Tuesday, October 4, 2011

Sule Maani Peer Budhu Shah pratya sadhna proyog

सुलेमानी पीर बुधु शाह पर्तक्ष साधना--
अब से कुश तीखा हो जाये --- मेरा मतलव है कुश तीक्षण साधनाए जो सर्वदा गुप्त रही है!
यह साधना मुझे मेरे पिता से प्राप्त हुई थी बहुत ही तीक्ष्ण साधना है यह इसे वोही साधक करे जो साधना में आलस्य ना अपनाते हो क्यों के अगर साधक साधना में लापरवाह हो तो ये साधक की पिटाई जरुर कर देता है इस लिए बहुत ही ध्यान देने योग्य है यह साधना और साबर अढाईआ मन्त्र के अंतर्गत आती है !यह बिलकुल पर्तक्ष की हुई साधना है !एक वार नहीं बहुत वार की हुई है और हर वार सफलता से हुई !मैं जहा एक अनुभव सुनाता हू जो मेरे पिता जी का है जिस से मुझे इसे करने की प्रेरणा मिली !
पिता जी को यह मन्त्र किसी महात्मा से मिला था !तो उन्हों ने इसे करना शुरू कर दिया मगर किसी नीयम बध नहीं बस खटिया पे बैठ कर जैसे सोने से पहले एक घंटा लगा लेते थे !अभी ८ दिन ही गुजरे थे के किसी ने पीछे पीठ में जोर से घुसा मारा और वोह अचानक अचबित ही थे एक एक दो और जड़ दिए दिखा कोई नहीं गिरते गिरते बच गये वोह और जैसे ही सभले कहा मैं अब सभाल गया हू !आप जो भी है सहमने आ जाये तो उसी वक़्त एक काले वस्त्र पहने सिर पे भी साईं की तरह काला कपडा लपेटे हुए एक हाथ में डंडा (लाठी )और दुसरे हाथ में एक टीन का डबा जिस में एक तार सी लगी थी पकड़ने के लिए जब मैंने यह की तो भी इसी पहरावे में इन के दर्शन हुए सहमने य़ा कर खलो गये पिता जी ने सोचा सयद मैंने कुश गलत चीज कर ली है !मगर बुधु शाह जी बोले क्यों बई क्यों याद किया मुझे बोलो क्या चाहते हो ओ पिता जी ने हाथ जोड़ कर बस इतना ही कहा बस वावा आपके दर्शन चाहता था जो हो गये अब और कुश नहीं चाहता तो वोह फिर बोले मांग लो जो मांगना चाहते हो तभी भी उन्हों ने जही कहा वोह फिर बोले अब तीसरा बचन है मांग लो क्या चाहते हो तो पिता जी ने फिर ऐसा ही कहा तो वोह बोले तुम ने मेरी साधना की है पर माँगा कुश नहीं फिर भी मैं तुमारी किसी वक़्त जान जरुर बचाऊगा इतना कह वोह अदृष्ट हो गये वक़्त गुजरता गया पिता जी भूल भी गये की क्या किया था एक साल हो गया था वोह कही जा रहे थे स्यकल से रेलवे लाइन के साथ साथ एक पग डंडी सी होती है जो वहा से होते हुए शहर को जाती थी !पिता जी उसी रस्ते से सायकल पे जा रहे थे अचानिक आगे से मालगाड़ी आ रही थी उस पे सरिया लादा था !और एक सरिया बाहर निकाल कर इस तरह से मुड़ा था के कोई भी दुर्घटना ग्रस्त हो सकता था तेज गाड़ी से दिखाई भी नहीं दे रहा था तो सहमने गाड़ी के इंजन पे साईं बुधु शाह जी बैठे जोर जोर से आवाज दे रहे थे मिस्त्री पीछे हट जायो गाड़ी मार देगी !लेकिन इस से पहले पिता जी सभलते गाड़ी पास में आ गई थी ! और साईं बुधु शाह जी ने शालाग लगा के पिता जी को एक तरफ फेक दिया और सरिया पास से गुजर गया और बाद में उठाया और कहा देखा मैंने कहा था मैं तेरी जान बचाऊ गा सो मैंने बचा दी क्यों के तुम ने मेरी साधना की थी जिसका मेरे उपर ऋण था !इस तरह पीर बुधु शाह जी की कृपा से मेरे पिता जी की जान बच गई !यह अनुभव इसी लिए दिया के यह साधनाए कभी निष्फल नहीं जाती जो आप सचे मन से मेहनत करते हो वोह आपको कभी ना कभी फल जरुर देती है !इस में कोई शंशय नहीं है !
इस साधना के कई लाभ है यह लोटरी सटा अदि भी देती है और जीवन भर साधक की रक्षा भी करती है और पीर बुधु शाह जी की मदद से आने वाले और बीत चुके समय की जानकारी मिलती रहती है वोह किसी के भूत भविष्य में झाक सकता है !और यह साधना कई उलझे हुए रहस्य सुलझा देती है बाकि इसके बहुत लाभ है आप स्व कर प्राप्त कर सकते हैं मगर इसे अजमाने के इरादे से ना करे और साधना में आलस्य ना दे !
इसी लिए कहता हू के सुस्त साधक इसे ना करे !
विधि -- यह किसी भी गुरुवार जा मंगलवार को करे !
२ जप के लिए काले हकीक की माला प्रियाप्त है !
३. तेल का दिया जला सकते है इस में किसी भी परकार का तेल वर्त सकते है फिर भी सरसों का जा तिल का तेल वर्त ले !
४.लोवन का धूप जा अगरवत्ती इस्तेमाल करे !
५. वस्त्र काले और आसान कंबल का वर्त सकते है !४० दिन साधना करनी है !
६. मन्त्र जप २१ माला करना है !
जब भी सहमने आये डरे ना बेजिझक अपने मन की बात कह दे !

