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Friday, December 16, 2011

Tantra Vijay-15 Vishalakshi Akarshan Sadhna(Ultimate Sadhna To Attract Everyone)

Tantra Vijay-15 Vishalakshi Akarshan Sadhna(Ultimate Sadhna To Attract Everyone)

सदगुरुदेव के साथ बिताए हुए दिनों की याद में खोया हुआ मोहन मुझ से अपने जीवन के वो पल, वो घटनाए बाँट रहा था जो उसके जीवन की निधि थी. रोमांचित सा हो कर के सुन रहा था मै उसकी दास्तान. तंत्र की विलक्षण साधनाओ की खोज में जब में घूम रहा था उसी समय मुलाकात हुयी थी मोहन से. दिखने में तो ३० साल से ज्यादा उम्र नहीं थी पर ये तो गुरुदेव से प्राप्त कयाकल्प का चमत्कार था , उम्र तो उसकी ५० के करीब थी. न जाने किस प्रेरणा के वशीभूत वो मेरे ही इंतज़ार में था, सर्दियों की राते थी वह. खाली जेब से निकल पड़ा था में हजारो मिल दूर ,किसी अज्ञात संकेत के इशारे पर. अचानक मोहन से हुयी मुलाक़ात शायद उस संकेत का आखरी छोर था. उस झील के किनारे रात में चांदनी भी चारो तरफ बेठ कर सुन रही थी उस रहस्यमय साधक की दास्तान.
“सदगुरुदेव के महाप्रयाण के बाद में हिमालय स्थित भैरव महा पीठ के पुजारी ने कई बार सदगुरुदेव को वहाँ अपने शिष्यों के साथ साधनारत पाया हे. एक दिन जब में बहुत उदास हो गया था तो रो पड़ा गुरुदेव की तस्वीर के सामने की आप क्यों हमें छोड़ के चले गए ...तभी चारो तरफ अष्टगंध की सुगंध फ़ैल गयी, जब नज़र ऊपर उठाई तो सदगुरुदेव सामने खड़े थे , कठोर भावमुद्रा से उन्होंने कहा ‘क्यों रो रहा हे ,मै सदैव उपस्थित हूं ’ और वे एकदम से अद्रश्य हो गए ...
निखिलेश्वरानन्द स्तवन का पाठ करते हुवे कई बार सदगुरुदेव ने मुझे अपने सन्याश स्वरुप में दर्शन दिए हे. इससे बड़ी साधनात्मक उपलब्धि क्या होगी.”
रात बढ़ चुकी थी और ठण्ड भी. बुखार से बुरे हाल थे मेरे फिर भी उसकी बातो में ही खोया हुवा था. उसके चहरे पर गज़ब का आकर्षण था. कुछ ऐसा की देखते ही उसे कोई भी अपने से श्रेष्ठ मानने के लिए बाध्य हो जाए. समझते देर न लगी की कोई तो आकर्षण साधना कर रखी हे उसने.
“यही पास ही में एक मंदिर हे. उसमे देवी की आधे फीट की प्रतिमा हे. एक दम जिवंत, वहाँ पे जो भी साधनाए करे वो सफल होती ही हे. लोगो को तो मालूम भी नहीं हे की वो विशालाक्षी का स्थान हे. देखना चाहोगे ?”
मेने सर हिला के सहमति दर्शायी तो वे एक तरफ चल दिए. में भी पीछे पीछे चल पड़ा. रस्ते में एक सन्याशी के वहाँ कुछ देर रुके जो कर्णपिशाचिनी साधना में सिद्धहस्त थे. वे दोनों कुछ देर बाते कर रहे थे. सन्याशी ने मेरी तरफ देखा भी नहीं इससे में अकड गया. बहार आते ही मोहन मुस्कराहट के साथ आगे बढ़ गए. रस्ते में ही बताया उसने की आकर्षण साधना आज के युग में बहोत ही उपयोगी हे. चाहे वह देश का नेता हो या एक छोटा सा नागरिक. अगर आपका व्यक्तित्व आकर्षक हे तो हर कोई आपकी बात मानने के लिए बाध्य हो जाएगा. ऐसे व्यक्तियो को मान सम्मान प्राप्त होता ही हे और भौतिकता में सहज वह सफल हो सकते हे. आकर्षण के लिए कई साधनाए हे जो की सरल और सहज हे.
मंदिर आ चूका था और उस जिवंत प्रतिमा का दर्शन कर धन्य हो गया में. सुनसान पड़ा वो मंदिर मुश्किल से किसी के ध्यान में आ सकता था. एक हफ्ते तक वो विलक्षण व्यक्ति से जो ज्ञान मिला वो तो शब्दों से परे ही हे. सालो बीत गए आज, फिर मिलना नहीं हो पाया उससे. लेकिन आज भी उसका वो चेहरा नहीं भूल पाया हू ...जो आकर्षण से भरपूर था.
आकर्षण की एक विशेष विशालाक्षि साधना जो की बहोत ही सहज हे.
ये साधना बुधवार से शुरू की जाती हे. इस साधना में रात्रि के ११ बजे बाद रोज २ घंटे मंत्र का उच्चारण किया जाता हे. इसमे जाप संख्या निर्धारित नहीं हे, माला भी आवश्यक नहीं हे. सामने एक दीपक लगा हो और वो लगातार २ घंटे तक चलता रहे. उसकी लौ पर देखते हुए मंत्र जाप हो. ये साधना ८ दिन तक नियमित करे. अगले बुधवार तक एक ही स्थान पर निश्चित समय पर मन्त्रजाप हो. रोज मंत्र जाप से पहले विशालाक्षि देवी को मन ही मन प्रार्थना साधना में सफलता करके ही साधना में प्रवृत हो.
मंत्र : हूं हूं फट फट हूं हूं
दिखने में ये मंत्र भले ही सामान्य लगे पर इसका प्रभाव आपको कुछ ही दिनों में दिखने लगेगा. साधना खतम होते होते चेहरे पर और विशेष कर आँखों में एक विशेष आकर्षण आ जाता हे जिससे सभी प्रकार से सफलता प्राप्त होती हे.
जय गुरुदेव.
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Being lost in the days which he passed with Sadgurudev, Mohan was sharing me those moments, those incidents which were actual wealth for him. I was excited and willingly listening to him. When I was roaming to search rare sadhanas of Tantra, at that time I met Mohan. Looking at him, He seems to be just 30, but it was result of Kayakalp given by Sadgurudev; his actual age was nearly 50. Can’t say by which intuition he was waiting for me, those were winter days. With empty pockets I went thousands miles away, directed by unknown prediction. I guess it was last dot of that unknown sign to meet Mohan. Moonlight spread around us on the bank of pond was even interestingly listing to that mysterious sadhak.
“Priest of Bheirav Mahapeeth situated in Himalayas has seen Sadgurudev with his disciples performing their sadhana, though after sadgurudev passed away from his mortal form. One day when I became very sad, I went in front of sadgurudev’s picture and cried a lot that why you left us all...at that time only aroma of Ashgandh spread, When I looked infront, Sadgurudev were standing there in air, in hard voice he said ‘ Why are you crying, I am here only’ and he became invisible instant...
While reading Nikhileshwaranand Stavan I got his Darshan many time in his sanyash form. What could you say more spiritual attainment then this. “
Night and cold both turned on. I was very weak with fever but at same time was lost in his talk. There was a great attraction in his face. Something which let anyone feel that he is more ahead than us. It took me no time to understand that he did some sadhana on attraction.
“Near only, there is a temple. There is a half feet idol of goddess. Like alive, whatever sadhana if performed there, it does gives results. People do not know that that is a place of devi vishalakshi. Want to see?”
I accepted by nod and he started walking in one direction, I too went on after him. In between we stopped at a sage who was accomplished in Karnpishachini Sadhana. Both of they, talked for a while. Sage didn’t even look at me, so I became irritated. After coming out with smile Mohan started moving. In the way to temple, he told me that Aakarorshan Sadhana is very important in this time for everyone. Whosoever he may is a leader or a common man. If there is an attraction in your personality, everyone would be bind to agree with you. Such people do always get respect in society and he becomes a successful material man. There are so many sadhanas of attraction which are easy and straight.
Temple came and I became glad by receiving blessing. The temple was very difficult to come in note of common public. The knowledge which I got from that mysterious man cannot be described in the words. Many years passed, but it became not possible to meet him again. But today even, I have not forgot his face...full of attraction. There is one easy Vishalakshi sadhana for attraction.

This sadhna could only be started on Wednesday. In this sadhana 2 hours mantra chanting is needed after 11 pm. There is no fix counting if rosaries. A lamp should be light in front; Mantra jaap should be done by looking at the light of lamp. The sadhna should be repeated till 8 days. Till next Wednesday mantra jaap should be on same place and same time. One should pray to Devi Vishalakshi for success in sadhana before starting mantrajaap daily.
Mantra: Hum Hum Phat Phat Hum Hum
Although this mantra seems very common but you can see power in few days. after finishing sadhana one will get attraction on whole face and especially in eyes through which success could be generated very easily in every field.
Jai Gurudev.

Thursday, December 15, 2011

Pupils how to achieve perfection



शिष्य किस प्रकार से पूर्णता प्राप्त करें, किस प्रकार से अपने जीवन को श्रेष्ठता दे, और अपने में शिष्यत्व के गुण समाहित कर गुरु के योग्य बनें, सदगुरुदेव के कालजयी अमृत वचन शिष्य का अर्थ हैं, नजदीक जाना “शिष्य” का अर्थ हैं, समीपता, निकटता, नजदीकता – जो साधक जितना ही ज्यादा गुरु के समीप जा सकता हैं, गुरु के हृदय को स्पर्श कर सकता हैं, गुरु के हृदय में स्थापित हो सकता हैं, और पूर्ण समर्पण की भावना से गुरु के साथ एकाकार हो सकता हैं, वही सही अर्थों में शिष्य हैं.

विरागोपनिषद में शिष्य के छः गुण बताये हैं, जिससे शिष्य अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकें, जो व्यक्ति या साधक जितनी ही गहराई के साथ इन गुणों को अपने में समाहित कर सकता हैं, वह उतना ही श्रेष्ठ शिष्य बन सकता हैं.

1. शिष्य का दूसरा अर्थ समर्पण हैं, जो जीतनी ही गहरे के साथ गुरु के प्रति समर्पित हैं, वह उतना ही श्रेष्ठ शिष्य हैं, समर्पण में किसी प्रकार की शर्त नहीं होती, समर्पण में बुद्धि प्रधान न होकर भावना प्रधान होती हैं. जो सभी पूर्वा ग्रहों और अपनी विशेषताओं से मुक्त होकर समर्पण करता हैं, वही सही अर्थों में शिष्य बनने का अधिकारी हो सकता हैं.

2. शिष्य की व्यक्तिगत कोई इच्छा या आकांक्षा नहीं होती, जब वह मुक्त गुरु के सामने होता हैं, तब सरल बालक की तरह ही होता हैं, गुरु के सामने तो शिष्य कच्ची मिटटी के लौन्दे की तरह होता हैं, उस समय उसका स्वयं का कोई आकर नहीं होता, ऐसी स्थिति होने पर ही वह सही अर्थों में शिष्य बनने का अधिकारी हो सकता हैं. इसीलिए शिष्य को चाहिए की वह जब भी गुरु के सामने उपस्थित हो, तब वह सारी उपाधियों और विशेषताओं को परे रखकर उपस्थित हो, ऐसा होने पर ही परस्पर पूर्ण तादात्म्य सम्भव हैं.



3. शिष्य आधारभूत रूप से भावना प्रधान होना चाहिए, तर्क प्रधान नहीं, क्योंकि तर्क ही आगे चलकर कुतर्क का रूप धारण कर लेता हैं, आपने अपने जीवन में अपने से ज्यादा उन्हें महत्त्व दिया हैं, इसीलिए गुरु को भावना से ही प्राप्त किया जा सकता हैं यदि गुरु कोई आगया देता हैं, तो उसमें क्यों और कैसे विशेषण लगते ही नहीं हैं, उनकी आगया जीवन की सर्वोपरिता हैं, और उस आज्ञा का पालन करना ही शिष्य का प्रधान और एक मात्र धर्म हैं, यदि आप में क्यों और कैसे विचार विद्यमान हैं तो आपको चाहिए की आप किसी को गुरु बनावें ही नहीं. और जब एक बार आपने किसी को गुरु बना दिया, तो कम से कम संसार में उसके सामने तो क्यों और कैसे विशेषण आने ही नहीं चाहिए, ऐसा होने पर ही पारस्परिक संयोग – सम्बन्ध और एकाकार होना सम्भव हैं.

