Tuesday, October 4, 2011

SOOKSHM JEEVA PAARAD GUTIUKA

SOOKSHM JEEVA PAARAD GUTIUKA
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रक्त बिंदु ,श्वेत बिंदु रहस्य को आत्मसात करने का प्रयत्न करते हुए मैं जब सदगुरुदेव के
चरण कमलो में पुनः उपस्थित हुआ ,तब सदगुरुदेव ने कहा की कैसी रही तेरी यात्रा ........
मैंने कहा -आपके आशीर्वाद से सभी कुछ अत्यंत सरल हो जाता है. मुझे उम्मीद नहीं थी की वे महानुभाव मुझे इतनी सहजता से इस रहस्यों को बता देंगे.( मुझे याद है की मैंने
इसी लेखश्रृंखला में श्वेत बिंदु और रक्त बिंदु से जुड़ेधातुवाद के रहस्यों और कुछ क्रियाओं का वर्णन करने के लिए कहा था , भविष्य में सदगुरुदेव की इच्छा से उन रहस्यों को अवश्य ही मैं आप सभी के समक्ष अवश्य ही उद्घाटित करूँगा . वास्तव में वे रहस्य ग्रंथों में हैं ही नहीं . और यदि किसी ग्रन्थ में हैं तो वे ग्रन्थ ही अप्रकाशित हैं. उन
सूत्रों का विवरण सिद्ध नागार्जुन प्रणीत "स्वर्ण प्रदीपिका" में है जो की अप्राप्य
ही है और सम्पूर्ण विश्व में उसग्रन्थ की मात्र तीन ही प्रतियाँ हैं.)
परन्तु मेरे बेटे क्या उस विषय से सम्बंधित सभी समस्याओं का समाधान हो गया है.... क्या कोई और जिज्ञासा नहीं है- मुझे देखते हुए सदगुरुदेव ने मुस्कुराकर पूछा.
हे मेरे प्राणाधार मैंअबोध बालकहूँ, आपकी कृपासेमुझेइस विषय काभान होता है. मुझे ये विषय समझ में तोआयापरन्तु कई जिज्ञासाऐसी भी हैंजिनकासमाधानआप ही कर सकते हैं.
वो क्या भला?????
विधि का अभ्यास तो मैंने उन महानुभावके निर्देशानुसार भी किया.और मुझे थोड़ी सफलता भी मिली, परन्तु कई बारमेरे मनमें काम भाव की प्रबलताभी हो जातीथी, और तामसिकभाव का प्रस्फुटन भी . जैसे ही ध्यानपथ पर सुषुम्नाआगे बढती थी तो अचानकऐसालगता थाकी जैसे किसीने उसकी गतिरोकदी हो ....... ऐसा क्यूँ
होता था.....?????
अच्छाये बताओ की चक्र भेदक सूत्र का संचरण पथ कहाँपर है???
जीमेरुदंड में .....
जब ये कुंडली भेदक नाडी मेरु दंड के मध्य से होकर गुजरती है तो इसका पथ बिलकुल स्पष्ट और सीधा होना चाहिए. इसी कारण साधक को या योग मार्ग के अभ्यासी को बिलकुल सीधा बैठने के लिए कहा जाता है .शास्त्रों का ये कथन अन्यथा नहीं है समझ गए.
जी बिलकुल.
हमारे मेरुदंड में ८४ मोती रूपी छिद्र युक्त अस्थियां होती हैं जिनके मध्य से ये चक्र भेदी नाडी होती है एक माला के समान ये सभी अस्थियों को जोड़ कर रखती है . जैसे हमारे शरीर की सभी ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण मस्तिष्क करता है वैसे ही ये नाडी सभी अनचाही पर शरीर रक्षक क्रियाओं का
नियंत्रण करती है .मूलाधार से निकलकर इसकी पूर्णता त्रिकुट से होते हुए अमृतछत्र पर होती है. सभी दिव्य शक्तियों को ये अपने आपमें समाहित किये हुए होती है.सप्त चक्र हमारे सप्त शरीरों के द्योतक होते हैं .प्रत्येक शरीर का अपना रंग होता है .और इसी आधार पर सप्त रंगों और उनके उपरंगों की कल्पना की गयी है. उस अद्विय्तीय महालिंग का समाहितिकरण इतना सहज है ही नहीं जितना की सुनने में
लगता है .पर ये उससे भी ज्यादा सहज है जितना की तुमने सुना है ...
हैं भला ये विरोधाभास कैसे ???????????
देखो तुम्हे ये तो पता है की वो मेरुदंड ८४ अस्थियों का संयुक्त रूप है ,पर क्या ये पता है की वो अस्थियां क्या बताती हैं या उनकी क्या विशेषता है. नहीं ना .... तो सुनो प्रत्येक अस्थि १-१ लाख योनियों का प्रतीक हैं उनके गुणों से युक्त हैं अर्थात भू तत्व के गुणों को लिए हुए या रेंगने वाले जीवों के गुणों से
उतरोत्तर बढते हुए आकाश तत्व के गुणों से युक्त या नभचर जीवों के गुणों युक्त योनियों की विशेषताओं को लिए हुए.प्रत्येक अस्थि एक दुसरे से संपृक्त होती है. जब हम साधना के लिए आसन लगते हैं तो मेरुदंड को सीधा रख कर मन्त्र करने पर उस कुंडलिनी शक्ति का स्फोट होता है और वो उर्ध्व गामी होती है तब चक्रों का भेदन करती हुयी त्रिकुटचक्र तक पहुचती है, पर ये तभी संभव हो पाता है जब कुंडलिनी
पथ में किसी प्रकार का अवरोध न हो और ये सूत्र मूलाधार से सीधे अन्य चक्रों का भेदन करता हुआ आज्ञा चक्र तक पहुचे. यदि इस यात्रा के मध्य हमारे आसन की स्थिति में या बैठने की स्थिति में कोई भी परिवर्तन आता है तो ये सूत्र जिस भी योनि के गुणों से भरे हुए अस्थि पिंड को स्पर्श करती है साधक में साधना काल के मध्य उन्ही गुणों का प्रस्फुटन होने लगता है और उसको वैसी ही अनुभूति होती है .
जैसे निम्न योनियों जो की पूर्णतः पृथ्वी तत्व से या भू-जल तत्व के गुणों से युक्त योनियों की उपस्थिति वाली अस्थि के अन्तः भाग से स्पर्श होने पर काम भाव का अधिक संचार होता है और ये काम भाव सम्बंधित शक्ति या देवी-देवता जिनकी आप साधना कर रहे हैं उनके लिए भी वासना युक्त विचारों के द्वारा दिखाई पड़ते हैं. इस लिए प्रत्येक साधना का अपना एक बैठने का तरीका होता है जो
उस तत्व विशेष के चक्रों को ही स्पर्श करता हुआ ऊपर अग्रसर करता है उस शक्ति को .
जैसे ही हम हिलते हैं या आसन बदलते हैं शक्ति का मार्ग भी उस सूत्र के हिलने से विकार युक्त हो जाता है.
मन्त्र जप के कारण आंतरिक उर्जा का निर्माण होता है जिससे निर्मित अग्नि उन चक्रों के नकारात्मक प्रभाव को समाप्त कर दिव्य गुणों को प्रस्फुटित करती है. और सभी तत्वों की शक्तियों से साधक अजेय ही हो जाता है .पूर्णता के पथ पर पहुच जाता है . यही ब्रह्माण्ड भेदन का मार्ग है जिसके द्वारा हम उस अमृतछत्र
से या त्रिकुट से हम वापस प्रत्यावर्तन कर मूलाधार तक आते हैं. और यही प्रत्यावर्तन साधक की कुंडलिनी यात्रा को पूर्ण करता है. जब आप कल्प्नायोग के माध्यम से उस उस महालिंग को परमाणु और विद्युत कणों में भी परिवर्तित कर आप श्वास पथ के द्वारा या ब्रह्माण्ड पथ के द्वारा आप महायोनि (त्रिकोण) या मूलाधार तक लाकर उस महालिंग का स्वशरीर में स्थित लिंग में स्थापन करते हैं तो इसी पथ के
द्वारा उसका पुनः पुनः बाह्य और अन्तः भौतिक प्राकट्य किया जा सकता है. समझ गए.
ह्म्म्म पर सदगुरुदेव यदि कोशिश करने पर भी वो कुंडलिनी प्राण सूत्र त्रिकुट तक बिना अवरोध के नहीं पहुच रहा हो तब क्या करना चाहिए???????
सिद्ध साधकों को बाह्य उपादानो की आवश्यकता नहीं होती है क्यूंकि वो अपने साधना जीवन का प्रारंभ ही आसन सिद्धि के बाद करते हैं. पर वे भी सुरक्षा के लिए पारद गुटिका को स्पर्श कराते रहते हैं अपने शरीर पर. जिससे उनका सूत्र उर्जा युक्त बना रहता है और बाह्य या आंतरिक परिवर्तन से वो मुक्त रहता है. साथ
ही सूक्ष्म शरीर की रक्षा भी करता है तथा अनंत शक्ति संपन्न भी बनाये रखता है ऐसा पारद मौक्तिक. पारद उर्ध्वगामी होता है अर्थात ऊष्मा पाकर ऊपर उठाना उसका स्वाभाव है . अतः वो उस सूत्र को भी उर्ध्वगामी बनाये रखता है.जब सन्यासियों के लिए ये इतना उपयोगी है तो भला सामान्य गृहस्थों के लिए तो ये वरदान ही है . अनेकानेक शक्तियों का
संयुक्त रूप ही होती है ये गुटिका. जो एक सामान्य साधक को भी अल्प प्रयास में आसन सिद्धि तथा सूक्ष्म शरीर सिद्धि तक पंहुचा देती है और अन्य कई भौतिक जीवन की उपलब्धियां भी भर देती है साधक की झोली में,

