुष्य का शरीर अपने आपमें सृष्टि के सारे क्रम को समेटे हुए है, और जब यक क्रम बिगड़ जाता है, तो शरीर में दोष उत्पन्न होते हैं, जिसके कारण व्याधि, पीड़ा, बीमारी का आगमन होता है, इसके अतिरिक्त शरीर की आतंरिक व्यवस्था के दोष के कारण मन के भीतर दोष उत्पन्न होते हैं, जो कि मानसिक शक्ति, इच्छा की हनी पहुंचाते हैं, व्यक्ति की सोचने-समझाने की शक्ति, बुद्धि क्षीण होती हैं, इन सब दोषों का नाश सूर्य तत्व को जाग्रत किया जा सकता है| क्या कारन है कि एक मनुष्य उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है और एक व्यक्ति पुरे जीवन सामान्य ही बना रहता हैं दोनों में भेद शरीर के भीतर जाग्रत सूर्य तत्व का है, नाभि चक्र, सूर्य चक्र का उदगम स्थल है, और यह अचेतन मन के संस्कार तथा चेतना का प्रधान केंद्र है, शकरी का स्रोत बिंदु है| साधारण मनुष्यों में यह तत्व सुप्त होता है, न तो इनकी शक्ति का सामान्य व्यक्ति को ज्ञान होता है और न ही वह इसका लाभ उठा पाता है| इस तत्व को अर्थात्भीटर के मणिपुर सूर्य चक्र को जाग्रत करने के लिए बाहर के सूर्य तत्व की साधना आवश्यक है, बाहर का स्रुया अनंत शक्ति का स्रोत है, और इसको जब भीतर के सूर्य चक्र से जोड़ दिया जाता है, तो साधारण मनुष्य भी अनंत मानसिक शक्ति का अधिकारी बन जाता है, और जब यह तत्व जाग्रत हो जाता है, तो बीमारी, पीड़ा, बाधाएं उस मनुष्य के पास आ ही नहीं सकती हैं|
स्थापन विधि - रविवार के दिन साधक प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठाकर स्नान कर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर लें| उसके पश्चात पूर्व दिशा की ओर मुख कर एक ताम्बे के पात्र में शुद्ध जल भर उसमें आदित्य सूर्य यंत्र रख दें| इसके पश्चात निम्न मंत्र की १ माला जप करें| मंत्र - 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः'| मंत्र जप के पश्चात पात्र में सूर्य यंत्र निकाल कर जल सूर्य को अर्घ्य कर दें| ऐसा चार रविव्वर करने के पश्चात सूर्य यंत्र को जल में समर्पित कर दें|
पारद मुद्रिका
हमारे शात्रों में पारद को पूर्ण वशीकरण युक्त पदार्थ माना है, यदि किसी प्रकार से पारद की अंगूठी बन जाए और कोई व्यक्ति इसे धारण कर लें, तो यह अपने आप में अलौकिक और महत्वपूर्ण घटना मानी जाती हैं| सैकड़ों हाजारों साधकों के आग्रह पर पारद मुद्रिका का निर्माण किया गया है| इस मुद्रिका को आसानी से किसी भी हाथ में या किसी भी उंगली धारण किया जा सकता है, क्योंकि यह सभी प्रकार के नाप की बनाई गई है| जब पारद मुद्रिका का निर्माण हो जाता है, तब इसे विशेष मन्त्रों से मंत्र सिद्ध किया जाता है, वशीकरण मन्त्रों से सम्पुटित बनाया जाता है, सम्मोहन मन्त्रों से सम्पुटित किया जाता है, और चैतन्य मन्त्रों से इसे सिद्ध किया जाता है| आज के युग में यह अलौकिक तथ्य है, यह अद्वितीय मुद्रिका है, तंत्र के क्षेत्र में सर्वोपरि है, जिससे हमारा जीवन, सहज, सुगम, सरल और प्रभावयुक्त बन जाता है|
'काम' का तात्पर्य है क्रिया और यह क्रिया जब पूर्ण आवेश के साठ संपन्न की जाती है तो जीवन में कार्यों में सफलता प्राप्त होती है| कामदेव प्रेम और अनंग के देवता है और ये जीवन प्रेम-अनंग के साठ आनन्द पूर्वक जीते हुए अपने व्यक्तित्व में ओझ, अपनी शक्ति में वृद्धि के लिये ही बना है इस हेतु कामदेव साधना श्रेष्ठ साधना है| गृहस्थ व्यक्तियों के लिये कामदेव साधना वरदान स्वरुप है| जिसका मंत्र जप कर पुष्प का अर्पण कर पंचोपचार पूजन कर धारण किया जाये तो स्वाभाविक परिवर्तन प्रारम्भ हो जाते है| व्यक्ति में निराशा की भावना समाप्त हो जाती है| उसमें प्रेम रस का अवगाहन प्रारम्भ हो जाता है| यह प्रेम गृहस्थ जीवन के प्रति भी हो सकता है, इष्ट के प्रति भी हो सकता है, गुरु के प्रति भी हो सकता है| श्रेष्ठ व्यक्तित्व के लिये एक ही उपाय, धारण कीजिये कामदेव यंत्र| यह यंत्र किसी भी शुक्रवार को प्रातः पूजन कर, कामदेव यंत्र पर सुगन्धित पुष्पों की माला अर्पण कर एक माला मंत्र जप करें और इसे अपनी दायीं भुजा में बांध लें|
