Thursday, May 3, 2012

mantra


मंत्र


शंकराचार्य ने पुरे भारतवर्ष में घूमकर एक ही बात कही कि संसार का सब कुछ मंत्रों के आधीन हैं! बिना मंत्रों के जीवन गतिशील नहीं हो सकता, बिना मंत्रों के जीवन की उन्नति नहीं हो सकती, बिना साधना के सफलता नहीं प्राप्त हो सकती!

गुरु तो वह हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को एक मंदिर बना दे, मंत्रों के माध्यम से! वैष्णो देवी जायें और देवी के दर्शन करे, उससे भी श्रेष्ठ हैं कि मंत्रों के द्वारा वैष्णो देवी का भीतर स्थापन हो, अन्दर चेतना पैदा हो जिससे वह स्वयं एक चलता फिरता मंदिर बनें, जहाँ भी वह जायें ज्ञान दे सकें, चेतना व्याप्त कर सकें तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
जब मैं इंग्लैण्ड गया तो वहां भी लाख-डेढ़ लाख व्यक्ति इकट्ठे हुए, उन्होंने भी स्वीकार किया कि मंत्रों का ज्ञान प्राप्त होना चाहिए! उन्होंने कीर्तन किया, मगर कीर्तन के बाद मंत्रो को सीखने का प्रयास भी किया, निरंतर जप किया और उनकी आत्मा को शुद्धता, पवित्रता का भाव हुआ! मैक्स म्युलर जैसे विद्वान ने भी कहा हैं कि वैदिक मंत्रों से बड़ा ज्ञान संसार में हैं ही नहीं ! उसने कहा हैं कि मैं विद्वान हु और पूरा यूरोप मुझे मानता हैंमगर वैदिक ज्ञानवैदिक मंत्रों के आगे हमारा सारा ज्ञान अपने आप में तुच्छ हैंबौना हैं ! आईंस्टीन जैसे वैज्ञानिक ने भी कहा कि एक ब्रह्मा हैंएक नियंता हैंवह मुझे वापस भारत में पैदा करेंऐसी जगह पैदा करेंजहाँ किसी योगीऋषि या वेद मंत्रों के जानकार के संपर्क में  सकूँउनसे मंत्रों को सीख सकूँ! अपने आप में सक्षमता प्राप्त करूँ और संसार के दुसरे देशों मे भी इस ज्ञान को फैलाऊँ!
 गुरु वह हैं जो आपकी समस्याओं को समझेआपकी तकलीफों को दूर करने के लिए उस मंत्र को समझाएंजिसके माध्यम से तकलीफ दूर हो सकें! मंत्र जप के माध्यम से दैवी सहायता को प्राप्त कर जीवन में पूर्णता संभव हैं! दैवी सहायता के लिए जरुरी हैं कि आप देवताओं से परिचित हो और देवता आपसे परिचित हो!
 परन्तु देवता आपसे परिचित हैं नहीं! इसलिए जो भगवान् शिव का मंत्र हैंजो सरस्वती का मंत्र हैंजो लक्ष्मी का मंत्र हैंउसका नित्य जप करें और पूर्णता के साथ करेंतो निश्चय ही आपके और उनके बीच की दुरी कम होगी! जब दुरी कम होगी तो उनसे वह चीज प्राप्त हो सकेगी!  एक करोडपति से हम सौ-हजार रुपये प्राप्त कर सकते हैंपरन्तु लक्ष्मी अपने आपमें करोडपति ही नहीं हैंअसंख्य धन का भण्डार हैं उसके पासउससे हम धन प्राप्त कर सकते हैंपरन्तु तभी जब आपके और उनके बीच की दुरी कम हो…. और वह दुरी मंत्र जप से कम हो सकती हैं! मंत्र का तात्पर्य हैं – उन शब्दों का चयन जिन्हें देवता ही समझ सकते हैं! मैं अभी आपको ईरान की भाषा में या चीन की भाषा में आधे घंटे भी बताऊंतो आप नहीं समझ सकेंगे! दस साल भी भक्ति करेंगेतो उसके बीस साल बाद भी समस्याएं सुलझ नहीं पाएंगीक्योंकि उसका रास्ता भक्ति नहीं हैं  उसका रास्ता साधना हैंमंत्र हैं!
 जो कुछ बोले और बोल करके इच्छानुकूल प्राप्त कर सकें वह मंत्र हैं!
-पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी.
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
जनवरी 2000, पेज नं : 21.

Saturday, March 31, 2012

WHO IS I AM LET ME KNOW FAST THEN YOU WILL COME

तुम मेरे ही अंश हो, मेरे ही प्राण होl

तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं हैं, एक सामान्य चिंतन नहीं हैं, यह मनुष्य जीवन तुम्हें अनायास ही प्राप्त नहीं हो गया…… इसके पीछे कितने ही आवागमन के चक्र हैं, कितने ही संघर्ष एवं गुरु के स्वयं कितने ही प्रयास हैं…l अतः इस जीवन को सहज ही मत ले लेना, इसका मूल्य समझो, इसके मूल उद्देश्य को पहचानोl

पर मुझे अत्यधिक वेदना होती हैं, कि तुम हमेशा एक नींद में, एक खुमारी में पड़े रहते हो…l वह नींद जो अचेतन हैं, जो तुम्हें भ्रम की अवस्था में रखती हैंl मानव जीवन प्राप्त कर भी तुम सोये हुए हो…l और दूसरों की तरह, अपने पास-पड़ोसियों, रिश्तेदारों की तरह धन, वैभव, काम, ऐश्वर्य की मंद्चाल में लगे हो……