इस गुटिका का नाम क्या है गुरुदेव् और इसका निर्माण कैसे किया जाता है???????
इस गुटिका को सिद्ध समाज में सूक्ष्म जीवा पारद गुटिका के नाम से जाना जाता है. पारद से ही पूर्णता मिल सकती है समाज को ये हमें भली भांति समझ लेना चाहिए. सर्वप्रथम ११ संस्कार युक्त पारद लेकर उसका मर्दन सिद्ध मूलिकाओं तथा दिव्य औषधियों में करना चाहिए जिससे
की दिव्य गुणों से युक्त होकर वो हमारे सभी मनोरथ को पूर्ण कर सके . फिर विभिन्न रत्नों का ग्रास देना चाहिए. ये कोई प्रथा या ढकोसला नहीं है .बल्कि रत्न ग्रास के पीछे अत्यधिक सूक्ष्म रहस्य छुपा हुआ है रस तंत्र में . रत्न विभिन्न शक्तियों से युक्त होते हैं. जैसे माणिक्य शराब के नशे को समाप्त कर संक्रामक रोगों से भी मुक्त करता है और देता है भूख प्यास पर नियंत्रण की क्षमता तथा
हमेशा तरोताजगी . पन्ना नशे को बढ़ा देता और जहर के असर को दूर करता है.मोती और मूंगा लक्ष्मी के सहोदर हैं जो की सम्पन्नता युक्त कर नेत्र शक्ति में वृद्धि करते हैं,उर्जा को उर्ध्वगामी कर कुंडलिनी शक्ति के द्वारा चक्रों के भेदन में सहायक होते है. ये रत्न सौम्यता और विनम्रता के साथ मनोबल तथा साहस भी प्रदान करते हैं. यदि मात्र मूंगे को ही लक्ष्मी मन्त्र या यक्षिणी मन्त्रों से
सिद्ध कर धारण कर लिया जाये तो जीवन में भौतिक सुखों का आभाव रह ही नहीं सकता. नीलम शारीरिक बल में वृद्धि कर तंत्र बाधा से रक्षा करता है पुखराज रक्त विकार को दूर कर गुदा रोग तथा कुष्ट से भी मुक्त करता है साथ ही भाग्योदय भी करता है पन्ना वाक् सिद्धि में सहायक है.हीरा पूर्णता देता है और खेच्ररत्व में वातावरण के अनुकूल बनाकर कवचित भी करता है तो वैक्रान्त रस शास्त्र में पूर्णता
तथा प्रत्यावर्तन में सफलता भी चाहे वो धातुवाद हो या फिर हो देहवाद. इन रत्नों का ग्रास पारद तभी सहजता से ले पाता है जब गुरु अपने प्राणों का घर्षण कर शिष्य को बीज मन्त्र प्रदान करे तथा औषधियों के मर्दन से लेकर अंत तक इन बीज मन्त्रों का जप होना चाहिए तभी वो गुटिका फल प्रद होती है . यदि घाव के कारण खून बंद नहीं हो रहा हो या मवाद बन रहा हो तो ऐसी गुटिका को फेरने से
तत्काल लाभ होता है (प्रत्यक्षम किम प्रमाणं) ,तत्पश्चात गजपुट में पकाकर उस गुटिका को पूर्णता दी जाती है तथा रसेश्वरी मन्त्र का जप कर उसे सिद्ध कर दिया जाता है .अत्यंत सौभाग शाली व्यक्ति को ही ऐसी गुटिका प्राप्त होती है जिसके आगे सम्पूर्ण वैभव भी फीके पड़ जाते हैं. ऐसी गुटिका का स्पर्श ही आपको श्वेत बिंदु रक्त बिंदु और कई दिव्य क्रियाओं में सफलता देता है और
देता है धातुवाद में सफलता भी. जो किसी भी कीमियागर का लक्ष्य होत्ती है. सदगुरुदेव के निर्देशानुसार इस गुटिका का सफलतापूर्वक निर्माण कर मैंने उस सफलता को भी प्राप्त किया जो शायद बगैर उनके आशीर्वाद के संभव ही नहीं थी और ये तो नितांत सत्य है की बहुत से सूत्र ग्रंथों में हैं ही नहीं , यदि कही वे सुरक्षित हैं तो मात्र हमारे प्राणाधार सदगुरुदेव के कंठ में . ये हमारी जिम्मेदारी
है की उन सूत्रों को प्राप्त कर हम उनका संरक्षण करे आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी.यही हमारा शिष्य धर्म भी है.
मुझे याद है की ब्रह्मत्व साधना शिविर में सदगुरुदेव ने १९८७ में इस गुटिका पर करुणा के वशीभूत होकर सूक्ष्म शरीर सिद्धि क्रिया तथा चक्र जागरण क्रिया करवाई थी . इस गुटिका की प्राप्ति ही सौभाग्य दायक है . तथा निश्चिन्तता भी पूर्णता पाने की . और तभी तो श्वेत
बिंदु रक्त बिंदु की क्रिया सहजता से पूरी हो पाती है.
इस गुटिका को धारण कर हम अपने अभीष्ट को प्राप्त कर सकते हैं. यदि सच में जीवन को हीरे की कलम से संवारना है ,लिखना है अपने ललाट पर सौभाग्य तो आइये आगे बढे और ऐसी दिव्य गुटिका को प्राप्त कर दुर्भाग्य मिटा कर सफलता लिखें और इन सूत्रों को सदगुरुदेव से प्राप्त कर
अपने जीवन को पूर्णता दे.