मंत्र- || ॐ कामदेवाय विदमहे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नो अनंगः प्रचोदयात ||
राजेश्वरी माला
जीवन में यदि विजय यात्रा प्राराम्ब करनी है, यदि सैकड़ो हजारों के दिल पर छा जाना है, राजनीति के क्षेत्र में शिखर को चूम लेता है या आकर्षण सम्मोहन की जगमगाहट से अपने आप को भर लेता है, यदि गृहस्थ सुख में न्यूनता है, और गृहस्थ जीवन को उल्लासमय बनाना है अथवा पूर्ण पौरुष प्राप्त कर जीवन में आनन्द का उपभोग करना है तो भगवती षोडशी की वरदान स्वरुप इस 'राजेश्वरी माला' को अवश्य धारण करें और आनन्द प्राप्त करें, जीवन का|
शुक्रवार की रात्रि को पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाएं| अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर पीले वस्त्र बिच्चा कर उस पर गुरु चित्र स्थापित कर, सर्वप्रथम संक्षिप्त गुरु पूजन करें तथा गुरु से साधना में सफलता की प्रार्थना करें| इसके पश्चात गुरु चित्र के समक्ष किसी पात्र में राजेश्वरी माला का पूजन कुंकुम, अक्षत इत्यादि से करें और दूध का बना प्रसाद अर्पित करें| इसके पश्चात राजेश्वरी माला से निम्न मंत्र की ३ माला मंत्र जप संपन्न करें|
मंत्र: || ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं ||
सवा महीने तक माला धारण रखें इसके पश्चात माला को जल सरोवर में विसर्जित कर दें| जब भी अनुकूलता चाहे निम्न मंत्र का १५ मिनिट तक जप करें|साबर धनदा यन्त्र
क्या आपको मालूम है कि साबर मन्त्रों के जप की अजीबो गरीब व अटपटी शब्द रचना होते हुए भी ये अत्यंत प्रभावी और तीक्ष्ण होते है? क्या आपको ज्ञात है, कि साबर साधनाओं में विशेष तंत्र क्रियाओं या कर्मकांड आदि की आवश्यकता नहीं होती? क्या आपको मालूम है, कि ये साबर मंत्र नाथ सम्प्रदाय के योगियों और कई बंजारों एवं आदिवासियों के पास आज भी सुरक्षित है? क्या आपको मालूम है कि साबर पद्धतियों से तैयार की गई ऐसी कई तांत्रोक्त वस्तुएं हें, जो लक्ष्मी और धनागम के लिए अचूक टोटका होती हें? "साबर धनदा यंत्र" साबर मन्त्रों से सिद्ध किया गया ऐस्सा ही यंत्र है, जो आपकी आर्थिक उन्नति के लिए पूर्ण प्रभावी है|
स्थापन विधि - इस यंत्र को प्राप्त कर किसी भी बुधवार के दिन अपने घर में काले कपडे में लपेट कर खूँटी पर टांग दें| तीन माह बाद उसे किसी निर्जन स्थान में फेक दें| यह धनागम का कारगर टोटका है|
गणपति यंत्र
भगवान गणपति सभी देवताओं में प्रथम पूज्य देव हें| इनके बिना कोई भी कार्य, कोई भी पूजा अधूरी ही मणी जाती हें| समस्त विघ्नों का नाश करने वाले विघ्नविनाशक गणेश की यदि साधक पर कृपा बनी रहे, तो उसके घर में रिद्धि-सिद्धि, जो कि गणेश जी की पत्नियां हें, और शुभ-लाभ जो कि इनके पुत्र हें, का भी स्थायित्व होता है| ऐसा होने से साधक के घर में सुख, सौभाग्य, समृद्धि, मंगल, उन्नति, प्रगति एवं समस्त शुभ कार्य होते ही रहते हें| इस प्रकार का यंत्र अपने आप में भगवान गणपति का प्रतीक है, और इस प्रकार यंत्र प्रत्येक साधक के पूजा स्थान में स्थापित होना ही चाहिए| बाद में यदि किसी प्रकार की साधना से पूर्व गणपति पूजन करना हो तो इसिस यंत्र का संक्षिप्त पूजन कर लेता होता है| इस यंत्र को नित्य धुप आदि समर्पित करने की भी आवश्यकता नहीं हें| मात्र इसके प्रभाव से ही घर में प्रगति, उन्नति की स्थिति होने लगती है| घर में इस यन्त्र का होना ही भगवान गणपति की कृपा का द्योतक है, सुख, सौभाग्य, शान्ति का प्रतीक है|
स्थापन विधि - इस यंत्र को प्राप्त कर गणपति चित्र के सामने साठ जोड़कर 'गं गणपतये नमः' का मात्र दस मिनिट जप करें और गणपति से पूजा स्थान में यंत्र रूप में निवास करने की प्रार्थना करें|इसके पश्चात यंत्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दें| अनुकूलता हेतु नित्या यंत्र के समक्ष हाथ जोड़कर नमस्कार करें|
कनकधारा यन्त्र
