Wednesday, December 14, 2011

Beware of hypocrisy wool

सद्गुरुदेव ने अपने शिष्य के मार्गदर्शन के लिय सिर्फ त्रिमूर्ति गुरुदेवो को गुरुपद पर आसिन किय है | बाँकी जित्ने भी लोग निखिल नाम लेकर गुरु दीक्षा प्रदान कर्ने कि काम कर रहे है वो सब ढोंग कर रहे है, पाखण्ड कर रहे है | सावधान ऊन पाखण्डीवो से |
गुरु सेवा का मतलव लोगो को भ्रम मे डालकर निखिल नाम से गुरुदिक्षा देना नही | उनका सामर्थ है तो अपने स्वयं ना तप से, स्वयं का नाम से गुरु बने |

त्रिमूर्ति गुरुदेव पर दिव्यपात प्रदान कर सद गुरुदेव ने उन्हें गुरु पद प्रदान किय है |
जो जानकर भी गड्डे मे गिरते है, उनको तो कहना हि क्या |


Sadgurudev Nikhileshworananda's speech before placing Trimurti Gurudev (Shree Nand kishor shrimali, shree kailash chandra shrimali, shree Arbinda shrimali) as Gurudev after him...................... 

Saturday, December 3, 2011

The main door of the house affects memory??

क्या घर का मुख्य द्वार याददाश्त पर असर करता है ????

एक आर्टिकल के अनुसार जब कोई व्यक्ति अपने ज़रूरी काम को याद करते हुए घर के दरवाज़े से बाहर निकलता है तो वो वही बातें भूलता है जो वो घर के दरवाजे की दहलीज से लाँघते हुए याद करते हुए जाता है या घर के अंदर आता है....
आश्चर्य किंतु सत्य.......ऐसा इसलिए होता है क्योंकि घर के मुख्य द्वार हमारे मस्तिष्क के लिए एक सीमा निर्धारण का काम करते हैं....जो भी बातें हम घर की दहलीज को लाँघते समय याद करके प्रवेश करते हैं या बाहर जाते हैं,वो वहीं उस सीमा की परिधि में छूट जाती हैं या रह जाती हैं और हम अक्सर उन्हीं बातों को भूल जाते हैं...
गेब्रीयल रदवांस्की ने यह शोध कुछ लोगों पर करके यह पाया की जिन व्यक्तियों को उन्होने कुछ देर पहले जो काम याद रखने के लिए दिए और उन्हे एक कमरे में ही थोड़ी देर टहलने के बाद पूछा तो उन्हे सब याद था,पर जब उन्ही लोगों को दूसरे काम ठीक घर के दरवाजे पर याद कराके बाहर दूसरे कामों के साथ भेजा और कुछ घंटों के बाद सिर्फ़ याद रखने वाले कामों के बारे में पूछा तो वो काफ़ी कुछ भूल चुके थे....

ऐसा आप लोगों के साथ हुआ है क्या ????? और अगर हुआ है तो क्या आप इसका कारण जान पाए.......

घर का दक्षिण दुयार बहुत एफेक्ट करता है और नगीटिव ऊर्जा जा तांत्रिक शक्ति भी जायदा करके दक्षन दुयार से घर में परवेश करती है !अगर किसी घर का दुयार दक्ष्ण को है तो उसे कील देना चाहिए तभी उस के गलत असर से बचा जा सकता है !

