दिव्यता के पथ पर नये साधकों और नवागन्तुकों के मन मे अनेक सवाल होते हैं। जिसका जवाब वो अक्सर अन्य साधकों से अनुरोध पुर्वक पूछते हैं और कभी-कभी तो इन्हे काफी परेशान भी होना पड़ता है। फिर कहीं जाकर साधना के पथ पर अग्रसर होने के पद चिन्ह प्रप्त हो पाते हैं या फिर कभी-कभी तो बहुत से महत्वपुर्न तथ्य अनछुए ही रह जाते हैं। इस ग्रूप मे जो भी साधक , साधिका जुड़ें उनका चिन्तन साधना की तरफ़ पूरा सही हो इसके लिये ये एक प्रयास है जिसे आप अवश्य समझें, उम्मीद है आपके कई प्रश्नों का उत्तर आपको यहाँ मिलेगा। और यह लेख खासकर उन व्यक्तियों के लिए भी है जो अभी तक साधना जगत और हमारे अलौकिक निखिल परिवार से अनजान रहे हैं। वो जो मंत्र, तंत्र, यंत्र से अभी तक बिल्कुल बेखबर रहे हैं आप उन्हें भी अपने facebook profile में इस post से कुछ share करके या फिर profile में कहीं इसे स्थान देकर उन्हें जीवन का सही अर्थ समझा सकते हैं…
मनुष्य के जीवन का मूल चिंतन क्या है, अगर आप इस बारे में सोचें.. विचार करें, तो आप ये समझ पाऐंगे की मनुष्य के जीवन का मक्सद केवल साँस लेना नहीं है। हम केवल पैदा होके भोजन करके और बडे होने के लिए और फिर एक दिन मर जाने के लिए ही इस धरती पर इस जगह हम नहीं आए हैं। क्यूंकि अगर मर ही जाना होता तो फिर हमारे पैदा होने का मतलब भी क्या रहा? फिर हमारे इस मृत्यु लोक में आने का प्रयोजन क्या है, हम क्यूँ आए हैं?
कौन बताएगा.. कोई बता सकता है हमारे शास्त्रों के हिसाब से तो केवल गुरू। और वह गुरू जिसने खुद इन रहस्यों को समझा हो। इसके लिए कोई जरूरी नहीं कि लम्बी जटाएँ रखने वाला या भगवा वस्त्र धारण किये हुआ कोई साधू भी गुरू हो, जरूरी नहीं। पूर्णता प्राप्त किए हुए गुरू इतनी आसानी से कहीं भी सडक किनारे नहीं मिलते।वह तो कई जन्मों के पुन्य के उदय होने पर, हजारों साल में एक बार कभी आते हैं। और हमें उस समय उस गुरू को पहचानने की जरूरत है। और हम पेहचान सकते हैं साधना के माध्यम से...
प्र. आज के इस आधुनिक युग मे साधना का क्या महत्व है? मैं अपने रोज के इस busy life मे इसे क्यूँ स्थान दूँ, आखिर इससे होगा क्या..?
उ. आधुनिक जीवन जीने का ये मतलब नहीं की आप अपने जीवन को संकुचित करके रखें। मनुस्य का जीवन और बहुत सारे आयामों के लिए होता जो अक्सर लोग ज्ञान के अभाव मे नहीं समझते और यही कारण रहता कि अक्सर लोगों को लगता है कि सब कुछ पाकर भी जीवन में कुछ कमी है। हम खुद अपनी पूरी life को एक छोटे से घेरे मे रख लेते हैं और मान लेते हैं की हमने हर सुख की अनुभूती कर ली और हमारा जीवन पूर्ण हो गया। हम गलती कर देते हैं। Modern science या आधुनिक विज्ञान बहुत से रहस्यों को नहीं समझ पाता है, इसे हम तंत्र और साधना के माध्यम से ही समझ सकते हैं।
प्र. मुझे तंत्र, मंत्र शब्द से डर लगता है। यह बहुत गलत चीज है?
