भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ५
इस समय ज्ञान के माध्यम से, चेतना के माध्यम से फिर कोई व्यक्ति पैदा हो जो आपको वह ज्ञान दे, फिर आपको वह चेतना दे जिसके माध्यम से बम विस्फोट बंद हो सके। यह लड़ाई बंद हो सके, यह सब कुछ बंद हो सके। आप इतने लोग हैं पुरे संसार मे इस विध्वंस को इस विनाश को समाप्त कर सकते हैं। इतनी क्षमता आपमें है। इसलिए मैं कह रहा हूं कि आप कायर नहीं है, आपने अपने आप को कायर मान लिया है। आप ने आपको बुजदिल मान लिया है, आपने आपको बूढा मान लिया है। आपने अपने को न्यून मान लिया है।
जो पुरुष कर सकता है वह स्त्री भी कर सकती है, तुमने भेद कर दिया। यह भेद मुग़लों के समय में आया स्त्री बिलकुल अलग, पुरुष बिलकुल अलग। स्त्री बाहर नहीं निकले, घर से बाहर निकलते ही गड़बड़। पुरुष घर के बाहर काम करे और औरत घूंगट निकाल कर अंदर बैठी रहे। क्योंकि ज्योंही चेहरा सुन्दर होता नहीं। मुसलमान उठाकर ले जाते थे। हिन्दुओं कि लड़कियों को। मुसलमानों ने बुरका प्रथा निकाली। उन्होने घूंगट प्रथा निकली बेचारों ने। यह मुग़लों का समय था, ६०० साल पहले यह घटना घटी।
अब कब तक वे घूंघट निकाले बैठी रहेंगी, कब तक वे ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाएंगी, कब तक वे घर मे चूल्हे चौके में ही फंसी रहेगी। जो पुरुष में क्षमता है वह स्त्री में भी क्षमता है। तुम्हारी नजर में भेद है, मगर साधना के क्षेत्र मे पुरुष-स्त्री समान है, बराबर है। कोई अंतर है ही नहीं, वेद मंत्र तो वशिष्ठ कि पत्नी ने भी सीखे, ब्रह्म ज्ञान सीखा, चेतना प्राप्त कि। कात्यायनी ने सीखा, मैत्रयी ने सीखा, कम से कम सैंकड़ों ऐसी विदुषियां बनीं। वे पत्नियां थीं और स्त्रियां होते हुए भी उन्होंने उच्च कोटी का ज्ञान प्राप्त किया।
क्या वे औरतें नहीं थीं, क्या उनके पुत्र पैदा नही हुए थे।
मगर वे ताकतवान थीं, क्षमतावान थीं। और पुरुष भी क्षमतावान थे। जो क्षमतावान थे वे जिंदा रहे। देवता तो ३३ करोड़ थे वहां। फिर हमे केवल २० नाम क्यों याद हैं? ऋषियों के अट्ठारह नाम ही क्यों याद है, बाकी ऋषि कहां चले गए? और उस समय ऋषि पैदा हुए तो अब ऋषि क्यों नहीं पैदा हो रहे? संतान तो पैदा, उन्होंने भी कि हमने भी कि। दो हाथ पांव उनके थे तो हमारे भी हैं। फिर हम ऋषि क्यों नहीं पैदा कर पाए। मैं आपको ताकतवान क्यों नहीं बना पाया?
गाजियाबाद में बम विस्फोट हुआ, आपने अखबार पढा और रख दिया। मन में कुछ हलचल भी नहीं हुई, तूफान भी पैदा नहीं हुआ। कितने लोग मर गए होंगे अकारण, मगर आपके अंदर कोई आग पैदा नहीं हुई, जलन नहीं पैदा हुई क्योंकि आपने अपने आप को कायर बुजदिल समझ लिया, आपने कहा -हम क्या करें, हमारी थोडे ही डयूटी है।
कृष्ण ने गीता में यही कहा था- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मान स्रुजाम्याम।
जब जब भी धर्म कि हानि होगी, अधर्म का अर्थ है जहां जहां भी व्यक्ति अपने धर्म को भूल जाएगा, जब भारत कि हानि होने लगेगी जब भारत के टुकडे होने कि स्थिति हो जायेगी, आर्यावर्त के टुकडे होने कि स्थिति हो जायेगी, तब तक एक व्यक्ति पैदा होगा जो अपने शिष्यों को ज्ञान और चेतना देगा। उनको एहेसास कराएगा कि तुम कायर नहीं हो, बूढ़े नहीं हो, तुममे ताक़त है, क्षमता है मगर वह ज्ञान नहीं है। कृत्या जब दक्ष को विध्वंस कर सकती है, लाखों ऋषियों को उंचा उठाकर धकेल सकती है, वीर वेताल जैसे व्यक्ति को पैदा कर सकती है, जो पुरे पहाड़ के पहाड़ उठाकर दूसरी जगह रख सकती है, जिस कृत्या के माध्यम से रावण पुरी लंका को सोने कि बना सकता है। आप तो पांच रुपये चांदी के इकट्ठे नहीं कर सकते। आपके पास कागज के टुकडे तो है, एलम्यूनियम के सिक्के तो है पर चांदी के सिक्के पच्चीस, पचास या सौ मुश्किल से होंगे। क्या क्षमता, क्या ताक़त है आपमें?