वर्त्तमान सामाजिक परिवेश के अनुसार जीवन के चार पुरुषार्थों में अर्थ ही महत्ता सर्वाधिक अनुभव होती है, परन्तु जब भाग्य या प्रारब्ध के कारण जीवन में अर्थ की न्यूनता व्याप्त हो, तो साधक के लिए यह आवश्यक हो जाता है, कि वह किसी दैविक सहायता का सहारा लेकर प्रारब्ध के लेख को बदलते हुए उसके स्थान पर मनचाही रचना करे| कनकधारा यंत्र एक ऐसा अदभुत यंत्र है, जो गरीब से गरीब ब्यक्ति के लिए भी, धन के स्त्रोत खोल देता है| यह अपने आपमें तीव्रतम स्वर्नाकर्षण के गुणों को समाविष्ट किए हुए है| लक्ष्मी से संभंधित सभी ग्रंथों में इसकी महिमा गाई गई है| शंकराचार्य ने भी निर्धन ब्राह्मणी के घर स्वर्ण वर्षा हेतु इसी यंत्र की ही चमत्कारिक शक्तियों का प्रयोग किया था|
स्थापन विधि - साधक को चाहिए कि इस यंत्र को किसी भी बुधवार को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें| नित्य इसका कुंकुम, अक्षत एवं धुप से पूजन कर इसके समक्ष 'ॐ ह्रीं सहस्त्रवदने कनकेश्वरी शीघ्रं अतार्व आगच्छ ॐ फट स्वाहा' मंत्र का २१ बार जप करें| ऐसा ३ माह तक करें, फिर यंत्र को तिजोरी में रख लें|
ज्वालामालिनी यंत्र
ज्वालामालिनी शक्ति की उग्ररूपा देवी हें, परन्तु अपने साधक के लिए अभायाकारिणी हें| इनकी साधना मुख्य रूप से उन साधकों द्वारा की जाती हें, जिससे वे शक्ति संपन्न होकर पूर्ण पौरुष को प्राप्त कर सकें| ज्वालामालिनी की पूजा साधना गृहस्थों के द्वारा भूत-प्रेत बाधा, तंत्र बाधा के लिए, शत्रुओं के लिए, शत्रुओं द्वारा किए गए मूठ आदि प्राणघातक प्रयोगों को समाप्त करने के लिए की जाती हें|
साधना विधान - इसको आप मंगलवार या अमावस्या की रात्रि को प्रारम्भ करें| यह तीन रात्री की साधना है| सर्वप्रथम गुरु पूजन संपन्न करें, उसके पश्चात यंत्र का पूजन कुंकुम, अक्षत एवं पुष्प से करें और धुप दिखाएं| फिर किसी भी माला से निम्न मंत्र का ७ माला जप करें -
मंत्र - || ॐ नमो भगवती ज्वालामालिनी सर्वभूत संहारकारिके जातवेदसी ज्वलन्ती प्रज्वालान्ति ज्वल ज्वल प्रज्वल हूं रं रं हूं फट ||
साधना के तीसरे दिन यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें और जब भी अनुकूलता चांहे, ज्वालामालिनी मंत्र की ३ माला मंत्र जप अवश्य कर लें|
भाग्योदय लक्ष्मी यंत्र
जीवन में सौभाग्य जाग्रत करने का निश्चित उपाय, घर एवं व्यापार स्थल पर बरसों बरस स्थापित करने योग्य, सभी प्रकार की उन्नति में सहायक ... नवरात्रि के चैत्यन्य काल में मंत्रसिद्ध एवं प्राण प्रतिष्ठित, प्रामाणिक एवं पूर्ण रूप से शास्त्रोक्त विधि विधान युक्त ...
जीवन में भाग्योदय के अवसर कम ही आते हें, जब कर्म का सहयोग गुरु कृपा से होता है तो अनायास भाग्य जाग्रत हो जाता है| जहां भाग्य है, वहां लक्ष्मी है और वहीँ आनंद का वातावरण है| आप इस यंत्र को अवश्य स्थापित करें|
गृह क्लेश निवृत्ति यंत्र
जिस तरह आज शिक्षा बढ़ती जा रही है, जागरूकता बढ़ती जा रही है, उसी दर से मानवीय मूल्यों में वृद्धि नहीं हो रही है| यही कारण है कि आज पति और पत्नी, दोनों पढ़े-लिखे और शिक्षित होने के बावजूद भी एक दूसरे से प्रेमपूर्ण सम्बन्ध दीर्घ काल तक बनाए नहीं रख पाते हैं| शहरी जीवन में घरेलु तनाव एक आम बात सी हो चुकी है| पति कुछ और सोचता है तो पत्नी कुछ और ही उम्मीदें बांधे रहती है, उसकी कुछ और ही दिनया होती है| पति-पत्नी एक गाडी के दो पहिये होते हैं, दोनों में असंतुलन हुआ, तो असर पुरे जीवन पर पड़ता है और आपसी क्लेश का विपरीत प्रभाव बच्चों के कोमल मन पर पड़ता है, जिससे उनका विकास क्रम अवरुद्ध हो जाता है| यदि पति-पत्नी में आपसी समझ न हो, तो भाई-बंधू या रिश्तेदार, अन्य सम्बन्धियों के कारण संयुक्त परिवार में आये दिन नित्य क्लेश की स्थिति बनी रहती है| इस प्रकार के घरेलू कलह का दोष किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता, कई बार भूमि दोष, स्थान दोष, गृह दोष, भाग्य दोष तथा अशुभ चाहने वाले शत्रुओं के गुप्त प्रयास भी सम्मिलित रहते हैं| कारन कुछ भी हो, इस यंत्र का निर्माण ही इस प्रकार से हुआ है कि मात्र इसके स्थापन से वातावरण में शांति की महक बिखर सके, संबंधों में प्रेम का स्थापन हो सके और लढाई-झगड़ों से मुक्ति मिले तथा परिवार के प्रत्येक सदस्य की उन्नति हो|