thought of day 2

कभी भी यह नहीं सोचा की वह यह बात तो सीधे हमको ही लक्ष्य करके बोल रहे हैं , भला और किसी को बोलना होता तो आप से और हमसे बार बार क्यों कहते ..

पर हम भी ऐसे हैं की हम भगत सिंह और विवेकानन्द की प्रशंशा में कितना न कहते हैं और कहते हैं कि इन्हें आज फिर से जन्म लेना चाहिए पर हमारे घर में नहीं..........क्योंकि ऐसा कहीं हो गया तो हमारा क्या होगा कौन हमे बुढ़ापे में पानी देगा ...

पूरी पीढ़ी ही जवानी में बुढ़ापे की बात सोचती रह गयी ..
क्योंकि हम सभी बेहद होशियार तो हैं ही ,,

मुझे इतिहास की एक घटना याद आ रही हैं की , स्वामी विवेकानंद विदेश प्रवास में एक जगह अपनी वही प्राचीन ऋषियों की ओज पूर्ण वाणी में भाषण दे रहे थे तभी अचानक उनके मुख से अचानक निकल पड़ा

"अगर मुझे १०० ऐसे युवा मिल जाये जिनके मांस पेशिया फौलाद की हो और इच्छा शक्ति इतनी दृढ की पहाड़ को भी चूर चूर करदे , मैं पूरे विश्व को बदल सकता हूँ मैं आपका आवाहन कर रहा हूँ,"

पर जानते हैं हुआ क्या ....

उनके भाषण समाप्त होने के बाद एक दुबली पतली लड़की उनके सामने आई उसने स्वामी विवेकानंद जी के चरण स्पर्श किये और केबल मात्र इतना ही बोली..

"गुरुदेव एक में आपके सामने हूँ, आप शेष 99 की खोज स्वयं कर ले",

और स्वामीजी की आखे भर आई की उन्होंने कितनो से कहा …….पर कम से कम एक के ह्रदय में तो उनकी बात तो पहुंची , ….अपनी इस बच्ची को उन युग पुरुष ने जी भर कर आशीर्वाद दिया , और उसी दुबली पतली लड़की को सिस्टर र्निवेदिता के नाम से सारा संसार ने पहचाना .

(और यह हर काल में एक तेजस्वी और सक्षम सदगुरु तत्व की पीड़ा रहती रहती हैं कि कोई तो..)