जब वह सोने कि लंका बना सका तो हम क्यों नहीं कर पा रहे हममे न्यूनता क्या है?
न्यूनता यह है आपमें अकर्मण्यता आ गयी है आपमें भावना आ गयी है कि हम कुछ नहीं कर सकते। यह हमारी डयूटी हमारा काम है ही नहीं और कृष्ण कह रहे हैं जब जब भी धर्म कि हानि होने लग जाए तो यह हमारी डयूटी है कि हम ताक़त के साथ खडे हो सके और खडे हो कर बता सके कि तुम्हारा विज्ञान फेल हो रहा है और हम ज्ञान मे माध्यम से शांति पैदा कर रहे हैं। यह हमारा धर्म है, हमारा कर्तव्य है।
ऐसा अधर्म बना तो कृष्ण पैदा हुए, ऐसा अधर्म बना तब बुद्ध पैदा हुए, ऐसा अत्याचार बढ़ा तब सुकरात पैदा हुआ, इसा मसीह पैदा हुआ। सब देशों मे पैदा हुए कोई भारत वर्ष में ही पैदा नहीं हुए, सभी देशों मे महान पुरुष पैदा हुए जिन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान कि चेतना दी।
बगलामुखी तो क बहुत छोटी चीज है, धुमावती तो बहुत छोटी चीज है। दस महाविद्या तो अपने आपमें कुछ हैं ही नहीं कृत्या के सामने। कृत्या तो यह बैठे-बैठे एकदम से शत्रुओं को नष्ट कर दे, समाप्त कर दे। शत्रु में ताक़त ही नहीं रहे, हिम्मत ही नहीं रहे। पंगु बना दे। वह आज के युग कि जरूरत है।
आज के युग मे नोट की भी जरूरत है बेटों की भी जरूरत है, रोटी की भी जरूरत है, पानी की भी जरूरत है, मगर इससे पहले जरूरी है कि शत्रु समाप्त हों। जो बेचारे कुछ कर नहीं रहे वे मर रहे हैं, कहीँ सदर बाजार में उन बेचारे दुकानदारों ने कुछ किया नहीं उनकी दुकानें उडा दी गई। आप कल्पना करिये उनके परिवार वालों कि क्या हालत हुई होगी। कोई दुःख दर्द हुआ, आंखों में आंसू आए हमारे? हमारे नहीं आएंगे तो किसके आएंगे?
हमारे अंदर दर्द पैदा होना चाहिए और इस सबको मिटाना होगा। विज्ञान इसको नहीं मिटा सकता, बंदूक की गोलियों को विज्ञान नहीं मिटा सकता देख लिया हमने। और प्रत्येक के पास यह ताक़त होनी चाहिऐ, एक-एक शिष्य के पास वह ताक़त होनी चाहिऐ। दो चार शिष्य तैयार होंगे उससे नहीं हों पायेगा। एक-एक व्यक्ति, एक-एक पुरुष, एक-एक स्त्री को यह ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है। वह उस साधना को सिद्ध करे की जिसके माध्यम से वह कृत्या पैदा सके। भगवान अगर विक्रमादित्य पैदा कर सकता है फिर हम भी कर सकते हैं।
सांप जैसा एक मामूली जीव अगर कायाकल्प कर सकता है, पुरी केचुली उतारकर वापस क्षमतावान बन सकता है तो आप ऐसा क्यों नहीं कर पाते? सांप पुरे दो सौ साल जिंदा रह सकता है। पच्चीस पचास साल मे मरता नहीं। आदमी मरता है सांप नहीं मरता। जब भी बुढ़ापा आता है ऐसा दिखता है की कमजोरी आ गई तो वह केचुली को उतार कर फ़ेंक देता है। वह ज्ञान एक था जो सिर्फ उसके पास रह गया।
पहले नाग योनि थी। जैसे वानर योनि थी गंधर्व योनि थी वैसे नाग भी एक योनि थी। बाद में हमने मान लिया कि सांप ही नाग योनि है। नाग तो अपने आपमें एक जाती थी जिनके पास यह विद्या थी। वह कायाकल्प की विधि जब भी आप कहेंगे कि मैं वृद्ध हों गया हूं तो मैं आपको सीखा दूंगा। मैं तो आपको वृद्ध होने ही नही देना चाहता हूं। सफेद बालों वाला वृद्ध नहीं होता, वृद्धता तो मन कि अवस्था है। अगर सफेदी से ही बुढ़ापा आता हिमालय आपसे पहले बुढा है। उस पर सफेद ही सफेद लगा हुआ है। फिर तो वह बूढा ही बूढा बैठा है वह है ही नहीं ताकतवान। आपके सिर पर सफेदी है तो उस पर तो ज्यादा सफेदी है। मगर नहीं वह ताकत के साथ खङा हुआ है, अडिग खडा हुआ है।
भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ६
आप वृद्ध नहीं है आप जवानों से ज्यादा ताकतवान हैं क्षमतावान है। आपमें हौसला और हिम्मत है और वह चीज वापस कृत्या के माध्यम से प्राप्त हो सकती है। कृत्या को भगवान शिव ने प्रकट किया, पैदा किया और उस क्षमता के माध्यम से जितना अधर्म, जितनी दुर्नीति थी, जितना घटियापन था वह समाप्त किया, विध्वंस कर दिया और वेद मंत्र उच्चारण कर रहे थे और एक औरत जल रही थी और वे स्वाहा बोल रहे थे यह क्या चीज थी?और ऐसे समय क्रोध नहीं आए क्षमता नहीं आए, व्यक्ति जूझे नहीं तो हम मर्द क्या बने। फिर तो हम एक बहुत घटिया श्रेणी के मनुष्य हुए। और अगर गुरू शिष्य को क्षमतावान नहीं बना सके तो फिर गुरू को यहां बैठने का अधिकार नहीं है, बेकार है सब।
मैंने आपको बताया कि आज के युग के लिए क्या कोई घिसापिटा प्रवचन नहीं दिया आपको। मैं बता सकता था कि बगलामुखी क्या होती है, धूमावती क्या होती है, जगदम्बा क्या होती है। मैंने कृत्या के बारे मे बताया जिसके दस हाथों मे दस चीजें हैं और दस मे एक भी फूल नहीं है। उसके तो हाथों मे कहीँ खडग है, कहीँ चक्र है, कहीँ कृपाण है, कहीँ त्रिशूल है। अपने आपमें वह अकेली औरत ने कर दिया, इसलिये आज भी उसे पूजा जाता है। आपको भी पूजा जाएगा, यदि आपमें वह साधना होगी तो पूजा जायेगा। नहीं तो आप भी मर कर समाप्त हो जायेंगे कोई पूछेगा नहीं आपको, याद भी नहीं करेगा आपको।
इसलिये आपमें वह क्षमता आणि चाहिऐ। इनके दस हाथ हैं इसका मतलब कि, दस चीजें चलाने कि क्षमता है। अगर आप सोचते हैं कि रावण के बीस हाथ और दस सिर थे यह कपोल कल्पना है। रावण के न कोई दस सिर थे न बीस भुजाएं थी। यह एक कल्पना है, इसका अर्थ यह है कि उसके पास जितनी बीस भुजाओं मे ताक़त होती है उतनी ताक़त थी, दस सिरों मे जीतनी बुद्धि होनी चाहिए उतनी बुद्धि थे। उतनी साधनाएं थीं। उसके पास उतना ज्ञान था उसके पास चांदी के सौ पचास सिक्के नहीं पुरे शहर के शहर को सोने का बना दिया और उस समय किया जब दशरथ जैसा राजा भी कुछ कर नहीं पा रहा था। वही लडाई, वही झगड़े वही बेटों को बाहर निकाल देना वही मर जाना। और बेटा अपने पिता का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाया। वही एक स्त्री सीता को उठा कर ले जाना। चीजें तो वहीँ कि वहीँ थीं, मगर एक विद्या उनके पास थी।
और कृत्या प्रयोग, कृत्या साधना को आज तक किसी ने छुआ तक नहीं, इसलिये कि उनके पास ज्ञान नहीं था। अगर ज्ञान ही नहीं होगा तो कोई सीखेगा कहां से, कोई बताएगा कहां से? अगर मुझे उर्दू नहीं आती तो मैं उर्दू बोलूंगा कहां से। मुझे मराठी नहीं आती तो मराठी बोलूंगा कहां से।
अगर मुझे ज्ञान है कि कृत्या सिद्ध कैसे हो सकती है तो मैं आपको कात्यायनी और ये छोटी-छोटी साधनाएं क्यों दूंगा? दूंगा तो एक बहुत बड़ी साधना दूंगा कि आप बैठे-बैठे शत्रुता को समाप्त कर सके, और पुरे देश को एहसास करा सके कि एक गुरू के कोई शिष्य है। ऐसा शिष्या मैं आपको बनाना चाहता हूं।
शायद मेरी बात आपको तीखी लगे, शायद मेरी बात क्रोधमय हो गई है। मगर क्रोध नहीं करता है उससे घटिया कोई आदमी नहीं होता। सबसे मरा हुआ जीव वह होता है जिसे क्रोध आता ही नहीं। और हमारा देश बरबाद इसलिए हो गया है कि अहिंसा परमो धर्मः कोई थप्पड़ मारे तो दो चार थप्पड़ और खा लीजिए। मैं कहता हूं कि थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठे उससे पहले चालीस थप्पड़ मार दीजिए। मैं आपको यह कह रहा हूं काहे को हम थप्पड़ खाएं।