साधना विधान
किसी मंगलवार के दिन इस यंत्र को स्नान करने के पश्चात प्रातः काल अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें| नित्य प्रातः यंत्र पर कुंकुम व् अक्षत चढ़ाएं तथा 'ॐ क्लीं क्लेश नाशाय क्लीं ऐं फट' मंत्र का ५ बार उच्चारण करें, तीन माह तक ऐसा करें, उसके बाद यंत्र को जल में विसर्जन कर दें|
सुमेधा सरस्वती यन्त्र
क्या आपका बच्चा पढ़ाई एवं स्मरण शक्ति में कमजोर हो रहा है? किसी आकस्मिक आघात अथवा पारिवारिक की प्रतिकूलता के कारण बच्चे की मस्तिष्क नाड़ियों पर अत्याधिक खिंचाव उत्पन्न हो जाता है| बच्चे का कोमल मस्तिष्क इस प्रतिकूलता को झेल नहीं पाता, और धीरे धीरे मंद होता जाता है, बच्चा चिडचिडा हो जाता है, हर कार्य में विरोध करना उसकी आदत बन जाती, किसी भी रचनात्मक कार्य में उसका मन नहीं लगता, पढ़ाई से उसकी अरुचि हो जाती है, उसमें आतंरिक रूप से किसी कार्य में सफल होकर आगे बढ़ने की ललक समाप्त हो जाती है और बच्चा एक सामान्य बच्चे की तरह रह जाता है| ऐसा बच्चा आगे चलकर किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता| इसलिए अभी से उसका मानसिक विकास आवश्यक है, और यह हो सकता है, उसके मस्तिष्क तंतुओं को अतिरिक्त शक्ति/ऊर्जा प्रदान करने से, जो कि दीक्षा द्वारा हो सकता है अथवा विशेष रूप से निर्मित किये गए इस प्राण-प्रतिष्ठित मंत्रसिद्ध 'सुमेधा सरस्वती यंत्र' द्वारा| इस प्रकार के यंत्र १६ वर्ष से कम आयु के बालक/बालिकाओं/किशोरों के लिए ही विशेष फलदायी होंगे|
धारण विधि
इस यंत्र को प्राप्त कर अपने सामने किसी पात्र में रखकर उसके समक्ष दस मिनिट 'ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमो नमः' का मानसिक जप करें| इस प्रकार तीन दिन तक नित्य प्रातःकाल जप करें| तीसरे दिन यंत्र को काले या लाल धागे में बच्चे के गले में पहना दें|
महामृत्युंजय माला
कई बार ऐसी स्थितियां जीवन में आ जाती हैं, जब प्राणों पर संकट बन आता है - इसका कारण कोई भी हो सकता है, किसी षडयंत्र अथवा साजिश का शिकार होना, किसी भयंकर रोग से ग्रसित होना आदि| भगवान शिव को संहारक देवता माना गया है और मृत्यु पर भी विजय प्राप्त करने के कारण मृत्युंजय कहा गया है| अपने साधक के प्राणों पर संकट से भगवान महामृत्युंजय अवश्य ही रक्षा करते हैं, यदि प्रामाणिक रूप से उनकी साधना संपन्न कर ली जाती है तो इस यंत्र प्रयोग द्वारा समस्त प्रकार के भय - राज्य भय, शत्रु भय, रोग भय आदि सभी शून्य हो जाते हैं|
इस यंत्र को किसी सोमवार के दिन पीले कागज़ अथवा कपडे पर लाल स्याही से अंकित करें| यंत्र में जिस पर अमुक शब्द आया है, वहां अपना नाम लिखें| यदि यह प्रयोग आप किसी अन्य के लिए कर रहे हों, तो उसका नाम लिखें| यंत्र के चारों कोनों पर त्रिशूल अंकित है, वे प्रतिक हैं इस बात का कि चरों दिशाओं से भगवान् शिव साधक की रक्षा कर रहे हैं| यंत्र के चारों कोनों पर काले तिल की एक-एक ढेरी बनाएं| प्रत्येक ढेरी पर एक-एक 'पंचमुखी रुद्राक्ष' स्थापित करें| ये चार रुद्राक्ष भगवान शिव की चार प्रमुख शक्तियां हैं| इसके पश्चात 'महामृत्युंजय माला' से निम्न महामृत्युंजय मंत्र की ५ मालाएं संपन्न करें -
|| ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धीं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ||
इस मंत्र का ११ दिन तक जप करें, फिर माला तथा चारों रुद्राक्षों को एक काले धागे में पिरोकर धारण कर लें| एक माह धारण करने के बाद महामृत्युंजय माला तथा रुद्राक्ष को जल में विसर्जित कर दें|तिब्बती धन प्रदाता लामा यंत्र
दिव्यतम वस्तुएं अपनी उपस्थिति की पहचान करा ही देती हैं... इस के लिए कहने की आवश्यकता नहीं होती, वह तो अपनी उपस्थिति से, अपना सुगंध से ही आस पास के लोगों को एहेसास करा देती है, अपने होने का ...
