Tuesday, January 4, 2011

Siddhashram

सिद्धाश्रम
संसार का सुविख्यात अद्वितीय साधना-तीर्थ तांत्रिकों, मांत्रिकों, योगियों, यतियों और सन्यासियों का दिव्यतम साकार स्वप्न “सिद्धाश्रम”, जिसमें प्रवेश पाने के लिए मनुष्य तो क्या देवता भी लालायित रहते हैं, हजारों वर्ष के आयु प्राप्त योगी जहाँ साधनारत हैं! सिद्धाश्रम एक दिव्या-भूखंड हैं, जो आध्यात्मिक पुनीत मनोरम स्थली हैं! मानसरोवर और हिमालय से उत्तर दिशा की और प्रकृति के गोद में स्थित वह दिव्य आश्रम – जिसकी ब्रह्मा जी के आदेश से विश्वकर्मा ने अपने हाथों से रचना की, विष्णु ने इसकी भूमि, प्रकृति और वायुमंडल को सजीव-सप्राण-सचेतना युक्त बनाया तथा भगवन शंकर की कृपा से यह अजर-अमर हैं! आज भी वहां महाभारत कालीन भगवान श्री कृष्ण, भीष्म, द्रौण आदि व्यक्तित्व विचरण करते हुए दिखाई दे जाते हैं!

Placed his hands on the hand you do not sit like that, think of the solstice is the time!

प्रिय मित्रों


आपको नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक-२ शुभकामनाएं.


यह नव वर्ष आपके जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, सुस्वास्थ्य, प्रसन्नता और भी बहुत कुछ लेकर आये जो आपके जीवन को दिव्यता कि और ले चले.

यह समय बहुत ही कीमती है, क्योंकि समय ही जीवन का आधार है. यह समय कुछ कर गुजरने का है; अपने अन्तःकरण कि पुकार सुनिए और वह सब करिए जो आपको मनुष्य कहलाने योग्य बनाता है.जो जीवन का आधार बनाते है ऐसे गुरु  ही  क्रांति दूत है जिन्होंने अपने जीवन से लोगो को राह दिखलाई कि सच्चा मनुष्य क्या होता है. वह मनुष्य से ऋषि, देवता कैसे बनता है.
यह क्रांति गीत हमारे जीवन को दिशा दे, हम नव वर्ष को अपने जीवन का हर्ष बनाले! यही कामना!
हाथ पर यूँ हाथ रखकर तुम न बैठो , सोच लो यह समय संक्रांति का है !
सावधानी से तुम्हें हर पग बढ़ाना, यह समय हर ओर घोर अशांति का है .


हर तरफ है दृश्य ऐसा, इस समय की धार में बिगड़ा हुआ हर संतुलन है .


सब ढलानों पर फिसलते जा रहे हैं इस तरह निश्चित पराभव है पतन है .


सावधानी से तुम्हें हर पग बढ़ाना, यह समय हर ओर घोर अशांति का है !


हाथ पर यूँ हाथ रखकर तुम न बैठो , सोच लो यह समय संक्रांति का है !!


आत्म बल लेकर अगर तुम बढ़ सकोगे, लक्ष्य पर ही दृष्टि यदि हर पल रहेगी .


तो समझ लो इस भयंकर धार में भी, नाव मनचाही दिशा में ही बहेगी.


आज तो निश्चित अडिग संकल्प ले लो, यह समय बिलकुल न अब दिग्भ्रांति का है !..


हाथ पर यूँ हाथ रखकर तुम न बैठो , सोच लो यह समय संक्रांति का है !!
The Adventures of Sherlock Holmes

Friday, December 17, 2010

Nikhil Elements Overview

निखिल तत्त्व अवलोकन Nikhil Elements Overview


ल तत्वार्थ - लं बीज पृथ्वी तत्त्व का कारक है एवं उसका स्थान है मूलाधार। इसलिए "ल" अक्षर प्रतिनिधित्व करता है इस संपूर्ण स्थूल चराचर जगत का।