जो पहले लात मारता, है वह जीतता है, यह ध्यान रखिए। कोई लात लगा देगा तो दुसरा गिर जाएगा, दुसरी लात लगेगी तो वह उठेगा नहीं। उसे दो चार थप्पड़ और पड़ेंगे तो वह कहेगा गलती हो गई। और तुम हाथ जोडो तो तुम्हारी हार निश्चित है। गांधीजी ने कह दिया अहिंसा परमो धर्मः उस जमाने मे जरूरी होगा, यह उनकी धारणा थी, विचार था। उस जमाने मे बुद्ध ने जो कहा सत्य कहा होगा। मगर वह उस जमाने में था आज वह चीज नहीं है। उस समय बम विस्फोट नहीं हो रहे थे। उस समय गोलियां नहीं चल रही थी, ए.के ४७ राइफल उस समय नहीं थी।
और अगर आप कहते हैं कि हम क्यों करें?
तो मैं कह रहा हूं-कौन करेगा फिर अगर मैं आपको ज्ञान नहीं दे पाउंगा, आप नहीं कर पाएंगे, आप इस देश को, भारत वर्ष को आर्यावर्त को तैयार नहीं कर पाएंगे। लोग जीवित जाग्रत नहीं हो पाएंगे, और लोग इस पर आक्रमण करते रहेंगे और आप चुपचाप देखते रहेंगे तो कौन आगे आएगा, कहां से आएगा? फिर शिष्य बनने का मनुष्य बनने का क्या धर्म रह जाएगा?
यह धर्म हमारा है क्योंकि हम जीवन मे अभावग्रस्त नहीं होना चाहते, हम दरिद्री नहीं रहना चाहते, हम जीवन में तकलीफ नहीं देखना चाहते, हम दुःखी नहीं होना चाहते, हम घर में लडाई झगड़ा नहीं चाहते हम जीवन में कायर बुजदिल नहीं होना चाहते, हम बुढ़ापा नहीं चाहते।
हम यह सब नहीं चाहते मगर ऐसा तब हो पाएगा जब हम ऐसी साधना सिद्ध कर सकेंगे कि आपका विकराल रुप देख कर मौत भी आपके द्वार के बाहर खड़ी रहे, अंदर आने कि हिम्मत नही कर सके। तब वह चीज हो पाएगी। मौत आपके पास आकर बैठे जाए तो मर्द ही क्या हुए आप?
भगवान शिव ने एक उच्च कोटी कि साधना के रुप में कृत्या प्रकट कि। उस कृत्या को सिद्ध किया विक्रमादित्य ने। बीच में कर ही नहीं पाए कोई। या तो ज्ञान लुप्त हो गया, या ऋषि मुनी समाप्त हो गाए। कुछ भगवान शिव ने समाप्त कर दिया, कुछ मर गए, कुछ को ज्ञान रहा नहीं और कुछ ऐसे ऋषि हो गाए जो अपने शिष्यों को ज्ञान दे नहीं पाए। पहले मुख से देते थे ज्ञान, किताबों मे होता ही नहीं था। आज मैंने आठ किताबें तैयार कि तो आप दो, पाच किताब लेंगे कि चलो कम से कम मेरे पास यह ज्ञान कि थाली रह पाएगी।
उनके पास किताबें थी नहीं। और उस समय ऐसे गुरू भी थे जो मरते दम तक कहते रहते थे कि बिल्कुल अंत मे सिखाउंगा यह चीज। अरे महाराज सीखा दो, न जाने आप कब समाप्त हो जाओगे।
वे कहते नहीं बच्चे! अंत समय मे सिखाउंगा।
उनको लालच यह कि सेवा कौन करेगा, सीखा तो चला जाएगा। और शिष्य सोचता यह कुछ सिखाता कुछ नहीं है रोज लंगोट धुलवाता है पर कुछ देता नहीं है। अब दोनों मे आपस मे द्वंद चल रहा है। वह उसको बोल नहीं पा रहा है, और मरते समय कहता है- राम राम जपना बेटा और गर्दन टेढ़ी।
इस समय ज्ञान के माध्यम से, चेतना के माध्यम से फिर कोई व्यक्ति पैदा हो जो आपको वह ज्ञान दे, फिर आपको वह चेतना दे जिसके माध्यम से बम विस्फोट बंद हो सके। यह लड़ाई बंद हो सके, यह सब कुछ बंद हो सके। आप इतने लोग हैं पुरे संसार मे इस विध्वंस को इस विनाश को समाप्त कर सकते हैं। इतनी क्षमता आपमें है। इसलिए मैं कह रहा हूं कि आप कायर नहीं है, आपने अपने आप को कायर मान लिया है। आप ने आपको बुजदिल मान लिया है, आपने आपको बूढा मान लिया है। आपने अपने को न्यून मान लिया है।