साबर अढाईआ मन्त्र --
ॐ नमो आदेश गुरु को
हनुमान की खोपड़ी नाहर सिंह का कड़ा जहाँ कहाँ याद करा पीर बुधु शाह हाजर खड़ा !!

GURU PADAMBUJ KALP- JEEVAN KA ADVIYTIY SOUBHAGYA

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गुरु..... आहा ! कैसी मधुर अनुभूति होती है इस शब्द को सुनने और महसूस करने मे. हमारे अंतर मे व्याप्त अंधकार को मिटाकर प्रकाश करने वाला , सत्य का साक्षात करने वाले..... , जीवन का उद्देश्या पाना तब तक कठिन है जब तक की इसके रास्ते को अपने हाथो से साफ़ कर हमारा मार्ग प्रसस्त करने वाले सदगुरुदेव ने हमारा हाथ ना थमा हो.
क्या गुरु की स्तुति शब्दो से की जा सकती है? नही ना.. ....

गुरु के कार्यों को गति तभी दी जा सकती है , जब हम उनकी ही चैतन्यता से आप्लवित हो , सुवासित हो हमारी आत्मा उनके ही ज्ञान की सुगंध से....

यू तो गुरु साधना के विभिन्न पक्ष हैं जो हमारे जीवन के सभी चित्रों को रंगीन बनाते हैं. पर वर्तमान मे जब समय और स्थान के अभाव मे हमारा सशरीर गुरु से मिलना संभव नही हो पाता . और ना ही आसांन हो पाता है प्रत्यक्ष मार्ग- दर्शन ले पाना . तब तो एक मात्र साधना ही वो उपाय रह जाती है जिसके द्वारा हम अपनी प्रज्ञा को सदगुरु की शक्ति से जोड़ते हैं और प्राप्त करते हैं उस क्षमता को जिसके द्वारा वस्तुतः हम सदगुरु के उस मौन को भी समझ पाते हैं जो की अबूझ पहेली बनकर हमारे सामने वर्षों से खड़ा है. मेरे भाइयों उस मौन को सच मे आज समझने की ज़रूरत है क्यूंकी ना जाने हमारे द्वारा दिए गये कितने विषाद का जहर सदगुरु को चुपचाप पीना पड़ता है . उस मौन को समझने वाली भाषा का अभाव ही हमे अबोध बनाकर रखे हुए है . (भले ही हम अपने आपको गुरु के सामने अबोध मानते रहें) क्या इस अबोधता की आड़ मे हम हमारी अकर्मण्यता , आलस्य, और सब कुछ गुरु के उपर ही डाल देने की आदत के शिकार नही हैं ... सोचिए?... .....
सदगुरु ने हमेशा से हमे चेतना देने का ही कार्य किया है ..अब यह अलग बात है की हम ही आँख मूंद कर बैठे रहे...
यदि उस दिव्या चेतना को प्राप्त करना है. सदगुरुदेव के ज्ञान को आत्मसात करना है तो किसी अन्य मंत्र की तुलना मे SADGURUDEV KE CHARNON और गुरु मंत्र का ही संबल लेना कही श्रेष्ट और प्रामाणिक उपाय है..
प्रस्तुत गुरु पादांबुज कल्प उसी दिव्य चेतना को पाने और उसके माध्यम से स्वयं चैतन्य बनने की ही साधना है . और इसका प्रभाव तो तभी आप समझ सकते हैं जब आप इस साधना को करेंगे. इस साधना के प्रभाव स्वरूप इस ब्रह्मांड के ग़ूढ रहस्य खुद ही खुलते चले जाते हैं और आप भी शिष्यतव के सद्गुणो से युक्त होते चले जाते हो... ....

