Saturday, May 18, 2019


"संगति


एक विद्वान ने कहा है, “जल जैसी जमीन पर बहता हैउसका गुण वैसा ही बदल जाता है। मनुष्य का स्वभाव भी अच्छे-बुरे विचारों केलोगों की संगति के अनुसार बदल जाता है। इसलिए चतुर मनुष्य बुरे लोगों का साथ करने से डरते हैंलेकिन मूर्ख व्यक्ति बुरे आदमियोंके साथ घुल-मिल जाते हैं और उनके संपर्क से अपने आपको भी दुष्ट बना लेते हैं। मनुष्य की बुद्धि तो मस्तिष्क में रहती हैकिंतुकीर्ति उस स्थान पर निर्भर रहती है जहां वह उठता-बैठता है और जिन लोगों या विचारों की सोहबत उसे पसंद है। आत्मा की पवित्रतामनुष्य के कार्यों पर निर्भर हैऔर उसके कार्य संगति पर निर्भर हैं। बुरे लोगों के साथ रहने वाला अच्छे काम करे यह बहुत कठिन है। धर्मसे स्वर्ग की प्राप्ति होती हैकिंतुधर्माचरण करने की बुद्धि सत्संग या सदुपदेशों से ही प्राप्त होती है। स्मरण रखिए कुसंग से बढ़करकोई हानिकर वस्तु नहीं है तथा संगति से बढ़कर कोई लाभ नहीं है।

"Companionship

A learned man has said: “Water acquires the quality of land upon which it flows”. The same way, the nature of man too, changes according to the company of people having good or bad thoughts. Therefore, wise men avoid contacts with bad people but foolish persons mingle with bad people and spoil themselves. A man’s wisdom depends on his brain, but his prestige and status usually depend upon his surrounding and choice of people. The sanctity of the soul is derived from a man’s deeds which are ultimately induced by the company he keeps. A person doing good in spite of bad company is very rare and difficult. Religion can take you to heaven, but wisdom for practicing religion is obtained from good company and sermons of learned men only. Please remember that nothing is more harmful than bad company and nothing is more beneficial than a good generous companionship. - 




"तीन लोक नौ खंड में गुरु से बड़ा  कोई

करता करे  कर सकेगुरु करे सो होए !

शिष्य के लिए तो गुरु शब्द का उच्चारण ही पर्याप्त है।" - नन्द किशोर श्रीमाली जी


JAI GURUDEV,aaj bahut dino baad kuch post daal raha hun,maine notice kiya hai ki PUJYA SADGURUDEV SWAMI NIKHILESHWARANAND JI k PUJYA GURUDEV - - PUJYA DADA GURUDEV JI MAHARAJ SWAMI SACHCHIDANAND JI k chitra ko lekar internet per kuch galat fehmi hai,plz aap sab samajh lijiye ki SADGURUDEV ne apni magazine mey DADA GURUDEV JI ka chitra agar nahin diya hai toh internet se kisi milte julte naam wale sadhu/sanyasi k chitra ko DADA GURUDEV JI ka chitra samajhana galat hai,paap hai,mai 1993 sey SADGURUDEV NIKHIL JI ki mantra-tantra-yantra vigyan patrika padh raha hun aur aaj GURU-TRIMURTI ki 3 magazines hain jisme jahan tak mujhe yaad hai DADA GURUDEV JI ka chitra nahin diya gaya hai,agar 1993 sey poorv diya gaya ho to mujhe gyat nahin hai,aaj ek gurubhai ney mujhe bataya ki internet k kisi blog sey usne ek chitra nikalkar usey DADA GURUDEV JI ka chitra maankar apne puja sthaan mey rakh kar pujan shuru kar diya hai,ab ek jaruri baat - - SWAMI SACHCHIDANAND STAVAN mey SADGURUDEV ney spasth kaha hai ki MAA SARASWATI kehti hain ki DADA GURUDEV JI ka varnan karna mere liye sambhav he nahin hai,jinke baare mey SADGURUDEV ne kaha hai ki UNKE darshan matra sey param vairagya ki prapti hoti hai,( SWAMI SACHCHIDANAND STAVAN youtube mey hai usey plz suney !!!!) ab aap sab sochen ki JIN DADA GURUDEV JI k vishai mey yeh sab kaha gaya hai UNKA chitra agar aap k ghar mey sthapit ho gaya to kya aap itna pareshan honge? us gurubhai ki problem yeh hai ki uski patni bahut ladti hai and chillati hai and yahan tak ki usey maarti-peetti tak hai,aap batayen ki kya DADA GURUDEV JI k chitra ko ghar mey sthapit karkey pujan karney waley k sath aisa hoga?JINKI pujan-darshan karney ko swayam devi-devta aatur hon toh UNKA CHITRA paas hone par kya kisi ki patni k dwara uski durgati sambhav hai?kya roz marra k problem solve karney mey use itni mushkil aa sakti hai?arey jahan DADA GURUDEV JI k chitra ho and nitya pujan ho WOH JAGAH GURUDHAM JAISI PAVITRA,TEJMAI,SHAKTIMAI AND SAMPANN ho jayegi,devi-devta swatah he khinchey chaley aayengey and naaki us gurubhai k ghar jaisa hoga jahan har din kalah machi rahe isliye plz agar aap k paas internet sey prapt koi chitra hai jise aap DADA GURUDEV JI ka chitra samajh rahey hon to plz GURU-TRIMURTI sey confirm kar len coz meri rai mey GURU-MATAJI and GURU-TRIMURTI k alawa UNKA chitra kahin available nahin hoga,soch kar dekhen…. ???? jab SADGURUDEV dwara sthapit GURU-TRIMURTI hain,UNKI 3 MAGAZINES hai toh fir aap sab anya sthano sey gyan,pics,mantra kyon le lete hain?akhir in sab cheejo ki authenticity kya hai?kya SADGURUDEV and GURU-TRIMURTI k sahitya k alawa kahin aur sey prapt ki hui cheej authentic hai?agar hoti toh SADGURUDEV kyon nahin un logon ko pehle he GURUPAD per baitha dete jo aaj samaj mey SADGURUDEV k naam sey jhooth fraud guru ban baithey hain?plz sab chakkar choddhiye and SADGURUDEV,MATAJI and GURU-TRIMURTI ki sharan jaiye and aise sabhi chitra ko jo anyatra prapt hue hain unhe jaakey kisi nadi mey visarjit kar dijiye,saari anya magazines and e-magazines sey tauba kar lijiye,dhyan rakhiye har peeli chamakti cheej SONA(GOLD) nahin hoti,har kanch ka tukda HEERA(DIAMOND) nahin hota,JAI SADGURUDEV.


होली पर विशिष्ट लघु प्रयोग :

होली की रात्रि (जिस रात्रि होली में अग्नि लगाई जाती )साधकों और तांत्रिकों के लिए तो महत्वपूर्ण होती ही है परंतु आम व्यक्तियों के लिए भी कम महत्वपूर्ण नहीं होती ,क्योंकि इस दिन व्यक्ति अपनी बहुत सी या किसी भी समस्या का निदान साधनाओं या छोटे-छोटे प्रयोगों द्वारा कर सकता है | साधनाएँ बहुत लंबी होती हैं ,हर व्यक्ति के पास इतना समय नहीं होता कि ज़्यादा समय साधनाओं में दे सके.हालाँकि इस दिन की गयी 1 माला का प्रभाव लगभग 100 माला के बराबर होता है,इसलिए साधक और तांत्रिक लोग इस मुहूर्त का बहुत बेसब्री से इंतज़ार करते हैं,जिस से कम श्रम में लंबी साधनाएँ भी सिद्ध कर सकें |यहाँ हम कुछ ऐसे ही लघु प्रयोग देने जा रहे हैं ,जिनके द्वारा सामान्य व्यक्ति भी अपने दैनिक जीवन में आने वाली कई समस्याओं का स्माधान खुद कर सकते हैं,बस ज़रूरत है,श्रद्धा और विश्वास से इन लघु प्रयोगों को करने की |


मूल या बेसिक प्रयोग :


