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गुरु..... आहा ! कैसी मधुर अनुभूति होती है इस शब्द को सुनने और महसूस करने मे. हमारे अंतर मे व्याप्त अंधकार को मिटाकर प्रकाश करने वाला , सत्य का साक्षात करने वाले..... , जीवन का उद्देश्या पाना तब तक कठिन है जब तक की इसके रास्ते को अपने हाथो से साफ़ कर हमारा मार्ग प्रसस्त करने वाले सदगुरुदेव ने हमारा हाथ ना थमा हो.
क्या गुरु की स्तुति शब्दो से की जा सकती है? नही ना.. ....
गुरु के कार्यों को गति तभी दी जा सकती है , जब हम उनकी ही चैतन्यता से आप्लवित हो , सुवासित हो हमारी आत्मा उनके ही ज्ञान की सुगंध से....
यू तो गुरु साधना के विभिन्न पक्ष हैं जो हमारे जीवन के सभी चित्रों को रंगीन बनाते हैं. पर वर्तमान मे जब समय और स्थान के अभाव मे हमारा सशरीर गुरु से मिलना संभव नही हो पाता . और ना ही आसांन हो पाता है प्रत्यक्ष मार्ग- दर्शन ले पाना . तब तो एक मात्र साधना ही वो उपाय रह जाती है जिसके द्वारा हम अपनी प्रज्ञा को सदगुरु की शक्ति से जोड़ते हैं और प्राप्त करते हैं उस क्षमता को जिसके द्वारा वस्तुतः हम सदगुरु के उस मौन को भी समझ पाते हैं जो की अबूझ पहेली बनकर हमारे सामने वर्षों से खड़ा है. मेरे भाइयों उस मौन को सच मे आज समझने की ज़रूरत है क्यूंकी ना जाने हमारे द्वारा दिए गये कितने विषाद का जहर सदगुरु को चुपचाप पीना पड़ता है . उस मौन को समझने वाली भाषा का अभाव ही हमे अबोध बनाकर रखे हुए है . (भले ही हम अपने आपको गुरु के सामने अबोध मानते रहें) क्या इस अबोधता की आड़ मे हम हमारी अकर्मण्यता , आलस्य, और सब कुछ गुरु के उपर ही डाल देने की आदत के शिकार नही हैं ... सोचिए?... .....
सदगुरु ने हमेशा से हमे चेतना देने का ही कार्य किया है ..अब यह अलग बात है की हम ही आँख मूंद कर बैठे रहे...
यदि उस दिव्या चेतना को प्राप्त करना है. सदगुरुदेव के ज्ञान को आत्मसात करना है तो किसी अन्य मंत्र की तुलना मे SADGURUDEV KE CHARNON और गुरु मंत्र का ही संबल लेना कही श्रेष्ट और प्रामाणिक उपाय है..
प्रस्तुत गुरु पादांबुज कल्प उसी दिव्य चेतना को पाने और उसके माध्यम से स्वयं चैतन्य बनने की ही साधना है . और इसका प्रभाव तो तभी आप समझ सकते हैं जब आप इस साधना को करेंगे. इस साधना के प्रभाव स्वरूप इस ब्रह्मांड के ग़ूढ रहस्य खुद ही खुलते चले जाते हैं और आप भी शिष्यतव के सद्गुणो से युक्त होते चले जाते हो... ....
किसी भी गुरूवार से इस साधना को किया जाता है . यदि गुरु पुष्य हो तो श्रेष्ठ है अन्यथा महेंद्र काल मे इस साधना का प्रारंभ करे . शुद्ध व श्वेत वस्त्र पहनकर सफेद आसन पर उत्तर की ओर मूह करके बैठे .
सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर पुष्प रख कर उस पर गुरु पादूका स्थापित करें . पंचोपचार पूजन करें . घृत का दीपक जलाएँ और स्फटिक माला से 51 माला जप करें. यही क्रम 10 दिनों तक रहेगा. मंत्र जप के बाद गुरु आरती करें.
मंत्र:
ॐ परम तत्वाय आत्म चैतन्यै नारायणाय गुरुभ्यो नमः
इस साधना को करके ही आप समझ पाएँगे की कैसे जीवन बदल जाता है ,और सफलता कैसे आपका वरण करने को आतुर होती है . जैसे ही हमारी चेतना गुरु चेतना से जुड़ती है .
तो आइए और सौभाग्य को जीवन मे प्रवेश दीजिए..... ....
