कभी भी यह नहीं सोचा की वह यह बात तो सीधे हमको ही लक्ष्य करके बोल रहे हैं , भला और किसी को बोलना होता तो आप से और हमसे बार बार क्यों कहते ..
पर हम भी ऐसे हैं की हम भगत सिंह और विवेकानन्द की प्रशंशा में कितना न कहते हैं और कहते हैं कि इन्हें आज फिर से जन्म लेना चाहिए पर हमारे घर में नहीं..........क्योंकि ऐसा कहीं हो गया तो हमारा क्या होगा कौन हमे बुढ़ापे में पानी देगा ...
पूरी पीढ़ी ही जवानी में बुढ़ापे की बात सोचती रह गयी ..
क्योंकि हम सभी बेहद होशियार तो हैं ही ,,
मुझे इतिहास की एक घटना याद आ रही हैं की , स्वामी विवेकानंद विदेश प्रवास में एक जगह अपनी वही प्राचीन ऋषियों की ओज पूर्ण वाणी में भाषण दे रहे थे तभी अचानक उनके मुख से अचानक निकल पड़ा
"अगर मुझे १०० ऐसे युवा मिल जाये जिनके मांस पेशिया फौलाद की हो और इच्छा शक्ति इतनी दृढ की पहाड़ को भी चूर चूर करदे , मैं पूरे विश्व को बदल सकता हूँ मैं आपका आवाहन कर रहा हूँ,"
पर जानते हैं हुआ क्या ....
उनके भाषण समाप्त होने के बाद एक दुबली पतली लड़की उनके सामने आई उसने स्वामी विवेकानंद जी के चरण स्पर्श किये और केबल मात्र इतना ही बोली..
"गुरुदेव एक में आपके सामने हूँ, आप शेष 99 की खोज स्वयं कर ले",
और स्वामीजी की आखे भर आई की उन्होंने कितनो से कहा …….पर कम से कम एक के ह्रदय में तो उनकी बात तो पहुंची , ….अपनी इस बच्ची को उन युग पुरुष ने जी भर कर आशीर्वाद दिया , और उसी दुबली पतली लड़की को सिस्टर र्निवेदिता के नाम से सारा संसार ने पहचाना .
(और यह हर काल में एक तेजस्वी और सक्षम सदगुरु तत्व की पीड़ा रहती रहती हैं कि कोई तो..)
तो अब क्या कहूं
बस इतना की
हम समझ ही नहीं पाए की सदगुरुदेव हमसे ही कह रहे हैं
हम तो सुनकर जोर दार ताली बजने लगते थे , की
वाह वाह क्या हैं हमारे सदगुरुदेव और एक बार जोर से बोलिये
" बोलिए
परमपूज्य गुरुदेव की जय ," "जोर से
"बोलिए परम पूज्य गुरुदेव की जय " और एक बार
"हर हर महादेव "
और हो गया
यह ही था हमारा उत्तर , और हमने indirectly कह दिया
की हम तो बस इतना ही कर सकते हैं .
सदगुरुदेव के चेहरे पर आई मुस्कराहट को अपने समर्थन में ही मान लिया...... देखा सदगुरुदेव खुश हो गए ...
वेसे उन्होंने एक तो बार कह ही दिया था की हजारो हजारो योगी मुझे हर पल प्रणाम कर ही रहे हैं एक तुम्हारा प्रणाम उसमे और जुड़ जाये तो कोई फरक नहीं पड़ता पर यदि तुम समझ सको की मैं क्या चाहता हूँ .....
काश एक बार हम सभी ने पूंछ ही लिया होता ही की क्या यह....... आप चाहते हैं हम सबसे ...
पर हम में से किसके पास टाइम........
हम सभी अपने जॉब अपनी सुख अपने दुःख में ही ..
उस समय भी ...... और आज भी तो
....
.
थोडी सी कडवी बात कह रहा हूँ, वेसे क्या आज भी हम सभी यही तो नहीं कर रहे हैं ,?,
उत्तर आप जानते हैं ही
काश
हम उनके सामने नतमस्तक हो कर एक बार हिम्मत कर खड़े तो हो जाते की अब से सदगुरुदेव मेरा जीवन हैं आपके श्रीचरणों में ,,,जो चाहे आप सो करे ....कोई व्यापार नहीं..........
तुव्दियम वस्तु सदगुरुदेव तुभ्यमेव ........