खि तत्वार्थ - खं शब्द का अर्थ संस्कृत में है - आकाश (Ether) और इकार है आद्यशक्ति का द्योतक। जैसे, 'शव' में जब 'इकार' का योग होता है तब ही वह "शिव" मेंपरिवर्तित होता है। इसीलिए "खि" अक्षर प्रतिनिधित्व करता है ब्रम्हाण्ड में स्थित उन सुक्ष्म शक्तियों का जिनकी परिपाटी पर कई अगम्य अगोचर जगत विद्यमान हैं।

नि तत्वार्थ - "नि" उपसर्ग एक "पर (BEYOND)" की स्थिति दर्शाता है। स्वार्थ, 'नि' से युक्त होकर निःस्वार्थ हो जाता है, आकार - निराकार, कलंक - निष्कलंक,आधार - निराधार, विकार - निर्विकार, द्वन्द - निर्द्वंद........."नि" उस शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है जो की स्थूल एवं सुक्ष्म दोनों से ही "पर" है।

नि-खि-ल प्रतिक है, इन सभी जगतों का...
स्थूल - ल (GROSS)...आधिभौतिक
सुक्ष्म - खि (SUBTLE)...आधिदैविक
परा - नि (BEYOND)...आध्यात्मिक

और जो सत्ता इन तीनों जगत का संचालक है, पालक-पोषक है, इश्वर है, वही सत्ता है "निखिलेश्वर", वही तत्त्व है - "निखिलेश्वरानंद"।


॥ निखिलं वंदे जगद्गुरुम्||

RECENT SHIVIRS

RECENT UPDATES OF ALL THE SHIVIRS WHICH ARE GOING TO BE PERFORMED UNDER THE REVERRED BHAGWAN NIKHILESHWAR

PARAM PUJYA BHAGWAN ARVIND GURUDEVJI KI SHIVIRS1. 26 december,2010
kuber yantra sadhna shivir, VALSAAD,GUJRAT
Address- Rajput samaj hall, near kasturba hospital, Valsaad city,gujrat
Contact- devender panchal-09998874612,08860556793, jayesh panchaal- 09427479275, shankar bhai prajapati-09978196517.


PARAM PUJYA BHAGWAN NAND KISHORE GURUDEVJI KI SHIVIRS
1) 18-19 December
Aadhya Shakti Sadhna Shivir
Bhimakali Mandir Parisar
Mandi(H.P)
9418065655,9418771841
PARAM PUJYA BHAGWAN KAILASH GURUDEVJI KI SHIVIRS!!!

2) 12 th Dec.-NAGPUR (MAHARASHTRA)
"Ashorya lakshmi sadhna shivir"digori,nagpur.
ADDRESS : PRAGATI SANSKRITIK BHAWAN, DIGORI, NAGPUR.
contact-9766797866, 9373218380

3) 14th december, "NAVAARN SHAKTI SATRU HANTA SADHANA SHIVIR" , dharmdaye cotton fund , amravati , 150km from nagpur station & 10km from badnera station , maharashtra.
contact-07223227194, 09826130684

4) 19th december, " TANTRA BAADHA MUKTI LAXMI SADHANA SHIVIR" , paras place ,malviya chowk , jabalpur, madhya pardesh.contact- vijay joshi-09300879776,09826130684

5) 21st december, "POORNTA PRAPTI BAHGYODAY SADHANA SHIVIR". COMMUNITY HALL , NEAR STADIUM , umaria, madhya pardesh.contact-kk chandra-9303127059,09826130684
6)22nd december, "MAHAMRITUNJAAY SHIVATA SADHANA SHIVIR" , BANKIM BIHAR , COMMUNITY HALL , JAMUNA-KOTMA, DIST. : ANUPPUR (M,.P.)contact-kk chandra-9303127059,09826130684


7) 24th december, "NIKHIL CHETANA KUBER SADHANA SHIVIR " , DURGA MANDIR HALL , GANDHI CHOWK , AMBIKAPUR (chattisgarh.).
contact-09926138808,09826130684