character of Mahabali Charnur Singh

महाबली चरित्रं ---चर्नुर सिंह -
बहुत कम जानते है महाबली चरित्र को मैं आज आप से इस रहस्य मई कहानी को शेयर कर रहा हू !सभी महाबली को सिर्फ राजा कंस का सेनापति और एक पहलवान के नाम से जानते है !यह एक ऐसी शक्ति है जो बहुत ही पोवेर्फुल और शीघ्र फल देने वाली और बलियो में महा बली के नाम से जनि जाती है !जो इंसाफ के देवता के रूप में भी पूजा जाता है और सपूर्ण साधनायो में अगर कोई सख्त साधना है तो वोह महाबली की साधना कहलाती है !आज से काफी समय पहले एक राजा कलैश राज करता था !जिस के राज में चारो और खुशहाली थी !सभी और साधू संतो का सन्मान किया जाता था !मगर एक ही चिंता थी राजा को उस के औलाद नहीं थी !तभी वजीर ने राज ज्योतिषी और साधू संतो की सलाह लेने की सलाह दी !तो राजा संतो की शरण में गया तो उन्हों ने शिव भगती करने को कहा राजा अपना महल छोड़ घोर जंगल में जा कर शिव भगती करने लगा निहचित समय पे शिव जी ने प्रसन हो दर्शन दिए और वर मांगने को कहा तो राजा ने कहा मेरे पास आपका दिया सभ कुश है मगर मेरे औलाद नहीं तो शिव जी ने वरदान दिया तेरे जहाँ ४ पुत्रो का जनम होगा उस में जो सब से छोटा होगा महाबली होगा उसकी शक्ति के आगे कोई नहीं टिक पायेगा और शिव अंतर ध्यान हो गये !समा पा के रानी के जहाँ ४ पुत्रो ने जन्म लिया और चर्नुर सिंह बचपन से ही महाबली थे एक वार माँ ने फल की ईशा की तो वोह पूरा पेड़ ही उखाड़ लाये इस तरह बचपन से ही वोह अपनी मस्ती में रहते लेकिन दुसरे भाई उसकी शक्ति से इर्षा करते थे !और सोचते थे की यह महाबली है इस लिए पिता जी इस को राज दे देंगे इस लिए उन्हों ने एक चाल चली रस्ते में एक हाथी मार कर फेक दिया और चर्नुर को ले के सैर को चले आते वक़्त दुसरे रस्ते से आये जहाँ हाथी फेका था !बड़ा भाई हाथी पे सवार था !और हाथी रास्ता में रुक गया हाथी की वजह से रास्ता बंद था !तो सभी ने घर पहुंचने की चिंता की तो महा बलि ने अपने भाई से कहा अगर आप आज्ञा दे तो इस समयसा का मैं समाधान कर सकता हू तो उस ने कहा जल्दी करो महाबली ने एक हाथ से हाथी को उठा कर उपर को उशाल दिया जो असमान की तरफ चला गया इस पर दुसरे भईओ ने कहा तुम ने मरा हुआ पशु उठा कर गलती की है नीच काम किया है आज से हम तुमे अपने पास नहीं बिठाए गे इस परकार चर्नुर सिंह का वई काट कर दिया गया इस पर मन से दुखी हो वोह जंगल में जा कर तपस्या करने लगे इंसाफ के लिए बहुत कठिन भगती के बाद आकाश बाणी हुई तुम खुद लोगो का इंसाफ करोगे और जंगल में ही उनकी मुलाकात लुना माता से हुयी जिस ने वावा जी से शादी की पेशकश की तो वावा जी ने कहा अगर तुम मेरी भगती में विगन पैदा ना करो तो मैं तयार हू इस तरह माता लुना से शादी हो गई मगर वोह जंगल में जा के अपनी तपस्या में लीन हो जाते जो राजा कंस की हद में पड़ता था !