उ. तंत्र और मंत्र जैसे शब्द से डरने की जरूरत है ही नहीं। ये कुछ गलत नहीं है... तंत्र तो भगवान भोलेनाथ का वह वरदान है जिससे हम अपने जीवन की हर समस्याओं का निराकरण कर एक सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अपने जीवन की प्रत्येक न्यून्ताओं को समाप्त कर सकते हैं और हम जीवन के सही अर्थ को समझ सकते हैं। हाँ ये है की आप इसके Power को नहीं समझ पाए। ये तो एक विज्ञान है जिससे मनुष्य के अन्दर छुपी उस विराट सत्ता को जागृत किय़ा जा सकता है। पूजा करने से शायद कोई फायदा नहीं होता हो, मगर तंत्र से निश्चित अगर हम साधना कर लेते हैं तो हम उन दिव्य शक्तियों को प्राप्त कर ही सकते हैं। इससे तो सिद्धी मिलती ही है। मैं केह रहा हूँ आपसे और पहली बार यह केह रहा हूँ की ऐसा होता है!! इससे तो दिव्य शक्तियाँ जैसे की Telepathy, Clairvoyance, अपने पूर्व जन्मों को देख पाना, पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य लोकों को देख पाना। आपने रामायण, महाभारत जैसे पुराने ग्रंथों में ये पढा ही होगा पर इसको पहले ही गलत या असत्य मान लेना..... आप उस साधना रहस्य और उन मंत्रों को नहीं जान पाए इसलिए ऐसा समझ लिया। वे रहस्य तो गुरू अपने शिष्यों को करवाते ही हैं, अगर शिष्य अपने गुरू से प्रार्थना करे तो।
प्र. गुरू क्या होते हैं और ये कहाँ मिलेंगे?
उ. गुरू उसको कहते हैं जो अपने शिष्य को पूर्णता की ओर अग्रसर करता है। उसके जीवन की हर परेशानी को दूर करता हुआ उसे ब्रह्म से साक्षात्कार करवाता है। समझाता है की ईश्वर ने उसका जन्म क्यूँ किया। गुरू अपने ज्ञान और साध्नात्मक बल से मन के अंधकार को दूर करता है। इसलिए शाष्त्रों में उल्लेख है कि.. "गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः..." गुरू से ज्यादा पवित्र शब्द कुछ नहीं है। गुरू ही होते हैं जो शिष्य के समस्त पाप को अपने ऊपर ले लेते हैं। और प्रत्येक व्यक्ति का कोई गुरू होना ही चाहिए, नहीं तो वह खोता ही रहता है। दुनिया के जितने भी Religions हुए उन सबका आधार गुरू-शिष्य सम्बन्ध ही रहा है। आप चाहे वेद पढ लें, भगवत गीता पढ लें, Holi Bible पढ ले, कुरान पढ लें, गुरू ग्रंथ साहिब पढ लें सबमें आपको "Guru-Disciple Conversation" ही मिलेगा। और यह परम्परा तो हमारे सनातन धर्म में 40 हजार साल से है। पर आज कल हम Modern हो गए, हम भूल गए।
मगर गुरूत्व मरता नहीं, ऐसे श्रेष्ठ गुरू तो आज भी होते हैं और वो हैं। हमारा अत्यन्त सौभाग्य है कि हम युग-पुरूष Dr. Narayan Dutt Shrimali के समय में हैं। जिन्होनें भारतवर्ष के उन अति दुर्लभ साधनाओं को पुनर्जीवित कर हमें अपने छत्र-छाया में रखकर हमारे कई-कई जन्मों के प्यास को शांत किया।
http://en.wikipedia.org/wiki/Narayan_Dutt_Shrimali
प्र॰ गुरुदेव से मुलाकत कहाँ होगी ? कया हमे उनसे मिलने के लिये Appointment लेनी पड़ेगी ?
उ॰ आप व्यक्तिगत रूप से गुरुदेव को अपनी समस्याओं, योजना, विचारों के बारे में बता सकते हैं। मिलने एवं गुरू दीक्षा के लिए विशिष्ट दिनांक का पत्रिका में उल्लेख है।
Address- Kailash Siddhashram,
46, Kapil Vihar,
Pitampura, New Delhi 110034, India.
Phn- 011-27351006.
Pracheen Mantra Yantra Vigyan,
1C, Panchvati Colony,
Ratanada,
Jodhpur 342001, Rajasthan, India.
Phn- 0291-2517025.
पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेव से दीक्षा लेने और अपनी कोई भी समस्या का समाधान पाने हेतु कृपया निम्न पते पर संपर्क करें :
पूज्य गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमालीजी
१४ अ, मेन रोड हाई कोर्ट कोलोनी
सेनापति भवन के पास,
जोधपुर ३४२००१
फ़ोन : ०२९१ - २६३८२०९, २६२४०८१
पूज्य गुरुदेव श्री कैलाशचंद्र श्रीमालीजी
१ - क, पंचवटी कोलोनी
एन सी सी ग्राउंड के सामने
रातानाडा,
जोधपुर ३४२०११
फ़ोन : ०२९१-२५१७०२५
पूज्य गुरुदेव श्री अरविन्द श्रीमालीजी
डॉ श्रीमाली मार्ग, हाई कोर्ट कोलोनी
जोधपुर ३४२००१
फ़ोन : ०२९१-२४३३६२३, २४३२२०९
पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेवजी से मिलने हेतु :
सिद्धाश्रम साधक परिवार
प्र. आप तंत्र और मंत्र जैसे बडे शब्द use करते हैं, आखिर ये तंत्र, मंत्र इत्यादि हैं क्या? इससे क्या प्रभाव पडता है, मैं कैसे इसे use कर सकता हूँ?
उ. मंत्र कुछ एक विशेष संस्कृत के शब्दों का समूह होता है जिसके नियमित और नि्रधारित बार उच्चारण करने से, बोलने से हम मन चाहे कार्य कर सकते हैं। तंत्र का मतलब है वह तरिका वह system जिस विधी से हम साधना करें, मंत्र जप इतयादि जो करते हैं। और एक मत्वपू्रण चिज है यंत्र जिसमे उस दैविक शक्ति का निवास होता है जिनकी हम साधना करते हैं, और जिस देवी या देवता से अपना कार्य कराना है, वह इसी यंत्र में स्थापित हैं। ये तिनों चिज की मदद से हम साधना करेंगे। और जब हम मंत्र बोलते हैं और लगातार बोलते रहते हैं तो उससे एक ध्वनि बनती है, vibration निकलता है जो हॉँथ में घूम रही माला से शरीर के विभिन्न चक्रों से होते हुए हृदय स्थल से निकलकर यंत्र की शक्ति को जागरित करती है। सारा खेल Frequency का है जो आपके उच्चारण करने से पैदा हुआ। फिर ये ध्वनि ब्रह्मांड के उस ईष्ट से contact करके आपका काम कराती है। और शास्त्रों मे कहा है कि, "मंत्रोआधिनश्च देवः" यानि आप जिस प्रकार का मंत्र बोलोगे वो देवता उस प्रकार से आपका वह कार्य करेंगे। अरे भई संस्कृत इनकी language ही तो है, तो इनसे बात करनी है तो इनही की language मे बात करोगे न.. hindi बोलने से क्या होगा।
प्र. क्या साधना काम करती है? मैं जैसा चाहूं क्या ठीक वैसा ही तंत्र साधना से संभव है?
उ. बिल्कुल संभव है, और केवल तंत्र के माध्यम से ही संभव है। और कोई दूसरा रास्ता है नहीं। कम से कम आज के युग मे तो सिद्धी पाने का यही एक superfast रास्ता है जब लम्बे समय तक पूजा-पाठ वगैरह.... और उससे कुछ होता भी है?? नहीं। आप आरती करते रहिए धूप अगरबत्ती करते रहिए पूरे साल भर, मगर उससे न आज तक हुआ है न हो सकता है। तब हमें मंत्रों का साहारा लेना चाहिए। पर किसी साधना में सफलता हासिल करने के लिए कुछ नियम भी हैं जिसका पालन करना अत्यन्त अनिवार्य है।
1.. साधना घर के किसी साफ-सुथरी और एकान्त कमरे मे करें। स्वच्छ धुले कपडे हों और जिस रंग की धोती और आसन बताया है, उसी को पहन के करें.. लाल वस्त्र कहा है तो आप पूरे लाल रंग की ही धोती पेहनेंगे।
2.. धोती/ साडी पहनकर ही साधना होती है। jeans, t-shirt नहीं चलेगा because jeans, t-shirt में stiches होते हैं।
3.. आप जहाँ बैठकर जप करें वहां अपने नीचे उसी रंग का आसन जरूर रखें, जिसपर बैठकर ही साधना सफल होती है। आसन उस मंत्र की शक्ति को जमीन में जाने से बचाता है। आसन एक bad conductor का काम करता है।
4.. मंत्र, साधना, गुरू और ईष्ट पर पूर्ण विशवास रखें। सिर्फ टेस्ट करने के लिए, आजमाने के लिए न करें। अगर भरोसा है और साधना पूरी करनी हो तभी करें, यह कोई मजाक नहीं। और जो दृड निशचय के साथ साधना पर बैठता है, केवल उसी को सफलता प्राप्त होती है।
5.. जितने दिनों तक जप करना है वह रोज ऐक ही exact, fixed समय पर हो। अगर 7 दिन जप करना है तो 7 days ऐक ही समय पे शुरू करना है। और जितनी माला करनी है रोज उतना ही जप करें, न कम न ज्यादा ही। मतलब अगर 21 माला करने को कहा है तो 21 माला ही रोज करें।
7.. हर साधना को करने का अलग-अलग ढंग हमारे ऋषियों ने बनाया है। पहले पूरी विधी समझ लें फिर उसके हिसाब से साधना करें।
8.. साधना के दिनों में non-veg food नहीं खाना है। इससे मंत्रों का पर्भाव विफल होने लगता है। प्याज और लेहसुन भी वर्जित है।
9.. ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
प्र. मंत्र जप कैसे करना है?