उत्तम कोटि के मंत्रसिद्ध प्राण प्रतिष्ठित दिव्या यंत्रों के लिए भी किसी विशेष साधना की आवश्यकता नहीं होती| ऐसे यंत्र तो स्वयं ही दिव्या रश्मियों के भण्डार होते हैं, जिनसे रश्मियां स्वतः ही निकल कर संपर्क में आने वाले व्यक्ति एवं स्थान को चैतन्य करती रहती हैं| हिमालय की पहाड़ियों पर बसा तिब्बत देश क्षेत्रफल में छोटा अवश्य है परन्तु तंत्र क्षेत्र में जो उपलब्धियां तिब्बत के बौद्ध लामाओं के पास हैं, वे आम आदमी को आश्चर्यचकित कर देने और दातों तले उंगलियां दबा लेने के लिए पर्याप्त हैं| ऐसे ही एक सुदूर बौद्ध लामा मठ से प्राप्त गोपनीय पद्धतियों एवं मन्त्रों से निर्मित व् अनुप्राणित यह यंत्र साधक के आर्थिक जीवन का कायाकल्प करने के लिए पर्याप्त है|
इस यंत्र के स्थापन से तिब्बती लामाओं की धन-देवी का वरद हस्त साधक के घर को धन-धान्य, समृद्धि से परिपूर्ण कर देता है, फिर अभाव उसके जीवन में नहीं रहते, ऋण का बोझ उसके सर से हट जाता हैं और उसे किसी के आगे हाथ नहीं पसारने पड़ते|
किसी रविवार की रात्रि को यह यंत्र लाल कपडे में लपेट कर 'ॐ मनिपदमे धनदायै हुं फट' मंत्र का ११ बार उच्चारण कर मौली से बांध दें, फिर इसे अपने घर की तिजोरी में रख दें| इससे निरन्तर अर्थ-वृद्धि होगी|
राज्य बाधा निवारण यंत्र
यदि कोई व्यक्ति मुकदमें में फस जाए, क्र्त्काचाहरी के चक्कर लगाने में फस जाए, तो उसका हंसता-खेलता जीवन बिल्कुल मृतप्राय हो जाता है, जीवन छलनी-छलनी हो जाता है.. और ऐसी स्थिति आ जाती हैं कि व्यक्ति जीवन को समाप्त कर देने की सोचने लग जाता हैं| परिश्रम से इकट्ठी की गई जमा पूंजी पानी की तरह बहने लगती हैं|
आपको न्याय मिल सके, मुकदमें में सफलता प्राप्त हो सके, तथा इस उलझन से आपको छुटकारा मिल असके, इसी दृष्टि से इस यंत्र का निर्माण किया गया हैं| अपने पूजा स्थान में स्थापित कर, गुरुदेव का ध्यान करते हुए इस यंत्र का नित्य प्रातः काल पूजन करें| तीन माह पश्चात यंत्र को जल में विसर्जित कर दें|
महाकाल माला
भगवान् शिव की तीव्रता का अनुभव हर उस व्यक्ति को होता है, जो काल के ज्वार भाटे का अनुभव करता हैं, इन क्षणों में व्यक्ति किसी भी अन्य पर विश्वास नहीं करता, वह निर्भर होता है, तो मात्र स्वयं पर या काल पर, लेकिन जो समर्थ व्यक्ति होते हैं, वे काल पर भी निर्भर नहीं होते, अपितु अपने साधनात्मक बल से काल को अपने अनुसार चलने पर बाध्य कर देते हैं| 'महाकाल माला' भी ऐसी ही अद्वितीय माला हैं, जिसे धारण करके साधक अपने मार्ग की रुकावट को धकेल कर हटा सकता है, बाधाओं को पैर की ठोकरों से उड़ा सकता है| आप इसे सवा माह तक धारण करने के उपरांत नदी में विसर्जित कर दें तथा नित्य भगवान् शिव का ध्यान मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का जप करें|
सिद्धि प्रदायक तारा यंत्र
'साधकानां सुखं कन्नी सर्व लोक भयंकरीम' अर्थात भगवती तारा तीनों लोकों को ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हैं, साधकों को सुख देने वाली और सर्व लोक भयंकरी हैं| तारा की साधना की श्रेष्ठता और अनिवार्यता का समर्थन विशिष्ठ, विश्वामित्र, रावण, गुरु गोरखनाथ व अनेक ऋषि मुनियों ने एक स्वर में किया हैं| 'संकेत चंद्रोदय' में शंकाराचार्य ने तारा-साधना को ही जीवन का प्रमुख आधार बताया है| कुबेर भी भगवती तारा की साधना से ही अतुलनीय भण्डार को प्राप्त कर सके थे| तारा साधना अत्यंत ही प्राचीन विद्या है, और महाविद्या साधना होने की बावजूद भी शीघ्र सिद्ध होने वाली है, इसी कारण साधकों के मध्य तारा-यंत्र के प्रति आकर्षण विशेष रूप से रहता है|
वर्त्तमान समय में ऐश्वर्य और आर्थिक सुदृढ़ता ही सफलता का मापदण्ड है, पुण्य कार्य करने के लिए भी धन की आवश्यकता है ही, इसीलिए अर्थ को शास्त्रों में पुरुषार्थ कहा गया है| साधकों के हितार्थ शुभ मुहूर्त में कुछ ऐसे यंत्रों की प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपने घर में स्थापित कर कुछ दिनों में ही इसके प्रभाव को अनुभव कर सकता है, अपने जीवन में सम्पन्नता और ऐश्वर्य को साकार होते, आय नए स्त्रोत निकलते देख सकता है|