तो अब क्या कहूं

बस इतना की
हम समझ ही नहीं पाए की सदगुरुदेव हमसे ही कह रहे हैं

हम तो सुनकर जोर दार ताली बजने लगते थे , की

वाह वाह क्या हैं हमारे सदगुरुदेव और एक बार जोर से बोलिये
" बोलिए
परमपूज्य गुरुदेव की जय ," "जोर से

"बोलिए परम पूज्य गुरुदेव की जय " और एक बार

"हर हर महादेव "
और हो गया

यह ही था हमारा उत्तर , और हमने indirectly कह दिया

की हम तो बस इतना ही कर सकते हैं .

सदगुरुदेव के चेहरे पर आई मुस्कराहट को अपने समर्थन में ही मान लिया...... देखा सदगुरुदेव खुश हो गए ...

वेसे उन्होंने एक तो बार कह ही दिया था की हजारो हजारो योगी मुझे हर पल प्रणाम कर ही रहे हैं एक तुम्हारा प्रणाम उसमे और जुड़ जाये तो कोई फरक नहीं पड़ता पर यदि तुम समझ सको की मैं क्या चाहता हूँ .....

काश एक बार हम सभी ने पूंछ ही लिया होता ही की क्या यह....... आप चाहते हैं हम सबसे ...
पर हम में से किसके पास टाइम........
हम सभी अपने जॉब अपनी सुख अपने दुःख में ही ..
उस समय भी ...... और आज भी तो
....

.
थोडी सी कडवी बात कह रहा हूँ, वेसे क्या आज भी हम सभी यही तो नहीं कर रहे हैं ,?,

उत्तर आप जानते हैं ही
काश

हम उनके सामने नतमस्तक हो कर एक बार हिम्मत कर खड़े तो हो जाते की अब से सदगुरुदेव मेरा जीवन हैं आपके श्रीचरणों में ,,,जो चाहे आप सो करे ....कोई व्यापार नहीं..........

तुव्दियम वस्तु सदगुरुदेव तुभ्यमेव ........

पर आज भी और अभी भी देर कहाँ हुयी हैं अगर हम समझ सके तो ......

Sule Maani Peer Budhu Shah pratya sadhna proyog

सुलेमानी पीर बुधु शाह पर्तक्ष साधना--
अब से कुश तीखा हो जाये --- मेरा मतलव है कुश तीक्षण साधनाए जो सर्वदा गुप्त रही है!
यह साधना मुझे मेरे पिता से प्राप्त हुई थी बहुत ही तीक्ष्ण साधना है यह इसे वोही साधक करे जो साधना में आलस्य ना अपनाते हो क्यों के अगर साधक साधना में लापरवाह हो तो ये साधक की पिटाई जरुर कर देता है इस लिए बहुत ही ध्यान देने योग्य है यह साधना और साबर अढाईआ मन्त्र के अंतर्गत आती है !यह बिलकुल पर्तक्ष की हुई साधना है !एक वार नहीं बहुत वार की हुई है और हर वार सफलता से हुई !मैं जहा एक अनुभव सुनाता हू जो मेरे पिता जी का है जिस से मुझे इसे करने की प्रेरणा मिली !
पिता जी को यह मन्त्र किसी महात्मा से मिला था !तो उन्हों ने इसे करना शुरू कर दिया मगर किसी नीयम बध नहीं बस खटिया पे बैठ कर जैसे सोने से पहले एक घंटा लगा लेते थे !अभी ८ दिन ही गुजरे थे के किसी ने पीछे पीठ में जोर से घुसा मारा और वोह अचानक अचबित ही थे एक एक दो और जड़ दिए दिखा कोई नहीं गिरते गिरते बच गये वोह और जैसे ही सभले कहा मैं अब सभाल गया हू !आप जो भी है सहमने आ जाये तो उसी वक़्त एक काले वस्त्र पहने सिर पे भी साईं की तरह काला कपडा लपेटे हुए एक हाथ में डंडा (लाठी )और दुसरे हाथ में एक टीन का डबा जिस में एक तार सी लगी थी पकड़ने के लिए जब मैंने यह की तो भी इसी पहरावे में इन के दर्शन हुए सहमने य़ा कर खलो गये पिता जी ने सोचा सयद मैंने कुश गलत चीज कर ली है !मगर बुधु शाह जी बोले क्यों बई क्यों याद किया मुझे बोलो क्या चाहते हो ओ पिता जी ने हाथ जोड़ कर बस इतना ही कहा बस वावा आपके दर्शन चाहता था जो हो गये अब और कुश नहीं चाहता तो वोह फिर बोले मांग लो जो मांगना चाहते हो तभी भी उन्हों ने जही कहा वोह फिर बोले अब तीसरा बचन है मांग लो क्या चाहते हो तो पिता जी ने फिर ऐसा ही कहा तो वोह बोले तुम ने मेरी साधना की है पर माँगा कुश नहीं फिर भी मैं तुमारी किसी वक़्त जान जरुर बचाऊगा इतना कह वोह अदृष्ट हो गये वक़्त गुजरता गया पिता जी भूल भी गये की क्या किया था एक साल हो गया था वोह कही जा रहे थे स्यकल से रेलवे लाइन के साथ साथ एक पग डंडी सी होती है जो वहा से होते हुए शहर को जाती थी !पिता जी उसी रस्ते से सायकल पे जा रहे थे अचानिक आगे से मालगाड़ी आ रही थी उस पे सरिया लादा था !और एक सरिया बाहर निकाल कर इस तरह से मुड़ा था के कोई भी दुर्घटना ग्रस्त हो सकता था तेज गाड़ी से दिखाई भी नहीं दे रहा था तो सहमने गाड़ी के इंजन पे साईं बुधु शाह जी बैठे जोर जोर से आवाज दे रहे थे मिस्त्री पीछे हट जायो गाड़ी मार देगी !लेकिन इस से पहले पिता जी सभलते गाड़ी पास में आ गई थी ! और साईं बुधु शाह जी ने शालाग लगा के पिता जी को एक तरफ फेक दिया और सरिया पास से गुजर गया और बाद में उठाया और कहा देखा मैंने कहा था मैं तेरी जान बचाऊ गा सो मैंने बचा दी क्यों के तुम ने मेरी साधना की थी जिसका मेरे उपर ऋण था !इस तरह पीर बुधु शाह जी की कृपा से मेरे पिता जी की जान बच गई !यह अनुभव इसी लिए दिया के यह साधनाए कभी निष्फल नहीं जाती जो आप सचे मन से मेहनत करते हो वोह आपको कभी ना कभी फल जरुर देती है !इस में कोई शंशय नहीं है !
इस साधना के कई लाभ है यह लोटरी सटा अदि भी देती है और जीवन भर साधक की रक्षा भी करती है और पीर बुधु शाह जी की मदद से आने वाले और बीत चुके समय की जानकारी मिलती रहती है वोह किसी के भूत भविष्य में झाक सकता है !और यह साधना कई उलझे हुए रहस्य सुलझा देती है बाकि इसके बहुत लाभ है आप स्व कर प्राप्त कर सकते हैं मगर इसे अजमाने के इरादे से ना करे और साधना में आलस्य ना दे !
इसी लिए कहता हू के सुस्त साधक इसे ना करे !
विधि -- यह किसी भी गुरुवार जा मंगलवार को करे !
२ जप के लिए काले हकीक की माला प्रियाप्त है !
३. तेल का दिया जला सकते है इस में किसी भी परकार का तेल वर्त सकते है फिर भी सरसों का जा तिल का तेल वर्त ले !
४.लोवन का धूप जा अगरवत्ती इस्तेमाल करे !
५. वस्त्र काले और आसान कंबल का वर्त सकते है !४० दिन साधना करनी है !
६. मन्त्र जप २१ माला करना है !
जब भी सहमने आये डरे ना बेजिझक अपने मन की बात कह दे !