यह ग़लत नहीं हैंl

मैंने तो तुम्हें हमेशा सम्पन्न देखना चाह हैं…ll पर आत्म-उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करवाना मेरा उद्देश्य नहीं……l अगर ऐसे तुम सम्पन्नता प्राप्त कर भी लोगे और अगर तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी ही रहेगी, तो फिर प्राप्त भी क्या हो जाएगा…… तुम भी उन लाखों लोगों की भीड़ में शामिल होकर, एक दिन इस निद्रा में ही, पशु की भांति समाप्त हो जाओगे……l

और अगर ऐसा हो गया, तो तुम मेरे शिष्य हो भी नहीं सकते, तुम मेरे अंश हो भी नहीं सकते…l क्योंकि अगर शिष्य हो, तो काल क्या महाकाल को भी तुम्हारे सामने आँखें नीची करनी ही पड़ेंगी…

तुम्हें आख़िर चिंता किस चीज की हैं, क्यों ऊहापोह में पड़े रहते हो, क्यों पागलों की तरह धन कमाने, भौतिक जीवन की और भाग रहे हो…l इसका तो तुम्हें तनाव रखना ही नहीं हैं…ll क्योंकि अगर लक्ष्मी मेरे घर में नृत्य करती हैं, तो मैं इतना समर्थ हूँ, कि तुम्हारे घर में भी उसका नृत्य करा दूँ……

पर शिष्य वही हैं, जो भौतिकता को तो भोगे, परन्तु अपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए…ll उसकी दृष्टि हमेशा अपने लक्ष्य पर टिकी रहे…ll क्योंकि मेरी इच्छा हैं, कि तुम्हें उस धरा पर खड़ा कर, उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूँ, जहाँ पर भारत में तो क्या सम्पूर्ण विश्व में तुम्हें चैलेन्ज करने वाला कोई नहीं होगाl

……और यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम मुझे समर्पण दोगे, मुझे प्रेम दोगे, मुझ में एकाकार हो जाओगे…… तब तुम निश्चय ही पूर्ण बन सकोगे……l और गुरु पूर्णिमा का तो अर्थ ही हैं, कि इस दिन गुरु शिष्य के समस्त कार्यों को स्वयं ओढ़ लेता हैं और बदले में उस दिव्य चेतना एवं पूर्णता देता हैंl

मैं तुम्हारी सभी कमियों को लेने के लिए तैयार हूँ, तुम्हारे विष रुपी कर्मों को अपने अन्दर पचा लेने को तैयार हूँ…ll क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो, मेरे आत्मीय होl तुम लोग गुरु की मानसिकता नहीं समझ सकते, उसकी पीड़ा भी नहीं समझ सकते…ll मैं किस तरह समझाऊं तुम्हें…… क्या अपना वक्षस्थल चीर कर दिखाऊं कि मेरे रक्त की हर बूंद में तुम बसे हो…… क्या तब तुम्हें एहसास होगा, क्या तभी तुम समझोगे?

गुरु को कितनी परेशानियाँ, कितनी मानसिक यातनाएं, कितने संघर्ष झेलने पड़ते हैं, इसका अहसास तुम नहीं कर सकते…… और वह बाहर के लोगों, बाहर के व्यक्तियों से तो निपट सकता हैं, पर अगर अपने ही उसकी बात न समझे, तो अत्यधिक पीड़ा होती हैं……l

क्या तुम नहीं चाहते, कि गुरु पाँच वर्ष ज्यादा तुम्हारे बीच रह सकें, क्या उनकी परेशानियाँ मिटाकर उनको सुख देकर उनकी अवधी को बढ़ा नहीं सकते…ll तो फिर मुझे बार-बार क्यों बोलना पड़ता हैं, क्यों बार-बार तुम्हें हाथ पकड़ कर अपने पास खींचना पड़ता हैं…l

घर का बेटा जवान हो जायें, तो पिता अपने आप को अत्यन्त हल्का महसूस करता हैं…ll तो क्या यह सुख तुम मुझको नहीं देना चाहोगे? क्या मेरा भाग्य इतना न्यून हैं, कि जवान बेटे के होते हुए भी मुझे इस उम्र में अकेले संघर्ष करना पड़े?

मैं तुम्हें एक विशेष उद्देश्य के लिए तैयार कर रहा हूँ, एक विशेष घटना के लिए तैयार कर रहा हूँ और मेरी यह हार्दिक इच्छा हैं, कि इस घटना के महानायक तुम बन सको…l उसकी बागडोर तुम्हारे हाथों में हो……l और अगर ऐसा
हो सकेगा तो मेरा सीना भी गर्व से फूल सकेगा और मैं घोषणा कर सकूँगा – “
ये मेरे ही अंश हैं, मेरे ही प्राण हैं……”

समय कम हैं और रास्ता लम्बा…ll पर तुम बस अपना हाथ बढाकर मुझे थमा दो और बाकी कार्य मुझ पर छोड़ दोllllll मैं तुम्हें श्रेष्ठ बना दूंगा, श्रेष्ठतम बना दूंगा, पूर्ण बना दूंगा और समस्त विश्व एहसास कर पायेगा कि हाँ! कोई व्यक्तित्व हैंl

मुझे फिर कभी कहने की जरुरत न पड़े, तुम निद्रा से जग कर चेतनायुक्त बनो और स्वयं आगे बढ़ने के लिए तत्पर बनो…ll क्योंकि तभी मैं तुम्हें एक ऐसा तेजस्वी सूर्य बना सकूँगा, जो इस संसार में भौतिकता रुपी अन्धकार को हटाकर चिंतन की एक नवीन दिशा प्रस्फूटित कर सकेगा……

-परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी महाराज.
(पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉl नारायण दत्त श्रीमालीजी)
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञानl
जुलाई : पेज 84