आपदा उद्धारक बटुक भैरव यंत्र
किसी भी शुभ कार्य में, चाहे वह यज्ञ हो, विव्वः हो, शाक्त साधना हो, तंत्र साधना हो, गृह प्रवेश अथवा कोई मांगलिक कार्य हो, भैरव की स्थापना एवं पूजा अवश्य ही की जाती है, क्योंकि भैरव ऐसे समर्थ रक्षक देव है, जो कि सब प्रकार के विघ्नों को, बाधाओं को रोक सकते हैं, और कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाता है| आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र स्थापित करने के निम्न लाभ हैं -
- व्यक्ति को मुकदमें में विजय प्राप्त होती है|
- समाज में उसके मां-सम्मान और पौरुष में वृद्धि होती है|
- किसी भी प्रकार की राज्य बाधा, जैसे प्रमोशन अथवा ट्रांसफर में आ रही बाधाओं से निवृत्ति प्राप्त होती है|
- आपके शत्रु द्वारा कराया गया तंत्र प्रयोग समाप्त हो जाता है|
यदि आपके जीवन में उपरोक्त प्रकार की बाधाएं लगातार आ रही हों, और आप कई प्रकार के उपाय कर चुके है, इसके बावजूद भी आपकी आपदा समाप्त नहीं हो रही है, तो आपको आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र अवश्य ही स्थापित करना चाहिए| इस यंत्र को स्थापित कर बताई गई लघु विधि द्वारा पुजन करने मात्र से ही आपकी आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं| इस यंत्र के लिए किसी विशेष पूजन क्रम की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे अमृत योग, शुभ मुहूर्त में सदगुरुदेव द्वारा बताई गई विशेष विधि द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित किया गया है|
स्थापन विधि - बटुक भैरव यंत्र को किसी भी षष्ठी अथवा बुधवार को रात्रि में काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर कुंकुम, अक्षत, धुप से संक्षिप्त पूजन कर लें| इसके पश्चात पूर्ण चैतन्य भाव से निम्न मंत्र का १ घंटे तक जप करें|
|| ॐ ह्रीं बटुकाय आपद उद्वारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा ||
उपरोक्त मंत्र का यंत्र के समक्ष ७ दिन तक लगातार जप करने के पश्चात यंत्र को किसी जल-सरोवर में विसर्जीत कर दें| कुछ ही दिनों में आपकी समस्त आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जायेगी|
जगदम्बा यंत्र
आज जब जीवन बिल्कुल असुरास्खित बन गया है, पग-पग पर संकट, और खतरे मुंह बाए खड़े हैं, तो अपनी प्राण रक्षा अत्यंत आवश्यक हो जाती है| यदि किसी शत्रु अथवा किसी आकस्मिक दुर्घटना से जान का भय हो, तो व्यक्ति का जीवन चाहे कितना ही धन-धान्य से पूरित हो, उसका कोई भी अर्थ नहीं| प्रत्येक व्यक्ति अपनी ओर से अपनी सुरक्षा की ओर से सचेष्ट रहता ही है, परन्तु दुर्घटनाएं बिना सूचना दिए आती हैं| ऐसी स्थिति में दैवी सहायता या कृपा ही एक मात्र उपाय शेष रहता है|
ज्योतिषीय दृष्टि से दुर्घटना का कारण होता है, कि अमुक व्यक्ति अमुक समय पर अमुक स्थान पर उपस्थित हो ही| परन्तु ग्रहों के प्रभाव से यदि दुर्घटना किसी विशेष स्थान पर होनी ही है, परन्तु यदि व्यक्ति उस विशेष क्षण में उस स्थान पर उपस्थित न होकर समय थोडा आगे पीछे हो जाए, तो उस दुर्घटना से बच सकता है| ग्रहों का प्रभाव ऐसा होता है, कि अपने आप ही उस विशेष समय में व्यक्ति को निश्चित दुर्घटना स्थल की ओर खीचता ही है, परन्तु जगदम्बा यंत्र एक ऐसा उपाय है, जो ग्रहों के इस क्रुप्रभाव को क्षीण कर देता है| इस यंत्र को सिर्फ अपने पूजा स्थान में स्थापित ही करना है| और नित्य धुप, दीपक दिखाकर पुष्प अर्पित करें|
तंत्र बाधा निवारक वीर भैरव यंत्र