गुप्त चरो से सुचना पा के राजा कंस ने अपनी कई शक्तिया वावा जी पे इस्तेमाल की लेकिन वेअसर रही फिर हार कर कंस ने मित्रता का प्रस्ताव रखा जिसे वाव जी ने स्वीकार कर लिया इस तरह महाबली राजा कंस के सेना पति बन गये ! जब श्री कृष्ण मथुरा आए तो महा ब्ली से मल युद्ध किया 18 दिन युद्ध चला लेकिन कोई भी हार नहीं रहा था !तभी एक दिन कृष्ण जी मटा लुना के पास गए और महा ब्ली को हराने का भेत जानने के लिए तो माता लुना ने कहा उसे कोई नहीं हरा सकता उसकी जड़े पताल में है !और चोटी आकाश में कृष्ण जी समझ गए और आकर युद्ध करने लगे और दीमक पैदा कर दी इस से महा बली ने मुर्गा पैदा कर दिया जो दीमक को खाने लगा तो कृष्ण जी ने बिली पैदा की त जो मुर्गे को मार दे पर महा ब्ली ने कुता पैदा कर दिया !फिर भी हार जीत का फैसला नहीं हो पाया तो आकाश वाणी हुई जो इस वक़्त हार स्वीकार लेगा उसे हारा नहीं समझा जाएगा महा ब्ली ने अपनी हार स्वीकार कर ली और सवाल किया के इस्तरी से भेत लेकर मेरे साथ छल किया गया है !तो भगवान ने वरदान दिया तुझे शृष्टि का 4 हिशा मौत का अधिकार दिया जाता है इस लिए के तुम ने धर्म का साथ दिया है ! महा ब्ली ने औरत जाती को श्राप दिया के आज के बाद तुम कोई भी भेत हिरदे में नहीं रखोगी महा ब्ली हिमाचल या गए और घोर जंगल में तप करने लगे !तभी राजा के घोड़ो के लिए घास लेने आए दो सनिक सेवा दर महा बली का परताप देख कर व्ही रुक गए और इस पर राजा ने उन्हे पकड़ने के लिए सैनिक भेजे पर वावा जी ने उनकी रक्षा की और सारी फोज को हरा दिया तो राजा को शरण में आना पड़ा और दोनों सैनको को वावा जी की सेवा में सोप दिया वावा जी के परथम सेवक बने और वावा जी अंतर ध्यान हो गए और कहा जो भी मेरे दरबार पे आया मैं उसका इंसाफ करुगा आज भी हिमाचल में वावा बालक नाथ जी से ठोरा आगे सुमाइला में महा बली का मंदिर है !वह हजारो लोग जाते है और इंसाफ मांगते है !व्हा कोई भी तंत्र परयोग चाहे कितना भी खतरनाक हो निष्फल हो जाता है !हर गाँव में महाबली के नाम पे थड़े बने है झन चुरी देकर लोग पशुयों और परिवार की सुख मांगते है !उनके नाम से आज भी चमत्कार होते है !मैं खुद साक्षी हु जिस का उलेख मैं समर्पण के अगले लेख में करुगा !महा माया ,काली ,भैरव नागा बली ,हस्त बली और 64 योगनि चंडी आदि शक्ति महा बली बौरा जिस का अग्नि भोजन है , मलंग और बहुत सी शक्तिया महा बली के साथ चलती है ! मदने हाथी की सवारी करते है ! 32 पशु के चरम से उनकी तडागी बनाई गई थी फिर भी गठ नहीं बद्धि थी !तो आप अंदाजा लगा सकते है कितने बली होंगे !सिर्फ महा बली की साधना से बहुत सी शक्तिया स्व सिद्ध हो जाती है !कभी मौका मिले तो एक वार महा बली मंदिर के दर्शन जरूर करना !
जय गुरुदेव !