Friday, December 3, 2010

About GYANGUNJ

सिद्धाश्रम अध्यात्म जीवन का वह अंतिम आश्रय स्थल हैं, जिसकी उपमा संसार में हो ही नहीं सकती! देवलोक और इन्द्रलोक बभी इसके सामने तुच्छ हैं! यहाँ भौतिकता का बिलकुल ही अस्तित्व नहीं हैं! सिद्धाश्रम पूर्णतः आध्यात्मिक एवं पारलौकिक भावनाओं और चिन्तनो से सम्बंधित हैं! यह जीवन का सौभाग्य होता हैं, यदि सशरीर ही व्यक्ति वहां पहुँच पाए!
सिद्धाश्रम शब्द ही अपने-आप में जीवन की श्रेष्ठता और दिव्यता हैं, वहां पहुचना ही मानव देह की सार्थकता हैं! जब व्यक्ति सामान्य मानव जीवन से उठकर साधक बनता हैं, साधक से योगी और योगी से परमहंस बनता हैं, उसके बाद ही सिद्धाश्रम प्रवेश की सम्भावना बनती हैं, जिसके कण-कण में अद्भुत दिव्यता का वास हैं, जिसके वातावरण में एक ओजस्वी प्रवाह हैं, जिसकी वायु में कस्तूरी से भी बढ़कर मदहोशी हैं, जिसके जल में अमृत जैसी शीतलता हैं तथा जिसके हिमखंडों में चांदी-सी आभा निखरती प्रतीत होती हैं!
आज भी जहाँ ब्रह्मा उपस्थित होकर चारों वेदों का उच्चारण करते हैं! जहाँ विष्णु सशरीर उपस्थित हैं! जहाँ भगवन शंकर भी विचरण करते दिखाई देते हैं! जहाँ उच्चकोटि के देवता भी आने के लिए तरसते हैं! जहाँ गन्धर्व अपनी उच्च कलाओं के साथ दिखाई देते हैं! जहाँ मुनि, साधू, सन्यासी एवं योगी अपने अत्यंत तेजस्वी रूप में विचरण करते हुए दिखाई देते हैं! जहाँ पशु-पक्षी भी हर क्षण अपनी विविध क्रीडाओं से उमंग एवं मस्ती का बोध कराते हैं!
सिद्धाश्रम में गंधर्वों के मधुरिम संगीत पर अप्सराओं के थिरकते कदम, सिद्धयोग झील में उठती-टूटती तरंगों की कलकल करती ध्वनि, पक्षियों का कलरव तथा भंवरों के गुंजन..... सभी में गुरु-वंदना का ही बोध होता रहता हैं!
“पूज्यपाद स्वामी सच्चिदानंद जी” सिद्धाश्रम के संस्थापक एवं संचालक हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही देवता धन्य हो जाते हैं, जिनके चरणों में ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र स्वयं उपस्थित होकर आराधना करते हैं, रम्भा, उर्वशी, और मेनका नृत्य करके अपने सौभाग्य की श्रेयता को प्राप्त करती हैं! जिनका रोम-रोम तपस्यामय हैं! जिनके दर्शन मात्र से ही पूर्णता प्राप्त होती हैं!
सिद्धाश्रम में मृत्यु का भय नहीं हैं, क्योंकि यमराज उस सिद्धाश्रम में प्रवेश नहीं कर पते! जहाँ वृद्धता व्याप्त नहीं हो सकती, जहाँ का कण-कण यौवनवान और स्फूर्तिवान बना रहता हैं! जहाँ के जीवन में हलचल हैं, आवेग हैं, मस्ती हैं, तरंग हैं! जहाँ उच्चकोटि क्र ऋषि अपने शिष्यों को ज्ञान के सूक्ष्म सूत्र समझा रहे होते हैं! कहीं पर साधना संपन्न हो रही हैं, कहीं पर मन्त्रों के मनन-चिंतन हो रहे हैं! कहीं पर यज्ञ का सुगन्धित धूम्र चारो और बिखरा हुआ हैं! जहाँ श्रेष्ठतम पर्णकुटीर बनी हुयी हैं, उनमें ऋषि, मुनि और तापस-गण निवास करते हैं!