जो पुरुष कर सकता है वह स्त्री भी कर सकती है, तुमने भेद कर दिया। यह भेद मुग़लों के समय में आया स्त्री बिलकुल अलग, पुरुष बिलकुल अलग। स्त्री बाहर नहीं निकले, घर से बाहर निकलते ही गड़बड़। पुरुष घर के बाहर काम करे और औरत घूंगट निकाल कर अंदर बैठी रहे। क्योंकि ज्योंही चेहरा सुन्दर होता नहीं। मुसलमान उठाकर ले जाते थे। हिन्दुओं कि लड़कियों को। मुसलमानों ने बुरका प्रथा निकाली। उन्होने घूंगट प्रथा निकली बेचारों ने। यह मुग़लों का समय था, ६०० साल पहले यह घटना घटी।
अब कब तक वे घूंघट निकाले बैठी रहेंगी, कब तक वे ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाएंगी, कब तक वे घर मे चूल्हे चौके में ही फंसी रहेगी। जो पुरुष में क्षमता है वह स्त्री में भी क्षमता है। तुम्हारी नजर में भेद है, मगर साधना के क्षेत्र मे पुरुष-स्त्री समान है, बराबर है। कोई अंतर है ही नहीं, वेद मंत्र तो वशिष्ठ कि पत्नी ने भी सीखे, ब्रह्म ज्ञान सीखा, चेतना प्राप्त कि। कात्यायनी ने सीखा, मैत्रयी ने सीखा, कम से कम सैंकड़ों ऐसी विदुषियां बनीं। वे पत्नियां थीं और स्त्रियां होते हुए भी उन्होंने उच्च कोटी का ज्ञान प्राप्त किया।
क्या वे औरतें नहीं थीं, क्या उनके पुत्र पैदा नही हुए थे।
मगर वे ताकतवान थीं, क्षमतावान थीं। और पुरुष भी क्षमतावान थे। जो क्षमतावान थे वे जिंदा रहे। देवता तो ३३ करोड़ थे वहां। फिर हमे केवल २० नाम क्यों याद हैं? ऋषियों के अट्ठारह नाम ही क्यों याद है, बाकी ऋषि कहां चले गए? और उस समय ऋषि पैदा हुए तो अब ऋषि क्यों नहीं पैदा हो रहे? संतान तो पैदा, उन्होंने भी कि हमने भी कि। दो हाथ पांव उनके थे तो हमारे भी हैं। फिर हम ऋषि क्यों नहीं पैदा कर पाए। मैं आपको ताकतवान क्यों नहीं बना पाया?
गाजियाबाद में बम विस्फोट हुआ, आपने अखबार पढा और रख दिया। मन में कुछ हलचल भी नहीं हुई, तूफान भी पैदा नहीं हुआ। कितने लोग मर गए होंगे अकारण, मगर आपके अंदर कोई आग पैदा नहीं हुई, जलन नहीं पैदा हुई क्योंकि आपने अपने आप को कायर बुजदिल समझ लिया, आपने कहा -हम क्या करें, हमारी थोडे ही डयूटी है।
कृष्ण ने गीता में यही कहा था- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मान स्रुजाम्याम।
जब जब भी धर्म कि हानि होगी, अधर्म का अर्थ है जहां जहां भी व्यक्ति अपने धर्म को भूल जाएगा, जब भारत कि हानि होने लगेगी जब भारत के टुकडे होने कि स्थिति हो जायेगी, आर्यावर्त के टुकडे होने कि स्थिति हो जायेगी, तब तक एक व्यक्ति पैदा होगा जो अपने शिष्यों को ज्ञान और चेतना देगा। उनको एहेसास कराएगा कि तुम कायर नहीं हो, बूढ़े नहीं हो, तुममे ताक़त है, क्षमता है मगर वह ज्ञान नहीं है। कृत्या जब दक्ष को विध्वंस कर सकती है, लाखों ऋषियों को उंचा उठाकर धकेल सकती है, वीर वेताल जैसे व्यक्ति को पैदा कर सकती है, जो पुरे पहाड़ के पहाड़ उठाकर दूसरी जगह रख सकती है, जिस कृत्या के माध्यम से रावण पुरी लंका को सोने कि बना सकता है। आप तो पांच रुपये चांदी के इकट्ठे नहीं कर सकते। आपके पास कागज के टुकडे तो है, एलम्यूनियम के सिक्के तो है पर चांदी के सिक्के पच्चीस, पचास या सौ मुश्किल से होंगे। क्या क्षमता, क्या ताक़त है आपमें?