4. शिष्य परीक्षक नहीं होता, उसे यह अधिकार नहीं हैं, कि वह गुरु की परीक्षा ले, यह कार्य तो गुरु बनाने से पहले किया जा सकता हैं, आप जिस व्यक्तित्व को गुरु बना रहे हैं, उसके बारे में भली प्रकार से जांच ले, विचार कर ले, उसके व्यक्तित्व को परख लें, और जब आप सभी तरीके से संतुष्ट हो जायें, तभी आप उसे गुरु बनावे, पर एक बार जब उसे गुरु बना दिया, तब फिर परीक्षा लेने की स्थिति नहीं आती, ना अपनी तुलना गुरु से की जा सकती हैं, ना एक गुरु की तुलना दुसरे गुरु से की जा सकती हैं. गुरु की आज्ञा में किसी प्रकार की हिचक या व्यवधान समर्पण की भावना में न्यूनता ही देता हैं.

5. शिष्य का अर्थ निकटता होता हैं, और वह जितना ही गुरु के निकट रहता हैं, उतना ही प्राप्त कर सकता हैं, आप अपने शरीर से गुरु के चरणों में उपस्थित रह सकते हैं. यदि सम्भव हो तो साल में तिन या चार बार स्वयं उनके चरणों में जाकर बैठे, क्योंकि गुरु परिवार का ही एक अंश होता हैं, परिवार का मुखिया होता हैं, अतः समय-समय पर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करना, उससे कुछ प्राप्त करना, शिष्य का पहला धर्म हैं, यदि आप गुरु के पास जायेंगे ही नहीं, तो उनसे कुछ प्राप्त ही किस प्रकार से कर सकेंगे? गुरु से बराबर सम्बन्ध बनाये रखना और गुरु के साथ अपने को एकाकार कर लेना ही शिष्यता हैं.

6. गुरु आज्ञा ही सर्वोपरि हैं, जब आप शिष्य हैं तो यह आपका धर्म हैं, कि आप गुरु की आज्ञा का पालन करें गुरु की आज्ञा में कोई ना कोई विशेषता अवश्य छिपी रहती हैं. जितनी क्षमता और शक्ति के द्वारा. जितना ही जल्दी सम्भव हो सकें, गुरु की आज्ञा का पालन करना शिष्यता का धर्म हैं.

विरागोपनिषद के अनुसार जो शिष्य इन गुणों को अपने स्वयं के जीवन में आत्मसात करता हैं, वही सही अर्थों में शिष्य बनने का अधिकारी होता हैं, इसलिए आप अपने स्वयं में झांक कर देखे कि मैं जो गुरु से उम्मीदें लगाये बैठा हूँ, क्या उससे पूर्व मैं सही अर्थों में शिष्य हूँ, या नहीं, क्या मैं शिष्य की कसौटी पर खरा हूँ, या कि आप स्वयं ही इस कसौटी पर अधूरे हैं, तो आप कैसे उम्मीद लगा सकते हैं, कि आपकी इच्छाओं की पूर्ति गुरु कर देंगे. गुरु और शिष्य के सम्बन्ध शीशे की तरह नाजुक और साफ़ होते हैं, थोडी सी ठसक लग जाने से जिस प्रकार शीशे पर दरार आ जाती हैं, उसी प्रकार गुरु और शिष्य के बीच संदेह मतिभ्रम होने पर दरार आ जाती हैं, और वह दरार आगे चलकर खाई का रूप धारण कर लेती हैं, इसलिए शिष्य को चाहिए, कि वह निरंतर अपने मन का विश्लेषण करता रहे, निरंतर यह सोचता रहे कि मैं शिष्य कि कसौटी पर खरा हूँ, या नहीं? क्या मैं शाश्त्रों में वर्णित शिष्य के गुणों को अपने आप में समाहित कर लिया हैं या नहीं? क्या मैं सही अर्थों में शिष्य बन सका हूँ या नहीं? ऐसा विश्लेषण करते रहने से उसका हृदय साफ़ होता रहता हैं, और इन सम्बन्धों में दरार नहीं आ पाती हैं. सम्पूर्ण समर्पण तथा अपने को अंहकार रहित बनाये रखना ही आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त करने का प्रथम पद हैं, यह शक्ति साधना गुरु कृपा से ही प्राप्त हो सकती हैं.


सस्नेह तुम्हारा
नारायण दत्त श्रीमाली.

sadgurudev chalisa.





गुरु वाणी
तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं है अक सामान्य चिंतन नहीं है ,तुम्हे यह मनुष्य देह अनायास ही प्राप्त नहीं हो गयी है कितने ही संघर्ष कितने ही गुरु के प्रयास इसके पीछे है,अत: इस जीवन को सहज ही मत लेना |इसका मूल्य समझो और मूल उद्देश्य को जानो |

मुझे अत्याधिक वेदना होती है जब तुम एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो ,तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे मूल लक्ष्य की और बढ़ने से रोकते है ,मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुए हो यह आपका दुर्भाग्य ही है |

अगर ऐसा है तो तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर आप मेरे शिष्य है तो आपमें यह क्षमता होनी चाहिए कि आप पशुता से उपर उठ कर मनुष्यता तथा मनुष्यता से उपर उठ कर देवता के स्थान पर पहुँच जाए |

शिष्य वही है जो भोतिकता को भोगे परन्तु आपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए |उसकी द्रष्टि हमेशा आपने लक्ष्य पर टिकी रहे |मेरे इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहा भारत क्या ,पूरे विश्व में तुम्हे चुनोती देने वाला कोई न हो |

मैं तुम्हारी सभी कमियों को ओढने को तैयार हूँ ,मैं तुम्हारे विष रुपी कर्मो को पचाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो |तुम मेरे आत्म हो ,तुम मेरे अपने हो ,तुम मेरे हृदय की धडकन हो |

दूसरो की तरह तुम केवल धन ,वैभव ,काम ,ऐश्वर्य में फसे हो क्या यह उचित है |मैंने तो हमेशा तुम्हे संपन्न देखना चाहा है पर आत्म उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य नहीं,अगर तुमने सम्पन्नता प्राप्त कर भी ले और तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी रह जाए तो सब व्यर्थ है |

तुम्हे आध्यात्मिक धरातल पर उच्चता और श्रेष्ठता की स्थिति तक पहुंचाना चाहता हूँ ,मैं चाहता हूँ फिर तुम जैसा कोई दूसरा अन्य न हो ,तुम हो तो केवल तुम हो |

परन्तु यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम समर्पण कर दोगे ,मुझमे पूर्ण रूप से एकाकार हो सकोगे ,जब तुम्हारे और मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नहीं रहेगी ,जब तुम्हारे कण -कण में गुरु का वास होगा ,जब तुम्हारी हर श्वास में उसी का उच्चारण होगा |
और यह स्थिति प्राप्त करने का सरलतम उपाय है गुरु मंत्र |निरंतर गुरु मंत्र जप द्वारा तुम उस स्थिति को प्राप्त कर सकते हो जबकि गुरु और शिष्य में इंच मात्र की भी दूरी नहीं रहती |ऐसा तुम कर पाओ यही मेरे कामना है |

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मेरे साथ चलना हैं तो जीवन में तुम्हें अपना द्रष्टिकोण बदलना पड़ेगा, जो
विचार तुम्हारे भीतर भरे हुए हैं, कर सबको निकलकर शून्य की स्थिति उत्पन्न
करनी होगी, तभी तो तुम आनंद का अनुभव कर सकोगे, किसी भी यात्रा पर चलने के
लिए तैयार हो सकोगे, और मैं भी विश्वास के साथ यह देख सकूँगा की अब यह
शिष्य तैयार हैं, अब यह शिष्य कायर नहीं हैं, अब यह शिष्य अपनी शक्ति को,
अपने लक्ष्य को, अपने आनंद को पहिचान गया हैं और इसे कार्य दिया जा सकता
हैं, इसे विचार दिए जा सकते हैं, जो सीधे उसके ह्रदय में स्थान बनायेंगे न
की तर्क - वितर्क करते हुए मस्तिष्क में ही मापतौल करेंगे. तुमने एक शरीर
को गुरु मान लिया हैं, गुरु तो वह तत्व हैं, जिससे जुड़कर तुम उन आयामों
को स्पर्श कर सकते हो, जिनको शास्त्रों ने पूर्णमिदः पूर्णमिदं कहा हैं!
उसके लिए गुरु के शरीर को बांहों में लेने की जरुरत नहीं! आवश्यकता हैं की
तुम अपना मन उनके चरण कमलों में समर्पित करो…. और वह हो पायेगा केवल और
केवल मात्र गुरु सेवा से और गुरु मंत्र जप से!


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about what Siddhashram Questions and answers BY Dr Narayan Dutt Shrimali ji




Devrnjini proven pill सिद्ध देवरंजिनी गुटिका

आज जिस गुटिका के बारे में मैं आपको बताने वाला हूँ.उस गुटिका विवरण साधारणतयः किसी भी रसग्रंथों में या तो नहीं है या फिर उसमे थोडा परिवर्तन कर दिया गया है.इस के कारण भी हम सभी जानते हैं की विषय को गुप्त रखना समय और काल के अनुसार अनिवार्य था.खैर जब हमने इस विषय को जानने के लिए प्रयास रत हैं तो हमें प्रयास करके हमारी परम्परा और उसकी विलक्षणता को भी जरूर जानना चाहिए.

रस सिद्धों के मध्य जिन गुटिका के विषय में गोपनीयता रखी गयी है,उनमे एक महत्त्वपूर्ण नाम देवरंजिनी गुटिका का आता है,इस गुटिका के निर्माण जितना कठिन है उतना ही सरल है इसके प्रभाव की अपने जीवन में प्राप्ति.सौभाग्य ,आरोग्य,तीव्र उन्नति,मानसिक बल,कुंडलिनी जागरण ,कालज्ञान,समाधी लाभ ,धातु परिवर्तन,उच्च आत्माओं से संपर्क,कायाकल्प,दूर दर्शन,वसीकरण,और ऐसी कई अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन जाता है इसे प्राप्त करने वाला.क्युंकी इस गुटिका पर दिव्या मंत्रो के प्रवाह,दिव्या वनस्पतियों के संस्कार,स्वर्ण,और रत्नों के चरण देने के बाद इसे सुर्यताप्त से संपुटित कर रसेन्द्र को जब गगन के आवरण पहनाया जाता है तो विलक्षणता तो घटित होती ही है. प्रकार अंतर से पारद जब रसेन्द्र में परिवर्तित होकर जब अपने विराट रूप से एकाकार पता है तभी जाकर इस गुटिका के निर्माण होता है.

इस गुटिका के पूर्ण निर्माण में प्रतिदिन ८ घंटे के हिसाब से १४ दिन लगते हैं(रसेन्द्र बन्ने के बाद).विभिन्न रत्नों के चारण,स्वर्ण भस्म से बंधन , दिव्य वनस्पतियों के संस्कार के साथ होता है पूर्ण अघोर मन्त्रों से रसान्कुश देवी का आवाहन और स्थापन ...... तब जाकर ये गुटिका अद्भुत प्रभावयुक्त होती है और होता है इसका निर्माण भी .
मैंने इस गुटिका को एक रस सिद्ध के पास गुवाहाटी में देखा था वही पर उन्होंने इसके चमत्कारों को न सिर्फ दिखाया था बल्कि इसके निर्माण के वे रहस्य भी उन्होंने बताये थे जो की किसी ग्रन्थ में कम से कम मैंने तो आज तक नहीं पढ़े हैं.

यदि पूज्यपाद सदगुरुदेव की कृपा रही तो अवश्य ही इस विषय के वे गुप्त सूत्र जो अभी तक सिर्फ सिद्धों के मध्य ही रहे थे ,वे हम सभी साधकों के मध्य पुनः प्रयोग करने के लिए प्रचलित होंगे।

Jay Guru DEV

Lets go through again about this irresistable divine majic gutika
Siddh Devranjini Gutika

Today I am going to tell you the description regarding the “Gutika†which is not mentioned in any Ras Granth.And If it is mentioned then definitely with some changes which we cannot recognise.As we know the reasons behind it that it is the dead need of time to keep it very secretful from negativity.Well when we are eager to know more about this subject, so with all efforts we should step forward for knowing our culture and peculiarities of it.