गुरु..... आहा ! कैसी मधुर अनुभूति होती है इस शब्द को सुनने और महसूस करने मे. हमारे अंतर मे व्याप्त अंधकार को मिटाकर प्रकाश करने वाला , सत्य का साक्षात करने वाले..... , जीवन का उद्देश्या पाना तब तक कठिन है जब तक की इसके रास्ते को अपने हाथो से साफ़ कर हमारा मार्ग प्रसस्त करने वाले सदगुरुदेव ने हमारा हाथ ना थमा हो.
क्या गुरु की स्तुति शब्दो से की जा सकती है? नही ना.. ....
गुरु के कार्यों को गति तभी दी जा सकती है , जब हम उनकी ही चैतन्यता से आप्लवित हो , सुवासित हो हमारी आत्मा उनके ही ज्ञान की सुगंध से....
यू तो गुरु साधना के विभिन्न पक्ष हैं जो हमारे जीवन के सभी चित्रों को रंगीन बनाते हैं. पर वर्तमान मे जब समय और स्थान के अभाव मे हमारा सशरीर गुरु से मिलना संभव नही हो पाता . और ना ही आसांन हो पाता है प्रत्यक्ष मार्ग- दर्शन ले पाना . तब तो एक मात्र साधना ही वो उपाय रह जाती है जिसके द्वारा हम अपनी प्रज्ञा को सदगुरु की शक्ति से जोड़ते हैं और प्राप्त करते हैं उस क्षमता को जिसके द्वारा वस्तुतः हम सदगुरु के उस मौन को भी समझ पाते हैं जो की अबूझ पहेली बनकर हमारे सामने वर्षों से खड़ा है. मेरे भाइयों उस मौन को सच मे आज समझने की ज़रूरत है क्यूंकी ना जाने हमारे द्वारा दिए गये कितने विषाद का जहर सदगुरु को चुपचाप पीना पड़ता है . उस मौन को समझने वाली भाषा का अभाव ही हमे अबोध बनाकर रखे हुए है . (भले ही हम अपने आपको गुरु के सामने अबोध मानते रहें) क्या इस अबोधता की आड़ मे हम हमारी अकर्मण्यता , आलस्य, और सब कुछ गुरु के उपर ही डाल देने की आदत के शिकार नही हैं ... सोचिए?... .....
सदगुरु ने हमेशा से हमे चेतना देने का ही कार्य किया है ..अब यह अलग बात है की हम ही आँख मूंद कर बैठे रहे...
यदि उस दिव्या चेतना को प्राप्त करना है. सदगुरुदेव के ज्ञान को आत्मसात करना है तो किसी अन्य मंत्र की तुलना मे SADGURUDEV KE CHARNON और गुरु मंत्र का ही संबल लेना कही श्रेष्ट और प्रामाणिक उपाय है..
प्रस्तुत गुरु पादांबुज कल्प उसी दिव्य चेतना को पाने और उसके माध्यम से स्वयं चैतन्य बनने की ही साधना है . और इसका प्रभाव तो तभी आप समझ सकते हैं जब आप इस साधना को करेंगे. इस साधना के प्रभाव स्वरूप इस ब्रह्मांड के ग़ूढ रहस्य खुद ही खुलते चले जाते हैं और आप भी शिष्यतव के सद्गुणो से युक्त होते चले जाते हो... ....
किसी भी गुरूवार से इस साधना को किया जाता है . यदि गुरु पुष्य हो तो श्रेष्ठ है अन्यथा महेंद्र काल मे इस साधना का प्रारंभ करे . शुद्ध व श्वेत वस्त्र पहनकर सफेद आसन पर उत्तर की ओर मूह करके बैठे .
सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर पुष्प रख कर उस पर गुरु पादूका स्थापित करें . पंचोपचार पूजन करें . घृत का दीपक जलाएँ और स्फटिक माला से 51 माला जप करें. यही क्रम 10 दिनों तक रहेगा. मंत्र जप के बाद गुरु आरती करें.
मंत्र:
ॐ परम तत्वाय आत्म चैतन्यै नारायणाय गुरुभ्यो नमः
इस साधना को करके ही आप समझ पाएँगे की कैसे जीवन बदल जाता है ,और सफलता कैसे आपका वरण करने को आतुर होती है . जैसे ही हमारी चेतना गुरु चेतना से जुड़ती है .
तो आइए और सौभाग्य को जीवन मे प्रवेश दीजिए..... ....