जब वह सोने कि लंका बना सका तो हम क्यों नहीं कर पा रहे हममे न्यूनता क्या है?
न्यूनता यह है आपमें अकर्मण्यता आ गयी है आपमें भावना आ गयी है कि हम कुछ नहीं कर सकते। यह हमारी डयूटी हमारा काम है ही नहीं और कृष्ण कह रहे हैं जब जब भी धर्म कि हानि होने लग जाए तो यह हमारी डयूटी है कि हम ताक़त के साथ खडे हो सके और खडे हो कर बता सके कि तुम्हारा विज्ञान फेल हो रहा है और हम ज्ञान मे माध्यम से शांति पैदा कर रहे हैं। यह हमारा धर्म है, हमारा कर्तव्य है।
ऐसा अधर्म बना तो कृष्ण पैदा हुए, ऐसा अधर्म बना तब बुद्ध पैदा हुए, ऐसा अत्याचार बढ़ा तब सुकरात पैदा हुआ, इसा मसीह पैदा हुआ। सब देशों मे पैदा हुए कोई भारत वर्ष में ही पैदा नहीं हुए, सभी देशों मे महान पुरुष पैदा हुए जिन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान कि चेतना दी।
बगलामुखी तो क बहुत छोटी चीज है, धुमावती तो बहुत छोटी चीज है। दस महाविद्या तो अपने आपमें कुछ हैं ही नहीं कृत्या के सामने। कृत्या तो यह बैठे-बैठे एकदम से शत्रुओं को नष्ट कर दे, समाप्त कर दे। शत्रु में ताक़त ही नहीं रहे, हिम्मत ही नहीं रहे। पंगु बना दे। वह आज के युग कि जरूरत है।
आज के युग मे नोट की भी जरूरत है बेटों की भी जरूरत है, रोटी की भी जरूरत है, पानी की भी जरूरत है, मगर इससे पहले जरूरी है कि शत्रु समाप्त हों। जो बेचारे कुछ कर नहीं रहे वे मर रहे हैं, कहीँ सदर बाजार में उन बेचारे दुकानदारों ने कुछ किया नहीं उनकी दुकानें उडा दी गई। आप कल्पना करिये उनके परिवार वालों कि क्या हालत हुई होगी। कोई दुःख दर्द हुआ, आंखों में आंसू आए हमारे? हमारे नहीं आएंगे तो किसके आएंगे?
हमारे अंदर दर्द पैदा होना चाहिए और इस सबको मिटाना होगा। विज्ञान इसको नहीं मिटा सकता, बंदूक की गोलियों को विज्ञान नहीं मिटा सकता देख लिया हमने। और प्रत्येक के पास यह ताक़त होनी चाहिऐ, एक-एक शिष्य के पास वह ताक़त होनी चाहिऐ। दो चार शिष्य तैयार होंगे उससे नहीं हों पायेगा। एक-एक व्यक्ति, एक-एक पुरुष, एक-एक स्त्री को यह ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है। वह उस साधना को सिद्ध करे की जिसके माध्यम से वह कृत्या पैदा सके। भगवान अगर विक्रमादित्य पैदा कर सकता है फिर हम भी कर सकते हैं।
सांप जैसा एक मामूली जीव अगर कायाकल्प कर सकता है, पुरी केचुली उतारकर वापस क्षमतावान बन सकता है तो आप ऐसा क्यों नहीं कर पाते? सांप पुरे दो सौ साल जिंदा रह सकता है। पच्चीस पचास साल मे मरता नहीं। आदमी मरता है सांप नहीं मरता। जब भी बुढ़ापा आता है ऐसा दिखता है की कमजोरी आ गई तो वह केचुली को उतार कर फ़ेंक देता है। वह ज्ञान एक था जो सिर्फ उसके पास रह गया।
पहले नाग योनि थी। जैसे वानर योनि थी गंधर्व योनि थी वैसे नाग भी एक योनि थी। बाद में हमने मान लिया कि सांप ही नाग योनि है। नाग तो अपने आपमें एक जाती थी जिनके पास यह विद्या थी। वह कायाकल्प की विधि जब भी आप कहेंगे कि मैं वृद्ध हों गया हूं तो मैं आपको सीखा दूंगा। मैं तो आपको वृद्ध होने ही नही देना चाहता हूं। सफेद बालों वाला वृद्ध नहीं होता, वृद्धता तो मन कि अवस्था है। अगर सफेदी से ही बुढ़ापा आता हिमालय आपसे पहले बुढा है। उस पर सफेद ही सफेद लगा हुआ है। फिर तो वह बूढा ही बूढा बैठा है वह है ही नहीं ताकतवान। आपके सिर पर सफेदी है तो उस पर तो ज्यादा सफेदी है। मगर नहीं वह ताकत के साथ खङा हुआ है, अडिग खडा हुआ है।
भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ६
आप वृद्ध नहीं है आप जवानों से ज्यादा ताकतवान हैं क्षमतावान है। आपमें हौसला और हिम्मत है और वह चीज वापस कृत्या के माध्यम से प्राप्त हो सकती है। कृत्या को भगवान शिव ने प्रकट किया, पैदा किया और उस क्षमता के माध्यम से जितना अधर्म, जितनी दुर्नीति थी, जितना घटियापन था वह समाप्त किया, विध्वंस कर दिया और वेद मंत्र उच्चारण कर रहे थे और एक औरत जल रही थी और वे स्वाहा बोल रहे थे यह क्या चीज थी?और ऐसे समय क्रोध नहीं आए क्षमता नहीं आए, व्यक्ति जूझे नहीं तो हम मर्द क्या बने। फिर तो हम एक बहुत घटिया श्रेणी के मनुष्य हुए। और अगर गुरू शिष्य को क्षमतावान नहीं बना सके तो फिर गुरू को यहां बैठने का अधिकार नहीं है, बेकार है सब।
मैंने आपको बताया कि आज के युग के लिए क्या कोई घिसापिटा प्रवचन नहीं दिया आपको। मैं बता सकता था कि बगलामुखी क्या होती है, धूमावती क्या होती है, जगदम्बा क्या होती है। मैंने कृत्या के बारे मे बताया जिसके दस हाथों मे दस चीजें हैं और दस मे एक भी फूल नहीं है। उसके तो हाथों मे कहीँ खडग है, कहीँ चक्र है, कहीँ कृपाण है, कहीँ त्रिशूल है। अपने आपमें वह अकेली औरत ने कर दिया, इसलिये आज भी उसे पूजा जाता है। आपको भी पूजा जाएगा, यदि आपमें वह साधना होगी तो पूजा जायेगा। नहीं तो आप भी मर कर समाप्त हो जायेंगे कोई पूछेगा नहीं आपको, याद भी नहीं करेगा आपको।
इसलिये आपमें वह क्षमता आणि चाहिऐ। इनके दस हाथ हैं इसका मतलब कि, दस चीजें चलाने कि क्षमता है। अगर आप सोचते हैं कि रावण के बीस हाथ और दस सिर थे यह कपोल कल्पना है। रावण के न कोई दस सिर थे न बीस भुजाएं थी। यह एक कल्पना है, इसका अर्थ यह है कि उसके पास जितनी बीस भुजाओं मे ताक़त होती है उतनी ताक़त थी, दस सिरों मे जीतनी बुद्धि होनी चाहिए उतनी बुद्धि थे। उतनी साधनाएं थीं। उसके पास उतना ज्ञान था उसके पास चांदी के सौ पचास सिक्के नहीं पुरे शहर के शहर को सोने का बना दिया और उस समय किया जब दशरथ जैसा राजा भी कुछ कर नहीं पा रहा था। वही लडाई, वही झगड़े वही बेटों को बाहर निकाल देना वही मर जाना। और बेटा अपने पिता का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाया। वही एक स्त्री सीता को उठा कर ले जाना। चीजें तो वहीँ कि वहीँ थीं, मगर एक विद्या उनके पास थी।
और कृत्या प्रयोग, कृत्या साधना को आज तक किसी ने छुआ तक नहीं, इसलिये कि उनके पास ज्ञान नहीं था। अगर ज्ञान ही नहीं होगा तो कोई सीखेगा कहां से, कोई बताएगा कहां से? अगर मुझे उर्दू नहीं आती तो मैं उर्दू बोलूंगा कहां से। मुझे मराठी नहीं आती तो मराठी बोलूंगा कहां से।
अगर मुझे ज्ञान है कि कृत्या सिद्ध कैसे हो सकती है तो मैं आपको कात्यायनी और ये छोटी-छोटी साधनाएं क्यों दूंगा? दूंगा तो एक बहुत बड़ी साधना दूंगा कि आप बैठे-बैठे शत्रुता को समाप्त कर सके, और पुरे देश को एहसास करा सके कि एक गुरू के कोई शिष्य है। ऐसा शिष्या मैं आपको बनाना चाहता हूं।