किसी भी गुरूवार से इस साधना को किया जाता है . यदि गुरु पुष्य हो तो श्रेष्ठ है अन्यथा महेंद्र काल मे इस साधना का प्रारंभ करे . शुद्ध व श्वेत वस्त्र पहनकर सफेद आसन पर उत्तर की ओर मूह करके बैठे .
सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर पुष्प रख कर उस पर गुरु पादूका स्थापित करें . पंचोपचार पूजन करें . घृत का दीपक जलाएँ और स्फटिक माला से 51 माला जप करें. यही क्रम 10 दिनों तक रहेगा. मंत्र जप के बाद गुरु आरती करें.

मंत्र:
ॐ परम तत्वाय आत्म चैतन्यै नारायणाय गुरुभ्यो नमः

इस साधना को करके ही आप समझ पाएँगे की कैसे जीवन बदल जाता है ,और सफलता कैसे आपका वरण करने को आतुर होती है . जैसे ही हमारी चेतना गुरु चेतना से जुड़ती है .
तो आइए और सौभाग्य को जीवन मे प्रवेश दीजिए..... ....

Vidha yakshani - Ved matri sadhna

विद्दा यक्षनी------ वेद मात्री साधना ---
यक्षनी साधना के अंतर्गत यह साधना विद्दा प्राप्ति के लिए काफी महतवपूर्ण है !इस से साधक को कई गुप्त विद्दायो का ज्ञान याक्षणी पर्दान कर देती है जिसे वोह कई विद्दायो में परांगत हो जाता है !और इस के साथ ही उसकी दरिद्रता का नाश भी हो जाता है !आलस्य दूर हो कर वोह एक अशे साधक की श्रेणी में आ जाता है !उस के लिए साधना मार्ग सुलभ हो जाता है !और याक्षणी कई साधनायो में सहायता प्रदान स्व कर देती है !इसे किसी भी पूर्णमा जा पंचमी तिथि से शुरू करे !इसकी साधना सरल है !
विधि ---सुध सफ़ेद वस्त्र पहन कर आसन पे पूर्व मुख बैठे !गुरु पूजन और श्री गणेश पूजन कर गुरु जी से साधना में सफलता की प्रार्थना करे और साधना करने की आज्ञा प्राप्त करे !
फिर दिशा सोधन के लिए जल लेकर ॐ श्रीं ॐ पड़ कर चारो दिशायो में छिरक दे !और पूजा शुरू करे एक तेल का दिया जला ले और एक वेदी सी बना ले आटे हल्दी और कुंकुम को मिला के! उस में एक शोटी सी मिटी की मूर्ति बना के उसे उसे हल्दी कुंकुम और चन्दन से रंग दे मूर्ति औरत की बनाये उसी को उस वेदी में स्थापित करे और एक जल का कलश सथाप्न करे उस पे नारियल रखे वेदी में पाँच लडू कुंकुम सफ़ेद फूल लोंग इलाची पान सुपारी एक पीपल के पते पे रखदे और उस मूर्ति की पूजा करे तेल का दिया जला दे और सुगंध के लिए अगरवती लगा दे पूजन के पहचात जप शुरू करे !इस साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करे और साधना समाप्ति पे २५ माला मन्त्र से हवन करे पाँच मेवा और घी मिला के तो वेद मात्री याक्षणी पर्सन हो कर वरदान देती है और उसे कई परकार की विधायो में परांगत बना देती है !यह मन्त्र रिद्धी सिधी देने वाला है !प्राप्त किसी भी विद्दा का दुरूपयोग ना करे और ध्यान में पवित्रता रखे !
साधना काल---इसका जाप रात्रि १० वजे से शुरू करे !
२ दिन सोमवार जा पंचमी तिथि जा पूर्णमा को शुरू करे !
३ दिशा उतर जा पूर्व को मुख कर के बैठे !
४ भोग के लिए लडू पास रख सकते हैं !
५ वस्त्र सफ़ेद आसन कोई भी सफ़ेद रंग का ले सकते है !
यह वेद ज्ञान प्रदान करने वाली साधना है इसे पवित्रता से करे !

मन्त्र ----- ॐ ह्रीं वेद मात्री सवाहा !
इस मन्त्र का ११ माला जप करना है एक महीने तक ३१ दिन कर सकते है !

