Monday, August 1, 2011

Siddhashram is a boon

Siddhashram is a boon, bestowed upon mankind, from our ancestors, saints, sages & Yogis of high order. This is synonymous to a paradise on the earth and finds its mention in "Rigveda", the oldest scripture of human civilization. A saint, revealing his expressions in Rigvedic hymns says, "Sometime or the other, when the most auspicious moment of my life arrives, I will certainly be able to enter Siddhashram and to perform the Sadhna practices of high order by sitting on its sacred ground".

Siddhashram has been described in hundreds of ancient scriptures. Maharishi Vashistha called it the fortune of man whereas Vishwamitra termed it as the real beauty of life. According to Maharishi Chyavan, there is a natural characteristic in the soil of Siddhashram to eliminate spontaneously the ailments of the body. Maharishi Pulastya says it is the dream of life and Kanad praising it says,"Only one or two among a thousand saints are fortunate enough to get the privilege of entering into Siddhashram". Bhishma, lying on the bed of arrows expressed his last wish before Lord Krishna that he wanted to go to Siddhashram with his mortal body. Yudhistir also, after the end of Mahabharat war, requested, Lord Krishna with joined palms, "If some of the virtues of my life are left and if you bestow your grace upon me, I wish to spend some part of my life in Siddhashram". Gorakhnath, addressing his disciples said, "The ultimate of Tantra and Sadhnas is the entrance into Siddhashram". At one place, Bhagvatpad Shankaracharya has said, "The fulfillment of human life can only be attained when one goes to Siddhashram and takes a holy dip in Siddhyoga lake".

It is my most cherished dream that my disciples might reach the divine land of Siddhashram where life is really unique, where consciousness has reached amazing levels, where there is real purity and sacredness, where there is divine radiance all around. I want them to experience all this and return to the world and tell the common man about that great spiritual land. I want them to tell everyone how one can reach the highest spiritual planes by giving up one's material goals.

Your sadgurudev
Nikhilashweranand

Vivah Badha Nivarak Saabar Sadhna

Vivah Badha Nivarak Saabar Sadhna
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जन्मकुंडली में कई ऐसे योग होते हैं जिनकी वजह से किसी भी व्यक्ति फिर वो चाहे पुरुष हो या स्त्री अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी विवाह से वंचित रह जाते हैं.... साथ ही कई बार ये रूकावट बाहरी बाधाओं या प्रारब्ध की वजह से भी आती हैं. फिर चाहे लाख प्रयास करते जाओ उम्र मानों पंख लगाकर उड़ते जाती है पर एक तो रिश्ते आते नहीं हैं,और यदि आते भी हैं तो अस्वीकृति के अलावा और कुछ प्राप्त नहीं होता है. लोग लाख उपाय करते रहते हैं पर समस्या का समुचित निदान नहीं हो पाता है.परन्तु निम्न प्रयोग नाथ सिद्धों की अद्भुत देन है समाज,को जिसके प्रयोग से कैसी भी विपरीत स्थिति की प्रतिकूलता अनुकूलता में परिवर्तित होती ही है और विवाह के लिए श्रेष्ट संबंधों की प्राप्ति होती ही है.
किसी भी शुभ दिवस पर मिटटी का एक नया कुल्हड़ लाए. उसमे एक लाल वस्त्र,सात काली मिर्च एवं सात ही नमक की साबुत कंकड़ी रख दें.हांडी का मुख कपडे से बंद कर दें.कुल्हड़ के बाहर कुमकुम की सात बिंदियाँ लगा दे.फिर उसे सामने रख कर निम्न मंत्र की ५ माला करे.मन्त्र जप के पश्चात हांडी को चौराहे पर रखवा दे. इस प्रयोग का असर देख कर आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे.
मन्त्र-
गौरी आवे ,शिव जो ब्यावे.अमुक को विवाह तुरंत सिद्ध करे.देर ना करे,जो देर होए ,तो शिव को त्रिशूल पड़े,गुरु गोरखनाथ की दुहाई फिरै.
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A horoscope contains various calculations due to which any person whether male or female, the married life's greatest joy is missed.... They also often fail because of external constraints or by some destiny wish also. No matter, one works very hard to make it favorable the age just gets more and more but no one gets the right proposal and if they arrives one have no option left just to dismiss them. People work for lacs of the solutions but the problem remain unresolved…But the below mentioned devotional practice is the most divine and amazing gift to the society by which any of the unfavorable condition can be made favorable and the person gets the most best options for the marriage…

At any auspicious day, bring the Kulhad (Mud Pot)…Keep red cloth,7 black peeper and 7 pieces of Salt (raw salt) in that kulhad..Cover the open mouth of the pot by a cloth…Now, place 7 points of Kumkum on the exterior body of the pot…Perform the below mentioned Mantra 5 rounds and after the whole practice, place that handi (Pot) on a square (where the 4 diff.roads meet at a circle)….You will be amazed to see the results of this devotional practice…

Mantra: - Gauri Aave,Shiv Jo Byaave,Amuk Ko Vivaah Turant Siddh Kare,Der Na Kare,jo Der Hoye,To Shiv Ko Trishul Pade,Guru Gorakhnath Ki Duhaai Phirai.







ParamPujya Pratahsamaraniya Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

Saturday, July 30, 2011

what is shradha?




