Wednesday, January 18, 2012

A Guru tests a disciple several times

A Guru tests a disciple several times before He gives the latter something. Before gold is moulded into a crown it is heated in strong fire time and again to purify it. Then it is beaten into sheets or drawn into wires but the gold does not in the least complain because it has full faith in the goldsmith. And the goldsmith transforms it into a crown that rests on the heads of not mortals but gods and goddesses. A Sadguru too subjects a disciple to the fire of His tests in order to make his mind pure....

________________________Dr. Narayan Dutt Shrimali______________________

Monday, January 16, 2012

Pakhandion against rogues and pithy discourse



दिब्य महोत्सव पर गुरुदेवजी का ठगों और पाखंडियों विरुद्ध सारगर्भित प्रवचन
अवस्य सुने :भाग-२
https://dl.dropbox.com/s/1sfwh9v059uhlil/02%20Track%202.mp3

दिब्य महोत्सव पर गुरुदेवजी का ठगों और पाखंडियों विरुद्ध सारगर्भित प्रवचन
अवस्य सुने :भाग-१
https://dl.dropbox.com/s/krpdbh6vhqnyqps/01%20Track%201.mp3


16 गुण बनाते हैं दमदार लीडर........- गुणवान (ज्ञानी व हुनरमंद)

- वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट)

- धर्मज्ञ (धर्म के साथ प्रेम, सेवा और मदद करने वाला)

- कृतज्ञ (विनम्रता और अपनत्व से भरा)

- सत्य (बोलने वाला ईमानदार)

- दृढ़प्रतिज्ञ (मजबूत हौंसले)

- सदाचारी (अच्छा व्यवहार, विचार)

- सभी प्राणियों का रक्षक (मददगार)

- विद्वान (बुद्धिमान और विवेक शील)

- सामर्थ्यशाली (सभी का भरोसा, समर्थन पाने वाला)

- प्रियदर्शन (खूबसूरत)

- मन पर अधिकार रखने वाला (धैर्यवान व व्यसन से मुक्त)

- क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज)

- कांतिमान (अच्छा व्यक्तित्व)

- किसी की (निंदा न करने वाला सकारात्मक)

- युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें (जागरूक, जोशीला, गलत बातों का विरोधी)

Tuesday, January 10, 2012

Amritwani Bhajans (Part 1) Jai Prkashji


###Bhajans### be Care full
Pllz attentions ye mantra aam mantra nahi ese yu hi na bajaye.....................
jab aap sant chit ho tabhi sune ye mantra se sabhi devi devata aa jate hai 
jab aaap ki bhavana sahi ho tabhi sune nahi to nahi....


jay guru dev









Mantra Tantra Yantra Vigyan Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

 
१.अमृतवाणी (भाग-१)-जय प्रकाशजी
(त्वमेव माता च पिता त्वमेव)
https://dl.dropbox.com/s/hxqhe1fghpbxm2f/1.mp3

२.अखंड मंडलाकारम ब्याप्तं येन चराचरम-जय प्रकाशजी
https://dl.dropbox.com/s/uowly4nobxeabvi/2.mp3

३.निखिल बिनय सागर करे साक्षी सारे देव -जय प्रकाशजी
https://dl.dropbox.com/s/qdi5xxmgc93kahh/07%20Track%207.mp3

४.तेरे भक्त पुकार रहे है चरणों में शीश झुकाए खड़े है
https://dl.dropbox.com/s/ujamvzhes5arih3/SSK%20-%20Tere%20Bhakta%20Pukar%20Rahe%20Hain.mp3

५.गुरु नाम रश पीजै(गुरु मंत्र )
https://www.dropbox.com/s/df6y4h2195xxq1m/siddhashram_2008-05-09T18_46_47-07_00.mp3