Ayurved ke proyog1

आयुर्वेद के अद्भुत प्रयोग

यहाँ मैं ऐसे प्रयोग दे रहा हूँ जो मुझे सदगुरुदेव से प्राप्त किये हैं और मैंने जब भी आजमाए हर बार शत प्रतिशत सफल रहे हैं. अतः इन आयुर्वेदिक प्रयोगों को आजमाकर इनका लाभ उठाये और हमारे प्रयत्न को सार्थक करें .
१. सत्यानाशी या हेम्दुग्धा के दूध में रुई को बार बार भिगोये और छाया में ही सुखायें , ये सम्पूर्ण क्रिया १६ बार करें फिर इसको घृत दीपक में बत्ती बनाकर जलाये और काजल बना लें. इस काजल को सुरक्षित रखें , रात्रि में सोते समय इस काजल को आँखों में लगाने और इसके साथ चाक्षुष्मती स्तोत्र का ११ पाठ नित्य करने पर एक मास में ही आँखों से चश्मा उतर जाता है ,नेत्र ज्योति तीव्र हो जाती है .
२. हल्दी, आंवले का रस और शहद मिलकर दिन में तीन बार लेने से सभी प्रकार के प्रमेह और श्वेत प्रदर नष्ट हो जाते हैं.
३. हल्दी, नमक और सरसों तेल मिलाकर रोज मंजन करने से पुरे जीवन में कभी भी दांतों के रोग नहीं होते.
४. पलाश का एक बीज लेकर दरदरे पसे तिल और शक्कर समभाग मिला कर खाने से अपूर्व बल प्राप्त होता है और दुबलापन निश्चित ही दूर होकर मजबूत और हष्ट पुष्ट शरीर की प्राप्ति होती है .
hemdugdha is also an another plant of the same species, with bit wider trunk and longer leaf, smaller height with yellow/violate flowers. most of the properties are same; in majority those could be brought into use for substitute of each other.

सत्यानाशी/स्वर्णक्षीरी/हेम्दुग्धा (satyanaashi/swarnakshiri/hemdadugdha)
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SadGuru Aur Parad Vigyan

सदगुरुदेव और पारद विज्ञान
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भारतीय शास्त्रों में पारद की दूसरी संज्ञा " रस" भी कही गयी है और इस अर्थ की विवेचना करते हुए कहा गया है:
"जो समस्त धातुओं को अपने में समाहित कर लेता है तथा बुढापा रोग व मृत्यु की समाप्ति के लिए रस पूर्वक ग्रहण किया जाता है वो "रस है"
इश्वर के लिए भी कहा गया है की " रसो वै सः "
वस्तुतः प्राचीन काल से ही ऋषियों के प्रयास से ही पारद का प्रयोग केवल, लोह सिद्धि और औषधियों के लिए ही नही अपितु कायाकल्प, विशिष्ट विद्याओं की प्राप्ति और सहज समाधि अवस्था को प्राप्त करने के लिए भी किया गया है.
यहाँ तक कहा गया है की बिना रस सिद्ध हुए व्यक्ति कैसे मुक्ति प्राप्त कर सकता है.
भारतीय रसायन सिद्धों ने स्वर्ण निर्माण के अलावा साधना जगत में पारद का प्रयोग कर वायु गमन सिद्धि, शून्य सिद्धि, अदृश्य सिद्धि, देह लुप्त क्रिया भी सिद्ध की.
और इन्ही रस सिद्धों के कारण भारतीय रसायन विद्या सुदूर देशों में पहुची.जिसे कीमियागिरी का नाम दिया गया.
पारद की महत्ता इतनी अधिक व्यापक रही की लगभग सभी सम्प्रदाय के साधकों ने इसका अपने अपने तरीके से प्रयोग कर सम्प्रदायों को समृद्ध व शक्ति सम्पन्न बनाया.
यद्यपि इन सभी की मूल रुचि तो स्वर्ण निर्माण में थी , किंतु इन्ह्ने यह भी अनुभव किया की कुछ विशेष क्रियाओं के द्वारा यदि पारद का भक्षण कर लिया जाए शरीर का कायाकल्प हो जाता है.
और यह क्रिया तभी हो पाती है जब की पारद के अन्दर के विष को ८ संस्कारों के द्वारा निकाल कर उसे अमृत में बदल दिया जाता है . तथा ऐसा पारद यदि विशेष विधियों के द्वारा किसी कुशल रस ज्ञाता की देख रेख में यदि उचित मात्र में ग्रहण किया जाए तो सारे शरीर का कायाकल्प हो जाता है, और यह क्रिया इतनी तीव्र होती है की जिसमे वर्षो या महीनो नही बल्कि कुछ हफ्तों का ही समय पर्याप्त होता है.
सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी का योगदान पारद जगत में कोई नही भूल सकता . विभिन्न शिविरों,ग्रंथो में उन्होंने पारद के ऐसे ऐसे सूत्र प्रकट किए हैं जिन्हें सुनकर और क्रिया रूप में करके आदमी दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो ही जाता है. पारद के १०८ संस्कारों से समाज का परिचय सबसे पहले उन्होंने ही करवाया . वे १०८ संस्कार जिनके विषय में लोगो ने कभी सुना भी नही , सदगुरुदेव ने इन संस्कारों को प्रत्यक्ष करके भी दिखाया.
" स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ने हस्ते हुए कहा 'इतना ही क्यूँ ! अनंत शक्ति संपन इस पारद से , हम जो चाहे कर सकते हैं – हवा में उड़ सकते हैं, अदृश्य हो सकते हैं , सोने का ढेर लगा सकते हैं, अक्षय यौवन का वरदान प्राप्त कर सकते हैं, यौगिक शक्ति प्राप्त करके परकाया प्रवेश कर सकते हैं".
"मेरी बात सुनकर स्वामी जी गंभीर हो गए , कुछ सोचते रहे , फिर बोले की पारद को बुभुक्षित करने जो तांत्रिक क्रिया है , उससे तो इतना सोना बन सकता है की –सोने की लंका ही बन जाए.