होलिका दहन की रात्रि में ,दहन के समय घर का प्रत्येक सदस्य होलिका को शुद्ध घी भिगोकर 2 लौंग ,1 बताशा और एक पान का पत्ता (डंडी सहित) अर्पित करे ,होली की 11 परिक्रमाएँ करें, 1 सूखा नारियल भी अर्पित करें ,परिक्रमा करते समय नये अनाज (जौ या गेहूँ के दाने)भी बाली सहित होलिका अग्नि को समर्पित करते रहें,कुंकुम,गुलाल और प्रसाद आदि अर्पित करें |

यदि आप घर पर भी होलिका दहन करते हैं तो मुख्य होली में से एक जलती लकड़ी घर पर लाकर नवग्रह की लकड़ियों (जो आजकल पूजा की दुकानों पर भी मिल जाती हैं) एवं गाय के गोबर से बने उपलो (गोबर से कहीं- कहीं बल्ग़ुरियाँ भी लोग बनाकर उपलो की जगह जलाते हैं)से घर पर होली प्रज्ज्वलित करना चाहिए |और ऊपर जो प्रयोग किया है ,उसे मुख्य होली पर ना करके घर पर भी कर सकते हैं,घर का प्रत्येक सदस्य शुद्ध घी में भिगोकर 2 लौंग,1 बताशा ,और पान का एक पत्ता ,और एक सूखा नारियल अर्पित करें, और फिर 11 परिक्रमाएँ होली की घर के सभी सदस्य करें |ये मूल प्रयोग है|


प्रयोग 1.ग्रह दोष निवारण के लिए:


यदि आपको कोई ग्रह पीड़ित कर रहा है तो होलिका दहन के अगले दिन होली की थोड़ी सी राख लाकर(ठंडी होने के बाद)अपने शरीर पर पूरी तरह(तेल की तरह)मल लें,और 1 घंटे बाद गरम पानी से स्नान कर लें,आप ग्रह पीड़ा से तो मुक्त होंगे ही,साथ ही यदि आप पर किसी ने अभिचार-प्रयोगकोई किया है ,तो आप उस से भी मुक्त हो जाएँगे |


ऐसा करना संभव ना हो तो होली के बाद किसी भी सर्वार्ट सिद्धि योग जिस दिन पड़ता हो,उस दिन होली की राख को बहते जल या किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें,आप ग्रह बाधा से मुक्त हो जाएँगे |


प्रयोग 2.शनि दोष समाप्त करने के लिए :

यदि शनि ग्रह के कारण आपको परेशानियाँ आ रही हैं ,या कार्यों में व्यवधान आ रहा है ,तो होली वाले दिन,होलिका दहन के समय काले घोड़े की नाल या शुद्ध लोहे का छल्ला बनवाकर होली की 2 परिक्रमाएँ करने के बाद होलिका अग्नि में डाल दें |दूसरे दिन होली की अग्नि शांत होने उस छल्ले को निकाल कर ले आएँ |उस छल्ले को कच्चे दूध (गाय का हो,तो बेहतर) एवं शुद्ध जल में धोकर शनिवार के दिन सायंकाल या शनि की होरा में दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में शनि देव जी का मंत्र पढ़ते हुए धारण कर लें|आपकी परेशानियाँ और व्यवधान धीरे- धीरे दूर हो जाएँगे |

प्रयोग 3.आर्थिक समस्या से मुक्ति के लिए :

यदि आप किसी तरह की आर्थिक समस्या से ग्रस्त हैं,तो होली की रात्रि में चाँद निकलने के बाद अपने निवास की छत पर आ जाएँ | चंद्र देव का स्मरण कर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप ,अगरबत्ती आदि अर्पित कर कोई भी सफेद रंग का प्रसाद (दूध या मावे से बनी कोई मिठाई) तथा साबूदाने की खीर अर्पित करें ,और अपने निवास स्थान सुख -शांति के साथ-साथ स्थाई आर्थिक समृद्धि के लिए प्रार्थना करें |बाद में प्रसाद को बच्चों में बाँट सकते हैं |कुछ समय बाद आप स्वयं अनुभव करेंगे कि आपकी आर्थिक समस्याएँ कम होकर लाभ की स्थिति बन रही है ,और उत्तरोत्तर यह आपको ये सुख -समृद्धि के द्वार तक ले जाएगी |इस उपाय को प्रत्येक पूर्णिमा को किया जा सकता है |

प्रयोग 4.आर्थिक समस्या का स्थाई समाधान :


इस उपाय को अगर होली की रात कर लिया जाए तो इसके प्रभाव से आप कभी भी आर्थिक समस्या में नहीं आएँगे |इसके लिए होली की रात्रि में सबसेपहले अपने घर या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में शाम को सूर्यास्त होने के पूर्व दिया-बत्ती अवश्य करें |घर या प्रतिष्ठान की सारी लाइट जला देंघर केपूजा स्थल के सामने खड़े होकर लक्ष्मी जी का कोई भी मंत्र 11 बार मानसिक रूप से जपें |फिर घर या प्रतिष्ठान की कोई भी कील लाकर ,जिस स्थानपर होली जलनी है ,वहाँ की मिट्टी में दबा दें |इस उपाय से आपके घर/प्रतिष्ठान में किसी भी तरह की नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं होगा औरआप आर्थिक संकट में भी कभी नहीं आएँगे |


विशेष :- यदि ये करना संभव ना हो तो आप इसे इस तरह भी कर सकते हैं कि होली की रात्रि ,होली जलने के बाद आप बनने वाली थोड़ी गर्म राख घर ले आएँ,फिर घर के मुख्य द्वार के अंदर की तरफ ज़मीन पर कील रख कर उसके ऊपर होली की राख डाल दें और ऊपर से किसी चीज़ से ढक दें |दूसरें दिन कील को उपरोक्त विधि के अनुसार प्रयोग करें और राख को जल में प्रवाहित कर दें |इस से भी आपको उपरोक्तानुसार समुचित लाभ प्राप्त होगा |


प्रयोग 5.बार- बार आर्थिक हानि रोकने के लिए :

होलिका दहन की शाम को अपने मुख्य द्वार की चौखट पर दो मुखी आटे का दीपक बनाकर ,चौखट पर थोड़ा सा गुलाल छिड़क कर ,दीपक जलाकर उस पर रख दें | दीपक जलाते समय मानसिक रूप से अपनी आर्थिक हानि रोकने की प्रार्थना ईश्वर से करें|दीपक ठंडा हो जाने पर उसे जलती होलिका अग्नि में डाल दें |

प्रयोग 6.तंत्र -बाधा निवारण के लिए :

अगर आपको ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति ने आप पर या परिवार के किसी सदस्य पर कोई बड़ा तंत्र -प्रयोग करवाया है ,तो मूल प्रयोग को करने के साथ थोड़ी मिश्री भी होलिका अग्नि में समर्पित करें | अगले दिन होली की राख लाकर ,चाँदी के ताबीज़ में भर कर लाल या पीले धागे में ,गले में धारण करें /करवाएँ |

प्रयोग 7.रुके /फँसे धन की प्राप्ति के लिए :

यदि आपके धन को कोई व्यक्ति वापिस नहीं कर रहा है ,तो जिस दिन होलिका दहन होना है ,उस दिन होली जलने वाले स्थान पर जाकर ,उस स्थान पर अनार की लकड़ी की कलम से उस व्यक्ति का नाम लिख कर ,होलिका माता से अपने धन की वापसी की प्रार्थना करते हुए उसके नाम पर हरा गुलाल इस प्रकार छिड़क दें ,जिस से पूरा नाम गुलाल से ढक जाए,अर्थात नाम दिखाई ना दे | इस उपाय के बाद कुछ ही समय में वो आपके धन को वापिस कर देगा |

प्रयोग 8.आजीविका/नौकरी प्राप्ति के लिए :


होली की रात्रि में काले तिल के 21 दाने दाहिने हाथ में लेकर होलिका दहन के पूर्व 8 परिक्रमा करें,परिक्रमा करते समय निम्न मंत्र का मानसिक जपकरते रहें---


मंत्र :--"ॐ फ्राँ फ़्रीं सः |"

जब परिक्रमा पूर्ण हो जाए ,तो काले तिलों को चाँदी के ताबीज़ में भर कर होली की रात्रि को ही गले में धारण कर लेने से नौकरी में आने वाले व्यवधान दूर होते हैं |इंटरव्यू में भी ये पहन कर जाएँ,सफलता मिलेगी |