तंत्र की सैकड़ों-हजारों विधियां हैं, परन्तु जितनी तीव्र और अचूक भैरव या भैरवी शक्ति होती है, उतनी अन्य कोई नहीं होती| वीर भैरव शिव और पारवती के प्रमुख गण हैं, जिनको प्रसन्न कर मनोवांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है| मूलतः इस साधना को गृहस्थ जीवन को वीरता से जीने के लिए संपन्न किया जाता है| वीरता का अर्थ है प्रत्येक बाधा, समस्या, अड़चन और परिस्थिति को अपने नियंत्रण में लेकर, उस परिस्थिति पर पूर्ण वर्चस्व स्थापित करते हुए, वीरता से जूझते हुए विजय प्राप्त करने की क्रिया| यही वीरता वीर भैरव-यंत्र को घर में स्थापित करने पर प्राप्त होने लगती है| गृहस्थ जीवन सुख, शान्ति और निर्विघ्न रूप से गतिशील होता है| समस्याओं पर हावी होते हुए भी पूर्ण आनंदयुक्त बने रहना - यही वीर - भाव है| मुख्यतः इस साधना को तंत्र बाधा, मूठ आदि को समाप्त करने के लिए किया जाता है|
सुदर्शन चक्र
समस्त प्रकार की आपदाओं, विपत्तियों, बाधाओं, कष्टों, अकाल मृत्यु निवारण तथा परिवार के समस्त सदस्यों की पूर्ण सुरक्षा हेतु! भगवान् कृष्ण ने सुदर्शन चक्र धारण किया और अपने शत्रुओं का पूर्ण रूप से विनाश कर दिया था| सुदर्शन चक्र का तात्पर्य है वह शक्ति चक्र, जिसे धारण कर साधक विशेष ऊर्जा युक्त हो जाता है और जीवन की समस्याओं से लड़ने की सहज क्षमता आ जाती है| कृष्ण मन्त्रों से सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठा युक्त यह सुदर्शन चक्र कृष्ण को अपने भीतर धारण करने के सामान ही है| जिस घर में सुदर्शन चक्र होता है वह घर भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्त हो जाता है, साधक में तीव्र आकर्षण शक्ति आने लगती है जो उसे निर्भय बनाती है|
स्थापन विधि - किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन प्रातः ७:३६ से ८:२४ की बीच गुरु पूजन एवं कृष्ण पूजन संपन्न कर, गुरु चित्र के सामने सुदर्शन चक्र रख दे और उस पर कुंकुम, अक्षत अर्पित करें| फिर दायें हाथ की मुट्ठी में सुदर्शन चक्र लेकर 'क्लीं कृष्णाय नमः' मंत्र का १०८ बार जा करें तथा चक्र को पुनः अपने पूजा स्थान में रख दें| जब भी कोई विशेष कार्य के लिए जाएँ, इस चक्र को जेब में रखें| कार्य में सफलता अवश्य प्राप्त होगी|
आदित्य सूर्य यंत्र
मनुष्य का शरीर अपने आपमें सृष्टि के सारे क्रम को समेटे हुए है, और जब यक क्रम बिगड़ जाता है, तो शरीर में दोष उत्पन्न होते हैं, जिसके कारण व्याधि, पीड़ा, बीमारी का आगमन होता है, इसके अतिरिक्त शरीर की आतंरिक व्यवस्था के दोष के कारण मन के भीतर दोष उत्पन्न होते हैं, जो कि मानसिक शक्ति, इच्छा की हनी पहुंचाते हैं, व्यक्ति की सोचने-समझाने की शक्ति, बुद्धि क्षीण होती हैं, इन सब दोषों का नाश सूर्य तत्व को जाग्रत किया जा सकता है| क्या कारन है कि एक मनुष्य उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है और एक व्यक्ति पुरे जीवन सामान्य ही बना रहता हैं दोनों में भेद शरीर के भीतर जाग्रत सूर्य तत्व का है, नाभि चक्र, सूर्य चक्र का उदगम स्थल है, और यह अचेतन मन के संस्कार तथा चेतना का प्रधान केंद्र है, शकरी का स्रोत बिंदु है| साधारण मनुष्यों में यह तत्व सुप्त होता है, न तो इनकी शक्ति का सामान्य व्यक्ति को ज्ञान होता है और न ही वह इसका लाभ उठा पाता है| इस तत्व को अर्थात्भीटर के मणिपुर सूर्य चक्र को जाग्रत करने के लिए बाहर के सूर्य तत्व की साधना आवश्यक है, बाहर का स्रुया अनंत शक्ति का स्रोत है, और इसको जब भीतर के सूर्य चक्र से जोड़ दिया जाता है, तो साधारण मनुष्य भी अनंत मानसिक शक्ति का अधिकारी बन जाता है, और जब यह तत्व जाग्रत हो जाता है, तो बीमारी, पीड़ा, बाधाएं उस मनुष्य के पास आ ही नहीं सकती हैं|
स्थापन विधि - रविवार के दिन साधक प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठाकर स्नान कर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर लें| उसके पश्चात पूर्व दिशा की ओर मुख कर एक ताम्बे के पात्र में शुद्ध जल भर उसमें आदित्य सूर्य यंत्र रख दें| इसके पश्चात निम्न मंत्र की १ माला जप करें| मंत्र - 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः'| मंत्र जप के पश्चात पात्र में सूर्य यंत्र निकाल कर जल सूर्य को अर्घ्य कर दें| ऐसा चार रविव्वर करने के पश्चात सूर्य यंत्र को जल में समर्पित कर दें|