'रावण शिव भक्त था . शिव का ही तत्व पारद है रावण ने मंत्रो के द्वारा पारद को बुभुक्षित कर पारस बनाकर स्वर्ण की लंका बनाई थी.'

निखिलेश्वरानंद जी ने बताया की 'शुद्ध किया हुआ पारद शरीर में दिव्य क्रियाओं से यदि प्रवेश करा दिया जाए तो हिमालय की बर्फीली चोटियों पर तुम नंगे शरीर घूम सकते हो, ठण्ड का कोई प्रभाव तुम पर नही पड़ेगा.उन्होंने वैसा करके मुझे दिखाया भी . उन्होंने पारद की गुटिका मुझे देकर कहा ,' इसे मुख में रख कर चाहे जितनी दूर की यात्रा करो ,थकान नही होगी, कोई छूत की बिमारी नही होगी, भूख प्यास नही लगेगी, यदि इसे गले में धारण करके परकाया प्रवेश किया जाए तो शरीर की दीर्घकाल तक रक्षा करती है, यदि कोई इसे निगल ले और कालांतर में उसकी मृत्यु हो जाए तो शव में लंबे समय तक कोई परिवर्तन नही होगा.

( उड़ते हुए संन्यासी से साभार)

चाहे सिद्ध सूत बनाना का तरीका हो या फिर पारद के गोपनीय सूत्रों का शिष्यों को ज्ञान कराना. कभी भी सदगुरुदेव ने कोई कमी नही की. उन्होंने सिद्ध सूत बनाने का सरलतम विधान भी बताया.
चाहे वो श्वित्र कुष्ठ से निदान हो या कुरूपता का सुन्दरता में परिवर्तन .
चंद्रोदय जल बनाने का विधान भी उन्होंने शिष्यों के सामने १९८९ में बताया .जिसके द्वारा पारद बंधन की क्रिया अत्यन्त सरलता से हो जाती है और यह जब सम्पूर्ण रोगों से देह को मुक्त रखता है.
पारद द्वारा गौरान्गना का निर्माण जिसके उपयोग से एक दिन में ही गोरापन प्राप्त किया जा सकता है. जबकि बाजार में उपलब्ध बड़े से बड़े उत्पाद भी ऐसा नही कर पाए हैं.
पूज्य गुरुदेव की कृपा से वाराणसी क एक साधक ने तेलिया कांड द्वरा पारद को सुद्ध स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया था.
उन्होंने बताया की पारद ६ प्रकार से फलदायक है – दर्शन, स्पर्श,भक्षण,स्मरण,पूजन एवं दान . पारद को इतना पवित्र माना गया है की इसकी निंदा करने वाला भी परम पापी मन गया है.
अष्ट संस्कारित पारद की गुटिका या मुद्रिका का निर्माण कर धारण करने से शरीर वज्र तुल्य हो जाता है, यह गुटिका साधक को मानसिक या शारीरिक व्याधियों से भी मुक्त रखती हैं. और सम्मोहन की आभा देती है .यो भी पारद का सम्मोहन और वशीकरण की क्रियाओं में एक प्रमुख स्थान है और अत्यन्त उच्च कोटि की वशीकरण साधनाये पारद गुटिका को वशीकरण गुटिका के रूप में परिवर्तित कर के ही की जाती है .

रस सिद्ध साधक ८ संस्कारों से युक्त पारद देने में अत्यन्त हिचकिचाहट का अनुभव करते हैं . पर सदगुरुदेव ने इन संस्कारों से युक्त पारद की गुतिकाए और मुद्रिकाए उपलब्ध करवाईं.

इसके अतिरिक्त पारद के विग्रह बनाने का विधान और उनसे कैसे लाभ पाया जा सकता है कौन कौन सी क्रियायें करना चाहिए , यह सबन भी साधको को समझाया.

उन्होंने बताया की पारद के विग्रहो की इतनी महत्ता क्यूँ है, क्यूंकि धन मानव जीवन का अनिवार्य अंग है उसके बिना जीवन सुचारू रूप से नही चल सकता . और एक मात्र पारद ही वो धातु है अक्षय है . तथा अपनी चंचलता में लक्ष्मी की चंचलता को समाहित किए हुए है . इस लिए उसको बंधन करते ही स्वतः ही लक्ष्मी का बंधन होने लगता है और एनी धातुओ की भाति इसकी शक्ति समय के साथ कमजोर नही होती जैसे की अन्य यंत्रो की जो ताम्बे आदि से बने हो उनकी चैतन्यता कुछ वर्षो तक ही रह पाती है पर पारद आजीवन प्रभाव शाली रहता है.