Between all Ras siddhas the details of this Gutika has been kept secret from long time.From that all gutikas one of the important name is “Devranjini Gutikaâ€â€¦ As compared, the difficulties come in the way of making this gutika is that’s easy to relish its achievements and fruits in our day today life…… like good fortume,freedom from disease,frequent unbelievable growth,mental strength,Kundalini wakening,the wheel of time,benefits of profound meditation,Metal transformation,connection with great souls,rejunevation,future predictions,subjugating and master of many other wonderful powers.Well it is because, on this gutika when the divine power of mantra,divine herbs,gold,stones sections are done and afterwards melting it in full sunlight and then placed under the cover of sky then it lacks some of the peculiarities also.In this way when parad finds juicial state in its gigantic form, the Devranjini Gutika has been occured.

In formation of this Gutika daily eight hours for forteen days continously practice is required(only after making of rasendra).By barding of various stones,binding with gold cinder,adorning with divine herbs and with enchantment of aghor mantras finally summoning the Rasankush Goddess establishment takes place……This is how it is formed and reflects with the wonderful effects infront of us.

Hey I have seen this Gutika with one Ras siddha in Guwahati.He not only shown me the wonders of this gutika but also told me the whole process which is not even mentioned in any ras granth till the date I have gone through

If blessings of revered Shree Sadgurudev showers on us in the same way,soon we will be knowing all the hidden secrets which are currently locked only between the ras siddhas........

Wednesday, December 14, 2011

Beware of hypocrisy wool

सद्गुरुदेव ने अपने शिष्य के मार्गदर्शन के लिय सिर्फ त्रिमूर्ति गुरुदेवो को गुरुपद पर आसिन किय है | बाँकी जित्ने भी लोग निखिल नाम लेकर गुरु दीक्षा प्रदान कर्ने कि काम कर रहे है वो सब ढोंग कर रहे है, पाखण्ड कर रहे है | सावधान ऊन पाखण्डीवो से |
गुरु सेवा का मतलव लोगो को भ्रम मे डालकर निखिल नाम से गुरुदिक्षा देना नही | उनका सामर्थ है तो अपने स्वयं ना तप से, स्वयं का नाम से गुरु बने |

त्रिमूर्ति गुरुदेव पर दिव्यपात प्रदान कर सद गुरुदेव ने उन्हें गुरु पद प्रदान किय है |
जो जानकर भी गड्डे मे गिरते है, उनको तो कहना हि क्या |


Sadgurudev Nikhileshworananda's speech before placing Trimurti Gurudev (Shree Nand kishor shrimali, shree kailash chandra shrimali, shree Arbinda shrimali) as Gurudev after him...................... 

Thursday, December 1, 2011

Knowledge of the hybridization

SANDESH HAMARE LIYE
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ज्ञान का संकरण करते रहने से ज्ञान और सिद्धि दोनों ही संकरण से संकीर्ण हो जाते हे . मेने ज्ञान का संकलन करके बूंद बूंद के रूप में आप सबको गंगोत्री बनाया था , अब समय आ गया हे की आप उफनती गंगा बन जाये . जेसे एक जला हुआ दीपक हजारो दीपक जला सकता हे उसी तरह आप ज्ञान रूपी दीपक बन के अज्ञान के अँधेरे को दूर करे. अगर में चाहता तो वो क्रम में ख़तम कर देता और साधना का प्रस्थापित करने का काम अपने शिष्यों पर नहीं छोड़ता मगर मुझे सिर्फ साधनाओ को नहीं भारतवर्ष को जीवित करना था . और भारतवर्ष जीवित होगा आप से, मेरे शिष्यों से, मेरे आत्मीयो से , क्यूंकि मुझे लुप्त हो गई गुरु-शिष्य परंपरा को भी तो प्रस्थापित करना था गुरु तरफ का कम तो मेने कर दिया हे अब शिष्य तरफी कम तो आप ही करेंगे और करना ही पड़ेगा यही मेरी गुरु दक्षिणा होगी . आप सब शिष्यता की और अग्रसर हो कर ज्ञान को आत्मसार करे. जेसे पारद स्वर्ण ग्रहण करते करते एक समय तृप्त होके वापस स्वर्ण बहा देता हे और वो इस पारस की स्थिति को प्राप्त करने के बाद कितना भी स्वर्ण बहाने पर उसमे स्वर्ण की कोई कमी नहीं आती क्यूँ की वो खुद ही स्वर्णमय बन जाता हे . आप भी ज्ञानमय बने और ज्ञान को उसी तरह बहाते रहे यही मेरा ह्रदय से आशीर्वाद हे

-पूज्य गुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंद जी


कोई मेरे पास पूरी ज़िन्दगी भर रोज़ आके कहे की मुझे रस विद्या सीखनी हे तो सायद में उसे मृत्यु के बाद उसके अगले जन्म में उसे रसज्ञान देता . फिर आपके सामने तो गंगा बह रही हे. श्री निखिलेश्वरानंद जी का वरद हस्त आपके सर पर हे तो फिर चिंता केसी. आगे बढिए और ज्ञान को आत्मसार करे.

- रसाचार्य श्री नागार्जुन

रस तंत्र ६४ तंत्र अध्ययन की अंतिम कड़ी हे. इसका अद्ययन करने से बाकि सरे तंत्र स्वयं सिद्ध हो जाते हे. आप सब भी तंत्र की उच्चतम स्थिति को प्राप्त करे एसी गुरुदेव से प्रार्थना हे .

- श्री त्रिजटा अघोरी




आप आगे बढे और सिद्धाश्रम गमन करे यही कामना के साथ आपका पथ सुभ रहे यही आशीर्वाद देता हु .

- स्वामी सुर्यानंद

six basic forcible ways / steps of sadhna

षटपुरुषार्था साधनम् (निल तंत्रम)
there are six basic forcible ways / steps of sadhna (according to nil tantra)

वाँचन - to read about sadhana

मनन - to think on sadhna (understanding stage for the sadhana and its worth/objectives)

चिँतन - being thoughtful for sadhna (realising stage of what ever had been understood)

दर्शन - to watch sadhnas happening (actually, to understand practical aspects from experienced)

सत्सँग - to discuss about sadhna ( in regards to clear the doubts)

अनुभव - to seek for experience of sadhnas (finally getting started)

आवाहन २४ मे : "सदगुरुदेव ने एक बार बताया था की अगर साधक यह प्रक्रिया बिना गुंजरण तोड़े २० मिनिट तक कर लेता है तो वह शून्य मे आसान लगा सकता है. क्यों की जो भी वायु होगी वह गुंजरण के माध्यम से मणिपुर चक्र पर केंद्रित होगी और अग्नि कुंड के कारण वह वायु के कण धीरे धीरे फैलने लगते है. इस प्रकार से वह वायु शरीर से बहार निकलने का प्रयत्न करेगी लेकिन जब शरीर के द्वार बंद रहने से यह संभव नहीं होता तो वह ऊपर दिशा मे गति करने लगती है. इस लिए जब वह ऊपर उठेगी तब अपने साथ ही साथ पुरे शरीर को भी उठा लेती है." :))

Why and what Perfection? Diary Note

( किन्ही दिनों में सदगुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंद जी ने मुझे पूर्णता पथ के बारे में अपने श्री मुख से कुछ समजाया था, उस समय मेरी डायरी में लिखे हुए उनके वे आशीर्वचनो को आप सब के मध्य रख रहा हू. )

जीवन हमेशा व्यक्ति को एक निश्चित रस्ते पर अग्रसर करता हे जिसमे वह सुख और दुःख का सामना करता हे किन्तु जीवन कभी मनुष्य के लिए समस्याओ का निर्माण नहीं करता वरन मनुष्य ही उसे जन्म देता हे. व्यक्ति कभीभी पूर्णता के पथ को नहीं समजता, वहीँ उसकी समस्याओ का निर्माण शुरू हो जाता हे, किन्ही परिस्थियों को वो सुख दुःख समस्या वगेरा नाम दे देता हे . पूर्णता और कुछ नहीं हे, पूर्णता मनुष्य के द्वारा उद्भवित सदाचारी कार्य हे, जो यथार्थ हे, जो साश्वत हे, जो ब्रम्ह से सम्पादित हे, कल खंड की उपलब्धि हे और मनुष्य के लिए ही एक विशेष प्रयोजन बद्ध हे. पूर्णता प्राप्ति के लिए तो देवताओ को भी मनुष्यरूप में अवतरित होना पड़ता हे, फिर क्यों पूर्णता के ऊपर इतना अधिक भार दिया गया? हरएक युग के हरएक ग्रन्थ चाहे वह भौतिकता से सबंधित हो चाहे आध्यातिम्कता से, पूर्णता के ऊपर ही क्यों केंद्रित हे? क्यूँ पूर्णता प्राप्ति को ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य कहा गया? आखिर पूर्णता हे क्या?
प्राप्ति से प्रथम, प्राप्ति की कमाना से प्रथम, और प्राप्ति की कमाना की योग्यता से प्रथम किसी भी क्रिया को पूर्ण रूप से आत्मसार करना ही पूर्णता हे. इसका तात्पर्य ये भी हुआ की जीवन को योग्य मार्ग से जीने के लिए पूर्णता ज़रुरी हे. यहाँ जीवन की बात हो रही हे जिसका मतलब अनंत हे, जन्म से मृत्यु नहीं. पूर्णता प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य हे लेकिन वो अंत नहीं हे वह एक शुरुआत हे. शुरुआत हे योग्य रूप से जीवन जीने की, शुरुआत हे ब्रम्ह आधिपत्य की. पूर्णता का अर्थघट्न किया जाए तो यही समज में आता हे की सब कुछ प्राप्त कर लेना. पूर्णता अनंत तथ्यों पर आधारित हे जिसमे हर एक तथ्य अपने आप में पूर्ण हे. फिर क्या हे वे तथ्य? वे तथ्य वही हे जो ब्रम्ह निर्धारित मनुष्य के द्वारा उद्भवित सदाचारी कार्य हे, जो काल खंड में निहित हे. वह चाहे किसीभी रूप में हो, उदाहरण के लिए आध्यातिमक व् भौतिक जीवन की परिस्थितियां, चाहे वह अनुकूल हो चाहे वह प्रतिकूल हो. पूर्णता का पथ वो पथ हे जहाँ पर अनुकूल व् प्रतिकूल का जुडाव होता हे. हर एक पक्ष को जानना ही पूर्णता हे, जहाँ पे कुछ शेष रहे ही नहीं. चाहे वह राम हो कृष्ण हो बुद्ध हो उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया हे, वे चाहते तो अपना जीवन आराम से बिता सकते थे लेकिन उन्हें पूर्णता का अनुभव चाहिए था और उन्होंने भौतिक एवं आध्यातिमक जीवन को समजा. सुख और दुःख को समजा. शांति और युद्ध को समजा. शून्य और समस्त को समाज. और कालखंड में निहित ब्रम्ह के द्वारा सम्पादित सदाचारी शास्वत कार्य को आत्मसार किया. और इसी लिए हम उन्हें देवता कहते हे, पूर्णता की प्राप्ति मनुष्य को देवता बनाती हे. मगर ध्यान रहे पूर्णता कोई चिड़िया नहीं जो आके बैठ जाएगी कंधे पर, जो पूर्णता प्राप्त करना चाहते हे, जिनको मनुष्य योनी मेसे दिव्य योनी देवता योनी में प्रवेश करना हे तो तैयार रहे संघर्ष के लिए, उपभोग और दर्द के लिए, सुख व् दुःख, भौतिकता और आध्यात्म के लिए. चाहे वह अनहद आनंद हो या फिर घोर पीड़ा, किन्ही परिस्थिति में विचलित होना पथभ्रष्ट होना हे क्यूंकि यह तो मात्र पूर्णता की तरफ एक कदम ही होगा...