प्रयोग 9.शत्रु -बाधा निवारण के लिए :


होली की रात्रि में काँसे की थाली में कनेर के 11पुष्प तथा गूगल की 11 गोलियाँ रख कर जलती हुई होली में नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए जलतीहोलिका में डाल दें -------


मंत्र :-"ॐ हृीं हुम फट .|"


प्रयोग 10.शत्रुता दूर करने के लिए :

होलिका दहन की दूसरी रात्रि को 12 बजे के बाद अनार की कलम से होली की राख में शत्रु का नाम लिखें और बाएँ हाथ से मिटा दें पुनः उसी स्थान पर एक उर्ध्व मुखी त्रिकोण बनाकर उसके बीच में "हृीं" लिख कर यंत्र बनाएँ.उसके बाद वहाँ से कुछ राख लेकर वापस आ जाएँ |ये राख शत्रु के सिर पर डालते ही उसकी शत्रुता समाप्त हो जाएगी |

प्रयोग 11.धन- प्राप्ति के लिए :


आर्थिक कष्ट दूर करने के लिए होली वाले दिन कमलगट्टा की माला लेकर होली की परिक्रमा करते हुए निम्न श्री यंत्र के मंत्र को 108 बार जप करें---


मंत्र :- "ॐ श्रीं हृीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद: प्रसीद: श्रीं हृीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्ये नमः |"

मंत्र जप पूर्ण होने पर माला पहन कर होली के समीप गॉ-घृत का दीपक जलाकर घर लौट आएँ,फिर एक माला नित्य इस मंत्र की करते रहें |जल्दी ही धन-प्राप्ति के योग बनेंगे |


प्रयोग 12.स्वास्थ्य लाभ के लिए :


होलिका दहन के समय होली की 11 परिक्रमा करते हुए निम्न मंत्र का जप मन ही मन में करना चाहिए ----

मंत्र :---"देहि सौभाग्यम आरोग्यम ,देहि में पर मम सुखम |
रूपम देहि ,जयम देहि ,यशो देहि ,द्विशो जहि ||"


होली के बाद नित्य प्रातः इस मंत्र का कम से कम 11 बार अवश्य जप करें |

प्रयोग 13.तंत्र-बाधा (अभिचार-कर्म) निवारक प्रयोग :


होली की रात्रि में या किसी अन्य सिद्ध मुहूर्त में लकड़ी के बाजौट (चौकीपर लाल वस्त्र बिछाकर ,उस पर तांबे के पात्र में जल भर कर ,पान का एकपत्ता उसमें डाल कर रख दें |तांबे के पात्र को काले तिल की ढेरी पर स्थापित पर,सरसों के तेल का दीपक जला लें |फिर निम्न मंत्र की 21 माला जप करतांबे के पात्र में रखे जल को अभिमंत्रित कर ,पूरे घर में पान के पत्ते से छिड़काव करें |

जल की कुछ मात्रा घर का प्रत्येक सदस्य ग्रहण करे तो तंत्र-बाधा शांत होती है |



मंत्र :-" आं हृीं क्रों ऐन्ग "


काले तिलों को शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित कर दें |


प्रयोग 14.धन-सन्चय करने के लिए :
धन-सन्चय के लिए होली के दिन कौड़ी का पूजन का पूजन कर लाल वस्त्र में बाँध कर किसी अलमारी या संदूक में रख दें | इस दिन जो व्यक्ति कौड़ी अपने पास रखता है,उसे वर्ष भर आर्थिक अनुकूलता बनी रहती है |
जय ...... सदगुरुदेव

Happy Birthday Gurudev ! ..... Nikhil Janmotsav Ki Dhero ShubhKaamnaayein ! ..... Happy Happy 21st April ! ..... || Jai Gurudev ||


अष्टांग हवन सामग्री


१॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।

http://dr-narayan-dutt-shrimali-ji.blogspot.com/



वर्तमान के दुःखों का कारण भूतकाल की अकर्मण्यता हैं

और
आज की अकर्मण्यता भविष्य के दुःखों का कारण बनेगी
इसलिए हमे विषम परिस्थितियों में भी अपने कर्म से विमुख नहीं होना चाहिए और अपने दायित्वों का पालन करते रहना चाहिए यही सुखमय भविष्यका गुप्त मँत्र है। 
ईष्ट या गुरु की साधना अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्ति के निमित्त होना चाहिए न की जबरदस्ती ये अपना कर्म ही उन परथोप देने के लिए



"श्री " का निवास वही होता जहा इन बातो का ध्यान रखा जाता है जो इन नियमको नहीं समझता वो दुःख , रोग शोक से परेशान रहता है .. 


"श्री " का अर्थ यही है


भोजन करने सम्बन्धी कुछ जरुरी नियम

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1.पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !
2. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
3. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !किउंकि पाचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2 : 3 0 घंटे पहले तक प्रवलरहती है
4. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !
5. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
6 . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
7. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
8. मल मूत्र का वेग होने पर,कलह के माहौल में,अधिक शोर में,पीपल,वट वृक्ष के नीचे,भोजन नहीं करना चाहिए !
परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
10. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथनाकरके भोजन करना चाहिए !
11. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
12. इर्षा , भय , क्रोध, लोभ ,रोग , दीन भाव,द्वेष भाव,के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
13. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
14. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
15. भोजन के समय मौन रहे !
16. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
17. रात्री में भरपेट न खाए !
18. गृहस्थ को 320 g से ज्यादा न खाना चाहिए !
19. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
20. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !
21. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है
22. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
23. कुत्ते का छुवा, बासी , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
24. कंजूस का, राजा का,वेश्या के हाथ का,शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए
यह नियम आप जरुर अपनाये और फर्क देखें

India's first terrorist was Muslim, History of India भारत का पहला आतंकवादी मुस्लिम था भारत का इतिहास

भारत का पहला आतंकवादी मुस्लिम था भारत का इतिहास 

मुहम्मद बिन क़ासिम (अरबी: محمد بن قاسم , अंग्रेज़ी: Muhammad bin Qasim) भारत में सबसे पहले हमला किया था जो की मुस्लिम था लाखो हिन्दू के घरो को लूटा रैप किया और  लाखो जान ले लिया जो इश्लाम को नहीं अपनाया इस में मैं ने उसे आतंकवादी बोलै तो कैसे मैं किसी को आहत किया ये तो भारत का इतिहास है ? अगर इतिहास को  बोलन गुनाह है तो फेसबुक, गूगल  को भारत का इतिहास पढ़ना चाहिए तभी आप  सही गलत का निर्णयन ले सकते है हिन्दू धर्म में किसी की हत्या करने कर  दंड  कठोर है  पर वही मुस्लिम  धर्म आपने बिस्तर  को बढ़ाने  के लिए किसी  की  हत्या  लूट  रैप  अधर्म पर कोई  कुछ नहीं  बोलै जाता ऐसे शांति का धरम बताया जाता है ये एक छल है भारत का इतिहास  पढ़ कर निर्णयन ले  तभी ये सही होगा  किसी के गलत  रिपोर्ट पर कारवाही  निंदनीय है?