पारद शिवलिंग का स्थापन वास्तु दोष दूर करता है और उसकी निर्माण विधि पर पहले भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है. इनका स्थापन कर यदि नित्य जल चढाते हुए 'ॐ नमः शिवाय' का ११ बार जप कर वह जल थोड़ा पी लें तो कुछ ही दिनों में अपूर्व यौवन की प्राप्ति होती है. तथा ऐसे पारद शिवलिंग पर विशेष मन्त्र से सोमवार को कुबेर साधना करने से अक्षय सम्पत्ति की प्राप्ति होती है. त्राटक करते हुए यदि पारदेश्वर पर यदि पूर्व जन्म दर्शन साधना की जाए तो निश्चय ही ऐसा सम्भव होता है.वायु गमन और शून्य आसन की सिद्धि का तो पारद शिवलिंग आधार ही है .
पारद लक्ष्मी के विषय में भी बहुत कुछ बताया जा चुका है, यदि पारद लक्ष्मी का पूजन करके सौन्दर्य लक्ष्मी मन्त्र का जप किया जाए तो अपूर्व सुन्दरता प्राप्त होती है.
पारद श्रीयंत्र का निर्माण कर यदि भूगर्भीय मंत्रो से उसे सिद्ध कर के भवन बनाते समय यदि भूमि में दबा दिया जाए तो भवन सदैव लक्ष्मी के विविध रूपों से भरा रहता है.
शायद आप लोगो को याद होगा की आज से १२-१५ साल पहले बेरोजगारी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या थी पर सद्ग्रुदेव द्वारा जबसे राष्ट्रपति भवन में पारदेश्वर की स्थापना करने के बाद आज हमारा देश कैसा प्रगति कर रहा है आप सभी देख सकते हैं, वैश्विक मंडी के इस दौर में बड़े बड़े विकसित देश कंगाली के कगार पर पहुच गए पर . हमारा देश आज भी सीना ताने खड़ा है .

पारद दुर्गा और पारद काली जैसे जटिल विग्रहों का निर्माण तभी सम्भव हो पाता है जब ललिता सहस्त्रनाम और नवार्ण मन्त्र का जप करते हुए इन्हे बनाया जाए बाद में कैसे उन्हें अभिसिक्त किया जाए यह विधान भी उन्होंने समझाया. ऐसे चैतन्य विग्रह के सामने 'दुर्गा द्वात्रिन्स्न्नाम माला' का पाठ करने पर कैसी भी व्याधि हो उससे आजीवन मुक्ति मिलती ही है.

पारद गणपति, तथा पारद अन्नपूर्णा के निर्माण की गोपनीय विधियां भी सदगुरुदेव ने शिविरों में बतायी जिससे साधक को समस्त सुखों की प्राप्ति होती ही है. और भी बहुत कुछ गुरूजी ने प्रदान किया शिष्यों को.
क्या क्या बताऊ …॥ इतना कुछ है मेरे सदगुरुदेव के बार में बोलने के लिए की शब्द मौन हो जाते हैं। आज हम जिस परम्परा से जुड़े हुए हैं , उस पर गर्व करने से बड़ा सुख और आनंद कुछ नही है. बस हमें इस परम्परा को आगे बढ़ाना है. यही संकल्प हम लें , यही हम सदगुरुदेव से प्रार्थना करे.

Maa Durga tantrot

ॐ क्लीं’ ऋषिरुवाच ।। १।।

पुरा शुम्भनिशुम्भाभ्यामसुराभ्यां शचीपतेः ।
त्रैलोक्यं यज्ञभागाश्च हृता मदबलाश्रयात् ।। २।।

तावेव सूर्यतां तद्वदधिकारं तथैन्दवम् ।
कौबेरमथ याम्यं च चक्राते वरुणस्य च ।। ३।।

तावेव पवनर्द्धिं च चक्रतुर्वह्निकर्म च ।
ततो देवा विनिर्धूता भ्रष्टराज्याः पराजिताः ।। ४।।

हृताधिकारास्त्रिदशास्ताभ्यां सर्वे निराकृताः ।
महासुराभ्यां तां देवीं संस्मरन्त्यपराजिताम् ।। ५।।

तयास्माकं वरो दत्तो यथाऽऽपत्सु स्मृताखिलाः ।
भवतां नाशयिष्यामि तत्क्षणात्परमापदः ।। ६।।

इति कृत्वा मतिं देवा हिमवन्तं नगेश्वरम् ।
जग्मुस्तत्र ततो देवीं विष्णुमायां प्रतुष्टुवुः ।। ७।।

देवा ऊचुः ।। ८।।

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।। ९।।

रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ।। १०।।

कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नमः ।
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ।। ११।।

दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ।। १२।।

अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।
नमो जगत्प्रतिष्टायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ।। १३।।