Sulemani tantra sadhna 3 सुलेमानी तंत्र -साधना -3

सुलेमानी तंत्र ----साधना -3जहां सभी तंत्रो में तीक्ष्ण सुलेमानी तंत्र को माना गया है !क्यू के इस में सिद्धि जल्द और तीक्ष्ण होती है !ऐसा नहीं है के बाकी तंत्र प्रभावकारी नहीं क्यू के तंत्र का अर्थ ही किरिया है !जहां मंत्रो से प्रार्थना की जाती है !और तंत्र किरिया होने के कारण समस्या का निवारण करता ही है !क्यू के किरिया का अर्थ करना मतलव काम किया और हो गया !इस लिए तंत्र दीनता नहीं सिखाता मतलव समस्या के आगे झुकना नहीं !जहां एक बहुत ही प्रभाव कारी साधना दे रहा हु जो सुलेमानी साधना से स्मन्धित है !
क्या आप गुरवत से पूरी तरह घिर गए है ?
क्या कर्ज में फसते जा रहे है ?
क्या शत्रु के षड्यंत्र का वार वार शिकार हो रहे है ?
क्या रोजगार के सभी रास्ते बंद हो गए है?
तो एक वार इस साधना को करे और फिर देखे कितना चेंज आता है आप की ज़िंदगी में !यह एक बहुत ही पाक पंज तन पाक का कलाम है !इसे पूर्ण पावित्रता से करे !
जिस कमरे में आप साधना कर रहे हो उसे अशी तरह साफ करे पोचा वैगरालगा कर जा धो ले फिर शूकल पक्ष के पर्थम शूकरवार को इस साधना को शुरू करे और 21 दिन करनी है !
वस्त्र सफ़ेद पहने और सफ़ेद आसान का उपयोग करे ! दिशा पशिम और इस तरह बैठे जैसे नवाज के वक़्त बैठा जाता है ! सिर टोपी जा सफ़ेद रुमाल से ढक कर बैठे अगरवाती लगा दे और साधना के वक़्त जलती रहनी चाहिए दिये की कोई जरूरत नहीं है !फिर भी लगाना चाहे तो तेल का दिया लगा सकते है !सर्व पर्थम गुरु पूजन कर आज्ञा ले फिर एक माला गुरु मंत्र करे और निमन मंत्र की पाँच माला जप सफ़ेद हकीक माला से करे साधना के बीच बहुत अनुभव हो सकते है !मन को सथिर रखते हुए जप पूर्ण करे !जिस कमरे में साधना कर रहे हो व्हा कोई शराब पीकर न आए इस बात का विशेष ख्याल रखे !जप उल्टी माला से करे न माला हो तो एक घंटा करे !
साबर मंत्र –
बिस्मिल्ला हे रेहमान ए र्र्हीम
उदम बीबी फातमा मदद शेरे खुदा ,
चड़े मोहमंद मुस्तफा मूजी कीते जेर ,वरकत हसन हुसैन की रूह असा वल फेर !

Tuesday, November 29, 2011

RAS SIDDH DARPAN-(ADBHUT RAHASYA)

RAS SIDDH DARPAN-(ADBHUT RAHASYA)
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रस कर्म में सिद्धि पाने के मार्ग में जिन औषधियों का आश्रय लिया जाता है उन्हें सिद्धौष्धियों,दिव्यौषधि तथा महौष्धियों में विभक्त किया गया है . पुनर्नवा, सहदेवी, ताम्रप्रभा , महाबला,काकजन्घा , धर्तुर,रवि,सर्पोंखा, मतस्यक्षी,खंड्जिरी, इन्द्रायण, सिंहिका आदि प्रभुतिकी वनस्पतियां हैं जो रस शास्त्र के साधक को उसका अभीष्ट प्रदान कर देती हैं, शर्त मात्र यही है की साधक को उसके गुण धर्मों का भली भांति ज्ञान हो.

धातु परिवर्तन करते समय इस बात का ध्यान रखना अत्यधिक अनिवार्य है की हम जिस वनस्पति का प्रयोग रस कर्म के लिए कर रहे हैं , वो ग्राहक है या दात्री. यहाँ इन दोनों शब्दों के उचित अर्थ को समझना आवश्यक है. ग्राहक वनस्पतियां वो कहलाती हैं जो किसी भी धातु के धात्विक अंश को मात्र ग्रहण करती हैं. दात्री वो कहलाती हैं जो भूमि में प्राप्त धात्विक अंश को किसी अन्य धातु या पारद में प्रदान कर देती है . परन्तु कुछ वनस्पतियां ऐसी भी होती हैं जो की किसी काल विशेष में ग्राहक का गुण रखती है और किसी कालविशेष में दात्री के गुणों से युक्त हो जाती हैं. मान लो की तीव्र प्रभावों से युक्त एक वनस्पति है सर्पोंखा जिसका प्रयोग रजत निर्माण के लिए किया जाता है तो यदि हम उसे प्राप्त करके उसके स्वरस में रजत चूर्ण का मर्दन करते हैं या रजत के काम धेनु का मर्दन करते हैं और ४-५ घंटों के बाद उस रजत में से रस को प्रथक करके ठीक उसी स्वरस में पारद का मर्दन या संस्कार करते हैं और शराव सम्पुट करके जब हम उस सम्पुट को वांछित अग्नि देते हैं तो उस सम्पुट में उपस्थित पारद का उस वनस्पति से संपर्क हो जाते के कारण वो पारद क्षेत्र धर्म का निर्वाह कर रजत बीज का चरण कर लेता है और स्वयं का जलीयांश त्याग कर स्वयं रजत में परिवर्तित हो जाता है , ठीक यही क्रिया वो धतूरे के साथ स्वर्ण में परिवर्तित होने के लिए करता है. अंतर यहाँ सिर्फ इतना ही होता है की धतूरे के स्वरस का मर्दन स्वर्ण कामधेनु के साथ किया जाता है तभी ये प्रक्रिया होती है.


परन्तु एक महत्वपूर्ण तथ्य भी मैं आपको बता देता हूँ की वनस्पतियों के ये गुण ऋतु अनुसार कम या ज्यादा होते जाते हैं. मुझे स्वामी प्रज्ञानंद जी जब ये प्रक्रिया समझा रहे थे तो उन्होंने अलग अलग ऋतु में ठीक उसी पौधे के रस से ये क्रिया करके दिखाई परन्तु प्रत्येक बार पारद में क्षेत्र रूप में जो बीज चारण हुआ था उसके परिणाम स्वरुप पारद उससे १०० गुना ही रूपांतरित हो पाया. तब मैंने उनसे निराशाजनक स्वर में पूछा की तब तो शत प्रतिशत परिणाम पाने के लिए अनुकूल ऋतु का इंतजार करना होगा?


तब उन्होंने उत्तर दिया की नहीं २४ घंटों में भी अलग अलग समय ग्रीष्म,शरद,शिशिर, बसंत आदि ऋतुएं प्रकट होती हैं और प्रत्येक मौसम में सभी ऋतुएँ आती हैं. मतलब ग्रीष्म ऋतु के २४ घंटो में ग्रीष्म तो आएगी ही परन्तु बसंत और शरद आदि ऋतुयें भी आएँगी ही. तब उस वनस्पति का प्रयोग उनके गुणों के अनुसार अल्प या अधिक परिणाम पाने के लिए किया जा सकता है. एक रस शास्त्री को ये जानना भी आवश्यक होता है की वनस्पतियों अपने पूर्ण प्रभाव को कब देती हैं. तभी उचित मन्त्रों के द्वारा उनका आवाहन करके उनके अंग विशेष को प्राप्त कर उनसे स्वरस निकालना चाहिए. वनस्पतियों का अपना अपना वर्ण वर्ग होता है , रक्त वर्ग, श्वेत वर्ग,पीत वर्ग , नील वर्ग आदि आदि. ये वनस्पतिया पारद से क्रिया कर उसे रग प्रदान करती हैं अर्थात रंजन कर अपना वर्ण प्रदान कर देती हैं . और यही राग गुण पारद तब धातुओं या शरीर को प्रदान करता है जब उसका क्रामण उन पर किया गया हो.

यदि विशिष्ट क्रम और अनुपात से इन औषधियों का योग कराया जाये तो ये विलक्षण प्रभाव दिखाने में समर्थ होती हैं . मुझे भली भांति याद है की जब मैंने पहली बार स्वर्ण तन्त्रं पढ़ी थी तो उस ग्रन्थ को पढ़ कर मैं सदगुरुदेव के पास गया और मैंने उनसे प्रश्न किया की सदगुरुदेव क्या कोई ऐसी पद्धति है जिससे उन रस सिद्धों का आवाहन किया जा सके जो की इस ग्रन्थ में वर्णित हैं, क्यूंकि जैसी पारद गुटिका आपने बताई है, वो बनाना कम से कम मेरे लिए अभी तो संभव नहीं है , तब क्या कोई उपाय नहीं है ,जिससे मैं उन्हें आवाहित कर सकू??

सदगुरुदेव ने कहा की है क्यूँ नहीं , पर बात रस सिद्धों और साधिकाओं की है तो इसके लिए माध्यम रूप में पारद को लेना ही पड़ेगा और ये पारद ६ गुना गंधक जारण से युक्त हो(ये संस्कार साधक स्वयं ही करे तभी ये क्रिया हो पाती है)फिर इस पारद का संयोग कुछ वनस्पतियों से करके उसके द्वारा एक विशिष्ट पद्धति से दर्पण बनाया जाये तो इस प्रकार के दर्पण के द्वारा रस सिद्धों का आवाहन किया जा सकता है और उनसे अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त किया जा सकता है .


इस दर्पण का निर्माण किस प्रकार किया जा सकता है ? और इसकी ये योग कैसे कराया जाता है?
तब गुरुदेव ने रस सिद्ध दर्पण निर्माण की तीन विधियाँ बताई जिनका मैंने प्रयोग करके देखा ,उनमे से एक प्रक्रिया को मैं आप सभी गुरुभाइयों के समक्ष रख रहा हूँ.
८ वे संस्कार से युक्त पारद से शिवलिंग तो बनाया जा सकता हैं पर इसके साथ अग्निक्रिया नहीं की जा सकती हैं .अर्थात अग्नि के माध्यम से इसका बंधन नहीं कर सकते हैं .वाम मार्ग में ऐसा कर सकते हैं पर गंधक जारण नहीं कर सकते हैं. शिवलिंग निर्माण के लिए अष्ट संस्कार वाले पारद की आवश्यकता होती हैं, पर इस प्रयोग के लिए तो ६ गुना गंधक जारित पारद की अनिवार्यता हैं ही . स्वयं के द्वारा कम से कम १०० ग्राम से २०० ग्राम तो पारद गंधक जर्न संस्कार से संन्सकारित करे, किसी अन्य से प्राप्त किया पारद इस प्रक्रिया में उपयोगी नहीं हैं .क्योंकि किसी अन्य के हाथ लगा पारद उस व्यक्ति विशेष के शरिरुइका और मानसिक स्पंदन को ग्रहण कर लेता है जिससे क्रिया में व्यवधान उत्पन्न होता है.


इसके अतिरिक्त निम्न पदार्थों की भी अनिवार्यता होगी , इस दिव्य तेजस्वी दर्पण के निर्माण में..
1. पीपल की अन्तः छाल का रस
2. अकरकरा का रस
3. वज्र(सेहुंड /त्रिधारा ) का रस
4. काला संखिया
5. सरपुंखा का रस या दूध
6. बड (वरगद ) का दूध
7. काली तुलसी का रस
8. काले धतुरा का रस
9. स्वर्ण क्षीरी का दूध
10. शंख की भस्म
11. धान्य अभ्रक
12. इन्द्रायण का रस
13. रक्त पुनर्नवा का रस /अर्क
14. अपामार्ग का अर्क
15. अगस्त्य वृक्ष का अर्क
16. माँ भगवती कामख्या महा पीठ का स्वयं निस्रत पवित्र जल

इन सभी पदार्थ की सम्मिलित कुल मात्रा उतनी ही होना चाहिए जितनी की पारद का वजन लिया गया हैं .
इन सभी को किसी भी क्रम से खरल में डाल कर खरल प्रारंभ करे , और एक विशेष मंत्र का लगातार उच्चारण करते रहे .जब सभी पदार्थ और पारद मिल कर एक रस हो जाये . वह मंत्र है ‘ॐ ब्लूम् ॐ’. इसके बाद उस मिश्रण को सामने रख कर स्नान कर के पश्चिम मुख होकर निम्न मंत्र का १०००० बार जप करे , याद रखिये किसी भी प्रक्रिया के क्रम को स्वयं के मन से परिवर्तित ना करे अन्यथा क्रिया की सफलता संदिग्ध ही रहेगी.