आज कल फेस बुक और गूगल यूटुब पर मुस्लिम पर लिखा गया आर्टिकल या मुसिलम  ने खुद बोलै बोल को आगे  फोरवोर्ड नहीं करने देता है जो मुस्लिम का पक्ष लेता है ये निंदनीय है ? हिन्दू धर्म पर कोई कुछ बोल जाता है उसे सभी प्रमोट करने का चलन बढ़ रहा है

मुहम्मद बिन क़ासिम (अरबी: محمد بن قاسم , अंग्रेज़ी: Muhammad bin Qasim) was the first attack in India, which was Muslim who raped the homes of millions of Hindus and raped millions and took millions who did not convert to Islam. In this, I would call him a terrorist, how I hurt someone, Is history? If history is a sin, then Facebook should read the history of India, then you can decide the right wrong. Punishment by killing someone in Hindu religion is harsh but the same Muslim religion is killing you for raising the bed. But no one speaks of anything like Dharam of such peace. It is a trick to read the history of India and take a decision, it will be right then it will be right for anyone to report abuse on the wrong report The financial


https://hi.wikipedia.org/wiki/मुहम्मद_बिन_क़ासिम


अपने सैनिकों को युद्ध में ले जाते हुए मुहम्मद बिन क़ासिम

Monday, May 13, 2019

Monday, January 28, 2019

साबुन से मानव जीवन को ख़तरा

साबुन से मानव जीवन को ख़तरा

हम साबुन से नहाकर सोचते है की हमारे शरीर की सफ़ाई हो गयी , परंतु सफ़ाई ऐसे होती है जैसे जब चोर घर का पुरा माल ले जाता है फिर हम बोलते है की चोर घर का पुरा माल साफ़ कर गया । भाइयों वेद के अनुसार अपनी स्किन ख़ुद सफ़ाई करती है ,वेद में नहाने का ज़रूर लिखा है परंतु उसका उद्देश अपनी शरीर की माँसपेशियों को एक्टिव करने का है , अपने शरीर का तापमान ३७ डिग्री रहता है और सामान्य मौसम में पानी का तापमान २५ डिग्री रहता है , जब शरीर से कम तापमान शरीर पर डालते है तो उसको ३७ डिग्री तक लाने के लिए सारी मांसपेशिया एक्टिव हो जाती है , बस इतना ही काम बताया है नहाने से वेद में । अब इन भांड लोगों ( फ़िल्मी दुनिया ) ने TV पर इतना प्रचार कर दिया कि बिना साबुन के नहाना मतलब ग़रीब , महागरीब । मै पिछले एक साल से केवल सादे पानी से नहा रहा हु , और शरीर एकदम स्वस्थ है । अब इस साबुन के दुस्परिणाम बता रहा हूँ । पहला स्किन पर कुछ चिकनाई रहती है जिससे स्किन फटे नहीं और मुलायम रहे और स्किन स्वस्थ रहे । साबुन ने चिकनाई ख़त्म कर दी , नहाने के बाद शरीर पर तेल लगाओ या न लगाओ स्किन रोग होना निश्चित है । अब आगे सुनो जब साबुन के उपगोग के बाद पानी नाली में बहाया जाता है । फिर ये गंदा पानी ज़मीन में जाएगा या किसी नदी नाले में । इस तरह ये पानी दोनो जगह से लोटकर प्रदूषित होकर , कैन्सर युक्त होकर हमारे पास वापिस आता है ,या तो ट्यूबवेल , हेंडपम्प , या नगर पालिका से सुबह सप्लाई होकर । नगर पालिका से जो पानी घरों में आता है वह किसी नदी पर डैम बनाकर या बहती नदी के पानी को फ़िल्टर प्लांट पर साफ़ करके सप्लाई की जाती है , जब फ़िल्टर प्लांट पर पानी साफ़ होता है तो , उसको दो तरह से साफ़ किया जाता है की वो दिखने में साफ़ हो दूसरा ज़हरीला ना हो । रेत में छानकर साफ़ कर दिया और क्लोरीन डालकर किटाणुरहित कर दिया , क्लोरीन अपने आप में ही ज़हर है , मतलब ज़हर को बड़े ज़हर से मारा गया । फिर वो पानी आपके पास ही आएगा , जब इस तरह का पानी लम्बे समय तक पियोगे तो कैन्सर होना निस्चित है। अब इस साबुन का पानी नदी नाले से किसान भी अपनी फ़सलो को देते है , वो फ़सल भी ज़हरीली होती है और मिट्टी भी कठोर हो जाती है , मिट्टी इतनी कठोर हो जाती है की इसकी जुताई केवल ट्रैक्टर से हो सकती है बैल से नहीं, और जब मिट्टी कठोर हो गयी तो बारिश का पानी नीचे ज़मीन में नहीं जाएगा , केवल बाढ़ लाएगा । मतलब प्रलय ही प्रलय । इसी तरह कपड़े धोने का साबुन , बर्तन साफ़ करने वाला साबुन , toilet साफ़ करने वाला harpic का उपयोग करना कैन्सर को न्योता देना है , इन सभी का विकल्प मुल्तानी  मिट्टी है या काली मिट्टी , मुल्तानी  मिट्टी को साबुन की जगह उपयोग कीजिए मानव जीवन को बचाइए ।

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poorn chaitany paurush praapti saadhana पूर्ण चैतन्य पौरुष प्राप्ति साधना by dr narayan dutt shrimali





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Sunday, January 20, 2019



21 जनवरी को होगा साल का पहला पूर्ण चंद्र ग्रहण
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नए साल 2019 के पहले हफ्ते में ही इस बार सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) हुआ और अभी महीना खत्म भी नहीं हुआ है कि पूर्ण चंद्रग्रहण (Lunar Ecipse) पड़ने जा रहा है। जी हां...21 जनवरी को पूर्णिमा (Full Moon) है और इसी दिन पड़ने जा रहा है साल का पहला चंद्रग्रहण। वही इस चंद्रग्रहण को काफी खास भी माना जा रहा है क्योंकि वैज्ञानिक नज़रिए से इसे सुपर ब्लड मून (Super Blood Moon) का नाम दिया गया है। कहा जा रहा है कि इस चंद्र ग्रहण में चांद बाकी दिनों के मुकाबले 14 फीसदी बड़ा और 30 फीसदी ज्यादा चमकीला नजर आता है। यही कारण है कि चांद सुर्ख लाल रंग का नज़र आता है। वही रात को अंधेरे में ये नजारा बेहद ही अद्भुत नज़र आता है। यही कारण है कि इसे ब्लड मून कहा जाता है।
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कब से कब तक होगा चंद्रग्रहण ?
भारतीय समयनुसार यह ग्रहण 20 जनवरी सुबह 10 बजे से लेकर 21 जनवरी की शाम 3 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। 20 जनवरी रात्रि 11 बजकर 40 मिनट से पूर्ण चंद्रग्रहण शुरू होगा। भारतीय समयानुसार ये चंद्रग्रहण 21 जनवरी सुबह 11.12 बजे तक रहेगा। कहा जाता है कि जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य जब एक ही लाइन में आ जाते हैं और जब चांद पर पृथ्वी की प्रच्छाया पड़ती है तब चंद्रग्रहण होता है। वही ग्रहण से पहले सूतक काल 12 घंटे पहले ही शुरू हो जाता है। इस लिहाज़ से सूतक 20 जनवरी की रात 9 बजे से ही शुरु हो जाएगा।
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कहां-कहां दिखेगा चंद्रग्रहण?
खास बात ये है कि चंद्रग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। ये केवल अफ्रीका, यूरोप, उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका और मध्य प्रशांत में ही नज़र आएगा। इससे पहले सूर्य ग्रहण भी भारत में नज़र नहीं आया था। 21 जनवरी को पड़ने वाला चंद्रग्रहण न्यूयार्क, लॉस एंजिलेस, लंदन, शिकागो, एथेंस, पेरिस, मास्को, ब्रेसेल्स और वाशिंगटन डीसी में नज़र आएगा।बता दें कि यह ग्रहण साल का पहला पूर्ण चंद्रगहण होगा। हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। 20-21 जनवरी को लगने वाला चंद्र ग्रहण मध्य प्रशांत महासागर, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में दिखाई देगा। ज्योतिष की माने तो भले ही ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा लेकिन ग्रहण के दौरान आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा वरना इसका बुरा असर पड़ता है:
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1. ग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिए। उस समय घर में रखा हुआ खाना या पेय पदार्थ उपयोग करने लायक नहीं होता है।
2. सूतक एवं ग्रहण काल में झूठ, कपट आदि बुरे विचारों से परहेज करना चाहिए।
3. ग्रहण काल में मन तथा बुद्धि पर पड़ने वाले कुप्रभाव से बचने के लिए जप, ध्यानादि करना चाहिए।
4. ग्रहण काल में व्यक्ति को मूर्ति स्पर्श, नाख़ून काटना, बाल काटना जैसे काम नहीं करना चाहिए।
5. इस समय बच्चे, वृद्ध,गर्भवती महिला या रोगी को खाना या दवा लेने में कोई दोष नहीं लगता है।
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6 जनवरी 2019 को साल का पहला सूर्य ग्रहण पड़ा लेकिन वह भारत में नहीं नजर आ सका. जिसके बाद 21 जनवरी को साल का पहला चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. हालांकि यह ग्रहण भी भारत के किसी भी हिस्से में नहीं दिखेगा. जबकि उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका, यूरोप और मध्य प्रशांत में यह ग्रहण दिखाई दे सकता है. इस ग्रहण को वैज्ञानिक नाम सुपर बल्ड वूल्फ मून दिया गया है. शास्त्रों की मानें तो ग्रहण के दौरान मंत्रों का जाप काफी उत्तम माना -गया है. इसके साथ ही ग्रहण के दौरान कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें करने से व्यक्ति की परेशानियां दूर हो जाती हैं.
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चंद्र ग्रहण 2019 (Lunar Eclipse 2019) के दौरान जरूर करें ये काम

1. योग ध्यान करें– ग्रहण काल के दौरान किसी भी तरह की मेडिटेशन और योग साधना करना काफी बेहतर माना जाता है. कहा जाता है कि ग्रहण के दौरान जो भी साधना करता है उसे विशेष रूप से फल प्राप्त होता है.