श्रधा क्या होती है ? ,आपने देखा होगा की जब सर्दी का मौसम होता है तो मानसरोवर झील पूरी बर्फ से ढक जाती है ऐसा मैदान बन जाता है की वहा फूटबाल खेल सकते है ,उस समय हंस उस मानसरोवर से उड़ते हैं और 3000 मील दूर एक पेड़ का आश्रय लेते है तवांग झील का आश्रय लेते है और तवांग झील ही एक ऐसे झील है जिसका पानी सर्दियों में भी गर्म रहता है ,3000 मील दूर ,1-2 हजार नहीं ,कहाँ मानसरोवर कहाँ तवांग और वे हंस ३००० मील उड़कर तवांग झील में आश्रय लेते है और उसी पेड़ पर आश्रय लेते है पिछले वर्ष जिस पेड़ पर रुके थे ,उससे पिछले वर्ष जिस पेड़ पर रुके थे ,वे पेड़ नहीं बदलते अगर पेड़ हरा -भरा है तब भी और अगर सर्दियों में उस पेड़ के पत्ते पूरे जाध जाते है तब भी वे हंस उसी पेड़ का सहारा लेते है |पक्षियों में भी इतनी समझ होती है और हम इतने गए बीते है की आज इस गुरु को बनाते है ,कल उस गुरु को बनाते है.आज हरिद्वार में गुरुको बनाते है तो कल देहरादून में एक गुरु को बनाते है ,तो कभी लखनऊ में गुरु को बनाते है रोज एक -एक पेड़ बदलते रहते है और आपकी जिन्दगी भटकती रहती है |पर हँसे कभी पेड़ नहीं बदलते चाहे हरा भरा पेड़ है तब भी और यदि सूख कर डंठल ,पेड़ रह जाए तब भी क्योंकि वह जानता है की आश्रय मुझे मिलेगा तो बस यही मिलेगा ,इसको श्रधा कहते है.आपने आप को पूरी तरह गुरु में निमग्न कर देने की क्रिया ,गुरु ज्यादा जानता है क्योकि वह ज्यादा विवेकवान है ,बुद्धिमान और ज्ञानवान है और वह व्यक्ति इतना गया बीता नहीं है ki शिष्य ke rin ko pane उपर लेकर मरे और व्यक्ति की मुक्ति हो ही नहीं सकती अगर उस पर ऋण है और गुरु भी कभी सिद्धाश्रम नहीं जा सकता अगर उस पर शिष्य का ऋण है तो अगर तुम पानी का एक गिलास भी लाकर मुझे पिलाता है तो तुम्हारा मुझ पर ऋण चदता है और गुरु कुछ न कुछ अनुकूलता शिष्य के जीवन में देकर वह ऋण उतारता रहता है |इसलिए तुम्हे गुरु को जांचने की जरूरत नहीं है तुम्हे खुद को जाचने की जरूरत है क्या तुममे श्रधा है ,शिष्यत्व है,तुम सीधे ही गुरु बनने की कोशिश करते हो मैं सोचता हूँ पहले सही अर्थो में शिष्य तो तुम बन जाओ|जिसमे ज्ञान होगा वह सदा शिष्य ही बना रहना चाहेगा | आज भी मैं आपने गुरुदेव के लिय तड़पता हूँ,गुरु बन कर आपको ज्ञान देने की मेरे कोई इच्छा नहीं ,मैं तो चाहता हूँ की मैं शिष्यवत अपने गुरुदेव के चरणों में बैठू |जब मैं सिद्धाश्रम जाता हूँ तो वहा के सन्यासी शिष्य कहते है की गुरुदेव आप वहा क्या कर रहे है ,क्या वहा कोई शिष्य है क्या उन लोगो में आप के लिए श्रधा है? मैं उन लोगो को प्यार करता हूँ और उन लोगो से ज्यादा आप लोगो को भी प्यार करता हूँ इसलिए मैं आप लोगो के बीच में हूँ |आप के लिए मैं उन सिद्धाश्रम के योगियों से विद्रोह कर रहा हूँ की मैं उनको लेकर आउंगा | मैं यह प्रयत्न कर रहा हूँ तो गुरुदेव के साथ चलते रहना आपका भी कर्तव्य है ,उनके चरणों को आंसुओ से नहला देना भी आपका धर्म है |यही धर्म है न हिन्दू धर्म है न मुस्लिम न इसै धर्म है जब गुरु को आपने धारण कर लिय तो वाही आपका धर्म है ,उसके लिए मर मिटना आप का धर्म है ,मैं चाहता हूँ की आप पाखण्ड का डटकर विरोध करे अगर पाखंडी लोग इस तरहे से फैलते रहे तो आने वाले पीढ़िया दिग्भ्रमित हो जायेंगी की कहा जाए कहा ना जाए और नकली धातु पर अगर सोने का पानी चदा दे तो वह ज्यादा चमकती है वैसे ही तुम लोग भी पाखंडियो के चक्रव्यूह में फस जाते हो अगर तुम मेरा ऋण उतारना चाहते हो तो मैं तुम्हे आज्ञा देता हूँ की तुम पूरे भारत में फ़ैल जाओ ,पूरे भारत को एक परिवार बना देना है और पाखंडियो का जो मेरा नाम लेकर गुरु बनते है को जड़ से ख़त्म कर देना है तभी तुम अपने गुरु के ऋण को उतार पाओगे |

तुम्हारा गुरुदेव
निखिलश्वेरानंद

Friday, July 29, 2011

sidhhashram panchang Patrika of February, 1990

 Mantra Trantra Yantra Vigyan Patrika of February, 1990


Jai Gurudev,

Performing sadhana on a particulars Deity's day brings the same result of performing the same sadhana during the whole year. Sat Gurudevji has time and again emphasised that sadhaks must have knowledge of particular days & moments for particulars sadhanas. I reproduce below the sidhhashram panchang given by Sat Gurudevji in Mantra Trantra Yantra Vigyan Patrika of February, 1990. One can plan of performing sadhanas by viewing the Panchang. However, Hindi months and paksh remains same but sometimes the hindi tithis(dates) may alter by +/- one day which may please be checked from the current year's panchang:


HINDI   MONTH


FESTIVAL/JAYANTI & SIDHI DIVAS

MONTH


PAKSH


TITHI



Chaitra


Krishna


30


SOMVATI AMAVASYA

Chaitra


Shukla


1


NAVRATRI START

Chaitra


Shukla


5


SHREE PANCHAMI

Chaitra


Shukla


8


DURGA ASHTAMI

Chaitra


Shukla


9


RAM NAVAMI

Chaitra


Shukla


11


KAMDA EKADASHI

Chaitra


Shukla


15


HANUMAN JAYANTI

Vaishakh


Shukla


3


PARSHU RAM JAYANTI

Vaishakh


Shukla


3


AKSHAY TRITAYA

Vaishakh


Shukla


5


SHANKRACHARYA JAYANTI

Vaishakh


Shukla


7


GANGA SAPTAMI

Vaishakh


Shukla


9


JANKI JAYANTI

Vaishakh


Shukla


10


MAHAVEER KEVALYA GYAN

Vaishakh


Shukla


11


MOHINI EKADASHI

Vaishakh


Shukla


14


NARSINGH JAYANTI

Vaishakh


Shukla


15


BUDH JAYANTI

Jaistha


Krishna


2


GYAN JAYANTI

Jaistha


Krishna


8


SARVA SIDDHI DIVAS

Jaistha


Krishna


11


APARA EKADASHI

Jaistha


Krishna


30


SHANI JYANTI/vat savitri amavasya

Jaistha


Shukla


3


RAHUL JAYANTI

Jaistha


Shukla


8


DHUMAVATI JAYANTI

Jaistha


Shukla


10


BATUK BHAIRAV JAYANTI

Jaistha


Shukla


11


NIRJALA EKADASHI

Jaistha


Shukla


13


VAT SAVITRI VRAT

Jaistha


Shukla


15


KABIR JAYANTI

Ashad


Krishna


2


SANYAS JAYANTI

Ashad


Krishna


3


PAP MOCHAN TRITAYA

Ashad


Krishna


9


SIDDHASHRAM JAYANTI

Ashad


Krishna


11


YOGINI EKADASHI

Ashad


Krishna


30


NISHCHIT SIDDHI DIVAS

Ashad


Shukla


2


JAGGANATH DIVAS

Ashad


Shukla


6


MAHAVEER SWAMI KALYAN DIVAS

Ashad


Shukla


9


KETU SIDDHI DIVAS

Ashad


Shukla


11


DEV SHAYANI EKADASHI

Ashad


Shukla


15


GURU PURNIMA

Shravan


Krishna


1


SHUNYA SIDDHI DIVAS

Shravan


Krishna


5


MAHALAXMI JAYANTI

Shravan


Krishna


11


KAMDA EKADASHI

Shravan


Krishna


13


BHAGYODAYA JAYANTI

Shravan


Shukla


6


SHUNYA SADHNA JAYANTI/KUNDALINI MANTROKT SADHANA DIVAS

Shravan


Shukla


3


MADHUSHRAVA JAYANTI

Shravan


Shukla


4


VINAYAK CHATURTHI

Shravan


Shukla


5


NAAG PANCHAMI

Shravan


Shukla


8


DURGA SIDDHI DIVAS

Shravan


Shukla


11


PAVITRA EKADASHI

Shravan


Shukla


15


GAYATRI JAYANTI/RAKSHA BANDHAN

Bhadrapad


Krishna


5


HANUMAN SIDDHI JAYANTI

Bhadrapad


Krishna


7


SHRI KRISHNA JANMASHTAMI

Bhadrapad


Krishna


8


SHREE KALI JAYANTI

Bhadrapad


Krishna


11


AJA EKADASHI

Bhadrapad


Krishna


30


SIDDHI DIVAS/BHUVNESHWARI KHADAG MALA SIDDHI SADHANA DIVAS

Bhadrapad


Krishna


30


SOMVATI AMAVASYA

Bhadrapad


Shukla


3


HARITALIKA PRAYOG

Bhadrapad


Shukla


4


GANESH JAYANTI

Bhadrapad


Shukla


5


BHRAM SIDDHI JAYANTI/RISHI PANCHMI

Bhadrapad


Shukla


7


ASHTA SIDDHI LAKSHMI JAYANTI

Bhadrapad


Shukla


9


108 LAKSHMI JAYANTI

Bhadrapad


Shukla


11


PADMA EKADASHI

Bhadrapad


Shukla


12


SHREE BHUVANESHWARI JAYANTI

Bhadrapad


Shukla


14


ANAND CHATURDASHI

Ashvin


Krishna


1


SHRAAD START

Ashvin


Krishna


4


KINNER JAYANTI

Ashvin


Krishna


7


SAPTALOK JAYANTI

Ashvin


Krishna


10


PREIT JAYANTI

Ashvin


Krishna


14


VISHVA KARMA JAYANTI

Ashvin


Shukla


1


SHARDIYA NAVRATRA START

Ashvin


Shukla


4


UPAANG LALITA PRAYOG

Ashvin


Shukla


7


MAHA SARASWATI AHWAHAN

Ashvin


Shukla


10


VIJYA DASHMI PUJA

Ashvin


Shukla


13


GURU SIDDHI DIVAS

Ashvin


Shukla


15


SHARAD PURNIMA

Kaartik


Krishna


3


TARA JAYANTI

Kaartik


Krishna


8


SIDDHI PRAYOG

Kaartik


Krishna


11


RAMA EKADASHI

Kaartik


Krishna


13


DHAN TROYADASHI

Kaartik


Krishna


14


ROOP CHATURDASHI

Kaartik


Krishna


30


DIPAWALI

Kaartik


Shukla


1


SHREE KAMLA JAYANTI

Kaartik


Shukla


5


SOBHAGYA PRAPTI JAYANTI

Kaartik


Shukla


6


SURYA SIDDHI DIVAS

Kaartik


Shukla


9


DAS MAHAVIDYA SIDDHI DIVAS