या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || १४-१६||

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || १७-१९||

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || २०-२२||

या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || २३-२५||

या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || २६-२८||

या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || २९-३१||

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ३२-३४||

या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ३५-३७||

या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ३८-४०||

या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ४१-४३||

या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ४४-४६||

या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ४७-४९||

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ५०-५२||

या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ५३-५५||

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ५६-५८||

या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ५९-६१||

या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ६२-६४||

या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ६५-६७||

या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ६८-७०||

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ७१-७३||

या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ७४-७६||

इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या |
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः || ७७||

चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्व्याप्य स्थिता जगत् |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || ७८-८०||

Tuesday, September 27, 2011

Yakshini Sadhna

Yakshini Sadhna
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सौंदर्य क्या है ?????? उत्तर कठिन है……. क्यूंकी ये तो हम पर ही निर्भर करता है की हमारे लिए सौंदर्य का अर्थ क्या है या सुंदरता की बात होते ही हमारा चिंतन किस तरफ जाता है . सामान्य व्यक्ति से प्रथक एक साधक के विचार से सुंदरता का अर्थ ही पूर्णता होता है, तभी तो कहा गया है की…..
सत्यम शिवम सुंदरम.
अर्थात सत्य ही शिव है( जीवन की विषम परिस्थितियों के गरल को पीकर भी परम शांति का अनुभव करता है) और ऐसा अनुभव जो की आपका जीवन ही बन जाता है ,वो सौंदर्य से परिपूर्ण हो ही जाता है .
यहा सौंदर्य का अर्थ विचारोंत्तेजक वा तथाकथित कामुकता तो कदापि नही हो सकता ना.सद्गुरुदेव हमेशा कहते थे की यौवन की पुनर्स्थापना के लिए और जीवन को आनंद से भरने के लिए सौंदर्य की साधना साधक को करनी ही चाहिए.और सौंदर्य की जब भी बात चलती है तो परिभाषित करने के लिए नारी को उपमेय रूप मे लेना ही पड़ेगा, विधाता की बनाई हुई पूर्ण उर्जा से स्पंदित वो कृति भला किसका मन अपनी और आकर्षित नही करती है. और पूर्ण सौंदर्य को बताने के लिए यक्षिणी या अप्सरा से भला बेहतर क्या हो सकता है.
हममे से बहुत से साधक होंगे ही जिन्होने पत्रिका मे या किताबों मे पढ़कर यक्षिणी या अप्सरा साधना की होगी, पर असफल साधकों की संख्या सफल साधकों से कही ज़्यादा और बहुत ज़्यादा ही होगी…… कहिए क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?????
क्या जो विधि दी गयी है वो ग़लत है , नही ऐसा नही है , वास्तविकता इससे कही भिन्न है क्यूंकी विधि ग़लत नही होती बल्कि जो भाव-भूमि हमारी इस साधना के लिए होनी चाहिए, हम उस भाव को ही आत्म-सात ही नही कर पाते. क्या आपने कभी ध्यान दिया है की एक क्रिया या साधना को बताने के लिए उसके बारे मे इतना ज़्यादा विस्तार से पत्रिका मे क्यूँ लिखा जाता है???? सिर्फ़ इसलिए की मानसिक वा आत्मिक रूप से भी आप अपने आपको तत्पर कर सके उस साधना को करने के लिए और उस महत्व को समझ सके (जिस महत्व की तरफ वो साधना रहस्य इंगित करता है).