2. दान करें– ग्रहण के दौरान दान-पुण्य का खास महत्व बताया गया है. ग्रहण के दौरान आप किसी भी गुरु, ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद इंसान की मदद कर सकते हैं. माना जाता है कि ग्रहण के समय या बाद में किए जाने वाले दान से व्यक्ति के संकट दूर होते हैं.

3.पढ़ाई के लिए अच्छा समय– अगर आप अपने बच्चे को लिखना, पढ़ना, संगीत या किसी भी तरह की पढ़ाई शुरू करना चाहते हैं तो ग्रहण सबसे बेहतर समय होगा. ग्रहण काल में यह सब शुरू करना शुभ रहेगा.

4. मौन व्रत करें– ग्रहण के दौरान ध्यान रखें कि व्यर्थ में किसी से ज्यादा वार्तालाप नहीं हो सके. कोशिश तो यह करें कि ग्रहण के समय आप मौन साधना करें. ग्रहण काल के दौरान मौन व्रत का विशेष महत्व बताया गया है.

Saturday, January 5, 2019

surya grahan, पहला सूर्य ग्रहण

surya grahan पहला सूर्य ग्रहण

इस साल का पहला सूर्य ग्रहण रविवार को होगा , लेकिन यह भारत में नहीं दिखेगा ! ग्रहण के वक्त सूर्य , शनि , बुध , चंद्र भी धनु राशि में होंगे ! यह सूर्य ग्रहण सिर्फ मध्य - पूर्व चीन , जापान , उत्तर व दक्षिणी कोरिया , उत्तर पूर्वी रूस , मध्य पूर्वी मंगोलिया और अलास्का के पश्चिमी तटों में दिखाई देगा ! ग्रहण की शुरुवात रविवार सुबह ०५:०४ बजे से होगी ! ग्रहण का मध्य रविवार सुबह ०७:११ बजे होगा और यह ग्रहण सुबह ०९:१८ बजे समाप्त होगा !





2019मे पडने वाला पहला सूर्य ग्रहण

पहला सूर्य ग्रहण छह जनवरी को पड़ने जा रहा है जो आंशिक सूर्य ग्रहण है आैर ये भारत में नहीं दिखेगा।

भारतीय समयानुसार ग्रहण सुबह 5.04 बजे पर शुरू होगा और 9.18 बजे खत्म होगा।


ग्रहण और शनि अमावस्या का योग
साल का पहला ग्रहण शनिवार के दिन पड़ने के कारण इसका महत्व काफी बढ़ गया है। सूर्य ग्रहण भले ही भारत में दिखाई नहीं देगा लेकिन इस दिन शनैश्चरी अमावस्या होने की वजह से यह दिन बेहद खास होगा। शनैश्चरी अमावस्या के दिन ग्रहण होने के कारण इस दिन दान, जप-पाठ, मंत्र एवं स्तोत्र-पाठ और स्नान का महत्व बढ़ जाता है।

साल 2019 में कुल 5 ग्रहण लगेगा

- साल 2019 में कुल 5 ग्रहण लगेगा जिसमे से 3 सूर्यग्रहण और 2 चंद्रग्रहण होगा।

- 16-17 जुलाई को खग्रास में चंद्रग्रहण होगा। वहीं 26 दिसंबर को सूर्य ग्रहण होगा, जो भारत में देखा जा सकेगा।

पहला सूर्यग्रहण
5 जनवरी को सूर्यग्रहण होगा। ये भारत में दिखाई नहीं देगा।

दूसरा चंद्रग्रहण
21 जनवरी को चंद्रग्रहण होगा। ये भी पहले सूर्यग्रहण की तरह भारत में दिखाई नहीं देगा।

तीसरा खग्रास सूर्यग्रहण
2 जुलाई 2019 को खग्रास सूर्यग्रहण होगा। लेकिन यह भी भारत में दिखाई नहीं देगा।

चौथा खंडग्रास चंद्रग्रहण
16 जुलाई 2019 को खंडग्रास चंद्रग्रहण होगा। ये ग्रहण भारत में दिखाई देगा।

पांचवां और अंतिम सूर्य ग्रहण
साल 2019 का अंतिम सूर्यग्रहण 26 दिसंबर 2019 को होगा। ये ग्रहण सिर्फ दक्षिण भारत के कुछ इलाकों में ही दिखाई देगा।

जय गुरुदेव
जय निखिल

Sunday, August 12, 2018

Mahakaal Sadhna (महाकाल साधना) by Dr Narayan Dutt Shrimali, महाकाल मंत्र, शिव शंकर साधना

Mahakaal Sadhna (महाकाल साधना) by Dr Narayan Dutt Shrimali, महाकाल मंत्र, शिव शंकर साधना

https://m.youtube.com/watch?v=RpTGUbQZ2-0

बावन भैरव प्रयोग) Bawan Bhairav Prayog by Dr. Narayan Dutt Shrimali

बावन भैरव प्रयोग) Bawan Bhairav Prayog by Dr. Narayan Dutt Shrimali
https://m.youtube.com/watch?v=iYRwVlPXvV8

Friday, June 1, 2018

दुर्गा गुप्त-सप्तशती gupt durga saptashati



दुर्गा गुप्त-सप्तशती
सात सौ मन्त्रों की 'श्री दुर्गा सप्तशती, का पाठ करने से साधकों का जैसा कल्याण होता है, वैसा-ही कल्याणकारी इसका पाठ है। यह 'गुप्त-सप्तशती' प्रचुर मन्त्र-बीजों के होने से आत्म-कल्याणेछु साधकों के लिए अमोघ फल-प्रद है।
इसके पाठ का क्रम इस प्रकार है। प्रारम्भ में 'कुञ्जिका-स्तोत्र', उसके बाद 'गुप्त-सप्तशती', तदन्तर 'स्तवन' का पाठ करे। १, ३ , ५ ,११ ५१ पाठ  किया जाये रोज तो सप्तशती का पूरा लाभ साधक को मिलता ही है उस के हर कार्य बनने लगता है जो चाहे इच्छा हो प्राप्त होने लगता है | लक्ष्मी की किरपा साधक पर हमेशा बानी रहती है 

कुञ्जिका-स्तोत्र
।।पूर्व-पीठिका-ईश्वर उवाच।।
श्रृणु देवि, प्रवक्ष्यामि कुञ्जिका-मन्त्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेन चण्डीजापं शुभं भवेत्‌॥1॥
न वर्म नार्गला-स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासं च न चार्चनम्‌॥2॥
कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्‌।
अति गुह्यतमं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्व-योनि-वच्च पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।
पाठ-मात्रेण संसिद्धिः कुञ्जिकामन्त्रमुत्तमम्‌॥ 4॥

अथ मंत्र


ॐ श्लैं दुँ क्लीं क्लौं जुं सः ज्वलयोज्ज्वल ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल प्रबल-प्रबल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
॥ इति मंत्रः॥
इस 'कुञ्जिका-मन्त्र' का यहाँ दस बार जप करे। इसी प्रकार 'स्तव-पाठ' के अन्त में पुनः इस मन्त्र का दस बार जप कर 'कुञ्जिका स्तोत्र' का पाठ करे।