Kaartik


Shukla


10


ITCHA MRITYU SIDDHI DIVAS

Kaartik


Shukla


11


DEV PRABODHINI EKADASHI

Kaartik


Shukla


12


SANKALP SIDDHI DIVAS

Kaartik


Shukla


14/15


CHHINMASTA JAYANTI

Margshirsh


Krishna


3


NISHCHIT SIDDHI DIVAS

Margshirsh


Krishna


6


TANTRA SIDDHI DIVAS

Margshirsh


Krishna


7


KAAL BHAIRAV SIDDHI DIVAS

Margshirsh


Krishna


8


KAAL BAHIRAV ASHTAMI

Margshirsh


Krishna


11


UTPATTI EKADASHI

Margshirsh


Krishna


13


VANCHHA SIDDHI DIVAS

Margshirsh


Krishna


30


SHANIVARI AMAVASYA

Margshirsh


Shukla


3


SIDHHESHWARI SADHANA DIVAS

Margshirsh


Shukla


6


URVASHI SIDDHI DIVAS

Margshirsh


Shukla


7


PADMAVATI SIDDHI DIVAS

Margshirsh


Shukla


11


MOKSHDA EKADASHI

Margshirsh


Shukla


13


RAMBHA SIDDHI DIVAS/SIDDH KINNERI TROYADASHI/

Margshirsh


Shukla


13


ASHTA KINNERI SADHANA DIVAS

Margshirsh


Shukla


14


BHOOT/PISAACH SIDDHI DIVAS

Margshirsh


Shukla


15


SHREE TRIPOOR BHAIRVI JAYANTI

Paush


Krishna


5


BHUVANESHWARI SIDDHI DIVAS

Paush


Krishna


8


MENAKA SIDDHI DIVAS

Paush


Krishna


11


SAFLA EKADASHI

Paush


Krishna


12


DHOOMAVATI SIDDHI DIVAS

Paush


Krishna


30


SOMVATI AMAVASYA

Paush


Shukla


3


BAGALAMUKHI SIDDHI DIVAS

Paush


Shukla


6


KHADAG SIDDHI DIVAS

Paush


Shukla


9


CHAITANYA SIDDHI DIVAS

Paush


Shukla


11


PUTRADA EKADASHI

Paush


Shukla


14/15


SHAKAMBHARI JAYANTI

Magh


Krishna


3


MATANGI SIDDHI DIVAS

Magh


Krishna


7


VIVEKANAND JANMADIVAS

Magh


Krishna


9


KUMARI PUJA SIDDHI DIVAS

Magh


Krishna


11


SHAT TILA EKADASHI

Magh


Krishna


13


SHODASHI TRIPUR SUNDARI SIDDHI DIVAS

Magh


Krishna


14


MAKAR SANKRANTI

Magh


Krishna


30


BHOMVATI AMAVASYA

Magh


Shukla


5


BASANT PANCHAMI/SARASWATI JAYANTI

Magh


Shukla


7


PAP MOCHAN DIVAS

Magh


Shukla


11


JAYA EKADASHI

Magh


Shukla


13


VISHVA KARMA JAYANTI

Magh


Shukla


15


SHREE LALTITA JAYANTI

Phalgun


Krishna


5


UCHHISTHA GANPATI SIDDHI DIVAS

Phalgun


Krishna


8


SITA ASHTAMI

Phalgun


Krishna


11


VIJYA EKADASHI

Phalgun


Krishna


13


SHIVRATRI

Phalgun


Krishna


30


HAR GAURI SIDDHI DIVAS/KHAPPAR PUJA AMAVASYA

Phalgun


Shukla


3


BAITAAL SIDDHI DIVAS

Phalgun


Shukla


5


KAYA KALPA SIDDHI DIVAS

Phalgun


Shukla


8


HOLASHTAK

Phalgun


Shukla


11


AAMLA EKADASHI

Phalgun


Shukla


15


HOLIKA DAHAN

Chaitra


Krishna


1


BASANT SIDDHI UTSAV

Chaitra


Krishna


2


BHRAATA PURNAYU SIDDHI DIVAS

Chaitra


Krishna


5


APURN ITCHA PURN SIDDHI DIVAS

Chaitra


Krishna


9


MANETCHHA PURN SIDDHI DIVAS

Chaitra


Krishna


11


PAAP MOCHNI EKADASHI

Chaitra


Krishna


30


SHANESHCHARI AMAVASYA


JAI GURUDEV

Thursday, July 28, 2011

possible to mitigation Bed to Good

दुर्भावों का उन्मूलनकई बार सदाचारी समझे जाने वाले लोग आश्चर्यजनक दुष्कर्म करते पाए जाते हैं । उसका कारण यही है कि उनके भीतर ही भीतर वह दुष्प्रवृति जड़ जमाए बैठी रहती है । उसे जब भी अवसर मिलता है, नग्न रूप में प्रकट हो जाती है । जैसे, जो चोरी करने की बात सोचता रहता है, उसके लिए अवसर पाते ही वैसा कर बैठना क्या कठिन होगा । शरीर से ब्रह्मज्ञानी और मन से व्यभिचारी बना हुआ व्यक्ति वस्तुत:व्यभिचारी ही माना जाएगा । मजबूरी के प्रतिबंधों से शारीरिक क्रिया भले ही न हुई हो, पर वह पाप सूक्ष्म रूप से मन में तो मौजूद था । मौका मिलता तो वह कुकर्म भी हो जाता ।


इसलिए प्रयत्न यह होना चाहिए कि मनोभूमि में भीतर छिपे रहने वाले दुर्भावों का उन्मूलन करते रहा जाए । इसके लिए यह नितान्त आवश्यक है कि अपने गुण, कर्म, स्वभाव में जो त्रुटियॉं एवं बुराइयॉँ दिखाई दें, उनके विरोधी विचारों को पर्याप्त मात्रा में जुटा कर रखा जाय और उन्हें बार-बार मस्तिष्क में स्थान मिलते रहने का प्रबंध किया जाए । कुविचारों का शमन सद्विचारों से ही संभव है ।