साबर अढाईआ मन्त्र --
ॐ नमो आदेश गुरु को
हनुमान की खोपड़ी नाहर सिंह का कड़ा जहाँ कहाँ याद करा पीर बुधु शाह हाजर खड़ा !!

GURU PADAMBUJ KALP- JEEVAN KA ADVIYTIY SOUBHAGYA

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गुरु..... आहा ! कैसी मधुर अनुभूति होती है इस शब्द को सुनने और महसूस करने मे. हमारे अंतर मे व्याप्त अंधकार को मिटाकर प्रकाश करने वाला , सत्य का साक्षात करने वाले..... , जीवन का उद्देश्या पाना तब तक कठिन है जब तक की इसके रास्ते को अपने हाथो से साफ़ कर हमारा मार्ग प्रसस्त करने वाले सदगुरुदेव ने हमारा हाथ ना थमा हो.
क्या गुरु की स्तुति शब्दो से की जा सकती है? नही ना.. ....

गुरु के कार्यों को गति तभी दी जा सकती है , जब हम उनकी ही चैतन्यता से आप्लवित हो , सुवासित हो हमारी आत्मा उनके ही ज्ञान की सुगंध से....

यू तो गुरु साधना के विभिन्न पक्ष हैं जो हमारे जीवन के सभी चित्रों को रंगीन बनाते हैं. पर वर्तमान मे जब समय और स्थान के अभाव मे हमारा सशरीर गुरु से मिलना संभव नही हो पाता . और ना ही आसांन हो पाता है प्रत्यक्ष मार्ग- दर्शन ले पाना . तब तो एक मात्र साधना ही वो उपाय रह जाती है जिसके द्वारा हम अपनी प्रज्ञा को सदगुरु की शक्ति से जोड़ते हैं और प्राप्त करते हैं उस क्षमता को जिसके द्वारा वस्तुतः हम सदगुरु के उस मौन को भी समझ पाते हैं जो की अबूझ पहेली बनकर हमारे सामने वर्षों से खड़ा है. मेरे भाइयों उस मौन को सच मे आज समझने की ज़रूरत है क्यूंकी ना जाने हमारे द्वारा दिए गये कितने विषाद का जहर सदगुरु को चुपचाप पीना पड़ता है . उस मौन को समझने वाली भाषा का अभाव ही हमे अबोध बनाकर रखे हुए है . (भले ही हम अपने आपको गुरु के सामने अबोध मानते रहें) क्या इस अबोधता की आड़ मे हम हमारी अकर्मण्यता , आलस्य, और सब कुछ गुरु के उपर ही डाल देने की आदत के शिकार नही हैं ... सोचिए?... .....
सदगुरु ने हमेशा से हमे चेतना देने का ही कार्य किया है ..अब यह अलग बात है की हम ही आँख मूंद कर बैठे रहे...
यदि उस दिव्या चेतना को प्राप्त करना है. सदगुरुदेव के ज्ञान को आत्मसात करना है तो किसी अन्य मंत्र की तुलना मे SADGURUDEV KE CHARNON और गुरु मंत्र का ही संबल लेना कही श्रेष्ट और प्रामाणिक उपाय है..
प्रस्तुत गुरु पादांबुज कल्प उसी दिव्य चेतना को पाने और उसके माध्यम से स्वयं चैतन्य बनने की ही साधना है . और इसका प्रभाव तो तभी आप समझ सकते हैं जब आप इस साधना को करेंगे. इस साधना के प्रभाव स्वरूप इस ब्रह्मांड के ग़ूढ रहस्य खुद ही खुलते चले जाते हैं और आप भी शिष्यतव के सद्गुणो से युक्त होते चले जाते हो... ....

किसी भी गुरूवार से इस साधना को किया जाता है . यदि गुरु पुष्य हो तो श्रेष्ठ है अन्यथा महेंद्र काल मे इस साधना का प्रारंभ करे . शुद्ध व श्वेत वस्त्र पहनकर सफेद आसन पर उत्तर की ओर मूह करके बैठे .
सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर पुष्प रख कर उस पर गुरु पादूका स्थापित करें . पंचोपचार पूजन करें . घृत का दीपक जलाएँ और स्फटिक माला से 51 माला जप करें. यही क्रम 10 दिनों तक रहेगा. मंत्र जप के बाद गुरु आरती करें.