।।कुञ्जिका स्तोत्र मूल-पाठ।।
नमस्ते रुद्र-रूपायै, नमस्ते मधु-मर्दिनि।
नमस्ते कैटभारी च, नमस्ते महिषासनि॥
नमस्ते शुम्भहंत्रेति, निशुम्भासुर-घातिनि।
जाग्रतं हि महा-देवि जप-सिद्धिं कुरुष्व मे॥
ऐं-कारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रति-पालिका॥
क्लीं-कारी कामरूपिण्यै बीजरूपा नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्ड-घाती च यैं-कारी वर-दायिनी॥
विच्चे नोऽभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि॥
धां धीं धूं धूर्जटेर्पत्नी वां वीं वागेश्वरी तथा।
क्रां क्रीं श्रीं मे शुभं कुरु, ऐं ॐ ऐं रक्ष सर्वदा।।
ॐ ॐ ॐ-कार-रुपायै, ज्रां-ज्रां ज्रम्भाल-नादिनी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि, शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥
ह्रूं ह्रूं ह्रूं-काररूपिण्यै ज्रं ज्रं ज्रम्भाल-नादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवानि ते नमो नमः॥7॥

।।मन्त्र।।

अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराविर्भव, आविर्भव, हं सं लं क्षं मयि जाग्रय-जाग्रय, त्रोटय-त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा॥
म्लां म्लीं म्लूं दीव्यती पूर्णा, कुञ्जिकायै नमो नमः।।
सां सीं सप्तशती-सिद्धिं, कुरुष्व जप-मात्रतः॥
इदं तु कुञ्जिका-स्तोत्रं मंत्र-जाल-ग्रहां प्रिये।
अभक्ते च न दातव्यं, गोपयेत् सर्वदा श्रृणु।।
कुंजिका-विहितं देवि यस्तु सप्तशतीं पठेत्‌।
न तस्य जायते सिद्धिं, अरण्ये रुदनं यथा॥
। इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ।

गुप्त-सप्तशती

ॐ ब्रीं-ब्रीं-ब्रीं वेणु-हस्ते, स्तुत-सुर-बटुकैर्हां गणेशस्य माता।
स्वानन्दे नन्द-रुपे, अनहत-निरते, मुक्तिदे मुक्ति-मार्गे।।
हंसः सोहं विशाले, वलय-गति-हसे, सिद्ध-देवी समस्ता।
हीं-हीं-हीं सिद्ध-लोके, कच-रुचि-विपुले, वीर-भद्रे नमस्ते।।१

ॐ हींकारोच्चारयन्ती, मम हरति भयं, चण्ड-मुण्डौ प्रचण्डे।
खां-खां-खां खड्ग-पाणे, ध्रक-ध्रक ध्रकिते, उग्र-रुपे स्वरुपे।।
हुँ-हुँ हुँकांर-नादे, गगन-भुवि-तले, व्यापिनी व्योम-रुपे।
हं-हं हंकार-नादे, सुर-गण-नमिते, चण्ड-रुपे नमस्ते।।२

ऐं लोके कीर्तयन्ती, मम हरतु भयं, राक्षसान् हन्यमाने।
घ्रां-घ्रां-घ्रां घोर-रुपे, घघ-घघ-घटिते, घर्घरे घोर-रावे।।
निर्मांसे काक-जंघे, घसित-नख-नखा, धूम्र-नेत्रे त्रि-नेत्रे।
हस्ताब्जे शूल-मुण्डे, कुल-कुल ककुले, सिद्ध-हस्ते नमस्ते।।३

ॐ क्रीं-क्रीं-क्रीं ऐं कुमारी, कुह-कुह-मखिले, कोकिलेनानुरागे।
मुद्रा-संज्ञ-त्रि-रेखा, कुरु-कुरु सततं, श्री महा-मारि गुह्ये।।
तेजांगे सिद्धि-नाथे, मन-पवन-चले, नैव आज्ञा-निधाने।
ऐंकारे रात्रि-मध्ये, स्वपित-पशु-जने, तत्र कान्ते नमस्ते।।४

ॐ व्रां-व्रीं-व्रूं व्रैं कवित्वे, दहन-पुर-गते रुक्मि-रुपेण चक्रे।
त्रिः-शक्तया, युक्त-वर्णादिक, कर-नमिते, दादिवं पूर्व-वर्णे।।
ह्रीं-स्थाने काम-राजे, ज्वल-ज्वल ज्वलिते, कोशिनि कोश-पत्रे।
स्वच्छन्दे कष्ट-नाशे, सुर-वर-वपुषे, गुह्य-मुण्डे नमस्ते।।५

ॐ घ्रां-घ्रीं-घ्रूं घोर-तुण्डे, घघ-घघ घघघे घर्घरान्याङि्घ्र-घोषे।
ह्रीं क्रीं द्रूं द्रोञ्च-चक्रे, रर-रर-रमिते, सर्व-ज्ञाने प्रधाने।।
द्रीं तीर्थेषु च ज्येष्ठे, जुग-जुग जजुगे म्लीं पदे काल-मुण्डे।
सर्वांगे रक्त-धारा-मथन-कर-वरे, वज्र-दण्डे नमस्ते।।६

ॐ क्रां क्रीं क्रूं वाम-नमिते, गगन गड-गडे गुह्य-योनि-स्वरुपे।
वज्रांगे, वज्र-हस्ते, सुर-पति-वरदे, मत्त-मातंग-रुढे।।
स्वस्तेजे, शुद्ध-देहे, लल-लल-ललिते, छेदिते पाश-जाले।
किण्डल्याकार-रुपे, वृष वृषभ-ध्वजे, ऐन्द्रि मातर्नमस्ते।।७

ॐ हुँ हुँ हुंकार-नादे, विषमवश-करे, यक्ष-वैताल-नाथे।
सु-सिद्धयर्थे सु-सिद्धैः, ठठ-ठठ-ठठठः, सर्व-भक्षे प्रचण्डे।।
जूं सः सौं शान्ति-कर्मेऽमृत-मृत-हरे, निःसमेसं समुद्रे।
देवि, त्वं साधकानां, भव-भव वरदे, भद्र-काली नमस्ते।।८

ब्रह्माणी वैष्णवी त्वं, त्वमसि बहुचरा, त्वं वराह-स्वरुपा।
त्वं ऐन्द्री त्वं कुबेरी, त्वमसि च जननी, त्वं कुमारी महेन्द्री।।
ऐं ह्रीं क्लींकार-भूते, वितल-तल-तले, भू-तले स्वर्ग-मार्गे।
पाताले शैल-श्रृंगे, हरि-हर-भुवने, सिद्ध-चण्डी नमस्ते।।९

हं लं क्षं शौण्डि-रुपे, शमित भव-भये, सर्व-विघ्नान्त-विघ्ने।
गां गीं गूं गैं षडंगे, गगन-गति-गते, सिद्धिदे सिद्ध-साध्ये।।
वं क्रं मुद्रा हिमांशोर्प्रहसति-वदने, त्र्यक्षरे ह्सैं निनादे।
हां हूं गां गीं गणेशी, गज-मुख-जननी, त्वां महेशीं नमामि।।१०

स्तवन
या देवी खड्ग-हस्ता, सकल-जन-पदा, व्यापिनी विशऽव-दुर्गा।
श्यामांगी शुक्ल-पाशाब्दि जगण-गणिता, ब्रह्म-देहार्ध-वासा।।
ज्ञानानां साधयन्ती, तिमिर-विरहिता, ज्ञान-दिव्य-प्रबोधा।
सा देवी, दिव्य-मूर्तिर्प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।१

ॐ हां हीं हूं वर्म-युक्ते, शव-गमन-गतिर्भीषणे भीम-वक्त्रे।
क्रां क्रीं क्रूं क्रोध-मूर्तिर्विकृत-स्तन-मुखे, रौद्र-दंष्ट्रा-कराले।।
कं कं कंकाल-धारी भ्रमप्ति, जगदिदं भक्षयन्ती ग्रसन्ती-
हुंकारोच्चारयन्ती प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।२

ॐ ह्रां ह्रीं हूं रुद्र-रुपे, त्रिभुवन-नमिते, पाश-हस्ते त्रि-नेत्रे।
रां रीं रुं रंगे किले किलित रवा, शूल-हस्ते प्रचण्डे।।
लां लीं लूं लम्ब-जिह्वे हसति, कह-कहा शुद्ध-घोराट्ट-हासैः।
कंकाली काल-रात्रिः प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।३

ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोर-रुपे घघ-घघ-घटिते घर्घराराव घोरे।
निमाँसे शुष्क-जंघे पिबति नर-वसा धूम्र-धूम्रायमाने।।
ॐ द्रां द्रीं द्रूं द्रावयन्ती, सकल-भुवि-तले, यक्ष-गन्धर्व-नागान्।
क्षां क्षीं क्षूं क्षोभयन्ती प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।४

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भद्र-काली, हरि-हर-नमिते, रुद्र-मूर्ते विकर्णे।
चन्द्रादित्यौ च कर्णौ, शशि-मुकुट-शिरो वेष्ठितां केतु-मालाम्।।
स्त्रक्-सर्व-चोरगेन्द्रा शशि-करण-निभा तारकाः हार-कण्ठे।
सा देवी दिव्य-मूर्तिः, प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।५

ॐ खं-खं-खं खड्ग-हस्ते, वर-कनक-निभे सूर्य-कान्ति-स्वतेजा।
विद्युज्ज्वालावलीनां, भव-निशित महा-कर्त्रिका दक्षिणेन।।
वामे हस्ते कपालं, वर-विमल-सुरा-पूरितं धारयन्ती।
सा देवी दिव्य-मूर्तिः प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।६

ॐ हुँ हुँ फट् काल-रात्रीं पुर-सुर-मथनीं धूम्र-मारी कुमारी।
ह्रां ह्रीं ह्रूं हन्ति दुष्टान् कलित किल-किला शब्द अट्टाट्टहासे।।
हा-हा भूत-प्रभूते, किल-किलित-मुखा, कीलयन्ती ग्रसन्ती।
हुंकारोच्चारयन्ती प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।७

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं कपालीं परिजन-सहिता चण्डि चामुण्डा-नित्ये।
रं-रं रंकार-शब्दे शशि-कर-धवले काल-कूटे दुरन्ते।।
हुँ हुँ हुंकार-कारि सुर-गण-नमिते, काल-कारी विकारी।
त्र्यैलोक्यं वश्य-कारी, प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।८

वन्दे दण्ड-प्रचण्डा डमरु-डिमि-डिमा, घण्ट टंकार-नादे।
नृत्यन्ती ताण्डवैषा थथ-थइ विभवैर्निर्मला मन्त्र-माला।।
रुक्षौ कुक्षौ वहन्ती, खर-खरिता रवा चार्चिनि प्रेत-माला।
उच्चैस्तैश्चाट्टहासै, हह हसित रवा, चर्म-मुण्डा प्रचण्डे।।९

ॐ त्वं ब्राह्मी त्वं च रौद्री स च शिखि-गमना त्वं च देवी कुमारी।
त्वं चक्री चक्र-हासा घुर-घुरित रवा, त्वं वराह-स्वरुपा।।
रौद्रे त्वं चर्म-मुण्डा सकल-भुवि-तले संस्थिते स्वर्ग-मार्गे।
पाताले शैल-श्रृंगे हरि-हर-नमिते देवि चण्डी नमस्ते।।१०

रक्ष त्वं मुण्ड-धारी गिरि-गुह-विवरे निर्झरे पर्वते वा।
संग्रामे शत्रु-मध्ये विश विषम-विषे संकटे कुत्सिते वा।।
व्याघ्रे चौरे च सर्पेऽप्युदधि-भुवि-तले वह्नि-मध्ये च दुर्गे।
रक्षेत् सा दिव्य-मूर्तिः प्रदहतु दुरितं मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।११

इत्येवं बीज-मन्त्रैः स्तवनमति-शिवं पातक-व्याधि-नाशनम्।
प्रत्यक्षं दिव्य-रुपं ग्रह-गण-मथनं मर्दनं शाकिनीनाम्।।
इत्येवं वेद-वेद्यं सकल-भय-हरं मन्त्र-शक्तिश्च नित्यम्।
मन्त्राणां स्तोत्रकं यः पठति स लभते प्रार्थितां मन्त्र-सिद्धिम्।।१२

चं-चं-चं चन्द्र-हासा चचम चम-चमा चातुरी चित्त-केशी।
यं-यं-यं योग-माया जननि जग-हिता योगिनी योग-रुपा।।
डं-डं-डं डाकिनीनां डमरुक-सहिता दोल हिण्डोल डिम्भा।
रं-रं-रं रक्त-वस्त्रा सरसिज-नयना पातु मां देवि दुर्गा।।१३
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देवी कवच/चण्डी कवच

देवी कवच

विनियोग – ॐ अस्य श्रीदेव्या: कवचस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, ख्फ्रें चामुण्डाख्या महा-लक्ष्मी: देवता, ह्रीं ह्रसौं ह्स्क्लीं ह्रीं ह्रसौं अंग-न्यस्ता देव्य: शक्तय:, ऐं ह्स्रीं ह्रक्लीं श्रीं ह्वर्युं क्ष्म्रौं स्फ्रें बीजानि, श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये सर्व रक्षार्थे च पाठे विनियोग:।
ऋष्यादि-न्यास – ब्रह्मर्षये नम: शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नम: मुखे, ख्फ्रें चामुण्डाख्या महा-लक्ष्मी: देवतायै नम: हृदि, ह्रीं ह्रसौं ह्स्क्लीं ह्रीं ह्रसौं अंग-न्यस्ता देव्य: शक्तिभ्यो नम: नाभौ, ऐं ह्स्रीं ह्रक्लीं श्रीं ह्वर्युं क्ष्म्रौं स्फ्रें बीजेभ्यो नम: लिंगे, श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये सर्व रक्षार्थे च पाठे विनियोगाय नम: सर्वांगे।

ध्यान-

ॐ रक्ताम्बरा रक्तवर्णा, रक्त-सर्वांग-भूषणा।
रक्तायुधा रक्त-नेत्रा, रक्त-केशाऽति-भीषणा।।1
रक्त-तीक्ष्ण-नखा रक्त-रसना रक्त-दन्तिका।
पतिं नारीवानुरक्ता, देवी भक्तं भजेज्जनम्।।2
वसुधेव विशाला सा, सुमेरू-युगल-स्तनी।
दीर्घौ लम्बावति-स्थूलौ, तावतीव मनोहरौ।।3
कर्कशावति-कान्तौ तौ, सर्वानन्द-पयोनिधी।
भक्तान् सम्पाययेद् देवी, सर्वकामदुघौ स्तनौ।।4
खड्गं पात्रं च मुसलं, लांगलं च बिभर्ति सा।
आख्याता रक्त-चामुण्डा, देवी योगेश्वरीति च।।5
अनया व्याप्तमखिलं, जगत् स्थावर-जंगमम्।
इमां य: पूजयेद् भक्तो, स व्याप्नोति चराचरम्।।6
।।मार्कण्डेय उवाच।।
ॐॐॐ यद् गुह्यं परमं लोके, सर्व-रक्षा-करं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं, तन्मे ब्रूहि पितामह।।1