Thursday, December 1, 2011

Knowledge of the hybridization

SANDESH HAMARE LIYE
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ज्ञान का संकरण करते रहने से ज्ञान और सिद्धि दोनों ही संकरण से संकीर्ण हो जाते हे . मेने ज्ञान का संकलन करके बूंद बूंद के रूप में आप सबको गंगोत्री बनाया था , अब समय आ गया हे की आप उफनती गंगा बन जाये . जेसे एक जला हुआ दीपक हजारो दीपक जला सकता हे उसी तरह आप ज्ञान रूपी दीपक बन के अज्ञान के अँधेरे को दूर करे. अगर में चाहता तो वो क्रम में ख़तम कर देता और साधना का प्रस्थापित करने का काम अपने शिष्यों पर नहीं छोड़ता मगर मुझे सिर्फ साधनाओ को नहीं भारतवर्ष को जीवित करना था . और भारतवर्ष जीवित होगा आप से, मेरे शिष्यों से, मेरे आत्मीयो से , क्यूंकि मुझे लुप्त हो गई गुरु-शिष्य परंपरा को भी तो प्रस्थापित करना था गुरु तरफ का कम तो मेने कर दिया हे अब शिष्य तरफी कम तो आप ही करेंगे और करना ही पड़ेगा यही मेरी गुरु दक्षिणा होगी . आप सब शिष्यता की और अग्रसर हो कर ज्ञान को आत्मसार करे. जेसे पारद स्वर्ण ग्रहण करते करते एक समय तृप्त होके वापस स्वर्ण बहा देता हे और वो इस पारस की स्थिति को प्राप्त करने के बाद कितना भी स्वर्ण बहाने पर उसमे स्वर्ण की कोई कमी नहीं आती क्यूँ की वो खुद ही स्वर्णमय बन जाता हे . आप भी ज्ञानमय बने और ज्ञान को उसी तरह बहाते रहे यही मेरा ह्रदय से आशीर्वाद हे

-पूज्य गुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंद जी


कोई मेरे पास पूरी ज़िन्दगी भर रोज़ आके कहे की मुझे रस विद्या सीखनी हे तो सायद में उसे मृत्यु के बाद उसके अगले जन्म में उसे रसज्ञान देता . फिर आपके सामने तो गंगा बह रही हे. श्री निखिलेश्वरानंद जी का वरद हस्त आपके सर पर हे तो फिर चिंता केसी. आगे बढिए और ज्ञान को आत्मसार करे.

- रसाचार्य श्री नागार्जुन

रस तंत्र ६४ तंत्र अध्ययन की अंतिम कड़ी हे. इसका अद्ययन करने से बाकि सरे तंत्र स्वयं सिद्ध हो जाते हे. आप सब भी तंत्र की उच्चतम स्थिति को प्राप्त करे एसी गुरुदेव से प्रार्थना हे .

- श्री त्रिजटा अघोरी




आप आगे बढे और सिद्धाश्रम गमन करे यही कामना के साथ आपका पथ सुभ रहे यही आशीर्वाद देता हु .

- स्वामी सुर्यानंद

six basic forcible ways / steps of sadhna

षटपुरुषार्था साधनम् (निल तंत्रम)
there are six basic forcible ways / steps of sadhna (according to nil tantra)

वाँचन - to read about sadhana

मनन - to think on sadhna (understanding stage for the sadhana and its worth/objectives)

चिँतन - being thoughtful for sadhna (realising stage of what ever had been understood)

दर्शन - to watch sadhnas happening (actually, to understand practical aspects from experienced)

सत्सँग - to discuss about sadhna ( in regards to clear the doubts)

अनुभव - to seek for experience of sadhnas (finally getting started)

आवाहन २४ मे : "सदगुरुदेव ने एक बार बताया था की अगर साधक यह प्रक्रिया बिना गुंजरण तोड़े २० मिनिट तक कर लेता है तो वह शून्य मे आसान लगा सकता है. क्यों की जो भी वायु होगी वह गुंजरण के माध्यम से मणिपुर चक्र पर केंद्रित होगी और अग्नि कुंड के कारण वह वायु के कण धीरे धीरे फैलने लगते है. इस प्रकार से वह वायु शरीर से बहार निकलने का प्रयत्न करेगी लेकिन जब शरीर के द्वार बंद रहने से यह संभव नहीं होता तो वह ऊपर दिशा मे गति करने लगती है. इस लिए जब वह ऊपर उठेगी तब अपने साथ ही साथ पुरे शरीर को भी उठा लेती है." :))