Wednesday, December 1, 2010

samadhi mantra

Monday, October 18, 2010

Guru Mantra Mystery Part -4

गुरु मंत्र रहस्य भाग - ४

'अगले बीज 'यो' का अर्थ है - 'योनी'| मानव जन्म के विषय में कहा जाता है, कि यह तभी प्राप्त होता है, जब जीव विभिन्न, चौरासी लाख योनियों में विचरण कर लेता है, परन्तु इस बीज के दिव्य प्रभाव से व्यक्ति अपनी समस्त पाप राशि को भस्म करने में सफल हो जाता है और फिर उसे पुनः निम्न योनियों में जन्म लेना नहीं पड़ता|

'योनी का एक दूसरा अर्थ है - शिव कि शिवा (शक्ति), ब्रह्माण्ड का मुख्य स्त्री तत्व, ऋणात्मक शक्ति| सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इसी शक्ति के फलस्वरूप गतिशील है और साधक इस बीज को सिद्ध कर लेता है, उसके शरीर में हजारों अणु बमों की शक्ति उतर आती है|'

मैं उनकी ओर भाव शून्य आँखों से ताक रहा था| मेरे संशय युक्त चहरे पर देख उन्होनें मुझे आश्वस्त करने के लिये एक शब्द भी नहीं कहा, बल्कि ऐसा कुछ किया, जो इससे लाख गुणा बेहतर था| उन्होनें अपनी दृष्टि एक विशाल चट्टान पर स्थिर कि, जो कि मेरी दाहिनी तरफ लगभग १५ मीटर की दूरी पर स्थित थी... और दुसरे ही क्षण एक भयंकर विस्फोट के साथ उसका नामोनिशान मिट गया|

भय और विस्मय एक साथ मेरे चहरे पर क्रीडा कर रहे थे, साथ ही मेरे रक्तहीन चेहरे पर विश्वास कि किरणें भी उभर रही थीं| उन्होनें अपनी 'कथनी' को 'करनी' में बदल दिया था, इससे अधिक और क्या हो सकता था...

'इसके अलावा- उन्होनें सामान्य ढंग से बात आगे बढाई, मानो कुछ हुआ न हो - 'ऐसा व्यक्ति अपने दिव्य व्यक्तित्व को छुपाने के लिए दूसरों पर माया का एक आवरण डाल सकता है, अद्वितीय एवं सर्वोत्तम व्यक्तित्व होने पर भी वह इस तरह बर्ताव करता है, कि आसपास के सभी लोग उसे सामान्य व्यक्ति समझने की भयंकर भूल कर बैठते हैं| वह सामान्य लोगों की तरह ही उठता-बैठता है, खाता-पीता है, हसता-रोता है, अतः लोग उसके वास्तविक स्वरुप को न तो देख पाते हैं और न ही पहचान पाते हैं|'

सूर्य पश्चिमी क्षितिज पर अपने मंद प्रकाश की छटा बिखेरता हुआ अस्तांचल की ओर खिसक रहा था, पशु-पक्षी अपने-अपने घरों की ओर विश्राम के लिए जा रहे थे| मैं उसी मुद्रा में बुत सा विस्मय के साथ त्रिजटा के द्वारा इन रहस्यों को उजागर होते हुए सुन रहा था| हम कॉफ़ी पी चुके थे और उसकी सामग्री शुन्य में उसी रहस्यमय ढंग से विलुप्त हो गई थी, जिस प्रकार से आई थी| मैं सोच रहा था, कि गुरु मंत्र में कितनी सारी गूढ़ संभावनाएं छुपी हुई हैं और मैं अज्ञानियों कि भांति तथाकथित श्रेणी की छोटी-मोटी साधनाओं के पीछे पडा हूं| मैं यही सोच रहा था, जब त्रिजटा कि किंचित तेज आवाज ने मेरे विचार-क्रम को भंग कर दिया|

'मैं देख रहा हूं, कि तुम ध्यान पूर्वक नहीं सुन रहे हो' - उसके शब्द क्रोधयुक्त थे - 'और यदि यहीं तुम्हारा व्यवहार है, तो मैं आगे एक शब्द भी नहीं कहूंगा|'

'ओह! नहीं...मैं तो स्वप्न में भी आपको या आपके प्रवचन की उपेक्षा करने की नहीं सोच सकता...मैं तो अपनी और दुसरे अन्य साधकों की न्यून मानसिकता पर तरस खा रहा हूं, जो कि गुरु मंत्र रुपी 'कौस्तुभ मणि' प्राप्त कर के भी दूसरी अन्य साधनाओं के कंकड़-पत्थरों की पीछे पागल हैं...'