सरल तंत्र साधना विधान सिर्फ आपके लिए .....श्रंखला भाग-11
आज एक ऐसा ही प्रयोग

मित्रो , कभी कभी यह भी संभव हैं की किसी ऐसे रास्ते से हमारा निकलना हो जहाँ पर हमें कुछ अज्ञात का भय समाया दीखता हो , फिर वह सत्य हो या नहीं यह एक अलग बात हैं पर उ स स्थान की ऋ णा त्मक उर्जा के कारण या फिर हमारे शरीर की उर्जा का उस उर्जा से सही संयोग न होने के कारण ऐसा कई बार होता हैं, एक ऐसा ही मन्त्र आपके सामने रख रहा हुं जो की तंत्रग्यो द्वारा बहुत ही प्रशंसित हैं ..
बस इसको याद कर ले और जब भी किसी भी ऐसे स्थान से निकलना हो आप इस मंत्र का तीन बार उच्चारण करे और एक ताली बजा दे , इन इतर योनिया अगर सच में वहां हैं तो उनसे आपकी रक्षा होगी ही .

मंत्र : रास्ते मुझे खुदा कस्त दीदम गुम सदी की राशि
Raaste mujhe khuda kast didam gum sadi ki raashi




क्रमशः.............
****जय गुरुदेव***

Bijatmk tantra and bhagya Utkiln vidhan बीजात्मक तंत्र और भाग्य उत्कीलन विधान

बीजात्मक तंत्र और भाग्य उत्कीलन विधान
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सामान्य मानव जीवन अपेक्षाओं और मनोरथों के दो पहियों पर टिका हुआ है,जिनकी पूर्ती होने से सुख और पूर्ती न होने से दुःख का अनुभव होता है ,और हम अपने जीवन को उन्नति की और अग्रसर होने के लिए भाग्य का मुँह ताकते बैठते हैं की कब वो हमारा सहयोग करे और हम जीवन में उन्नति के शिखर को छू सके . पर क्या सच में भाग्य सदैव हमारा सहयोग करता है.... नहीं ऐसा हमेशा तो नहीं होता,क्या तब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उचित है ? वास्तविकता ये है की भाग्य कर्म का अनुगामी है और जिसे कर्म करना आता है भाग्य सदैव उसके पीछे पीछे दौड़ता है , बहुधा जीवन की विपन्नता और गरीबी को हम रोते हैं,विविध प्रयोग भी करते हैं ,परन्तु हमें लाभ नहीं होता है,तब अक्सर हम क्रिया को दूषण देने का कार्य करने लगते हैं जबकि हम ये बात भूल जाते हैं की प्रारब्ध,संचित और क्रियमाण कर्मों का मल जब तक हमारे सौभाग्य के ऊपर अपना आवरण डाले रहेगा तब तक हम चाहे लाख प्रयत्न क्यूँ न करें,हमारे द्वारा किये गए प्रयासों से हमारा भाग्य कदापि नहीं जागेगा.
जब बात हम करते हैं की कर्म का अनुगामी भाग्य होता है तो इसका अर्थ शारीरिक परिश्रम तो होता ही है परन्तु उसके साथ साधनात्मक कर्म भी अनिवार्य होता है,और जब ये दोनों कर्म सकारात्मक दिशा में होते हैं तो,विपन्नता का नाश होकर,उन्नति,वर्चश्व,ऐश्वर्य,सौभाग्य और सम्मान की प्राप्ति होती ही है.
हम विपन्नता की अवस्था में हम आकस्मिक धन प्राप्ति के वृहद अनुष्ठान को संपन्न करते हैं ,पर क्या ये सही क्रम है ? नहीं ना,क्यूंकि दुर्भाग्र निवारण,दरिद्रता नाश और तत्पश्चात श्री आमंत्रण क्रम करना उचित होता है,तदुपरांत लक्ष्मी का श्री के रूप में आपके जीवन में आगमन होता है और उसके बाद जब हम लक्ष्मी कीलन या स्थिरीकरण की क्रिया करते हैं तो लक्ष्मी जन्म जन्मान्तरों के लिए हमारे कुल में स्थायी रूप से निवास करती हैं. स्मरण रखने योग्य तथ्य ये है की वृहद अनुष्ठान कभी भी आपको शीग्र लाभ नहीं दे सकते हैं क्योंकि उन्हें सिद्ध करने के लिए जो एकाग्रता,चित्त की सध्नाव्धि में इष्ट के साथ होने तारतम्यता का आभाव होना स्वाभाविक होता है और दीर्घ अनुष्ठान प्रारंभिक स्तर पर चित्त को उद्विग्न भी कर देते हैं अतः गृहस्थों को या जिन्हें शीघ्र लाभ चाहिए होता है उन्हें बीजात्मक साधनाओं को सम्पादित करना चाहिए.सदगुरुदेव के आशीर्वाद से ये अतिशीघ्र लाभ भी देते हैं और सिद्ध भी जल्दी हो जाते हैं तथा “यथा बीजम तथा अंकुरम्” की उक्ति को चरितार्थता भी तभी प्राप्त होती है जब आपका बीज पुष्ट हो तभी तो उसका आधार प्राप्त कर साधना आपके समस्त मल का नाश कर आपको आपका अभीष्ट प्रदान करती है.