मन्त्र- ॐ चले चुलेचंडे कुमारिकयोरगं प्रविश्य यथा भूतं यथा भव्यं यथा भवति सत्यं दर्शय दर्शय भगवति मा विलम्बय विलम्बय ममाशां पूरय पूरय स्वाहा
तब एक आयताकार या गोलाकार कांच का टुकड़ा ले . एक इसके अनुरूप आकर का फ्रेम भी ले जिसमें की यह अच्छी तरह से फिक्स हो जाये .एक लाल रंग का मख मलमल का कपडा भी ले ले .

प्रक्रिया प्रारभ करने से पहले स्नान कर के पूर्ण शुद्ध हो कर पूर्ण सदगुरुदेव पूजन करे सिद्ध कुंजिका स्त्रोत के ११ पाठ ,महा म्रत्यु न्जय मंत्र का ११ माला जप करे इसके बाद अघोर मंत्र का जप करे .समस्त रस सिद्धो के पूजन के बाद खरल में पारद मिश्रित लेप को उस फ्रेम और दर्पण के मध्य खाली स्थान मैं भरना होगा . इस दर्पण के ऊपर मख मलमल का कपडा डाल दे .इसे आपके अतिरिक्त कोई ओर देखे नहीं . फिर एक स्टूल ले इस पर एक घी का दीपक लगा दे , और हमें दर्पण को ऐसे लगाना हैं कि कि दीपक कि लौ ओर इस दर्पण के मध्य का मध्य बिंदु एक सीध में ही हो . मतलब जब आप अपने आसन पर भूमि पर बैठे तो ये दीपक आपकी कि लौ और दर्पण का मध्य बिंदु एक ही सीध में ही होगे . अब इसको प्राण चेतना से अपूरित करने के लिए सिद्ध कुंजिका स्त्रोत के ५१ पाठ व गुरु मंत्र की ११ माला करे.आसन के लिए श्वेत कम्बल , स्वेत रंग का वस्त्र धरण करे , फिर रात्रि के १२ बजे के बाद से लेकर प्रातः के ५ बजे के मध्य में ही प्रयोग करें. पर इसके लिए पहले ५ माला गुरु मन्त्र का जप करे. फिर दीपक कि लौ (जो दर्पण में बिम्बित हो रही है )में अत्यंत ही विनीत भाव से आवाहन करे तो दर्पण में संबंधित रस सिद्ध आपके सम्मुख होंगे और आप उनसे पहले से ही लिखे प्रश्न नम्रता पूर्वक पूछे . सब्बंधित रस आचार्य या आचार्या आपके प्रश्नों के उत्तर देगे जो कि आपको सुनाई देगें
इसके बाद आप उन्हें नम्रता पूर्वक विदा करें , शांति पाठ करे पुनः एक माला गुरु मन्त्र जप करे . और उस दर्पण पर लाल रंग का मख मलमल का कपडा डाल दे.ये तो वनस्पतियों की सिद्धता का प्रमाण है जब आप इसे करके देखेंगे तो सत्यता और असत्यता का खुद ही पता चल जायेगा. इसी प्रकार इन वनस्पतियों में प्राकृत धात्विक अंश तरल या द्रुति रूप में उपस्थित होता है और हमें काल का विशेष अध्यन कर ये जाना जा सकता है की किन क्षणों में स्वर्ण चैतन्य होता है और किन क्षणों में रजत बीज की प्राप्ति की जा सकती है . इसका ज्ञान भी अत्यंत आवश्यक है. (क्रमशः).............


[ गंधक, शहद,पारद को एकत्र कर के ४८ घंटे खरल करें यहाँ एक बात ध्यान रखना जरुरी है की पारद और गंधक संस्कार तथा बीज युक्त होना आवश्यक हैं अन्यथा क्रिया बिगड सकती है फिर उस मिश्रण को आतिशी बोतल में भर कर ३५ दिनों के लिए जमीं में गड्डा खोदकर दबा दे और ऊपर की भूमि पर दिनभर सूर्य का प्रकाश लगता रहे , ऐसी जगह पर ही ये क्रिया करें . अवधि पूर्ण होने पर इसे निकाल ले और इसकी एक माशे के बराबर की मात्रा १ तोला रजत को स्वर्ण कर देती है. ]
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To achieve siddhita in ras karam ( parad tantra science) , the type of Aaoshidhi (herbs) used known as siddhoshidhi ,divyoshidhi and mahaoshiddhi . punanrnava ,sahdevi, tarmprabha , mahabala, kakjangha , dhatura , ravi, sarpunkha ,matsyakshi,khadinjari, indrayan,shinhika are the important herbs that provide/gives his abhisht /goal/ aim. only criteria is need that sadhak will be well informed about their inherit qualities.
Its very important that while attempting metal transmutation that keep in mind that the herbs used in that are belongs to the donar or accepter varga /section. Here we need to understand the proper meaning of that words. Accepter herbs are those who accept only a very small part of any metal’s metallic element. And donor are those who provide metal’s metallic portion to other metal or in mercury. And some of the herbs has the quality of accepter and donor both on the time based means on some part of the day /month /year they behaves as the donor and other time like accepter. for example one such a herbs is sarpunkha and we are using it for silver making purpose. if we do khral with her juice with silver or kharal with silver kamdheny with that and after 4/5 hours we set aside silver for one side and the remaining juice is again kharal with mercury and use for mardan Sanskar, and after tighten it, as per sharab samput and heat up as appropriate than the mercury present in that samput get into contact with herbs ansh and behave like kshetra and accept silver seed present in that juice .and in the out come ,he left its water ansh and became solid silver. And the same process is done with dhatura plants juice for making gold here only the difference is that juice of dhatura is, khral with (mardan) with swarna kamdhenu only than process happened.

And one more important fact I will describe here that theses quality of herbs increases and decreases as per the season. when swami pragyanand ji describing this process he did the same process in different, different season with the same plant’s juice and the seed accepted by the mercury various differently and in result only 100 times mercury get transmutation , than sadly I asked him than I have to wait till the appointee season comes.
He answered no. in every 24 hours theses all the season comes one by one that means in time of summer season definitely summer will be prominent but winter and rainy season also come one by one. Than we can use the herbs for to get desired result as per according to their season and our need. Its very important facts that one ras shashtri must/ should know that when any herbs is have their full effect only than with the use of proper mantra herbs juice should be taken out. These herbs has their own section like rakt varga (red color based secation), swaet varg (white color), yellow and blue section like that. Theses herbs works with the mercury give their respective color means ranjan kriya happened, and the same color or rang mercury or parad provide to other mental or body if kraman kriya is done on that .
If through a specific way and specific ratio theses herbs are mix together than un imaginable effect can be seen. I still remember that while I first read the SWARNATANTRA and after reading that I went to Sadgurudev ji and told him that if there are any paddhati through that I can also aawahan to ras siddh mentioned in that books , but incurrent it s very difficult me to make such a gutika as mentioned in the books. Are their not any process by which I can aawahan to them.
Sadgurudev ji replied why not, but the question is about aawahan of ras siddh and sadhika than we have to use parad as a medium and that parad should be of six times Gandhak/salpher jarit (all the necessary sanskar needed for that already be done bythe sadhak who want to have this mirror) and through application of various herbs to this parad and finally a solution is prepared and through a specific way a mirror Is prepared and on this mirror any ras siddha can be aawahan and person get the answer of any queries to them.
How this mirror scan be prepared and what is the process by which herbs are used in that ?.
Sadgurudev ji describe to me three way , that I practically did all , one of that I am here describing you my guru brother.

Parad with having stage of asht Sanskar , can be used for shivling \making but on that parad agni kriya/using fire is not allowed means through fire we can not make bandhan /solidifying that .vaam marg we can do that but using gandhak is not permissible . for shivling making asht sankar parad is needed, but for this prayog we require at least six times Gandhak jarit parad , prepare at least 100 to 200 gram of such a sankarit and jarit parad by self only (no other person help can be taken), since if other person touch this type parad the mercury accept his mental and physical vibration. That creates obstruction. In fulfilling our procedure / kriya.
In addition to that following things are required for that making brilliance ,most divine mirror.
1. Inner core juice of pepal tree
2. Juice of akarkara
3. Juice of vajra (sehund)
4. Kala sankhiiya
5. Juice of surpunkha
6. Juice of bargad tree
7. Juice of kali tulsi
8. Juice ofblkack dhatura
9. Milk of swarna kshiri
10. Ash of shanksha
11. Dhyany Abhrak
12. Juice of indrayan.
13. Ark of rakt purnnava
14. Ark of apamarg
15. Ark of agstay tree
16. And the holy water comingout of ma kamakhya maha yoni peeth.
All the above mentioned juice total quantity should be just equal to as the weight of mercury is to be taken.mix all the substance in any series and in a khral and while doing khral chant mentally the mantra om bloom om after that take bath and than facing west chant 10,000 times following mantra ,be careful do not modify the process mentioned here to suit you , other wise the success will be doubtful .
Mantra
Om chale chulechande kumarikyorang yatha bhutam bhavyam yatha bhavti satyam darshay darshay bhagvati ma vilambay vilambay mamansha puray puray swaha.
Than take any glass mirror either rectangular or circulare size and appropriate frame also take so thatit properly get fixed inthat. Take red colored makh mal mal cloth.
Before starting the process wash properly and have full complete Sadgurudev poojan and do 11 paath of Siddh kunjika strota, Maha Mritunjaya mantra 11 round rosary (mala ), and then chant Aghor mantra .than after all the ras siddha poojan use that mixture of parad and herbs fill in the middle hollow portion of mirror and frame , and apply makhmalmal cloth on the mirror so that no other person see that . than take any wooden stand of such an height and put a ghee Deepak on that , and fix the mirror on the wall such that middle portion of the mirror and flame of Deepak be in a staright line, means when you sit on the floor on your aasan than your eye , flame and middle portion of that mirror be in a line. Then for pranschetana a do chant 51 paath of siddh kunjika strota , and 11 round rosary of guru mantra . for aasan (sitting mat) it should be of while color kambal and white colored clothe should be used by you. And do this process in between 12 Am in night to 5 am in the Am morning only but for to use that 5 round of rosary of guru mantra is must. Tan see the reflection of the Deepak flame in the mirror concentrate on that and with full politeness have aawahan of any ras siddha. Ask him any of the question already written with you in this field related, the related ras acharya and achray will definitely give the answer which will be clearly audible to you.
After that very politely ask them to leave. Again do the shanti paath and 1 round of rosary of guru mantra. And red colored makhmalmal cloth again put on that mirror. Theses are the authentication of herbs siddhita, when you yourself try that you can understand fully yourself. Like the same way various herbs has metallic ansh in liquid or in druti form. And can calculate the specific proper time when swarna ( gold) becomes chaitnya, and in which moment silver… that gyan is also must.
In continue….

****ARIF****

Sunday, November 27, 2011

SAPT JEEVAN SARV DEVATV SARV SADHNA SIDDHI DIKSHA

क्या ये सच है ??? बस यही सोचता रहा उस रात ..... आखिर क्यूँ उसी बात को मैं बार बार सोच रहा था .
अब नींद भी नहीं आ रही थी मुझे , पर क्यों??

बस अब नहीं समझ में आ रहा है , अब तो कल मैं सदगुरुदेव से पूछ कर ही रहूँगा. दर असल में हुआ ये था की नवरात्री का शिविर चल रहा था और उस दिन प्रथम सत्र में लगभग १२ बजे गुरुदेव ने अचानक अपने प्रवचन के मध्य बताया की “ तुम लोगो से मेरे सम्बन्ध आज के नहीं हैं बल्कि मैं पिछले २५ जन्मों से तुम्हारा गुरु हूँ” और बस तभी से ये बात मेरे दिमाग के दरवाजे खटखटाने लगी और उसके बाद तो बस बैचेनी सी मेरे मन में समा गयी थी. और अब प्रतीक्षा थी तो बस सदगुरुदेव से मुलाकात की.......