Why and what Perfection? Diary Note

( किन्ही दिनों में सदगुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंद जी ने मुझे पूर्णता पथ के बारे में अपने श्री मुख से कुछ समजाया था, उस समय मेरी डायरी में लिखे हुए उनके वे आशीर्वचनो को आप सब के मध्य रख रहा हू. )

जीवन हमेशा व्यक्ति को एक निश्चित रस्ते पर अग्रसर करता हे जिसमे वह सुख और दुःख का सामना करता हे किन्तु जीवन कभी मनुष्य के लिए समस्याओ का निर्माण नहीं करता वरन मनुष्य ही उसे जन्म देता हे. व्यक्ति कभीभी पूर्णता के पथ को नहीं समजता, वहीँ उसकी समस्याओ का निर्माण शुरू हो जाता हे, किन्ही परिस्थियों को वो सुख दुःख समस्या वगेरा नाम दे देता हे . पूर्णता और कुछ नहीं हे, पूर्णता मनुष्य के द्वारा उद्भवित सदाचारी कार्य हे, जो यथार्थ हे, जो साश्वत हे, जो ब्रम्ह से सम्पादित हे, कल खंड की उपलब्धि हे और मनुष्य के लिए ही एक विशेष प्रयोजन बद्ध हे. पूर्णता प्राप्ति के लिए तो देवताओ को भी मनुष्यरूप में अवतरित होना पड़ता हे, फिर क्यों पूर्णता के ऊपर इतना अधिक भार दिया गया? हरएक युग के हरएक ग्रन्थ चाहे वह भौतिकता से सबंधित हो चाहे आध्यातिम्कता से, पूर्णता के ऊपर ही क्यों केंद्रित हे? क्यूँ पूर्णता प्राप्ति को ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य कहा गया? आखिर पूर्णता हे क्या?
प्राप्ति से प्रथम, प्राप्ति की कमाना से प्रथम, और प्राप्ति की कमाना की योग्यता से प्रथम किसी भी क्रिया को पूर्ण रूप से आत्मसार करना ही पूर्णता हे. इसका तात्पर्य ये भी हुआ की जीवन को योग्य मार्ग से जीने के लिए पूर्णता ज़रुरी हे. यहाँ जीवन की बात हो रही हे जिसका मतलब अनंत हे, जन्म से मृत्यु नहीं. पूर्णता प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य हे लेकिन वो अंत नहीं हे वह एक शुरुआत हे. शुरुआत हे योग्य रूप से जीवन जीने की, शुरुआत हे ब्रम्ह आधिपत्य की. पूर्णता का अर्थघट्न किया जाए तो यही समज में आता हे की सब कुछ प्राप्त कर लेना. पूर्णता अनंत तथ्यों पर आधारित हे जिसमे हर एक तथ्य अपने आप में पूर्ण हे. फिर क्या हे वे तथ्य? वे तथ्य वही हे जो ब्रम्ह निर्धारित मनुष्य के द्वारा उद्भवित सदाचारी कार्य हे, जो काल खंड में निहित हे. वह चाहे किसीभी रूप में हो, उदाहरण के लिए आध्यातिमक व् भौतिक जीवन की परिस्थितियां, चाहे वह अनुकूल हो चाहे वह प्रतिकूल हो. पूर्णता का पथ वो पथ हे जहाँ पर अनुकूल व् प्रतिकूल का जुडाव होता हे. हर एक पक्ष को जानना ही पूर्णता हे, जहाँ पे कुछ शेष रहे ही नहीं. चाहे वह राम हो कृष्ण हो बुद्ध हो उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया हे, वे चाहते तो अपना जीवन आराम से बिता सकते थे लेकिन उन्हें पूर्णता का अनुभव चाहिए था और उन्होंने भौतिक एवं आध्यातिमक जीवन को समजा. सुख और दुःख को समजा. शांति और युद्ध को समजा. शून्य और समस्त को समाज. और कालखंड में निहित ब्रम्ह के द्वारा सम्पादित सदाचारी शास्वत कार्य को आत्मसार किया. और इसी लिए हम उन्हें देवता कहते हे, पूर्णता की प्राप्ति मनुष्य को देवता बनाती हे. मगर ध्यान रहे पूर्णता कोई चिड़िया नहीं जो आके बैठ जाएगी कंधे पर, जो पूर्णता प्राप्त करना चाहते हे, जिनको मनुष्य योनी मेसे दिव्य योनी देवता योनी में प्रवेश करना हे तो तैयार रहे संघर्ष के लिए, उपभोग और दर्द के लिए, सुख व् दुःख, भौतिकता और आध्यात्म के लिए. चाहे वह अनहद आनंद हो या फिर घोर पीड़ा, किन्ही परिस्थिति में विचलित होना पथभ्रष्ट होना हे क्यूंकि यह तो मात्र पूर्णता की तरफ एक कदम ही होगा...