याद रखिये प्रत्येक बीज के चैतान्यीकरण और जागरण की प्रथक प्रथक क्रिया होती है जो आपके उद्देश्य को दिशा देती है ,जैसे “क्लीं” बीज का यदि वशीकरण साधना के लिए प्रयोग करना हो तो उसे जाग्रत करने और स्वप्राण घर्षित करने की क्रिया भिन्न होगी उस क्रिया से जो की संहार के लिए प्रयुक्त की गयी हो.
यहाँ पर हम बात आर्थिक उन्नति की कर रहे हैं ,तो जब जॉब में या व्यवसाय में अथवा सामान्य जीवन में आप पैसों के लिए मोहताज हो गए हो तो किसी भी अन्य लक्ष्मी प्राप्ति प्रयोग को करते समय यदि “ह्रीं” बीज का सायुज्यीकरण कर दिया जाये तो वह प्रक्रिया निसंदेह अपना तीव्र प्रभाव प्रदान करती है ,और यदि मात्र इसी बीज का प्रयोग किया जाये तब भी आर्थिक बाधाओं का नाश तो करती ही है साथ ही साथ नौकरी या व्यवसाय पर छाये हानि के बादलों को भी पूरी तरह समाप्त कर देती है ,प्रयोग बड़ा या छोटा होने से प्रभाव की प्राप्ति नहीं होती है अपितु उसकी पद्धति कितनी विश्वसनीय है और उसका आधार क्या है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है ,याद रखिये “ह्रीं’ महाकाली,महासरस्वती और महालक्ष्मी तीनों का ही बीज है अर्थात त्रिगुण शक्तियों से परिपूर्ण है अर्थात ,शक्ति,वेग और तीव्रता का संयुक्त रूप,अतः इसका कैसे सयुज्यीकरण किया जायेगा ये ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य होता है किसी भी क्रिया के पूर्ण होने के लिए.
हम बात आर्थिक लाभ या सम्मान या नौकरी या व्यवसाय के स्थायिव की कर रहे है तब इसका प्रयोग कैसे किया जाए मात्र उससे अवगत करना ही मेरा उद्देश्य है –
किसी भी रात्रि को विशुद्ध शहद १०० ग्राम लेकर एक कांच के पात्र में रख ले और उस पात्र को सदगुरुदेव,गणपति और हाथों से स्वर्ण बरसाती पद्म लक्ष्मी के सामने स्थापित कर दे,घृत दीपक प्रज्वलित करे और गुलाब धुप और गुलाब पुष्प से पूजन करे ,साफ़ वस्त्र व आसन हो रात्री या संध्या का समय हो, सफ़ेद कागज या ज्यादा उचित है की भोजपत्र पर अष्टगंध के द्वारा अनार की कलम से “ह्रीं” लिखे और अपना पूर्ण नाम लिख कर फिर से “ह्रीं” लिख दे,ये बहुत ही छोटे कागज या पत्र पर लिखना है.इसके बाद उसी स्थान पर बैठे बैठे बीज मंत्र की ३ माला हकीक या मूंगे माला से करे ,और उसके बाद उस पत्र की गोली बनाकर उस शहद में डुबो दे ,ये क्रम मात्र ३ दिन करना है अर्थात आपको नित्य बीजंकन कर के उसके सामने पूजन तथा जप करना है और मधु में डुबो देना है.इसके साथ आप अन्य प्रयोग भी कर सकते हैं या यदि अन्य लक्ष्मी प्रयोग न कर रहे हो तो इस बीज की माला संख्या ७ कर दीजिए और दिन की अवधि ५ कर दीजियेगा,अंतिम दिवस जप के दुसरे दिन उस पात्र में से सभी गोलियों को निकाल कर किसी बहते साफ़ जल में प्रवाहित कर दे और शहद का आप स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए नित्य सेवन भी कर सकते हैं या वशीकरण साधना में भी प्रयोग कर सकते हैं,सेवन करने के लिए एक इलायची को नित्य उसमे भिगोकर खाना चाहिए. ये सदगुरुदेव की असीम अनुकम्पा है की हमारे मध्य इतने सरल परन्तु अचूक प्रयोग प्राप्य है,आप स्वयं ही इसे कर के प्रभाव देख सकते हैं