MAHAVIDYA RAHASYAM-MAA TRIPUR BHAIRAVI 2

इस सम्पूर्ण जगत की आदि शक्ति माँ नित्य लीला धारिणी ने इस विश्व की जगत की सञ्चालन के लिए अपने स्वरुप को अनेको स्वरूपों में अलग अलग किया हैं यह स्थितिया हैं स्थिति , निर्माण , ओर संहार क्रम कहा जाता हैं , इन दस महाविद्या में से ९ को उन तीन भागोंमें बाटा गया हैं , पर महाकाली को नहीं रखा गया ऐसा क्यों ऐसा इसलिए हैंक्योंकि ९ महाविद्याये तो कार्य करने वाली शक्ति हैं पर बिना आधार के ये कैसे कार्य करेंगी , माँ महाकाली इनसबको आधार प्रदान करती हैं सामान्यतः महाकाली भी संहार क्रम में मानी जाती हैं .
इन तीनो क्रम को भी फिरे से सूक्ष्म रूप में अनके रूप में अलग अलग किया जा सकता हैं जैसे आदि मध्य ओर अंत में . उत्पत्ति क्रम रज गुण प्रधान हैं स्थिति सत्व गुण प्रधान , व संहार तम गुण प्रधान हैं
माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण से आप्लावित रज गुण से परिपूर्ण हैं .
माँ भैरवी के अन्य रूपों हैं समप्त्प्रदा भैरवी ,कौलशी भैरवी,सकल सिद्धिद्दा भैरवी ,रूद्र भैरवी ,भुवनेश्वरी भैरवी , अन्नपुर्णा भैरवी, बाला भैरवी , नित्या भैरवी, कामेश्वर भैरवी ,चैतन्य भैरवी ,भय विध्वंस विनी भैरवी , नव कूट बाला , षत कुटा भैरवी इस तरह १३ स्वरुप हैं अब यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं हैं की हर स्वरुप अपने आप अन्यतम हैं ओर उसके किसी भी एक स्वरुप की साधना यदि साधक को सदगुरु कृपा से यदिप्राप्त होई जाती हैं उसे सफलता पूर्वक सपन्न करके वह क्या नहीं प्राप्त कर सकता हैं
माँ त्रिपुर भैरवी गले मैं मुंड माला धारण किये हुए हैं , ऐसे तो माँ विश्व निर्माण के पहले ही थी तब उन्होंने यह मानव मुंड माला कहाँ से पाई , वास्तव में हर देवी देवता का स्वरुप प्रतीकात्मक होता हैं , वह तथ्य यहाँ पर भी पूर्णतया लागु होता हैं यहाँ इन मुंड माला से तात्पर्य वर्ण मातृका से हैं , जिनका रहस्य तो अपने आपमें एक अलग ही विषद विषय हैं .
माँ ने अपने हाँथ में माला धारण कर रखी हैं जो व्यक्ति के साधना होने को इंगित करती हैं ,जब माँ स्वयं साधना मय हैं तो उसके साधक को हमेशा ही साधना मय गरिमा से परिपूर्ण होना चाहिए, यह तो नहीं होगा की एक दिन साधन की फिर चार महीने का अंतराल ले लिया .उनके चहरे पर छाई मुस्कान इस तथ्य को इंगित करती हैं की साधना मय उच्च अवस्था पर जाते हुए साधक के लिए हमेशा प्रसन्न ता को भी स्वीकार करना होना हैं जब माँ अपने साधक को प्रसन्नता पूर्वक देख रही हैं तो फिर उनके साधक को किस बात की कमी , किस बात का भय , उसे भी रूखे सूखे होने की बजाय अंतर मन से प्रसन्न होना चाहिए . जब साधक भी प्रसन्न होगा तभी तो दिव्य माँ के मुस्कान का अर्थ हैं , वे यह कह रही हैं तुझे अब क्या चिंता ..
उन्होंने अभय ओर वर मुद्रा प्रदर्शित कर रही हैं जो की साधक के अप्रितम सौभाग्य का प्रतीक हैं . जब माँ ही मुक्त ह्रदय से प्रदानकर रही हो तब अब क्या शेष .. मस्तक पर चन्द्र व्यक्ति को हमेशा दिमाग शीतल रखने का प्रतीक हैं वह इसलिए की शमशान में साधना करते करते साधक का रुखा हो जाना स्वाभाविक हैं क्योंकि उग्र तत्व की साधना में साधक को उग्रता धारण करनी पड़ती हैं (बिना उग्र ता धारण किये बिना तो शमशान में सफलता संभव ही कहाँ हैं ) जो धीरे धीरे उसके स्नेह तत्व को सोख लेती हैं पर उसके जीवन में प्रेम स्नेह तत्व की प्रधानता रहे इसलिए माँ ने यह धारण किया हैं साथ ही साधक यदि रुखा ही रह गया तोउसकी साधना से जगत को क्या लाभ .
साथ ही माँ ने लाल रंग की साड़ी धारण किया हुए हैं आखिर लाल रंग ही क्यों , वह इसलिए लाल रंग उर्जा का प्रतीक हैं रज तत्व का प्रतीक हैं , लाल रंग का अपने आप में गहन अर्थ हैं, इसलिए साधको को कभी कभी केबल लाल रंग के अंत वस्त्र धारण करने के लिए कहा जाता हैं(हनुमान साधना जो की ब्रम्हचर्य तत्व की साधना हैंउसमे लाल रंग का प्रयोग ही किया जाता हैं ) क्योंकि साधक के सत्व तत्व की रक्षा करने में लाल रंग का योगदान हैं .
इस तरह कहा सकता हैं माँ के हाँथ में विद्या तत्व हैं ये विद्या तत्व क्या हैं माँ इसके माध्यम से क्या प्रदर्शित कर रही हैं ये आगम(वेद साहित्य ) ओर निगम(सम्पूर्ण तंत्र साहित्य साधना ) दोनों ही तो विद्या तत्व हैं तंत्रज्ञ कहते हैं यहाँ तक सूर्य चन्द्र अग्नि औषिधि धातु रस आदि सभी ही विद्या हैं , तो इस रूप में माँ सम्पूर्ण ज्ञान राशी को ही संकेत रूप में प्रदर्शित कर रही हैं .
माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में जैसे की हमने जाना माँ को लाल रंग सर्वाधिक प्रिय हैं तो हर वस्तु फिर चाहे वह वस्त्र या फल हो या अन्य लाल रंग की होना चाहिए .
ध्यान रखना चाहिए की दो प्रकार किप्रलय से यह विश्व प्रभावित होता हैं प्रथम तोजिसे हम प्रलय या महा प्रलय कहते हैं इसको माँ भगवती छिन्नमस्ता सम्पादित करती हैं वही इसकी मुख्य शक्ति हैं, दूसरा प्रलय है जिसे हम नित्य प्रलय कहते हैं यह अंतर ओर बाहय जगत में हर पल हर क्षण होता रहता हैं ,इसे माँ त्रिपुर भैरवी करती हैं
इसको समझने के लिए यदि बाहय्गत रूप से देंखे तो दुर्घटनाये आदि , पर व्यक्ति के अंतर मन में चलने वाले विपरीत विचार , विपरीत आस्थाए , मन में आई अत्यधिक कामुकता, (क्योंकि तंत्र कामुकता को बुरा नहीं कहता हैं , न ही उसे अपमानित करता हैं उसे स्वीकार करना को कहता हैं ,क्योंकि तंत्र जनता हैंकि यह ही तो कुण्डलिनी शक्ति हैं उस उर्जा को समझ कर केबल दिशा परिवर्तन निम्न मार्ग से उर्ध्व मुखी करने को कहता हैं साथ ही साथ इसका रास्ता दिखाता हैं ) पर अति सर्वत्र वर्जयेत के सिंद्धांत जोकि साधना की के प्रतिकूल ता बनती जाये उस भाव को माँ त्रिपुर भैरवी ही पल पल नष्ट करती हैं इन संहार क्रिया को भी नित्य प्रलय कहते हैं . माँ त्रिपुर भैरवी की कृपा के अतिरिक्त कैसे संभव हैं .
एक बहुत ही अद्भुत तथ्य यह हैं की ये सभी दस महाविद्या के नाम से विख्यात हैं ये हैं काली , तारा, छिन्नमस्ता ,बगलामुखी , कमला , त्रिपुर भैरवी , त्रिपुर सुंदरी , मातंगी , भुवनेश्वरी ,धूमावती हैं पर वास्तव में सभी महाविद्या नहीं हैं इनमें से कुछ महाविद्या हैं तो कुछ सिद्ध विद्या के अंतर्गत हैं तोकुछ श्री विद्या हैं तोकुछ केबल विद्या ही हैं उदहारण के लिए माँ बगलामुखी एक सिद्ध विद्या हैं माँ त्रिपुर भैरवी -- सिद्ध विद्या कह लाती हैं इसे महाविद्या क्रममें छठवे क्रम में माना जाता हैं .और इनसे सम्बंधित दिन काल रात्रि ही हैं , हम प्रयास करंगे की जल्द ही आपको सिद्धाश्रम पंचांग आपको वेब साईट पर उपलब्ध कर दिया जाये .
अब सदगुरुदेव भगवान् की असीम कृपा से हमारे पास विपुल साहित्य हैं उनके श्री मुख से उच्चरित दिव्य प्रवचन , मंत्र साधना विधि सभी तो हैं जो भी हमारे लिए संभव हो सकता हो सकता था, सदगुरुदेव भगवान् ने दिन रात परिश्रम करके , अपने शरीर की भिप्र्वाह भी नहीकारते हुए यह सब हमारे लिए ही तो किया हैं की उनके किसी भी बच्चे को किसी के सामने साधना सम्बंधित ज्ञानके लिए हाँथ न फैलाना न पड़े , पर हम कमसे कम अब इस घनघोर अन्धकार की घडी में आलस्य छोड़ कर ... ,
पूर्ण साधक भाव से साधना कर के अपने सर्व प्रिय सदगुरुदेव भगवान् गौरव को प्रवर्धित करते हुए को सदगुरुदेव भगवान् के सामने विनीत भाव से उनकी आज्ञा के लिए प्रणाम मुद्रा में खड़े होना हैं तभी तो सदगुरुदेव भगवान् का यह अति मानवीय , अकल्पनीय , अनथक श्रम सार्थक होगा
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Divine mother bhagvati ma parmba has divided her forms in so many different form so that whole universe can be properly governed, state are known as creation, caring and destroy (shthiti , nirmaan and sanhaar kram ) she has divided 9 out of ten mahavidya in three division , but not Mahakali ,why it is so ,reason is all the divine mother forms are working force and all the force surely need a base , and mother Mahakali provide that base, in general mother kali also consider in sanhaar kram.