मंत्र:
ॐ परम तत्वाय आत्म चैतन्यै नारायणाय गुरुभ्यो नमः

इस साधना को करके ही आप समझ पाएँगे की कैसे जीवन बदल जाता है ,और सफलता कैसे आपका वरण करने को आतुर होती है . जैसे ही हमारी चेतना गुरु चेतना से जुड़ती है .
तो आइए और सौभाग्य को जीवन मे प्रवेश दीजिए..... ....

Vidha yakshani - Ved matri sadhna

विद्दा यक्षनी------ वेद मात्री साधना ---
यक्षनी साधना के अंतर्गत यह साधना विद्दा प्राप्ति के लिए काफी महतवपूर्ण है !इस से साधक को कई गुप्त विद्दायो का ज्ञान याक्षणी पर्दान कर देती है जिसे वोह कई विद्दायो में परांगत हो जाता है !और इस के साथ ही उसकी दरिद्रता का नाश भी हो जाता है !आलस्य दूर हो कर वोह एक अशे साधक की श्रेणी में आ जाता है !उस के लिए साधना मार्ग सुलभ हो जाता है !और याक्षणी कई साधनायो में सहायता प्रदान स्व कर देती है !इसे किसी भी पूर्णमा जा पंचमी तिथि से शुरू करे !इसकी साधना सरल है !
विधि ---सुध सफ़ेद वस्त्र पहन कर आसन पे पूर्व मुख बैठे !गुरु पूजन और श्री गणेश पूजन कर गुरु जी से साधना में सफलता की प्रार्थना करे और साधना करने की आज्ञा प्राप्त करे !
फिर दिशा सोधन के लिए जल लेकर ॐ श्रीं ॐ पड़ कर चारो दिशायो में छिरक दे !और पूजा शुरू करे एक तेल का दिया जला ले और एक वेदी सी बना ले आटे हल्दी और कुंकुम को मिला के! उस में एक शोटी सी मिटी की मूर्ति बना के उसे उसे हल्दी कुंकुम और चन्दन से रंग दे मूर्ति औरत की बनाये उसी को उस वेदी में स्थापित करे और एक जल का कलश सथाप्न करे उस पे नारियल रखे वेदी में पाँच लडू कुंकुम सफ़ेद फूल लोंग इलाची पान सुपारी एक पीपल के पते पे रखदे और उस मूर्ति की पूजा करे तेल का दिया जला दे और सुगंध के लिए अगरवती लगा दे पूजन के पहचात जप शुरू करे !इस साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करे और साधना समाप्ति पे २५ माला मन्त्र से हवन करे पाँच मेवा और घी मिला के तो वेद मात्री याक्षणी पर्सन हो कर वरदान देती है और उसे कई परकार की विधायो में परांगत बना देती है !यह मन्त्र रिद्धी सिधी देने वाला है !प्राप्त किसी भी विद्दा का दुरूपयोग ना करे और ध्यान में पवित्रता रखे !
साधना काल---इसका जाप रात्रि १० वजे से शुरू करे !
२ दिन सोमवार जा पंचमी तिथि जा पूर्णमा को शुरू करे !
३ दिशा उतर जा पूर्व को मुख कर के बैठे !
४ भोग के लिए लडू पास रख सकते हैं !
५ वस्त्र सफ़ेद आसन कोई भी सफ़ेद रंग का ले सकते है !
यह वेद ज्ञान प्रदान करने वाली साधना है इसे पवित्रता से करे !

मन्त्र ----- ॐ ह्रीं वेद मात्री सवाहा !
इस मन्त्र का ११ माला जप करना है एक महीने तक ३१ दिन कर सकते है !

Ayurved ke proyog1

आयुर्वेद के अद्भुत प्रयोग

यहाँ मैं ऐसे प्रयोग दे रहा हूँ जो मुझे सदगुरुदेव से प्राप्त किये हैं और मैंने जब भी आजमाए हर बार शत प्रतिशत सफल रहे हैं. अतः इन आयुर्वेदिक प्रयोगों को आजमाकर इनका लाभ उठाये और हमारे प्रयत्न को सार्थक करें .
१. सत्यानाशी या हेम्दुग्धा के दूध में रुई को बार बार भिगोये और छाया में ही सुखायें , ये सम्पूर्ण क्रिया १६ बार करें फिर इसको घृत दीपक में बत्ती बनाकर जलाये और काजल बना लें. इस काजल को सुरक्षित रखें , रात्रि में सोते समय इस काजल को आँखों में लगाने और इसके साथ चाक्षुष्मती स्तोत्र का ११ पाठ नित्य करने पर एक मास में ही आँखों से चश्मा उतर जाता है ,नेत्र ज्योति तीव्र हो जाती है .
२. हल्दी, आंवले का रस और शहद मिलकर दिन में तीन बार लेने से सभी प्रकार के प्रमेह और श्वेत प्रदर नष्ट हो जाते हैं.
३. हल्दी, नमक और सरसों तेल मिलाकर रोज मंजन करने से पुरे जीवन में कभी भी दांतों के रोग नहीं होते.
४. पलाश का एक बीज लेकर दरदरे पसे तिल और शक्कर समभाग मिला कर खाने से अपूर्व बल प्राप्त होता है और दुबलापन निश्चित ही दूर होकर मजबूत और हष्ट पुष्ट शरीर की प्राप्ति होती है .
hemdugdha is also an another plant of the same species, with bit wider trunk and longer leaf, smaller height with yellow/violate flowers. most of the properties are same; in majority those could be brought into use for substitute of each other.