Sunday, January 8, 2012

Rishi Maha Markande Saraswati sacred spiritual Sadhana

महा ऋषि मारकंडे पुनीत सरस्वती साधना –
विधा बुद्धि पर्प्त्यर्थ एवम शिक्षा क्षेत्र में प्रगति हेतु कामना अहर्निश हम भगवती सरस्वती से करते है ! आज शिक्षा एवम प्रतियोगिताक्षेत्र में प्रत्येक क्षात्र मर –मिटने को तैयार मालूम होता है !ऐसी स्थिति में दैवीय सहायता लेनी अवशक हो जाती है !इस लिए विधार्थीजगत को एक रहस्यात्मक साधना प्रयोग एवम अनुष्ठान बता रहा हु जो बहुत दुर्लभ एवम गोपनीय रहा है ! इस साधना से बुद्धि की प्रखरता एवम विधा क्षेत्र में उतरोत्क प्रगति प्रशस्त हो जाता है !इस मंत्र को गुरु मुख से प्राप्त करे संभव न हो तो मंत्र एक कागज पे लिख कर गुरु चरणों में अर्पित करे और पूजन कर उसे इस प्रकार प्रथना करते हुए ग्रहण करे जैसे गुरु जी से दीक्षा ले रहे हो और फिर गणेश जी का पूजन कर सरस्वती पूजन करे और भोग के लिए मिश्री और छोटी इलयाची किसी पात्र में सहमने रखे !शुद्ध घी की ज्योत लगाए और इस साधना को सफ़ेद वस्त्रधारण कर पूर्व दिशा की और मुख कर करना है !यह साधना 40 दिन की है !मंत्र जप सफ़ेद हकीक जा स्फटिक की माला से करे !साधना के अंतिम दिन किसी पात्र में अग्नि जला कर खीर और घी से 1008 आहुति दे ! इस प्रकार साधना सिद्ध हो जाती है और व्यक्ति को चमत्कारी लाभ मिलता है !
शुभ महूरत सोमवार के दिन पूर्व मुख हो कर सफ़ेद आसन पे बैठे और गुरु पूजन और गणेश पूजन कर संकल्प ले के मैं गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य विधा क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए यह साधना कर रहा हु हे गुरुदेव आप मुझे सफलता प्रदान करे इतना कह कर जल भूमि पे शोड दीजिये !
अब हाथ में जल लेकर विनियोग करे ---
ॐ अस्य श्री वागवादिनी –शारदा मंत्रस्य मार्कण्डेयक्ष्वलायनौ ऋषि स्रग्धरा- अनुष्ट्भौ छन्द्सी, श्री सरस्वती देवता श्री सरस्वतीप्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोग:!
फिर निम्न श्लोक मंत्र से ध्यान करे ---
ॐ शुकलां ब्रह्मविचारसार –परमा माद्दा जगद्व्यापिनी,
वीणा-पुस्तक –धरिणीमभयदां जङ्यन्धकारापहाम !!
हस्ते स्फटिक –मालिकां विधधती पदद्मासने संस्थिताम,
वन्दे तां परमेश्र्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदां !!
इस के बाद 11 माला निम्न मंत्र की शुद्ध चित से करे और 40 दिन करे !
मंत्र --- ॐ ह्रीम ऐं ह्रीं ॐ वाग्देव्यै नमः !!