एक अनिर्वचनीय मुस्कराहट उनके होठों पर फैल गई और उनकी आँखों में संतोष कि किरणें झलक उठी| वे समझ गए, कि मैंने उनकी हर बात बखूबी हृदयंगम कर ली है, अतः वे अत्याधिक प्रसन्न प्रतीत हो रहे थे|

'आखिरी शब्द का पहला बीज है 'न' अर्थात 'नवीनता', जिसका अर्थ है - एक नयापन, एक नूतनता और ऐसी अद्वितीय क्षमता, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपको अथवा दूसरों को भी समय की मांग के अनुसार ढाल सकता है, बदल सकता है या चाहे तो ठीक इसके विपरीत भी कर सकता है अर्थात समय को अपनी मांगों के अनुकूल बना सकता है| जो व्यक्ति इस बीज को पूर्णता के साथ आत्मसात कर लेता है, वह किसी भी समाज में जाएं, वहां उसे साम्मान प्राप्त होता है, फलस्वरूप वह हर कार्य में सफल होता हुआ शीघ्रातिशीघ्र शीर्षस्थ स्थान पर पहुंच जाता है, जीवन में उसे किसी भी प्रकार की कोई कमी महसूस नहीं होती|'

'वह किसी भी व्यवसाय में हाथ डाले, हमेशा सफल होता है और समय-समय पर वह अपने बाह्य व्यक्तित्व को बदलने में सक्षम होता है, उदाहरण के तौर पर अपना कद, रंग-रूप, आँखों का रंग आदि| जब कोई उसे व्यक्ति उससे मिलता है, हर बार वह एक नवीन स्वरुप में दिखाई देता है| ऐसा व्यक्ति अपनी इच्छानुसार हर क्षण परिवर्तित हो सकता है और अपने आसपास के लोगों
को आश्चर्यचकित कर सकता है|'

'इसका सूक्ष्म अर्थ यह है, कि उसका कोई भी व्यक्तित्व इतनी देर तक ही रहता है, कि वह इच्छाओं एवं विभिन्न पाशों में जकड़ा जाये| हर क्षण पुराना व्यक्तित्व नष्ट होकर एक नवीन, पवित्र, व्यक्तित्व में परिवर्तित होता रहता है| इसी को नवीनता कहते हैं| ऐसा व्यक्ति हर प्रकार के कर्म करता हुआ भी उनसे और उनके परिणामों से अछूता रहता है|'

'अंतिम बीज 'म' 'मातृत्व' का बोधक है, जिसका अर्थ है असीमित ममता, दया और व्यक्ति को उत्थान की ओर अग्रसर करने की शक्ति, जो मात्र माँ अथवा मातृ स्वरूपा प्रकृति में ही मिलती है| माँ कभी भी क्रूर एवं प्रेम रहित नहीं हो सकती, यही सत्य है| शंकराचार्य ने इसी विषय पर एक भावात्मक पंक्ति कही है -


'कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति|'

अर्थात 'पुत्र तो कुमार्गी एवं कुपुत्र हो सकता है, परन्तु माता कभी कुमाता नहीं हो सकती| वह हमेशा ही अपनी संतान को अपने जीवन से ज्यादा महत्त्व देती है|'

'इस बीज को साध लेने से व्यक्ति स्वयं दया और मातृत्व का एक सागर बन जाता है| फिर वह जगज्जननी मां की भांति ही हर किसी के दुःख और परेशानियों को अपने ऊपर लेने को तत्पर हो, उनको सुख पहुंचाने की चेष्टा करता रहता है| वह अपनी सिद्धियों और शक्तियों का उपयोग केवल और केवल दूसरों की एवं मानव जाति कि भलाई के लिए ही करता है| बुद्ध और महावीर इस स्थिति के अच्छे उदाहरण है|'

त्रिजटा अचानक चुप हो गए और अब वे अपने आप में ही खोये हुए मौन बैठे थे| मर्यादानुकुल मुझ उनके विचारों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था, परन्तु मैं तो गुरु मंत्र के विषय में ज्यादा से ज्यादा जानने का व्यग्र था|

मैं जान-बूझ कर कई बार खांसा और अंततः उनकी आँखें एक बार फिर मेरी ओर घूम गई ..वे गीली थीं...