सत्यानाशी/स्वर्णक्षीरी/हेम्दुग्धा (satyanaashi/swarnakshiri/hemdadugdha)
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SadGuru Aur Parad Vigyan

सदगुरुदेव और पारद विज्ञान
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भारतीय शास्त्रों में पारद की दूसरी संज्ञा " रस" भी कही गयी है और इस अर्थ की विवेचना करते हुए कहा गया है:
"जो समस्त धातुओं को अपने में समाहित कर लेता है तथा बुढापा रोग व मृत्यु की समाप्ति के लिए रस पूर्वक ग्रहण किया जाता है वो "रस है"
इश्वर के लिए भी कहा गया है की " रसो वै सः "
वस्तुतः प्राचीन काल से ही ऋषियों के प्रयास से ही पारद का प्रयोग केवल, लोह सिद्धि और औषधियों के लिए ही नही अपितु कायाकल्प, विशिष्ट विद्याओं की प्राप्ति और सहज समाधि अवस्था को प्राप्त करने के लिए भी किया गया है.
यहाँ तक कहा गया है की बिना रस सिद्ध हुए व्यक्ति कैसे मुक्ति प्राप्त कर सकता है.
भारतीय रसायन सिद्धों ने स्वर्ण निर्माण के अलावा साधना जगत में पारद का प्रयोग कर वायु गमन सिद्धि, शून्य सिद्धि, अदृश्य सिद्धि, देह लुप्त क्रिया भी सिद्ध की.
और इन्ही रस सिद्धों के कारण भारतीय रसायन विद्या सुदूर देशों में पहुची.जिसे कीमियागिरी का नाम दिया गया.
पारद की महत्ता इतनी अधिक व्यापक रही की लगभग सभी सम्प्रदाय के साधकों ने इसका अपने अपने तरीके से प्रयोग कर सम्प्रदायों को समृद्ध व शक्ति सम्पन्न बनाया.
यद्यपि इन सभी की मूल रुचि तो स्वर्ण निर्माण में थी , किंतु इन्ह्ने यह भी अनुभव किया की कुछ विशेष क्रियाओं के द्वारा यदि पारद का भक्षण कर लिया जाए शरीर का कायाकल्प हो जाता है.
और यह क्रिया तभी हो पाती है जब की पारद के अन्दर के विष को ८ संस्कारों के द्वारा निकाल कर उसे अमृत में बदल दिया जाता है . तथा ऐसा पारद यदि विशेष विधियों के द्वारा किसी कुशल रस ज्ञाता की देख रेख में यदि उचित मात्र में ग्रहण किया जाए तो सारे शरीर का कायाकल्प हो जाता है, और यह क्रिया इतनी तीव्र होती है की जिसमे वर्षो या महीनो नही बल्कि कुछ हफ्तों का ही समय पर्याप्त होता है.
सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी का योगदान पारद जगत में कोई नही भूल सकता . विभिन्न शिविरों,ग्रंथो में उन्होंने पारद के ऐसे ऐसे सूत्र प्रकट किए हैं जिन्हें सुनकर और क्रिया रूप में करके आदमी दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो ही जाता है. पारद के १०८ संस्कारों से समाज का परिचय सबसे पहले उन्होंने ही करवाया . वे १०८ संस्कार जिनके विषय में लोगो ने कभी सुना भी नही , सदगुरुदेव ने इन संस्कारों को प्रत्यक्ष करके भी दिखाया.
" स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ने हस्ते हुए कहा 'इतना ही क्यूँ ! अनंत शक्ति संपन इस पारद से , हम जो चाहे कर सकते हैं – हवा में उड़ सकते हैं, अदृश्य हो सकते हैं , सोने का ढेर लगा सकते हैं, अक्षय यौवन का वरदान प्राप्त कर सकते हैं, यौगिक शक्ति प्राप्त करके परकाया प्रवेश कर सकते हैं".
"मेरी बात सुनकर स्वामी जी गंभीर हो गए , कुछ सोचते रहे , फिर बोले की पारद को बुभुक्षित करने जो तांत्रिक क्रिया है , उससे तो इतना सोना बन सकता है की –सोने की लंका ही बन जाए.

'रावण शिव भक्त था . शिव का ही तत्व पारद है रावण ने मंत्रो के द्वारा पारद को बुभुक्षित कर पारस बनाकर स्वर्ण की लंका बनाई थी.'

निखिलेश्वरानंद जी ने बताया की 'शुद्ध किया हुआ पारद शरीर में दिव्य क्रियाओं से यदि प्रवेश करा दिया जाए तो हिमालय की बर्फीली चोटियों पर तुम नंगे शरीर घूम सकते हो, ठण्ड का कोई प्रभाव तुम पर नही पड़ेगा.उन्होंने वैसा करके मुझे दिखाया भी . उन्होंने पारद की गुटिका मुझे देकर कहा ,' इसे मुख में रख कर चाहे जितनी दूर की यात्रा करो ,थकान नही होगी, कोई छूत की बिमारी नही होगी, भूख प्यास नही लगेगी, यदि इसे गले में धारण करके परकाया प्रवेश किया जाए तो शरीर की दीर्घकाल तक रक्षा करती है, यदि कोई इसे निगल ले और कालांतर में उसकी मृत्यु हो जाए तो शव में लंबे समय तक कोई परिवर्तन नही होगा.