आखिरकार अष्टमी को उनसे मुलाकात संभव हो पाई और वो भी खुद उन्होंने ने ही बुलाया और सर पर चपत मारकर कहा – अब तेरे दिमाग में ये क्या नया घूमने लगा , तू कभी अपने दिल दिमाग को आराम भी देगा.
जी आप ने ही तो कहा है की शिष्य बनने के पहले साधक को जिज्ञासु होना चाहिए- मैंने आँखे झुका कर उत्तर दिया.
हाँ बेटा ये सही बात है और उससे भी ज्यादा जरुरी ये है की,चाहे गुरु सर्व समर्थ हो तब भी अपने मन के भाव उनके चरणों में लिख कर या बोलकर व्यक्त करना ही चाहिए .
पर यदि उनसे मुलाकात संभव नहीं हो तब ????
क्या तेरे पास गुरुचित्र भी नहीं है, उसके सामने व्यक्त कर .
और यदि कभी गुरुचित्र भी पास में न हो तब??
बेटा गुरु और शिष्य प्रथक नहीं होते हैं. बल्कि वो दो देह औए एक प्राण ही होते हैं, भला आत्मिक रूप से अलग अलग रहकर कोई कैसे शिष्य बन सकता है. जब गुरु के प्राणों से साधक के प्राण मिल जाते हैं या एकाकार हो जाते हैं तभी तो वो साधक सच्चे अर्थों में शिष्य बन पाता है. गुरु के प्राणों में उसके प्राण एक तीव्र आकर्षण से जुड जाते हैं , और ये जुड़ाव इतना तीव्र होता है की इसे विभक्त किया ही नहीं जा सकता .
और खुद ही सोच जब आत्मिक रूप से दो प्राण एकाकार हो जाते हैं तब चाहे शिष्य कितने बार भी जन्म ले ले , कही भी जन्म ले ले, गुरु अपने उस अंश को ढूँढ कर अपने पास बुला लेता है , ठीक वैसे ही जैसे मैंने तुम सभी को खोज कर बुलाया है. पर ये इतना सहज नहीं होता है , क्योंकि तब वो शिष्य अपने संबंधों की तीव्रता को महसूस नहीं कर पाता है और न ही उसे अपने जीवन का मूल चिंतन ही याद रहता है , उसे तो बस अपने आस पास के स्वार्थलोलुप रिश्तों की ही याद रहती है और प्रेम की सत्यता को तो वो समझ ही नहीं पाता. बस जिन्हें वो शुरू से देखता आया,वो रिश्ते ही उसकी दृष्टि में सत्य होते हैं. पर जब शिष्य गुरु के प्राणों के तीव्र आकर्षण से उनके श्री चरणों में पहुच जाता है तो गुरु उसे पूर्णत्व प्रदान कर ही देते हैं.
क्या मैं अपना पिछला जीवन देख सकता हूँ ?
हाँ क्यूँ नहीं देख सकता. पिछला जीवन तो कोई भी साधक देख सकता है , यदि वोमदालसा साधना संपन्न कर ले तो ये क्रिया सहज हो जाती है . इसी प्रकार पारदेश्वर के ऊपर त्राटक की क्रिया कर साधक अपने विगत जीवन को देख सकता है.
पर मुझे वो सभी पूर्व जन्म देखने हैं जिनमे मैं आपके श्री चरणों में था और आपके दिव्य साहचर्य से मेरे जीवन सुवासित और पवित्र हुए थे .
क्या ये संभव है??
हाँ मेरे बेटे यदि उपरोक्त साधनाओ को साधक लगातार करता रहता है तो निश्चय ही वो और ज्यादा जन्मों को देख सकता है. पारद शिवलिंग पर त्राटक की क्रिया तो होनी ही चाहिए .
क्या मैं पिछले जीवन में की गयी साधनाओ को इस जीवन से जोड़ सकता हूँ??
निश्चय ही जोड़ सकते हो. पर एक बात याद रखो की पिछले जीवन को देखना और उसमे की गयी साधनाओ का इस जीवन से योग करना ये दो अलग अलग बाते हैं. क्यूंकि उन साधनाओं को इस जीवन से जोड़ने में जिस ऊर्जा और शक्ति की आवश्यकता होती है वो सामान्य रूप से एक नए साधक में नहीं होती है.
तब ये कैसे हो सकता है?
यदि गुरु अपने तपः बल से साधक को एक विशेष दीक्षा दे तो निश्चय ही ऐसा संभव हो जाता है , क्यूंकि चाहे साधक ने कितने ही जीवन में साधनाएं की हो पर अत्यधिक कठिन होता है पिछले सात जीवनों की शक्तियों को एकत्रित करना सम्पूर्ण चक्रों के जागरण के बगैर उनकी चैतन्यता को प्राप्त किये बगैर ये संभव ही नहीं है , परन्तु जब सद्गुरु उसे ऐसी विशेष दीक्षा दे दे और स्वयं के प्राणों का घर्षण कर शिष्य को वो मन्त्र प्रदान कर दे तो साधक उस मन्त्र का पारद शिवलिंग पर त्राटक करते हुए जितना ज्यादा जप करता जायेगा उसे वो सब सामर्थ्यता धीरे धीरे प्राप्त होते जाती है फिर चाहे उस शिष्य ने अपने पिछले जीवनों में किसी भी प्रकार की , कितनी भी साधनाएं की हो चाहे वो किसी भी शक्ति की हो , वे सभी साधनाएं और उनका पूर्ण प्रभाव साधक को इसी जीवन में प्राप्त हो ही जाता है और साधक उन सभी प्रक्रियाओं में पूर्ण रूपें पारंगत हो जाता है. और सात जीवनों की यात्रा के बाद तो साधक की यात्रा इतनी सहज हो जाती है की उस मन्त्र के अभ्यास से से वो और पीछे जाते जाता है और उन शक्तियों को क्रमशः प्राप्त करते जाता है. और सद्गुरु हमेशा यही चाहते हैं की उनका शिष्य अपने अस्तित्व को पूर्ण रूपें समझे और अपने लक्ष्य को प्राप्त करे. इससे ज्यादा गुरु को और क्या चाहिए .
क्या मुझे वो दीक्षा प्राप्त होने का सौभाग्य मिल पायेगा? इसे प्राप्त करने की पात्रता क्या है?
इसके पहले तीन ऐसी दीक्षाएं हैं , जिन्हें प्राप्त कर साधक उससे सम्बंधित साधनाओं को पूर्णता के साथ संपन्न करे तो निश्चय ही साधक को सद्गुरु उसके आग्रह पर ये अद्विय्तीय दीक्षा प्रदान करते ही हैं और साथ ही साथ इससे जुड़े रहस्यों को उजागर भी कर देते हैं. 

सदगुरुदेव के आशीर्वाद से मैंने उन तीनों दीक्षाओं को प्राप्त कर उनसे सम्बंधित साधनाएं भी संपन्न की और तब मैंने गुरुदेव से उस अद्भुत दीक्षा और उससे सम्बंधित रहस्यों का ज्ञान प्रदान करने के लिए प्रार्थना की. तब उन्होंने अत्यंत करुणा भाव से मुझे वो पूर्ण क्षमता युक्त अद्भुत दीक्षा प्रदान की जिसे सिद्धाश्रम के योगियों के मध्य “सप्त जीवन सर्व देवत्व सर्व साधना सिद्धि दीक्षा” के नाम से जाना जाता है.
बाद में मैंने उनके निर्देशानुसार साधनाओं को क्रियाओं को संपन्न कर उन रहस्यों को समझ पाया जो मेरे पिछले जीवन से जुड़े हैं.और आज मैं जो कुछ भी समझ पा रहा हूँ उसके मूल में यही रहस्य है. जीवन का सौभाग्य होता है साधनाओं को संपन्न कर अपने पिछले जीवन को अपनी इन्ही आँखों से देख पाना, क्यूंकि तभी तो हमें अपने इस जीवन के दुर्भाग्य का कारण ज्ञात हो पाता है.
क्या अब भी हम गिडगिडाकर ही जीवन जीते रहेंगे. अब मर्जी है आपकी क्यूंकि जीवन है आपका.





Is this true????Only this I kept thinking that night….But Why, I was thinking only this one point again & again?????Even, I was restless, cannot make for the sleep…..But, not able to make Why????
Now, it’s enough, I will definitely ask Sadgurudev tomorrow anyhow… 

Actually what happened there was Navratri Encampment and on the first day in first session approximate at 12:00 pm in the mid of the session Gurudev suddenly told that the relations between You and Mine is not from today, but we are bonded as a Shishya and a Guru from last 25 birth-cycles……& that was the point which got stucked in my mind and I became so curious….only, I was waiting for the moment I will meet Sadgurudev….
At last, on Ashtami day, I was able to meet Sadgurudev & that too he called me up & patted on my head saying –(All the conversation was between me & Gurudev)
Gurudev - now what new is running in my head & can you give rest to your heart & mind???
Me - Gurudev, you only told that a devotee should have the ability to be curious – I answered by lowering my eyes down….
Gurudev -Yes, My son this is very much true, but the more important thing is no matter the Guru is wholesole,still express the emotions either in written or oral in his feets…
Me – But, what if meeting is not possible???
Gurudev - Don’t you have any of the Guru Picture with you? Do express in front of his picture...
Me – But, what if Guru Picture is also not with you???
Gurudev – My Son, Guru and Shishya are not separate, they are two bodies but one soul….You only tell, how departed from the soul, one can be able to act as a Shishya…..When the devotees get attached with the soul of the Guru, then only a devotee is able to become a true Shishya…The soul of the Shishya gets attached with the Guru soul with great attraction & this attraction is so much bonded that it cannot be departed….
& now you only think when the two different life becomes one through the soul, then no matter the Shishya takes infinite birth he will be identified by his Guru from anywhere and will be called near to him just as I have called all of you…..But, this is not so easy, because at this time the Shishya cannot realize the intensity of the relations and neither he is able to recollect the main base of his life…He is just carried away with the relations which are near to him and is unaware of the fat of true love because he believes only those relations which he had seen since his childhood and grown up with them….But, as soon as he devotes himself into the guidance of the Guru, the Guru provides him the completeness of the life….
Me – Can I experience my previous birth???
Gurudev - Yes, why not???Any devotee can see this if he performs – Madalsa Sadhna, this act will become easy….Simliarly, by performing Tratak Kriya on Pardeshwar will also help in experiencing of his previous birth….
Me – But, I want to experience all my previous birth in which I was devoted to you and my life got blessed under your shelter…..Is this possible???


Gurudev - Yes, my Son, if you will practice the above Sadhna regularly, you will able to feel the experience of more & more previous birth life…. & yes Tratak Kriya on Pardeshwar is must…
Me – Can I get connected with the previous devotions also in this life???
Gurudev -Yes, you can definitely do it but do remember to experience previous birth and to connect the devotions with this life are totally different from each other because to connect those devotions from that life to this life requires too much energy and power and a new devotee does not contains that much of amount….
Me – Then, how is this possible???
Gurudev - If the Guru by recollecting all his devotional power and energy gives a special convocation (Deeksha) to the Shishya, it becomes possible…because no matter a devotee has worked so hard for the devotions but to recollect the last 7 births energy and to activate the whole chakras & auras without the activations of these energy is very much difficult….But, when the Guru gives such a special convocation and keep his all his life on sake for the Shishya and gives that mantra & when the Shishya performs that Mantra on Parad Shivling by the Tratak Kriya he is able to become capable enough to recollect & experience all those energy & powers which he conducted or performed in his previous births & becomes expert in all these processes….& after the 7 births this journey becomes so easy that the devotee can go back to as many life and acquire as much energy and power he can & Sadgurudev always wants this only that his Shishya understand the motto of his existence and achieve his target and aim…..
Me – Will I be blessed with this convocation & how can I make myself eligible for the same???
Gurudev -Before this convocation, the devotee needs to acquire 3 other convocations by which he can perform any act in a complete manner and when he accomplished this thing, the Sadgurudev not only provides the most special convocations on request of the devotee but also explore the many hidden secrets related to all these acts…


With the blessings of the Sadgurudev performed all the 3 convocations and accomplished all the other devotions also & then I requested Sadgurudev to provide me the special secrets of that devotions and then the Sadgurudev with all his love and blessings told the most special convocation which is known as – “Sapt Jeevan Sarv Devatv Sarv Sadhna Siddhi Deeksha” in the camp of the devotes of the Siddhashram…
Later on, in guidance of the Sadgurudev I performed all those devotions and was able to understand all those hidden secrets which were connected with my previous births and today also, if I am able to understand all the other aspects are just because of the fact which lies in base of all these acts…..
This is only the blessings and a good fortune to see, know and learn about the past and previous birth life as because only after this we are able to understand about all the misshapennings of this present life…
we can devote our lives in Sadgurudev holy feets….