शायद मेरी बात आपको तीखी लगे, शायद मेरी बात क्रोधमय हो गई है। मगर क्रोध नहीं करता है उससे घटिया कोई आदमी नहीं होता। सबसे मरा हुआ जीव वह होता है जिसे क्रोध आता ही नहीं। और हमारा देश बरबाद इसलिए हो गया है कि अहिंसा परमो धर्मः कोई थप्पड़ मारे तो दो चार थप्पड़ और खा लीजिए। मैं कहता हूं कि थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठे उससे पहले चालीस थप्पड़ मार दीजिए। मैं आपको यह कह रहा हूं काहे को हम थप्पड़ खाएं।
जो पहले लात मारता, है वह जीतता है, यह ध्यान रखिए। कोई लात लगा देगा तो दुसरा गिर जाएगा, दुसरी लात लगेगी तो वह उठेगा नहीं। उसे दो चार थप्पड़ और पड़ेंगे तो वह कहेगा गलती हो गई। और तुम हाथ जोडो तो तुम्हारी हार निश्चित है। गांधीजी ने कह दिया अहिंसा परमो धर्मः उस जमाने मे जरूरी होगा, यह उनकी धारणा थी, विचार था। उस जमाने मे बुद्ध ने जो कहा सत्य कहा होगा। मगर वह उस जमाने में था आज वह चीज नहीं है। उस समय बम विस्फोट नहीं हो रहे थे। उस समय गोलियां नहीं चल रही थी, ए.के ४७ राइफल उस समय नहीं थी।
और अगर आप कहते हैं कि हम क्यों करें?
तो मैं कह रहा हूं-कौन करेगा फिर अगर मैं आपको ज्ञान नहीं दे पाउंगा, आप नहीं कर पाएंगे, आप इस देश को, भारत वर्ष को आर्यावर्त को तैयार नहीं कर पाएंगे। लोग जीवित जाग्रत नहीं हो पाएंगे, और लोग इस पर आक्रमण करते रहेंगे और आप चुपचाप देखते रहेंगे तो कौन आगे आएगा, कहां से आएगा? फिर शिष्य बनने का मनुष्य बनने का क्या धर्म रह जाएगा?
यह धर्म हमारा है क्योंकि हम जीवन मे अभावग्रस्त नहीं होना चाहते, हम दरिद्री नहीं रहना चाहते, हम जीवन में तकलीफ नहीं देखना चाहते, हम दुःखी नहीं होना चाहते, हम घर में लडाई झगड़ा नहीं चाहते हम जीवन में कायर बुजदिल नहीं होना चाहते, हम बुढ़ापा नहीं चाहते।
हम यह सब नहीं चाहते मगर ऐसा तब हो पाएगा जब हम ऐसी साधना सिद्ध कर सकेंगे कि आपका विकराल रुप देख कर मौत भी आपके द्वार के बाहर खड़ी रहे, अंदर आने कि हिम्मत नही कर सके। तब वह चीज हो पाएगी। मौत आपके पास आकर बैठे जाए तो मर्द ही क्या हुए आप?
भगवान शिव ने एक उच्च कोटी कि साधना के रुप में कृत्या प्रकट कि। उस कृत्या को सिद्ध किया विक्रमादित्य ने। बीच में कर ही नहीं पाए कोई। या तो ज्ञान लुप्त हो गया, या ऋषि मुनी समाप्त हो गाए। कुछ भगवान शिव ने समाप्त कर दिया, कुछ मर गए, कुछ को ज्ञान रहा नहीं और कुछ ऐसे ऋषि हो गाए जो अपने शिष्यों को ज्ञान दे नहीं पाए। पहले मुख से देते थे ज्ञान, किताबों मे होता ही नहीं था। आज मैंने आठ किताबें तैयार कि तो आप दो, पाच किताब लेंगे कि चलो कम से कम मेरे पास यह ज्ञान कि थाली रह पाएगी।
उनके पास किताबें थी नहीं। और उस समय ऐसे गुरू भी थे जो मरते दम तक कहते रहते थे कि बिल्कुल अंत मे सिखाउंगा यह चीज। अरे महाराज सीखा दो, न जाने आप कब समाप्त हो जाओगे।
वे कहते नहीं बच्चे! अंत समय मे सिखाउंगा।
उनको लालच यह कि सेवा कौन करेगा, सीखा तो चला जाएगा। और शिष्य सोचता यह कुछ सिखाता कुछ नहीं है रोज लंगोट धुलवाता है पर कुछ देता नहीं है। अब दोनों मे आपस मे द्वंद चल रहा है। वह उसको बोल नहीं पा रहा है, और मरते समय कहता है- राम राम जपना बेटा और गर्दन टेढ़ी।