पर आज भी और अभी भी देर कहाँ हुयी हैं अगर हम समझ सके तो ......
पर हम भी ऐसे हैं की हम भगत सिंह और विवेकानन्द की प्रशंशा में कितना न कहते हैं और कहते हैं कि इन्हें आज फिर से जन्म लेना चाहिए पर हमारे घर में नहीं..........क्योंकि ऐसा कहीं हो गया तो हमारा क्या होगा कौन हमे बुढ़ापे में पानी देगा ...
पूरी पीढ़ी ही जवानी में बुढ़ापे की बात सोचती रह गयी ..
क्योंकि हम सभी बेहद होशियार तो हैं ही ,,
मुझे इतिहास की एक घटना याद आ रही हैं की , स्वामी विवेकानंद विदेश प्रवास में एक जगह अपनी वही प्राचीन ऋषियों की ओज पूर्ण वाणी में भाषण दे रहे थे तभी अचानक उनके मुख से अचानक निकल पड़ा
"अगर मुझे १०० ऐसे युवा मिल जाये जिनके मांस पेशिया फौलाद की हो और इच्छा शक्ति इतनी दृढ की पहाड़ को भी चूर चूर करदे , मैं पूरे विश्व को बदल सकता हूँ मैं आपका आवाहन कर रहा हूँ,"
पर जानते हैं हुआ क्या ....
उनके भाषण समाप्त होने के बाद एक दुबली पतली लड़की उनके सामने आई उसने स्वामी विवेकानंद जी के चरण स्पर्श किये और केबल मात्र इतना ही बोली..
"गुरुदेव एक में आपके सामने हूँ, आप शेष 99 की खोज स्वयं कर ले",
और स्वामीजी की आखे भर आई की उन्होंने कितनो से कहा …….पर कम से कम एक के ह्रदय में तो उनकी बात तो पहुंची , ….अपनी इस बच्ची को उन युग पुरुष ने जी भर कर आशीर्वाद दिया , और उसी दुबली पतली लड़की को सिस्टर र्निवेदिता के नाम से सारा संसार ने पहचाना .
(और यह हर काल में एक तेजस्वी और सक्षम सदगुरु तत्व की पीड़ा रहती रहती हैं कि कोई तो..)
तो अब क्या कहूं
बस इतना की
हम समझ ही नहीं पाए की सदगुरुदेव हमसे ही कह रहे हैं
हम तो सुनकर जोर दार ताली बजने लगते थे , की
वाह वाह क्या हैं हमारे सदगुरुदेव और एक बार जोर से बोलिये
" बोलिए
परमपूज्य गुरुदेव की जय ," "जोर से
"बोलिए परम पूज्य गुरुदेव की जय " और एक बार
"हर हर महादेव "
और हो गया
यह ही था हमारा उत्तर , और हमने indirectly कह दिया
की हम तो बस इतना ही कर सकते हैं .
सदगुरुदेव के चेहरे पर आई मुस्कराहट को अपने समर्थन में ही मान लिया...... देखा सदगुरुदेव खुश हो गए ...
वेसे उन्होंने एक तो बार कह ही दिया था की हजारो हजारो योगी मुझे हर पल प्रणाम कर ही रहे हैं एक तुम्हारा प्रणाम उसमे और जुड़ जाये तो कोई फरक नहीं पड़ता पर यदि तुम समझ सको की मैं क्या चाहता हूँ .....
काश एक बार हम सभी ने पूंछ ही लिया होता ही की क्या यह....... आप चाहते हैं हम सबसे ...
पर हम में से किसके पास टाइम........
हम सभी अपने जॉब अपनी सुख अपने दुःख में ही ..
उस समय भी ...... और आज भी तो
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थोडी सी कडवी बात कह रहा हूँ, वेसे क्या आज भी हम सभी यही तो नहीं कर रहे हैं ,?,
उत्तर आप जानते हैं ही
काश
हम उनके सामने नतमस्तक हो कर एक बार हिम्मत कर खड़े तो हो जाते की अब से सदगुरुदेव मेरा जीवन हैं आपके श्रीचरणों में ,,,जो चाहे आप सो करे ....कोई व्यापार नहीं..........
तुव्दियम वस्तु सदगुरुदेव तुभ्यमेव ........
पर आज भी और अभी भी देर कहाँ हुयी हैं अगर हम समझ सके तो ......