Again she has divided theses order in many more parts like aadi Madhya, and Aant (beginning , middle and end). creation kram related to raj tatv gun , shthti order related to satv gun and sanhaar kram related to tam gun .
Mother tripur bhairavi realted to raj tatv related tam gun means she has both tatv,
Divine mother tripur bhairvi has many forms (13 forms) like sampatprada bhairvi, kaouleshi bhairvi ,sakal siddhida bhairvi, rudra bhairvi, bhuvneshwari bhairvi , annpurna bhairvi , bala bhairvi, nitya bhairvi, kameshwar bhairvi, chaitany bhairvi , bhay vidhanswini bhairavi , navkut, bala bhairavi, shat kuta bhairvi , there is no need to write here that each one form is having ultimate power, if any one get sadhana related to any one form from Sadgurudev ji grace, than on successfully completing that sadhana what can not he achieved.
Ma has mala in her neck made of human head, but mother has appeared before this world created so where she has got that human head, actually each dev devta forms represent many hidden sign that need to understand. And if we thoroughly understand than easily to have success in that here that directly show to the “varn matraka” , what is varn matraka ? is very important subject and can not be deal here with space of this post,
Divine mother has rosary in her hand that show that one must be sadhana may , when divine mother herself be in sadhana than her sadhak must be full of sadhanamayata. This can not be accepted fact that do sadhana of one day and take rest for next four month. The blissful smile on her face shows sadhak when achieve heights in the sadhana field must accept happiness in his heart , when divine mother looking her welfare than what is/will be point of worry and unhappiness. He also have happiness in his heart instead of harsh look and behavior . when her child feels happiness only than divine mother has a smile on her face, suppose she has saying now what to worry when she is with us …
She has having “abhay” and “var” mudra that is ultimate blessing for her sadhak when mother ready to give what more is left and what a great luck for sadhak .having moon on her head shows that always have a cool in mind. That is a very essential fact since if any one continuously doing sadhana in shamshan field. its natural that has a very harsh in nature(it becomes), since for doing sadhana of ugra elements sadhak also has to have that ugra nature ( without that shamshan sadhana would not be possible ) that urgra tatv continuously take his love and sneh element from his heart .but her sadhak not deprive of that, that’s why mother has moon on her head. And important facts is that if sadhak is not having that sneh .love element that what will be the useful ness of his sadhana to the world,
And in additional to that mother has wear red color sari why red color, is there any importance.? Since red color is directly related to energy elements , and related to raj tatv . this red color has very specific meaning .some times sadhak has been advise to wear only red color under garment in during sadhana , why?(specially Bhagvaan hanuman ji sadhana , why because this help to protect his sat tatv means bhramchary ) so red color has very important roles in protecting his satv tatv,
Like this has been said that mother has vidya in her hand . what that this vidya stands for? ,what mother are showing through that. Theses aagam (whole ved literature) and nigam ( complete tantra literature sadhana) are vidya tatv. As the tantragy says that even sun ,moon, hebal medicine, mercurial science, metal all are vidya . in this ways mother shows us the complete gyan world.
A s we knew that mother has very affection to red color so all the fruits and other things that can be offered to mother has to be of red color.
Keep remember that the whole world is affected by two type of pralay(ultimate distruction) . the first ,whom we call pralay or “mahapralay “, that has been done by mother chhinnmasta form. And she is the power of that pralay. And other is “nitya pralay “ means that which continuously happened in outer and inner world of not only of this world but inside of us too, that has been done by mother tripur bhairvi.
To understand this if we see outwardly we find so many accident and unfor eseen event takes place and in inner world our bad ,evil thought ,evil acts planning, and having too much sexual acts related activity or thought
(tantra does not condemn theses thought or activity neither blame that it says try to accept that first , since tantra knew that this is the kundalini forces and try to understand first and only the direction of that need to be changed from downward to upward direction and how to do that its provide the ways)
But”too much of everything is a not acceptable” so also applicable in any field if this too much sexual activity mental or physical can provide obstruction in sadhana field, this bhav /feeling has been continuously destroy by mother tripur bhairvi and this sanhaar process is known as nitya pralay. Without her blessing how that can be possible.
One of the most amazing facts Is this all theses who are famous as the mahavidya like kali, tara, chhinmasta, tripur bhairvi ,tripur sundari, baglamukhi, kamala, matangi and bhuvneshwari and dhoomavati, all are not actually mahavidya , some of them are mahavidya , some of siddh vidya, some are only vidya , some are shri vidya. For example ma baglamukhi is a siddh vidya so is the mother tripur bhairvi is also a siddh vidya.and this form is consider as a sixth among the tel mahavidya. and kaal ratri is the day for her, we are(npru) tring that soon you will have siddhashram panchang in the web site.
Now we have all the enough literature though Sadgurudev bhagvaan whether through his divine pravchan or through mantra or from sadhana everthing we have , what can be possible for us .sadgurudev Bhagvaan did continuously hard work without taking care of his body for why , only for us so that we never ever has to ask other as a beggar to have this sadhana, so that that her manas child becomes not dependents outsiders. Now in this very testing hour we have set aside our idleness..
Do the sadhana with full heart , full devotion a full concentration and try to raise of our Sadgurudev jis glory and stand infront of him with full obedience and naman mudra only than sadgurudevjis this super human,unbelievable ,continuous hard work will be has a meaning..now this rest upon us.
****NPRU****