मैं ये बात इतने अधिकार से इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकी मैने स्वयं होलिका यक्षिणी जैसी साधना मे पहली बार मे ही सफलता प्राप्त की थी ,और मेरा परिवार तथा मित्र इस बात के साक्ष्ीभूत रहे हैं .तीन वर्षों तक मैने उस सफलता का उपभोग भी किया , ये बात मैं आत्म-प्रवंचना के लिए नही कह रहा हूँ , बल्कि अपने अनुभव को अपने भाइयों के मध्य रखना अपना दायित्व समझता हूँ . मुझसे कई करोड गुना बेहतर मेरे कई गुरु भाई हैं, जिन्हे सफलता मिली पर वो ना जाने क्यूँ उन अनुभूतियों को विस्तारित करने मे हिचकते हैं(शायद उनके अनुसार उनकी मेहनत उनके खुद के प्रयोग के लिए है).
खैर अपना अपना दृष्टिकोण है …… शिवरात्रि से होली तक का समय इन साधनाओं के लिए कही ज़्यादा अनुकूल रहता है .गुरु धाम , कामरूप कामाख्या, किसी नदी का किनारा,हृषिकेश, मनाली, कुल्लू, पचमढ़ी और अन्य पर्वतीय लेकिन शांत स्थान इसके लिए ज़्यादा उचित हैं. क्यूंकी प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता इन वर्गों को अति शीघ्र आकर्षित कर लेती हैं और अनुभूतियों की तीव्रता भी इन स्थानो पर कही अधिक होती है.
शिव , कुबेर , भैरव की साधनाएँ इन क्रियाँ मे सहायक होती हैं. और एक बात आवश्या समझ लेनी चाहिए की उच्च स्तरिय तन्त्र साधनाओं मे प्रवेश पाने के लिए , उनमे सफलता के लिए ये साधनाएँ अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. अब प्रश्न है की ऐसा क्यूँ?????
तो मेरे आत्मियों षट्कर्मों से उपर साधनाओं का एक ऐसा संसार भी है जहा असंभव कुछ भी नही ,पर वहाँ पहुचने के लिए एक साधक को तन्त्र के पाँच पीठों को पार करना पड़ता है.
अरण्य पीठ
शून्य पीठ
शमशान पीठ
शव पीठ
श्यामा पीठ
इन पीठों की साधना के बाद ही आप उच्च स्तरिया साधंाओं मे प्रवेश पाने के अधिकारी होते हो. अब आप पूछेंगे की यक्षिणी, अप्सरा, योगिनी साधनाओं का क्या महत्व है इसमे?? तो मैं आपको बता दूं की जीवन के चार पुरुषार्थों …
धर्म, अर्थ , काम ,मोक्ष मे से मोक्ष के रहस्य का पाने का अधिकारी वही हो सकता है जिसने उसके पहले के तीनों पुरुषार्थों का भली प्रकार से उपार्जन वा पालन किया हो. मोक्ष भी तभी मिलता है जब आप काम भाव के सत्य को अपने जीवन मे व्यवस्थित रूप से उतार लेते हो. श्यामा पीठ के पहले के चार पीठ 8 पाशों मे से अन्य 7 पाशों से भले ही आपको मुक्त कर दे , जैसे की भय, जुगुपसा, मोह ,घृणा आदि को . पर काम भाव रूपी पाश तथा अन्य पाश के बंधन से तभी मुक्त हो सकते हैं जब श्यामा पीठ की साधना सफलता से कर ली जाए. क्यूंकी एकांत मे स्त्री साहचर्या भय, मोह , लज्जा और वासना का सृजन करता ही है. और हम सभी जानते हैं की काम भाव को प्रेम या स्नेह मे परिवर्तित कर हम वासना के दलदल से ना सिर्फ़ निकल जाते हैं बल्कि कमल की तरह जीवन की अन्य विसंगतियों से भी निरलप्त हो जाते हैं.
और ये सौंदर्य भाव की साधना आपकी वही अग्नि परीक्षा होती है, जिनके साधना काल मे साधक के भीतर के काम भाव का मंथन होता ही है और मंथन के फल स्वरूप वासना या उत्तेजना का विष निकलता है , अब यदि साधक वहाँ रुक गया तो वो कभी सफल नही हो पाता ,पर यदि वो उसके आयेज निकल गया तो ब्रह्मांड का अद्भुत सौंदर्य ना सिर्फ़ उसके जीवन मे समा जाता है बल्कि दिव्य साधनाओं का मार्ग भी उसके लिए खुल जाता है. और ये तभी होता है जब हम पूर्णा वीर भाव से इस वाम मार्ग की साधना करें. वाम मार्ग का मतलब तन्त्र मे शक्ति प्राप्ति का आनंद प्राप्ति का मार्ग है ना की विपरीत व्यवहार करने का मार्ग, और वीर भाव का मतलब अकड़ना या आँखे फाड़ना नही है बल्कि जो भी होगा, बगैर विचलित, भयभीत हुए बिना मात्र दृष्टा बन कर उन चुनौतियों का सामने दृढ़ भाव से सिंहवत खड़े होकर सफलता पा लेना ही वीर भाव है. सौंदर्य की इन अदभूत साधना मे आप अन्य चारों पीठों को लाँघ कर सीधे श्यामा साधना को ही सम्पन कर लेते हैं.
प्रत्येक साधना मे प्रत्यक्षीकरण हेतु एक अलग ही क्रिया होती है. किसी साधना का लाभ उठना और उस शक्ति को प्रातायक्ष ही कर लेना दो अलग अलग बात हैं. इस लिए प्रत्यक्षीकरण की चुनौती को स्वीकारने के लिए प्रत्यक्षीकरण यंत्र या गुटिका तथा उसे संबंधित मंत्र का ज्ञान ज़रूरी है.
इसी प्रकार प्रत्येक अप्सरा और यक्षिणी का कीलन विधान भी होता है .जिसमे उनके यंत्र को बीजाक्षरों के द्वारा कीलित किया जाता है जिससे वे आपको सफलता दें एके लिए बाध्य ही हो जाती हैं. आप भी इन सूत्रों को अपनाएँ और सौंदर्य युक्त जीवन का आनंद ले तथा साधक जीवन को सफल करें यही मेरी सद्गुरुदेव से प्रार्थना है.