.Still, you want to live on others mercy???? Well, the decision is yours as the life belongs to you….



Purv Jivan Darshan Sadhana


मानव जीवन एक अनत लम्बाई लिए हुए श्रंखला में ही गति शील ही हैं , यदि आज के जीवन को बर्तमान माने तो इसका भविष्य और भूतकाल भी तो होना ही चाहिए ही , जीवन को एक रस्सी मान ले और उसके मध्य के किसी भी भाग के पकड़ ले तो निश्चय ही कहीं तो उसका प्रारंभ होगा और कहीं तो उसका अंत होगा ही भले ही वह हमें दृष्टी गत हो या न हो, ठीक इसी तरह हमें हमारा न अतीत मालूम हैं न भविष्य हम मध्य में कहाँ हैं , कहाँ जायेंगे यह सब भी नहीं मालूम ,
जीवन के अनेक प्रश्नों का उत्तर इतना आसान नहीं हैं , की मात्र कुछ तर्क और वितर्क से वर्तमान जीवन की सारी उच्चता और विसंगतियों को समझा जा सके .उसके समझने के लिए पूर्व जीवन दर्शन होना ही चाहिए , तब पता चल सकता हैं की मेरे जीवन में ऐसा क्यों हैं इसका कारण क्या हैं , और जब ये समझ में आ जायेगा तो उसके निराकरण के उपाय भी खोजे जा सकते हैं .
अन्यथा,पूरा जीवन एक अनबुझ पहेली सा बन कररह जायेगा , अपने देश में तीन महान धर्म का उदय हुआ हैं ये हिन्दू , बौद्ध और जैन धर्म हैं , आपस में इनके कितने भी विरोधाभास दिखाए दे पर एक बात पर सभी एक मत हैं की कर्म फल तो प्राप्त होता ही हैं और सहन करना ही पड़ेगा
वेदान्त कहता हैं -हाँ हमने ही उस कर्म का निर्माण किया हैं तो हम ही उसे समाप्त कर भी सकते हैं , पर कैसे उसके लिए कारण भी तो जानना पड़ेगा न ,
आज के जीवन में यही क्यों मेरा भाई हैं या मेरे निकटस्थ होते हुआ भी इनके प्रति मेरे स्नेह सम्बन्ध क्यों नहीं हैं , क्यों दूरस्थ होता हुआ भी व्यक्ति अपना सा लगता हैं, क्यों इतनी गरीबी या शरीर में इतने रोग हैं आदि आदि अनेक प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं ,
क्या इस जीवन में जो गुरु हैं या सदगुरुदेव हैं क्या वह विगत जीवन में भी या उससे भी पहले के जीवन से जुड़े हैं और क्या कारण था की /और कहाँ से संपर्क टुटा , सब तो इस पूर्व जीवन दर्शन से संभव हैं,
आजकल अनेको प्रविधिया विकसित हैं ध्यानके माध्यमसे व्यक्ति धीरे धीरे पीछे जा सकता हैं पर ठीक बाल्य काल की ४ वर्ष कि आयु से पहले जाना बहुत ही कठिन हैं , इस अवरोध को पास करना कठिन हैं .
सम्मोहन भी एक विधा हैं पर उसके लिए उच्चस्तरीय सम्मोहनकर्ता होना चाहिए , साथ ही साथ मानव मस्तिष्क इतना शक्तिशाली हैं की वह जो नहीं हैं वह भी आपको दिखा सकता हैं , इन तथ्योंको जांच करना जरुरी हैं .
साधना क्षेत्र में भी अनेको साधनाए हैं पर सभी इतनी क्लिष्ट हैं इन सभी को ध्यान में रखते हुए एक सरल प्रभाव दायक साधना आप सभी के लिए ..
 मन्त्र :
क्लीं पूर्वजन्म दर्शनाय फट्
सामान्य साधनात्मक  नियम :
·  जप में  काले  रंग की हकीक माला का उपयोग करें
·  साधना  बुध वार से प्रारंभ करसकते हैं 
·  जप काल में  दिशा  दक्षिण   रहेगी 
·  साधन काल में  धारण  किये जाने वाले वस्त्र और आसन  लाल  रंग के होंगे 
·  धृत के दीपक को देखते हुए  रात्रि काल १०  बजे के बाद(10PM) मे 31 माला  मन्त्र जप होना चाहिए 
·  यह क्रम ११ दिन तक चले अर्थात   कुल ११ दिन  तक साधना चलनी चाहिए .
 सफलता पूर्वक होने पर आपको स्वप्न या तन्द्रा अवस्था मे पूर्व जन्म सबंधित द्रश्य दिखाई देते है.  जिनके माध्यम से आपके जीवन की अनेक रहस्य  खुलती जाती हैं. 
आज के लिए बस इतना ही 

***************************************************************************                              This  human life is an integral/ very small  part of  a infinite lengthy  chain ,  if we consider  this  life as a present than  past and future  will definitely  be  there. If you  consider   life as  rope and   in any middle part   you touch than  you can  surely knew that there must  be somewhere  beginning  and  so there must be  some there end,  but we can  not see that ,  but  this is true , we don’t  know where we came  from and where we will go .
 The answer of Many question’s  of life are  not so easy to answer, we cannot  justify  the any problem’s with through  logic only , so we need to see the past lives so that we can  understand  why we behaves like that , reason   behind of various cause/events  that , if we know the cause than we can  search the remedy of that  problem.
 Other wise  our whole  life  became  a just a puzzle , here in our  country  three  great  religion comes   Hindu, jain and  bouddh , in spite  of various differences and beliefs they all are agreeing on a point   that there “a law of karma” applicable everywhere and what  you sow  ,you must  be reap.
  Vedanta says – yes if created the past karma  than we can also remove  or destroy that ,but how  ? for that again we need to know the  cause,
 In this life  ,why this is my  brother  or  this fellow is very near to me but  still  I did not  get enough feeling for  him,   and on the other hand  that one  is living  very  distant land  , and we have  strong attachment to that why?. Why I am  so poor  or  why so many dieses happened to my body, alike all  theses question also get answered.
 The Sadgurudev or guru of this   life, whether  they are alsobe my guru/Sadgurudev   in the past life  . What is the reason why our connection got  broke, so  this all  can be easily known.
There are so many   process available today , through meditation you can  go backward but crossing the  line of  childhood age  of 4 years memory   is very  very difficult,  the hypnotism is also a  very powerful medium,  for  that you have to be  a very expert in that science, but always  remember that our mind is  also a  powerful medium , it can fool you,  so the cross checking of various facts must also be necessary to arrived a  conclusion.
There are many sadhana for this  purpose  in sadhana jagat  and they are quite lengthy, so here is one which  very easy  and effective  for you all..
Mantra:
Kleem purvjanam darshnaay  phat
 General rules :
·  For  jap  you can use   black hakik rosary/mala .
·  Sadhana can be started on any Wednesday.
·  Direction would be  south  facing.
·  The clothes and aasan would be of  red in color.
·  Light up an earthen lamp  filled with ghee and sadhana  should be started after 10  pm(night), and each day 31 mala should  be done.
·  While doing Mantra jap ,Tratak on that  earthen lamp (Deepak) is necessary .
·  This sadhana should be done  11 day in continuous .
 On successfully completing this sadhana you will  get  glimpse of  your past life in dreams. and many mystery of your life get solved.
 This is enough  for today .

Guru Kripa hi kevalm part6

मेरे अपने स्नेही भाई बहिनों ,part6

एक कपडे सिलने वाले का .......परम शौक था लोटरी की खरीदना ...... एक टिकट तो रोज़ .... मालूम तो था की खुलना कभी हैं नहीं...... पर फिर भी .. दिल और आशा से मजबूर . कि शायद कभी ... और एक दिन उसकी दुकान के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी ... साहब लोग आये और उससे से कहा की उसका पहला इनाम निकला हैं 10 लाख रूपये का उस दरजी को तो बिस्वास नही हुआ की .... ये होसकता हैं ...इतना भाग्य .हैं उसका .. पर सच तो सच हैं. उसने तत्काल दुकान बंद की और उसकी चाबी सामने के सूखे कुए में फेंक दी अब भला काम किसको करना हैं...... पैसे की कोई कमी हैं हमको ...
जो चार बात लोगों कि सुने ...

पर हुआ वही जो लोग कहते हैं पैसे के साथ सारे तथाकथित गुण और ऐब भी आ गए , और परिणाम भी वही हुआ जो लोग कहते थे ..., एक दिन थका हारा वह अपनी दूकान वापिस आया और उसी सूखे कुए में उतर कर अपनी दूकान की चाबी खोजने लगा और आज से कसम ……. सारे बुरे गुणों से तौबा ..अब से लाटरी से दूर ..

पर कितने दिन . रोक पाता तो फिर ......अब किस्मत रोज़ रोज़ मेहरबान तो होने से रही वह भी पहला इनाम ............पर क्या जाता हैं एक टिकट ही तो हैं.. और एक दिन पुनः एक गाड़ी आई ,साहब लोग उतरे उससे कहा की पहला इनाम ..

उसे तो बिस्वास ही नहीं हुआ और दुकान बंद कर चाबी पुनः उसी कुए में फेक दी अब कोई गलती नहीं ......... पर होना तो वही था ....... जो होना ही ....... था . सारे वही गुण उसका ......वही पे इंतज़ार कर रहे थे, यह जाकर उन्ही से मिला........एक पल में सारी कसमे वादे की यह न करूँगा ..... हवा में उड़ गए.... पर लोग कहते हैं न .......की .. तो फिर वही बात हुयी सारा धन फिर से गया और सारा स्वास्थ्य गया.. पुनः हार थक कर के वापिस....उदास पुनः चाबी खोजी और ... .

अब फिर से तो किस्मत मेहरबान नहो होसकती ..भाई किसी कि भी इतनी जोर दार नहीं होसकती ..... पर अब क्या करे वह .....मन भी तो नहीं लगता .. एक टिकट फिर से खरीद ही ली,, अब कोई पहला इनाम ..वह भी बार बार.... कोइ पागल ही होगा जो अब सोचेगा , कि उसका तीसरी बार पहला इनाम निकल सकता हैं .

अब पुराने दिन वो अमीरी के ... तभी पुनः एक गाड़ी रुकी उस से साहब लोग उतरे उससे कहा कि उसका पहला इनाम

वह चीख उठा कि अब नहीं नहीं ....

और मित्रो क्या कुछ ऐसा ही नहीं हैं हमारे जीवन में हम सदगुरुदेव से प्रार्थना करते हैं उन्हें बिस्वास दिलाते हैंकि एक बार ऐसा तो हो जाय .... तो बस ……. सदगुरुदेव मैं तो.. आप कहे तो उसके बाद ....
पर जैसे ही कुछ मिला उनके आशीर्वाद से तो ..........फिर से अपने वही गुण दोष के पीछे भाग जाते हैं .. पर फिर ........ जब भरे नेत्रों से प्राथना करते हैंकि प्रभु हम तो लायक नहीं हैं.. तब फिर एक बार सदगुरुदेव करुणा से पुनः जीवन देते हैं और उपलब्धिया भी ...,,

पर जैसे ही वह मिली ,, फिर हम सभी का पुराना राग ... फिर हारे ... फिर लौटे .... कि अब सदगुरुदेव नहीं देंगे .....पर किस से मांगे सकते हैं .. तो एक बार फिर .... और पुनः यही क्रम दुहराया जाता हैं.

मेरे भाई बहिनों ,, पर इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि इस बार सदगुरुदेव ने अपनी करुणा से हम सब का हाथ पकड़ पकड़ कर रास्ते पर लाये हैं , कि सभी चीजे दी हैं एक पिता जैसे ... कोई भेद नहीं किया ...

पर अब वह निखिल स्वरुप में हैं और जब वह , हम सब कि शिष्य होने के प्रारंभिक स्तर की....पहली सीढ़ी में जब कभी परीक्षा लेंगे तो ..क्या हमसभी टिक पायंगे,, कभी सोचे.. और गंभीरता पूर्वक .... साधनाओ को करे,, जिससे कि हमसभी का जीवन का अर्थ सार्थक हो सके .. उन दिव्या श्री चरण कमलो के आशीर्वाद से हमसभी का जीवन और साधना मय हो यही उनसे प्रार्थना हैं...