पारद मुद्रिका
हमारे शात्रों में पारद को पूर्ण वशीकरण युक्त पदार्थ माना है, यदि किसी प्रकार से पारद की अंगूठी बन जाए और कोई व्यक्ति इसे धारण कर लें, तो यह अपने आप में अलौकिक और महत्वपूर्ण घटना मानी जाती हैं| सैकड़ों हाजारों साधकों के आग्रह पर पारद मुद्रिका का निर्माण किया गया है| इस मुद्रिका को आसानी से किसी भी हाथ में या किसी भी उंगली धारण किया जा सकता है, क्योंकि यह सभी प्रकार के नाप की बनाई गई है| जब पारद मुद्रिका का निर्माण हो जाता है, तब इसे विशेष मन्त्रों से मंत्र सिद्ध किया जाता है, वशीकरण मन्त्रों से सम्पुटित बनाया जाता है, सम्मोहन मन्त्रों से सम्पुटित किया जाता है, और चैतन्य मन्त्रों से इसे सिद्ध किया जाता है| आज के युग में यह अलौकिक तथ्य है, यह अद्वितीय मुद्रिका है, तंत्र के क्षेत्र में सर्वोपरि है, जिससे हमारा जीवन, सहज, सुगम, सरल और प्रभावयुक्त बन जाता है|
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ज्वालामालिनी यंत्र,
भाग्योदय लक्ष्मी यंत्र
Tuesday, May 31, 2016
गुरु ,master
NARAYAN MANTRA SADHANA VIGYAN, GURUDHAM JODHPUR
"गुरु"
गुरु इस दुनिया का वह तत्व है,जो जीवन को संवारता है...दिशा और दृष्टि देता है
शरीर का निर्माण माँ की कोंख में हो जाता है पर जीवन का निर्माण सदगुरू के चरणों में होता है।
गुरु वह कुंभकार है,जो शिष्य रूपी मिट्टी को मंगल कलश का आकार देता है।
गुरु वह माली है,जो शिष्य रूपी बीज को बरगद में बदल देता है।
गुरु वह महाशिल्पी है,जो शिष्य रूपी पाषाण को तराशकर सुन्दर प्रतिमा का आकार देता है।
गुरु आशाओं का सवेरा है...दुःखो का सूर्यास्त है...ज्ञान की पहली उजली किरण है।
आपके पास Car,A.C.,Banglow,Freeze,T.V., नही होंगे तो चलेगा पर गुरु नही है तो नही चलेगा ।
स्वजन-परिजन यदि रूठ जाए तो टेंशन मत लेना पर यदि गुरु रूठ जाए तो किसी भी कीमत पर राज़ी कर लेना क्योंकि जिससे गुरु रूठ जाते है,उससे प्रभु भी रूठ जाते है।
गुरु कौन है ?
* जिनके पास बैठने से विकार समाप्त हो ।
* जहाँ मन को परम शान्ति मिले ।
* जो चित्त के कालुष्य को दूर कर के पवित्र बना दे।
* जो लोभ,भय और राग-द्वेष से मुक्त हो।
* तनाव,चिन्ता और उद्वेग से मुक्ति पाने का एक मात्र स्थान है - गुरु की चरण
चलते फिरते तीर्थ अगर कोई है तो वह है- गुरु
जिनके जीवन में गुरु नही,उनका जीवन शुरू नही
गुरु अनंत उपकारी है
अनंत ज्ञानी है
सरल स्वभावी ह
ऐसे गुरुदेव के चरणों में शत् शत् नमन..
गुरु इस दुनिया का वह तत्व है,जो जीवन को संवारता है...दिशा और दृष्टि देता है
शरीर का निर्माण माँ की कोंख में हो जाता है पर जीवन का निर्माण सदगुरू के चरणों में होता है।
गुरु वह कुंभकार है,जो शिष्य रूपी मिट्टी को मंगल कलश का आकार देता है।
गुरु वह माली है,जो शिष्य रूपी बीज को बरगद में बदल देता है।
गुरु वह महाशिल्पी है,जो शिष्य रूपी पाषाण को तराशकर सुन्दर प्रतिमा का आकार देता है।
गुरु आशाओं का सवेरा है...दुःखो का सूर्यास्त है...ज्ञान की पहली उजली किरण है।
आपके पास Car,A.C.,Banglow,Freeze,T.V., नही होंगे तो चलेगा पर गुरु नही है तो नही चलेगा ।
स्वजन-परिजन यदि रूठ जाए तो टेंशन मत लेना पर यदि गुरु रूठ जाए तो किसी भी कीमत पर राज़ी कर लेना क्योंकि जिससे गुरु रूठ जाते है,उससे प्रभु भी रूठ जाते है।
गुरु कौन है ?
* जिनके पास बैठने से विकार समाप्त हो ।
* जहाँ मन को परम शान्ति मिले ।
* जो चित्त के कालुष्य को दूर कर के पवित्र बना दे।
* जो लोभ,भय और राग-द्वेष से मुक्त हो।
* तनाव,चिन्ता और उद्वेग से मुक्ति पाने का एक मात्र स्थान है - गुरु की चरण
चलते फिरते तीर्थ अगर कोई है तो वह है- गुरु
जिनके जीवन में गुरु नही,उनका जीवन शुरू नही
गुरु अनंत उपकारी है
अनंत ज्ञानी है
सरल स्वभावी ह
ऐसे गुरुदेव के चरणों में शत् शत् नमन..
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