इसके बाद सरस्वती स्तोत्र को एक वार पढ़ ले तो विशेष अनुकूलता रहती है !



Saraswati stotram
1) Saraswati Mahabhadra, Mahamaya Varaprada ;
Shriprada Padmanilaya, Padmakshi Padmavaktraga
Shivanuja Pustakadhrit, Naana mudra Ramapara
Kaamarupa Mahavidya, Mahapataka Nashini.
I’m learner to Your Holy names yet, So kindly forget my errors all over
Maa, I don’t have special knowledge to worship You
But I know You just need purity’n that’s all.

2) Mahashraya Malini cha, Mahabhoga Mahabhuja
Mahabhaga Mahosaha, Divyanga Survandita ;
Mahakhali Mahapasha, Mahakara Mahankusha
Sitacha Vimala Vishwa, Vidyunmala cha vaishnavi.
Maa, I have no idea how to meditate on you,
But I know You just need purity’, that’s all.

3) Chandrika Chandra vadana, Chandralekha Vibhushita,
Savitri Sursa Devi, Divya-Lankaarbhushita.
Vaagdevi Vasudha Tivra, Mahabhadra Mahabala ;
Bhogada Bharti Bhama, Govinda Gomati Shiva.
Maa, I don’t know how to render service,
But I know You just need purity’n that’s all.

4) Jatila Vindhyavasa cha, Vindyachal Virajita
Chandika Vaishnavi Brahmi, Brahmagyane Kasadhana
Saudhamini Sudhamurti, Subhadra Surpujita,
Suvasini Sunasa cha, Vinidra Padmalochana.
Maa, I don’t know what is the complete devotion.
But I know you just need purity’n that all.

5) Vidyarupa Vishalakshi, Brahma jaya Mahabala
Brahmjaya Mahabala, Treyimurti Trikaalagnya
Triguna shastra rupini Shumbrasura Pramathini.
Shubrada cha Sarvaatmika, Raktabija Nihantiri cha
Chamunda chandika Tatha

6) Mund kaya praharna, Dhumralochna-mardana
Sarvadeva-s-stuta, Saumya Surasura Namaskrita
Kaalratri Kladhara, Roopa Saubhagya-dayini
Vaagdevi cha Vararoha, Varahi Varijasana.

7) Chitrambara Chitragandha, Chitramalya Vibhushita
Kaanta Kaamprada Vandya, Vidyadhara supujita
Shvetamana Neelabhuja, Chaturvarga Phalaprada.
Chaturamana Samarajya, Raktamadhya Niranjana.

8) Hansaasna Neeljangha, Brahma Vishnu Shivatmika
Aivum Saraswati Devya, Namnam Ashtottara Shastam
Sakshat Shri Adi Shakti Mataji, Shri Nirmala Devi Namoh Namaha

