जो मरते है उलझ कर किनारों पे, दुःख उनपर होता है ,
बीच समन्दर में फ़ना होना तो किस्मत की बात है
दिव्य युग
ॐ ब्रम्हा वे दिवौ ह: स: दिवौ ।
वे गुरु वे सदा ह: ।।
इस घोर संक्रमण काल मैं
जब मानव दिग्भ्रमित है
तुम पाथेय बनो ।
जब वे खोखली सभ्यता से दिशाः शून्या हैं
तुम मार्ग दर्शक बनो.…
जब वे आसुरी परवर्तीयों में लिप्त हैं
तुम साधनाताम्क परकाश से सुनय्ता भरो ।
छा जाओ पूरी पृथ्वी पर, और साधना
के द्वारा सह्श्त्रार जाग्रत कर
प्राणमय कोष से
धरा पर सिद्धाश्रम प्रेरित दिव्य युग स्थापित करो ।
यदि निरंतर गुरु सेवा और गुरु मंत्र जप करोगे तो निश्चय ही तुम जीवन में वह सब कुछ पा सकोगे जो कि तुम्हारा अभीष्ट हैं."
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