( उड़ते हुए संन्यासी से साभार)

चाहे सिद्ध सूत बनाना का तरीका हो या फिर पारद के गोपनीय सूत्रों का शिष्यों को ज्ञान कराना. कभी भी सदगुरुदेव ने कोई कमी नही की. उन्होंने सिद्ध सूत बनाने का सरलतम विधान भी बताया.
चाहे वो श्वित्र कुष्ठ से निदान हो या कुरूपता का सुन्दरता में परिवर्तन .
चंद्रोदय जल बनाने का विधान भी उन्होंने शिष्यों के सामने १९८९ में बताया .जिसके द्वारा पारद बंधन की क्रिया अत्यन्त सरलता से हो जाती है और यह जब सम्पूर्ण रोगों से देह को मुक्त रखता है.
पारद द्वारा गौरान्गना का निर्माण जिसके उपयोग से एक दिन में ही गोरापन प्राप्त किया जा सकता है. जबकि बाजार में उपलब्ध बड़े से बड़े उत्पाद भी ऐसा नही कर पाए हैं.
पूज्य गुरुदेव की कृपा से वाराणसी क एक साधक ने तेलिया कांड द्वरा पारद को सुद्ध स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया था.
उन्होंने बताया की पारद ६ प्रकार से फलदायक है – दर्शन, स्पर्श,भक्षण,स्मरण,पूजन एवं दान . पारद को इतना पवित्र माना गया है की इसकी निंदा करने वाला भी परम पापी मन गया है.
अष्ट संस्कारित पारद की गुटिका या मुद्रिका का निर्माण कर धारण करने से शरीर वज्र तुल्य हो जाता है, यह गुटिका साधक को मानसिक या शारीरिक व्याधियों से भी मुक्त रखती हैं. और सम्मोहन की आभा देती है .यो भी पारद का सम्मोहन और वशीकरण की क्रियाओं में एक प्रमुख स्थान है और अत्यन्त उच्च कोटि की वशीकरण साधनाये पारद गुटिका को वशीकरण गुटिका के रूप में परिवर्तित कर के ही की जाती है .

रस सिद्ध साधक ८ संस्कारों से युक्त पारद देने में अत्यन्त हिचकिचाहट का अनुभव करते हैं . पर सदगुरुदेव ने इन संस्कारों से युक्त पारद की गुतिकाए और मुद्रिकाए उपलब्ध करवाईं.

इसके अतिरिक्त पारद के विग्रह बनाने का विधान और उनसे कैसे लाभ पाया जा सकता है कौन कौन सी क्रियायें करना चाहिए , यह सबन भी साधको को समझाया.

उन्होंने बताया की पारद के विग्रहो की इतनी महत्ता क्यूँ है, क्यूंकि धन मानव जीवन का अनिवार्य अंग है उसके बिना जीवन सुचारू रूप से नही चल सकता . और एक मात्र पारद ही वो धातु है अक्षय है . तथा अपनी चंचलता में लक्ष्मी की चंचलता को समाहित किए हुए है . इस लिए उसको बंधन करते ही स्वतः ही लक्ष्मी का बंधन होने लगता है और एनी धातुओ की भाति इसकी शक्ति समय के साथ कमजोर नही होती जैसे की अन्य यंत्रो की जो ताम्बे आदि से बने हो उनकी चैतन्यता कुछ वर्षो तक ही रह पाती है पर पारद आजीवन प्रभाव शाली रहता है.

पारद शिवलिंग का स्थापन वास्तु दोष दूर करता है और उसकी निर्माण विधि पर पहले भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है. इनका स्थापन कर यदि नित्य जल चढाते हुए 'ॐ नमः शिवाय' का ११ बार जप कर वह जल थोड़ा पी लें तो कुछ ही दिनों में अपूर्व यौवन की प्राप्ति होती है. तथा ऐसे पारद शिवलिंग पर विशेष मन्त्र से सोमवार को कुबेर साधना करने से अक्षय सम्पत्ति की प्राप्ति होती है. त्राटक करते हुए यदि पारदेश्वर पर यदि पूर्व जन्म दर्शन साधना की जाए तो निश्चय ही ऐसा सम्भव होता है.वायु गमन और शून्य आसन की सिद्धि का तो पारद शिवलिंग आधार ही है .
पारद लक्ष्मी के विषय में भी बहुत कुछ बताया जा चुका है, यदि पारद लक्ष्मी का पूजन करके सौन्दर्य लक्ष्मी मन्त्र का जप किया जाए तो अपूर्व सुन्दरता प्राप्त होती है.
पारद श्रीयंत्र का निर्माण कर यदि भूगर्भीय मंत्रो से उसे सिद्ध कर के भवन बनाते समय यदि भूमि में दबा दिया जाए तो भवन सदैव लक्ष्मी के विविध रूपों से भरा रहता है.
शायद आप लोगो को याद होगा की आज से १२-१५ साल पहले बेरोजगारी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या थी पर सद्ग्रुदेव द्वारा जबसे राष्ट्रपति भवन में पारदेश्वर की स्थापना करने के बाद आज हमारा देश कैसा प्रगति कर रहा है आप सभी देख सकते हैं, वैश्विक मंडी के इस दौर में बड़े बड़े विकसित देश कंगाली के कगार पर पहुच गए पर . हमारा देश आज भी सीना ताने खड़ा है .

पारद दुर्गा और पारद काली जैसे जटिल विग्रहों का निर्माण तभी सम्भव हो पाता है जब ललिता सहस्त्रनाम और नवार्ण मन्त्र का जप करते हुए इन्हे बनाया जाए बाद में कैसे उन्हें अभिसिक्त किया जाए यह विधान भी उन्होंने समझाया. ऐसे चैतन्य विग्रह के सामने 'दुर्गा द्वात्रिन्स्न्नाम माला' का पाठ करने पर कैसी भी व्याधि हो उससे आजीवन मुक्ति मिलती ही है.

पारद गणपति, तथा पारद अन्नपूर्णा के निर्माण की गोपनीय विधियां भी सदगुरुदेव ने शिविरों में बतायी जिससे साधक को समस्त सुखों की प्राप्ति होती ही है. और भी बहुत कुछ गुरूजी ने प्रदान किया शिष्यों को.
क्या क्या बताऊ …॥ इतना कुछ है मेरे सदगुरुदेव के बार में बोलने के लिए की शब्द मौन हो जाते हैं। आज हम जिस परम्परा से जुड़े हुए हैं , उस पर गर्व करने से बड़ा सुख और आनंद कुछ नही है. बस हमें इस परम्परा को आगे बढ़ाना है. यही संकल्प हम लें , यही हम सदगुरुदेव से प्रार्थना करे.