Mahavidya Rahasyam- Maa Tripur Bhairavi Rahasyam part -1

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दस महाविद्या तो अन्यतम हैं सभी साधक जो भी तंत्र क्षेत्र के जिज्ञासु हैं,साधक हैं , अध्येता सिद्ध हैं, वह तो मन में जीवन भर यही भावना रखते हैं की कभीतो कोई गुरु ऐसा उन्हें ऐसा मिलेगा जो इनमेंसे एक की साधना तोसिद्ध करा देगा , फिर जिस एक सिद्द हो गयी फिर दिव्य माँ के अन्य रूप की साधना क्या सफल न हो ही जाएगी .
जहाँ माँ भगवती छिन्नमस्ता के साधक तो कम हैं वही पर इन माँ त्रिपुर भैरवी के साधक तो मिला पाना सर्वथा असंभव हैं , इसलिए इन महाविद्या से सम्बंधित साहित्य भी मिल पाना भी बहुत कठिन हैं साधक इससे सम्बंधित तलाश में भटकते रहते हैं .पर कोई कोई सौभ्याग्य शाली हैंजो यह जानकारी प्राप्त कर पता हैं, माँ का स्वरुप बहुत ही अद्भुत हैं , उदित होने वाले सूर्य की भांति इनका स्वरुप होता हैं , जी भर भर के रक्त का पान कर कर के जिनका स्वरुप लाल हो गया हैं. यह महाशक्ति भैरव ही नही महाभैरव की शक्ति हैं , इनके भैरव का नाम दक्षिण मूर्ति भैरव हैं .