निखिल प्रणाम

A day Humor 1

आज मूड में हू चलो कुश हास परिहास हो जाये एक वार धर्मराज जी मृत्यु लोग की यात्रा पे आये और उन्हों ने वेश बदला और ट्रेन में यात्रा करने लगे जब एक स्टेशन पे उतरे उनके हाथ में एक अटैचिकेश था !एक आदमी आया और भोला आप भले आदमी लगते हो मैं आपकी हेल्प करता हू !और उसने उस ब्रीफ केस को उठा लिया और उनके साथ चलता रहा !धर्म राज उसकी सेवा से प्रसन हुए और काफी चलने के बाद बोले मैं तुम से प्रसन हू बोलो क्या चाहते हो मैं धर्मराज हू !और उन्हों ने अपना रूप उसे दिखा दिया उस आदमी ने प्रणाम किया और बोला आप सभी के प्राण हारते हो !तो धर्म राज जी ने कहा हा १तो मुझे ऐसा वर दे की आप मेरे प्राण ना हरे तो धर्म राज जी कहने लगे ऐसा तो हो नहीं सकता जो पैदा हुआ है उसे मरना तो पड़ेगा ही पर मैं तुमे यह वर देता हू मैं तुमरे प्राण तुमरे पायो की तरफ खलो के निकालुगा तब तो ठीक है उस आदमी ने कहा !समय बीतता गया उसका टाइम आ गया तो धर्म राज जी आ गये और उसके पायु की तरफ खलो के प्राण निकलने लगे तो उसने पायु दूसरी तरफ कर लिए धर्म राज जी उस तरफ हुए तो उसने फिर पायु घुमा लिए आखिर को उसने पायु उपर की तरफ कर लिए कहा अब कहा खलो के निकालो गे मेरे प्राण तभी उसकी घर वाली आई उसने देखा इन्हें क्या हुआ और आवाज लगी बच्चो देखो तुमरे बापू को क्या हुआ तभी बच्चे य़ा गये और सभी ने उसके पायु पकड़ नीचे को कर दिए और उसे पकड़ कर सीधा कर दिया वोह शोर मचाता रहा ऐसा ना करो पर किसी ने उसकी सुनी नहीं !तो धर्मराज जी बोले अब कहो तो वोह कहने लगा मैंने मरना तो नहीं था पर घर वालो ने मरवा दिया !इसी तरह बहुत भाई साधना तो करना चाहते है पर घर वाले उनकी टांग खीचने लग जाते है !इस लिए अपने महोल को साधना मय बनाये

SADGURUDEV PRASANG- THAT ONE SECOND

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गुरुदेव के सन्याश जीवन की कुछ कडिया एसी होती हे जो की गृहस्थी से जुडी हुयी होती हे. एसी कई घटना हे जोकि गुरुदेव के सन्याशी शिष्यों के साथ घटी हे और बदल दिया हे इतिहास, किन्तु एसी घटनाए प्रकाश में नहीं आती हे . एसेही एक घटना की जानकारी मुझे मिली तो सहम सा गया में, उलज के रह गया, और सवालो का तूफ़ान कुछ एसा उठा की पागल सा हो गया कुछ क्षण , पर जवाब तो उसका वो एक क्षण मात्र ही थी , जिसने कितनो की ज़िन्दगी बदलदी और नजाने कितनो की ज़िन्दगी बदलेगी. वो एक क्षण जिसके ऊपर न जाने किसका हक कहा जाए . और क्या हुआ था, केसे कब और क्यों , क्या खाश हुआ उस एक क्षण में, आगे उसीके शब्दों में ......

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अमृत मंडल, गुरुदेव ने अपने सन्याश जीवन में चुन चुन के ४० शिष्यों को एकजुट किया और इसी मंडली को नाम दिया अमृत मंडल. पता नहीं गुरुदेव का इसपर क्या विचार रहा होगा. ४० शिष्यों को वो टोली , जिसमे एक से एक विलक्षण व्यक्तित्व. सभी अपने अपने साधना विषयो में तो निष्णांत थे ही पर सभी व्यक्तिगत रूप से भी कुछ विचित्र, कुछ फक्कड़, कुछ अलग से रहने वाले. में भी उनमे से ही एक था. गुरुदेव ने हमे उन उँचइयो पर पहोचाया था जहाँ तक साधक कल्पना ही कर सकते हे और इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए एक दिन वह भी आया की जेसे रहे फट जाए . गुरुदेव सन्याश छोडके वापिस गृहस्थी में जा रहे थे. दुसरे सन्याशी शिष्यों की तरह अमृत मंडल के कोई भी साधक ने उन्हें रोका नहीं. सब जानते थे की गुरुदेव वही करेंगे जोकि सही होगा और हमें अपने भावनाओ के ऊपर काबू पाना भी सिख ही तो लिया था. गुरु कोई व्यक्तिगत सम्पति थोड़ी हे, उन पर तो सभी शिष्यों का हक हे . और हम भीनी आँखों से उसे विदा होते हुए देख रहे थे
हिमालय जेसे हसना ही भूल गया था, प्रकृति मायूस सी दुखी सी होके बेठी रहती थी , और सभी सन्याशी शिष्यों की बात ही क्या कहू, वो तो जेसे चलते फिरते पुतले हो गए थे. पर पता नहीं क्यों गुरुदेव किसी भी सन्याशी शिष्यों को मिलने के लिए तैयार ही नहीं होते थे . क्यों ? आखिर क्यों वो अपने आत्मीयो से अलग रहते हे , ठीक हे लेकिन एक बार वो मिल तो सकते ही हे . और में भी यही सोचके दिल बहला लेता था की गुरुदेव कुछ कर रहे हे तो शिष्यों की भलाई के लिए ही करते होंगे.
उसी दौरान गुरुदेव का सन्देश मिला. उन्होंने मुझे बुलाया था , मिलने के लिए. जान के आश्चर्यचकित हो गया में की एसा केसे हुआ , क्यूँ की मेने कभी गुरुदेव से मिलने के लिए गुज़ारिश नहीं की थी और कई तो रो रो के जेसे बेजान मूर्ति बन गए थे. फिर भी .....आखिर उन्होंने बुलाया हे , ज़रूर कुछ तो विशेष होगा ही.दुसरे दिन निश्चित समय पर , कुछ ही क्षण में पहोच गया में उस मंदिर में जहाँ मेरे भगवन साक्षात् थे. अपना रूप परिवर्तन करके गृहस्थ बना और आगे बढ़ गया... सायद उस दिन कुछ विशेष ही होगा. गुरुदेव और वन्दनीय माताजी बहार खड़े थे और खिचड़ी बाँट रहे थे , एक लम्बी सी कतार थी, में उसी में ही खड़ा हो गया. दूर से ही उनकी मुखाकृति देख रहा था, वही प्रसन्नचित्त चहेरा, आन्दित सा, जो हमेशा आनंद बिखेरता रहता हे . अब में उनसे कुछ ही दूरी पर खड़ा था. कई साल बाद उनको देखना देखना नहीं होता, वो तो एक एसा जाम होता हे जिसे पिटे ही रहे पिटे ही जाए, ये तो वही समाज सकता हे जिसने विरह की वेदना देखि हो, वो आनंद एक दूरी ही समजा सकती हे. खेर एक सेवक ने मुझे पड़िया दे दिया. में आगे बढ़ा और वन्दनीय माताजी जो की सच में ब्रम्हांड की शक्ति हे , जो सिर्फ ममता ही ममता बहाती रहती हे उन्हें प्रणाम किया , उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया. और थोड़ी खिचड़ी उठा के मेरे पदिये में दाल दी.

और में आगे बढ़ा, सदगुरुदेव की तरफ. थोड़े दुबले ज़रूर हो गए थे वह, पर मुखाकृति पर वही प्रसन्नता वही आनंद, में जुका और उनके वो पावन चरणों का स्पर्श किया जो की देवताओ के लिए भी दुर्लभ हे. और में उठा. मेने देखा वे सिर्फ निचे की तरफ देख रहे हे. एक क्षण जेसे सालो में बदल चूका था. में इसी रह में था की वो मुझे देखे, सालो बाद में उनकी आँखों में वो ममता करुणा सब देखू , पूरा ब्रम्हांड देखू पर वो पता नहीं कुछ अकड़ सा गया में , लोकिक भाषा में कहू तो ये सब आधी सेकंड में ही हो रहा था. और अचानक उन्होंने नज़ारे उठाई और सीधे तक दिया मेरे नज़रो में

और मेरी रूह कांप गयी जब मेने देखा उनकी आँखों में, वहां पे विषाद था, वहां पे चिंता थी , वहां पे एक दर्द था, बस एक क्षण , और में समजा की क्यों वो नहीं मिलने देते अपने सन्याशी शिष्यों को, और मेने समजा , उन गृहस्थ शिष्यों को भी , उनकी स्वार्थ परस्ता को, उनकी मक्कारी को, उनकी जूठी और खोकली शिष्यता को , और ये सब बस सिर्फ एक क्षण के लिए उतर आया उनकी आँखों में.

एक क्षण भी न रुक पाया में वहा पे, थोडा आगे बढ़ा और ओज़ल हो गया में उस दुनिया से, गुरुदेव ने सब कुछ ही तो कह दिया एक क्षण में , और में भी क्या कहता उनसे. उतना ही काफी था. अगर सायद ज्यादा क्षण रुकता तो में वहीँ तड़प के प्राण त्याग देता. कुछ क्षण or पहोच गया में वही जगह जहा पे अमृत मंडल के शिष्य मेरी राह देख रहे थे, प्रसाद दिया उनको.
सीधे ही उन्होंने पूछा , भाई केसे हे हमारे प्रभु,
मेने कहा ठीक हे . ज्यादा बोल सकू एसी स्थिति ही कहा थी.
और एक पानी की बूंद निकल गयी आंखसे और गिर गयी निचे स्वामी आशितोश के पैर के पास .
क्या हुआ भाई, सब ठीक तो हे
अब और में क्या करता, कब तक दबे रखता अपने दर्द को ...और चींख के साथ निकल गया वो दर्द मेरे आँखों से...भीगा हुआ सा मेरा चेहरा सब कुछ कह गया जो में न कह सका.

स्वामी भ्रमण आनंद , स्वामी शिस्यानन्द, स्वामी प्रेक्षानन्द ..आदि १५ लोगो ने तो देह त्याग पहले ही कर दिया था, ये कहके की गुरुदेव गृहस्थी में जा रहे हे तो हम भी उनके साथ ही जाएँगे. और उन्होंने शारीर का त्याग कर गृहस्थी में जन्म ले लिए, पर इसके बाद गुरुदेव ने मन कर दिया की कोई भी अब देहत्याग कर गृहस्थी में जन्म न ले. अब इस अमृत मंडल के २५ साधक ने रात को ही सदगुरुदेव से अश्रु भरे नैनों से निवेदन किया की वो अब उनका दर्द नहीं देख सकते , गुरुदेव ने भी सभी की भावनाओ को दिल में स्थान दिया और उनको कहा की वो क्या कहते थे

सब ने कहा की गुरुदेव हम देहत्याग करके गृहस्थी में जन्म लेंगे और आपके कार्य को आगे बढ़ाएंगे.

और गुरुदेव ने कृपा करके वो निवेदन स्वीकार कर ही लिया था. सबको अलग अलग निश्चित अवधि दी गयी जिसके बाद ही वो देहत्याग कर सकते हे.
और एक एक करके सब ने देहत्याग किया . में सब से आखरी था . में देख रहा था उस सूर्य को की जो पश्चिम की और भागे जा रहा हे. और में देखते ही रह गया क्यूंकि...कल एक नया सूर्योदय होने वाला हे.......
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और सुबह होने से पहले ही उस अमृत मंडल के आखरी सभ्य ने भी अपने प्राण को शरीर से अलग कर दिया. वो जिसने १२ कृत्ये सिद्ध कर रखी थी, वो जो साधू समाज में मशहूर था अपने अन्नपूर्णा साधना से , जिसकी पहचान थी उसका पागलपन , अल्हड़पन , जिसके गुस्से के आगे कोई गति नहीं, वो जिसे भगवन का भी डर नहीं था.......वही सहम गया था, डर गया था सिर्फ वो एक क्षण में जो उसने गुरुदेव की आँखों में देखा था ......आज वो कहाँ हे किस हाल में कुछ कहा नहीं जा सकता मगर अमृत मंडल के वो सदस्य और वो योगी उस एक क्षण कभी भी नहीं भुला पाए होंगे

जय गुरुदेव