'जो कुछ भी मैंने गुरु मंत्र के बारे में उजागर किया है' ...उन्होनें कहा - 'यह वास्तविकता का शतांश भी नहीं है और सही कहूं तो यदि कोई इसकी दस ग्रंथों में भी विवेचना करना चाहे, तो यह संभव नहीं, परन्तु ...' उनकी आंखों का भाव सहसा बदल गया था - 'परन्तु मैं सौ से ऊपर उच्चकोटि के योगियों, संन्यासियों, यतियों को जानता हूं, जिनके सामने सारा सिद्धाश्रम नतमस्तक है और उन्होनें इसी षोड़शाक्षर मंत्र द्वारा ही पूर्णता प्राप्त की है...'

'कई गृहस्थों ने इसी के द्वारा जीवन में सफलता और सम्पन्नता की उचाईयों को छुआ है| औरों की क्या कहूं स्वयं मैंने भी 'परकाया प्रवेश सिद्धि' और 'ब्रह्माण्ड स्वरुप सिद्धि' इसी मंत्र के द्वारा प्राप्त की है..'

उनकी विशाल देह में भावो के आवेग उमड़ रहे थे| वे किसी खोये हुए बालक की भांति प्रतीत हो रहे थे, जो अपनी मां को पुकार रहा हो, प्रेमाश्रु उनके चहरे पर अनवरत बह रहे थे, जबकि उनके नेत्र उगते हुए चन्द्र की ज्योत्स्ना पर लगे हुए थे|

'तुम इस व्यक्तित्व (श्री नारायण दत्त श्रीमालीजी) अमुल्यता की कल्पना भी नहीं कर सकते, जिसका मंत्र तुम सबको देवताओं की श्रेणी में पहुंचाने में सक्षम है|'


"श्री सार्थक्यं नारायणः'
- 'वे तुम्हें सब कुछ खेल-खेल में प्रदान कर सकते हैं| अभी भी समय है, कंकड़-पत्थरों को छोडो और सीधे जगमगाते हीरक खण्ड को प्राप्त कर लो|'

ऐसा कहते-कहते उन्होनें मेरी ओर एक छटा युक्त रुद्राक्ष एव स्फटिक की माला उछाली और तीव्र गति से एक चट्टान के पीछे पूर्ण भक्ति भाव से उच्चरित करते हुए चले गए -


नमस्ते पुरुषाध्यक्ष नमस्ते भक्तवत्सलं |
नमस्तेस्तु ऋषिकेश नारायण नमोस्तुते ||


बिजली की तीव्रता के साथ मैं उठा और त्रिजटा के पीछे भागा..परन्तु चट्टान के पीछे कोई भी न था..केवल शीतल पवन तीव्र वेग से बहता हुआ मेरे केश उड़ा रहा था| वे वायु में ही विलीन हो गए थे| मैं मन ही मन उस निष्काम दिव्य मानव को श्रद्धा से प्रणिपात किया, जिसने गुरु मंत्र के विषय में गूढ़तम रहस्य मेरे सामने स्पष्ट कर दिए थे|

..तभी अचानक मेरी दृष्टी नीचे अन्धकार से ग्रसित घाटी पर गई, ऊपर शून्य में 'निखिल' (संस्कृत में पूर्ण चन्द्र को 'निखिल' भी कहते हैं) अपने पूर्ण यौवन के साथ जगमगा कर चातुर्दिक प्रकाश फैला रहा था और ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो सारा वायुमंडल, सारी प्रकृति उस दिव्य श्लोक के नाद से गुज्जरित हो रही हो -


नमस्ते पुरुषाध्यक्ष नमस्ते भक्तवत्सलं |
नमस्तेस्तु ऋषिकेश नारायण नमोस्तुते ||



-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान, जुलाई २०१०