उ. मंत्रों का स्पष्ट और साफ उच्चारण होना चाहिए। मंत्र के हर बीज को साफ-साफ और हल्के आवाज मे बोलना चाहिए। बहोत जोर से चिल्ला कर बोलने की जरूरत भी नहीं है। बहुत जल्दी-जल्दी या बहुत धीरे भी नहीं.. medium speed होनी चाहिए। और हर बीज का सही उच्चरण करना जरूरी है। मान लीजिए अगर मंत्र है-
।। ह्रीं श्रीं ह्रीं ।।
तो इसका उच्चारण ऐसे होगा- ।। Hreeng Shreem Hreeng ।।
मंत्र जप करते हुए बीच मे किसी से बात नहीं करनी चाहिए। अकेले रूम में साधना करें। माला फेरते हुए हिल्ना डुलना नहीं चाहिए। शांत भाव से ध्यान लगाकर साध्ना करें जैसे meditation कर रहे हैं।
प्र. माला कैसे फेरनी चाहिए?
उ. माला को Right Hand के Thumb, Middle Finger और Ring finger से पकड के हर bead पे एक बार मंत्र बोलना चाहिए। माला के सुमेरू पे मंत्र नहीं बोला जाता। सुमेरू यानी जो सबसे बीच का एक अलग सा मनका होता है। माला clockwise अपने तरफ घुमाते रहना चाहिए। जब सुमेरू के पास पहुंच जाएं तो सुमेरू को पकडे बिना ही माला घुमा लें ताकी आखिरी मनका पहला हो जाए। अगर माला फेरते हुए मंत्र गलत उचचरित हो जाए तो फिर शुरू से माला करने की जरूरत नहीं, आप उसी मनके से दुबारा बोलकर आगे बढ जाएँ।
प्र. साधना में दिशा का क्या महत्व है?
उ. हर साधना को एक निर्धारित दिशा को मुख करके ही करना चाहिए। हर देवता के आने का एक particular direction होता है। देवताओं के आवागमन ज्यादातर पूर्व अथवा उत्तर से होता है।
प्र. साधना के लिए माला, धोती वगेरह कहाँ से लेनी चाहिए?
उ. साधना सामग्री गुरूधाम में ही मिल जाएगी। ये उपकरण प्राण ऊर्जा युक्त होना जरूरी है जोकी यहाँ पर शिष्यों के लिए ही available रेहती हैं।
प्र. मैं हिंदू नहीं हूं, क्या मैं भी साधना कर सकता/सकती हूँ?
उ. भगवान तो एक ही होते हैं। किसी विशेष धर्म का इसपर कब्जा नहीं हैं। "All humans are one".
प्र. मैं एक परिवार वाला हूँ और मैं कोई साधू, सन्यासी नहीं बनना चाहता। मैं कैसे साधना कर सकता हूँ?
उ. व्यक्ति मन से सन्यासी या गृहस्थ होता है। अगर कोई सन्यास लेकर भी दुनिया वालों से लोभ रखता है तो वो सन्यासी है भी नहीं, वह एक ढोंग है। साधना के लिए दुनिया छोडनी नहीं होती वह तो घर पर भी की जा सकती है। बस साधना विधी का ज्ञान होना चाहिए। गुरूदेव तो खुद भी गृहस्थ हैं।
प्र. साधना और सिद्ध पुरूष बनने के लिए तो सबकुछ छोडके जंगल में जाना पडेगा ना? हमारे ऋषि मुनी तो वहीं रहते थे।
उ. जंगल या पहाड पे चढने की जरूरत नहीं आप साधना घर पर ही कर सकते हैं, और घर पर ही अगर एक रूम है और आपको कोई disturb नहीं करता है तो ठीक है। गुरूदेव से दीक्षा लेकर हम घर पर ही गुरू के बताए अनुसार साधना कर सकते हैं।