Sun Gem Sadhana सूर्य मणि साधना

सूर्य मणि साधना –
सूर्य को आत्म भी कहते है ! क्यू के यह आत्मा के प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य साधना जीवन को प्रकाशमान करती हुई साधक को साधना क्षेत्र में विशेष उच्ता प्रदान करती है ! बहुत सोभाग्यशालि साधक होते है जो सूर्य साधना को अपना कर अपना जीवन प्रकाश म्ये करते है ! सूर्य साधना के लिए विशेष कर मकर संक्राति का समय सभ से उचित है ! जिस दिन सूर्य भगवान जल राशि में परवेश करते है और हर साधक को विशेष प्र्सनता पार्डन करते हुए उसके जीवन को प्रकाश म्यी बनाते है !इस दिन आप सूर्य उद्ये से पूर्व उठे ईशनान करे फिर मन को पर्सन रखते हुए ये साधना करे इस से आप अपने में एक ञ तेज महसूस करेगे और जीवन में आने वाली वाधाओ पे विजय पाएगे सूर्य साधना जीवन में आपको एक नई दिशा प्रदान करेगी और इस के लिए आप को जो स्मगरी चाहिए सूर्य यंत्र एक माणिक का स्टोन ले ले और लाल हकीक की माला मूँगे की भी ले सकते है न मिले तो रुद्राश की माला से जप कर ले !
विधि --- सुबह उठ के ईशनान करे और लाल धोती पहन कर उद्ये होते सूर्य को प्रणाम करते हुये निम्न मंत्र का 21 वार जप करे !
मंत्र – सूर्य दर्शन मंत्र -
ॐ कनक वर्णग महा तेज्ग रत्न माले भूष्णग !
सर्व पाप पर्मुच्यते भरवासरे रवि दर्शनग !!

एक पुजा की थाली पहले तयार कर ले जिस में कुंकुम दीप लाल फूल नवेद के लिए गुड और यगोपावित आदि हो एक नारियल पनि वाला और दक्षणा के लिए कुश चेंज और अब सूर्य के सहमने लाल आसन पे बैठे आप का मुख सूर्य की तरफ होना चाहिए ! अब भूमि पर त्रिकोण वृत और चतुरसर मण्डल चन्दन से बनाए और उसका गंध अक्षत से पूजन कर उस पे अर्ग पात्र स्थाप्त करे और उस में निम्न मंत्र से जल डाले –
मंत्र – ॐ शन्नो देवी रभिष्ट्य आपो भावन्तु पीतये ! शन्ययो रविसर्वन्तु नः !!
उस जल में तीर्थों का आवाहन करे –
ॐ गंगे च जमुने चैव गोदावरि सरस्वती !
नर्मन्दे सिन्धु कावेरि जले गंग स्मिन सन्निधि करू !!
इस के बाद उस जल में गंध अक्षत कुक्म थोड़ा गुड डाल कर पूजन करे और निम्न मंत्र से सूर्य ध्यान करे
मंत्र –
अरुणो अरुण पंकजे निष्ण्ण: कमले अभीतिवरौ करैर्दधान: !
स्वरुचार्हितमण्डल सित्र्नेत्रोंरवि शताकुलं बतान्न !!

अब अर्ग दान करे –
ॐ एहि सूर्य सहस्रान्शों तेजो राशे जगत पते ,
अनुक्म्प्या मां भ्क्त्या ग्रेहाणार्घ्य दिवाकर !!

ॐ अदित्या नमः ॐ प्रभाकराये नमः ॐ दिवाकराये नमः !!
अर्घ दान के बाद आसन पे सूर्य की और विमुख हो कर बैठ जाए अपने सहमने एक ताँबे की पलेट में एक लाल फूल के उपर सूर्य यंत्र स्थापित करे उसके उपर माणक का स्टोन (रूबी )स्थापित करे यन्त्र का पूजन पंचौपचार से करे और संकल्प ले के मैं अपना नाम बोले ---- अपना गोत्र बोले गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य अपने जीवन की सभी नेयुंताओ को दूर करने और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए यह सूर्य मणि प्रयोग कर रहा हु हे गुरुदेव मुझे सफलता प्रदान करे जल भूमि पे शोड दे और फिर मूँगे जा हकीक जा रुद्राश माला से निम्न मंत्र की 21 माला जाप करे और जप पूर्ण होने पर नमस्कार कर उठ जाए जदी पहले और बाद में एक एक माला गुरु मंत्र की कर ले तो भी बहुत अशा है ! साधना के बाद उसी दिन यन्त्र और माला को जल परवाहित कर दे और माणक को अंगूठी में जड़ा कर पहिन ले इस तरह की अंगूठी पहले भी बना सकते है और अंगूठी को यन्त्र पे अर्पित कर साधना कर सकते है !आप स्व महसूस करेगे की ज़िंदगी में एक उतशाह और सफलता का ञ मार्ग मिल गया है!