।।ब्रह्मोवाच।।

ॐ अस्ति गुह्य-तमं विप्र सर्व-भूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं, तच्छृणुष्व महामुने।।2
प्रथमं शैल-पुत्रीति, द्वितीयं ब्रह्म-चारिणी।
तृतीयं चण्ड-घण्टेति, कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।3
पंचमं स्कन्द-मातेति, षष्ठं कात्यायनी तथा।
सप्तमं काल-रात्रीति, महागौरीति चाष्टमम्।।4
नवमं सिद्धि-दात्रीति, नवदुर्गा: प्रकीर्त्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि, ब्रह्मणैव महात्मना।।5
अग्निना दह्य-मानास्तु, शत्रु-मध्य-गता रणे।
विषमे दुर्गमे वाऽपि, भयार्ता: शरणं गता।।6
न तेषां जायते किंचिदशुभं रण-संकटे।
आपदं न च पश्यन्ति, शोक-दु:ख-भयं नहि।।7
यैस्तु भक्त्या स्मृता नित्यं, तेषां वृद्धि: प्रजायते।
प्रेत संस्था तु चामुण्डा, वाराही महिषासना।।8
ऐन्द्री गज-समारूढ़ा, वैष्णवी गरूड़ासना।
नारसिंही महा-वीर्या, शिव-दूती महाबला।।9
माहेश्वरी वृषारूढ़ा, कौमारी शिखि-वाहना।
ब्राह्मी हंस-समारूढ़ा, सर्वाभरण-भूषिता।।10
लक्ष्मी: पद्मासना देवी, पद्म-हस्ता हरिप्रिया।
श्वेत-रूप-धरा देवी, ईश्वरी वृष वाहना।।11
इत्येता मातर: सर्वा:, सर्व-योग-समन्विता।
नानाभरण-षोभाढया, नाना-रत्नोप-शोभिता:।।12
श्रेष्ठैष्च मौक्तिकै: सर्वा, दिव्य-हार-प्रलम्बिभि:।
इन्द्र-नीलैर्महा-नीलै, पद्म-रागै: सुशोभने:।।13
दृष्यन्ते रथमारूढा, देव्य: क्रोध-समाकुला:।
शंखं चक्रं गदां शक्तिं, हलं च मूषलायुधम्।।14
खेटकं तोमरं चैव, परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं च खड्गं च, शार्गांयुधमनुत्तमम्।।15
दैत्यानां देह नाशाय, भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं, देवानां च हिताय वै।।16
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे ! महाघोर पराक्रमे !
महाबले ! महोत्साहे ! महाभय विनाशिनि।।17
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये ! शत्रूणां भयविर्द्धनि !
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री, आग्नेय्यामग्नि देवता।।18
दक्षिणे चैव वाराही, नैऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारूणी रक्षेद्, वायव्यां वायुदेवता।।19
उदीच्यां दिशि कौबेरी, ऐशान्यां शूल-धारिणी।
ऊर्ध्वं ब्राह्मी च मां रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।।20
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शव-वाहना।
जया मामग्रत: पातु, विजया पातु पृष्ठत:।।21
अजिता वाम पार्श्वे तु, दक्षिणे चापराजिता।
शिखां मे द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।।22
मालाधरी ललाटे च, भ्रुवोर्मध्ये यशस्विनी।
नेत्रायोश्चित्र-नेत्रा च, यमघण्टा तु पार्श्वके।।23
शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये, श्रोत्रयोर्द्वार-वासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्, कर्ण-मूले च शंकरी।।24
नासिकायां सुगन्धा च, उत्तरौष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृत-कला, जिह्वायां च सरस्वती।।25
दन्तान् रक्षतु कौमारी, कण्ठ-मध्ये तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्र-घण्टा च, महामाया च तालुके।।26
कामाख्यां चिबुकं रक्षेद्, वाचं मे सर्व-मंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च, पृष्ठ-वंशे धनुर्द्धरी।।27
नील-ग्रीवा बहि:-कण्ठे, नलिकां नल-कूबरी।
स्कन्धयो: खडि्गनी रक्षेद्, बाहू मे वज्र-धारिणी।।28
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदिम्बका चांगुलीषु च।
नखान् सुरेश्वरी रक्षेत्, कुक्षौ रक्षेन्नरेश्वरी।।29
स्तनौ रक्षेन्महादेवी, मन:-शोक-विनाशिनी।
हृदये ललिता देवी, उदरे शूल-धारिणी।।30
नाभौ च कामिनी रक्षेद्, गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
मेढ्रं रक्षतु दुर्गन्धा, पायुं मे गुह्य-वासिनी।।31
कट्यां भगवती रक्षेदूरू मे घन-वासिनी।
जंगे महाबला रक्षेज्जानू माधव नायिका।।32
गुल्फयोर्नारसिंही च, पाद-पृष्ठे च कौशिकी।
पादांगुली: श्रीधरी च, तलं पाताल-वासिनी।।33
नखान् दंष्ट्रा कराली च, केशांश्वोर्ध्व-केशिनी।
रोम-कूपानि कौमारी, त्वचं योगेश्वरी तथा।।34
रक्तं मांसं वसां मज्जामस्थि मेदश्च पार्वती।
अन्त्राणि काल-रात्रि च, पितं च मुकुटेश्वरी।।35
पद्मावती पद्म-कोषे, कक्षे चूडा-मणिस्तथा।
ज्वाला-मुखी नख-ज्वालामभेद्या सर्व-सन्धिषु।।36
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं, रक्षेन्मे धर्म-धारिणी।।37
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्र-हस्ता तु मे रक्षेत्, प्राणान् कल्याण-शोभना।।38
रसे रूपे च गन्धे च, शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्वं रजस्तमश्चैव, रक्षेन्नारायणी सदा।।39
आयू रक्षतु वाराही, धर्मं रक्षन्तु मातर:।
यश: कीर्तिं च लक्ष्मीं च, सदा रक्षतु वैष्णवी।।40
गोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्, पशून् रक्षेच्च चण्डिका।
पुत्रान् रक्षेन्महा-लक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।।41
धनं धनेश्वरी रक्षेत्, कौमारी कन्यकां तथा।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमंकरी तथा।।42
राजद्वारे महा-लक्ष्मी, विजया सर्वत: स्थिता।
रक्षेन्मे सर्व-गात्राणि, दुर्गा दुर्गाप-हारिणी।।43
रक्षा-हीनं तु यत् स्थानं, वर्जितं कवचेन च।
सर्वं रक्षतु मे देवी, जयन्ती पाप-नाशिनी।।44

।।फल-श्रुति।।

सर्वरक्षाकरं पुण्यं, कवचं सर्वदा जपेत्।
इदं रहस्यं विप्रर्षे ! भक्त्या तव मयोदितम्।।45
देव्यास्तु कवचेनैवमरक्षित-तनु: सुधी:।
पदमेकं न गच्छेत् तु, यदीच्छेच्छुभमात्मन:।।46
कवचेनावृतो नित्यं, यत्र यत्रैव गच्छति।
तत्र तत्रार्थ-लाभ: स्याद्, विजय: सार्व-कालिक:।।47
यं यं चिन्तयते कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्नोत्यविकल: पुमान्।।48
निर्भयो जायते मर्त्य:, संग्रामेष्वपराजित:।
त्रैलोक्ये च भवेत् पूज्य:, कवचेनावृत: पुमान्।।49
इदं तु देव्या: कवचं, देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत् प्रयतो नित्यं, त्रि-सन्ध्यं श्रद्धयान्वित:।।50
देवी वश्या भवेत् तस्य, त्रैलोक्ये चापराजित:।
जीवेद् वर्ष-शतं साग्रमप-मृत्यु-विवर्जित:।।51
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे, लूता-विस्फोटकादय:।
स्थावरं जंगमं वापि, कृत्रिमं वापि यद् विषम्।।52
अभिचाराणि सर्वाणि, मन्त्र-यन्त्राणि भू-तले।
भूचरा: खेचराश्चैव, कुलजाश्चोपदेशजा:।।53
सहजा: कुलिका नागा, डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरीक्ष-चरा घोरा, डाकिन्यश्च महा-रवा:।।54
ग्रह-भूत-पिशाचाश्च, यक्ष-गन्धर्व-राक्षसा:।
ब्रह्म-राक्षस-वेताला:, कूष्माण्डा भैरवादय:।।55
नष्यन्ति दर्शनात् तस्य, कवचेनावृता हि य:।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजो-वृद्धि: परा भवेत्।।56
यशो-वृद्धिर्भवेद् पुंसां, कीर्ति-वृद्धिश्च जायते।
तस्माज्जपेत् सदा भक्तया, कवचं कामदं मुने।।57
जपेत् सप्तशतीं चण्डीं, कृत्वा तु कवचं पुर:।
निर्विघ्नेन भवेत् सिद्धिश्चण्डी-जप-समुद्भवा।।58
यावद् भू-मण्डलं धत्ते ! स-शैल-वन-काननम्।
तावत् तिष्ठति मेदिन्यां, जप-कर्तुर्हि सन्तति:।।59
देहान्ते परमं स्थानं, यत् सुरैरपि दुर्लभम्।
सम्प्राप्नोति मनुष्योऽसौ, महा-माया-प्रसादत:।।60
तत्र गच्छति भक्तोऽसौ, पुनरागमनं न हि।
लभते परमं स्थानं, शिवेन सह मोदते ॐॐॐ।।61
।।वाराह-पुराणे श्रीहरिहरब्रह्म विरचितं देव्या: कवचम्।।