जो भी अघोर साधना , शमशान साधना , कापालिक साधना अर्थात शमशान से सम्बंधित साधना करना चाहते हैं ओर उसमें एक अद्भुत उच्च स्तर पाना चाहते हैं उन्हें तो दिव्य माँ के इस रूप में ध्यान रखना ही पड़ेगा , शमशान में निवासरत सभी द्वि आयामी वर्ग के शक्तियां फिर वह चाहे , भुत हो प्रेत हो या पिशाच या ब्रम्ह राक्षस ही क्यों न हो , माँ के इस रूप के साधक के सामने मानो भय भीत हिरण जैसे हैं ओर क्यों न ऐसा हो क्योंकि यह तो महा भैरव की शक्ति हैं जो हजारों गुना शक्ति शाली हैं ,इसी कारण जिन्हें भैरव साधना में एक उच्च स्तर की सफलता पाना हो वह भी इस ओर ध्यान रखे .
इसके लिए यह भी केबल न माने की यह मात्र शमशान की शक्तियों की अधिस्ठार्थी ही नहीं हैं बल्कि दिव्य माँ का यह स्वरुप अत्यंत ही आकर्षक हैं , तो "जैसा इष्ट वैसा साधक" के नियम के अनुसार साधक में वह अद्भुतता आकर्षण से संभंधित आ जाती हैं.वह साधक जहाँ भी जायेगा सभी के लिए आकर्षण का ही केंद्र होगा .
दस महाविद्या में एक यही साधना हैं जो महिला साधको द्वारा मासिक धर्म के दिनों में भी लगतार की जा सकती हैं
( अनेक वर्षों पूर्व की एक घटना जिस काल में सदगुरुदेव स्वयम भौतिक रूप से जब हमारे मध्य थे - एक गुरु बहिन ने अपने व्यक्तिगत जीवन में पति से उपेक्षित होकर सदगुरुदेव के एकशिष्य से गुरु धाम संपर्क किया तो उन्होंने उसे इस महाविद्या की साधना करने के लिए उन्हें सलाह दी , साथ ही साथ कुछ ऐसी प्रक्रिया भी थी की उन शिष्य को एक कमरे में दिगंबर अवस्था में आसन पर बैठकर जप करना था, उन गुरु बहिन को साधना के नियम आदि का नयी साधक होने के कारण अनेको नियम की कोई जानकारी भी नहीं थी इस कारण उन्होंने न कोई नियम ही पूंछे , नहीं इस सन्दर्भ मेंकोई उन्हें डर आदि लगा , जो की सामान्य रूप से साधको को लगता हैं की कहीं कुछ होगया तो .., साधना के दिन जब पुरे हुए तो उन्होंने उन शिष्य से संपर्क किया , अपने अनुभव बताये , उन्होंने कहा की साधना के दुसरे दिन से , उनके वह हर महीने के विशेष दिन प्रारंभ हो गए , कुछ संकोच वश उन्होंने इसके बारे मैंना पूंछ कर साधना चालू रखी जबकि सामान्यतः इस काल में साधना नहीं की जाती हैं , उन्होंने बताया की अर्ध रात्रि में एक स्त्री उनके सामने उस कमरे में न जाने कहाँ से आ गयी, ओर उसने अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक आशीर्वाद दिया साथ ही साथ उस रक्त की मांग भीकी , उन गुरु बहिन ने जैसा उचित था वैसा ही किया हाँ अन्य कोई भी अनुभव नहीं हुए , जब उनसे यह पूंछा की ओर क्या अनुभव हुए , तो उन्होंने कहाँ की अब जब भी वह रास्ते में चलती हैं या किसी भी वाहन से यात्रा करती हैं तो लोग मुड मुड कर उन्हें देखते हैं ,जहाँ वह कार्य करती है अब ऑफिस में सभी उनके पास आ आ कर स्वयं भी बात करते हैं जबकि वह एक अत्यंत से ही सामान्य रूप रंग की महिला थी , अब पता नहीं क्यों अब उनके पति उनमें क्या देखा की वह भी पूर्वत स्नेह करने लगे . उन्होंने गद गद स्वरों में कहा की सदगुरुदेव ओर माँ के आशीर्वाद से उनका नष्ट सा हुआ जीवन पुनः सामान्य हो गया , यह सुनकर सदगुरुदेव जी के उन शिष्य ने कहा , सदगुरुदेव जीकी लीला भी अद्भुत हैं वह यह विशेष तथ्य इस महाविद्या के बारे में उस गुरु बहिन को बताना भूल गए थे की इस काल में केवल मात्र यही साधना की लगातार किजा सकती हैं . पर सदगुरुदेव भगवान् की विशेष कृपा थी जो वह इन अनुभव से विचलित हुए बिना यह साधना पूर्ण कर सकी . )
इससे यह भी एक बात सामने आती हैं की कोई भी देव वर्ग हमारे मन में जमे हुए पूर्वाग्रह के अनुसार नहीं आता हैं वह तो साधक किमानो भाव उसकी मानसिक अवस्था ओर उसके चिंतन को पढ़ता ही रहता हैं , पर सबसे महत्वपूर्ण तोयह हैं की के वह साधक यदि सदगुरुदेव जी का शिष्य हैं तो सदगुरुदेव जी से बिना अनुमति पाए वह साधना इष्ट साधक के सामने नहीं आएगा .
दूसरी बात यह हैं की जैसा की हमने बगलामुखी रहस्य के भाग ४ में बताया था की हम उस इस्ट की कौन से शक्तियों से सम्बंधित कौन सा ध्यान कर रहे हैं ,इस बात पर साधना के इष्ट का स्वरुप पूर्ण निर्भर करता हैं ओर वह किस प्रकार की शक्तियों का प्रभाव साधक के लिए प्रदान करेगा निर्भर करेगा .
क्रमशः
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Theses mahavidya sadhana are the ultimate sadhana in tantra world, any sadhak , Lerner , seeker and savants and even siddh always have desire that in their life they may meet some one(a guru) who will help him to get siddhita in any one of the mahavidya , and one who get siddhita in one mahavidya than how for the success stand far away for him for getting in success in other mahavidya sadhana. as you are very well aware of the facts that there are few sadhak of divine mother’s chhinnmasta form now a day seen, but here almost very less ,almost nil sadhak of this great mahavidya sadhana , and one of the reason is that very less literature available about this mahavidya , many sadhak are searching to get some insight of this mahavidya but very few can get success of getting that , divine mother this form is having ultimate beauty like thousand morning rising sun has her radiance , through blood drinking his form get red in color, she is not the shakti of bhairav but of mahabhairav. Her bhairav name is dakshina murti bhairav .
Those sadhak who has interest in Aghor sadhana, shamshan sadhana, Kapalik sadhana and want to achieve a highest level in that field , than he has to take interest in and have to understand this divine mother form. all the invisible two dimension’s elements either ghost ,vampire . vaitaal , brahm rakshas are just like a small creature in front of this divine mother form. And Why not that happens since she is the shakti of mahabhairav that has thousand times more strength .and this is the reason those who are interested in bhairav sadhana and also want to have a certain level must understand this divine mother form.
But do not consider that divine mother , this form concerned only to shamshan but this form has very attractive glow and appearance , as its has been saying that “as the isht deity so is the sadhak” so her sadhak where ever goes ,will always be centre of attention.
This is the only sadhana in tem mahavidya section that can be continued during the mc period of woman/female sadhak.
( some years ago when poojya Sadgurudev ji is in physical form present among us- one guru sister contacted in gurudham because of she was having some problem with her husband, one of the Sadgurudevji shishy adviced her to go for this sadhana and adviced such a process in that she has to sit in digamber state in a room of her home had to do the mantra jap on sitting aasan. As she was very new to sadhana field , she neither had any idea ,what were the rules that she had to follow strictly and nor she had any desire to ask, so she did not ask any more question and left home. and she started this sadhana without feeling any type of fear that this is mahavidya sadhana and as some of sadhak has fear that if something went wrong than.. she was unaware of that so she had no fear… when she successfully complete the sadhana and again meet that guru brother and tell her experience..
she said to him that on the second day of her sadhana her mc period was start, due to hesitation,she did ask to him and continued the sadhana normally sadhana has to stop in theses period , but on that day she knew not where a woman came/appeared to her room and very smiling blesses her and ask for that blood . whaty she could do rightly on the moment she did. And no other experience happened to her.
When she was asked was there any other experienced she felt. She replied now whenever she walks on the street or road everyone start looking her , even she travel from any other mode of communication , she was getting ultimate interest from others . even the office where she was working all her colleague now start talk to her and try to get opportunity to nearer to her. As she completely aware of that she is a very normal and ordinary woman .even what now her husband seen in her ,he again start taking interest in her and start loving as he was previously did.
She spoke with full heart now due to sadgurudev ji grace and mother blessing her lost family /world again she was able regained. On listening this that shishy very much amazed that and told her , it’s the Sadgurudev divine lila that he had forgot to mentioned this fact to her but due to Sadgurudev blessing she did not stop the sadhana, this is the only sadhana that can be continued in this special time period in woman life.)
This clearly shows us that no dev or devi is tied to us as per our so called belief and faith and vision . she/he also reading our mind and thought continuously and most importantly if any sadhak is sadgurudevji’ shishy than its sure without taking Sadgurudev jis permission no dev or devi will appear in front of sadhak her.
Second most important things is that as we have mentioned in ma Balgamukhi rahasyam part 4 that what dhyan we are using and that dhyan mentioning which aspect or power of that dev/devi only that will be felt of us. so one must keep more concentration of theses facts .
In continuous..
****NPRU****