Sulemani tantra sadhna 3 सुलेमानी तंत्र -साधना -3

सुलेमानी तंत्र ----साधना -3जहां सभी तंत्रो में तीक्ष्ण सुलेमानी तंत्र को माना गया है !क्यू के इस में सिद्धि जल्द और तीक्ष्ण होती है !ऐसा नहीं है के बाकी तंत्र प्रभावकारी नहीं क्यू के तंत्र का अर्थ ही किरिया है !जहां मंत्रो से प्रार्थना की जाती है !और तंत्र किरिया होने के कारण समस्या का निवारण करता ही है !क्यू के किरिया का अर्थ करना मतलव काम किया और हो गया !इस लिए तंत्र दीनता नहीं सिखाता मतलव समस्या के आगे झुकना नहीं !जहां एक बहुत ही प्रभाव कारी साधना दे रहा हु जो सुलेमानी साधना से स्मन्धित है !
क्या आप गुरवत से पूरी तरह घिर गए है ?
क्या कर्ज में फसते जा रहे है ?
क्या शत्रु के षड्यंत्र का वार वार शिकार हो रहे है ?
क्या रोजगार के सभी रास्ते बंद हो गए है?
तो एक वार इस साधना को करे और फिर देखे कितना चेंज आता है आप की ज़िंदगी में !यह एक बहुत ही पाक पंज तन पाक का कलाम है !इसे पूर्ण पावित्रता से करे !
जिस कमरे में आप साधना कर रहे हो उसे अशी तरह साफ करे पोचा वैगरालगा कर जा धो ले फिर शूकल पक्ष के पर्थम शूकरवार को इस साधना को शुरू करे और 21 दिन करनी है !
वस्त्र सफ़ेद पहने और सफ़ेद आसान का उपयोग करे ! दिशा पशिम और इस तरह बैठे जैसे नवाज के वक़्त बैठा जाता है ! सिर टोपी जा सफ़ेद रुमाल से ढक कर बैठे अगरवाती लगा दे और साधना के वक़्त जलती रहनी चाहिए दिये की कोई जरूरत नहीं है !फिर भी लगाना चाहे तो तेल का दिया लगा सकते है !सर्व पर्थम गुरु पूजन कर आज्ञा ले फिर एक माला गुरु मंत्र करे और निमन मंत्र की पाँच माला जप सफ़ेद हकीक माला से करे साधना के बीच बहुत अनुभव हो सकते है !मन को सथिर रखते हुए जप पूर्ण करे !जिस कमरे में साधना कर रहे हो व्हा कोई शराब पीकर न आए इस बात का विशेष ख्याल रखे !जप उल्टी माला से करे न माला हो तो एक घंटा करे !
साबर मंत्र –
बिस्मिल्ला हे रेहमान ए र्र्हीम
उदम बीबी फातमा मदद शेरे खुदा ,
चड़े मोहमंद मुस्तफा मूजी कीते जेर ,वरकत हसन हुसैन की रूह असा वल फेर !