मंत्र – ॐ ह्रीं घृणि सूर्य अदित्या ये नमः !!
इसके बाद भगवान सूर्य के 12 नाम मंत्र पढ़ते हुए नमसकर करे !
1 ॐ मित्राये नमः !
2 ॐ रविये नमः !
3 ॐ सूर्यये नमः !
4 ॐ भानुये नमः !
5 ॐ खगाये नमः !
6 ॐ पुष्णे नमः !
7 ॐ हिरण्यगर्भये नमः !
8 ॐ मरिचाये नमः !
9 ॐ आदित्याये नमः !
10 ॐ सावित्रे नमः !
11 ॐ आर्काय नमः !
12 ॐ भास्कराये नमः !

Debt relief Bhairav ​​Sadhana - ऋण मुक्ति भैरव साधना

ऋण मुक्ति भैरव साधना-
हर व्यक्ति के जीवन में ऋण एक अभिशाप है !एक वार व्यक्ति इस में फस गया तो धस्ता चला जाता है ! सूत की चिंता धीरे धीरे मष्तश पे हावी होती चली जाती है जिस का असर स्वस्थ पे होना भी स्वाभिक है ! प्रत्येक व्क्यती पे छ किस्म का ऋण होता है जिस में पित्र ऋण मार्त ऋण भूमि ऋण गुरु ऋण और भ्राता ऋण और ऋण जिसे ग्रह ऋण भी कहते है !संसारी ऋण (कर्ज )व्यक्ति की कमर तोड़ देता है मगर हजार परयत्न के बाद भी व्यक्ति छुटकारा नहीं पाता तो मेयूस हो के ख़ुदकुशी तक सोच लेता है !मैं जहां एक बहुत ही सरल अनुभूत साधना प्रयोग दे रहा हु आप निहचिंत हो कर करे बहुत जल्द आप इस अभिशाप से मुक्ति पा लेंगे !
विधि – शुभ दिन जिस दिन रवि पुष्य योग हो जा रवि वार हस्त नक्षत्र हो शूकल पक्ष हो तो इस साधना को शुरू करे
वस्त्र --- लाल रंग की धोती पहन सकते है !
माला – काले हकीक की ले !
दिशा –दक्षिण !
सामग्री – भैरव यन्त्र जा चित्र और हकीक माला काले रंग की !
मंत्र संख्या – 12 माला 21 दिन करना है !
पहले गुरु पूजन कर आज्ञा ले और फिर श्री गणेश जी का पंचौपचार पूजन करे तद पहश्चांत संकल्प ले ! के मैं गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य अपने जीवन में स्मस्थ ऋण मुक्ति के लिए यह साधना कर रहा हु हे भैरव देव मुझे ऋण मुक्ति दे !जमीन पे थोरा रेत विशा के उस उपर कुक्म से तिकोण बनाए उस में एक पलेट में स्वास्तिक लिख कर उस पे लाल रंग का फूल रखे उस पे भैरव यन्त्र की स्थापना करे उस यन्त्र का जा चित्र का पंचौपचार से पूजन करे तेल का दिया लगाए और भोग के लिए गुड रखे जा लड्डू भी रख सकते है ! मन को स्थिर रखते हुये मन ही मन ऋण मुक्ति के लिए पार्थना करे और जप शुरू करे 12 माला जप रोज करे इस प्रकार 21 दिन करे साधना के बाद स्मगरी माला यन्त्र और जो पूजन किया है वोह समान जल प्रवाह कर दे साधना के दोरान रवि वार जा मंगल वार को छोटे बच्चो को मीठा भोजन आदि जरूर कराये ! शीघ्र ही कर्ज से मुक्ति मिलेगी और कारोबार में प्रगति भी होगी !
जय गुरुदेव !!

मंत्र—ॐ ऐं क्लीम ह्रीं भम भैरवाये मम ऋणविमोचनाये महां महा धन प्रदाय क्लीम स्वाहा !!
Mantr – om aim kleem hreem bham bhairvaye mam rin vimochnaye maham mha dhan prdaye kleem svaha !!